कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 18 - विजय वर्मा की कहानी : नासिका छिद्रम

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---- रु. 12,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 अधिक जानकारी के लिए ...

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रु. 12,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012

अधिक जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

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नासिका -छिद्रम

विजय वर्मा

आज फिर छोटी बेटी ने हंगामा मचा रखा था . उसकी माँ ने नाक छेदने वाले को बुलाकर बैठा रखा था. उसकी माँ उसके पीछे-पीछे हाथ में नीम का खडिका लिए हुए और वह आगे-आगे भागती हुई. माँ की ज़िद कि वह बेटी के नाक की बंद होती हुई छिद्र को फिर से खुलवा कर ही रहेगी और उसकी ज़िद कि वह अपने नाक पर ऐसा कोई अत्याचार नहीं होने देगी. अजीब उधम मचा हुआ था. घर जो है वह दिन के सत्र समाप्ति के बाद विधान-सभा की जो स्थिति होती है वैसा नज़ारा पेश कर रहा था. दो साल पहले भी ऐसा ही महाभारत मचा था.

पहली बार जब उसका नाक छिदवाया गया था तब वह तीन साल की रही होगी. इस उम्र में टाफी एवं गुड़ की भेली का लालच ही काफी होता है. पर जब राम-मंदिर का मुद्दा दोबारा नहीं चला तो टाफी क्या चीज़ है. इसलिए टाफी -गुड वाली स्कीम फेल हो गयी.

जितनी तत्परता मेरी पत्नी बेटी के नासिका-छिद्र खुलवाने में दिखा रही थी, वैसी तत्परता यदि मेरे राज्य के नगर-विकास मंत्री बंद नाले खुलवाने और सड़क बनाने में दिखाते तो मेरा राज्य भी विकसित राज्यों की कतार में खड़ा होता.

खैर ,बात मेरी बेटी की हो रही है. वह तर्क पर तर्क पेश किये जा रही थी , कि आखिर वो नाक क्यों छिदवाये? उसका तर्क था ' क्या मै गाय-भैंस हूँ, कि मेरी नाक में छेद करके उसमें रस्सी डालना है?

मुझे नहीं मालूम कि मोहल्ले की गाय-भैसों को यह तुलना पसंद आती या नहीं ,या उन सबों की क्या प्रतिक्रिया होती. हो सकता था कि उनमें भी कुछ नवीन-चेतना का संचार होता,या अपने बंधन कटवाने के लिए आन्दोलनरत होती.

बेटी को समझाया गया कि तुम्हें नाक में रस्सी तो नहीं डलवानी है न, सिर्फ एक पतला टूथ-पिक जैसा नीम का खडिका ही डलवाना है न. और यह भी तो सोचो कि नाक में छिद्र रहेगा तब ही न आगे चल कर नाक में सुंदर सा नथिया पहन सकोगी. इसपर बेटी तमक कर बोली कि यह तो वही बात हुई कि वित्त-मंत्री ने बज़ट पेश करते समय कहा था कि 'यदि भारत को भविष्य में विकसित देशों कि श्रेणी में आना है तो आज करों के बोझ को बर्दाश्त करना ही पड़ेगा,'

पर मेरा सवाल यह है कि भविष्य में सुख भोगने  के लिए वर्तमान में दुःख क्यों भोगूँ ?

इसबार उसे समझाया गया --देखो ,पिंकी को देखो, चिंकी को देखो, मिस्सी को देखो, सोनी-सलोनी को देखो, तन्नु को देखो, रश्मि को देखो, मामी को देखो चाची को देखो सभी  ने तो नाक छिदवाया है ,फिर तुम्हीं को क्यों ऐतराज़ है.

उसका तर्क था कि जिसे भूख लगती है वही खाना खता है न. ऐसा तो नहीं है कि राम को भूख लगती है तो श्याम खाना खाता है, सीता को प्यास लगती है तो गीता पानी पीती है. उनलोगों को नाक छिदवाने का मन किया तो उनलोगों ने नाक छिदवाया ,जब मुझे मन नहीं कर रहा है, तो मैं क्यों छिद्वाऊँ ?

एक हल्का सा तर्क यह भी पेश किया गया कि अगर सब तुम्हारी तरह नाक-कान छिदवाना बंद कर दे तो इस बेचारे कि तो रोजी-रोटी ही छिन जायेगी. इसका जवाब कुछ इस तरह आया -'क्यों न हम इसे हर सप्ताह बुला ले और पूरे शरीर को धीरे-धीरे छिदवा ले ताकि इसकी रोजी-रोटी और अच्छी तरह से चलने लगे.

तर्क के तरकश जब खत्म होने लगते है तब बड़े अपने बड़े होने का अधिकार-रूपी ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते है और आज्ञा जारी कर देते है. तो ख़ुशी के लिए यह राजाज्ञा जारी कर दी गयी कि 'बहस मत करो,चुपचाप आओ और बैठ जाओ.'

ये तर्क-वितर्क सुनकर भी मैं अनसुना कर रहा था. मुझे डर सता रहा था कि यदि ये सवाल मुझसे होने लगे तो मैं क्या जवाब दूंगा. आखिर मैं कब तक बचता अब सवालों के गोले मेरी तरफ आने लगे.''पापा!आप बताईये कि लड़की का ही नाक छिदवाना क्यों ज़रूरी है? विशाल (उसका छोटा भाई) का तो नाक नहीं छिदवाया गया है. उसके शरीर के साथ तो कोई ज़बरदस्ती नहीं की गयी है. आपने तो नाक नहीं छिदवाया है पापा .'अपने नाक छिदवाने के ख्याल पर मुझे बेबसी-भरी हंसी आने लगी. इन सवालों ने मुझे बेचैन कर दिया,मुझे समझ में नहीं आ रहा था की आखिर क्या ज़वाब दूँ.

क्या मैं यह कह दूँ कि 'देखो बेटी! अगर तुम्हें पुरुष-प्रधान समाज में रहना है तो तुम्हें अपनी नाक छिद्वानी ही पड़ेगी, वर्ना कैसे किसी का वर्चस्व तुम पर बना रहेगा.'नहीं! नहीं! हकीक़त होते हुए भी मैं ऐसी कठोर बात नहीं कह सकता. भले ही मैं ज्यादा उदारवादी नहीं हूँ,पर उदार दिखने का ढोंग तो करता ही हूँ. आज उस छवि को कैसे ध्वस्त होने दूँ.

क्या उसे फुसलाते हुए यह कहूँ,'बेटी नारी का शरीर भगवान् की बनायी हुई एक सुंदर कृति है और उसे सुंदर बनाए रखना नारी का कर्त्तव्य है.'  पर डरता हूँ कि जवाब कहीं ऐसा नहीं आ जाये--'लोग भगवान् की बनायी हुई कृति को जैसा है वैसा  ही क्यों नहीं रहने देते .क्या भगवान् की बनायी हुई कृति में आदमी को अपनी कलाकृति दिखाना जरूरी है?
यानी प्रश्न अपने मूलरूप में यही था कि किसी व्यक्ति का अपने शरीर पर कितना हक है,उसका हक ज्यादा है या समाज या समाज में प्रचलित रिवाजों का ?

खैर बिना कोई दार्शनिक-वाक्यों का प्रयोग किये मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि बेटी--माँ की बात माननी चाहिए. तुरंत सवाल दगा गया--'क्या माँ की हर बात माननी चाहिए? 

''किसी की बात मानने से अगर समाज का कुछ नुकसान नहीं होता है तो उसे मानने में हर्ज़ क्या है?''मैंने कहा.

तुरंत बोल पड़ी ,''लेकिन मेरे नाक छिदवाने से समाज का भला भी क्या होने वाला है? क्या मेरी नाक कटने के बाद ही समाज की नाक बची रह सकती है?क्या ऐसा नहीं हो सकता की मेरी नाक भी नहीं कटे और समाज की नाक भी बची रहे ? 

अब उसकी लड़ाई में उसकी बड़ी बहन मिस्सी भी कूद पड़ी थी. पापा! कैसी है यह दुनिया ,जब राम और सीता दोनों अकेले रहे थे तो अग्नि-परीक्षा सिर्फ सीता को ही क्यों देना पड़ा? मैंने कहा 'यह तो तुम फ़िल्मी सवाल ले आयी. पर वह कहाँ मानने वाली थी,तुरंत ही बोल पड़ी कि सवाल फ़िल्मी हो या साहित्यिक जवाब तो संतोषजनक आजतक नहीं मिला. मैंने समझाने कि कोशिश की ''राजा को प्रजा के सम्मुख अपनी छवि स्वच्छ रखनी चाहिए और राज्य में किसी तरह का असंतोष नहीं पनपने देना चाहिए.''
तो क्या पुरुष को अपनी छवि स्वच्छ रखने के लिए अकारण ही नारी का बलिदान कर देना चाहिए? उसका सवाल था. मैंने समझाया कि यह तो लम्बी बहस का विषय है ,इसपर कभी बाद में चर्चा कर लेना.
अब दोनों एक अलग ही मुद्दा लेकर हाज़िर हो गयी,''ठीक है आप इतना ही बता दीजिये कि शादी में कन्या-दान क्यों होता है,वर दान क्यों नहीं होता? क्या कन्यायें सोने-चांदी का सिक्का है ,वस्त्र है,फूल-फल है या अन्य कोई निर्जीव पदार्थ है कि इसे किसी को दान में दे दी जाए.

इतने तर्क-वितर्क का फायदा इतना हुआ कि नाक छेदने वाला कोई काम मिलता नहीं देखकर उठकर चला गया और मुझे फायदा यह हुआ कि
तुरंत जवाब देने की मुसीबत से बच गया. लेकिन मै जनता हूँ ,यह सवाल फिर सर उठाएगा .अगर आपको कोई जवाब सूझे तो कृपया मुझे इस पते पर जवाब दे.

vijayvermavijay560@gmail.com

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v k verma,sr.chemist,D.V.C.,BTPS

BOKARO THERMAL,BOKARO
vijayvermavijay560@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. Kab woh samay aayega jab hum ladke aur ladkiyon men bhed karna chodenge.Yeh sare bandhan Purushon ke dwara hi banaye gayen haen.in ke peeche koi Vaigyanik tark ho to bat samajh aati hae anyatha dhakosala hae yeh sab

    जवाब देंहटाएं
  2. pratrikriya ke liye dhanyawaad dr.mahendrag sahab.

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 18 - विजय वर्मा की कहानी : नासिका छिद्रम
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 18 - विजय वर्मा की कहानी : नासिका छिद्रम
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