कैग के कठधरे में सरकार प्रमोद भार्गव नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कठधरे का दायरा बढ़ रहा है। कैग द्वारा संसद में पेश ताजा ड्राफ्ट रिपोर...
कैग के कठधरे में सरकार
प्रमोद भार्गव
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कठधरे का दायरा बढ़ रहा है। कैग द्वारा संसद में पेश ताजा ड्राफ्ट रिपोर्ट में हवाला दिया है कि लौह अयस्क खदानों के आबंटन में भी बड़े पैमाने पर बंदरबांट हुई है। बेहद सस्ती दरों पर निजी कंपनियों को लोहे के भूखण्ड दे दिए गए। बाजार मूल्य पर इन दरों में अंतर का औसत अनुपात निकालने पर पता चला है कि करीब 2000 करोड़ के राजस्व की हानि हुई है। कैग का दायरा इससे भी आगे जाने वाला है। तेल, गैस व अन्य महत्वपूर्ण खनिजों का आबंटन करके भी पूंजीपतियों को अरबों-खरबों का लाभ पहुंचाया गया है। जबकि अभी संसद कोल-खण्डों में सामने आईं गड़बडि़यों को लेकर ही ठप है।
अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को विकसित करने वाली डायल कंपनी को 239 एकड़ जमीन सिर्फ 100 रूपए-सालाना लीज शुल्क पर दिए जाने का मामला भी गर्म है। जबकि कंपनी ने फीस के बहाने यात्रियों से ही आनन-फानन में 3400 करोड़ रूपये वसूल लिए। कोयला और हवाई अड्डे से जुड़ी कैग रिपोर्ट के साथ ही रिलाइंस पॉवर को वेजा लाभ पहुंचाने की रिपोर्ट आई है। इसके मुताबिक उत्तरप्रदेश के सासन में रिलाइंस बिजली संयंत्र के लिए आवंटित कोयला खदानो से इस समूह ने 29000 करोड़ रूपये का मुनाफा कमाया। यही नहीं, रिलाइंस को कोयले का उपयोग बिजली उत्पादन के आलावा अन्य उद्योगों में भी उपयोग करने की छूट दे दी गई, जो अनुबंध की शर्तों की अवज्ञा है। प्रकृतिक संपदा के अंधाधुंध दोहन से देश में आवारा पूंजी (क्रोनी केपीटल) को बढ़ावा मिला। नतीजतन मंहगाई बढ़ी।
ऐसा नहीं है कि कैग के लेखे-जोखे पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकें ? लेकिन कैेग एक संवैधानिक संस्था है, इसलिए वह न तो बेवजह मुद्दों को तूल दे सकती है और न ही किसी राजनीतिक लाभ के लिए तिल को ताड़ बना सकती है। जाहिर है, इन रिपोर्टों में आंशिक अतिरंजना हो सकती है, परंतु इन्हें पूरी तरह दरकिनार नहीं किया जा सकता। बावजूद संप्रग सरकार और उसके धवल छवि के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह भरोसा है कि ये रिर्पोटें झूठ का पुलिंदा हैं तो सरकार को चाहिए कि वह न केवल कैग को कठघरे में खड़ा करे बल्कि उस पर संवैधानिक प्रवाधनों के तहत जो भी संभव हो अनुशासनात्मक कार्रवाई करे। जिस तरह से शीर्षस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों पर संसद में महाभियोग की कर्रवाई की जाती है।
जिससे पद पर बेठै लोग पद के दुरूपयोग से बचें और संसद में हंगमो के दौर पर लगाम लगे।
लेकिन कैग की रिपोर्ट महज हवा-हवाई नहीं है। क्योंकि जब 1․76 हजार करोड़ का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया था तब भी सरकार इसकी हकीकत को मानने को तैयार नहीं थी और शीर्ष अदालत की फटकार को बेशर्मी की हद तक झेलने के बावजूद तब के संचार मंत्री ए․ राजा को हटाने को तैयार नहीं हुई थी। बाद में सीबीआई जांच में स्पेक्ट्रम की बंदरबांट का सत्यापन हुआ और राजा ही नहीं करूणानिधि की लाड़ली पुत्री कनिमोझी समेत अनेक आला अधिकारियों को जेल की हवा खानी पड़ी। जबकि ए․ राजा के बाद संचार मंत्रालय संभालने वाले कपिल सिब्बल ने इस रिपोर्ट को बेबुनियाद ठहराया था। इस मामले की अभी भी पड़ताल संयुक्त संसदीय समीति कर रही है। समीति के अघ्यक्ष मुरलीमनोहर जोशी और सदस्य यशंवत सिन्हा अभी भी इस बात पर अड़े हुए हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त्ामंत्री पी चिदंबरम् जेपीसी के समक्ष पेश होकर अपना बयान दें।
दरअसल इन दोनों मंत्रियों से समीति पूछना चाहती है कि 31 अक्टूबर 2003 को यूनिफाईड लायसेंस के लिए कैबिनेट द्वारा बनाई गई नीतियों का पालन क्यों नहीं किया गया। यहां सवाल उठता है कि जब मनमोहन और चिदंबरम् पाक-साफ हैं तो उन्हें समीति के सामने पेश होने में हर्ज क्या है। यदि ये पेश होते हैं तो न केवल संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बढ़ेगी बल्कि विधायिका के प्रति आम लोगों का विश्वास मजबूत होगा। यही नहीं बयान दर्ज कराने के बाद पीएसी की रिपोर्ट इन्हें निर्दोष साबित करती है तो ऐसी उम्मीदों को बल मिलेगा कि कोल खण्डों के आबंटन में मनमोहन सिंह शायद प्रत्यक्ष दोषी न हों। क्योंकि कोल खण्डो के आबंटन के कालखण्ड में खुद मनमोहन सिंह वित्त्ामंत्री थे, इसलिए अब वे न केवन संपूर्ण विपक्ष के प्रत्यक्ष निशाने पर हैं साथ ही अवाम में भी उनकी छवि धूमिल हुई है।
इन बड़े घोटाले के सामने आने के बाद जहां विपक्ष प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर अड़ा रहकर संसद की कार्रवाई को ठप किए हुए है, वहीं संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी का बौखलाया रूख भी अनुचित है। उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों को पट्टी पढ़ाई है कि वे कैग की रिर्पोटों को लेकर बचाव की मुद्र्रा में न आएं, बल्कि भाजपा के प्रहारों का आक्रामक जवाब दें। जबकि सोनिया की जबावदेही बनती थी कि वे सर्वदलीय बैठक बुलाएं और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा से भी संवाद कायम कर बीच का कोई ऐसा रास्ता निकालें जिससे संसद में बहस की गुंजाईश बने, लेकिन दोनो ही दलों के अडि़यल रवैये ने साफ कर दिया है कि चोर-चोर मौसेरे भाई हैं। कांग्रेस तो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी ही है, भाजपा शासित साज्य सरकारें भी भ्रष्टाचार में पीछे नहीं हैं। भाजपा की चोर की ढाढ़ी में तिनका वाली स्थिति इसलिए है, क्योंकि उसके दो मुख्यमंत्री राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया और छत्तीसगढ़ के रमन सिंह ने भी कोयला खदानों की खुली नीलामी का पुरजोर विरोध किया था। राजस्थान में तो कोयला नहीं है लेकिन छत्तीसगढ़ में कोयले के अकूत भण्डार हैं। यदि वहां कोल खण्डों के आवंटन और उत्खनन की निष्पक्ष जांच हो जाए तो अकेले छत्तीसगढ़ से ही अरबों के कोयला घोटालों के मामले सामने आ सकते हैं। भाजपा इसीलिए रक्षात्मक मुद्रा में है। वह बहस नहीं चाहती केवल संसद को ठप बनाए रखकर सच्चाई से मुकरना चाहती है।
यहां यह भी गौरतलब है कि 13 जुलाई 2012 को भारतीय संसद की साठवीं सालगिराह के अवसर पर दोनों सादनों का एक संयुक्त अधिवेशन आहूत किया गया था। जिसमें यह प्रतिबद्धता जताई थी कि सभी सांसद सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए गतिरोध और हंगामे से बचेंगे। किंतु यह जनता का ही दुर्भाग्य है कि अण्णा हजारे और स्वामी रामदेव को संसद की सर्वोच्चता और गरिमा का पाठ पढ़ाने वाले सांसद खुद अपनी वचन बद्धता को एक माह भी ध्यान नहीं रख पाए और कटु व कठिन सवालों से बचने के लिए गतिरोध बनाए हुए हैं।
देश चाहता है कि संसद में तार्किक बहस की शुरूआत हो, ताकि सीधे प्रसारण में लोग देख सकें कि कानूनो में संशोधन करके किस तरह से देशी-विदेशी कंपनियों को भू संपदा लूटने की खुली छूट दी गई। और किन तथ्यों और आंकड़ों को आधार बनाकर कैग ने अरबों-खरबों के घोटालों का आकलन किया। इस बहस से आम आदमी को भी एक निश्चित राय बनाने की दिशा मिलेगी और वह चुनाव में दोषियों को दंडित करने की मानसिकता बनाएगा। मौजूदा हालातों और रिपोर्ट के प्रति सत्ता पक्ष के नकारात्मक रूख से यह कतई नहीं लगता कि नेताओं के चरित्र में नैतिकता भी कहीं अंगड़ाई ले रही है। हां, इतना जरूर है इस शोर-शराबे में कई महत्वपूर्ण विधेयक या तो लटके ही रह जायेंगे या वे बिना किसी बहस-मुवाहिसा के पारित कर दिए जायेंगे। जिनके दुष्परिणाम कालातंर में मासूम जनता को झेलने होंगे।
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प्रमोद भार्गव
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शिवपुरी म․प्र․
मो․ 09425488224
फोन 07492-232007, 233882
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।
lekh achcha hai ,hame prakratik sampdaon kai mulyakan hetu paimane bnana honge
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