बादलों की लुकाछुपी ने देश की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इस हाल ने हमारे मौसम विभाग द्वारा की जाने वाली भाविष्यवाणियों की वैज्ञानिक मान...
बादलों की लुकाछुपी ने देश की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इस हाल ने हमारे मौसम विभाग द्वारा की जाने वाली भाविष्यवाणियों की वैज्ञानिक मान्यता को भी कठघरे में खड़ा किया है। आखिर क्या कारण है कि जब दुनिया के वैज्ञानिक जीवनदायी कण की खोज के निकट पहुंचकर गौरवान्वित हो रहे हैं तब हमारे मौसम वैज्ञानिकों की भाविष्यवाणियां बार बार झूठी साबित हो रही हैं। यह स्थिति वैज्ञानिकों के लिए लज्जाजनक है। अब तो ऐसा लग रहा है कि मौसम पर अलनीनो का खतरा मँडराने लगा है। यदि वाकई मौसम अलनीनो की चपेट में आ जाता है तो सूखे के हालात बनेंगे। अनाज दालें और पशुचारे का संकट पैदा होगा। पेयजल की कमी बनी रहेगी। बिजली की कमी होगी। ये सब विपरीत हालात लड़खड़ाती अर्थव्यस्था को और रसातल में ले जाने के कारण बन सकते हैं। लिहाजा केंद्र और राज्य सरकारों कोे चाहिए कि वे अलानीनो की संभावित चेतावनी को समझें औंर किसान और किसानी को बचाने के उपायों में जुट जाएं।
मौसम विभाग मानसून को लेकर दो बार पूर्वानुमान जारी करता है पहला अप्रैल में और दूसरा जून में। अप्रैल में उत्तरी एटलांटिक समुद्री सतह का तापमान ;दिसंबर-जनवरी भूमध्यरेखीय दक्षिणी हिंद महासगार समुद्री सतह का तापमान ;फरवरी-मार्च पूर्वी एशिया मध्य समुद्र स्तर दाब ;फरवरी-मार्च उतर पशिचमी यूरोप भू - सतह वायु तापमान (जनवरी) और भूमध्यरेखीय प्रशांत उष्ण जल आयतन (फरवरी-मार्च) के आधार पर पूर्वानुमान तय होते है। 99 प्रतिशत बारिश होने का मतलब अच्छे मानसून से लगाया जाता है। मसलन मानसून सामान्य रहता है। ऐसे में उम्मीद रहती है कि सभी प्रकार की फसलों की पैदावार अच्छी होगी और किसान व कृषि आधारित मजदूरों की पौ- बारह रहेगी। यही नहीं अर्थव्यस्था को मजबूती भी उत्तम कृषि से मिलती है। क्योंकि अभी भी खेती को अकुशल ग्रामीणों का करोबार कहे जाने के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी 19 प्रतिशत है। साथ ही देश की 60 फीसदी आबादी की आजीविका तथा रोजगार का साधन कृषि ही हैं।
मौसम वैज्ञानिकों द्वारा 26 अप्रेल 2012 को की गई भविष्यवाणी में संभावना जताई थी कि बारिश सामान्य होगी। जिसका प्रतिशत 96 से 104 रहेगा। इसी आधार पर योजना आयोग ने उम्मीद जताई थी कि कृषि क्षेत्र में विकास दर 3․5 प्रतिशत को पार कर सकती है। अनाज उत्पादन के नए कीर्तिमान बन सकते है। देश में 2011-12 में खाद्यान्नों का 25․25 करोड़ टन रिकोर्ड उत्पादन हुआ है। 2010-11 में यह 24․47 टन था। आर्थिक मंदी, राजकोषीय घाटा और डॉलर की तुलना में रुपये का हो रहे अवमूल्यन के बावजूद उद्योग-धंधों में स्थिरता बनी हुई है तो उसकी पृष्ठभूमि में अच्छी कृषि पैदावार ही है।
लेकिन मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियां कसौटी पर खरी नहीं उतरीं। मौसम ने करबट बदल ली है। लिहाजा अलनीनो का आसन्न खतरे की आहट सुनाई देने लगी है। क्योंकि मानसून आकर केरल और मुंबई के बीच ही ठिठक गया। उसकी बारिश का दायरा सौ किलोमीटर की पट्टी में सिमटकर रह गया। और पूरे देश में कमजोर मानसून की छाया स्पष्ट दिखाई देने लगी है। जून में सामान्य से 31 फीसदी कम बारिश हुई है। यदि जुलाई में ठीक-ठाक बारिश होती भी है तो भी 14 फीसदी वर्षा-जल का अभाव रहेगा। कम वर्षा के बावजूद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश में किसानों ने मूंगफली की बुवाई व धान की रोपाई कर दी है। लेकिन धान का कटोरा कहे जाने वाले इलाकों में बारिश की कमी के कारण किसानों की हरी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। दूसरी तरफ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट और कर्नाटक राज्यों के किसान अभी भी खेती लायक वर्षा के लिए आसमान पर निगाहें गढ़ाये हुए हैं। इसी चिंता के बरक्श कृषि मंत्री शरद पवार ने तो ऐलान भी किया है कि किसान अब मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों को ही खेतों में बोएं।
दरअसल हमारा मौसम विभाग भले ही अब तक मानसून पर अलनीनो के प्रभाव का अनुमान न लगा पाया हो, लेकिन हकीकत यह थी कि मई के अंत और जून के आरंभ में ही पेरु के पास समुद्र तट का तापमान बढ़कर 0․50 डिग्री हो गया था। यह वृद्धि आगे भी बनी रही। नतीजतन भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पास अलनीनो के हालात बनना शुरु हो गए और उसने धीरे-धीरे समूचे दक्षिणी गोलार्द्ध को अपनी चपेट में ले लिया। गोया, भारतीय कृषि के लिए रामबाण समझे जाने वाले दक्षिणी-पश्चिम मानसून की रफ्तार धीमी पड़ गई। असल में उष्ण कटिबंधीय प्रशांत और भूम्ध्यीय क्षेत्र के सागर में यदि तापमान और वायुमण्डलीय परिस्थितियों में बदलाव आता है तो इससे उत्पन्न होने वाली समुद्री घटना को ही ‘अलनीनो' या 'एल नीनो' प्रभाव कहा जाता है। यह घटना दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित इंक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतर से घटित होती है। नतीजतन समुद्र के सतही जल का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है और एल निनो वजूद में आ जाता है। एल निनो स्पेनिश भाषा का शब्द है।
इसका शाब्दिक अर्थ है, ‘उत्पाती छोटा बालक'। अलनीनो का एक प्रभाव यह भी होता है कि वर्षा के क्षेत्रों में परस्पर परिवर्तन जैसे हालात दिखाई देते हैं। मसलन ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होती है। कम वर्षा अथवा अलनीनो की चपेट में आए मानसून के कारण खेती योग्य कुल कृषि भूमि का 60 फीसदी हिस्सा सूखे के प्रभाव में है। दरअसल जून से सिंतबर तक होने वाली बारिश से ही 60 प्रतिशत खेतों में हरियाली की महक छा जाती है। लेकिन अलनीनो की मार ने ऐसा संभव नहीं होने दिया। जाहिर है, इस संकट का कहर किसानों और कृषि पर केंद्रित जनसमुदायों को झेलना होगा। यहां यह भी ख्याल रखने की जरुरत है कि बीते 111 सालों के भीतर जो 20 भयानक सूखे पड़े हैं, उनकी पृष्ठभूमि में अलनीनों प्रभाव ही रहा है। इस इतिहास से सबक लेने की जरुरत है। हालांकि महाराष्ट सरकार ने शायद अलनीनो की चेतावनी को समझ लिया है। लिहाजा 2885 करोड़ रुपये का पैकेज तैयार कर किसानों को ऋण राहत और कृषि से जुड़ी अन्य सुविधाएं हासिल कराने के उपाय शुरु कर दिए हैं। पूरे देश को महाराष्ट की इस पहल को अपनाने की जरुरत है, जिससे अन्नदाता किसान को संजीवनी दी जा सके और वह आत्महत्या को मजबूर न हो।
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प्रमोद भार्गव
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।
DHANYAVAD
जवाब देंहटाएंRAHASYA SE PARDA UTHAKAR LOGO KA BHRAM DUR KARNE KI KOSHISH SARAHNIYA HAI