--------------------------------------------------------------------------------------- रु. 12,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोज...
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रु. 12,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012
अधिक जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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"ओफ्फोह! छोड़ो भी न ये अख़बार अब ! हमेशा इसके चक्कर में चाय ठंडी करते हो!" हर दिन की तरह, सुबह-सुबह की ये सुरीली, मीठी, प्यार भरी फटकार सुनकर, राज ने चेहरे के सामने से अख़बार हटाकर देखा....! निशा सफेद गाउन में सामने, मेज़ के दूसरी ओर, अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठी हुई मुस्कुरा रही थी ! कितनी सुंदर लग रही थी वो ! उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर दिखाई दे रहा था ! राज को निशा सफेद कपड़ों में बहुत अच्छी लगती थे ! सफेद रंग उसपर बहुत खिलता था ! कुछ पलों तक राज उसे मंत्रमुग्ध हो देखता ही रहा !
निशा, राज की पत्नी थी ! राज और निशा की अपनी कोई औलाद नहीं थी ! कहने को तो उन दोनों के और भी रिश्तेदार थे...मगर सब दूर के ! इस घर में राज और निशा के अलावा, उनके यहाँ काम करने वाला गोपाल और उनका प्यारा पालतू कुत्ता टॉमी था ! इन चारों की अपनी... एक अलग ही प्यारभरी दुनिया थी !
"अब इस तरह देख क्या रहे हो मुझे? क्या पहले कभी देखा नहीं ?" निशा ने अपने दोनों हाथों को अपनी ठोडी के नीचे रखकर, इठलाते हुए पूछा !
राज हल्के से मुस्कुरा दिया ! अचानक उसका ध्यान निशा की आँखों की तरफ गया, जिनके चारों तरफ हल्की सूजन सी थी !
" क्या बात है ? फिर रात में ठीक से सो नहीं पाईं क्या ?" राज ने निशा से पूछा !
इसपर निशा हौले से मुस्कुरा कर बोली, " नहीं तो ! मुझे तो रात बहुत ही अच्छी नींद आई, बहुत गहरी....और इतनी सुक़ून भरी...कि बता नहीं सकती ! "
"अच्छा चलो ! चाय पियो जल्दी से, नहीं तो ठंडी हो जाएगी !" निशा ने फिर प्यार भरे अंदाज़ झिड़की दी !
"ये तो ठंडी हो ही गयी ", राज ने बच्चे की तरह डरने का नाटक करते हुए कहा..., "गरम कर दो ना ज़रा ! "
"माइक्रोवेव में कर लो ना प्लीज़ ! तुम्हारे चक्कर में मेरी चाय भी ठंडी हो जाती है!" निशा ने अपनी चाय का कप उठाते हुए, दिखावटी उलाहने भरे स्वर में कहा !
"नहीं ! तुम करो ! मुझे नहीं आता ये सब!" बोला राज !
"उफ्फ ! तुम भी ना ! ज़रा से काम में आलस करते हो ! २ बटन दबाओ , और चाय गरम !" निशा ने राज को समझाना चाहा...
"नहीं ना ! तुम ही करो !" राज कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था, हमेशा की तरह...!
इसपर निशा हंसकर बोली, "मेरे प्रिय पति परमेश्वर ! अभी भी वक़्त है, सीख लो ! कल को मैं नहीं रही अगर , तो क्या ठंडी चाय पियोगे...? या फिर मुझे ऊपर से आना पड़ेगा ,तुम्हारी चाय गरम करने ? तुम तो ना, वहाँ भी मुझे चैन से चाय नहीं पीने दोगे !"
" ठीक है ! तब मैं ठंडी चाय ही पी लूँगा...!" राज ने भी हँसकर बात टाली, "फिलहाल तो तुम गरम करो !"
मुस्कुराते हुए... निशा राज की चाय गरम करने के लिए उठ गयी और राज फिर अख़बार पढ़ने में मगन हो गया !
"चाय साहब !" आवाज़ सुनकर, राज ने चौंककर अख़बार से नज़रें हटाकर देखा ! सामने गोपाल खड़ा था !
"तुम?" राज के मुँह से निकला ! राज हैरान सा, कुछ समय तक उसको देखता ही रह गया ! गोपाल राज और निशा के यहाँ पिछले १२ सालों से काम कर रहा था !
गोपाल बोला, ""जी साहब ! क्या हुआ ? चाय पी लीजिए, नहीं तो ठंडी हो जाएगी !"
राज ने डाइनिंग टॅबेल की दूसरी ओर देखा...., वहाँ कोई नहीं था...! मगर अभी अभी तो....राज परेशान सा होकर इधर उधर देखने लगा, जैसे किसी को ढूँढ रहा हो...! अनायास ही वो बुदबुदा उठा...."वो निशा..." ! मगर गोपाल को शायद उसकी बुदबुदाहट सुनाई नहीं दी !
गोपाल बोला, "मैं ज़रा टॉमी को देखने गया था ! उसने इतने दिनों से कुछ खाया नहीं था ना...! ये जानवर बेचारे, बोल नहीं सकते मगर इस तरह अपना दुख जता देते हैं ! टॉमी को मेमसाहब के हाथों से खाना खाने की आदत थी ना साहब....."
अचानक गोपाल को लगा, ऐसी बात करने के लिए ये वक़्त सही नहीं है ! इसलिए उसने बीच में अपनी ही बात काट कर कहा, "मगर आप चिंता मत करिएगा , अभी मैं देखकर आया हूँ..., आज टॉमी ने खाना खा लिया..!" फिर बात बदलने के इरादे से उसने कहा , "आपकी चाय मैनें यहीं रख दी थी, आपको बताकर तो गया था ! आप अख़बार पढ़ रहे थे, शायद सुना नहीं होगा ! लाइए ! मैं फिर से गरम कर देता हूँ !" कहकर गोपाल ने चाय का कप उठाया..."अरे साहब ! चाय तो गरम है, लगता है आपने खुद गरम कर ली ! मैं बस आ ही रहा था, आपने क्यों तक़लीफ़ की ?" गोपाल ने जैसे शर्मिंदा होकर कहा !
राज पर तो जैसे एकदम सन्नाटा सा छा गया था ! उसके मुँह से कोई शब्द ही नहीं फूटा ! उसे लगा, जैसे...अचानक किसी ने उसे एक सुंदर सपने से जगा दिया हो... !
गोपाल से राज की हालत देखी नहीं गयी ! उसने हमदर्दी भरी निगाह से अपने साहब की ओर देखा, और धीमी आवाज़ में कहा , " और हाँ साहब ! पंडित जी को बोल दिया है, ११ बजे तक आ जाएँगे...., वो मेमसाहब के शांति हवन के लिए...... "
गोपाल बीच में ही चुप हो गया ! उसकी आँखों में आँसू भर आए थे ...जिनमें अपनी निशा मेमसाहब के लिए दर्द भरी याद झलक रही थी...! उसकी स्नेहमयी निशा मेमसाहब, जिनकी कुछ ही दिनों पहले, अचानक, 'सर्वाइकल कैंसर' से मृत्यु हो गयी थी !
उन चारों की प्यारी सी, छोटी सी दुनिया...निशा के जाने बाद बाद बिखर सी गयी ! निशा की बीमारी का जब तक कुछ पता चलता...वो लाइलाज हो चुकी थी ! उसकी इस आकस्मिक मृत्यु का राज और गोपाल के साथ साथ टॉमी पर भी बहुत गहरा और दुखद असर हुआ था ! सब एकदम टूट से गये थे...! गोपाल को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करके अपने साहब का ध्यान बँटाए...!
और राज ! उसको तो जैसे...न कुछ दिखाई दे रहा था, न सुनाई ही दे रहा था...! वो एकटक , गुमसुम सा बस....अपने सामने वाली कुर्सी को निहारे जा रहा था, जो उसकी आँखों में आए आँसुओं की झिलमिल दीवार में धुँधला सी गयी थी......और उसके कानों में निशा की खिलखिलाहट भरी आवाज़ गूँज रही थी...." सोच लो ! मैं इतनी आसानी से तुम्हारा साथ छोड़ने वाली नहीं हूँ...! ये फेविकोल का नहीं....मेरे प्यार का अटूट जोड़ है ! मर भी गयी....तो तुम्हारे आस-पास ही रहूँगी......"
Marmik,dil ko chuti hue kahani
जवाब देंहटाएंdr.mahendrag ji...बहुत बहुत शुक्रिया..व आभार !!!:)
हटाएंमार्मिक मनोभावों को कुशलता से उकेरा है, वाह !!!
जवाब देंहटाएंअरुण कुमार निगम जी...बहुत बहुत धन्यवाद !:)
हटाएंबहुत मार्मिक प्रस्तुति .... कहानी पाठक के मन को छूने में सफल रही है ।
जवाब देंहटाएंYashwant ji...बहुत बहुत शुक्रिया..व आभार !:)
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरूप जी...प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !:-)
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी कथा...
जवाब देंहटाएंसादर।
S.M. HABIB Sahab, आपका बहुत बहुत धन्यवाद !:-)
हटाएंखुबसूरत और मार्मिक कहानी
जवाब देंहटाएंRamakant Singh ji...आपका बहुत बहुत धन्यवाद !:)
हटाएंबहुत ही सुन्दर एवं मार्मिक रचना सच में दिल को झकझोर दिया और किसी की याद दिला दी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर एवं मार्मिक रचना सच में दिल को झकझोर दिया और किसी की याद दिला दी
जवाब देंहटाएंनील सिंह जी....कहानी पसंद करने के लिए दिल से धन्यवाद! :)
हटाएंआशा करती हूँ, उस याद से आपका आपका दिल न दुखा हो... :(
बहुत सुन्दर कहानी, कहानी की सारी विधाओं के बेहद नजदीक, प्रारम्भ सामान्य, मध्य उत्सुकता को जन्म देने वाला एवं अंत सवेदनाओ के चरम शिखर को स्पर्श करता शब्दहीन कर देने वाला.
जवाब देंहटाएंबधाई
सादर
राकेश
राकेश कुमार जी....आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!:)
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