पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन प्रमोद भार्गव पाकिस्तान से हिंदुओं का बढ़ता पलायन गंभीर चिंता का सबब है। हाल ही में आए ढाई सौ हिंदुओं ने इस...
पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन
प्रमोद भार्गव
पाकिस्तान से हिंदुओं का बढ़ता पलायन गंभीर चिंता का सबब है। हाल ही में आए ढाई सौ हिंदुओं ने इस चिंता को और गहरा दिया है। पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ दहशतगर्दी का माहौल कट्टरपंथियों द्वारा सोची-समझी साजिश के तहत रचा जा रहा है। साजिश के तहत वहां पहले हिंदू नाबालिग किशोरियों का अपहरण किया जाता है, फिर उनसे कोरे कागज पर दस्तखत कराए जाते हैं। जिसमें प्रेम के प्रपंच और इस्लाम के कबूलनामे की इबारत होती है। इसके बाद उसका किसी मुस्लिम लड़के से निकाह करा दिया जाता है। मजबूरी की यही दास्तान, हिंदू परिवारों के पलायन के दौरान सिंध प्रांत की 14 साल की मनीषा कुमारी ने महविश बनकर लिखी है। हिंदुओं पर जारी इन अत्याचारों की कहानी भारत के दक्षिणपंथी दल नहीं कह रहे, बल्कि इन सच्चाईयों का बयान पाकिस्तान का मीडिया और मानवाधिकार आयोग कर रहे है। लेकिन भारत सरकार इन हालातों को गंभीरता से नहीं ले रही है, यह एक और गंभीरता का विषय है।
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन ने अपनी संपादकीय में लिखा है कि हिंदू व्यापारियों व उनकी बालिकाओं के बढ़ रहे अपहरण, दुकानों में की जार ही लूटपाट, उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जे और धार्मिक कट्टरता के माहौल ने अल्पसंख्यक समुदाय को मुख्य धारा से अलग कर दिया है। दूसरी तरफ ‘जियो न्यूज‘ ने खबर दी कि मुस्लिम युवक के साथ निकाह कर मनीषा अब महविश बन गई है। उसने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर गुलाम मुस्तफा चाना से प्रेम विवाह कर लिया है। पाकिस्तान में जारी इन घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में वहां के मानवाधिकार आयोग ने भी नाराजगी जाहिर की है। हिंदुओं के उत्पीड़न पर वहां की सुप्रीम कोर्ट भी दखल दे चुकी है, लेकिन सिंध और बलूचिस्तान प्रांतों से हिंदुओं के पलायन का सिलसिला थम नहीं रहा है। हिंदू भारत, धार्मिक तीर्थ यात्राओं के बहाने अस्थायी वीजा पर आ रहे हैं। रो-रोकर उत्पीड़न की कहानियां बयान करने के बावजूद भारत सरकार का कहना है कि उन्हें वीजा-अवधि समाप्त होने के बाद पाकिस्तान लौटाना होगा। इस सब के बावजूद हमारे राष्टपति, उपराष्टपति और प्रधानमंत्री की जुबान पाकिस्तान के शासन-प्रशासन से हिंदुओं की सुरक्षा की न्यायिक मांग नहीं कर पा रही है, यह विडंबना विचित्र एवं चिंता हैरत में डालने वाली है। इस्लाम धर्माबलंबी देश पाकिस्तान में 17 करोड़ मुसलमानों के बीच हिंदुओं की आबादी बमुश्किल 27 लाख बची है। जबकि 1947 में हिंदुओं की आबादी का घनत्व 27 फीसदी था, जो अब घटकर महज दो फीसदी रह गया है। हालांकि पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिया था कि उन्हें हर क्षेत्र में समानता का अधिकार होगा और वे अपनी धार्मिक आस्था के लिए स्वतंत्र होंगे। किंतु जिन्ना की मौत के बाद उनके समता के वचनों को दफना दिया गया।
सातवें दशक में हिंदुओं की दुर्दशा का असली कारण बने जनरल जिया उल हक। उन्होंने नीतियों में बदलाव लाकर दो उपाय एक साथ किए, एक तरफ तो अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष के बहाने कट्टरपंथी मुसलमानों को संरक्षण देते हुए, उन्हें हिंदुओं के खिलाफ उकसाने का काम किया। वहीं, दूसरी तरफ उनके मताधिकार पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें अपने ही देश में दोयम दर्जे का लाचार नागरिक बना दिया गया। यहीं से कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को जबरन धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर करने का सिलसिला शुरु कर दिया। देखते-देखते एक सुनियोजित साजिश के तहत नादान व नाबालिग हिंदू लड़कियों का अपहरण और उनके बलात धर्म परिवर्तन की शुरुआत हुई, जिससे पाकिस्तान में बचे-खुचे हिंदू भी पलायन की प्रताड़ना के लिए विवश हो जाएं। बाद के दिनों में पाकिस्तानी मदरसों की पाठ्य पुस्तकों में हिंदुओं के खिलाफ नफरत की इबारत लिखे पाठ भी पढ़ाए जाने लगे। यह जानकारी पाकिस्तान के ही एक स्वयं सेवी संगठन ‘नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस' की अध्ययन-रिपोर्ट से सामने आई। अलगाव के इन नीतिगत फैसलों के कारण हालात इतने भयावह और दयनीय हो गए कि जो उदारवादी मुस्लिम हिंदुओं की तरफदारी करने को आगे आते थे, उन्हें भी कट्टरपंथी सबक सिखाने लग गए।
इन सब बद्तर हालातों के बावजूद पाकिस्तानी मीडिया का बहुमत हिंदुओं के उत्पीड़न की आवाज को बुलंद करने में लगा है। पाकिस्तान के मानवतावादी तथा संवेदनशील बुद्धिजीवियों का भी एक तबका हिंदुओं की प्रताड़ना से दुखी है। ये लोग शासन-प्रशासन के सामने हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए ज्ञापन भी शासन प्रशासन को दे रहे हैं। लेकिन कट्टपंथियों के दबाव के चलते पाकिस्ताने ने कानून और नैतिकता बौने साबित हो रहे है। नतीजतन न तो हिंदुओं पर जारी अत्याचारों पर अंकुश लग पाना संभव हो रहा है और न ही पलायन थम रहा है। दूसरी तरफ भारत भी वह उदारता दिखाने में अक्षम साबित हो रहा है, जो उसे अपने मूल सजातियों को दिखाने की जरुरत है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से पलायन कर आए हिंदुओं को सात साल रहने के बाद भारतीय नागरिक की कानूनी मान्यता देता है। उसे यह समय-अवधि घटाकर दो साल कर देनी चाहिए। हालांकि पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं की सुरक्षा की गारंटी वह भारत सरकार क्या लेगी, जो अपने ही देश के कश्मीर से बेदखल कर दिए गए पांच लाख हिंदुओं की नहीं ले पा रही है ? अपने ही देश के मूल निवासियों को अपने ही देश में शरणार्थी बना दिए जाने का दूसरा उदाहरण पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है ?
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प्रमोद भार्गव
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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