पूरन सरमा का व्‍यंग्‍य : कसक रह गई नेता बनने की !

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  मु झे आजादी से पहले का नेता तो बनना नहीं था, कसक थी तो आजादी के बाद वाले नेता बनने की, गांधीजी जैसा नेता बनने में त्‍याग और बलिदान की आ...

 

मुझे आजादी से पहले का नेता तो बनना नहीं था, कसक थी तो आजादी के बाद वाले नेता बनने की, गांधीजी जैसा नेता बनने में त्‍याग और बलिदान की आवश्‍यकता थी। फिर उनके जैसा बनना मेरे बूते के भी बाहर था। इसलिए नेता का नया रूप ही मुझे लुभा पाया था, इसमें ज्‍यादा मेहनत भी नहीं थी। सब कुछ दिखावे और ढ़ोंग से होना था, जनता की आंखों में धूल झोंकनी थी, जिसमें मैं पूरी तरह माहिर था। झूठे आश्‍वासन देने थे, लच्‍छेदार भाषा में भाषण देने थे और नहा-धोकर इत्र फुलेल कर कुर्ता-पाजामा में जनसेवक का झूठा रूप धारण करना था। इस दिशा में मैं थोड़ा बहुत सक्रिय भी हो गया था, लेकिन पिताजी आड़े आ गये, एक दिन कहने लगे-‘बरखुरदार, तुम्‍हारे लक्षण मुझे शुभ दिखाई नहीं दे रहे मैंने सुना है तुम नेता बनने की सोच रहे हो, वास्‍तविकता तो यह है बेटा नेतागिरी हमारे वश में नहीं है, इसमें जनसेवा करनी पड़ती है।'

मैं हंसकर बोला-‘आप खामखां घबरा रहे है। मैं जनसेवा में अपना समय जाया नहीं करूंगा। मैं इस नये जमाने का नेता बनना चाहता हूँ और इसके लिए मुझे आपका मोरल सपोर्ट चाहिए, विद इन नो टाइम मैंने इस घर की तकदीर नहीं बदल दी तो मेरा नाम बदल देना। आखिर आपका बेटा जो ठहरा।'

पिताजी ने अचरज से पूछा-‘मैं तुम्‍हारा आशय समझा नहीं बेटा, तुम कहना क्‍या चाहते हो ? मेरे आदर्श तो गांधी जी है वैसा जज्‍बा तेरे भीतर कुलबुला रहा हो तो मेरा ‘मोरल सपोर्ट' आज से ही समझना, बाकी तेरी योजनायें क्‍या हैं, मुझे विस्‍तार से समझा।'

मुझे पिताजी की बात पर फिर हंसी आ गई, मैं बोला-‘नहीं पिताजी आप मेरी बात समझ नहीं पा रहे हैं। देखिये अपने घर की हालत ठीक नहीं है, हम लोग गरीब हैं, घर की प्राथमिक आवश्‍यकतायें ही बड़ी कठिनाई से हम लोग जुटा पाते हैं। मैं इस नये जमाने का नेता बनना चाहता हूँ।'

पिताजी फिर असमंजस में पड़ गये और बोले-‘नये जमाने का नेता कैसा होता है बेटा? तुम कहीं जीवन मूल्‍यों से हटकर घोटालेबाज बनने की बात तो नहीं कह रहे हो ?'

मैं बोला-‘अब आपने ठीक जाना और सही रूप में मुझे पहचाना। बिना घोटाला किये आज के जमाने का नेता नहीं बना जा सकता। आप शायद नहीं जानते कि मैं मुफ्‍त का पैसा कमाने के लिए किस हद तक जाकर गिर सकता हूँ ?'

पिताजी का मूंह खुला का खुला रह गया। उन्‍हें मुझसे शायद ऐसी आशा नहीं थी मैं ही बोला-‘आप इससे तनिक भी मत घबराइये।

आजकल कुछ भी कर लो, कुछ भी नहीं होता। देख लेना मेरा बाल भी बांका नहीं होगा, आपका आशीर्वाद मेरे साथ रहा तो मैं आज के जमाने के नेताओं के रिकार्ड्‌स को तोड़ डालूंगा। मेरा मतलब जिस भी तरीके से माल आयेगा मैं हड़प जाऊंगा, बस पहले थोड़ा ढ़ोंग करके चुनाव जीतने भर की देर है। टिकिट के लिए तो कई पार्टियों के अॉफर आ रहे हैं। इतना अवसरवादी हूँ कि सारा मामला तोलकर तय कर लूंगा कि किस दल का उम्‍मीदवार बनना है, दल-बदलने में मेरे पेट का पानी भी नहीं हिलता है।'

पिताजी ने मुझे बीच में ही रोका और कहा-‘मैंने तुझे इन संस्‍कारों की शिक्षा तो नहीं दी थी तू यह क्‍या बोले जा रहा है। हालांकि तू मैट्रिक भी पास नहीं कर सका है, परन्‍तु मेरे संस्‍कारों की तो शर्म कर, मेरा नाम डुबोने पर क्‍यों तुला है। मुझे पता चल गया है कि तू क्‍या बनना चाहता है।'

‘लेकिन पिताजी आप समझते क्‍यों नहीं, मेरा नेता बनना अब बहुत जरूरी हो गया है। बिना नेता बने यह गरीबी नहीं मिटने वाली। सरकार ने खुद ने यह नारा दिया है कि ‘गरीबी हटाओ' और ‘पिछड़े को पहले' ये दोनों बातें हम पर पूरी तरह लागू हो रही हैं। अपनी गरीबी कैसे भी करके हमें मिटानी है। हम पिछड़े हुए हैं, इसलिए हमें ही पहल करके आगे आना है।' मैंने कहा तो पिताजी बोले-‘अपनी ही कहेगा या मेरी भी सुनेगा। मैं पूछता हूँ कि गांधी के इस देश में तू इस तरह जनसेवा करेगा। तुझे पता भी है, तेरे ऐसा करने से और कितने लोग गरीब हो जायेंगे, नहीं चाहिए मुझे हराम की कमाई। भगवान ने तुझे हट्‌टा-कट्‌टा शरीर दिया है। इससे मेहनत करके रोटी कमा और मेरे सिद्धान्‍तों की लाज रख। मुझे पता नहीं था तू इस हद तक बिगड़ जाने को तैयार बैठा है। मेहनत करते लाज आती है क्‍या तुझे ?'

मैं बोला-‘सवाल जहाँ तक मेहनत का है, उसे करने वाले भूखों मरते हैं तथा मक्‍कारी करने वाले माल मारते हैं। इसलिए इस समय सवाल केवल रोटी का नहीं है। सवाल है भौतिक सुख-सुविधाओं का, जो बिना घपला किये हासिल नहीं हो सकती, मेहनत से आपको क्‍या मिला? तार-तार जिंदगी और अभावों से भरा जीवन, मुझे याद नहीं हमने कभी ढ़ंग का खाया और पहना हो। इस जीवन शैली से मैं तंग आ गया हूँ। अब मुझे नये जमाने का नेता बन ही जाने दीजिये।'

पिताजी की आंखें गुस्‍से से लाल हो गई, तैश में बोले-‘खबरदार जो तू आगे बोला तो, तुझे हरामखोरी करने की सूझ रही है। कान खोलकर सुनले अगर तूने नेता बनने की भी सोची। पच्‍चीस वर्ष का जवान है। देश को तू यही देना चाहता है। अभावों का जीवन जीकर क्‍या मैं यहां तक नहीं आ गया।

रिश्‍वत कमीशन खाना चाहता है। उसूलों को तिलांजली देकर देश का नाम डुबो देना चाहता है। बनना है तो गांधी जी बनकर दिखा।'

मैं बोला-‘कमला करते हैं आप तो पिताजी, आजकल के जो नेता लूटपाट कर रहे हैं, क्‍या कानून या अन्‍य कोई उनका कुछ बिगाड़ सका है ? दोनों हाथों से लूट रहे हैं आज के नेता। बंगला, कोठी कार व नौकर-चाकर क्‍या नहीं है उनके पास ? आपने कभी उनको कोसा। आज जब मैं नेता बनने की कसक को पूरा करने आया तो आप आड़े आ गये। कोई चारा खा गया, कोई यूरिया और कोई दलाली। उनके मुख मण्‍डल चमक रहे हैं। वे देश की सत्‍ता पर काबिज हैं। यदि मैं भी कुछ इसी तरह का करना चाहता हूँ तो आप क्‍यों रोक रहे है ?'

पिताजी बोले-‘बहस मत कर। मैं ऐसे लोगों को नेता नहीं मानता, मेरे उसूल हैं, उनसे समझौता नहीं हो सकता, तू चाहें भूखों मर जाना लेकिन ऐसा नेता मत बनना। जनसेवा और राष्‍ट्रसेवा पहली आवश्‍यकता है नेतागिरी में, तूने अपना आदर्श गलत लोगों को बना लिया है। आजादी के पहले का इतिहास पढ़ और ढ़ाल अपने आपको उन महान्‌ नेताओं की तरह। मैं फिर कहता हूँ तूने फिर कभी ऐसी बातें की तो मैं यह घर छोड़कर कहीं चला जाऊंगा। मैं इतने गिरे हुए बेटे के पास नहीं रह सकता।'

‘यह तो कैसे हो सकता है, रहेंगे तो आप मेरे पास ही, चाहे मैं नये जमाने का नेता नहीं बनूं, ठीक है मैं अपने आदर्श बदलने को तैयार हूँ, लेकिन आप इस घर में ही रहिये।'

पिताजी की आंखों मे आंसू आ गये और उन्‍होंने मुझे अपने गले से लगा लिया। इस तरह कसक ही रह गई नेता बनने की

--

(पूरन सरमा)

124/61-62, अग्रवाल फार्म,

मानसरोवर, जयपुर-302 020,

(राजस्‍थान)

फोनः 9828024500

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. वर्तमान में सफल [बाहुबली]नेता बनने की आवश्यक योग्यताएँ हैं जिन में से कुछ का ज़िक्र आप ने कर ही दिया है.

    रोचक व्यंग्य.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: पूरन सरमा का व्‍यंग्‍य : कसक रह गई नेता बनने की !
पूरन सरमा का व्‍यंग्‍य : कसक रह गई नेता बनने की !
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