धर्मेन्द्र कुमार सिंह की लम्बी कविता : प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण

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लम्बी कविता :  प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण आपके मुँह में छाले हैं तो क्या हरी मिर्च को मीठा हो जाना चाहिए अगर राहु और केतु कल्पन...

लम्बी कविता :  प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण

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आपके मुँह में छाले हैं तो क्या हरी मिर्च को मीठा हो जाना चाहिए

अगर राहु और केतु कल्पनाएँ हैं
तो जिन कहानियों से राहु और केतु जन्मे हैं वो?
हर देश में, हर धर्म में
झूठ इतनी आसानी से अमर क्यों हो जाते हैं?

धर्मग्रंथों में अच्छी कहानियाँ और नीतिपरक उपदेश होते हैं ईश्वर नहीं

खूबसूरत कल्पनाएँ सच मानी जाने के लिए अभिशप्त हैं

‘सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है’ से बड़ा सच ‘सुंदर ही शिव है, शिव ही सत्य है’ होता है

तीव्रता में, प्रसार में, नुकसान में
धर्म दुनिया का सबसे बड़ा नशा है
नशा करने की खुली छूट मदहोशी पर खत्म होती है
जिसे धर्म का डॉक्टर स्वास्थ्य का उच्चतम बिंदु कहता है

आस्तिकों से उनका विश्वास छीनने की कोशिश करने वालों को राक्षस कहा गया
क्या नास्तिकों से उनका अविश्वास छीनने की कोशिश राक्षसत्व नहीं है?

आस्तिकता पैतृक संपत्ति है
नास्तिकता स्वयं के खून पसीने की कमाई

पूर्ण आस्तिक या पूर्ण नास्तिक होना लगभग असंभव है
लोग अपनी सुविधानुसार इन दोनों के बीच का कोई रास्ता चुनते है

हम कुछ नया करने से ज्यादा महत्वपूर्ण पुराने कूड़े को सुरक्षित रखना समझते हैं

प्रशंसा सत्तालोभी और अप्सराभोगी देवताओं को प्रसन्न कर सकती है ईश्वर को नहीं
देवता का विलोम राक्षस नहीं होता

ऐसा क्यूँ है?
इस प्रश्न का उत्तर दुर्धर और अविश्वसनीय है
क्या होना चाहिए?
सब इसका उत्तर जानते हैं
काश! कि सच इससे उल्टा होता

जटिल सिद्धान्तों का सरलीकरण उन्हें विकृत कर देता है
सिद्धान्तों की सही समझ अपवादों को समझे बिना असंभव है

धार्मिक साहित्यकारों ने अपने समय का सच लिखा होता
तो वो कब का मिटा दिया गया होता
किंतु मीठा मधुमेह के रोगी हेतु जहर है

जिनके घर शीशे के होते हैं
वो सबको हमेशा यही उपदेश देते हैं
कि पत्थर मारना बुरी बात है

क्वांटम सिद्धांत के अनुसार
अँधेरे बंद कमरे में इंसान न जिंदा होता है न मुर्दा
लेकिन रोशनी की एक किरण भी उसे जीवित कर सकती है

कितने लोग स्वप्न देखते समय आँखें खुली रखते हैं?

दुनिया के सबसे ताकतवर शब्दों का सबसे ज्यादा दुरुपयोग होता आया है
जैसे प्यार, धर्म, ईश्वर, सत्ता.....
शक्ति समय के आरंभ से ही अभिशप्त है

जाति, धर्म, प्रदेश, देश.....
हर पंक्षी अपना पिंजरा खुद चुनता है

आसमान केवल एक भ्रम है
जहाँ पहुँचने पर चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा दिखाई पड़ता है
दूर से देखने पर जमीन आसमान से भी खूबसूरत दिखाई पड़ती है

गर्व अहंकार का पिता है
वीररस की सारी रचनाएँ मृत्यु की आरती हैं

स्वयं के साथ बलात्कार करने पर
हर बार दर्द से मर जाता हूँ
मेरा एक पाँव बर्फ़ में है दूसरा आग में

चेतना एक भ्रम है जिसके बिना सारी वास्तविकताएँ अर्थहीन हैं

तुलसी को मैं तबसे सुनता आया हूँ
जब मुझे शब्दों के सामान्य अर्थ भी नहीं पता थे

कितने लोग अपने जीवन में तुलसी जैसों से मुक्ति पाते हैं?

तुलसी महान प्रेमी थे
प्रेम का घनत्व बढ़ने के साथ साथ उसकी कोमलता भी बढ़ती जाती है
प्रेम में घातक चोट खाई थी तुलसी ने और भीतर तक टूटे थे
इसलिए वो न कभी अपना सच लिख सके
न अपने राम का

अच्छे साहित्यकार चेचक की तरह होते हैं
बीमारी समय खत्म कर देता है लेकिन निशान हमेशा रहते हैं

शब्द मेरे चेहरे पर उगते हैं
नियमित शेव न करूँ तो असभ्य लगने लगता हूँ

क्या लिखा जाय
आज का बदसूरत सच या आने वाले कल के लिए एक खूबसूरत झूठ

मूर्तियों ने हमेशा इंसानों से ज्यादा बेहतर जीवन जिया है
देवताओं ने यूँ ही मूर्तियों में अपना घर नहीं बनाया

बिग बैंग के समय पल भर के लिए सिर्फ़ रोशनी थी
अँधेरा रोशनी का बेटा है

सृजन जन्म की प्रक्रिया है
जल्दी जन्म होने पर बच्चे की जान जा सकती है
देर होने पर माँ की

क्वांटम सिद्धांत और क्रमिक विकास के सिद्धांत के अनुसार
अनिश्चितताएँ न होतीं तो प्रकृति सारे कमजोरों का नामोनिशान मिटा देती
प्रकाश की सीमा उसकी तरंगदैर्ध्य है
प्रकाश जो नहीं दिखा पाता उसे अनिश्चितताएँ दिखा देती हैं
धर्म का सबसे घातक हथियार अनिश्चितताएँ हैं
धर्म को सबसे ज्यादा डर भी अनिश्चितताओं से लगता है

मीठापन सड़कर कड़वी शराब बन जाता है
कड़वाहट वक्त के साथ कम होती जाती है और नशा बढ़ता जाता है
मिठास समय के साथ नशा बन जाने के लिए अभिशप्त है

सिर्फ पानी ही बिना बहके शराब को पूरी तरह पी सकता है
बाकी सब नशा पीते हैं
पानी सृष्टि के प्रारंभ से अब तक वैसे का वैसा है
बड़ा कठिन है पानी होना

विज्ञान नशे का एंटीडोट है

हम जो करने जा रहे हैं वो पाप है
यह जानने से ज्यादा जरूरी है पाप शब्द पर विश्वास करना

जिंदगी के लिए जितना जरूरी है ये सच जानना
कि सूरज आग का एक दहकता हुआ गोला है
जिसके भीतर लगातार हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक संलयन करके हीलियम का नाभिक बनाते रहते हैं
उतनी ही जरूरी है ये कल्पना कि सूरज एक देवता है
जो अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर दिनभर चलता रहता है
और जरूरी ये भी है कि समझा जाए
कल्पना और सच के बीच का स्पष्ट अंतर
क्योंकि सच और कल्पना जब एक दूसरे की कुर्सी पर बैठते हैं तो सिर्फ़ विनाश होता है

ईश्वर कोई कवि या लेखक या मूर्तिकार या चित्रकार होगा
वह अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति बना चुका है या नहीं
इसमें उसे स्वयं संदेह है

ईश्वर का भविष्य पर नियंत्रण होता
तो वो अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति सबसे पहले बनाता

ब्रह्मांड की उत्पत्ति का महासिद्धांत खोजे जाने के बाद
मानव शायद देख सके अपना सबसे संभावित भविष्य
क्या इसीलिए ईश्वर जब तब मानव की मदद करने आता है
क्या ईश्वर भी भविष्यलोभी है?

फूल पेड़ के स्वप्न हैं
कच्चे फल महत्वाकांक्षाएँ
फलों का पक कर गिरना वास्तविकता

पेड़ हर साल वो दुख झेलता है
जो इंसान जीवन में एक बार भी झेल नहीं पाता

पत्थर खाकर फल देना
पेड़ की उदारता नहीं उसकी लाचारी है
अपने हत्यारे को आक्सीजन देकर जिंदा रखना उसकी आदत है

पकने के बाद भी जो फल पेड़ से चिपके रहते हैं
वो सड़ जाते हैं
गुरुओ! चेलों को अपने गुरुत्व से मुक्त कर दो

पेड़ हँसता है
काटने वाले की मूर्खता पर

सुख
बेफ़िक्री से प्यार करता है
सुविधा से शारीरिक संबंध रखता है
दुख का पति है

हम इंसान का मुखौटा लगाए जानवर हैं

प्रेम की परखनली बिना ईश्वर का संश्लेषण असंभव है
हटा दो बाकी सारे यंत्र, पात्र, मर्तबान, समीकरणें, किताबें, पुस्तिकाएँ
जो केवल इसलिए बनाए गए हैं
ताकि ईश्वर के सभी अवयवों की सही मात्रा तक कभी इंसान पहुँच ही न सके

प्रेम की परखनली अपने अभिकर्मक स्वयं खोज लेती है

नफ़रत की अभिव्यक्ति में शब्द कम पड़ते हैं
प्रेम की अभिव्यक्ति शब्दहीन होती है

कुछ मुझ से प्रेम करते हैं
कुछ से मैं प्रेम करता हूँ
दुनिया शब्दों से प्रेम करती है

कामी शब्द ढूँढते हैं
प्रेमी शब्दों से मुक्ति

दिल सिर्फ़ तुम्हें चाहता है
दिमाग तुम्हारा सबसे अच्छा विकल्प ढूँढता है

वो लोग जिनके दिल और दिमाग समान रूप से कार्यशील थे
प्रकृति ने उन्हें विकास क्रम में लुप्तप्राय बना दिया
घरेलू झगड़ों से फ़ायदा हमेशा बाहरी लोगों को होता है

सतह पर पृष्ठ तनाव रहता है
गहराई में अँधेरा
पानी थोड़ी ही गहराई तक पारदर्शी होता है
उसके बाद वो प्रकाश को वापस घुमा देता है या सोख लेता है

मेरी उँगलियाँ जब तुम्हारे गालों का स्पर्श करती हैं
उँगलियों के इलेक्ट्रॉन तुम्हारे गालों के इलेक्ट्रॉनों को धक्का भर देते हैं
छूना नहीं कहते इसे

घर्षण से कुछ इलेक्ट्रॉनों का आदान प्रदान होता है
छूना नहीं कहते इसे भी

तुम्हारा प्यार मेरे होंठ हैं
खाते समय कभी कभी होंठ कट ही जाते हैं
शुक्र है कि लार में जीवित नहीं रह पाते सड़न पैदा करने वाले जीवाणु
इसलिए होंठों के घाव जल्दी भर जाते हैं
क्रमिक विकास में हमने होंठों को बचा कर रखना सीख लिया है

बादल आँसू बहाते हैं और रेगिस्तान रोता है
रोने वालों की आँखें अक्सर सूखी रहती हैं
आँसू बहाने वाले अक्सर रोते नहीं

सच कड़वा नहीं होता
बस इसका स्वाद अलग होता है, कॉफ़ी की तरह

कितनी सारी ग़ज़लें जबरन कहे गए मत्ले के साथ जीती हैं
कितने सारे मत्ले भर्ती के अश’आर संग निबाहते हैं
मुकम्मल ग़ज़लें दुनियाँ में होती ही कितनी हैं

तुम भूलभुलैया हो
हर बार तुम्हारी आत्मा तक पहुँचते पहुँचते मैं राह भटक जाता हूँ

तुम्हारे हाथों पर किसी और की लगाई मेरे नाम की मेंहदी नहीं हूँ मैं
जिसे चार कपड़े और चार बर्तन, चार दिन में हमेशा के लिए मिटा देंगे

मैं तुम्हारी आत्मा की तलाश में निकला वो मुसाफिर हूँ
जो कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाएगा
लेकिन ये जानते हुए भी तुम्हारी आत्मा हमेशा जिसका इंतजार करेगी

हर चाँद का एक हिस्सा ऐसा होता है जिसे धरती कभी नहीं देख पाती

प्रेम पर लिखी कोई कविता कभी पूर्ण नहीं होती

प्रकाश सूरज का प्यार है
आवेशित कण प्यार का बाईप्रोडक्ट हैं
हर धरती के सीने में खौलते हुए लावे से बना चुंबकीय क्षेत्र सूरज से उसकी रक्षा करता है

छोटे और आसान रास्ते से मंजिल तक पहुँचने वाला भगोड़ा होता है
जीवन के सारे आनंद लंबे और कठिन रास्ते पर होते हैं
मंजिल कुछ नहीं जानती आनंद और रास्तों के बारे में
मंजिल पर सिर्फ़ नशा मिलता है

तुमको छू कर आता हुआ प्रकाश
मेरी आँख का पानी है

तुमको सोते हुए देखना
तुममें घुलना है

कपड़े तुम्हारे जिस्म से उतरते ही मर जाते हैं
साँस तुम्हारे जिस्म से निकलते ही भभक उठती है
चूड़ियाँ तुम्हारे हाथों से निकलकर गूँगी हो जाती हैं
तुम गहने पहनना छोड़ दो तो क्या इस्तेमाल रह जाएगा अनमोल पत्थरों का
तुम न होती तो पुरुष अपने झूठे अहंकार के लिए लड़ भिड़ कर कब का खत्म हो गए होते

तुम्हारे छूने भर से बेजुबान चीजें गुनगुनाने लगती हैं
जीवन तुम्हारी छुवन में है
मौत पुरुषों की भुजाओं में

पहचानो अपनी जीवनदायिनी शक्ति
मृत्यु देने वाली भुजाओं को छूकर उन्हें जीवन से भर दो
एक बार फिर जानवरों को इंसान बना दो

ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते का एकमात्र द्वार नारी के दिल में होता है

नारी के दिल तक पहुँचने के रास्ते में ढेर सारे मंदिर, मस्जिद, धर्मग्रंथ, धर्मगुरु.....
ठेला लगाकर “ईश्वर ले लो, ईश्वर ले लो, सस्ता सुंदर और टिकाऊ ईश्वर ले लो” की आवाज लगाते रहते हैं

“नारी नरक का द्वार है” आज तक का सबसे भयानक झूठ है।

प्रेम को सदियों से दिए जा रहे ज़हर के बावजूद भी
प्रेम अपने हर रूप में इसीलिए फल फूल रहा है
क्योंकि ईश्वर मरा नहीं करता

सपना बहुत खूबसूरत है
मगर मैं मौत से पहले एक बार जागना चाहता हूँ

कितनी भी रेखाएँ खींच लो
दो रेखाओं के बीच एक और रेखा खींचने की जगह हमेशा बची रहती है

अनंततम सूक्ष्म हिस्सों में तोड़ने के बाद ही
समाकलन शत प्रतिशत शुद्ध योगफल दे पाता है
उन आकारों के लिए भी जो सामान्य प्रक्रियाओं से जोड़े जाने असंभव हैं

सबसे विनाशकारी है ये मानना कि जो हम जानते हैं वही सही है बाकी सब गलत

नास्तिकों ने मानवता को कितना नुकसान पहुँचाया है?
तुलना कीजिए उस नुकसान से जो उन परम धार्मिक लोगों ने इंसानियत को पहुँचाया
जो ये मानते हैं कि घोर पाप भी माफ़ी माँगने और कुछ कर्मकांडों से धुल जाएँगें

हर शिव ये जानता है कि कामदेव के बिना सृष्टि का चलना असंभव है
किंतु हर शिव कामदेव को भस्म करने का नाटक रचता है
परिणाम?
कामदेव अजेय हो कर वापस आता है

जरूरत से ज्यादा घनत्व कृष्ण विवर का निर्माण करता है
कृष्ण विवर किसी के किसी काम नहीं आता
कृष्ण विवर शक्ति की कभी न मिटने वाली भूख का रोगी है
आवश्यकता से अधिक शक्ति कृष्ण विवर बनने के लिए अभिशप्त है
कृष्ण विवर सबकुछ अपने जैसा बना देना चाहता है

बहुत कम सूरज ऐसे होते हैं जिनकी पृथ्वी पर जीवन होता है

13.7 अरब साल लगे हैं मूल कणों को सूचनाएँ का वो सही क्रम जानने में
जिसमें एक दूसरे से जुड़कर वो एक इंसानी दिमाग बना देते हैं

ईश्वर हमारे ब्रह्मांड के बाहर खड़ा तमाशाई है
जो अपना दिल बहलाने के लिए रोज नए धमाके करता है

कितनी बार ईश्वर ने ऐसे ब्रह्मांड बनाने की कोशिश की जहाँ भविष्य निश्चित था
पर निश्चित भविष्य आत्मघाती होता है

फिर ईश्वर ने रचीं अनिश्चितताएँ
और जी उठे ब्रह्मांड

ईश्वर जिस ब्रह्मांड में जाता है उसके नियमों का पालन करता है

अनिश्चितताओं के कारण
ईश्वर न हर पाप का दंड दे सकता है, न हर पुण्य का फल
इसीलिए हार कर उसे कहना पड़ता है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो

हर ब्रह्मांड ये समझता है कि ईश्वर ने उसका निर्माण किसी खास उद्देश्य से किया है

सभी संख्याओं का योग शून्य होता है

--

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
उप प्रबंधक (जनपद निर्माण विभाग - मुख्य बाँध)
बरमाना, बिलासपुर
हिमाचल प्रदेश
भारत

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: धर्मेन्द्र कुमार सिंह की लम्बी कविता : प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण
धर्मेन्द्र कुमार सिंह की लम्बी कविता : प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण
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