- ललित गर्ग - गुवाहाटी की एक लड़की के साथ सरेआम तीस लोगों ने जो वीभत्स एवं दरिन्दगीपूर्ण कृत्य किया वह एक बार फिर भरी राजसभा में द्रौप...
- ललित गर्ग -
गुवाहाटी की एक लड़की के साथ सरेआम तीस लोगों ने जो वीभत्स एवं दरिन्दगीपूर्ण कृत्य किया वह एक बार फिर भरी राजसभा में द्रौपदी को बाल पकड़कर खींचते हुए अंधे सम्राट धृतराष्ट्र के समक्ष उसकी विद्वत मंडली के सामने निर्वस्त्र करने के प्रयास का नवीन संस्करण था। चौंका देने वाला किन्तु सत्य-एक अमानवीय कृत्य जिसने पूरे राष्ट्र को एक बार फिर झकझोर दिया है। यह और ऐसी ही अनेक शक्लों में नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को धुंधलाने की घटनाएं- जिनमें नारी का दुरुपयोग, उसके साथ अश्लील हरकतें, उसका शोषण, उसकी इज्जत लूटना और हत्या कर देना- मानो आम बात हो गई हो। महिलाओं पर हो रहे अन्याय, अत्याचारों की एक लंबी सूची रोज बन सकती है। न मालूम कितनी महिलाएं, कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी। दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती यह कालिख को कौन पोछेगा? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं, नारी को अपमानित करते हैं।
जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया․․․ इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब भी कानों में इस गाने के बोल पड़ते हैं, गर्व से सीना चौड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली लड़कियों के साथ इंडिया क्या करता है, तब सिर शर्म से झुकता है। पिछले कुछ दिनों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि भू्रण में किस तरह अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उसके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। बहशी एवं दरिन्दे लोग ही नारी को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और पंचायतें भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने एक बार हम सबको शर्मसार किया है। नारी के साथ नाइंसाफी चाहे गुवाहाटी में हुई हो या बागपत में- यह वक्त इन स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है।
बलात्कार, छेड़खानी और भू्रण हत्या, दहेज की धधकती आग में भस्म होती नारी जैसी करतूतें जैसे कम पड़ गई हों, तभी बागपत तबके की खाप पंचायत ने ‘तालिबानी तर्ज' पर फरमान जारी किया है कि लड़कियां मोबाइल पर बात न करें। 40 साल से कम उम्र की हैं तो बाजार में शॉपिंग न करें। जिले की हद में सिर ढककर चलें। लव मैरिज का पाप तो कतई नहीं। बागपत जैसी देश में अनेक खाप पंचायतें हैं जिन्होंने प्यार करने वाले और आधुनिक जीवनशैली को अपनाने वाले युवक और युवतियों को ऐसी-ऐसी सजाएं सुनाई है या फरमान जारी किये है कि सुनकर और देखकर दिल दहल जाये।
एक वक्त था जब आयातुल्ला खुमैनी का आदेश था कि ‘जिस औरत को बिना बुर्के देखो- उसके चेहरे पर तेजाब फैंक दो'। जिसके होंठो पर लिपस्टिक लगी हो, उन्हें यह कहो कि हमें साफ करने दो और उस रूमाल में छुपे उस्तरे से उसके होंठ काट दो। ऐसा करने वाले को आलीशान मकान व सुविधा दी जाएगी। खुमैनी ने इस्लाम धर्म की आड में और इस्लामी कट्टरता के नाम पर अपने देष में नारी को जिस बेरहमी से कुचला उसी देश में आज महिलाएं खुमैनी के मकबरे पर खुले मुंह और जीन्स पहने देखी जाती हैं। वे कहती हैं कि हम नहीं समझतीं हमारा खुदा इससे नाराज़ हो जाएगा। उनकी यह समझ कि कट्ट्टरता के परिधान हमें सुरक्षा नहीं दे सकते, इसके लिए हमें अपने में आत्मविश्वास जगाना होगा। वही हमारा असली बुर्का होगा।
एक कहावत है कि औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है और कई कट्ट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हार जाती है। आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। पर विडम्बना है कि उसके हिस्से के पृष्ठों को धार्मिकता के नाम पर ‘धर्मग्रंथ' एवं सामाजिकता के नाम पर ‘खाप पंचायते' घेरे बैठे हैं। हमें उन आदतों, वृत्त्ाियों, महत्वाकांक्षाओं, वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर हम उस ढ़लान में उतर गये जहां रफ्तार तेज है और विवेक का नियंत्रण खोते चले जा रहे हैं जिसका परिणाम है नारी पर हो रहे नित-नये अपराध और अत्याचार। हम जीने के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने को विवश होना पड़ता है।
हमें पर इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि अगर हमारा देश सम्प्रदाय (पंथ) निरपेक्ष है तो ऐसे किसी निजी ‘खाप पंचायतों' का बना रहना उचित नहीं है। समाज के किसी भी एक हिस्से में कहीं कुछ जीवन मूल्यों, सामाजिक परिवेश, जीवन आदर्शों के विरुद्ध होता है तो हमें यह सोचकर चुप नहीं रहना चाहिए कि हमें क्या? गलत देखकर चुप रह जाना भी अपराध है। इसलिये बुराइयों से पलायन नहीं, उनका परिष्कार करना सीखें। चिनगारी को छोटी समझ कर दावानल की संभावना को नकार देने वाला जीवन कभी सुरक्षा नहीं पा सकता। बुराई कहीं भी हो, स्वयं में या समाज, परिवार अथवा देश में तत्काल हमें अंगुली निर्देश कर परिष्कार करना चाहिए। क्योंकि एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र स्वस्थ जीवन कह पहचान बनता है।
हमारे देश की खाप पंचायतों को समझना होगा कि नारी की असली सुरक्षा उसका आत्म-विश्वास है। बागपत के लोगों को समझना चाहिए कि उनकी विरासत महिलाओं को बेडि़यों में जकड़ने की नहीं बल्कि उनकी निजी स्वतंत्रता का सम्मान रखने की है क्योंकि यह वही भूमि है जहां नारी के अपमान की घटना ने एक सम्पूर्ण महाभारत युद्ध की संरचना की और पूरे कौरव वंश का विनाश हुआ। आज उसी भूमि में खाप पंचायतें नारी पर अपने फरमानों से कहर बरपाती है तो समझना चाहिए कि पांचाली की ससुराल में आज भी दुर्योधन का राज ही चलता है।
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(ललित गर्ग)
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बेहद शर्मनाक ... तब भी हम कौन सर उठा कर चलने का ढोंग करते हैं ?
जवाब देंहटाएंकृपया एक सुधार करें, बागपत में खाप पंचायत नहीं है। वह मुस्लिम गाँव है, वहाँ की मुस्लिम पंचायत ने फैसला किया है कि यह गाँव मुसलमानों के है इसलिये यह शरिया के हिसाब से चलना चाहिये। यह फैसला किसी खाप पंचायत ने नहीं बल्कि मुस्लिम पंचायत का है।
जवाब देंहटाएंमैं कोई खाप पंचायतों का समर्थक नहीं, उनके गलत फैसलों की निन्दा करता रहा हूँ लेकिन बात की तह में जाये बिना उनके सर आरोप मढ़ना सही नहीं।