असम में बड़े पैमाने पर हुए दंगों की वजह साफ है। बांग्लादेशी घुसपैठियों ने सीमावर्ती जिलों में आबादी के घनत्व का स्वरुप तो बदला ही, उनकी ...
असम में बड़े पैमाने पर हुए दंगों की वजह साफ है। बांग्लादेशी घुसपैठियों ने सीमावर्ती जिलों में आबादी के घनत्व का स्वरुप तो बदला ही, उनकी बढ़ती आबादी अब मूल निवासी, बोडो आदिवासियों को अपने मूल निवास स्थलों से बेदखल करने पर भी आमादा हो गई है। लिहाजा दंगों की पृष्ठभूमि में बोडों के जमीनी हक छिन जाने और घुसपैठियों द्वारा बेजा कब्जा जमा लेना समस्या के मूल कारण हैं। इसलिए इस समस्या को सांप्रदायिक या जातीय हिंसा कहकर नजरअंदाज करने के बजाय, इससे सख्ती से निपटने की जरुरत है। अन्यथा बोडो आदिवासियों और अन्य गैर मुस्लिमों का इस सीमावर्ती क्षेत्र में वही हश्र होगा, जो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का हुआ है। वे अपने ही देश के मूल निवासी होने के बावजूद बतौर शरणार्थी शिविरों में अभिशापित जीवनयापन के लिए मजबूर कर दिए जाएंगें।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम दंगों को ‘कलंक' कहा है और बोडो व अल्पसंख्यक दोनों ही समुदाय के लोगों को दोषी माना है। लेकिन हकीकत में यह कलंक केंद्र और असम राज्य की उन सरकारों के माथे पर चस्पा है, जो घुसपैठ रोकने में तो नाकाम रही ही हैं, वोट की राजनीति के चलते घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनाने में अग्रणी रही हैं। लिहाजा असम में बोडो और मुस्लिम समुदाय के बीच करीब दो दशक से रह - रहकर विवाद और हिंसा सामने आते रहे है। बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को नहीं समझ रही हैं। क्या यह हैरानी में डालने वाली बात नहीं है कि सूचना और परिवहन क्रांति के दौर में भी दंगाग्रस्त इलाकों में पर्याप्त सेना के पहुंचने में पांच दिन से भी ज्यादा का समय लगा ? और केंद्र व राज्य सरकार एक-दूसरे पर गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाती रही। जबकि केंद्र में जहां कांग्रेस नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार है, वहीं असम में कांग्रेस के बहुमत वाली तरुण गोगोई सरकार है। तरुण गोगोई केंद्र पर अपनी गलतियों व लापरवाहीं का ठींकरा इसलिए आसानी से फोड़ सके, क्योंकि उनकी जीत की पृष्ठभूमि में सोनिया और राहुल के तथाकथित चमत्कारी योगदान की कोई भागीदारी नहीं रही है।
बहरहाल, असम सरकार की विफलता और केंद्र की उदासीनता के चलते करीब 60 निर्दोषों की मौत हो गई और करीब तीन लाख लोग बेघर हो गए। इस भीषण त्रासदी के लिए जितने मनमोहन दोषी है, उतने ही तरुण गोगोई भी। मनमोहन सिंह पिछले 20 साल से असम से राज्यसभा के सांसद हैं। वह भी उस शपथ-पत्र के आधार पर जिसके जरिए वे असम के पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी के भवन में किराएदार हैं ? अब यह तो पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री मूल निवासी कहां के हैं और उनका स्थायी निवास कहां है ? एक ईमानदार प्रधानमंत्री की क्या यही नैतिकता हैं ? खैर, सांसद के नाते उनकी जिम्मेबारी बनती थी कि वे खबर मिलते ही दंगों पर नियंत्रण के लिए जरुरी उपाय करते, जिससे इतनी बड़ी तादात में लोगों को उजाड़ना नहीं पड़ता ?
दूसरी तरफ गोगोई का दायित्व बनता था कि वे दंगों से निजात के लिए लड़त़े, किंतु वे केंद्र सरकार से लड़ रहे थे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि मांगने के बावजूद न तो केंद्र ने उन्हें पुलिस बल की टुकडि़यां भेजीं और न ही सेना। उन्हें ऐसी कोई खुफिया सूचनाएं भी नहीं मिलीं, जिनमें दंगों की आशंका जताई गई हो ? जाहिर है राज्य और केंद्र की एजेंसियों में कोई तालमेल नहीं हैं ? यहां एक सवाल यह भी उठता है कि असम से बांग्लादेश की सीमा लगती है और अवैध घुसपैठ यहां रोजमर्रा की समस्या है। इसलिए इन नाजुक समस्याओं से निपटने के लिए सीमा सुरक्षा बल की टुकडि़या हमेशा मौजूद रहती हैं। केंद्र यदि उदासीनता नही बरतता और तत्परता से काम लेता तो वह बीएसएफ को दिशा-निर्देश देकर हिंसक वारदातों पर नियंत्रण के लिए तत्काल पहल कर सकता था ? किंतु ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री की चेतना में सीमाई व आंतरिक समस्याओं की बजाय प्राथमिकता में अमेरिकी दबाव और बहुराष्टीय कंपनियों के हित रहते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री अपने आठ साल के कार्यकाल में एक भी आंतरिक समस्या का हल नहीं खोज पाए। बल्कि नई जानकारियों के मुताबिक कश्मीर की वादियों में भी फिर से आतंकवादियों की नई नस्ल की फसल उभरने लगी है।
तय है असम दंगों पर तत्काल काबू पा लेने से समस्या का स्थायी हल निकलने वाला नहीं है। दंगों की शुरुआत कोकराझार जिले में घुसपैठी मुस्लिम समुदाय के दो छात्र नेताओं से बोडो आदिवासियों की झड़प से हुई और इन छात्रों द्वारा की गई गोलीबारी से बोडो लिबरेशन टाइगर्स संगठन के चार लोग मारे गए। इस हिंसा से जो प्रतिहिंसा उपजी उसने असम के चार जिलों को अपनी चपेट में ले लिया। जब इस भीषण भयावहता को समसचार चैनलों ने असम जल रहा है शीर्षक से प्रसारित किया तो गोगोई ने इस बड़ी ़त्रासदी पर पर्दा डालने की दृष्टि से कहा कि असम में 28 जिले हैं, किंतु दंगाग्रस्त केवल चार जिले हैं। लिहाजा देश का मीडिया उन्हें बदनाम करने की साजिश में लगा है।
यहां खास बात है कि हिंसा के मूल में हिंदू, ईसाई, बोडो आदिवासी और आजादी के पहले से रह रहे पुश्तैनी मुसलमान नहीं हैं, बल्कि विवाद स्थानीय आदिवासियों और घुसपैठी मुसलमानों के बीच है। दरअसल बोडोलैंड स्वायत्तता परिषद् क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गैर-बोडो समुदायों ने बीते कुछ समय से बोडो समुदाय की अलग राज्य बनाने की दशकों पुरानी मांग का मुखर विरोध शुरु कर दिया है। इस पिरोध में गैर-बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ की भूमिका रही है। जाहिर है यह बात हिंदू, ईसाई और बोडो आदिवासियों के गले नहीं उतरी। इन मूल निवासियों की शिकायत यह भी है कि सीमा पार से आए घुसपैठी मुसलमान उनके जीवनयापन के संसाधनों को लगातार कब्जा रहे हैं और यह सिलसिला 1950 के दशक से जारी है। अब तो आबादी के घनत्व का स्वरुप इस हद तक बदल गया है कि इस क्षेत्र की कुल आबादी में मुस्लिमों का प्रतिशत 40 हो गया है। कुछ जिलों में वे बहुसंख्यक भी हो गए हैं। यही नहीं पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आईएसआई इन्हें प्रोत्साहित कर रही है और साउदी अरब से धन की आमद इन्हें कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाकर आत्मघाती जिहादियों की नस्ल बनाने में लगी है। इन घुसपैठियों को बांग्लादेश हथियारों का जखीरा उपलब्ध करा रहा है। इनसे पूछा जाए कि इनके पास गैर लायसेंसी हथियार आए कहां से ?
बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि असम विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल एआईयूडीएफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् ;बीटीएडीद्ध को को भंग किया जाए। दूसरी तरफ वाशिंगटन स्थित ह्यूमन राइट्स वाच ने भारत सरकार को हिदायत दी है कि असम की जातीय हिंसा पर नियंत्रण के लिए संयुक्त राष्ट के सिद्धांतो के अनुसार सेना को घातक बल प्रयोग की अनुमति नहीं दी सकती। लिहाजा उपद्रवियों पर देखते ही गोली मारने के आदेश को वापिस लिया जाए। जबकि ह्यूमन राइट्स को जरुरत थी कि वह समस्या के स्थायी हल के लिए भारत को नसीहत देता कि जो घुसपैठिए भारत के नागरिक नहीं हैं, उनकी पहचान की जाए और शरणार्थियों के लिए निश्चित अंतरराष्टीय मानदण्डों और मूलभूत मानवाधिकारों का पालन करते हुए अन्हें उनके देश वापिस भेजा जाए। लेकिन कमजोर केंद्र सरकार और बाजारवादी नजरिये को प्राथमिकता देने वाले प्रधानमंत्री प्रवासी मुसलमानों को वापिसी की राह दिखाने का कठोर निर्णय ले पाएंगे ? उत्तर है नहीं। महज भड़की चिंगारी को राख में दबाने के प्रयत्न किए जाएंगे, जो कालांतर में फिर भड़क उठेगी।
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प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म․प्र․
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फोन 07492-232007, 233882
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।
धर्मरक्षक श्री दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने सालों से पूर्वोत्तर मसलों पर भयानक चुप्पी साधे बैठे भाजपा नेताओ की अचानक कोकराझार मसले पर आंख खुलने पर आष्चर्य व्यक्त किया। भाजपा नेत्री और प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को आड़े हाथों लेते हुए श्री मुकेश जैन ने कहा कि जब पिछले साल मेघालय में राभा हिन्दुओं को मारा जा रहा था,और उनके मन्दिरों में चर्च के गारो ईसाई आतंकवादी आग लगा रहे थे,तब वो कहां सो रही थी? जब 3-3 महीने तक नागालैण्ड के चर्च के ईसाई आतंकवादी मणिपुर की नाकाबन्दी करते है तो तब आड़वानी जी हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी क्यों मारे होते हैं?पूर्वोत्तर की एक ईसाई लड़की से दिल्ली में बलात्कार के मसले पर पिछले साल दो-दो प्रदर्षन करने वाली सुषमा स्वराज की जबान को पूर्वोत्तर के ईसाई आतंकवादीं गिरोह उल्फा द्वारा बिहारी हिन्दुओ को मारे जाने पर लकवा क्यों मार जाता है? आतंकवादी बैपटिस्ट चर्च द्वारा पूर्वोत्तर के हिन्दुओं पर लगाये गये 10 प्रतिशत चर्च के ईसाई जजिया टैक्स पर सुषमा स्वराज और आड़वानी जी खामोष क्यों हैं? जिसे वहां के सरकारी कर्मचारी तक दे रहे हैं और जिसे बुराड़ी में कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने भी स्वीकार किया है।
जवाब देंहटाएंधर्म रक्षक श्री दारा सेना ने असम के कोकराझार में चर्च के बोड़ो ईसाई आतंकवादी गिरोहों द्वारा मुसलमानो को मार मार के भगाने और लाखों मुस्लिमों के घरों में आग लगाने पर गहरी चिन्ता व्यक्त की।और इसे पूर्वोत्तर से हिन्दुओं और मुसलमानों को मार भगाकर एक अलग ईसाई देश बनाने की आतंकवादी अंग्रेज मिश्निरियों की भयानक साजिश बताया। श्री जैन ने पूवो्र्रत्तर के 3 राज्यों नागालैण्ड, मिजोरम और मेघालय से आजादी के बाद हिन्दुओं का पूर्ण सफाया करके ईसाई बहुल बनाने की आतंकवादी अंग्रेज मिष्निरियों की सफल साजिष के विरूद्ध भाजपा नेताओं की भयानक चुप्पी पर आष्चर्य व्यक्त किया।
दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने कोकराझार के मुस्लिमों की इस बात के लिये दाद दी कि उन्होनें आतंकवादी बैप्टिस्ट चर्च द्वारा वहां के हिन्दुओं और मुसलमानों पर लगाये गये 10 प्रतिशत ईसाई टैक्स की अवैध उगाही देने से इन्कार किया।और चर्च का ईसाई जजिया टैक्स लेने आये अंग्रेजी चर्च द्वारा बनायी बोड़ो आतंकवादी फौज के गोला बारूद से लैस 4 बोड़ो ईसाई आतंकियों को पीट- पीट कर मार डाला। श्री जैन ने कहा कि यह वह बहादुरी है जो पूर्वोत्तर के ईसाई इलाकों में आज तक कोई नही दिखा सका। उल्लेखनीय है कि बुराड़ी में कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने भी पूर्वोत्तर के नागालैन्ड मिजोरम-मेघालय-त्रिपुरा आदि राज्यों में हो रही ईसाई आतंकवादियों द्वारा अवैध उगाही को स्वीकार किया था। और यह भी किसी से छुपा नही है कि आज पूर्वोत्तर में सरकारी कर्मचारी तक अंग्रेजी चर्च के गुलाम बन कर 10 प्रतिशत ईसाई टैक्स देने के लिये बाध्य है। पिछले दिनो अरूणाचल के छात्र संगठनों ने भी श्री चिदम्बरम के अरूणाचल दोरे के दौरान इसाई आतंकवादी गिरोह एन एस सी एन के आतंकवादियों द्वारा की जा रही इस अवैध उगाही ।10 प्रतिशत ईसाई टैक्स। की शिकायत करते हुए इससे निजात दिलाने की प्रार्थना की थी ।
धर्मरक्षक श्री दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने सालों से पूर्वोत्तर मसलों पर भयानक चुप्पी साधे बैठे भाजपा नेताओ की अचानक कोकराझार मसले पर आंख खुलने पर आष्चर्य व्यक्त किया। भाजपा नेत्री और प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को आड़े हाथों लेते हुए श्री मुकेश जैन ने कहा कि जब पिछले साल मेघालय में राभा हिन्दुओं को मारा जा रहा था,और उनके मन्दिरों में चर्च के गारो ईसाई आतंकवादी आग लगा रहे थे,तब वो कहां सो रही थी? जब 3-3 महीने तक नागालैण्ड के चर्च के ईसाई आतंकवादी मणिपुर की नाकाबन्दी करते है तो तब आड़वानी जी हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी क्यों मारे होते हैं?पूर्वोत्तर की एक ईसाई लड़की से दिल्ली में बलात्कार के मसले पर पिछले साल दो-दो प्रदर्षन करने वाली सुषमा स्वराज की जबान को पूर्वोत्तर के ईसाई आतंकवादीं गिरोह उल्फा द्वारा बिहारी हिन्दुओ को मारे जाने पर लकवा क्यों मार जाता है? आतंकवादी बैपटिस्ट चर्च द्वारा पूर्वोत्तर के हिन्दुओं पर लगाये गये 10 प्रतिशत चर्च के ईसाई जजिया टैक्स पर सुषमा स्वराज और आड़वानी जी खामोष क्यों हैं? जिसे वहां के सरकारी कर्मचारी तक दे रहे हैं और जिसे बुराड़ी में कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने भी स्वीकार किया है।
जवाब देंहटाएंधर्म रक्षक श्री दारा सेना ने असम के कोकराझार में चर्च के बोड़ो ईसाई आतंकवादी गिरोहों द्वारा मुसलमानो को मार मार के भगाने और लाखों मुस्लिमों के घरों में आग लगाने पर गहरी चिन्ता व्यक्त की।और इसे पूर्वोत्तर से हिन्दुओं और मुसलमानों को मार भगाकर एक अलग ईसाई देश बनाने की आतंकवादी अंग्रेज मिश्निरियों की भयानक साजिश बताया। श्री जैन ने पूवो्र्रत्तर के 3 राज्यों नागालैण्ड, मिजोरम और मेघालय से आजादी के बाद हिन्दुओं का पूर्ण सफाया करके ईसाई बहुल बनाने की आतंकवादी अंग्रेज मिष्निरियों की सफल साजिष के विरूद्ध भाजपा नेताओं की भयानक चुप्पी पर आष्चर्य व्यक्त किया।
दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने कोकराझार के मुस्लिमों की इस बात के लिये दाद दी कि उन्होनें आतंकवादी बैप्टिस्ट चर्च द्वारा वहां के हिन्दुओं और मुसलमानों पर लगाये गये 10 प्रतिशत ईसाई टैक्स की अवैध उगाही देने से इन्कार किया।और चर्च का ईसाई जजिया टैक्स लेने आये अंग्रेजी चर्च द्वारा बनायी बोड़ो आतंकवादी फौज के गोला बारूद से लैस 4 बोड़ो ईसाई आतंकियों को पीट- पीट कर मार डाला। श्री जैन ने कहा कि यह वह बहादुरी है जो पूर्वोत्तर के ईसाई इलाकों में आज तक कोई नही दिखा सका। उल्लेखनीय है कि बुराड़ी में कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने भी पूर्वोत्तर के नागालैन्ड मिजोरम-मेघालय-त्रिपुरा आदि राज्यों में हो रही ईसाई आतंकवादियों द्वारा अवैध उगाही को स्वीकार किया था। और यह भी किसी से छुपा नही है कि आज पूर्वोत्तर में सरकारी कर्मचारी तक अंग्रेजी चर्च के गुलाम बन कर 10 प्रतिशत ईसाई टैक्स देने के लिये बाध्य है। पिछले दिनो अरूणाचल के छात्र संगठनों ने भी श्री चिदम्बरम के अरूणाचल दोरे के दौरान इसाई आतंकवादी गिरोह एन एस सी एन के आतंकवादियों द्वारा की जा रही इस अवैध उगाही ।10 प्रतिशत ईसाई टैक्स। की शिकायत करते हुए इससे निजात दिलाने की प्रार्थना की थी ।