रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य : दक्षिण अफ्रीका विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी की अस्मिता की खोज

SHARE:

व्यंग्य हिंदी की अस्मिता की खोज पाँच साल पहले हम न्यूयॉर्क से हिंदी को ढूंढ़-ढांढ़ कर लाए थे। चमका-दमका कर उसकी फिर से प्राण-प्रतिष्ठा की...

व्यंग्य

हिंदी की अस्मिता की खोज

पाँच साल पहले हम न्यूयॉर्क से हिंदी को ढूंढ़-ढांढ़ कर लाए थे। चमका-दमका कर उसकी फिर से प्राण-प्रतिष्ठा की थी। लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ। दरअसल रोज-रोज धूप-बत्ती से पूजा-अर्चना करते-करते हिंदी की छवि फिर से धुँअठा गई है। इसलिए दुनिया के अग्रणी हिंदी-प्रेमी और हिंदी विद्वान जोहानसबर्ग में फिर एक बार मिल बैठेंगे और फिर से हिंदी को चमकाकर उसका भविष्य उज्ज्वल बनाएँगे। दिक्कत यह है कि अपने देश की सब नायाब चीजें नासमझ और खुदगर्ज लोगों ने खुर्द-बुर्द कर डाली हैं। देखिए न, बापू का बहुत-सा सामान अभी कुछ ही दिन पहले इंग्लैंड में मिला। और विडंबना यह है कि जिस भले आदमी ने ये सामान खरीदकर भारत को नायाब तोहफा और पूज्य बापू को एक तरह से श्रद्धांजलि दी, उसका ज्यादातर कारोबार शराब पर केंद्रित है, जिसकी बापू ने जीवन भर भर्त्सना की।

खैर, जैसे बापू की बहुत-सी दूसरी चीजें जैसे इधर-उधर बिला गई हैं और अब उन्हें खोज-खोजकर अपने महान देश में वापस लाया जा रहा है, उसी तरह बापू की पालित-पोषित और भारत व देश-दुनिया में प्रचारित हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी भी अपने देश में बिला गई है। कई दशकों से हम उसे दुनिया में यहाँ-वहाँ जा-जाकर खोज रहे हैं। कभी-कभी भ्रम होता है कि कहीं अपने मादरे-वतन की यह जबान भारत में ही तो नहीं हेरा गई है! ऐसे में हम लौट-लौटकर अपना घर भी खंगाल लेते हैं। इसी क्रम में एक बार नागपुर और फिर एक बार दिल्ली में हम सब मिलकर हिंदी की अस्मत और अस्मिता, दोनों की खोज कर चुके। कुछ दिन के लिए उनके मिल जाने का भ्रम भी बना रहा, किंतु फिर यह तत्व-बोध हुआ कि हिंदी की अस्मिता की खोज स्वदेश में करना बिलकुल बेकार है। इसलिए गाहे-ब-गाहे हम विदेश जा-जाकर नए-नए कोणों से अपने ही घर में दुरदुराई जा रही हिंदी की अस्मिता को खोजने की कोशिश करते हैं। एक बार लंदन जाकर सब विद्वान देख आए कि कहीं मरदुए अँग्रेज़ तो जाते-जाते हिंदी की इज्जत-आबरू को अपने साथ नहीं लिवा ले गए? भई, उनका क्या ठिकाना! भारत का अनमोल रत्न कोह-ए-नूर तो लेकर बैठ ही गए। वापस देने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। तो क्या मालूम भारत की लाड़ली हिंदी को भी कहीं दबाए न बैठे हों। लेकिन लंदन को खूब छानने के बाद भी अंग्रेजों के यहां से हिंदी बरामद नहीं हो सकी। अलबत्ता यह जरूर महसूस हुआ कि निगोड़ी अंग्रेजी के आतंक से ही हिंदी कहीं जाकर दुबक गई है।

इसके बाद हिंदी के भइया लोगों को लगा कि हो न हो विलायत वालों ने हिंदी की कामधेनु को धीरे से अमेरिका खिसका दिया है। वैसे भी जबसे सोवियत संघ का शीराजा बिखरा है, पूरी पृथ्वी में केवल एक ही ध्रुव बचा है, और वह है अमेरिका। लिहाजा सारे हिंदी प्रेमी अपनी-अपनी डोरी-लुटिया लिए न्यूयॉर्क पहुँच गए। वहाँ देखा कि पूरा अमेरिकी समाज अजब तरह के घाल-मेल से बना है। दुनिया भर के लोग वहाँ जुटे हैं और सरकार उनके निजी जीवन में किसी तरह का दखल नहीं देती। जिसे जैसे रहना है रहो, जो भाषा बोलनी है, बोलो। बस अमेरिका की समृद्धि में योगदान किए जाओ। सबने देखा कि हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएँ बोलने वाले लोग भी कुछ डॉलरों के लालच में अमेरिका के आगे दंड पेल रहे हैं। जब घर-गाँव की याद सताती है तो हिंदी बोलकर, हिंदी फिल्में देखकर और हिंदी गीत गाकर ग़म ग़लत कर लेते हैं। कोई धार्मिक आयोजन हो, योग-वोग का कार्यक्रम हो, मिलना-मिलाना हो, तो राम-राम, राधे-कृष्ण कहके, हिंदी में गप्प-सड़ाका करके अपनी जड़ों को याद कर लेते हैं। पर सच कहें तो वहाँ जाकर भी हिंदी की खोज मुकम्मल नहीं हुई। कोलंबस ने जिस तरह अमेरिका को ही भारत समझ लिया था, उसी तरह कुछ लोगों को जरूर लगा कि उन्हें अमेरिका में सही-सलामत अस्मिता-युक्त हिंदी मिल गई। लेकिन थोड़े ही दिन बात उनका यह मुगालता जाता रहा। हुआ यह कि न्यूयॉर्क में 2007 में जो हिंदी दिखी और हस्तगत हुई थी, वह फिर हाथ से फिसल गई और अब फिर से उसकी खोज जारी हो गई है।

बताते चलें कि इससे पहले एक बार हम हिंदी प्रेमी लोग गिरमिटिया मजदूरों के यहाँ, यानी मॉरीशस और सूरीनाम-त्रिनिदाद में भी हिंदी की खोज कर आए हैं। हिंदी तो हमेशा से ही गरीब किसानों और मजदूरों, मजलूमों की भाषा रही है। बेचारे अनपढ़ और अर्ध-शिक्षित गिरमिटिया मजदूर अपने साथ अपने कर्मठ शरीर और रामचरित मानस की पोथी लेकर गए थे। उन्होंने अंग्रेजों के उपनिवेशों को ही अपना लिया, लेकिन अपनी भाषा और संस्कृति की सोंधी-सोंधी विरासत को भी बड़े जतन से बचाए रखा। हमें लगा कि इतने कठिन यातनामय जीवन-क्रम के बाद भी जो हिंदी जिंदा बच गई, उसके बीज में कितनी गहरी जिजीविषा होगी! हमने मॉरीशस और त्रिनिदाद जाकर हिंदी का राग गाया और उसके बीज लाकर भारत की शस्य-श्यामलता धरती में बोए थे। लेकिन यह इतिहास की बात हो गई। मॉरीशस और त्रिनिदाद में चाहे हिंदी की सोंधी महक अब भी बाकी हो, अपने यहाँ तो वह विलुप्ति के कगार पर है। इसलिए बार-बार हमें अपनी प्यारी हिंदी की तलाश में अंग्रेजों के उपनिवेशों की ओर निकलना पड़ता है।

अबकी हमारे विद्वानों और हिंदी प्रेमियों ने हिंदी की खोज में दक्षिण अफ्रीका जाने का मन बनाया है, जहाँ हमें अंततः ऐसी हिंदी के मिल जाने की पूरी उम्मीद है, जो दीर्घजीवी होगी। अब क्या बताएं? सच तो यह है कि दुनिया के पूरे हिंदी प्रेमियों को आशा अंतरीप बड़ी शिद्दत से अपनी और खींच रहा है। बात ही कुछ ऐसी है। सन 1896 में जब बापू दक्षिण अफ्रीका गए थे और पंद्रह-सोलह वर्ष तक वहाँ एशियाई मूल के लोगों के लिए सम्मानपूर्ण जीवन के सामान जुटाने में लगे रहे थे, तब उन्होंने हिंदी, तमिल और गुजराती आदि भारतीय भाषाओं के अख़बार निकालकर वहाँ के भारतीय समाज में जागृति लाने की बड़ी सफल चेष्टा की थी। यानी बापू खुद लगभग सौ साल पहले दक्षिण अफ्रीका में हिंदी को खोज-खाजकर अच्छी तरह से जमाकर आए थे। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि जोहानेसबर्ग में हमें हिंदी बहुत अच्छे हाल में मिलेगी। बापू ने हिंदी की जो पौध जोहानेसबर्ग की मिट्टी में लगाई थी, वह इन सौ से अधिक वर्षों में खूब बड़ा पेड़ बन गई होगी। उसी की एकाध डाल-डंगाल लाकर हम भारत में रोप देंगे तो हो सकता है कि हिंदी की फसल फिर से अपने यहाँ तैयार हो जाए।

पर न जाने क्यों अपने मन में रह-रहकर शंका उठती है। अपुन को लगता है कि हिंदी के जो भी बीज हमें विदेश से जा-जाकर, खोज-बीनकर लाते हैं, वे वस्तुतः टर्मिनेटेड सीड होते हैं और उनकी फसल पाँच साल में फिर से मर जाती है। इसलिए हर पाँच साल में हमें हिंदी का नया बिरवा खोजने विदेश निकलना पड़ता है। वरना क्या बात है कि मॉरीशस, फिजी, आदि जगहों से बहुत पुराने और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गुणसूत्रों से युक्त बीज तथा लंदन और न्यूयॉर्क जैसे उन्नत शहरों से ला-लाकर भारत में बीज-वपन करने के बाद भी हिंदी खुद अपने देश से उच्छिन्न होने के कगार पर है। अगर ऐसा न होता तो क्या कारण है कि हिंदी-भाषी, गो-पट्टी राज्यों में सबसे प्रमुख राज्य, यानी उत्तर प्रदेश के 35 लाख बोर्ड-परीक्षार्थियों में से 3 लाख हिंदी की परीक्षा में पूरी तरह फेल ही हो गए और 40 प्रतिशत छात्रों के प्राप्तांक पचास प्रतिशत से भी कम रह गए?

खैर, हमें आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। अगर जोहानेसबर्ग से भी हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को इम्पोर्ट या डिपोर्ट नहीं करवा पाए तो अबसे पाँच साल बाद सिंगापुर जाकर उसे भारत लाने की कोशिश करेंगे। और यदि तब भी सफलता हाथ नहीं लगी तो उसके अगले पाँच वर्ष बाद हॉङ्ग-कॉङ्ग या मनीला चलेंगे। फिर भी काम न चला तो टोकियो और फिर सिडनी चलेंगे। कहीं न कहीं तो हमें हिंदी मिल ही जाएगी। भारत से जलावतन हुई हिंदी की तलाश में हम दुनिया का कोना-कोना छान मारेंगे, लेकिन हिंदी को खोजकर लाने और उसे उसकी खोई हुई अस्मिता वापस दिलाने में हम कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेंगे।

हाँ। अपने सरकारी काम-काज में हिंदी का प्रयोग करने के लिए हमें कोई न कहे। निजी जीवन में हिंदी के इस्तेमाल की बात तो बिलकुल ही न की जाए, क्योंकि वह हमारा निजी मामला है। दरअसल बात यह है कि भारत में जो थोड़ी-मोड़ी हिंदी बची भी है वह हमें बहुत कठिन लगती है। उसे अभी और आसान बनाने की जरूरत है। आसान, और आसान, और भी आसान, बहुत आसान। कितना आसान? कैसे आसान बनेगी हिंदी? यह आप हमसे मत पूछिए। हमें तो ऐसी हिंदी चाहिए जो बिना प्रयास किए हमारी खोपड़िया में गटागट घुसती चली जाए। इस लिहाज से हमें अंग्रेजी आसान लगती है। हमें ही क्यों! भारत के अनपढ़ लोगों को भी हिंदी की तुलना में अंग्रेजी ही आसान लगती है। दरअसल बात यह है भइए, कि अंग्रेजी है खालिस इम्पोर्टेड माल, बिलकुल विलायती! इस विलायतीपन की खोज में ही तो हम हिंदी-प्रेमी कभी इस देश तो कभी उस देश दर-दर भटक रहे हैं। जिस दिन हिंदी में लुभावना विलायतीपन आ जाएगा, समझो कि बस उसी दिन से वह छा जाएगी पूरे भारत पर। अभी तो पूरी दुनिया में अच्छी नस्ल की हिंदी फैली है, बस भारत में उसकी कमी है। और हम हिंदी प्रेमियों की पुरजोर कोशिश है कि किसी न किसी तरह हम वही विदेशी हिंदी वाली बात इस देसी हिंदी में भी लाकर रहेंगे। चाहे इसके लिए हमें एक हिंदी सम्मेलन चाँद पर ही क्यों न करना पड़े!

---0---

आर.वी.सिंह/R.V. Singh

ईमेल/email-rvsingh@sidbi.in

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. ...हिन्दी को विश्वस्तरीय भाषा बनाने की कोशिश तो जारी रखनी ही चाहिए!...अब इसके लिए ज्यादा से ज्यादा सहयोग, अपनी स्वेच्छासे भारतीय लोग कितना देते है यह देखने वाली बात है...सहयोग देने का मतलब है हिन्दी भाषा को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाना...चाहे लिखना हो या बोलना हो!

    जवाब देंहटाएं
  2. Dr. Shaik Abdul Wahab7:56 pm

    Aaj ke daur mein Hindi ko ahik se adhik prayog mein lane ki aavashyakta hai. Rashtra Bhasha ka prachar va prasar hamara ya ham sab ka dharma hai. Jab yahan ka pratyek nagarik is pavitra karma mein lag jayega tab yah saral hoga. Jeevan aur vyavsay ke har kshetra mein iske prayog ko badhane ki aavashyakta hai. Bolen hindi mein likhen hindi mein kaamkaaj ho Hindi mein. To bas sachhe arthon mein yah Rashtra Bhasha bankar raj karegi.

    जवाब देंहटाएं
  3. हा हिन्दी!
    सटीक!

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामी12:33 pm

    रामवृक्ष जी आपके द्वरा हिंदी के प्रति व्यंगात्मक व्यथा की अभिव्यक्ति से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। विडंबना यह है कि हम विश्व स्तर पर हिंदी की बात कर रहे हैं जबकि हमारे घर में ही हिंदी की उपेक्षा हो रही है। सरकारी तबका कार्यालयों में हिंदी में काम करने में अपनी तौहीन समझता है । राजभाषा के रूप में हिंदी की प्रगति नगण्य है, खुलेआम संविधान की अपेक्षाओं की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जब हम अपनी व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं तभ विदेश में हिंदी को मान्यता दिलवाने की बात समझ में नहीं आती है।.... आगे फिर अपनी व्यथा और कथा के साथ मिलेंगे।

    धन्यवाद,

    डॉ. ओमकार नाथ शुक्ल

    धन्यबाद,

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य : दक्षिण अफ्रीका विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी की अस्मिता की खोज
रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य : दक्षिण अफ्रीका विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी की अस्मिता की खोज
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IjWa5w_f7mRDSQacy2BDmqnrxW7MRdzIy1I5ZQlzwwPzQbvW5_1yjsZoSuEisIFo0SuKUO_mQ_trTIK57GRBU1-1u1ZvsYQGfWZaVcv0aXNQCjSDe1nD40znCp6WrCmzSxtz/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IjWa5w_f7mRDSQacy2BDmqnrxW7MRdzIy1I5ZQlzwwPzQbvW5_1yjsZoSuEisIFo0SuKUO_mQ_trTIK57GRBU1-1u1ZvsYQGfWZaVcv0aXNQCjSDe1nD40znCp6WrCmzSxtz/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_19.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_19.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content