कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -37- सरिता शर्मा की कहानी : मझधार

SHARE:

कहानी मझधार सरिता शर्मा पूर्वी दिल्ली का विमला देवी अस्पताल। अस्पताल के कमरा नंबर 13 के बेड पर पड़ी विभा सोच रही थी-‘आखिर जीवन का छंद कह...

कहानी

मझधार

सरिता शर्मा

image

पूर्वी दिल्ली का विमला देवी अस्पताल। अस्पताल के कमरा नंबर 13 के बेड पर पड़ी विभा सोच रही थी-‘आखिर जीवन का छंद कहां, कैसे बिगड़ गया?’ उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी अपनी ही जिंदगी उसके नियंत्रण से बाहर चली जाएगी।

हर समय साथ चलते रहनेवाला अतीत का भूत फिर उसके दिलोदिमाग पर हावी होने लगा।

मध्यवर्गीय परिवार की विभा पढ़ाई में अव्वल और गंभीर स्वभाव की रही थी। खाली वक्त में खेलने या टीवी देखने की बजाय कहानियों की किताबों में डूबी रहती। नतीजा यह होता कि हिन्दी, अंग्रेजी, समाज विज्ञान में कक्षा में सबसे आगे और विज्ञान-गणित में फिसड्डी। कॉलेज में आखिर अपनी पसंद का विषय साहित्य पढ़ने को मिला तो विभा को लगा मानो लॉटरी लग गयी। जितनी कविताएं-कहानियां पढ़ती, उतने ही भाव मन में उमड़ते। प्रोफेसर विनय ने उसे खूब प्रोत्साहन दिया। कॉलेज के दिनों की ज्यादातर प्रेम कविताएं विनय सर के लिए ही थीं मगर प्लेटोनिक लव के उस दौर में किसी को इसकी भनक नहीं पड़ी। कक्षा के उच्छृंखल लड़कों को तो गंभीर साहित्यिक चर्चाओं की जगह कॉलेज से भाग कर फिल्में देखना ही अधिक पसंद था। बीए के बाद एमए में भी प्रथम आयी तो घर वालों ने पीएचडी के लिए दिल्ली भेज दिया जहां उसे लड़कियों के हॉस्टल में रहना था।

--

रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

----

 

पढ़ाई के सिलसिले में उसे कई बार प्रोफेसर मलिक के घर भी जाना पड़ता था जहां उनकी पत्नी और बेटी से उसकी अच्छी दोस्ती हो गयी। सर पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहते थे और कई लेखक-संपादक उनके मित्र भी थे। एक दिन चाय के समय सर ने उसका परिचय इंद्र से कराया जो एक जानी-मानी साहित्यिक पत्रिका ‘कथादर्पण’ के संपादक थे।

‘मैंने भी कुछ कहानियां-कविताएं लिखी हैं। आप कहें तो आपकी पत्रिका के लिए भेज दूं?’ विभा ने सकुचाते हुए पूछा।

‘हां जरूर, मेरा फोन नंबर ले लीजिए और कभी ऑफिस आ कर अपनी रचनाएं दे जाइए।’

हॉस्टल लौटते हुए विभा के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसे जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गयी थी। उसकी कल्पनाओं में बार-बार ‘कथादर्पण’ का आगामी अंक झूल रहा था, जिसमें फोटो के साथ उसकी कहानी छपी है...कॉलेज में हर तरफ उसकी कहानी की ही चर्चा चल रही है...

दो-तीन दिन इसी उधेड़बुन में बित गए कि कौन-सी कहानी लेकर वह इंद्र के पास जाए...उसके पास तो ढंग की कोई फोटो भी नहीं। आखिर हॉस्टल की रूममेट नीता के डिजिटल कैमरे ने फोटो की समस्या हल की और डायरी में पड़ी कहानियों में से एक कहानी टाइप करा वह पूर्वी दिल्ली स्थित ‘कथादर्पण’ के कार्यालय पहुंची। इंद्र ने धीर-गंभीर मुद्रा में उससे कुछ औपचारिक सवाल किए, कॉफी पिलायी और कहानी पढ़ने के बाद फोन करने का आश्वासन दिया।

मन में कई तरह की आशंकाएं लिए विभा हॉस्टल लौट आयी। दो-तीन दिनों बाद इंद्र का फोन आया-‘बधाई, आपकी कहानी ‘कथादर्पण’ के अगले अंक में छप रही है।’

हफ्ते भर बाद जब ‘कथादर्पण’ का नया अंक आया तो सचमुच चमत्कार हो गया। देश भर से दर्जनों चिट्ठियों और फोन कॉल आए। वह कॉलेज के हिंदी विभाग में भी चर्चा का विषय बन गयी थी।

विभा को जिंदगी में पहली बार अपने वजूद का एहसास हुआ-हां, वह जो चाहे वो कर सकती है।

उसने इंद्र को फोन कर हार्दिक धन्यवाद दिया और दूसरे दिन कुछ कहानियां-कविताएं लेकर फिर ‘कथादर्पण’ के दफ्तर जा पहुंची। दफ्तर के बाहर ही इंद्र से उसकी मुलाकात हो गयी। इंद्र ने कहा-‘मैं लंच करने कनॉट प्लेस जा रहा हूं...चलोगी?’

विभा ने संकोचवश इनकार किया मगर इंद्र के सामने उसकी एक न चली-‘देखो भई, राइटर को औपचारिकता के झंझट में नहीं पड़ना चाहिए।’

धीरे-धीरे इंद्र से उसका मेलजोल बढ़ता गया और उसे पता ही नहीं चला कि कब वह इंद्र की ओर आकर्षिक होने लगी है। इंद्र भी उसे पसंद करता है, यह बात वह अच्छी तरह समझ चुकी थी। तभी तो वह उससे अपनी निजी जिंदगी के बारे में सब कुछ शेयर करने लगा है।

इंद्र का बीवी से तलाक हो चुका था। दो बच्चे थे-शिखा और मोहित। दोनों हॉस्टल में पढ़ रहे थे। इंद्र मयूर विहार स्थित अपने फ्लैट में अकेले ही रहता था। कभी-कभार बच्चे मिलने या दो-चार रोज साथ रहने चले आते थे।

इंद्र ने अब विभा के साथ छूट लेनी शुरू कर दी थी। बातचीत करते हुए वह अक्सर उसके कंधे पर हाथ रख देता। कभी विभा अपनी कोई कविता सुनती तो तारीफ में खुशी से चीख उठता-‘वाह, ग्रेट!’ और उसे गले लगा लेता। सार्वजनिक स्थलों पर इंद्र के इस बिंदास रवैये से विभा असहज हो उठती। वह घबरा कर इधर-उधर देखने लगती कि कोई देख तो नहीं रहा।

विभा की झिझक देख इंद्र ताना मारता-‘यार, 18वीं सदी के भावबोध से अब नहीं काम चलनेवाला। कहानियों-कविताओं में तो स्त्री विमर्श...औरत की आजादी की खूब वकालत करती हो मगर वास्तविक जिंदगी में अपनी आजादी का इस्तेमाल तक नहीं करना जानती? हूंह!’

एक दिन इंद्र उसे लंच के लिए प्रेस क्लब ले गया। खाने से पहले ठंडी बीयर से गला तर करने के बाद उसने निर्णयात्मक लहजे में अपनी बात शुरू की-‘देखो विभा, हम दोनों अकेले हैं...हमें एक-दूसरे की जरूरत है। इस रिश्ते को आकार लेने दो। एक पल को वह रुका, विभा की ऊंगलियों को अपनी हथेली में कैद करते हुए उसने बात आगे बढ़ायी-‘मुझे पता है, तुम्हारी प्रेम-कविताएं मुझे ही संबोधित होती हैं...!’

विभा चुपचाप उसे एकटक निहारती रही।

उस दिन थोड़ी ना-नुकुर के बाद विभा ने पहली बार बीयर का स्वाद चखा। इंद्र उसके इस ‘साहस’ से बेहद खुश दिखा-‘शराब क्रियेटिव लोगों की संजीवनी है...वो गालिब ने कहा है न...साकी शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर या फिर जगह बता जहां खुदा न हो...हो-हो-हो!’

लंच के बाद जब वे प्रेस क्लब से बाहर निकले, इंद्र ने कहा-‘अभी हॉस्टल जाकर क्या करोगी? चलो, घर चलते हैं...गपशप करेंगे।’

पता नहीं यह बीयर का असर था या इंद्र का सम्मोहन, वह इनकार नहीं कर सकी।

इंद्र के साथ ऑटो में बैठ आध घंटे बाद विभा जब उसके मयूर विहार स्थित डबल बेडरूमवाले फ्लैट में पहुंची, तब कहने-सुनने के लिए कुछ बचा नहीं था।

इंद्र ने डायनिंग हॉल के शोकेस में सजी वोद्का की बोतल खोली। वोद्का की बोतल के साथ विभा भी खुलती चली गयी...जमाने से उसके भीतर जमी बैठी बर्फ पिघल रही थी...अपने अतीत के दुःखों, आकांक्षाओं के बारे में वह लगातार बोले जा रही थी। मानो आज अपना हर सुख-दुःख वह इंद्र से बांट लेना चाहती थी।

इस बीच एक-एक कर उसकी देह से सारे कपड़े उतरते रहे... चुबंन-आलिंगन के लंबे दौर के बाद बिस्तर पर वह इंद्र के आगोश में लेटी थी।

रात के नौ बज गए। मयूर विहार से नार्थ कैम्पस स्थित अपने हॉस्टल के लिए ऑटो लेते हुए विभा मानो हवा में उड़ रही थी...उसे लगा, उसने अपनी आजादी की ओर पहला कदम मजबूती से बढ़ा दिया है।...ऑटो में बैठी तो उसे अचानक खयाल आया कि मयूर विहार पहुंच कर उसने अपना मोबाइल ऑफ कर दिया था। पर्स से निकाल कर उसने तत्काल मोबाइल ऑन किया तो रूममेट नीता के 10 मिस्ड कॉल देख घबरा गयी।

‘हॉस्टल में आज वार्डन अच्छी-खासी फटकार लगाएगी। खैर, लेक्चररशिप ज्वाइन करते ही वह अलग फ्लैट ले लेगी...अब हॉस्टल की रोक-टोक और ऊबाऊ दिनचर्या में बंध पाना उसके लिए संभव नहीं,’ विभा ने दृढ़ता से सोचा।

विभा की जिंदगी का एक नया दौर शुरू हो चुका था। उसकी शामें अब इंद्र के साथ गुजरने लगी थीं। बीयर, वोद्का के सुरूर में वे घंटों स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, मार्क्सवाद और गांधीवाद आदि पर बहस करते रहते।

‘चलो छोड़ो, अब कुछ रोमांटिक बातें करते हैं,’ फिर इंद्र उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर ले जाता।

विभा अक्सर पूछ बैठती-‘इंद्र, मुझे प्यार तो करते हो न? तुम्हारे पास लड़कियों के फोन आते हैं तो उनसे मेरे सामने बात नहीं करते। सच बताओ, कोई दूसरी औरत भी तुम्हारी जिंदगी में है?’

इंद्र अपनी झुंझलाहट छुपाने की कोशिश करता-‘शक करने का कोई फायदा नहीं। हम पति-पत्नी तो हैं नहीं, न ही किसी सामाजिक बंधन से बंधे हैं। प्यार का यह अनूठा रिश्ता भरोसे के सहारे ही निभ सकता है’-इंद्र टका-सा जवाब दे देता-‘सिर्फ तुम्हारे लिखने से तो हमारी पत्रिका चलने वाली नहीं। बाकी लेखक-लेखिकाओं से भी संपर्क रखना पड़ता है। फिर जब तुम साथ होती हो तो तुम्हारे साथ से बढ़ कर मेरे लिए कुछ नहीं...यह कीमती समय मैं दूसरे लेखक-लेखिकाओं से बात करके बर्बाद नहीं करना चाहता। और तुम हो कि ऐसी बातें करके मेरा मूड बिगाड़ देती हो।’

विभा ने कॉलेज में लेक्चररशिप ज्वाइन की तो घर से शादी के लिए दबाव बढ़ने लगा। कभी-कभार उससे मिलने दिल्ली आये पिता

और भाई को इंद्र के साथ उसके रिश्ते की उड़ती हुई खबर लग गयी थी। पिता ने अप्रत्यक्ष संकेतों के जरिये विभा को सावधान करना चाहा तो भाई ने सीधे-सीधे धमकी दे डाली। मगर विभा पर इन संकेतों और धमकियों का कोई असर नहीं हुआ। आखिर अब वह अपने पैरों पर खड़ी आत्मनिर्भर स्त्री थी। साथ ही एक सम्मानित स्त्रीवादी लेखिका के तौर पर भी उसकी पहचान बनने लगी थी। घर-गृहस्थी के झंझट में अपना लिखना-पढ़ना बंद कर देना विभा को कतई मंजूर नहीं था। अपने कॉलेज की लेक्चरर सीमा को उसने हमेशा हैरान-परेशान देखा था। ज्वांइट फैमिली में सास-ससुर का रौब तो था ही, पति मनोज भी उसे घर के कामों में उलझाये रखता था। कुंठित होकर चिड़चिड़ाते रहने से वह हाई ब्लड प्रेशर की मरीज हो गयी थी। चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से पीठ पीछे छात्र-छात्राएं उसका मजाक उड़ाने लगे थे। वह सेहत, साज-श्रृंगार यहां तक कि अपने कपड़ों के प्रति भी लापरवाह रहने लगी थी। मोटापे की वजह से उसकी काया बेडौल होती जा रही थी। 37 की उम्र में वह 50 की दिखने लगी थी।...विभा अपने ऐसे भविष्य की कल्पना कर सहम उठती। अपनी कमाई पर आराम से रह रही है। किश्तों में खरीदे फ्लैट में उसने एक-एक कर जरूरत के सभी साधन जुटा लिए थे। साथी की कमी इन्द्र ने पूरी कर ही दी थी। इस बंधन रहित रिश्ते में समस्या थी तो बस सामाजिक स्वीकृति की।

‘इस अगस्त में तुम 33 की हो जाओगी...कब तक कुंवारी बैठी रहोगी?’ एक दिन पिता बरस पड़े थे।

‘पापा, आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि शादी के बिना औरत अधूरी है?’ लेखन से इतर व्यावहारिक जीवन में शायद पहली बार वह अपनी स्त्रीवादी दृष्टि का प्रयोग कर रही थी-‘अच्छा-खासा कमाती हूँ। मेरी कहानियां और लेख छपते हैं तो देश भर से पाठकों, संपादकों के फोन आते हैं, चिट्ठियां आती हैं। फेसबुक की मेरी वॉल प्रबुद्ध प्रशंसकों के कमेंट से भरे रहते हैं। मेरी अपनी आइडेंटिटी है...आपकी पसंद के किसी अनजान आदमी के साथ शादी करके मैं पूरी जिंदगी उसके साथ नहीं बिता सकती,’ उसने अपना फैसला सुना दिया।

मगर आज पिताजी भी हार माननेवाले नहीं थे। बोले-‘तो फिर अपनी मर्जी के आदमी के साथ शादी कर लो। हम लोग इतने मॉडर्न नहीं हैं। तुम्हारे भाई-बहनों की शादी भी करनी है। अगर अपनी मर्जी से ही रहना चाहती हो तो फिर हमसे तुम्हारा कोई नाता नहीं रहेगा’-विभा के बाद पिता ने भी अपना फैसला दो टूक सुना दिया तो विभा जैसे सातवें आसमान से गिरी।

उसे लगा, मानो उसकी जिंदगी की नाव किसी मझधार में फंस गयी है...और किनारे धुंधले पड़ते जा रहे हैं। उसकी जिंदगी के दो किनारे। एक इंद्र, दूसरा परिवार। इंद्र की वजह से परिवार उससे नाता तोड़ने पर उतारू है और इंद्र उसे अपनाने को तैयार नहीं। पता नहीं, उसे अंधेरे में रख और कितनी लेखिकाओं पर डोरे डालता रहता है।

विभा रोने लगी-‘आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं आपसे, मम्मी

से...अतुल, प्रिया...सबसे बहुत इमोशनली अटैच्ड हूँ।’

‘बेटी, तुम्हें क्या लगता है, हम बहुत खुश हैं? प्रिया को लड़केवाले देखने आते हैं तो तुम्हारा जिक्र छिड़ जाता है। बेहतर यही है कि अब मैं सिर्फ अतुल और प्रिया के बारे में सबको बताऊं। सबको बोल दूंगा कि मेरे दो ही बच्चे हैं। तुम्हारी बदनामी से मैं उनकी जिंदगी बर्बाद नहीं होने दूंगा।’

पिताजी दिल्ली से लौटे तो हफ्तों विभा के भीतर-बाहर एक सन्नाटा पसरा रहा। उसने कई बार घर फोन किया लेकिन अब मां और भाई-बहन उससे बात करने से कतराने लगे थे।

वह असुरक्षा और अकेलेपन से घिर गई थी। एक दिन उसने इंद्र से साफ-साफ पूछ लिया-‘हमारे संबंध का जब सबको पता है तो क्यों न हम ‘लिव इन’ कपल बन जाएं। दिल्ली में अब कई लड़कियां, औरतें अपने पार्टनर के साथ लिव-इन रह रही हैं। उन्हें आजादी और सुरक्षा, दोनों मयस्सर हैं। एक के साथ रहते हुए कितने ही दोस्तों का उनके यहां आना-जाना लगा रहता है। अब तो मेरा घर-परिवार से भी कोई संपर्क नहीं रहा।...क्या करूं?’ वह बेहद उदास थी।

उसकी बातें अनसुनी करते हुए इन्द्र ने उसे एक अप्रत्याशित प्रस्ताव दे डाला-‘मारीशस चलोगी? विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन है। मुझे आमंत्रण मिला है।’ विभा को गुस्सा आ गया-‘आमंत्रण आपको मिला है तो क्या नकली बीवी बन कर मैं आपका बैग ढोने चलूं?’ इंद्र ने बुरा-सा मुंह बना लिया। बोला-‘ओह, बाल की खाल खींचने की आदत से बाज आओ...तुम्हें भी इनविटेशन मिलेगा...आयोजक मिस्टर खन्ना शाम को खाने पर आ रहे हैं। सब मैनेज हो जाएगा...तुम किचन संभालो और लिव इन रहने की बात भूल जाओ। मेरे बच्चे उसके लिए कभी तैयार नहीं होंगे।’

शाम को मिस्टर खन्ना आए तो विभा की तारीफों के पुल बांधते हुए इंद्र ने उनसे विभा का परिचय कराया। मिस्टर खन्ना ‘अच्छा-अच्छा’ कहते हुए विभा को घूरते, मुस्कुराते रहे।

डिनर से पहले पीने-पिलाने का दौर शुरू हुआ तो मिस्टर खन्ना ने अर्थपूर्ण ढंग से माहौल को सूंघते हुए अपने दो-तीन लेख इंद्र को पकड़ा दिये-‘ये मेरे आलेख...प्रवासी भारतीय साहित्य की दशा-दिशा पर केंद्रित हैं। पढ़ कर देखें, ठीक लगे तो ‘कथादर्पण में ले सकते हैं।’ इन्द्र तो जैसे इसी मौके की तलाश में था-‘अरे, पढ़ना क्या, हमारी इतनी जुर्रत कि आप लिखें और हम न छापें।’ इंद्र ने ठहका लगाया तो मिस्टर खन्ना भी हंसने लगे। थोड़ी देर बाद मिस्टर खन्ना को शरारत भरी नजरों से देखते हुए इंद्र बोला-‘मैं जरा सिगरेट लेने बाहर जा रहा हूं...आपलोग बात करो, मैं आया।’

मिस्टर खन्ना पेग पर पेग गटकते जा रहे थे। शराब के सुरूर में उनकी आवाज लरजने लगी थी-‘अरे, आपने तो दो ही पेग लिए विभा जी, शरमाइये मत...हम सब दोस्त हैं...’

मौका देख कर विभा ने विश्व हिंदी सम्मेलन के आमंत्रण की बात छेड़ी तो मिस्टर खन्ना के हाथ विभा के कंधे तक पहुंच गए-‘अरे, निश्चिंत रहिए, आप हमारे साथ मारीशस चल रही हैं। प्रॉमिस! मारीशस के खुशनुमा मौसम में आपका संग-साथ मिले तो खूब रंग जमेगा।’

मॉरीशस में ज्यादातर समय इन्द्र बाकी लेखक-लेखिकाओं के आसपास मंडराता रहा। दरअसल मिस्टर खन्ना को विभा के साथ ट्यूनिंग करने की छूट देकर वह अपने लिए नया शिकार तलाशने में जुट गया था। आयोजक होने की अपनी तमाम जिम्मेवारियों के बीच मिस्टर खन्ना ने विभा का खास खयाल रखा। जब भी समय मिलता, खन्ना विभा के आसपास मंडराने लगता। और एक रात पार्टी के बाद विभा अपने होटल के कमरे में लौटी ही थी कि वह आ धमका। नशे में धुत मिस्टर खन्ना ने विभा को अपनी बाहों में भर लिया-‘आप चिंता मत कीजिए, इन्द्र को कोई आपत्ति नहीं। फिर यहां तो आप मेरी ही वजह से आयी हैं विभा जी...आई श्वैर, हमारी दोस्ती परवान चढ़ेगी। मैं आपको पूरी दुनिया घुमाऊंगा। प्रॉमिस!’

विभा इस अप्रत्याशित आमंत्रण के लिए तैयार नहीं थी मगर न जाने क्यों, उसकी इनकार करने की भी इच्छा नहीं हो रही थी। अब जो होता है होने दो। इंपोर्टेड वाइन के नशे के बाद पुरुष-देह के स्पर्श से उसकी देह सुलग उठी थी।

खन्ना के साथ बिस्तर की ओर जाते हुए विभा सोच रही थी-‘क्या ऐसा कर वह इंद्र से अपना हिसाब चुकता कर रही है...मगर इंद्र को इससे क्या फर्क पड़नेवाला...वह तो शायद यही चाहता है। हो सकता है, खन्ना उसे बता कर ही उसके पास आया हो।’

खिड़की से आती धूप की किरणों की चौंध से विभा की नींद खुली। खन्ना अपने कमरे में लौट चुका था। रात को खन्ना के आगोश में जाते हुए एक पल को यह सोच कर वह रोमांचित हो उठी थी कि इंपोर्टेड वाइन के खुमार में सहवास के बाद दूसरे दिन सुबह वह तरोताजा महसूस करेगी। मगर यह क्या? उसका सर भारी था और उसे मितली आ रही थी।

इंद्र के साथ सहवास उसे असीम संतुष्टि और ऊर्जा से भर देता था जबकि खन्ना के साथ रात बिताने के बाद वह एक अजीब-सी विरक्ति से घिर गयी थी।...‘क्या इसलिए कि इंद्र से वह प्यार करती थी जबकि खन्ना के साथ जो हुआ, वह एक सौदेबाजी थी। एक डील। लेकिन इसके लिए भी तो उसे इंद्र ने ही उकसाया।’ उसे लगा-‘इंद्र अगर अभी उसके सामने आ जाए तो वह उसका गला दबा देगी।’

वह बुझे मन से वापस लौटी और दिल्ली पहुंचते ही फट पड़ी-

‘अगर आप लिव-इन रिलेशन के लिए तैयार नहीं तो अब हमारा मिलना-जुलना संभव नहीं। हम औरतों का क्या कुसूर? प्रेम करें तो छली जाएं, विवाह बंधन में बंधें तो कोई कद्र नहीं करता।’

इंद्र चुपचाप उसे अजीब-अपरिचित नजरों से घूरता रहा।

‘यह रास्ता तुमने ही चुना है,’ एयरपोर्ट पर उसे अकेला छोड़ मयूर विहार के लिए टैक्सी लेते हुए इंद्र ने टका-सा जवाब दे दिया। इंद्र के जाने के बाद रोहिणी के लिए दूसरी टैक्सी लेते हुए वह पूरी तरह अवसाद से घिर चुकी थी।

उसे लगा-मझधार में फंसी उसकी नाव बस डूबने ही वाली है!

घर पहुंच कर उसने कई बार इंद्र को फोन लगाया मगर उसने फोन नहीं उठाया। वह वहशत में भरी दिन भर उसे फोन करती रही।

देर रात गए इंद्र का मैसेज आया-‘बच्चे घर आए हैं। दो-तीन दिन बाद मिलते हैं।’

विभा ने फोन पटक दिया और आवेश में नींद की ढेर सारी गोलियां गटक ली!

दूसरे दिन दरवाजा तोड़कर इंद्र उसे अस्पताल ले गया। जान तो बच गयी मगर हफ्तों अवसाद का इलाज चलता रहा।

होश में आने के बाद विभा के समक्ष वही यक्ष प्रश्न खड़ा था-आखिर जीवन का छंद कहां, कैसे बिगड़ गया?

‘लेकिन अब और नहीं...यह छंद अब वही सुधारेगी। पुरुषों का क्या, वे तो आते-जाते रहेंगे...कभी प्यार के रास्ते तो कभी सौदेबाजी के रास्ते...अस्पताल से छुट्टी पाते ही वह अनाथालय से किसी अनाथ बच्ची को गोद लेगी और उसका जीवन संवारेगी। इस भटकाव का अंत शायद तभी संभव है-नेवर टू लेट।

तभी मीठी मुस्कान बिखेरते हुए नर्स कमरा नंबर 13 में दाखिल हुई। उसने विभा को बताया कि अब वह बिल्कुल ठीक है...कल उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।

विभा को लगा, मझधार में फंसी उसकी नाव विकराल लहरों के थपेड़ों से जूझती हुई बाहर निकल किनारे की ओर बढ़ चली है। किनारे पर जीवन है...नयी खुशियां हैं, नयी चुनौतियां।

उसे लगा, उसकी देह फूल-सी खिल उठी है...अलसुबह खिले बेले की सुगंध का झरना उसकी देह से फूट पड़ा था

--

संपर्क : मकान नंबर-1975, सेक्टर-4, अर्बन इस्टेट

गुड़गांव-122001

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -37- सरिता शर्मा की कहानी : मझधार
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -37- सरिता शर्मा की कहानी : मझधार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK6JVA4yKLxy0eJ7hyeyq4JNGuaKJFvKoc58PwtVCko5hcgcYnTbQSPIZtAlA2ACbiLFhpr_aTpfZP3kE3tnnCZAMupzYRYXQ8V37giSSgU-9D5bP5y0XxNtf5vFfMJ57sh65l/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK6JVA4yKLxy0eJ7hyeyq4JNGuaKJFvKoc58PwtVCko5hcgcYnTbQSPIZtAlA2ACbiLFhpr_aTpfZP3kE3tnnCZAMupzYRYXQ8V37giSSgU-9D5bP5y0XxNtf5vFfMJ57sh65l/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/37.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/37.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content