विनय भारत करूण दशा वह जा रही थी, शायद उसका इस संसार में कोई नहीं था। यह शून्य संसार उसके लिए अर्थहीन और अजनबी सा था तथा इस संसार के ...
विनय भारत
करूण दशा
वह जा रही थी, शायद उसका इस संसार में कोई नहीं था। यह शून्य संसार उसके लिए अर्थहीन और अजनबी सा था तथा इस संसार के लिए वह एक निरापद थी। फिर भी संघर्ष करते हुए ठेकेदार रामसिंह के यहाँ मजदूरी करती थी। सरला․․․ यही नाम था उसका, अपने नाम की तरह सुन्दरता व करूणा की प्रतिमूर्ति थी। सरला कम पढ़ी-लिखी थी, सरला का पति एक सड़क दुर्घटना में चल बसा था और वह भरी जवानी में दो बच्चों के साथ आधारहीन विधवा होकर रह गई थी। अपनी बदकिस्मती और गरीबी से जूझते हुए अपने दोनों बच्चों के लिए वह हाड़तोड मेहनत कर रही थी। सरला के बच्चों की उम्र लगभग तीन साल व सात साल थी और वे विधाता की गरीबी रेखा को जीवन्त करते थे।
अरे! कहाँ जा रही हो․․․․․․․ ठेकेदार का कड़क स्वर सुनकर सरला रूक गई।
वो․․․․․․ मैं, सरला आगे न बोल सकी, उसके आँसू उसकी विवशता को कह गये।
वो․․․․․ क्या काम नहीं करेगी, ठेकेदार ने चिल्लाते हुए कहा। मेरा बच्चा भूखा है सरला ने ड़रते हुए जबाव दिया।
तो हम क्या करें, हमने क्या धर्मशालाएं खोल रखी हैं? रामसिंह बीच में ही बोल पड़ा।
अरे! क्या हुआ रामसिंह? श्याम नारायण ने पूछा, जो शायद शोर सुनकर इधर ही आ गये थे।
कुछ․․․․ कुछ नहीं साहब, इन औरतों को काम करना नहीं होता और भीख मॉगने चली आती हैं। ठेकेदार श्यामनारायण को अचानक देखकर बोला।
क्या हुआ․․․․ तुम ही बताओ। श्याम नारायण ने सरला को देखकर पूछा।
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अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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जी․․․․․ साहब मेरे बच्चे भूखे हैं, कुछ समय की छुट्टी चाहिये थी․․․․ सरला सहमते हुए बोली।
तुम्हें कोई छुट्टी नहीं मिलेगी, ठेकेदार बीच में ही बोला।
बड़े साहब ने ठेकेदार को चुप रहने का इशारा किया।
तुम जा सकती हो, बडे साहब दया से बोले तो सरला ने राहत की सॉस ली।
श्यामनारायण उर्फ बडे साहब एक प्रतिष्ठित व ईमानदार इंसान थे, वे स्वयं गरीबी में पले थे। शायद इसीलिए दया, दान, धर्म में उनकी रूचि थी। वे समय-समय पर अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय देने निरीक्षण पर आया करते थे।
ठेकेदार प्रायः कड़क स्वभाव वाले होते हैं, लोगों पर झल्लाना, गाली देना, शोषण करना इनकी आदत होती है। शायद रामसिंह भी ऐसे गुणों की खान था और बड़े साहब के सामने हुए अपमान को देखकर उसे सरला पर गुस्सा आ रहा था।
(2)
दोपहर की चिलचिलाती धूप में सरला और मजदूर औरतें मजदूरी लेने के लिए ठेकेदार के यहाँ पहुंची।
लाईन से आओ लाईन से․․․․․ एकसाथ आकर मत मरो, रामसिंह का कड़क स्वर गूंजा तो सभी मजदूर लाईन लगाने लगे।
काम तो पचास रूपये का किया था․․․․․ सरला ने सहमते हुए कहा।
तो․․․ रामसिंह उसे क्रोध से घूरने लगा।
वो इसमें पॉच रूपये कम हैं, सरला कॉपते हुए बोली।
तू आज छुट्टी पर थी, पूरे एक घण्टे के लिए․․․․․ रामसिंह ने कड़कते हुए कहा।
सरला- पर वो तो बड़े साहब से पूछकर ․․․․․․․․
रामसिंह- अरे, तो क्या मुझसे पूछकर गई थी, काम तो करती नहीं, पूरी मजदूरी चाहिये, जितनी होती है दे चुका हूं। इस बारे में बड़े साहब से कुछ कहा तो काम से हाथ धोना पड़ेगा।
सरला जानती थी अब बात बनने वाली नहीं है। वह लाचार सी घर चली गई। सरला का घर, घर न होकर एक झोंपड़ा था जिसमें सरला और दो बच्चे रहते थे। मॉ को देखकर दोनो बच्चे मॉ के पास आ गये। रात हो चली थी, दोनों बच्चों को भोजन खिलाकर सरला ने उन्हें सुलाया और वह भी सो गई।
(3)
अरे! बाहर निकल, महाजन की कठोर आवाज से सरला की नींद खुल गई। देखा तो सुबह हो चुकी थी और महाजन बाहर खड़ा था।
अरे! मेरा पैसा नहीं दिया, अब ये झोंपड़ा खाली कर दे, अपना ठिकाना कहीं और देख ले। महाजन चिल्लाता हुआ बोला। सरला ने पति के दाह संस्कार और मृत्युभोज के लिए पंडित जानकीनाथ के कहने पर इस महाजन से जमीन को गिरवी रख कर्ज लिया था जिसे लेने आज महाजन आया था।
सरला- लेकिन मैं․․․․․ तो पहले ही रूपया दे चुकी हूं।
अरे! वह तो मूल था, ब्याज तो मूल से दुगुना है, वह भी दे, महाजन चिल्लाया, लेकिन तुमने तो हिसाब पूरा कर लिया था। सरला ने फिर से हिम्मत कर कहा,
महाजन- अरे! तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं। कसम मेरे ईमान की, एक तो तुम जैसों की मदद करो और बाद में तेवर सहो। तू आज ही यह घर खाली कर, महाजन ने कठोरता से कहा।
महाजन एक दिन की मोहलत देकर चला गया था। लेकिन सरला के मन पर पहाड़ टूट चुका था। शायद दुर्भाग्य ने अभी उसका पीछा नहीं छोड़ा था।
(4)
सुबह उठकर सरला मजदूरी पर पहुंची। उसे वहीं पता चला कि उसे काम पर से हटा दिया गया है। ठेकेदार से लाखों मिन्नतें करने के बाद वह लाचार हो घर चली आई।
क्या हुआ सरला․․․․․․ पड़ोस की श्यामा बुआ ने पूछा, आज इतनी जल्दी कैसे आ गई। बुआ की आवाज सुनकर सरला की आँखों से आँसू छलक उठे और उसने बुआ के आँचल में रोते-रोते सारी व्यथा व्यक्त कर दी।
श्यामा बुआ एक दुखियारी वृद्धा थी, जिसे उसके बेटे किसी मेले में बोझ समझकर छोड़ गये थे। वह दर-दर की ठोकरें खाने लगी, उसी समय उन्हें एक सज्जन व्यक्ति सूरज ने अपने घर में जगह दी। तब से सूरज ही वृद्धा का खर्चा उठा रहा है और बुआ भी सूरज को अपना पुत्र मानने लगी है। सूरज एक 32 वर्षीय युवक है। वह किसी स्कूल में अध्यापक है। सूरज के पिता ने दहेज न लाने के कारण उसकी पत्नि पर अत्याचार किये। इसलिए उसकी पत्नि ने आत्महत्या कर ली थी। इस हादसे के कुछ माह बाद सूरज के माता-पिता भी एक दुर्घटना में चल बसे। परिवार के वियोग से सूरज टूट गया था और आत्महत्या करने चल पड़ा था। उसी समय श्यामा बुआ ने उसे रोका और समझाया। सूरज को श्यामा बुआ के आने से अपनी मॉ की कमी पूरी होती दिखाई दी। सरला जब शांत हुई तो अपने घर आ गई।
यह मकान खाली कर․․․․․ कठोर स्वर सुनकर सरला बाहर आ गई।
कुछ और समय दे दो सेठ जी। सरला ने गिडगिडाते हुए कहा।
नहीं तुम्हें पहले भी समय दिया था, अब और नहीं․․․․․․ कठोर स्वर में महाजन ने कहा।
सरला - लेकिन हम कहाँ जायेंगे, हमारा कोई भी नहीं है।
चाहो तो मरो या जियो, मुझे पता नहीं। कठोरता से बोलकर महाजन चला गया। सरला रोती बिलखती रही।
(5)
चिलचिलाती कड़क धूप में सरला चलती जा रही थी। महाजन के कर्ज ने उसका मकान भी छीन लिया था। सरला को मकान खोने से ज्यादा बच्चों का ड़र है।
मैं नहीं चल सकता, बच्चे ने कहा․․․․․
उस अबोध बालक के पैर छिल चुके थे। सरला ने उसे गोद में लिया और फिर से चलने लगी।
अरे! ․․․․ सरला कहाँ जा रही हो, आवाज की दिशा में सरला ने देखा तो उसकी बचपन की सहेली गंगा दिखाई दी।
हम कितने वर्षों बाद मिले हैं, और ये क्या, तुम दोनों बच्चों को लेकर कहाँ जा रही हो? गंगा आश्चर्य से बोली।
वो․․․․․ सरला की आँखों में आँसू आ गये और वह सब बात बताती चली गई।
पहले मेरे घर चलो, बाद में कुछ कहना। गंगा ने सरला की बात काटकर कहा, और दोनों घर चली गई।
आज से तुम यहीं रहोगी, गंगा सरला की ओर देखते हुए बोली।
लेकिन मैं․․․․․ कहते-कहते सरला रूक गई।
तुम आज से यहीं रहोगी, बस! यह कहकर गंगा ने बातों पर पूर्ण विराम लगा दिया।
मैं तो नौकरी भी नहीं कर सकती और ना ही मेरे पास किराया है․․․․․ सरला ने सहमते हुए कहा।
कैसी बात करती हो, तुम्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं, घर के काम कर लिया करो, मेरी मदद हो जायेगी। गंगा ने सरला को समझाया तो सरला मान गई।
(6)
शाम को गंगा का पति शराब पीकर आया और गंगा से गाली देकर झगड़ने लगा। गंगा का पति मंगल का व्यवहार अच्छा है लेकिन गलत संगत के कारण वह शराब पीकर झगड़ा करता है। सरला उस रात सबकुछ समझ चुकी थी।
सुबह सरला मंगल के कमरे में पहुंची।
सुनिये भाई साहब, आप पीकर क्यों आते हैं? इस प्रकार से शायद ही मंगल से किसी ने बात की, इतने स्नेही शब्द उसने पहली बार सुने थे।
वो․․․․․․ दोस्तों ने पिला दी थी। मंगल ने शर्मिन्दा होते हुए कहा।
सरला - नहीं भैया, आप अब कभी नहीं पियोगे।
तुम मेरी बहिन हो, आज तक मेरी कोई बहिन नहीं थी, मैं तुमसे वादा करता हूं कि अब शराब कभी नहीं पीऊंगा। मंगल इतना कहकर आँफिस चला गया।
(7)
अब सरला और मंगल देर तक बातें करने लगे हैं। मंगल अपनी बहिन को कोई दुःख नहीं देना चाहता। सरला को भी बड़े भाई का स्नेह मिल रहा है।
सरला․․․․․ सरला․․․․․ गंगा ने चिल्लाते हुए सरला को आवाज दी।
क्या हुआ? सरला गंगा की आवाज सुनकर आयी।
अब तुम अपना ठिकाना कहीं और देख लो, गंगा ने सरला से कहा।
लेकिन क्या हुआ, सरला ने पूछा।
क्या हुआ, अरे तुम्हारा पति चल बसा तो अब मेरे पति के साथ चक्कर चलाने लगी, गंगा ने चिल्लाते हुए कहा।
लेकिन यह गलत है․․․․․․ सरला ने उत्तर दिया।
तुम झूठ बोलती हो, तुम नीची जात की हो, जानकर भी मैंने तुम्हें अपने घर में रखा और तुमने मुझे ये अहसान जताया․․․․․ गंगा ने चिल्लाते हुए कहा।
लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, कहते-कहते सरला की आँखों में आँसू आ गये।
देर तक गिड़गिड़ाने के बाद भी गंगा नहीं मानी। सरला समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता। वह दोनों बच्चों को लेकर वहाँ से चली गई। बच्चे भूख से रो रहे थे तो सरला मदद मांगने पंडित जानकीनाथ के यहां पहुंची।
भागो यहा से कहाँ से आ गये अछूत। पंडित जानकीनाथ ने उन्हें देखकर दरवाजा बन्द किया, तो सरला की आँखों में आँसू आ गये, लेकिन बच्चों के लिए वह भीख मांगती रही।
अछूत होने के कारण सरला को भीख भी नहीं मिली।
हे भगवान, अब क्या करूं, क्या हम अछूतों को आपने नहीं बनाया है? हे प्रभु! क्या हमें जीने का हक नहीं? पहले मेरे पति को मुझसे छीन लिया और उसके बाद घर भी नहीं रहा, अब कोई भीख भी नहीं देता, सरला ने सिसकते हुए आसमान को देखा।
मुझे क्षमा करना मेरे देव, मुझे क्षमा करना, अब मेरे पास आत्महत्या के सिवाय दूसरा रास्ता नहीं है․․․․․ सरला रोती हुई आत्महत्या करने का प्रयास करती है, अचानक सूरज आकर सरला को रोक देता है।
सूरज - नहीं सरला, आत्महत्या करना गलत है।
सरला - लेकिन मैं अब क्या करूं, मेरे पास कोई रास्ता नहीं। सूरज - तुम्हें क्या तुम्हारे बच्चों की चिन्ता नहीं, इन अबोधों का इस दुनिया में कौन है?
लेकिन मैं क्या करूं, रोती हुई सरला गिर जाती है, सूरज उसे उठाता है।
पहले आओ घर चलें, सूरज बच्चों को लेकर चलता है।
सूरज - पहले मैंने भी आत्महत्या का प्रयास किया था, लेकिन बुआ ने बचा लिया।
सरला - जानती हूं बुआ बता रही थी, सरला ने उत्तर दिया। सूरज और सरला घर आ जाते हैं।
(8)
सरला सूरज के घर रह रही थी।
सरला ओ सरला․․․․․․ बुआ ने आवाज दी। रसोई का काम छोड़कर सरला बाहर आई।
बुआ - मुझे कुछ जरूरी बात करनी है। सरला - जी, कहिये बुआ।
बुआ - देखो बेटी, घर ऐसे नहीं चलता है, तुम्हारा पति चल बसा अभी तुम्हारे सामने पूरी जिन्दगी बाकी है।
सरला - तो आप क्या चाहती हो।
बुआ - बेटी सूरज एक अच्छा लड़का है। तेरा जीवन भी संवर जायेगा।
सरला - लेकिन समाज क्या कहेगा।
बुआ - समाज तो पहले भी था, समाज ने तुझे क्या दिया? समाज किसी का सगा नहीं है। समाज केवल पैसों का है। दोनों बच्चों का भविष्य संवर जायेगा।
सरला - जैसी आपकी इच्छा बुआ।
सरला और सूरज की शादी की तैयारियां चल रही हैं। सरला फिर से दुल्हन बनी है। सूरज भी इस फैसले से सहमत है। इतने दुःखों के बाद सरला के जीवन में फिर से खुशियॉ आई हैं। समाज के लोग भी इस शादी की चर्चा कर रहे हैं।
सरला․․․․․․ सरला ․․․․․․ गंगा दौड़ती हुई सरला के पास आईर्।
गंगा - मुझे माफ कर दो बहिन, गंगा हाथ जोड़कर बोली।
हाँ बहिन इसे माफ कर दो। मंगल ने सरला को देखकर कहा।
गंगा - मैं गलतफहमी में थी, मंगल मुझे सब बता चुके हैं।
सरला - कोई बात नहीं बहिन। सरला गंगा को गले लगाती है।
मंगल - आओ गंगा चलें, कन्यादान भी तो करना है। हंसते हुए सभी सरला के साथ चले जाते हैं।
(9)
सरला आज बहुत खुश है। उसे आज नई जिन्दगी मिली है। इतनी खुशी एकसाथ देखकर सरला दौड़कर मंदिर की ओर जाती है, सरला की आँखों में आँसू आ जाते है।
सरला - हे प्रभु! इतनी खुशी एकसाथ कभी परिवार भी नहीं था, आज तुमने मेरा जीवन पूर्ण कर दिया, तुझे कैसे धन्यवाद दूं। अचानक बोलते-बोलते सरला गिर पड़ती है, सांस उखड़ने लगती है, मन्दिर से डायरी उठाती है, अत्यधिक खुशी से हृद्यगति रूक जाती है। सरला डायरी में कुछ लिखती है और इसी के साथ शरीर छोड़ देती है।
(10)
दोनों बच्चे मां को न देखकर रो रहे हैं। मंगल और सूरज भी दुःखी है। बुआ बच्चों को शांत करती हुई रो रही है। मंगल को सरला का लिखा हुआ कागज मिलता है, जिसमें लिखा है ‘‘भैया मेरे बच्चों का ख्याल रखना'' पत्र देखकर मंगल रो देता है।
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लेखक
पूरा नाम :- विनय कुमार शर्मा
उपनाम :- विनय भारत
जन्मतिथि :- 11 मार्च 1992
पिता :- श्री राजेन्द्र कुमार शर्मा
पता :- दशहरा मैदान, स्टेज के पीछे, गंगापुर सिटी
जिला-सवाई माधोपुर, राजस्थान 322201
Facebook address – search vinay bharat Sharma
प्रमुख रचनाएं :- प्रमुख नाटक - सीधे यमलोक से, मनमोहिनी राजनीति
प्रमुख लघुकथा - कैसा वृक्षारोपण, नेताजी की मिड-डे-मील
प्रमुख हास्य व्यंग्य - मातादीन की दक्षिणा, ओबामा जी की गंगापुर यात्रा,
हे प्रदूषण देवता आदि।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे-बढ़ती कलम, बजरिया की भोर, राजस्थान ड़ायरी, कल्पतरू एक्सप्रेस, ब्रह्मजन, चमकती आँखें, राष्ट्रदूत आदि में समय-समय पर लेख प्रकाशित।
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