जीवन या मृत्यु - कहानी - पद्मा मिश्रा . --------------------------------------------------------------------------------------- रु. 12,...
जीवन या मृत्यु -
कहानी -
पद्मा मिश्रा
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रु. 12,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012
अधिक जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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कहानी—
''जीवन या मृत्यु ''.........
''पद्मा मिश्रा ''
त्योहारों के दिन थे. दुर्गा पूजा का पांचवां दिन ..जमशेद्पुर के कोने कोने में पूजा के पंडाल सज गए थे. रोशनी, मेले, धार्मिक पूजा अनुष्ठान की तैयारियां जोरों पर थीं. मेरे घर से थोड़ी ही दूरी पर एक मैथिल ब्राह्मण परिवार था, पूरी तरह ..कर्मकांडी. ...नेम टेम ..जोग से पूजा के उपासक .उनकी पारम्परिक पूजा का निर्वाह भी तंत्र मन्त्र ओर बलि पूजा के बिना नहीं हो पता था..उस परिवार की छोटी सी लाड़ली पोती गुड्डू अक्सर मेरे घर चली आती,ओर ढेर सारी कवितायेँ अपनी तोतली आवाज में सुनाया करती थी. ....आज सुबह ही तो अपनी नई फ्राक दिखाने आई थी ,--''देखो दादी माँ,कित्ता सुन्दर ..मेरा फ्राक..दादी लाई है मेरे लिए'',
मैंने जरा तारीफ़ कर दी,..ओर वो बेहद खुश..........इधर कुछ दिनों से गुड्डू नहीं आ रही थी.मैंने पूछा भी उनके बेटे से तो उसने बताया क़ि आज कल घर में ही खेलती ,,दौड़ती फिरती है, मै भी संतुष्ट हो अपनी पूजा की तैयारियों में व्यस्त हो गई.
..छन..छन..छन,,,सड़क पर किसी के दौड़ते ..नन्हें कदमो की आहट सुनाई दी. मैंने झाँका तो गुड्डू थी.---अरे सुन तो,..जरा सुन तो ...बोलती हुई गुड्डू एक नन्हे से सलोने बकरी के बच्चे के पीछे भाग रही थी. वह भी चौकड़ी भरता ..कभी इधर ..कभी उधर.. भाग रहा था. पैरों में घुंघरू बंधे थे,..ओर गले में मोतियों की माला. बहुत सुन्दर था वह बकरी का बच्चा. ..जिसे देख कर ही बरबस ''वाह' निकल जाये..गुड्डू दौड़ कर मेरे पास आई--'' देखो दादी, माँ,मेरा प्यारा दोस्तबिट्टू, अभी कल ही आया है, हम दोनों खूब खेलेंगे,मस्ती करेंगे'' गुड्डू ने तो अपने नए दोस्त का नामकरण भी कर दिया था. ..फिर तो वह रोज का सिलसिला हो गया,सुबह से शाम तक छुम.. छनन ..छन,ओर उसके पीछे दौड़ती भागती गुड्डू. मैंने भी उसे एक दिन ब्रेड खिलाया ओर उसके रेशमी बालों को सहलाया भी था. वह बच्चा पूरे मोहल्ले में सबका लाड़ला बन गया था. उसके छुम छुम में जाने कैसा सम्मोहन था. जो हमें अपनी ओर खींचता था. ....
फिर देवी पूजा आरती भोग में समय इस तरह बीतता चला गया की गुड्डू की याद ही न रही ,आज सप्तमी तिथि थी, बिट्टू को सुबह सुबह स्नान कराये जाते देख कर मैं मुस्कराई -गुड्डू उछल उछल कर पाइप की धार से उसे नहला रही थी. ...फिर मै व्यस्त हो गयी. थोड़ी देर बाद पंडित जी का परिवार उसे लेकर कहीं जा रहा था. मैंने जानना चाहा तो पता लगा क़ि कुल देवी के मंदिर जा रहे हैं. दर्शन करने. यह एक सामान्य सी बात थी अत; मैं भूल गयी. फिर तो माँ की पूजा के तीन दिन भोग आरती कन्या पूजन की व्यस्तताओं में मुझे -गुड्डू..बिट्टू दोनों की याद नहीं रही. लगभग चार दिनों बाद सामने वाली मेरी पड़ोसन अपनी बेटी के साथ दोने में प्रसाद लेकर आईं ..कुछ उदास थीं. यह देख मैंने पूछा --''क्या बात है?..तबीयत ठीक नहीं क्या?''
-''मै तो नहीं पर गुड्डू बीमार है. नवमी की सुबह से ही उसे तेज बुखार जो आया तो उतरने का नाम नहीं ले रहा है, रह रह कर चौंक उठती है,बिट्टू को आवाजें लगती है. ..डाक्टर भी हैरान हैं उन्होंने आज उसे अस्पताल में भर्ती करने को कहा है..''
-''पर गुड्डू को अचानक हुआ क्या?''
वह मायूस होकर बोलीं-''उस दिन देवी के मंदिर पहुँच कर बिट्टू बीमार हो गया ,उसे ठण्ड लग गयी थी. ..रात में उसे लेकर मंदिर भी जाना था. पर वह तो ऐसा बेहोश हुआ क़ि डाक्टर बुलाना पड़ा. उसने बुखार कम करने की दवा दी. ..उधर पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी थीं, पंडितजी कई बार आवाज लगा चुके थे., ..पर बिट्टू तो बुखार में बेहोश पड़ा था...रात दो बजे के करीब उसकी देह ठंडी हो गयी.''..
मैं चौंकी -..अब बात कुछ कुछ मेरी समझ में आ रही थी. बिट्टू..पूजा..मंदिर..मैंने आगे जानना चाहा-मैं तो स्तब्ध थी----उन्होंने बताया क़ि फिर तो पूरे घर में मातम सा छा गया था ,पूजा के लिए लाया गया''नैवेद्य ''नहीं रहा ...जरुर..कोई अपशकुन या अनिष्ट होगा. परिवार में किसी होनी की आशंका से सभी दुखी थे. पैसे भी खर्च हुए थे वह भी व्यर्थ हो गए, पूजा भी नहीं हुई, ''
भोर होते ही नौकरों ने जब उसे उठाकर बाहर ले जाना चाहा तो एक धीमी सी कराह सुनाई दी,--''अरे, यह तो जिन्दा है, ..जिन्दा है..'' चिल्लाते हुए वे सभी दौड़े, पूरा घर इकठ्ठा हो गया --'' माँ की कृपा हुई है...अनिष्ट तल गया है, ..पूजा में कोई विघ्न नहीं आएगा, मंगल होगा ''पंडित जी सहित पूरा परिवार खुश था. मेरी सासू माँ बोली--'' अभी भोर के चार ही तो बजे हैं,.पूजा का समय निकला नहीं,''...फिर तो, डाक्टर की मदद से बुखार से पीड़ित मृतप्राय बिट्टू के ठीक होते ही ..नहला धुला कर ..गेंदे की माला पहना ..लाल टीका लगा कर मंदिर में बलि हेतु प्रस्तुत कर दिया गया. .......'पूजा संपन्न हो गयी''...पर दिन भर बिट्टू को खोजती गुड्डू को ऐसा सदमा लगा क़ि वाह न कुछ खाती ,पीती है,, न किसी से बात करती है, बस बुखार में बेहोश.. तपते शरीर से ''बिटु'..बिट्टू'' की रट लगा रही है'' वह चुप होकर आंसू पोंछने लगी थीं.....
.मैं सदमे की स्थिति में आ गई थी ---''तो क्या इस दोने में रखा प्रसाद -'' बिट्टू'' है?...मेरी आँखों से झर झर बहते आंसुओं के बीच प्रसाद मेरे हाथों से नीचे गिर गया था. आंखें आंसुओं से तर थीं.---'' माँ !.. तुम्हारी यह कैसी पूजा?...अपने ही संतान की मृत्यु तुम कैसे स्वीकारती हो ?..उस निरीह को म्रत्यु देकर फिर जीवन क्यों दिया? जब उसे छीनना ही था. यह कैसी अंध श्रद्धा है माँ? ..इसे क्या कहें?..जीवन या म्रत्यु?''
-------पद्मा मिश्रा
-पद्मा मिश्रा
एल.आई.जी-११४,आदित्यपुर-२
जमशेदपुर-१३, [झारखंड]
आत्म कथ्य---मेरी कहानियां जिन्दगी के आसपास साँसें लेती हैं. जीवन के सुख,दुःख, हर्ष विषाद प्रेम की सुन्दरतम अनुभूतियों का दर्पण बन समाज को सच दिखाना ही उनकी सार्थक अभिव्यक्ति है भटके हुए कदमों को उनके सपनों की राह तक पहुंचाना ,और संवेदना के एक नए क्षितिज का निर्माण करना मेरी कहानियों की सृजन यात्रा का पाथेय है. --पद्मा मिश्रा
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कह दी आपने स्वयं के बारे में, बहुत अच्छा लगा जानकर, कहानी सुन्दर है.
जवाब देंहटाएंसादर राकेश
www.ek-sapna.blogspot.com
bahut badhiya
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