चूंकि स्विट्जरलैंड की अर्थ व्यवस्था देश में जमा कालाधन से चलती है, इसलिए उसके लिए जरूरी है कि वह ऐसे नए कानूनी प्रावधान अमल में लाए ज...
चूंकि स्विट्जरलैंड की अर्थ व्यवस्था देश में जमा कालाधन से चलती है, इसलिए उसके लिए जरूरी है कि वह ऐसे नए कानूनी प्रावधान अमल में लाए जिससे दुनिया के धन कुबेर स्विस बैंकों में धन जमा करते रहें। इस नजरिए से स्विट्जरलैंड सरकार ने ग्राहकों को लुभाने के लिए नई तरकीब इजात कर ली है। अब वह उन्हें ऐसी तिजोरियां बैंकों में उपलब्ध कराएगा जिनमें रखी दौलत अन्य देशों के साथ कर संधियों के दायरे में न आए। इन तिजोरियों में स्विस मुद्रा फ्रैंक के एक हजार के नोट, हीरे-जवाहरात जमा किए जाएंगे। दरअसल स्विट्जरलैंड को इस स्थिति का सामना इसलिए करना पड़ा है क्योंकि कई देश स्विस बैंकों पर कर संधि का दबाव बनाकर अपन धन वापिस लेने लगे हैं। संधियों के अनुसार सिर्फ बचत खातों और निवेश खातों में रखी गई रकम की जानकारी देने को स्विस बैंक बाध्यकारी हैं। लिहाजा तिजोरियों में कालाधन जमा करने के लिए स्विट्जरलैंड इस नई तरकीब को खोज निकाला।
हाल ही में स्विस नेशनल बैंक ने स्विस बैंकों की वार्षिक समीक्षा पत्रिका में खुलासा किया है कि भारत के भ्रष्ट लोगों का 12,740 करोड़ रूपए स्विस बैंकों में जमा है। हालांकि देश का कितना पैसा कालेधन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा है इसके अलग-अलग आंकड़े हैं। बाबा रामदेव का यह आंकड़ा 20 लाख करोड़ का है तो लालकृष्ण आडवाणी का 27.77 करोड़ बताते हैं। वहीं सीबीआई के नीदेशक अमर प्रताप सिंह इस आंकड़े को 24.5 लाख करोड़ मानते हैं। जबकि विकीलिक्स के संपादक जूलियन असांजे का दावा है कि भारतीयों का चीन के बाद सबसे ज्यादा धन विदेशी बैंकों में जमा है, जो करीब 1500 अरब डॉलर है। असांजे का यह भी दावा है कि उनके पास 2 हजार भारतीयों की रकम जमा होने के नामों की सूची है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार भी सीमा पार आपराधिक और कर चोरी के रूप में काले धन का प्रवाह लगभग 1500 अरब डॉलर है। इसमें से 40 अरब डॉलर रिश्वत का है, जो विकासशील देशों के अधिकारियों को विकसित देशों ने अपने हितों के लिए नीतियां परिवर्तन के लिए दिए। इसमें 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्र मण्डल खेलों में हुए घोटालों की राशि भी शामिल है। सीबीआई को पता चला है कि बड़ी मा़त्रा में यह धन राशि दुबई, सिंगापुर और मॉरीशिस ले जाई गई, वहां से स्विट्जरलैण्ड और अन्य ऐसे टैक्स हैवन (जहां काले धन को सुरक्षित रखने की वैधानिक सुविधा है।) देशों में भेजी गई है। इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं इसी धन पर टिकी हैं, इसलिए इन देशों की सरकारें जांचों को नजरअंदाज करती हैं। मसलन वहां से धन वापिसी आसान नहीं है। इन्हीं वजहों से पिछले 15 साल के भीतर तमाम दबावों के बावजूद महज 5 अरब डॉलर धन राशि की वापिसी मूल देशों को हो पाई है। तिजोरियों की तरकीब लाकर स्विट्जरलैंड ने फिर से कालाधन जमा करने में बाजी मार लेने की मुहिम चला दी है।
बैंक गोपनीयता कानून लागू होने के कारण, इस धन के वास्तविक आंकड़ों का ठीक पता लगाना पहले से ही कठिन बना हुआ है। इस धन के साथ एक विडंबना यह भी जुड़ी है कि अंतरराष्ट्रीय पारदर्शिता संस्था ने जिस देश को सबसे कम भ्रष्ट देश माना है उस देश में उतना ही ज्यादा काला धन जमा है। न्यूजीलैण्ड, सिंगापुर और स्विट्जरलैण्ड सबसे कम भ्रष्ट देश हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों का धन जमा करने में ये अब्बल देश हैं। यह अजीब विरोधाभास है कि इन देशों में भारत का 500 अरब डॉलर से 1400 अरब डॉलर धन जमा होने का अनुमान है, जो देश के सालाना सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
हमारे देश में जितने भी गैर कानूनी काम हैं, उन्हें कानूनी जटिलताएं संरक्षण देने का काम करती हैं। कालेधन की वापिसी की प्रक्रिया केंद्र सरकार के स्तर पर ऐसे ही हश्र का शिकार होती रही है। सरकार इस धन को कर चोरियों का मामला मानते हुए संधियों की ओट में गुप्त बने रहने देना चाहती है, जबकि विदेशी बैंकों में जमा काला धन केवल कर चोरी का धन नहीं है। भ्रष्टाचार से अर्जित काली-कमाई भी उसमें शामिल है। जिसमें बड़ा हिस्सा राजनेताओं और नौकरशाहों का है। बोफोर्स दलाली, 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमण्डल खेलों के माध्यम से विदेशी बैंकों में जमा हुए कालेधन का भला कर चोरी से क्या बास्ता ?
पूरी दुनिया में कर चोरी और भ्रष्ट आचरण से कमाया धन सुरक्षित रखने की पहली पसंद स्विस बैंक रहे हैं। जिनेवा स्विट्जरलैंड की राजधानी है। यहां खाताधारकों के नाम गोपनीय रखने संबंधी कानून का पालन कड़ाई से किया जाता है। यहां तक की बैंकों के बही खाते में खाताधारी का केवल नंबर रहता है, ताकि रोजमर्रा काम करने वाले बैंककर्मी भी खाताधारक के नाम से अंजान रहें। नाम की जानकारी बैंक के कुछ आला अधिकारियों को ही रहती है। ऐसे ही स्विस बैंक से सेवानिवृत एक अधिकारी रूडोल्फ ऐलल्मर ने दो हजार भारतीय खाताधारकों की सूची विकिलीक्स को पहले ही सौंप दी है। तय है जुलियन अंसाजे देर-सबेर इस सूची को इंटरनेट पर डाल देंगे। इसी तरह फ्रांस सरकार ने भी हर्व फेल्सियानी से मिली एचएसबीसी बैंक की सीडी ग्लोबल फाइनेंशल इंस्टि्टयूट को हासिल कराई है, जिसमें अनेक भारतीयों के नाम दर्ज हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने एक संकल्प पारित किया है। जिसका मकसद है कि गैरकानूनी तरीके से विदेशों में जाम काला धन वापिस लाया जा सके। इस संकल्प पर भारत समेत 140 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। यही नहीं 126 देशों ने तो इसे लागू कर काला धन वसूलना भी शुरू कर दिया है। यह संकल्प 2003 में पारित हुआ था, लेकिन भारत सरकार इसे टालती रही। आखिरकार 2005 मे ंउसे हस्ताक्षर करने पड़े। लेकिन इसके सत्यापन में अभी भी टालमटूली बरती जा रही है। स्विट्जरलैंड कानून के अनुसार कोई भी देश संकल्प को सत्यापित किए बिना विदेशों में जमा धन की वापिसी की कार्रवाई नहीं कर पाएगा। यदि अब दबाव बढ़ता भी है तो स्विस बैंक ग्राहक को तिजोरियों में धन जमा करने की सुविधा दे देंगे। जाहिर है धन की वापिसी मुश्किल हो जाऐगी।
दुनिया के तमाम देशों ने कालेधन की वापिसी का सिलसिला शुरू कर दिया है। इसकी पृष्ठभूमि में दुनिया में आई वह आर्थिक मंदी थी, जिसने दुनिया की आर्थिक महाशक्ति माने जाने वाले देश अमेरिका की भी चूलें हिलाकर रख दी थीं। मंदी के काले पक्ष में छिपे इस उज्जवल पक्ष ने ही पश्चिमी देशों को समझाइश दी कि काला धन ही उस आधुनिक पूंजीवाद की देन है जो विश्वव्यापी आर्थिक संकट का कारण बना। इस सुप्त पड़े मंत्र के जागने के बाद ही आधुनिक पूंजीवाद के स्वर्ग माने जाने वाले देश स्विट्जरलैंड के बुरे दिन शुरू हो गए । नतीजतन पहले जर्मनी ने ‘वित्तीय गोपनीय कानून' शिथिल कर काला धन जमा करने वाले खाताधारियों के नाम उजागर करने के लिए स्विट्जरलैंड पर दबाव बनाया और फिर इस मकसद पूर्ति के लिए इटली, फ्रांस, अमेरिका एवं ब्रिटेन आगे आए। अमेरिका की बराक ओबामा सरकार ने स्विट्जरलैंड पर इतना दबाव बनाया कि वहां के यूबीए बैंक ने कालाधन जमा करने वाले 17 हजार अमेरिकियों की सूची तो दी ही 78 करोड़ डॉलर काले धन की वापिसी भी कर दी।
अब तो मुद्रा के नकदीकरण से जूझ रही पूरी दुनिया में बैंकों की गोपनीयता समाप्त करने का वातावरण बनना शुरू हो चुका है। इसी दबाव के चलते स्विट्जरलैंड सरकार ने कालाधन जमा करने वाले देशों की सूची जारी की है। स्विस बैंक इस सूची को जारी करने में देर कर भी सकता था, लेकिन इसी बैंक से सेवा निवृत्त हुए रूडोल्फ ऐल्मर ने जो सूची विकिलीक्स के संपादक जूलियन अंसाजे को दी है, उसका जल्द इंटरनेट पर खुलासा होना तय है। इस अंतरराष्ट्रीय काले कानून को खत्म करने के दृष्टिगत अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बन रहा है। स्विस बैंकों में गोपनीय तरीके से काला धन जमा करने का सिलसिला पिछली दो शताब्दियों से बरकरार है। लेकिन कभी किसी देश ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। आर्थिक मंदी का सामना करने पर पश्चिमी देश चैतन्य हुए और कड़ाई से पेश आए। इस कड़ाई के चलते स्विट्जरलैंड ने अर्थ व्यवस्था को कोई हानि न हो इस नजरिए से तिजोरी परियोजना शुरू की है। इस पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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