तिरुवारूर : तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय, तिरुवारूर में दि. 26-28 जुलाई, 2012 को ‘दक्षिण भारत में हिन्दी’ विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय ...
तिरुवारूर : तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय, तिरुवारूर में दि. 26-28 जुलाई, 2012 को ‘दक्षिण भारत में हिन्दी’ विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत ‘राजभाषा कार्यान्वयन में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग’ विषय पर राजभाषा कार्यशाला, ‘हिन्दी क्लब’ का उद्घाटन एवं संगोष्ठी संयोजक एवं निदेशक श्री आनंद पाटील द्वारा संपादित (तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय की पहली पुस्तक) ‘हिन्दी : विविध आयाम’ का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया। ध्यातव्य है कि इस विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्तर की यह प्रथम संगोष्ठी थी और रेखांकित करने की बात है कि यह हिन्दी की संगोष्ठी थी।
इस त्रिदिवसीय कार्यक्रम के लिए मुख्य अतिथि के रूप में केरल के प्रसिद्ध कवि, लेखक, आलोचक एवं महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रति कुलपति प्रो. ए. अरविंदाक्षन तथा अध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. पी. संजय जी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का श्रीगणेश दि. 26 जुलाई, 2012 को ‘हिन्दी क्लब’ के उद्घाटन समारोह में दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। ‘हिन्दी क्लब’ के उद्घाटन समारोह के इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. घनश्याम शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, बाबू जगजीवन राम महाविद्यालय (उस्मानिया विश्वविद्यालय) हैदराबाद, बीज व्याख्यान के लिए आमंत्रित गुरुकुल विद्यापीठ, इब्राहिमपट्टणम् के डॉ. प्रेमचन्द्र तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. पी. संजय जी उपस्थित थे।
‘हिन्दी क्लब’ उद्घाटन समारोह के अवसर पर डॉ. घनश्याम जी ने कहा कि “विश्वविद्यालय प्रणाली में ‘हिन्दी क्लब’ पूर्णतः नवीन संकल्पना है। लेकिन इस क्लब की स्थापना के पीछे जो उद्देश्य है, वह बहुत ही उम्दा है। इस क्लब के ज़रिए हिन्दी को लोकप्रिय बनाने का काम किया जाएगा। विद्यार्थी, अधिकारी, संकाय सभी एक प्लैटफार्म पर एकत्रित होंगे और हिन्दी के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे और हिन्दी सीखने, समझने, समझाने का काम करेंगे। यह इज़ी लर्निंग मेथड़ वाला मार्ग है।” डॉ. प्रेमचन्द्र ने शैक्षिक क्षेत्र में क्लब जैसी संकल्पना की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा संयोजक की दूरदर्शिता को सराहा। वहीं इस बात की ओर भी इंगित किया गया कि इसे हिन्दी के ‘संघ’ के रूप में ग्रहण न किया जाए।
माननीय कुलपति प्रो. बी. पी. संजय जी ने हिन्दी क्लब को एक बेहतर ज़रिया मानते हुए, इसकी स्थापना को स्वीकार किया। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि “हिन्दी क्लब के ज़रिए विद्यार्थियों में सक्रियता बढ़ायी जा सकती है। हिन्दी को लेकर उनके मन में जो भय है, उसे निकाल बाहर किया जा सकता है। एक बेहतर साधन के रूप में इस क्लब को देखने की आवश्यकता है।”
इस क्लब का उद्घाटन कम्प्यूटर एनिमेटेड विज्ञान कथा आधारित फ़िल्म ‘वॉल-ई’ (अकादमिक पुरस्कार विजेता फ़िल्म) का प्रदर्शन तथा प्रदर्शनोपरांत लघु चर्चा, डॉ. अनिल पतंग द्वारा लिखित नाटक ‘दिल ही तो है’ (निर्देशन : श्री आनंद पाटील) का मंचन तथा अन्य रंगारंग कार्यक्रमों के साथ हुआ।
दि. 27 जुलाई, 2012 को ‘दक्षिण भारत में हिन्दी’ राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रो. ए. अरविंदाक्षन जी ने कहा कि “विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग नहीं है, केवल हिन्दी अनुभाग है और उसमें भी केवल एक ही अधिकारी है, जो राजभाषा से संबंधित कामकाज देखता है। बावजूद इसके हिन्दी का इतना भव्य आयोजन किया गया है और बहुत ही व्यापक विषय पर चर्चा करने के लिए अनेकानेक विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। प्रायः हममें यही बात प्रचलित है कि तमिल लोग हिन्दी बोलना नहीं जानते अथवा बोलना पसंद नहीं करते। जबकि सत्य तो यह है कि काफ़ी तमिल भाषी कर्मचारी, विद्यार्थी हिन्दी बोल रहे हैं।” इस पहल के लिए उन्होंने श्री आनंद पाटील की पहल को सराहा। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में दक्षिण में हिन्दी की स्थिति एवं गति, दशा एवं दिशा पर विस्तार से बात की।
प्रो. बी. पी. संजय जी ने संगोष्ठी को ‘इंटलेक्च्युअल ओपननेस’ कहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक विकास के लिए एक-दो पीढ़ियों को बलिदान करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि हम सभी भाषाओं का प्रसार करने में विश्वास रखते हैं और उनका आदर करते हैं। उन्होंने आमंत्रित विद्वानों से उम्मीद की कि इस विशद विषय के अलग-अलग पहलुओं पर सार्थक चर्चा करेंगे और विश्वविद्यालय को सुझाव देंगे कि आगे किस तरह के कदम उठाये जाने चाहिए।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में ही प्रो. अरविंदाक्षन, प्रो. बी. पी. संजय तथा श्री वी. के. श्रीधर जी ने तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित श्री आनंद पाटील की पुस्तक ‘हिन्दी : विविध आयाम’ का लोकार्पण किया।
इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में अन्य अतिथि वक्ताओं के रूप में प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, साहित्य विभाग, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ; प्रो. ए. भवानी, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मनोम्ननियन सुंदरनार विश्वविद्यालय, तिरुनेलवेली ; डॉ. सी. अन्नपूर्णा, अध्यक्ष, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ; डॉ. एम. श्यामराव, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद ; डॉ. चिट्टी अन्नपूर्णा, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नै ; श्री प्रकाश जैन, महाप्रबंधक, डेली हिन्दी मिलाप, हैदराबाद ; डॉ. जयशंकर बाबू, हिन्दी विभाग, पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पांडिचेरी ; डॉ. आत्माराम, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद ; डॉ. चंदू खंदारे, हिन्दी विभाग, गांधीग्राम ग्रामीण विश्वविद्यालय, गांधीग्राम ; श्री एम. संजीवी कानी, सहायक प्रबंधक (राजभाषा), भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंगलुरु ; श्री विनायक काले, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद ; श्रीमती अनीता पाटील, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद ने ‘दक्षिण भारत में हिन्दी’ के विविध पहलुओं पर अपने शोध पत्र/व्याख्यान प्रस्तुत किये।
वहीं ‘राजभाषा कार्यान्वयन में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग’ विषय पर आयोजित राजभाषा कार्यशाला में प्रतिभागियों के रूप में राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बांदरसिंदरी के हिन्दी अधिकारी श्री प्रतीश कुमार दास तथा हिंदुस्थान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड, चेन्नई के हिन्दी अधिकारी श्री बशीर उपस्थित थे।
इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं राजभाषा कार्यशाला में एक बात बारंबार उभरकर आयी कि हिन्दी को संपर्क भाषा, आम अवाम की ज़रूरतों की भाषा के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। लेकिन राजभाषा के रूप में आज भी विरोध हो रहा है, कारण कि ‘राजभाषा’ कहते ही ‘राज चलाने की भाषा’ के रूप में उसे ग्रहण किया जाता है। वहीं केन्द्र में भी हिन्दी अनुवाद के बूते पर चलती है, जिसमें उसकी क्लिष्टता के कारण वह आम अवाम की समझ में नहीं आती है। वास्तविकता यह है कि वह अपनी प्रयोजमूलकता से कोसों मिल दूर होती है। मंत्रियों से लेकर सरकारी अधिकारियों तक अंग्रेज़ी में काम करते हैं और मंचों से, टीवी चैनलों पर बोलते हुए भी अंग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं। ऐसे में हिन्दी को राजभाषा के रूप में लादना यथोचित नहीं जान पड़ता। श्री प्रकाश जैन, डॉ. घनश्याम, डॉ. चिट्टी अन्नपूर्णा जी ने इस बात पर सिलसिलेवार प्रकाश डाला। हिन्दी अनुवाद के ज़रिए, संचार माध्यमों के ज़रिए, साहित्य और तुलनात्मक अध्ययन के ज़रिए, व्यवसाय के ज़रिए बाज़ार में छा गयी है और एक विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर चुकी है। ऐसे में उसके वैश्विक रूप से कोई इन्कार नहीं करता, लेकिन राजभाषा के रूप में लादना सबको खलता है।
माननीय कुलपति प्रो. बी. पी. संजय जी ने मुख्य अतिथि प्रो. ए. अरविंदाक्षन जी को उनकी हिन्दी सेवा के लिए मान पत्र एवं स्मृति चिह्न देकर तथा अन्य अतिथियों को प्रमाणपत्र एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
तीन दिन के इस कार्यक्रम का सत्र संचालन विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में अध्ययनरत एकीकृत स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के विद्यार्थी यथा – सुश्री यालिनी, श्री विजय बाबू, श्री राम कृपाल कुमार, श्री अभिषेक कुमार, सुश्री सिव पवित्रा, सुश्री स्वाति ने किया।
श्री ए. आर. वेंकटकृष्णन, उप कुलसचिव (अकादमिक) ; श्री एम. पी. बालामुरुगन, उप कुलसचिव (स्थापना एवं प्रशासन) ; डॉ. वी. मधुरिमा, भौतिकी विभाग ; डॉ. वी. पी. रमेश, गणित विभाग ; डॉ. के. वी. रघुपति, अंग्रेज़ी विभाग ने संगोष्ठी के अलग-अलग सत्रों में आभार प्रकट किया।
आनंद ने इस संगोष्ठी को आयोजित करके थीरूवारूर जैसे छोटे शहर में हिन्दी की मजबूत नीव रखने का प्रयास किया। भविष्य की योजनाओं के लिए आनंद और उसके हिन्दी कल्ब को अनेक हार्दिक शुभकामनाएँ।
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