कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -41- छत्र पाल की कहानी : खाओ मेरे सिर की कसम

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खाओ मेरे सिर की कसम छत्र पाल -- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रा...

खाओ मेरे सिर की कसम

छत्र पाल

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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

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रे शिखा तुम यहाँ! मेंटल अस्पताल में! सब खैरि़यत तो है? अजय ने अपनी बालशखा को यकायक देख कर आश्चर्य प्रकट किया।

हाँ अजय मैं, पति के साथ आई हूँ।

क्यों क्या हुआ उन्हें?

पता नहीं। चलो उधर छाया में बैठ कर बात करते हैं, जब तक वे चेकअप में हैं।

हाँ अब बताओ शिखा क्या हुआ है सुधीर को? अजय ने उत्सुक होकर पूंछा।

अजय क्या बताऊँ, कुछ समझ में नहीं आता। न जाने मेरी हरी-भरी गृस्थी को किसकी नज़र लग गई।

बबलू के जन्म के काफी दिनों तक सब कुछ सामान्य था। एक दिन यकायक बंगले पर आये तो टेंशन में थे। पूंछने पर बताया तो कुछ नहीं।

सिर्फ इतना कहा हम तीनों कल गाडी़ से पिताजी के पास चल रहे हैं, और तब से हम लोग यहीं हैं।

और सुधीर की नौकरी ...? अजय ने जिज्ञासा प्रकट की।

नौकरी पर तो वे जभी से नहीं गए जब से गाँव आए, न ही उस संबंध में कोई बात ही की।

गाँव आने पर तो सुधीर और भी गुम सुम हो गये, न किसी से बात करते हैं, न खाने मे रुचि है, न बबलू जिसको वे अपनी आंखों पर बिठाये रहते थे, से ही प्यार से मिलते बैठते हैं, किसी को कुछ बताते भी तो नहीं। ससुर जी के बहुत आग्रह पर केवल इतना बताया कि वे नौकरी से स्तीफा दे आये हैं। मेरे लाख कोशिश करने पर भी इस सब का सबब भी नहीं बताते हैं।

बाबूजी देवी देवताओं, गन्डा ताबीज और ओझाओं के भी चक्कर लगा चुके हैं, पर परिणाम वही ढाक के तीन पात। हार थक कर बड़ी मुश्किल से समझा बुझा कर आज उन्हें यहाँ के लिए तैयार किया। अजय कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं?

अच्छा शिखा यह बताओ कि वहाँ जहाँ तुम लोग सर्विस पर थे सुधीर का किसी से कोई झगड़ा या लव अफेयर तो नहीं चल रहा था?

अजय! मेरी जानकारी में तो बिलकुल नहीं। तुम तो जानते हो कि झगड़ा करना सुधीर के वश का नहीं है। जहां तक मुझे याद है उनके आफिस में कोई महिला कर्मचारी भी तैनात नहीं है, और उनके सहकर्मियों के घर वे न के बराबर ही जाते थे, या जाते तो फिर मुझे लेकर जाते थे।

फिर क्या बजह हो सकती है सुधीर की सनक की, कि अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर जनाब घर में बैठ गए, अजय ने माथा रगड़ा?

यही तो समझ में नहीं आ रहा अजय।

खैर देखते हैं, डाक्टर्स क्या कहते हैं?

डाक्टर और सुधीर बहार आये, सुधीर ने अजय को देख कर भी न देखा हो, ऐसा व्यवहार किया, पर शिखा की ओर कुछ अजीब सी नज़रों से देखा।

डाक्टर ने कहा  "मिसेज सुधीर! वैसे अपेरेंटली तो मिस्टर सुधीर को कुछ नहीं हुआ जान पड़ता है, परसों  फिर आप दोनों रूटीन चेकअप के लिए आ जायें।"

अगली विजिट में-

"हाँ तो मिसेज सुधीर मुझे यह बताएं कि जब से आपके पति को ऐसा हुआ है तब से उनका व्यवहार आपके साथ कैसा रहा है, आई मीन आप समझ रहीं होंगीं ...?"

जी हाँ डाक्टर, आश्चर्य तो मुझे भी है, औरों की अपेक्षा वे मेरा कुछ खास ख्याल रखने लगे हैं, हमारी सेक्स लाइफ में किसी भी तरह की कोई रूकावट या बदलाव नहीं आया है, बल्कि मुझे ऐसा महसूस होने लगा है कि हम दोनों के बीच प्यार और बढ़ गया है।

परन्तु परसों आपके यहाँ से चेकअप करवाने के बाद रात को सुधीर ने अजीब हरकत की, मेरे साथ सेक्स भी किया मुझे मारा भी, और गाली भी दी।

"गाली देते समय उन्होंने कौन से शब्द इस्तेमाल किये थे, आप मुझे बता सकेंगी?" डाक्टर ने जानना चाहा।

जी हाँ डाक्टर साहब, वैसे सब कुछ ठीक होता तो वो गलियां मेरे मुंह से न निकलतीं, पर यहाँ तो सवाल मेरे पति की जिंदगी का है इसलिए बताती हूँ। उन्होंने मुझे कुत्ती, कमीनी और कुलटा कहा था।

"जी मुझे मालूम है, गालियाँ देने के लिए मैंने ही उन्हें उकसाया था।"

जी मैं समझी नहीं मुझसे आपको क्या तकलीफ थी जो...?

"आप गलत अर्थ न लगाएं, मरीज के लिए डाक्टर किसी भी हद तक जा सकता है। और वही मैंने किया। सच मानिये, परसों से पहले तक मैंने

आपको देखा भी नहीं था, पर डायग्नोसिस में जो मुझे महसूस हुआ उसको पुख्ता करने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था। अरे हाँ आपके वह दोस्त जिनसे उस दिन अप बात कर रहीं थीं, ने भी अपरोक्ष रूप से मेरी मदद करदी।"

मैं समझी नहीं डाक्टर?

"अभी समझ जायेंगीं केवल मेरे एक प्रश्न का उत्तर देने के पश्चात।"

"पर गुजारिश है आप कुछ छिपाएँ नहीं, अन्यथा मेरे मरीज के हित में ठीक नहीं होगा।"

जी पूँछिये।

"क्या आपने अपनी शादी के पूर्व के किसी ऐसे वाकिये का, खासकर आपके किसी और से अंतरंग सम्बन्धों का जिक्र मिस्टर सुधीर से किया था कभी?"

शिखा को काटो तो खून नहीं। सोचने लगी यह डाक्टर है या अंतर्यामी? फिर भी जवाब देने की बजाय, उलटा डाक्टर से प्रश्न कर दिया, “क्या सुधीर ने ऐसा कुछ कहा आपसे?”

"जी नहीं, और यदि आप भी न बताना चाहें तो कोई दबाव नहीं है।"

नहीं डाक्टर पत्नी के लिए पति की जिंदगी से बढ़कर कुछ नहीं होता, यदि मेरे  व्यक्तिगत जीवन की अन्तरंग परत खुलने से सुधीर का तिनके भर भी उपचार हो सकता है तो मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी।

डाक्टर! छः सात महीने पहले एक रात अंतरंगता के क्षणों में सुधीर को न जाने क्या सूझी कि पूंछने लगे शिखा तुमने मेरे सिवाय क्या किसी और के साथ यह सब किया है जो इस समय हम दोनों कर रहे हैं? मेरे नकारात्मक उत्तर से उन्हें संतुष्टि नहीं हुई और उन्होंने मेरा हाथ अपने सिर पर रख कर जोर देकर कहा खाओ मेरे सिर की कसम।

मैं लाचार हो गयी, पति कि झूठी कसम न खा सकी, और वह सब बता दिया जो एकांत में मेरे बहनोई ने मेरे सोने का फायदा उठा कर किया था।

मैं बहिन का घर बर्वाद होने के डर से चुप रह गयी।

हालाँकि उसके बाद मेरे बहनोई की न तो हिम्मत पडी़ और न ही मैंने कोई ऐसा मौका आने दिया कि उस बाकिये की पुनरावृत्ति हो सके।

"अब आप समझीं कि सुधीर ने आपको गलियां क्यों दीं? क्योंकि मर्ज़ जानने के लिए मैंने ही उन्हें यह कह कर उकसाया था कि यदि आपकी पत्नी का चरित्र खराब है तो अब भी वह किसी न किसी मर्द से ताल्लुकात रखतीं होंगीं, घर जाकर उनसे दरियाफ्त करना, और सौभाग्य वश जब मैं और सुधीर बहार आये, मिस्टर अजय आपसे बातें कर रहे थे, जिससे मिस्टर सुधीर का शक और बढ़ गया और रात वे अपने को कंट्रोल न कर सके, गुस्से में गलियां दे कर अपनी भड़ास निकाल दी।"

तो डाक्टर अब क्या करें?

"अब मिस्टर सुधीर का इलाज तो आपके ही हाथ में है। बस आपको थोड़ी सी एक्टिंग करनी होगी। आपकी एक्टिंग पर निर्भर करेगा कि मिस्टर सुधीर ठीक होते हैं या नहीं।"

थेंक्यू डाक्टर। बताएं मैं सुधीर के लिए एक्टिंग तो क्या जान भी दे सकती हूँ।

डाक्टर ने फुसफुसाती आवाज में शिखा को समझा दिया कि उसे क्या करना है?

रात हमेशा की तरह सुधीर जब शिखा के कमरे में सोने आया तो स्त्री स्वाभाव के विपरीत शिखा ने पहल कर कामुक छेड़खानी से सुधीर के शरीर में कामाग्नि भरना शुरू कर दिया, और जब उसने देखा लोहा गरम है, तो छिटक कर दूर हो गयी। इठलाते हुए बोली जाओ, मैं तुमसे बात नहीं करती, तुम मुझसे बिलकुल प्यार नहीं करते।

भले ही रूखे स्वर में सही, सुधीर ने कहा, "यदि प्यार न करता होता तो आज हम दोनों में से इस धरती पर एक ही जिन्दा होता।"

क्या खाक प्यार करते हो, करते होते तो क्या मेरे एक झूँठ से अपना और हम सब का यह हाल कर लेते?

झूंठ मतलब?

वही जो उस दिन मैंने तुम्हें चिढा़ने के लिए मेरे जीजाजी और मेरे बारे में ...।

क्या कह रही हो, खाओ मेरे सिर की कसम कि वह सब झूठ था।

शिखा इसी मौके की तलाश में थी, अंगड़ाई लेती हुई सुधीर से लिपट गयी, और एक नहीं अपने दोनों हाथ सुधीर के सिर पर रख कर बोली "तुम्हारी  कसम मैं झूंठ बोली।"

सुबह सुधीर ने बबलू को खूब लाड़ किया, माता पिता के चरण छुए, पत्नी को चूमा और काम की तलाश में निकल गया।

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रचनाकर - "छत्र पाल"

35-शिवम टेनेमेंट्स, वल्लभ पार्क,

साबरमती, अहमदाबाद (गुजरात)382424

ईमेल-crmsvkkvsmrs@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. लीक से हटकर एक ऐसे विषय पर कहानी लिखी गयी है जिसे अमूमन छुआ नहीं जाता या लिया भी जाता है तो प्रस्तुति सही नहीं हो पाती हैं आप की प्रस्तुति अच्छी हैं. अच्छा प्लाट था.
    संयत भाषा के साथ लिखी गयी प्रभावी कथा.

    जवाब देंहटाएं
  2. अल्पनाजी,
    बहुत बहुत धन्यवाद,प्रोत्साहन के लिए|आपका यह प्रोत्साहन मेरे लिए उत्प्रेरक का काम करेगा|

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -41- छत्र पाल की कहानी : खाओ मेरे सिर की कसम
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -41- छत्र पाल की कहानी : खाओ मेरे सिर की कसम
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