कहानी लेखन पुरस्कार प्रविष्टि क्र. 46 - अनुलता राज नायर की कहानी : केतकी

SHARE:

केतकी अनुलता राज नायर उ से ठहराव पसंद नहीं था, ज़रा भी नहीं! गज़ब की चंचलता थी उसके मन में, उसके मस्तिष्क में,तन में,पूरे व्यक्तित्व में ही...

केतकी

image

अनुलता राज नायर

से ठहराव पसंद नहीं था, ज़रा भी नहीं! गज़ब की चंचलता थी उसके मन में, उसके मस्तिष्क में,तन में,पूरे व्यक्तित्व में ही...ठहरना उसकी फितरत में न था.अपार ऊर्जा से भरी थी वो, इतनी ऊर्जा कि किसी इंसान के जिस्म से सम्हाली न जाए. वो अतिरिक्त ऊर्जा, वो तेज उसके चारों और संचारित होता रहता जैसे चाँद के आस-पास का सा वलय उसके चारों और भी हो. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी केतकी. जो देखता,सिर्फ देखता ही नहीं रह जाता बल्कि उसका ही हो जाता,खिंचा चला आता उसकी ओर. उसके प्रति ये एकतरफा आकर्षण सिर्फ पुरुषों में ही नहीं था बल्कि लड़कियाँ, औरतें, बच्चे बूढ़े, कोई ऐसा न था जो उसके प्रति खिंचाव महसूस न करता. मानों एक चुम्बकीय शक्ति हो उसके भीतर.

केतकी गेहुएं रंग की सुगढ़ कद काठी वाली लड़की थी. नैन नक्श एकदम तीखे, तराशे हुए. चेहरा नापा तुला.आँखें बेहद आकर्षक और चंचल, ढेरों सवाल लिए हुए.सवाल तो सदा उसके होंठों पर भी रहते थे. जिसके साथ रहती उसी के आगे सवालों के ढेर लगा देती. उसका ज्ञान भी असीमित था इसलिए उसके सवाल बहुत बौद्धिक और रोचक होते. वैसे बेवकूफी भरे सवालों की भी कमी न थी उसके पास, मसलन वो अकसर अपने पुरुष साथियों से पूछ बैठती, कि जब वे जानते हैं कि केतकी उनकी हो नहीं सकती तो वो क्यूँ उस पर अपना वक्त और पैसा बर्बाद करते हैं? अब ऐसे सवाल के बाद किसी काफी शॉप में बैठा वो आशिक न जाने कैसे बिल अदा कर पाता होगा उसकी काफी का और हां साथ में चोकलेट आइसक्रीम का भी तो.मनमौजी सी लड़की थी वो.

मैं केतकी को स्कूल के समय से जानता था.वो स्कूल में भी सबकी “हीरो” थी,और मेरे बहुत करीब...वैसे सहपाठी से लेकर टीचर्स, लैब असिस्टेंट, बस ड्राईवर, चौकीदार सभी उसका नाम जपते. वो भी कभी बस ड्राईवर के साथ ड्राइविंग के गुर सीखती कभी लेब में दो केमिकल मिला कर धमाका करती और लेब असिस्टेंट के साथ मिलकर खूब हँसती. एक बार मैंने देखा उसने एक बैग भर अपने नए पुराने कपडे उस लैब असिस्टेंट को दे डाले,उसकी बहन के लिए..मेरे पूछने पर बोली अरे सब पुराने फैशन के थे. साथ ही बडबडाती भी जाती थी-करमजला रोतली सूरत बनाये फिरता है,नफरत है मुझे उससे..मैं हैरान सा उसको ताकता रह जाता. उसका मन पढ़ना असंभव था. कुछ टिकता ही नहीं था बीस सेकेण्ड से ज्यादा ,तो कोई कैसे पढ़े??

केतकी का जीवन एक खुली किताब था.बिन माँ बाप की लड़की थी. मौसा मौसी ने पाला था.संपन्न परिवार से थी. उसके बारे में सबको सब कुछ पता होता था,बोलती इतना जो थी. मगर मुझे वो सदा रहस्यमयी सी लगती थी. ऐसा लगता मानो उसकी इस खुली किताब के पन्नों पर कुछ लिखा हुआ है एक अदृश्य स्याही से, जो कोई देख नहीं सकता...

मैं कहता भी उससे कि तुम्हारी तलछटी में जाकर फिर और गहरा खोद कर देखना है मुझे,वो मुस्कुरा कर कहती-मैं नदी हूँ अंश, सिवा पानी के कुछ नहीं...बहता पानी...साफ़ और पारदर्शी...जो चाहे देख लो...अपना अक्स भी...जितना गहरा खोदोगे उतना ज्यादा पानी पाओगे. और मत भूलना कि मोती सागर में मिलते हैं, नदियों में नहीं....वो बोलती चली जाती...बिना रुके...मैं सुनता रहता बिना कुछ समझे...... देखना एक दिन मैं भी सागर में मिल जाउंगी और पा जाउंगी एक मोती...जड़ लूंगी उसको अपनी अंगूठी में....

कितना शौक था उसे अंगूठियों का..हर उँगली में एक अंगूठी....पतली,मोटी,असली,नकली. चाहे जैसी.....अंगूठा तक खाली नहीं था उसका.....सचमुच नदी थी वो...पागल नदी.

एक रोज वो बड़ी सी एक सिन्दूरी बिंदी लगा कर आई.......उसके मासूम से चेहरे के हिसाब से बहुत बड़ी.....फिर खुद ही हँस के बोली,ओल्ड फैशन लगती है न??? मैंने सोचा क्षितिज से उगता सूरज कभी ओल्ड फैशन हो सकता है भला.....मुस्कुरा दिया मैं.

उस दिन मेरे हाथ की रेखाएं देखने लगी......कहती है उसको सब आता है...उसके हिसाब से मेरा प्यार कोई और होगा और ब्याह मैं किसी और से करूँगा.....वाकई उसको सब पता है.....मैंने कहा लाओ तुम्हारा हाथ देखूं.....तो उसने मुट्ठी कस ली....नहीं अंश,मेरे हाथ में कोई लकीर नहीं....सब बह गयी पानी में.

कभी कभी मुझे लगता केतकी एक माया मृग सी है.....जिसको देखो उसका दीवाना हुआ जाता है...भटकता है उसको पाने को...जबकि वास्तव में वो है ही नहीं....वो सिर्फ एक भ्रम है.....तभी उसकी हँसी मुझे ख्यालों से वापस ले आती......और मैं देखता उसको अपने एकदम करीब.

उसको जब कॉलेज में दाखिला लेना था तब मेरे पीछे चक्कर काटती फिरी कि अंश हम और तुम एक ही साथ पढेंगे. मैं भी छेड़ता उसको-क्यों भाई,क्या सारी उम्र मेरे पीछे लगी रहोगी, तुम साथ रहती हो तो कोई लड़की मेरे पास नहीं आती कि तुम हो मेरी और तुम मेरी होती नहीं....

उस रोज उसने बड़ी संजीदगी से कहा था-अंश मैं तुम्हारी ही हूँ,बस खुद को समझ सकूँ तुम्हारे काबिल, तो तुम्हें सुपुर्द कर दूँ स्वयं को. उसकी अटपटी बातें मुझे समझ नहीं आतीं मगर वक्त के साथ इतना ज़रूर समझ गया था कि उसके साथ मेरा लगाव मुझे तकलीफ ज़रूर देगा मगर मुझे मंज़ूर था.

हम कॉलेज साथ जाते,वहाँ ढेरों लड़के उसके आगे पीछे मंडराते और वो किसी से नोट्स बनवाती किसी को बाइक में पेट्रोल भरवाने भेजती...और सबसे कहती तुम्हारी नेकी मुझ पर उधार.....जाने कितने इसी उधारी के पटने के इंतज़ार में फिर रहे थे. मैं उसको समझाता भी कि ये क्या तरीका है, क्यूँ खिलवाड़ करती है सबके दिल के साथ और शायद अपने भी दिल के साथ? वो मेरा हाथ अपने सीने पर रख कर कहती देख,कहीं धडकन है क्या??पागल मेरे सीने में दिल ही नहीं है....फिर क्या है??कभी मैं भी बिफर जाता......वो बड़ी मासूमियत से कहती किडनी है- एक एक्स्ट्रा.....भगवान न करे कभी तुम्हें ज़रूरत पड़े तो दे दूँगी...एकदम मुफ्त....तुमने जो मुझे कल बर्गर खिलाया था न, वो चुकता समझ लेना....मैं सर पीट कर रह जाता.

कभी मुझे लगता केतकी मानसिक रूप से कुछ बीमार है. वो नोर्मल तो नहीं थी.हालांकि पढ़ने में वो बहुत अच्छी थी और बेहतरीन कलाकार भी थी. पेंटिंग में उसको महारत हासिल थी और गाती भी बड़ा सुराला थी. उसके कमरे में हमेशा संगीत बजता रहता...सारा दिन और सारी रात भी. मुझे उसकी पसंद कभी समझ नहीं आई. कभी वो गज़ल सुनती और कहती मैं गुलाम अली साहब पर मर मिटी हूँ अंश, सच्ची!!! कभी जिमी हेंड्रिक्स या जिम मोरिसन को सुन कर कहती,यार क्या नशा है इनमें, कभी कोई नशा करके मैं भी देखूँगी. मैं डर जाता उसकी बातें सुन कर. कभी वो सूफी संगीत पर झूमती कभी पंडित रविशंकर को सुनते हुए पेंट करती....अनबुझ पहेली थी केतकी....

हां उसकी पेंटिंग्स हमेशा एक सी होतीं, वो सिर्फ नदियाँ पेंट करती थी. अलग अलग किस्म की नदियाँ...अलग अलग वक्त के दृश्य. कहती ये सब मेरे सेल्फ़ पोट्रेट हैं अंश! मैं खुद इतनी सुन्दर हूँ तो कुछ और क्यूँ बनाऊं भला. ठीक है न??? मैं मुँह ताकता रह जाता उसका...वो उकसाती मुझे...कहो न...कुछ तो कहो...मैंने कह दिया- “नार्सिस्ट कहीं की”.... ठठा कर हँस पडी वो ....मुझे लगा सचमुच वो बहुत सुन्दर है ,बहुत सुन्दर नदी. निर्मल, शीतल सी....एक बहुत गहरी और शांत नदी.

एक रोज हम शहर के बाहर दूर एक मंदिर गए,उसे भगवान पर कोई विशेष आस्था नहीं थी,बस मंदिर एक नदी के किनारे था सो उसने प्लान बना डाला. वहाँ सीढ़ियों पर बैठे हम सूर्यास्त देखते रहे. नदी में उसका अक्स बड़ा प्यारा लग रहा था. वो अचानक बोली,अंश तुम अगर सूरज होते तो देखो हर शाम मुझ में ढल जाते...समां जाते मुझ में, है न?? कहो न???

उसके इस तरह के आकस्मात सवालों की मुझे आदत थी मगर फिर भी मैं विचलित हो जाता. उस रोज सोचने लगा था कि कहीं इसे भी तो मोहब्बत नहीं हो गयी मुझसे !!! तभी वो बोली कि मुझे लगता है मुझे किसी सागर नाम के लड़के से इश्क होगा,क्योंकि नदी सागर में ही तो जा मिलती है न ! वहीँ तो उसे पनाह मिलती है,मुक्ति मिलती है. मैं बोल पड़ा ,तुझे कभी इश्क नहीं हो सकता केतकी, किसी से भी नहीं...जब मुझसे नहीं हुआ तो किसी और से क्या होगा? अच्छा !! वो पास खिसक कर बोली...ऐसा क्या खास है तुममें??? मैं भी उसके पास खिसका और कहा –क्यूँ लंबा-चौड़ा हूँ,गोरा रंग है, आँखें नीली नहीं तो पनीली तो हैं,बाल घने, बिखरे ,मुस्कराहट के साथ तेरे पसंदीदा डिम्पल...और क्या चाहिए??? वो मुस्कुराई और बोली- “नार्सिस्ट कहीं के”- और हम दोनों हँसते रहे देर तक......

जब वो इस तरह हँसती तो मुझे उसकी आँखों में अपने लिए कुछ प्यार सा दिखता....मुझे लगता भी कि उसे प्रेम है मुझसे, थोड़ा नहीं बल्कि बेइंतहा.....जितना कि कोई बिंदास नदी कर सकती है समंदर से......नदी जो बावली होकर बहती है उस समंदर की ओर....उसमें समां जाने को....उसमें समां कर अस्तित्वविहीन हो जाने को.....अपनी मिठास खो कर स्वेच्छा से खारी हो जाने को...अपनी स्वतंत्रता भूल कर ठहर जाने को.....

ऐसे ही ख्यालों ने मुझे उस दिन हिम्मत दी,जब हम फिल्म देख कर लौट रहे थे. उसने बाइक में मुझे कस कर पकड़ रखा था, उसका स्पर्श मुझे विचलित कर रहा था. ऐसा नहीं कि उसने कभी छुआ न हो मुझे...हम सालों से साथ थे और बहुत करीब भी, सो जाने अनजाने सहज भाव से किया स्पर्श कोई नयी बात न थी. मगर आज शायद मेरा मन ही मेरे वश में न था....मैंने बाइक उसके घर के सामने रोकी, उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली अंश शुक्रिया, मेरा दिन खूबसूरत गुज़रा तुम्हारी वजह से.वो जाने को मुडी तो मैंने उसकी ठंडी उंगलियां अपनी उँगलियों के बीच कस लीं. अरे अब क्या??? जाओ रात हो गयी है सब फ़िक्र करते होंगे घर में. मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बिना सोचे कह गया- तुम्हारे दिन, तुम्हारी रातें, तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी मैं खूबसूरत बना देना चाहता हूँ ,जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ...तुम्हारा होकर...केतकी, मैं प्यार करता हूँ तुमसे बेइन्तहा!!!

अब बारी केतकी की थी. उसने दो पल मेरी आँखों में देखा,वही जाने पहचाने अटपटे भाव, जिन्हें मैं कभी न पढ़ सका था......फिर उसने दूसरे हाथ से अपनी उंगलियाँ छुडाईं और बोली- एक दिन खूबसूरत गुजरा है जनाब, ये खूबसूरती और ताजगी सदा रहने वाली नहीं. चलो जाओ अब, आहिस्ता चलाना बाइक और घर पहुँच कर मैसेज कर देना. उसने पलट कर भी नहीं देखा और चली गयी. मैंने बदहवास सी बाइक दौड़ा दी.....वो रात शायद कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी,या मेरी आँखें ओस से धुंधला गयीं थी.....जाने कैसे मेरी बाइक फुटपाथ पर चढ़ गयी.होश आया तो अस्पताल में था. सर पर ७ टाँके थे. बस कोई अंदरूनी चोट नहीं थी सो अगली सुबह घर भी आ गया.

दो रोज हुए केतकी का कोई पता नहीं था. न मिलने आई न कोई खबर ली. फोन भी बंद था उसका. तीसरे दिन आई तो मैंने सहज शिकायती लहजे में कहा कि बड़ी जल्दी फुर्सत मिली??? उसने अपनी जानी पहचानी अदा से जवाब दिया अरे तुम्हारा सर जिस फुटपाथ पर टकराया था उसकी मरम्मत में ज़रा व्यस्त हो गयी थी. मैं उसका चेहरा और लाल सूजी हुई आँखें देखता रहा, सोचता रहा और उसे समझने की नाकाम कोशिशें करता रहा....

जब तक मेरे टाँके नहीं खुले वो रोज मिलने आती रही. खूब बोलती, बतियाती. उस रात का ज़िक्र हमने फिर कभी न किया मगर मुझे कुछ दरका सा महसूस होता रहा हमारे बीच. शायद मैंने अपने प्यार का इज़हार करके गलती कर दी थी.

खैर वक्त के साथ सब सामान्य हो जाएगा इस उम्मीद के साथ हम दिन काटने लगे. नौकरी मिलने के साथ ही घर में सभी और केतकी भी मेरी शादी के लिए जोर देने लगे. परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए मैं भी आखिरकार इस रस्म अदायगी के लिए तैयार हो गया....मुझे लगा केतकी का भ्रम अब तोडना ही होगा............उसके मायाजाल से बाहर आना ही होगा.

उस रात अचानक फोन की घंटी बजी और उधर से केतकी का स्वर सुनाई पड़ा.....सुनो आखिरकार मुझे इश्क हो ही गया सागर से...तुम सुन रहे हो न???
हां,सुन रहा हूँ और जानता हूँ..गोवा के समुद्रतट है ही सुन्दर. किसे इश्क न होगा !

धत् तेरे की !!! तुम मुझे ज्यादा ही समझने लगे हो अंश, और मुझे ये बात ज़रा पसंद नहीं...अच्छा किया तुमने शादी कर ली,मेरा पीछा छोड़ दिया...अब उसको समझो और जानो जो पल्ले बंधी है तुम्हारे...और फोन रख दिया उसने.

मेरी शादी के बाद ये पहली रात थी और मैं उस पागल केतकी से बात कर रहा था...मगर शायद आखरी बार. मैंने तय कर लिया था कि अब कभी उससे कोई संवाद न रखूंगा....कभी नहीं.

मगर हर बार की तरह ये फैसला भी उसने ही लिया था.

अगले दिन तड़के गोवा के होटल से फोन आया कि केतकी अपने कमरे में एक नोट छोड़ गयी है कि- जा रही हूँ ...मुझे खोजना मत.....किसी मछुआरे को या गोताखोर को तंग न करना....मुझे पूरी तरह डूब जाने दो सागर के प्रेम में....उसकी तलछटी छूने निकली हूँ मैं.

और एक चिट्ठी मेरे नाम भी थी-

अंश तुम्हारा नाम सागर होता या सूरज...मैं कभी तुमसे प्यार न करती. जानते हो जिस रोज मैं पैदा हुई उसी रोज मेरे माँ बाप दोनों की मौत हुई. माँ डिलिवरी टेबल पर और पापा रोड एक्सीडेंट में. मौसी मौसा ने आसरा दिया तो बेचारे बेऔलाद रह गए. ये संयोग नहीं है अंश...ये इशारा था भगवान का. मैं बहुत अभागी हूँ अंश,हम अगर एक हुए होते तो तुम कभी खुश न होते....याद है तुम्हारे एक्सीडेंट वाली रात.....तुमने सिर्फ अपने प्यार का इज़हार किया था...और देखा था नतीजा ??

अंश मैं “केतकी” हूँ......मैं शापित हूँ शिवजी के द्वारा. जानते हो, केतकी के फूलों को पूजा में चढाना वर्जित है....

सुनो, तुम अगले जन्म में भी अंश ही बनना......और मैं बनूंगी तुम्हारी, सिर्फ तुम्हारी....झरूंगी तुम पर हरसिंगार बन कर...

हर जन्म में केतकी बनूँ , इतनी भी अभागी नहीं हूँ !!!

--.

अनुलता राज नायर

http://allexpression.blogspot.in/

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार प्रविष्टि क्र. 46 - अनुलता राज नायर की कहानी : केतकी
कहानी लेखन पुरस्कार प्रविष्टि क्र. 46 - अनुलता राज नायर की कहानी : केतकी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5-YHR29CussHPoVHmBXPhT7Kpodq4xsg0YIMrdqTAeCOF5kFqo8iKiektaJsVjPNCfWxHZzfoyTXcJqJuspJIruMKa6KvaSPYnA5z48GnsXb-f102B_XPNwXr9E0iiYybmu3p/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5-YHR29CussHPoVHmBXPhT7Kpodq4xsg0YIMrdqTAeCOF5kFqo8iKiektaJsVjPNCfWxHZzfoyTXcJqJuspJIruMKa6KvaSPYnA5z48GnsXb-f102B_XPNwXr9E0iiYybmu3p/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/46.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/46.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content