-- प्रीत अरोड़ा की कविता फरियाद आजादी के इस पावन अवसर पर आइए सुनते हैं इनकी फरियाद चीख-चीखकर ये भी कह रहे हैं आखिर हम हैं कितने आजाद...
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प्रीत अरोड़ा की कविता
फरियाद
आजादी के इस पावन अवसर पर
आइए सुनते हैं इनकी फरियाद
चीख-चीखकर ये भी कह रहे हैं
आखिर हम हैं कितने आजाद
पहली बारी उस मासूम लड़के की
जो भुखमरी से ग्रस्त होकर
न जाने हररोज कितने अपराध कर ड़ालता है
दूसरी बारी उस अबला नारी की
जो आए दिन दहेज़ के लोभियों द्वारा
सरेआम दहन कर दी जाती है
तीसरी बारी उस बच्चे की
जो शिक्षा के अधिकार से वंचित
अज्ञानता के गर्त में गिरा दिया जाता है
चौथी बारी उस बुजुर्ग की
जो अपने ही घर से वंचित होकर
वृद्धा आश्रम में धकेल दिया जाता है
पाँचवीं बारी उस मजदूर की
जो ठेकेदार की तानाशाही से
ताउम्र गरीबी झेलता है
छठी बारी उस जनता की
जो नेताओं की दादागिरी के कारण
मँहगाई की मार सहती है
तो आओ,हम सब इनकी फरियाद सुनकर
एक मुहिम चलाएँ
सही मायनों में आजादी का अधिकार
इन्हें दिलाएं
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पद्मा मिश्रा की कविताएं
राष्ट्र ध्वज के प्रति,,,,''[1]
भारत के गौरव-दीप,जाग्रति के नव स्वर,
है नमन तुम्हें ओ राष्ट्र ध्वजा उन्नत भास्कर.
सागर की लहराती लहरों के नर्तन पर,
तुम अडिग हिमालय से ,अखंड एकता -शिखर.
जन-मन की आशाओं के कोमल भाव सुमन,
तुमने ही दिया विश्व को नव जीवन-दर्शन
जो तीन रंग में लहराता वैभव तेरा,
है स्नेह सुधा सिंचित भारत की पुण्य धरा.
अभिमान शहीदों की बलिदानी गाथा. ,
केशर रंजित तव, उन्नत करते हो माथा.
लहराती हरियाली खेतों की सीमा पर,
गुन गुन गाती समृद्धि, शक्ति के गीत प्रखर.
वह सत्य अहिंसा प्रतिबिंबित तेरे पट पर,
तुम शांति दूत ,सादगी, प्रेम के जीवित स्वर,
इतिहास, सभ्यता का करते हो अभिनन्दन,
है चक्र सुदर्शन करता सबका दिग्दर्शन.
है गूंज रहा सब और समीरण के रथ पर,
जन-गण-मन अधिनायक जय हे!'' दीपित स्वर.
तुम अमर,समय के पथ पर, तेरा ही वंदन,
हे क्रांति-दीप!,तव अभिनन्दन, चिर अभिनन्दन.
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कारगिल दिवस पर कविता -
''उन अनाम- शहीदों के नाम ''[2]
आग, बारूद ,धुंए से किये होंगे रोशन ,
तुमने कुर्बानियों के दीप जलाये होंगे,
आज हमने भी मनाई है यहाँ दीवाली ,
आज हम भी तुम्हे याद तो आये होंगे.
याद होगी तुम्हे बाबा की वो भींगी आँखें,
माँ के आँचल को भी तरसा होगा ये तन-मन,
अबकी बरसात में टूटे हुए घर की छत से ,
बूंदें पानी की तुम्हे याद तो आई होंगी .
याद होगी प्रिय की सिंदूरी वो बिंदिया ,
गूंज उन चूड़ियों की तुमनेभी सुनी होगी.
चुपके चुपके से कभी बर्फ के बिछौनो पर ,
एक अहसास भरी रेशमी छुआन होगी.
याद होगा तुम्हे वो प्यार भरा वादा भी,
अपने नन्हे से कभी तुमने जो किया होगा,
एक बंदूक और ढेर से खिलौनों की,
चाह मासूम कभी याद तो आई होगी.
मेरे वतन की उंची आन पर मिटने वालो,
सारा जहाँ तुम्हारे सामने झुक जायेगा,
हमें कारगिल कीउस पुण्य सी धरती की कसम,
ये तिरंगा वहां शान से लहराएगा.
देश वाले मनाएंगे यहाँ दीवाली भी,
और शहीदों के नमन में झुकी आँखें होंगी.
अपने कन्धों पे उठाएगा तुम्हे सारा जहाँ,
तेरे स्वागत में खुली देश की बाहें होंगी.
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[3] कर्म पथ पर...
हों आँखों में सपने उमंगों भरा मन,
कदमों में दृढ़ता तो आकाश क्या है?
जो चाहत हो मंजिल को पाने की मन में,
हों कितनी भी बाधाएं,परवाह क्या है?
उड़ो मुक्त पंछी सा नीले गगन में,
हर एक भावना को खुला आसमा दो,
सिमट जायेंगी दूरियां एक पल में ,
जो सपनों को अपने प्यार की जुबान दो,
हवाओं के रुख को जो पहचान पाओ,
न देखो की मौसम का अंदाज़ क्या है?
चुनौती समयकी जो स्वीकार कर लो,
तभी बन सकेगी कोई कहानी,
थके हारे कदमों से मंजिल न मिलती,
न मिलती कभी जिन्दगी में रवानी,
नियति की घटाएं उमड़ती रहेंगी,
जो तूफ़ान से डर जाए,परवाज़ क्या है?
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धरती की पाती 'सुनीता विलियम्स के नाम ''[4]
कैसा लगता होगा,
ऊपर ..नीले विस्तार की गहराईयों में,
जहाँ पांवो के नीचे -
जमीन भी नहीं,
लड़खड़ाये तो बाहें थामने वाला ,
सहारा भी नहीं,
सिर्फ अंधकार ही अंधकार ,
और उसमे टिमटिमाता ..
सितारों का सौंदर्य..
जैसे अँधेरे में चमकते उम्मीदों के चिराग..
दूर...मीलों दूर.. छूट गयी है जिन्दगी,
हरियाली ,..सपने..,भावनाएं.,
रिश्तों के प्यार में डूबे,..
संवेदनाओं के पल..,
क्या कभी याद आयेंगे?
दिल की धडकनों में पनाह मांगती ,
वो कोमल भावनाएं,
कभी रुलायेंगी नहीं तुम्हें?
उंचाईयों को छू पाने की चाहत,
इतनी बड़ी मत करना,
क़ि उस शून्य के विस्तार में ..
भावनाएं भी शून्य हो जाएँ,
भूलो नहीं.. तुम्हे लौटना है..,
अपनी धरतीमाँ के आँचल में,
अपनों के बीच,सपनो की छाँव में,
जहाँ संघर्ष तो है पर प्यार भी है,
जहन दिलों के विस्तार में ,असीमित प्यार..
स्नेह भरी शुभकामनायें हैं,
..शून्य नहीं..,
हारना नहीं..डरना नहीं,
पल पल तुम्हारे लौटने की उम्मीदें है लिए ..
यह धरती, पुकारती है तुम्हे,
तुम्हे लौटना है.. प्यारी सुनीता..शुभकामनायें .
-मातृभूमि वंदना ---
कोटि कोटि कंठों से मुखरित
मातु तुम्हारी चरण वन्दना
राष्ट्रगान बन गुंजित नभ-तल ,
देश प्रेम की मधुर भावना.
बनूँ जागरण-गीत ,मातु ऐसा वर देना.
भूख,गरीबी,संघर्षों केविकट निशाचर,
घूम रहे चहुँ ओर,शष्यश्यामला धरा पर
अपने हाथों में कलम थाम,अक्षर-योद्धा,
जब लिख देंगे श्रम गान ,अभावों के पट पर,
मै सृजन सूर्य बन जागूं ,मातु इतना वर देना.
शब्द शब्द बन ज्योति प्रखर,
जागे शिखरों पर,
शत शत दीप जले, भारत माँ के चरणों पर,
मै विरल दीपबन जलूं ,मातु इतना कर देना.
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मीनाक्षी भालेराव की देशभक्ति की कविताएँ
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१५ अगस्त
जब-जब पन्द्रह अगस्त आता है !
मन आंगन में रस बरसाता है
मन में नये अहसास नई
उमंगें जगाता है,
वीरों के गुणगान गाता है
जब-जब वीर रस बरसता है !
तब-तब जीवन फिर
मधुमास बन जाता है !
प्रतिध्वनियों सा बज कर
सोये वीरों को जगाता है !
भारत माँ की शान मै ,
जीना-मरना सिखलाता है
वीरों का कोलाहल मन मै
देश प्रेम जगाता है !
हिन्दू-मुस्लिम ,सिख, ईसाई,
होने का भ्रम मिटाता है !
जब-जब पन्द्रह अगस्त आता है
मन आंगन में रस बरसाता है !
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हम बच्चे
हम बच्चे मतवाले हैं
हम चाँद को छूने वाले हैं !
जो हम से टकराएगा ,
कभी ना वो बच पाएगा !
हम भारत माता के प्यारे
देश के राज दुलारे हैं ,
आजादी के रखवाले हम
नये युग का आगाज हम
देश का नाम सदा करेंगे !
तिरंगे की शान रखेंगे
अपना जीवन हम सब
देश के नाम करेंगे !
हम बच्चे मतवाले है
हम चाँद को छूने वाले हैं !
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देश के जवानों
देश के जवानों आज ये बताओ
कौन है कहाँ है, देश के सितारे !
आज हर तरफ आंधियां चल रही है
माँ भारती हर तरफ जल रही है !
जो अपने लहू से सींच कर गये
माँ भारती के घायल दामन को ,
क्यों भूल गये हम उन वीर जवानों को
हर युग के पहरेदारों को
आज फिर वक्त की ललकार यही है
कोई बन जाओ सुभाष कोई नेहरु
पढाओ देश को शान्ति का पाठ ,
बनाओ गांधी के सपनों का संसार !
आज माँ के पुत्र ही माँ के शत्रु हो गये
कोई हिन्दू कोई सिख कोई ईसाई हो गये
क्यों भूल गये हम उनका बलिदान ,
जान-जहान कर गये जो हम पर कुर्बान
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मेरा वतन
ये है मेरा वतन मेरा वतन !
ख़ुशियाली का हरियाली का
इसे ना यूँ वीरान बनाओ ओ नई फसल
आंधियों में घिरा तूफानों से टकराया !
फिर भी रहा मिसाल मेरा वतन
जलता रहा पिसता रहा पर फिर भी
औरों को सहारा देता रहा मेरा वतन !
अब क्यों अपनों ने बर्बाद किया मेरा वतन
मिट्टी की की खुशबु में वीरता से आबाद रहा
आज क्यों वीरों से वीरान है मेरा वतन
अँधेरा हो उजियारा हो सदा जगमगाता रहा
जहां को नई दिशा देता रहा मेरा वतन !
भारत नहीं है टुकड़ों में बंटी धरती का नाम
यह सम्पूर्णता का नाम मेरा वतन !
जहां में कई होंगे महानों में महान देश
फिर भी हर रास्ट्र मानता है महान है मेरा वतन !
भटकते आते हैं लोग कहाँ कहाँ से
सभी को अपना बनाता है मेरा वतन
तिरंगा यूँ ही नहीं लहराता आसमान पर
दूर देशो में भी पूजा जाता है मेरा वतन !
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शशांक मिश्र भारती की कविता
अब और बहा नहीं पायेंगे
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यदि कोई बलिदानी आया
हम खून कहां से लायेंगे
बहुत बहाया करगिल में
अब और बहा नहीं पायेंगे
कुर्सी की खातिर खून चूसती
रागिनियां कब तक गायेंगे
आलस की हमने ओढ़ी चुनरी
अवतारी बन कोई आयेंगे
पाषाण हृदयी हो गए सब
भाई को भाई न भाता है,
घर-परिवार बने दंगल हैं
बाहर बालों से अच्छा नाता है
आडम्बरों ने डेरा जमाया है
श्रद्धा गई है घास चरने को
मंडरायी क्लीवता की छाया
निगलने को पड़ोसी भूमि को
देश की सभी दिशायें जल रहीं
न कश्मीर में कस्तूरी महकती है
हिंसा-अलगाव भ्रष्टाचार बढ़ा
चतुर्दिक फैली आग दहकती है
देश हित खून दिया जिन्होंने
हम उनको क्या भुला पायेंगे
बहुत बहाया करगिल में
अब और बहा नहीं पायेंगे॥
shashank.misra73@rediffmail.com
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संजीव कुरलिया की कविताएं
आज़ाद माँ के सपूत, नसों में गर्क हो रहे हैं ,
अँधेरे में घिर चुके जो, उन्हें रौशनी दिखा दे !
वतन की खातिर, ख़ुशी से जान भी दे दें ,
आन सलामत रहे वतन की, एहसास दिलादे !
नारी मेरे वतन की, सीता भी है, झांसी भी ,
बस बेगानी सभ्यता से, थोडा सा बचा दे !
चाँद को छूने वाला दिल, क्या नहीं कर सकता,
मेरे हर भारत वासी को, नित नया हौसला दे !
हम हैं हिन्दुस्तानी, हमारी शान हिन्दुस्तान ,
हमारी आन है तिरंगा, हर जान को सिखा दे
'कुरालीया ' क़र्ज़, इस धरती का चुकाना लाजिम है ,
बची हर सांस अपनी, बस राह में वतन की लगा दे !
वतन से प्यार का ज़ज्बा, हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली, रग रग में जला दे !
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आदिल रशीद तिलहरी की कविता
अपने देश पर ध्यान दें
बेड़ियाँ गुलामी की क्या यूं ही काट पाए थे
अनगिनत ही शीश मातृभूमि पे चढ़ाये थे
अब हमारा फ़र्ज़ है के अपना योगदान दें
सिर्फ अपने देश के विकास पर ही ध्यान दें
स्वतंत्र अपना देश हो ये हर किसी का ख्वाब था
गांधी नेहरु बोस लोकमान्य का ख़िताब था
देश जो आहुति मांगे जान की, तो जान दें
सिर्फ अपने देश के विकास पर ही ध्यान दें
हिन्दू हैं मुसलमां हैं के सिख हैं के ईसाई हैं
हिंद के हैं वासी जितने सारे भाई भाई हैं
भेद भाव धर्म जात अब न इन पे कान दें
सिर्फ अपने देश के विकास पर ही ध्यान दें
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AADIL RASHEED TILHARI
F-53/1 shaheen bagh new delhi -110025
aadilrasheedtilhari@gmail.com
sabse pahle aapko svatantrata divas ki hardik shubhkaman ...sabhi kavitayen desh prem ki pavitra bhavna se paripurn hain sabhi rachnakaron ko shat shat badhaee ----padma mishra
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मुझे यहाँ मंच दिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मुझे मंच देने के लिए.अन्य रचनाकारों की रचनाएँ बहुत बहुत अच्छी लगी.बधाई
जवाब देंहटाएं"पंद्रह अगस्त "
जवाब देंहटाएंदिन भर सब चिल्लाते हैं ,
पंद्रह अगस्त मनाते हैं ?
तानाशाही -ठीकेदार ,
लोगों को तड़पाते हैं !
भला बताओ तुम्हीं आज ,
आजादी को लाये हैं !!
सत्य अहिंसा प्रतिबिंब बने ,
रक्तित लास दिखाए हैं |
शांति- दूत और सादगी,
संसद -देखे जाते हों ?
जन-गण-मन अधिनायक,
सभ्यता में खो जाते हों ?
हरियाली खेतों की सारी,
नील गाय चर जाते हों ?|
संघर्ष को करने वाले ,
मालाएं माँ चढाते हो !
धरती के उन वीरों को ,
भूल कभी न पाते हो |
देश प्रेम सद्भाव अमर -
सृजन और श्रृंगार अमर !
आंगन में रस बरसाते हो ,
माला फूल चढाते हो |
देश पे मरने वाले वीर ,
वन्देमातरम गाते हो |
रे! आजादी के रखवाले,
तिरंगा हम लहराते हों |
चाँद को छूने वाले हों ?
देश -शान बढाते हों ||
My best wishes for such a great e patrika.you are publishing great efforts of new comers in the world of writers
जवाब देंहटाएंमधुरक्षी मीनाक्षी जी आपको हृदय से अभिनंदन आभार आपने मेरी रचना "पन्द्रह अगस्त " को अपने ब्लॉग पर प्रहाषित किया है |
हटाएंहमें पढने हेतु अथवा रचना के प्रकाशन के लिए google+sukhmangal अथवा e mail-sukhmangal@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है |धन्यवाद !
सोचता हूं सभी राष्ट्र भक्तों को दूं मैं बधाई
जवाब देंहटाएंजो भी देश को कर रहे हों हलकान उन्हे ही
करनी होगी सरकार को समाज देश कढाई
मनमानी करते हुये लोगों पर कठिन हो कडाई
देश को बढाने के लिये पास्को की हो चढाई।