अरविन्द जैन होइहें सोई जो पुरुष रचि राखा मैं आदमी हूँ यानी पुरुष, मर्द स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश-...
अरविन्द जैन
होइहें सोई जो पुरुष रचि राखा
मैं आदमी हूँ यानी पुरुष, मर्द स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश-सबकुछ मैं हूँ और मेरे लिए ही सबकुछ है या सबकुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और ऐयाशी के लिए बनाया है। सारी दुनिया की धरती और (स्त्री) देह यानी उत्पादन और पुनरुत्पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत' है। रहेगा। धरती पर कब्जे के लिए उत्तराधिकार कानून और देह पर स्वामित्व के लिए विवाह संस्था की स्थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है। सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं। धर्म, अर्थ, समाज, न्याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाये हैं और मैं ही समय-समय पर उन्हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूँ। घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्पत्ति, साहित्य, कला, शिक्षा, सत्ता और न्याय-सब पर मेरे अधिकार हैं सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूँ और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है। ‘अर्धनारीश्वर' का अर्थ आधी नारी और आधा पुरुष नहीं बल्कि आधी नारी और आधा ईश्वर है। इसलिए तुम नारी और मैं (पुरुष) ईश्वर हूँ। तुम्हारा ईश्वर-पति परमेश्वर मैं ही हूँ।
तुम औरत हो यानी मेरी पत्नी, वेश्या और दासी-जो कुछ भी हो, मेरी हो और मेरे सुख, आनंद, भोग और ऐश्वर्य के लिए सदा समर्पित रहना ही तुम्हारा परम धर्म और कर्तव्य है। मेरे हुक्म के अनुसार चलती रहोगी, सम्पूर्ण रूप से समर्पित होकर वफादारी के साथ मेरी सेवा करोगी तो ‘सीता', ‘सावित्री' और ‘महारानी' कहलाओगीऋ सुख-सुविधाएँ, कपड़े-गहने, धन-ऐश्वर्य, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाओगी। मगर मुझसे अलग मेरे विरुद्ध आँखें उठाने की कोशिश भी करोगी तो कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दी जाओगी। कोई तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आयेगा। समाज, धर्म, कानून, मठाधीश, मंत्री, नेता और राजा, सब मेरे हैं, बल्कि ये ही वे हथियार हैं जिनसे मैं इस दुनिया में ही नहीं, दूसरी दुनिया में भी तुम्हें नही छोडूगाँ। पहली और दूसरी दुनिया मै हूँ तुम महज तीसरी दुनिया हो, तुम्हारी न कोई दलील सुनेगा, न अपील।
मेरे पैदा होने की खबर मात्र से बहन ‘सुनीता', ‘अनीता' और ‘अनामिका', पंखे से लटककर आत्महत्या कर लेंगी। नहीं करेंगी तो बहनों, साफ-साफ सुन लो कि -
बहन होकर जायदाद में बराबर के अधिकार माँगोगी तो पिताजी को बहकाकर जल्दी से कहीं शादी करवा दूँगा और वसीयत में सबकुछ अपने नाम लिखवा कर ताला बंद कर दूँगा। सुसराल जाओगी तो चार दिन में अक्ल ठिकाने आ जायेगी। तीज, त्योहार, होली, दीवाली, राखी, भैया दूज, भात पर जो दें उसे सिर-माथे लगाओगी तो ठीक, नहीं तो आगे से वो भी बंद। संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में बँटवारा करवाने का तो तुम्हें कोई हक ही नहीं है, वो सब हम मर्दों का मामला है... पिताजी की सम्पत्ति में तुम्हें बराबर का हक है लेकिन सिर्फ तब जब वो अपनी वसीयत लिखकर न मरे हों... बिना वसीयत लिखे मैं उन्हें मरने दूँगा? वसीयत मेरे नाम नहीं लिखेंगे तो बुढ़ापे में क्या सड़क पर भीख माँगेंगे? ‘कागजी कानूनों' का डर किसी और को दिखाना-मैं तो डरनेवाला हूँ नहीं।
पिताश्री अचानक बिना वसीयत लिखे ही स्वर्ग सिधार भी गये तो भी क्या है? अपना हक माँगोगी तो समझना ‘मर गये तुम्हारे भाई भी' और समाज में ‘थू-थू' अलग। उन्होंने चुपचाप वसीयत लिखकर तुम्हारे नाम एक कौड़ी भी की तो यह मेरे साथ घोर अन्याय होगा और मैं अन्याय के खिलाफ� सुप्रीम कोर्ट तक तीस साल मुकदमा लडूँगा, वसीयत को हरसंभव चुनौती दूँगा और तुम्हारे घर के बर्तन-भाँडे तक बिकवा दूँगा। मैंने तो सौतेले भाइयों को ही बराबर बाँटने का अधिकार नहीं लेने दिया, बहनें तो मुझसे लेंगी ही क्या? पर बूढ़े माँ-बाप के भरण-पोषण की जितनी ज़िम्मेदारी मेरी है, उतनी ही तुम्हारी भी।
प्रेमिका बनकर, प्यार का नाटक करके मुझ पर अधिकार जमाना चाहोगी, तो मेरा कुछ भी बिगड़ने से रहा, बदनामी तुम्हारी ही होगी। लोम्बरोसो, टोमस, फ्रॉयड, किंग्सले, डेविस आटो पोलक, एडलर, जॉनसन और हाईट बनकर मैंने तुम्हारा मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया है, इसलिए तुम्हारी रग-रग से वाकिफ हूँ। मैं तो तुम्हारी सुंदरता की तारीफ करके, शादी के सुनहले सपने दिखाकर और चिकनी-चुपड़ी बातें बनाकर कुछ दिन तुम्हारे साथ मस्ती और फिर अचानक एक दिन तुम्हें किसी बेगाने शहर की अनजानी, अँधेरी बंद गली में छोड़कर भाग जाऊँगा। तुम्ही सँभालकर रखना प्यार की यादें, मैं तो भूल जाऊँगा सारी कसमें, सारे वायदे। पुलिस से बलात्कार की शिकायत करोगी तो अदालत कहेगी, ‘कोई जवान लड़की शादी के वायदे को सच मानकर संभोग की सहमति देती है और इस प्रकार की यौन-क्रीड़ाओं में तब तक लिप्त रहती है जब तक गर्भवती न हो जाये तो भारतीय दंड संहिता की धारा-90 कोई मदद नहीं कर सकती और लड़की की करतूतों को माफ करके लड़के को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। ‘लड़की लड़के से प्यार करती थी, (प्यार में) गर्भवती हुई और गर्भपात भी करवाया। साफ है कि संभोग सहमति से ही हुआ होगा।' वैसे ‘हर लड़की तीसरे गर्भपात के बाद धर्मशाला हो जाती है', लेकिन फिर भी गर्भपात करवा लोगी तो बेहतर, नहीं तो बच्चा ‘अवैध' और ‘नाजायज' कहलाएगा। मेरी सम्पत्ति में से तो उसे धेला तक मिलेगा नहीं और तुम्हारे पास देने के लिए होगा ही क्या? इतना शुक्र मानो कि अब स्कूल में बिना बाप का नाम बताये भी दाखिला तो मिल जायेगा। लेकिन दूसरे लड़के पूछेंगे तो बेचारा क्या जवाब देगा?
मैं (हम) “कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता (चाहते) जिससे औरतों या उनके हितों को नुकसान पहुँचे।” लेकिन अगर चाहूँ तो कर सकता हूँ और तुम मेरा न कुछ बिगाड़ सकती हो, न “कानून बदल सकती हो।” तुम मेरी प्रेमिका नहीं बनोगी तो मैं जब भी मौका लगेगा जबरदस्ती तुम्हारा मुँह काला कर दूँगा। तुम बलात्कार की शिकायत घर पर करोगी तो घरवाले कहेंगे, यह परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल है। हफ्तों इस बात पर सोचेंगे कि मामले को अदालत में ले जाएँ या नहीं। हफ्ते या महीने बाद रिपोर्ट करवाएँगे तो अदालत पूछेगी इतने दिन की देरी क्यों? पढ़ने जाओगी तो डॉक्टर बनकर, सिफारिश के लिए जाओगी तो नेता और मंत्री बनकर, मदद के लिए जाओगी तो सेठ, साहूकार, जागीदार ओर उद्योगपति बनकर, नायिका बनने के लए जाओगी तो निर्माता और निर्देशक बनकर, पुण्य कमाने जाओगी तो पुजारी और मठाधीश बनकर, और अदालत में न्याय के लिए जाओगी तो वकील बनकर... मैं हमेशा तुम्हारा पीछा करता रहूँगा। तुम मेरे चंगुल से बच नहीं सकतीं। तुम जितनी बार बलात्कार की शिकायत करोगी मैं उतनी ही बार कभी यह तर्क और कभी वह तर्क देकर साफ बच जाऊँगा लेकिन तुम्हारी और तुम्हारे घरवालों की खैर नहीं।
अकेली तुम्हारी गवाही के आधार पर तो सजा होगी नहीं, ऐसे में चश्मदीद गवाह कोई होता ही नहीं, पुलिस क्या जाते ही तुम्हारी रिपोर्ट लिख लेगी? रिपोर्ट लिख भी ली तो जाँच में दस घपले, डॉक्टरी मुआयना करवायेगी नहीं, करवाया तो डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं बुलवायेगी, डॉक्टर की रिपोर्ट सन्देह से परे तक विश्वसनीय नहीं मानी जायेगी, कपड़ों पर वीर्य और खून के निशान मिलेंगे नहीं, पीठ और शरीर पर चोट के निशान नहीं मिले और डॉक्टर ने अगर कह दिया कि तुम संभोग की आदी हो तो सारा मामला ही खत्म, बलात्कार सहमति से संभोग में बदल जायेगा और मैं बाइज्जत बरी या सन्देह का लाभ उठाकर बाहर।
वयस्क और विवाहित महिला के साथ बलात्कार करने पर चोट के निशान कैसे मिलेंगे? संभोग की आदी वो होती ही है, कोई भी तर्क चल जायेगा कि ‘किसी को आता देखकर शोर मचाया-अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए या अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए' या ‘बदलचन, आवारा, रखैल, बदनाम, वेश्या या कॉलगर्ल है' या संभोग सहमति से हुआ और इसमें पति की मिलीभगत थी।
अगर तुमने 16 साल से कम उम्र होने का दावा किया तो प्रमाणित भी तुम्हें ही करना होगा। स्कूल सर्टीफिकेट अदालत में पेश नहीं किया तो फायदा मुझे ही मिलेगा, डॉक्टरी रिपोर्ट उम्र का सही अंदाजा नहीं लगा सकती, इसलिए मानी नहीं जायेगी, एक्सरे रिपोर्ट या ओसिफीकेशन टेस्ट महज एक राय होगी, प्रमाण नहीं, मेडिकल टेस्ट ज़्यादा प्रामाणिक नहीं माने जायेंगे क्योंकि ‘ऐसे में तीन साल तक की गलती हो सकती है, उम्र के बारे में जन्म-प्रमाणपत्र ही सबसे बढ़िया प्रमाण है लेकिन दुर्भाग्य (सौभाग्य) से इस देश में आम तौर पर यह दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता, और उम्र प्रमाणित करना जरूरी है जो तुम कर नहीं पाओगी, ऐसे में बलात्कार उम्र प्रमाणित करने के चक्कर में समाप्त।
कितनी ही बलात्कार की झूठी शिकायतों का मैंने सामना किया है। हर बार मेरा बचाव मानवाधिकारों का ‘मुखौटा' लगाए कोई-न-कोई प्रतिबद्ध वकील करता ही रहा है।
‘कोई भी प्रतिष्ठित सम्माननीय महिला दूसरे व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगायेगी क्योंकि ऐसा करके वह अपनी इज़्ज़त ही बलिदान करेगी-वही जो उसे सबसे प्रिय है।' प्रतिष्ठित और सम्माननीय महिला की परिभाषा में रखैल, वेश्या और कॉलगर्ल शामिल नहीं हैं और वो गरीब व अनपढ़ युवतियाँ भी नहीं जो बिना किसी ‘मानवीय गरिमा' या किसी भी ‘गरिमा' के निर्धनता रेखा से नीचे जी रही हैं।
यह बहुत ही कम संभावना है कि कोई आत्मस्वाभिमानी औरत न्याय की अदालत में आगे आकर, अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में, अपने सम्मान के विरुद्ध शर्मनाक बयान देगी, जब तक कि यह पूर्ण रूप से सत्य न हो या (पूर्ण रूप से झूठ), इज्जतदार औरतें तो बलात्कार सच में हो जाने पर भी किसी को नहीं ‘बतातीं', शर्म के मारे डूबकर मर जाती हैं। तुम्हारी तरह कोर्ट-कचहरी करती नहीं घूमतीं।
ज़्यादा तीन-पाँच करोगी और ‘हिरोइन' बनोगी तो मैं तुम्हारे साथ अकेले नहीं, बल्कि अपने पूरे गैंग सहित सारे गाँव के सामने, बीच सड़क पर बलात्कार करूँगा, तुम्हारे अंग-अंग के ‘क्लोज अप' लेते हुए ‘इंसाफ का तराजू', ‘मेरा शिकार' और ‘जख्मी औरत' बनवाऊँगा, सिनेमा हॉलों पर तुम्हारी असलियत देखने के लिए भीड़ लग जायेगी, मैं लाखों कमाऊँगा और तुम्हें सारे समाज के सामने नंगा करके अपमानित और जलील करूँगा।
रही-सही कसर वीडियो पर ‘ब्लू फिल्म' बनवाकर पूरी कर दूँगा। नोट-के-नोट और तुम्हारी ऐसी-कम-तैसी। मैं मूँछों पर ताव देकर घूमूँगा ठाठ से और तुम किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी न रहोगी।
साबुन और शराब, माचिस और सिगरेट, निरोध और नारियल तेल, तौलिये और साड़ियाँ ही नहीं, स्कूटर और कार तक के विज्ञापनों में तुम्हारी नग्न और अर्धनग्न तस्वीरें छपवाऊँगा, फिल्मों के तुम्हारे बड़े-बड़े उत्तेजक पोस्टर सारे शहर में लगवाऊँगा, अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों में तुम्हारी अश्लील-से-अश्लील हरकतों का भंडाफोड़ करूँगा, हजारों पत्रिकाएँ धड़ल्ले से बेचूँगा और लाखों के वारे-न्यारे। ‘सत्यम्-शिवम् सुन्दरम्', ‘बॉबी', ‘राम तेरी गंगा मैली' बनाकर मेरी मदद करनेवाले को बड़े-से-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित करूँगा, बहुत देखी हैं मैंने दफा-292 और अश्लीलता के खिलाफ� बने कानून।
अदालत कह चुकी है, ‘फूहड़ बात अश्लील नहीं होती', और न ही ‘औरतों के नग्न फोटो छापना अश्लीलता है।' न्यूड पेंटिंग्स तो वैसे भी महान कला मानी जाती है, खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की दीवारों तक पर तो मैंने तुम्हारे साथ संभोग करते हुए मूर्तियाँ बना दीं- इससे ज़्यादा और क्या करूँ? तुम्हारे बारे में अश्लीलता से लिखा हुआ मेरा हर शब्द पढ़ा जाता है और ‘धर्म ग्रंथों' में लिखी कोई भी बता अश्लील नहीं होती-
बाहर जब सब ‘भेड़िये' और अपने घरवाले तक ‘बेगाने' लगने लगे तो अब तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो? मेरे साथ शादी करनी है तो पाँच-दस लाख दहेज, कार, कूलर, टी.बी., वी.सी.आर., फर्नीचर, कपड़ा गहना देना पड़ेगा और साथ में 5 लीटर मिट्टी का तेल, एक स्टोव और माचिस और उम्र-भर मेरे हुक्म की गुलामी। बदले में तुम्हें सात साल ठीक-ठाक रखने का ‘कानूनी गारंटी कार्ड' तो मिलेगा लेकिन समय पर तुम्हें यह ‘कार्ड' बोगस, नकली और अर्थहीन ही लगेगा। माँ-बाप के पास यह सब दहेज में देने को नहीं है तो कानपुर की ‘अलका, गुड्डी और मनू' की तरह पंखे से लटककर आत्महत्या करो। जीना चाहती हो तो मेरी माँग तो पूरी करनी ही पड़ेगी। झूठे बहकावों में मैं आनेवाला नहीं हूँ। पूरा दहेज नहीं लाओगी तो मैं नहीं कह सकता कि तुम्हारी जिंदगी कितने दिन की है? मुझे तो मजबूरन मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगानी पड़ेगी- माँ-बाप का इकलौता बेटा हूँ, नहीं मानूँगा तो वो मुझे जायदाद से बेदखल कर देंगे। मैं क्या कर सकता हूँ? मुझे तो दुखी होकर दुनिया से यही कहना पड़ेगा कि स्टोव पर दूध गर्म कर रही थी- साड़ी में आग लग गयी। तुम्हारे घरवाले शोर मचायेंगे तो उन्हें मैं ‘अच्छी तरह' समझा दूँगा और महीने-भर में ही तुम्हारी छोटी बहन यानी साली की डोली मेरे घर होगी। नहीं मानेंगे तो ये रहा पुलिस स्टेशन और वो रही कोर्ट-कचहरी। पुलिस, गवाह और डॉक्टरी रिपोर्ट कैसे ठीक-ठाक करवायी जाती है- मैं सब जानता हूँ। उसी दिन जमानत ओर अगले दिन बाइज्जत रिहा हो जाऊँगा। ज़्यादा होगा तो सात साल हाई कोर्ट ओर सुप्रीम कोर्ट अपीलों में बीत जायेंगे। इस बीच दूसरी शादी करुँगा, फिर दहेज से घर भर जायेगा और मजे से रहूँगा। तुम्हारी ‘सहेलियों' और सिरफिरे अखबारों के चक्कर में अगर मुझे उम्र-क़ैद की सजा हो भी गयी, तो क्या मुझे फाइलें गायब करवानी नहीं आतीं? कितनी ‘सुधाओं' की फाइलें मेरे कब्जे में हैं- तुम क्या जानो? आज तक एक भी केस में फाँसी हुई है किसी को?
तुम मेरी पत्नी हो इसलिए मुझे तुम्हारे साथ हर समय, किसी भी तरह संभोग का कानूनी अधिकार है। तुम्हारी मर्जी, सहमति, इच्छा और मन का कोई अर्थ नहीं, बीमारी, माहवारी या गर्भ-कोई बहाना नहीं चलेगा। चँकि 15 साल से बड़ी हो तुम इसलिए तुम्हारी मर्जी के विरुद्ध जबरदस्ती भी करूँगा तो कोई मुकदमा तो मुझ पर चलने से रहा। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इतना ही ख़्याल था तो शादी करने से पहले सोचा होता। शादी के बाद अब व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सारे मौलिक अधिकार मेरे पास गिरवी हैं। चीखने चिल्लाने या शोर मचाने से कोई फायदा नहीं, सीध्ो-सीध्ो चलो मेरे साथ..
मुझसे ब्याह किया है तो पत्नी होने का धर्म निभाओ, आओ, मेरे सम्पत्ति के वारिसों को जन्म दो, पुत्र जन्मोगी तो भाग्यशाली और लक्ष्मी कहलाओगी, छत पर चढ़कर ननद थाली बजायेंगी और सारे शहर में लड्डू बाँटे जाएँगे- पर याद रखना, बेटियाँ जन्मीं तो कुलक्षणी और अभागी मानी जाओगी क्योंकि “छोरियाँ होने की खुशी सिर्फ वेश्याओं के यहाँ मनायी जाती है।” मैं तो पैदा होते ही गला घोंट दूँगा, गड्ढे में दबा दूँगा या गंगा में प्रवाहित कर दूँगा। वैसे अब तो बच्चे होने से पहले ही ‘एमनियोसैंटोसिस' टेस्ट करवा लो। लड़की है तो गर्भपात, सारे झंझटों से ही मुक्ति। बेटा या बेटी कुछ भी नही हुआ तो बाँझ होने के जुर्म में तानों के तीरों से जख्मी होकर मरना या किसी कुएँ-बावड़ी... मेरे लिए वारिस जननेवाली और बहुत मिल जायेंगी। अपना बेटा नहींहुआ तो कोई बात नहीं। मैं अपने किसी भाई का बेटा गोद ले लूँगा लेकिन मेरे जीते जी तुम किसी के बच्चे को गोद नहीं ले सकतीं। गोद लेने के कानून में मैंने ऐसा कोई प्रावधान बनाया ही नहीं है। तुम गोद तभी ले सकती हो जब मुझसे तलाक ले लो या मैं पागल या संन्यासी हो जाऊँ। वो मैं होने से रहा। मैं चाहूँगा तो गोद लूँगा, नहीं चाहूँगा तो नहीं लूँगा- तुम्हारी तो सिर्फ� सहमति ही चाहिए न। मैं अगर गोद न लेना चाहूँ तो तुम मेरा क्या कर लोगी? ज़मीन, जायदाद वसीयत करके दान कर दूँगा, तुम फिरना हाथ में कटोरा लिये और मैं देखता हूँ कि कौन करता है तुम्हारी बुढ़ापे में देखभाल और मरने पर अंतिम दाह-संस्कार, कौन बहाता है तुम्हारे फूल गंगा में और कौन मनाता है हर साल तुम्हारा ‘श्राद्ध'?
अगर बेटी पैदा भी हो गयी तो न उसे अच्छा खाने को दूँगा और न अच्छा पहनने को। अच्छा खाने-पहनने का हक सिर्फ� मेरे बेटों को हासिल है। बेटी घर के बर्तन माँजेगी, कपड़े धोएगी, झाडू-पोंछा करेगी तो खाने को मिल भी जायेगा नहीं तो मरेगी भूखी-मेरा क्या लेगी? बेटों का तो काम ही है पतंग उड़ाना, क्रिकेट खेलना, खाना, सोना, पढ़ना और ऐश करना।
होश सँभालने से पहले छोटी उम्र में ही बेटी की शादी कर दूँगा। नहीं तो बड़ी होकर न जाने कहाँ नाक कटवा देगी। क्या बिगाड़ लेगा बाल-विवाह अधिनियम मेरा? तंग करेगी तो किसी मंदिर में देवदासी, आचार्य या सुंदरी के चरणों में समर्पित करके ‘साध्वी' बनवा दूँगा। छोड़ना चाहेगी तो शहर क्या देश-भर में बदनाम करूँगा। पढ़ने-लिखने दूँगा नहीं-स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के सपने देखना ही बेकार है।
पत्नी हो, तो पत्नी बनकर रहो- जैसे मैं चाहूँ, जहाँ-चाहूँ ‘पत्नी का पहला फर्ज है अपने पति की आज्ञा के सामने आज्ञाकारी ढंग से अपने-आप को समर्पित कर देना और उसकी छत के नीचे उसकी सुरक्षा में रहना।' तुम्हें बिना उचित कारण बताये अलग से घर बसाने का तब तक अधिकार नहीं है जब तक मैं यह न कह दूँ कि मैं तुम्हें नहीं रख सकता (या रखना चाहता)। फिर भी अगर तुम नहीं मानोगी तो मुझे विवश होकर कोर्ट से मेरे साथ रहने की डिक्री लानी पड़ेगी। तलाक जल्दी से लेने नहीं दूँगा- जब तक तलाक नहीं मिलेगा तब तक दूसरी शादी कानूनी जुर्म और जब तक तलाक मिलेगा तब तक बूढ़ी हो जाओगी। कौन बनायेगा तुम्हें अपनी पटरानी? वैसे भी मर्द ब्याह अनछुई, कुँवारी कन्याओं से ही करना पसंद करता है- तलाकशुदा, विधवा है और पहले भोगी हुई महिलाओं के साथ तो बस कुछ रोज की रंगरेलियाँ ही ठीक है॥ तुम तलाक ले भी लोगी तो मेरा क्या बिगाड़ लोगी। 5 साल से बड़े बेटे और बेटियाँ साथ ले जाने नहीं दूँगा। तुम सिर्फ अपने अवैध बच्चों को ही अपने पास रख सकती हो। बेटे बेटियों के नाम पर या उनके लिये जरूरी सारे काम करने की जिम्मेवारी और अधिकार सिर्फ मेरा, उनके बारे में सारे निर्णय मेरे तुम सिर्फ� उन्हें पैदा करो, पालो और भूल जाओ। बेटे-बेटियों ने तुम्हारी तरफदारी की तो सारी जायदाद से बेदखदल कर दूँगा नालायकों को। मैं सिर्फ� लायक बेटों का बाप बन सकता हूँ, नालायकों के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं।
मैं किसी भी अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा वेश्या के साथ रँगरेलियाँ मनाऊँ, मेरी मर्जी। मुझे कानूनन अधिकार है लेकिन तुम सिवा मेरे किसी भी अन्य पुरुष के साथ संबंध करो, यह नहीं हो सकता। करोगी तो उसको तो दफा-497 में बंद करवा ही दूँगा और तुमसे ले लूँगा तलाक। सारे शहर में लोग ‘बदचलन' और ‘कलंकनी' कहकर पत्थर मारेंगे सो अलग क्योंकि “दुनिया की सारी खूबसूरत बहू-बेटियाँ सिर्फ मेरे लिए हैं, लेकिन अपनी बहू-बेटी पर अगर किसी ने नज़र डाली तो उसकी आँखें फोड़ दी जायेंगी” समझीं कुछ? हाँ! मैं चाहूँ तो अन्य पुरुष मेरी मिलीभगत से तुम्हारे साथ संबंध बना सकता है। जब तक मेरा फायदा होता रहेगा तब तक मैं आँखें बंद किये रखूँगा। तुम न चाहो तो भी मेरे अधिकारों पर कोई अंकुश नहीं। चुपचाप रहोगी तो ठीक, शिकायत करोगी तो व्यभिचार की शिकायत करने का तुम्हें अधिकार ही नहीं है। वैसे भी ‘व्यभिचार' का अभियोग लग ही नहीं सकता।
मेरे खिलाफ� तुम कुछ नहीं कर सकतीं।दफा- 497 में मेरे विरुद्ध कोई फौजदारी मुकदमा नहीं चला सकतीं। ज़्यादा-से-ज़्यादा तुम (हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 (ए) के तहत) शादी के बाद पत्नी के अलावा किसी महिला के साथ स्वेच्छा से यौन-संबंधों के आधार पर मुझसे तलाक ले सकती हो। ले लो तलाक, तलाक अभिशाप या दंड तुम्हारे लिए ही होगा, मेरे लिए तलाक तुमसे पिंड छुड़ाने (छूटने) का ही दूसरा नाम है। भरण-पोषण के लिए खर्चा माँगोगी तो वर्षों कोर्ट-कचहरी के बाद ज़्यादा-ज़्यादा 500 रु. महीना देना पड़ेगा, तो दे दूँगा। वैसे तुम्हें रखने में तो इससे अधिक ही खर्च होता है।
मेरे साथ संबंध रखनेवाली किसी कुँवारी, तलाकशुदा या विधवा को गर्भ ठहर गया तो बेधड़क गर्भपात करवा दूँगा। अगर उसने बच्चा जनने का फैसला लिया और नौकरीपेशा हुई तो नियमानुसार बाकायदा प्रसवावकाश भी दिलवा दूँगा। मेरी अवैध संतान तुम्हारी वैध संतान कहलायेगी। जो कुद्द भी जायज, वैध और कानूनी है, वही मेरा है और सब नाजायज, अवैध और गैरकानूनी तुम्हारा।
व्यभिचार कानून की संवैधानिक वैधता को भी तुमने चुनौती देकर देख लिया। तुम और तुम्हारे हिमायती वकीलों ने क्या बिगाड़ लिया मेरा?
मैं जानता था कि शादी करने, घर बसाने और बच्चे होने के बाद बहुत जल्दी ही मैं तुमसे ऊब जाऊँगा, थक जाऊँगा, इसीलिए मैंने समाज में वेश्या, कॉलगर्ल और रखैल बना ली हैं। पैसे लुटाए, मौज-मस्ती की और दूध के धुले घर वापस। जब चाहा, जहाँ चाहा, एक-से-एक खूबसूरत औरत को बुलाया, दाम चुकाया, भोगा और सब भूल-भालकर लौट आये। समाज में पूरा सम्मान भी बना रहा और मौज-मस्ती में भी कोई कमी नहीं।
वेश्यावृत्ति के लिए 18 साल से बड़ी लड़कियों को बहलाना, फुसलाना, नशीली दवाएँ, साड़ियाँ, जेवर, फाइव स्टार होटलों में लंच, डिनर, कॉकटेल और नोटों की झलक दिखाकर फँसाना, रिझाना, प्रभावित करना और अपने बस में कर लेना मैं खूब जानता हूँ। कॉलगर्ल या कैबरे डांसर पकड़ी गयी तो अपनी मर्जी से आई और अपनी इच्छा से धंधा करती है- मेरा क्या? 18 साल से कम उम्र की अनाथ लड़कियों को भगा लाना कोई ‘अपहरण' का अपराध तो है नहीं। एक बार मेरे अड्डे पर पहुँच गयी तो बाहर निकलने केे सब दरवाजे बंद। कानून की सब बारीकियाँ और ‘लूप-होल' मैं अच्छी तरह समझता हूँ।
मुझसे स्वतंत्र होने के लिए तुम खुद वेश्या बनोगी? किसने कह दिया कि ‘वेश्या स्वतंत्र नारी है?' मैंने अब वेश्याओं को भी ‘नियंत्रित' रखने के लिए लंबे-चौड़े कानून बना दिये हैं। अकेली औरत को रोजी-रोटी, भरण-पोषण के लिए वेश्यावृत्ति करने की खुली छूट, लेकिन दो या दो से अधिक वेश्याओं द्वारा संगठित होकर देह-व्यापार करना अपराध। संगठित होंगी तो यूनियन बनायेंगी, अधिकारों की बातें करेंगी, जुलूस निकालेंगी, सरकार की नाक में दम करेंगी। इनके साथ रहने और इनकी आमदनी पर पलनेवालों के खिलाफ� भी कानून बनाना पड़ा-ये अकेली ही रहें तो ठीक रहेगा। अकेली औरत का जब चाहो, जैसे चाहो उपयोग कर सकते हो, न कोई सुननेवाला, न मदद करनेवाला। शहर में अलग-अलग जगह पर रहेंगी तो एक जगह ‘गंदगी का ढेर' भी नजर नहीं आयेगा और समाज का काम भी ‘बिना रुकावट' चलता रहेगा। कोठे का मालिक बनकर मैं करोड़ों कमाऊँगा ओर ग्राहक बनकर रोज तुम्हें भोगूँगा। पुलिस का छापा पड़ेगा तो पकड़ी तुम जाओगी। (ग्राहक को कानून हाथ तक नहीं लगा सकता) पुलिस तुमसे पैसे भी लेगी और रात-भर हिरासत में तुम्हारी बोटी-बोटी नोच डालेगी। पुलिस पर बलात्कार का आरोप लगाओगी तो ‘वेश्या' प्रमाणित होते ही बलात्कार सहमति से संभोग में बदल जायेगा और पुलिस अफसर बाइज्जत रिहा। कौन सुनेगा तुम्हारी फरियाद? सब ‘उन स्त्रियों को (तो) घृणा की दृष्टि से देखते हैं जो थोड़ी देर के लिए वेश्याएँ बनती हैं, पर उन स्त्रियों का (ही) आदर और मान करते हैं जो उम्र-भर वेश्यावृत्ति करती हैं।'
तुम जिससे कहोगी उसके खिलाफ� हड़ताल करवा दूँगा। राजलक्ष्मी का दवाज़ा खटखटाओगी तो उसके विरुद्ध रिश्वत खाने का आरोप लगाऊँगा और सी.बी.आई. जाँच, साहब पर छेड़छाड़ का आरोप लगायेगी तो साहब को पुरस्कार से सम्मानित करवाऊँगा, लेखिकाएँ और महिला बुिद्धजीवी देती रहें राष्ट्रपति को ज्ञापन।
मेरी दुनिया में जैसे मैं चाहूँगा तुम्हें वैसे ही रहना पड़ेगा। मुझसे अलग तुम्हारी कोई पहचान नहीं। मेरे कारनामों पर सोचोगी और मुझे रोकोगी तो पागल घोषित करवा दूँगा। सारी उम्र पागलखाने में बंद पड़ी रहना। पागलखाने नहीं भिजवा पाया तो घर में ही ऐसी स्थितियाँ बना छोडूँगा कि तुम्हें खुद ही अपनी जिंदगी व्यर्थ लगने लगेगी। आत्महत्या करोगी तो दुनिया से कह दूँगा, ‘पागलपन की बीमारी से तंग आकर खुदकुशी कर ली।' नहीं करोगी आत्महत्या तो मुझे हत्या करनी या करवानी पड़ेगी। पकड़ा गया तो थोड़ा सा झूठ बोलना पड़ेगा कि तुम्हारा किसी गैरमर्द से नाजायज संबंध था, मैंने तुम दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो ‘अचानक और भयंकर उत्त्ोजना' में तुम्हारी हत्या कर दी, प्रेमी भाग गया। असल में तो मर्डर के एक्सपर्ट वकील मुझे बचा ही लेंगे। नहीं भी बचा पाये तो फाँसी तो लगने से रही-दस साल कैद की सजा हो जायेगी। वो भी राष्ट्रपति या गवर्नर से माफ करवा लूँगा।
तुम मेरे साथ जिओगी तो मेरे साथ ही मरना भी पड़ेगा। मेरे मरने पर मेरे साथ सती होना पड़ेगा। नहीं होगी तो घर-बार छोड़ वृंदावन विधवा आश्रम जाना होगा। सती बनोगी तो तुम्हारी याद में आलीशान मंदिर बनेंगे। हर साल मेला लगेगा, लोग पूजने आयेंगे और तुम्हारी भी स्वर्ग में एक सीट पक्की। पति की लाश के साथ पत्नी को जिंदा जलाना या दफनाना कानूनन अपराध है। तो कोई बात नहीं, जिंदा नहीं (मारकरद्ध जलायेंगे या दफनायेंगे। अर्थी के साथ गंगा में तो बहा ही सकते हैं? सती होने का धर्म भी पूरा हो जायेगा और कानून को भी आँच नहीं आयेगी। सती बनाने के मुजरिमों की वकालत करनेवाले वकील की तीन पीढ़ियाँ देश में राज करेंगी और मुकदमा लड़नेवालों के घर हमेशा ‘लक्ष्मी' वास करेगी। ज़्यादा चूँ-चपड़ की या तुम्हारे हिमायतियों ने ‘मनुष्यता' वगैरह की बकवास की तो खूँखार, शास्त्रीय दाँतोंवाले सम्पादक छुड़वा कर बोटी-बोटी चिथवा दूँगा।
संदर्भ
1. 10 मार्च, 1989ऋ चंडीगढ़ में भाई होने की खबर सुनकर तीन बहनों ने आत्महत्या कर ली।
2. संयुक्त हिन्दू परिवार में मिताक्षरा स्कूल में सिर्फ पुत्र ही संपत्ति बंटवा सकते हैं।
3. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा-8
4. विमैन लॉज ऑन पेपरः भगवती टाइम्स ऑफ इंडिया, 3 अप्रैल, 1988 “अधिकांश संपत्ति वसीयत द्वारा बेटों को दे दी जाती है और बहनें कानूनी अन्याय खामोश रहकर सहन करती हैं।”
5. ऑल इंडिया रिपोर्टर 1987 सुप्रीम कोर्ट 1616, “हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (ए) में पुत्री की परिभाषा में सौतेले पुत्र व पुत्री शामिल नहीं हैं।”
6. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-125 (1) (डी) के अंतर्गत माँ-बाप के भरण-पोषण की जिम्मेवारी बेटे पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि ‘बेटियों को इस दायित्व से अलग नहीं किया जाना चाहिए।'
7. जयंती राम पंडा, 1984 क्रिमिनल लॉ जरनल 1535 (कलकत्ता)।
8. मोयनुल मियाँ, 1984 क्रि. ज. (एन. ओ. सी. 28 गोहाटी)।
9. ‘संसद से सड़क तक' धूमिल, पृ.।
10. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा-3 (जे) के अनुसार ‘संबंधी' का अर्थ वैध रक्त संबंधवाला ही है लेकिन ‘अवैध बच्चे' अपनी माँ के वैध संबंधी माने जाएँगे।
11. वेश्याओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कारण बताओं नोटिस जारी किया था। याचिका का मुख्य मुद्दा यह था कि स्कूल में वेश्याओं के बच्चों को दाखिला इस कारण नहीं दिया जाता कि उनके बाप का नाम पता नहीं है। इस नोटिस के बाद दिल्ली प्रशासन ने सब स्कूलों को निर्देश दिये कि दाखिले के लिये बाप का नाम जरूरी नहीं।
12. ‘रेप लॉ अनसिम्पेथेटिक टू विकटिम' उषा राय, टाइम्स ऑफ इंडिया, 8 मार्च, 1989ऋ रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का सुमन रेप केस पर महिला संगठनों को दिया आश्वासन।
13. सुप्रिया हत्याकांड की सुनवाई कें दौरान सुप्रीम कोर्ट में भूतपूर्व कानूनमंत्री श्री अशोक सेन की टिप्पणी। टाइम्स ऑफ इंडिया, 10 मार्च, 1989
14. हरपाल सिंह 1981, सुप्रीम कोर्ट केसेस (क्रिमिनल) 208
15. 17 क्रिमिनल लॉ जरनल 150, 81, पंजाब लॉ रिपोर्टर, 194
16. ए. आई. आर. 1857 उड़ीसा 78 और 63 पंजाव लॉ रिपोर्टर 546
17. फ्लैटरी केस 1877 (2) क्यू. बी. ड़ी. 410
18. यदुराम 1972 क्रि. लॉ. ज. (1464) जम्मू-कश्मीर
19. तीस हजारी कोर्ट में वकील इंद्रसिंह शर्मा द्वारा 19 वर्षीय महिला मुवक्किल के साथ बलात्कार का आरोप (टाइम्स ऑफ इडिंया, 20 मार्च, 1988) इससे पूर्व गुड़गाँव (हरियाणा) के प्रसिद्ध वकील राव हरनारायण पर अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार व हत्या का मुकदमा चला था। 1957 पंजाब लॉ रिपोर्टर 519 में जमानत पर न्यायधीश श्री टेकचंद का निर्णय और ए. आई. आर. 1958 पंजाब 273 में अदालत अवमानना पर निर्णय महत्त्वपूर्ण हैं। उल्लेखनीय है कि जिस पत्रकार ने इस हत्याकांड का भंडाफोड किया था उसे अदालत अवमानना कानून के तहत जुर्माना भरना पड़ा था। देखें लेख बलात्कारः पीड़ा की हार अरविंद जैन, चौथी दुनिया, 27 मार्च से 2 अप्रैल 1988
20. 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार, मेडिकल परीक्षण नहीं करवाया, डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं बुलाया, अभियुक्त रिहा। 1978 चाँद लॉ रिपोर्टर (क्रि.) दिल्ली-91
21. 80 पंजाब लॉ रिपोर्टर 232
22. 1977 क्रि. लॉ. ज. 185 (जम्मू-कश्मीर)
23. 82 पंजाब लॉ रिपोर्टर 220
24. 1980 चाँद लॉ रिपोर्टर 108 (पंजाब व हरियाणा) ए. आई. आर. 1977 सुप्रीम कोर्ट 1307, ए. आई. आर. 1979, सुप्रीम कोर्ट 185
25. ए. आई. आर. 1927 लाहौर 858 ए. आई.आर 1942 मद्रास 285
26. भारतीय साक्षी अधिनियम की धारा-155(4) में प्रावधान है कि अगर पुरुष पर बलात्कार का अभियोग हो तो गवाह की विश्वसनीयता समाप्त करने के लिऐ यह प्रमाणित करना आवश्यक है कि पीड़ित अनैतिक चरित्र की हैं।
27. प्रताप मिश्रा बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1977 सुप्रीम कोर्ट 1307 मेंं गर्भवती प्रोमिला कुमारी रावत के साथ तीन व्यक्तियों ने बलात्कार किया, 4-5 दिन बाद गर्भपात हुआ, चोट के निशान न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था कि सम्भोग सहमति से हुआ हैं और इसमें पति की मिलीभगत है।
28. ए.आई.आर. 1939, इलाहाबाद 708
29. 1979 राजस्थान क्रिमिनल केसेस 357
30. कुदरत बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1939, इलाहाबाद 708
31. 1977 (2) राजस्थान क्रिमिनल केसेस 206
32. ए.आई.आर. 1958, सुप्रीम कोर्ट 143
33. रफीक बनाम राज्य, 1980 (4), सुप्रीम कोर्ट केसेस 262
34. ए.आई.आर. 1923, लाहौर 297
35. 19 क्रिमिनल लॉ जरनल 155
36. राजकपूर बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1980 सुप्रीम कोर्ट 258
37. वही, 615
38. समरेश बोस बनाम अमल मित्रा 1985 (4) सुप्रीम कोर्ट के केस 289
39. फरजाना बी बनाम सेंसर बोर्ड 1983 इलाहाबाद लॉ जरनल 1133
40. भारतीय दंड सहिंता की धारा 292 के अपवाद
41. भारतीय दंड सहिंता की धारा 304-बी और भारतीय साक्षी अधिनियम की धारा 113-बी
42. ‘बड़ी बेटी के हत्यारे को छोटी बेटी ब्याह दी' जनसत्ता, 26 जून, 1988 पृ. 3
43. चौथी दुनिया, 17-23 जनवरी, 1988। संडे आब्जर्वर, 27 मार्च, 1988, ‘गंगा' जनवरी 1989 और सुप्रीम कोर्ट केसेस 1985 (4) पृ. 476 और ‘ब्राइडस ऑर नाट फॉर बर्निंग रंजना कुमारी, रेडियंट पब्लिशर्ज, 1989
44. वीरभान सिंह बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1983 सुप्रीम कोर्ट 1002, कैलाश कौर बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1987,सुप्रीम कोर्ट, लक्ष्मी देवी बनाम राज्य ए.आई.आर.1988 सु. को. 1785, व अन्य। पढ़ेःं ‘विमैन, लॉ एंड सोशल चेंज इन इंडिया', इंदू प्रकाश सिंह, रेडियंट पंब्लिशर्स 1989
45. भारतीय दंड सहिंता की धारा-375 में यह अपवाद कि पत्नी अगर 15 वर्ष से कम उम्र की नहीं है तो उसके साथ सम्भोग बलात्कार नही माना जाएगा। हालाँकि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-5 (प्प्प्द्ध के अनुसार दुल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की उम्र 18 वर्ष होना अनिवार्य हैं।
46. हिन्दू गोद व भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा-8
47. वही, धारा-6
48. ‘रोके नहीं रुकते बाल-विवाह', अशोक शर्मा, रविवारीय जनसत्ता, 17 अप्रैल, 1988, पृ. 4
49. ‘जैन धर्म और बालदीक्षा', इंद्रदेव, नई सदी, मई, 1988, पृ. 4, ‘धर्म गुरुओं की हैवानियत का दूसरा नाम हैं बालदीक्षा', चौथी दुनिया, 1-7 जनवरी, 1989,पृ. 7, ‘कम उम्र बच्चियों को जबरन बनाया जाता है साध्वी', दैनिक विश्वामित्र, 10 मई, 1987
50. ‘द रनअवे नत', इंडिया टूडे, 31 जनवरी 1987, पृ. 89
51. ‘शोकिंग डेथ' संडे मेल, 18-24 अक्तूबर, 1987
52. ए. आई. आर. 1966 मध्यप्रदेश 212
53. भारतीय विवाह अधिनियम की धारा-9, ए.आई.आर. 1983, आंध्र प्रदेश 356 के अनुसार यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के विरुद्ध हैं लेकिन अपील में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को रद्द कर दिया। ए.आई.आर. 1984, सुप्रीम कोर्ट 1562
54. हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा-6
55. हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा-8
56. भारतीय दंड संहिता की धारा-497 के अनुसार व्यभिचार किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी के साथ बिना उसके पति की सहमति या मिलीभगत के यौन-संबंध स्थापित करना हैं। देखें-लेख अरविंद जैन, चौथी दुनिया, 28 फरवरी-5 मार्च, 1988
57. ‘आदमी की निगाह में औरत', राजेन्द्र यादव साप्ताहिक हिंदुस्तान, 1989, पृ. 23
58. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-125
59. सैमित्र विष्णु बनाम भारत सरकार, ऑल इंडिया रिपोर्टर, 1985, सुप्रीम कोर्ट 1618
60. भारतीय दंड संहिता की धारा-361
61. ‘आदमी की निगाह में औरत', राजेन्द्र यादव, साप्ताहिक हिंदुस्तान, 12 मार्च, 1989
62. इम्मौरल ट्रैफिक (प्रवर्शन) एक्ट-1956
63. रतनमाला केस आलॅ इंडिया रिपोर्टर 1962 मद्रास-31
64. वेश्यावृत्ति निरोधक कनून 1956 की धारा-2 (एफ)
65. देखें ‘कानून भी वेश्या को ही सताता हैं' अरविंद जैन, मधुर कथाएँ जून, 1988 पृ. 77
66. मथुरा केस, सुमन बलात्कार केस 1989 (1) स्केल, 199 और परड़िया बलात्कार कांड, हिंदुस्तान टाइम्स, 31 मार्च, 1988
67. ‘क्रूजर सोनाटा', लेव तोल्सतोय।
68. भारतीय दंड संहिता की धारा-300 का अपवाद (1) इसके अंतर्गत बहुत से ऐसे हत्या के मुकदमें हैं जिनमें अवैध यौन-संबंधों के आधार पर हत्यारों की सजा कम हुई हैं।
69. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-72 के अंतर्गत राष्ट्रपति और गवर्नर द्वारा काफी मामलों से सजा माफ की गई हैं।
70. सती निरोधक कानून की धारा।
71. ए.आई.आर. 1914 इलाहाबाद 249 एक सती का मुकदमा जिसमें मुजरिमों की पैरवी पं. मोतीलाल नेहरू न की थी। (देखें, ‘हंस' नवम्बर, 1987, पृ. 86)
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(शब्द संगत से साभार)
"..स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश ..."
जवाब देंहटाएं--- क्या अरविंद जी को ज्ञात नहीं है कि ये सब पुरुषों के ही पद नहीं हैं ..महिलायें भी ये सब होती हैं ---किस दुनिया में जी रहे हैं हुज़ूर..
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---- और महिलाओं द्वारा पुरुष पर, सास द्वारा बहू पर अत्याचार... तमाम अपराध, अत्याचार, लूट. हिंसा, मर्डर , वैश्यावृत्ति, मौक़ा मिलते ही लड़ाकों को छेड़-छाड... को अप किस दृष्टि से देखेंगे ...
--- सिर्फ भावुकता में लिखी गयी एक पूर्णतया भ्रामक व अज्ञानतापूर्ण पोस्ट है.... यह सब सिर्फ पुरुष की नहीं अपितु मानवीय चारित्रिक व सामाजिक दोष तथा बुराइयां है जिनमें महिलायें भी लिप्त रहती हैं ...
----धर्म ग्रंथों को कोसने से क्या होगा ..वही जो आज होरहा है...किस धर्म ग्रन्थ में लिखा है कि औरतों पर अत्याचार करो...
---- चारित्रिक दृढता, शुचिता, पहनावे-व्यवहार- आचरण में शालीनता ही इसका एक मात्र उपाय है वह भी स्त्री व पुरुष दोनों के लिए ... एक हाथ से ताली नहीं बजती...
--‘अर्धनारीश्वर' का अर्थ वह नहीं जो आप लिख रहे हैं...इसका अर्थ है .. ईश्वर का वह रूप जो आधा नारी भी है.... न पुरुष स्वयं को पूरा ईश्वर समझे न नारी ही ऐसा समझे...
kuch jyada hi ho gaya,shrimanji ati hi kar di aapne
जवाब देंहटाएंआधुनिक युग बराबरी का है , कोई किसी के अधीन नहीं I अब लिंग भेद कि बातें ग़ैर कानूनी हैं I महिलायें पुरुषों से कहीं ज्यादा जागरूक हैं I अपने अधिकारों का उन्हें पूरा ज्ञान हो चुका है I कानून उनके साथ है I उन्हें कमजोर समझने वाले मूर्ख हैं I प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति तक का सफ़र किसी आरक्षण का फल नहीं I अपनी दम पर उसने ये मुकाम पाया हैं I नारी शक्तिशालिनी है ,ममतामयी है , प्रणम्य है I
जवाब देंहटाएंआपने अपनी टिप्पडी के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का साहस किया है । कुछ लोग महिला कानूनों की बात करके इस सच से मुह मोड़ लेंगे । लेकिन मैं जानता हूं वास्तविकता नही बदलने वाली । अंजुम रहबर जी की दो लाइन याद आ गई ।।। सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है ।इल्जाम आइनों पे लगाना फ़िज़ूल है ।। आपकी ऐसी पोस्ट का इंतजार रहेगा । बहूत धन्यवाद
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