स्तुति परन - बनारस के तबले की एक प्रमुख रचना 'स्तुति' संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - अपने आराध्य की वंदना या ...
स्तुति परन - बनारस के तबले की एक प्रमुख रचना
'स्तुति' संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - अपने आराध्य की वंदना या प्रशंसा। बनारस घराना के उत्थान के समय बनारस हिन्दुओं का एकमात्र घराना था, बाकी पाँचों घराने मुस्लिम कलाकारों के थे। वर्तमान में तो हर घराने में हर जाति, धर्म के वादक हैं - अतः स्तुति परनों का वादन बनारस घराने की एक उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण विशेषता मानी गयी।
बनारस शुरू से ही कथक नृत्य का एक प्रधान केन्द्र था। पं. रामसहायजी की परम्परा में भी कथक नृत्य की कला थी और बनारस का तबला भी शुरू से ही पखावज से भी प्रभावित रहा है। चूँकि कथक और पखावज में स्तुति परन बजते हैं, अतः बनारस के तबले में भी स्तुति परनों का समावेश हुआ। नृत्यकारों एवं पखावज वादकों की ऐसी रचनाओं से प्रेरणा लेकर बनारस घराने के तबला वादकों ने स्तुति परनों के वादन की दिशा में तबले पर एक नवीन और महत्वपूर्ण प्रयास किया तथा स्तुति परनों की स्वतंत्र रचनाएँ की। परन्तु कथक नृत्य, पखावज और बनारस के तबले में बजने वाली स्तुति परनें एक-दूसरे से भिन्न होती हैं, और इनकी भिन्नता स्पष्ट सुनाई पड़ती है। इनकी मुख्य भिन्नता इनमें प्रयुक्त बोलों के संयोजन की है। कथक नृत्य के स्तुति परनों में कथक के बोलों की प्रधानता, पखावज में बजने वाले स्तुति परनों में पखावज के बोलों की प्रधानता होती है। चूँकि बनारस का तबला पखावज से अधिक प्रभावित है, अतः यहाँ के स्तुति परनों में तबले के बोलों के साथ-साथ पखावज के बोल भी होते हैं। नृत्य में प्रस्तुत किये जाने वाले स्तुति परनों में जहाँ लास्यात्मक भाव की प्रधानता होती है, वहीं तबले पर बजने वाली स्तुति परनों में जोरदारी और गम्भीरता। स्तुति परनें छंदबद्ध ही होती हैं। स्तुति परनों में साहित्यिक शब्दों, देवी-देवताओं के नाम, चारित्रिक गुणों, तथा उनकी लीला सम्बन्धी वर्णन तबला-पखावज के बोलों के साथ गुँथा हुआ होता है।
प्रस्तुत स्तुति परन में गणेष भगवान की स्तुति की गई। इस परन को देष के प्रख्यात कलाकार पद्मविभूषण स्व. पं. किषन महाराज बहुत मार्मिक ढंग से बजाते थे।
गणेष स्तुति परन - तीनताल
गणाऽना ऽमगण पतिगणे ऽशलम्ऽ
बोऽदर सोऽहेऽ भुजाऽचा ऽरएक
दऽन्तचं ऽद्रमाऽ ललाऽट राऽजेऽ
ब्रऽह्मा विष्णुम हेऽषता ऽलदेऽ
ध्रुवपद गाऽवेंऽ अतिविचि ऽत्रगण
नाऽथआ ऽजमिर दंऽगब जाऽवेंऽ
धटधरा ऽनधिर धिरक्रधा ऽनदिन
दिनदिन नागेनागे नागेधिन धिनतिन
तिनताके नानातदि गनध्रिग ध्रिगदिन
दिनदिना गेदिनागे ताऽक्रधा ऽनकिटतक
धराऽन तराऽन धाऽकिटतक धराऽन
तराऽन धाऽकिटतक धराऽन तराऽन धा
प्रस्तुत स्तुति परन बनारस के तबला विद्वान पं. कण्ठे महाराजजी द्वारा रचित है। इस परन में हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं की वन्दना की गई है।
देव स्तुति परन - तीनताल
ओईम्धा नर्मलधा नामधा रामधा
श्यामधा नारायणधा माधोधागोवि ऽन्दधागिरधर
भैरवधाषिव धागणेषधा काली-लक्ष्मी सरस्वतीधा
दुर्गाहनुमा ऽनब्रह्माधा इंद्रधाइं द्रधाइंद्र धा
प्रस्तुत पावस परन तीनताल में निबद्ध है। विद्वानों के मतानुसार यह मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में बजाई जाती है। इसमें बरसात के समय बादल, बिजली आदि का वर्णन है।
पावस परन - तीनताल
तड़ित तड़तड़ घेतेटे घेघेतेटे
धगिन क्ड़ाँऽतूना कतेटे धाऽघह
राऽत बिऽजुघ टाऽन धननन
धाऽत धननन धाऽत धननन धा
षिव स्तोत्र ताल परन - धमार ताल
जयकै लासी अविनाऽ शीऽसुखाँ राषी ।
सदाऽर हेऽगंऽ । गाऽतट काषी खाऽतभं ।
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ऽगवृष भसंग शीऽषगं ऽगषिव ।
शंकर धाऽषं करधाऽ शंकर धाऽ ।
शंकर धाऽषं । करधाऽ शंकर धाऽ ।
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शंकर धाऽषं करधाऽ शंकर । क
स्तुति परन को बोल परन भी कहा जाता है। इसमें देवी तथा देवताओं के नामों या लीलाओं का सरस, काव्यमय तथा लयबद्ध वर्णन होता है। ऐसे परन, जिनमें पखावज तथा नृत्य के बोलों के साथ साहित्य के बोल भी प्रयुक्त होते हैं, उन्हें नृत्य की परिभाषा में प्रमिलू या परमेलू बोल-परन कहते हैं।
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डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी
डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी का जन्म वाराणसी में हुआ। तबले की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता स्व. राजेन्द्र तिवारी से प्राप्त करने के पश्चात् डॉ. शिवेन्द्र गुरू-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत बनारस घराने के तबला विद्वान पं. छोटेलाल मिश्रजी से विधिवत् एवं दीर्घकालीन तबला वादन की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। संगीत एवं मंच कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (वाराणसी) से स्नातकोत्तर परीक्षा में स्वर्ण पदक तथा पं. ओंकारनाथ ठाकुर स्मृति सम्मान प्राप्त कर चुके शिवेन्द्र को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जूनियर रिसर्च फैलोशिप भी मिला है। इन्होंने यू.जी.सी. की प्रवक्ता पात्रता परीक्षा भी उत्तीर्ण की है। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (खैरागढ़) से प्रो. (डॉ.) प्रकाश महाडिक तथा पं. छोटेलाल मिश्र के मार्गदर्शन में तबले के बनारस बाज पर शोध कार्य कर चुके शिवेन्द्र की कई रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। एक अन्य शोध कार्य हेतु संस्कृति मत्रालय से जूनियर फैलोशिप प्राप्त डॉ. शिवेन्द्र का बनारस बाज पर एक शोधपूर्ण लेख भी 'भारतीय संगीत के नये आयाम' पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। इनकी एक पुस्तक भी कनिष्क पब्लिषर्स, नईदिल्ली से प्रकाषित हुई है - तबला विषारद। डॉ. शिवेन्द्र आई.सी.सी.आर. के आर्टिस्ट पैनल से भी तबला वादक के रूप में जुड़े हैं। गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट, नईदिल्ली द्वारा संचालित नवोदित कलाकार समिति की ओर से 'संगीत साधक' की उपाधि से सम्मानित डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी देष के विभिन्न मंचों पर तबला वादन कर चुके हैं। डॉ. षिवेन्द्र इंदिरा कला संगीत विष्वविद्यालय, खैरागढ़ से डी.लिट.(संगीत) कर रहे हैं। सम्प्रति संगीत एवं नृत्य विभाग, कुरूक्षेत्र विष्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र में सहायक प्राध्यापक-तबला पद पर कार्यरत हैं।
डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी
सहायक प्राध्यापक - तबला,
संगीत एवं नृत्य विभाग,
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय,
कुरूक्षेत्र - 136119 (हरियाणा)
मोबाइल - 07206674092
ई-मेल : shivendra.tripathi@hotmail.com
जानकारीपूर्ण आलेख -इनके उदाहरणार्थ एक दो सांगीतिक लिंक्स की भी दरकार थी
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