अमृतलाल वेगड़ का यात्रा संस्मरण - सौंदर्य की नदी नर्मदा

SHARE:

..जल की सतह से जरा से उठे हुए इस जनपथ से आती पनिहारिनें जलपरी सी लग रही थीं। लेकिन ये कोई जलपरियाँ नहीं थीं। ये थीं श्रमबालाएँ, कठोर श्रम क...

..जल की सतह से जरा से उठे हुए इस जनपथ से आती पनिहारिनें जलपरी सी लग रही थीं। लेकिन ये कोई जलपरियाँ नहीं थीं। ये थीं श्रमबालाएँ, कठोर श्रम करती ग्राम नारियाँ। लेकिन यह श्रम ऐसा था, जो खेल बन गया था। हँसती किलकती,ठिठोली करती स्वस्थ नारियों को अनुभव ही नहीं हो रहा था कि उनके सिर पर भारी बोझ रखा हुआ है, वे नंगे पैर हैं और नीचे ऊबड़-खाबड़ पत्थर हैं। वे ऐसे जा रही हैं, जैसे शहर की लड़कियाँ पिकनिक को जाती हैं। श्रम का यह कैसा उत्सव है! नित्य उत्सव। सबेरे इस छोटे से गाँव से विदा लेते समय इस पावन दृश्य को मैंने मुड़-मुड़कर देखा।...

image

१३. ओंकारेश्वर से खलघाट

सुबह विष्णुपरी घाट पर बैठा था। सुबह की गुनगुनी धूप बड़ी प्यारी लग रही थी। सामने है ओंकारेश्वर पहाड़ी नदी का पहाड़ी तीर्थस्थान। संकरी नर्मदा के दोनों ओर खड़ी चट्टानी कगारें हैं। इस तट पर मांधाता, उस तट पर ओंकारेश्वर दोनों मिलकर ओंकार-मांधाता और बीच में अलस गति से बहती शांत. नीरव नर्मदा। नदी बहती हुई भी रुकी सी जान पड़ती है। सुदूर केरल से आकर बालक शंकर ने यहाँ गुरु गोविन्दपाद के आश्रम में रहकर विद्याभ्यास किया था। वे हमारे देश के सर्वश्रेष्ठ परिव्राजक हैं। भारत की भावनात्मक एकता के लिए उन्होंने जो किया. वह अनुपम है। ऐसे आद्य शंकराचार्य को पावन स्मृति इस ओंकारेश्वर से जुड़ी हुई है। फिर कमलभारती जी. रामदासजी और मायानंदजी सदृश संतों के आश्रम भी यहां रहे। आज भी नए नए आश्रम बनते जा रहे हैं।

नर्मदा तट के छोटे से छोटे तृण और छोटे से छोटे कण न जाने कितने परव्राजकों, ऋषि मुनियों और साधु संतों की पदधूलि से पावन हुए होंगे। यहां के वनों में अनगिनत ऋषियों के आलम रहे होंगे। वहाँ उन्होंने धर्म परविचार किया होगा, जीवन मूल्यों की खोज की होगी और संस्कृति का उजाला फैलाया होगा। हमारी संस्कृति आरण्यक संस्कृति रही। लेकिन

अब? हमने उन पावन वनों को काट डाला है और पशु-पक्षियों को खदेड़ दिया है या मार डाला है। धरती के साथ यह कैसा विश्वासघात है। एक आदमी स्नान के लिए आया था। मैंने कहा, '' नर्मदा कितनी संकरी है। ''

'' नमदा की यह एक धारा है। दूसरी ओंकारश्वर के पीछे है। कहते हैं कावेरी नर्मदा से मिली लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों में अनबन हो गई और कावेरी नर्मदा से अलग हो गई। ओंकारेश्वर के इस ओर है नर्मदा. उस ओर है कावेरी। ''

'' दोनों फिर मिलती हैं या नहीं? ''

'' जहाँ ओकारेश्वर का टापू खत्म होता है, वहीं दोनों फिर मिल जाती है। नर्मदा ने आखिर छोटी बहना को मना लिया। इसलिए असली कावेरी संगम बाद का है, पहला नहीं। ''

पहले आगमन, फिर बहिर्गमन, अंत में पुनरागमन! बढ़िया कल्पना है!

यहाँ बैठा सामने के घाट को देख रहा हूँ। वहाँ न जा पाने का कोई दुख नहीं है क्योंकि ओंकारेश्वर दो बार हो आया हूँ। लेकिन अनिल और श्यामलाल से कहा कि तुम जरूर हो आओ। नाव से जाना, पुल से आना। यहाँ से मोरटक्का। वहाँ तक सड़क जाती है, लेकिन हम सड़क से नहीं जाएँगे, नदी के किनारे-किनारे जाएँगे।

दोपहर को निकले। लेकिन थोड़ी ही देर में समझ में आ गया कि दोपहर को चलकर गलती की। सूरज सामने रहता है, चट्टानें तंदूर को तरह गरमा गई हैं और श्यामलाल नंगे पाँव है। लेकिन वह तो शायद दहकते अंगारों पर भी चल सकता है।

कभी चट्टानों से जूझते, कभी झाड़ी से उलझते तो कभी सामने तट की पर्वत-माला से आते हवा के झोंकों का आनंद उठाते आगे बड़ रहे थे। कभी रुक जाते माथे का पसीना पोंछते और आगे बढ़ते। शाम को मारटक्का के खेडीघाट पहुँचे। यहाँ नर्मदा पर सड़क का पुल है, पास में रेल का पुल भीहै। रात यहीं बिताई।

सुबह उठते ही अनिल ने कहा, '' जरा ऊपर देखिए। '

मध्य आकाश में चाँद था। मैंने कहा. '' सूरज के हिसाब से अभी सबेरा है, लेकिन चांद के हिसाब से अभी दोपहर है!''

अनिल के लिए यह भले ही विस्मय की बात हो, पर मैं तो चाँद के एक से एक करतब देख चुका हूँ। कभी पूर्ण कुंभ. तो कभी बारीक रेखा उसका बांकपन कभी सीधा तो कभी उलटा, कभी घटता तो कभी बढ़ता कभी निकलते ही डूबने की तैयारी तो कभी आधी रात को गायब और भरी दोपहर को हाजिर! क्या कहना इस मनमौजी का!

चांद जब यह सब कर सकता है। तो एक करतब उसे और दिखाना था। सूर्योदय और सूर्यास्त के कारण पूर्व और पश्चिम दिशाओं की छटा देखते ही बनती है। उपेक्षित रह जाते हैं उत्तर और दक्षिण। क्या ही अच्छा होता अगर चाँद उत्तर में निकलता और दक्षिण में डूबता!

चंद्र का ऐसा अपूर्व उदय देखकर सूर्य भी निरुत्तर रह जाता!

, यहाँ से रास्ता आसान है, झाड़ी खत्म। रात गोमुख-बावड़ी में रहे। सुबह चल दिए। थोड़ी देर में कांकरिया पहुँचे। नदी-तट पर एक खंडहर सी धर्मशाला थी। ऊपर छप्पर नहीं था, खिड़की में पल्ले नहीं थे। खिड़की के इस फ्रेम में से पनिहारिनें ऐसी दीख रही थीं. मानो मैं रंगीन टी .वी. देख रहा होऊँ! खिड़की के पास से देखता तो वाइड व्यू दिखता और हटकर देखता तो क्लोजअप नजर आता! ऐसा लाइव-टेलिकाष्ट तो संसार का श्रेष्ठतम टी.वी. सेट भी नहीं दे सकता।

दोपहर को रावेर पहुँचे। यहाँ नदी तट पर पेशवा का स्मारक है। वहीं एक पेड़ के नीचे खाना बनाया। जब तक झाड़ी में थे. ईंधन की कोई कमी न थी। लेकिन अब लकड़ी मिलना मुश्किल हो गया है। थोड़ी बहुत मिली. बाकी मैं दूर किनारे से ढूंढ लाया। बाद में पता चला कि वे चिता की लकडियाँ थीं।

शाम को बकावा पहुँचे। वहाँ नदी किनारे एक चबूतरा था। आज का रात्रि विश्राम इसी चबूतरे पर था। यहाँ से एक सँकरी पथरीली सड़क नर्मदा के मध्य तक चली गई थी। स्वच्छ पानी भरने के लिए यह सबसे अच्छी जगह थी इसलिए यहाँ पनिहारिनों की भीड़ लगी रहती थी। जल की सतह से जरा से उठे हुए इस जनपथ से आती पनिहारिनें जलपरी सी लग रही थीं। लेकिन ये कोई जलपरियाँ नहीं थीं। ये थीं श्रमबालाएँ, कठोर श्रम करती ग्राम नारियाँ। लेकिन यह श्रम ऐसा था, जो खेल बन गया था। हँसती किलकती,ठिठोली करती स्वस्थ नारियों को अनुभव ही नहीं हो रहा था कि उनके सिर पर भारी बोझ रखा हुआ है, वे नंगे पैर हैं और नीचे ऊबड़-खाबड़ पत्थर हैं। वे ऐसे जा रही हैं, जैसे शहर की लड़कियाँ पिकनिक को जाती हैं।

श्रम का यह कैसा उत्सव है! नित्य उत्सव। सबेरे इस छोटे से गाँव से विदा लेते समय इस पावन दृश्य को मैंने मुड़-मुड़कर देखा।

आगे पड़ा मर्दाना। यह गाँव कुछ बड़ा है, दो-एक दुकानें भी हैं। अनिल और श्यामलाल सौदा लेने लगे, मैं दूर खड़ा था। वहाँ एक वृद्ध बैठे थे।

उन्होंने कहा, '' आप खरीद क्यों रहे हैं? मेरे यहाँ सदाव्रत दिया जाता है, चलिए। '' तुला-तुलाया सौदा वापस करना पड़ा।।

'' यह सदाव्रत कब से चल रहा है?”

' '' पचहत्तर साल से। पचहत्तर साल पहले मेरा जन्म हुआ था। इस खुशी में मेरे पिता ने यह शुरू किया था, जो आज तक चला आ रहा है। मैंने अपनी जमीन चारों बेटों में बाँट दी है, लेकिन दो एकड़ जमीन सदाव्रत के लिए अलग रख दी है। मैं नहीं रहूँगा पर सदाव्रत रहेगा। ''

जिन्दगी तो कुल एक पीढ़ी भर की होती है, पर नेक काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।

शाम को भटियान पहुँचे। नर्मदा के बालुई तट पर बसा छोटा-सा गाँव। नदी किनारे पेड़ों के पास एक पक्की छोटी धमशाला है। इसमें एक दुबले-पतले बाबा रहते हैं। बच्चों-सा सरल स्वभाव। गांव के लोग इन्हेंखूब चाहते हैं। कोई तीस बरस से यहाँ हैं। हमें बड़े प्रेम से अपने साथ ठहराया। बातें होने लगीं तो मैं समझ गया कि इनकी मातृभाषा गुजराती है।फिर तो गुजराती में बातें होने लगीं। मैंने कहा, '' इतने वर्षों के बाद भी आप गुजराती भूले नहीं? ''

उन्होंने कहा, '' मातृभाषा को कोई कैसे भूल सकता है? ''

सुबह जब चलने लगे, तो बड़े प्यार से बोले, '' आवजो। ''

घड़ी भर के लिए वे संन्यासी में से गहस्थ बन गए थे। विदा लेते मेहमान से कह रहे थे, '' आवजो। '' फिर आना।

अगला पड़ाव मर्कटीतीर्थ। निजन एकांत में वेदा और नर्मदा के संगम पर स्थित ऊँचे टीले पर एक मंदिर है. उसी में रहे। मंदिर में एक युवा पुजारी है और है उसकी माँ। पुजारी की माँ ने कहा. '' आज से कोई तीन साल पहले अचानक यह लडका घर से चल दिया। बहुत ढूंढा पर नहीं मिला। कोई सालभर बाद अमरकंटक से चिट्टी आई कि मैं नर्मदा परिक्रमा पर निकल गया हूँ, मेरी बाट मत जोहना। लेकिन माँ का दिल तो है। सोचती थी, परिक्रमा पूरी करने के बाद मेरा बेटा लौट आएगा। लेकिन परिक्रमा करते-करते इसने तो जोग ही धारण कर लिया। ''

एक ठंडी साँस लेकर उसने कहा,'' कोई पंद्रह साल की उस में हमने इसकी सगाई की थी। लड़की के पिता ने सात साल तक इंतजार किया। जब हमने उसके घर लौटने की उम्मीद पूरी तरह छोड़ दी. तब पिछले साल ही उन्होंने अपनी बेटी की शादी दूसरी जगह की। उस लड़की से मुझे कितनी ममता हो गई थी। ''

चूल्हे की आग को ठीक करते हुए उसने अपना कहना जारी रखा,' 'बड़ा एकांत है यहाँ। पास में कोई गाँव नहीं। मैं और मेरा बेटा, बस हम दोही हैं यहाँ। वह तो दिन भर पूजापाठ में लगा रहता है, मेरा समय काटे नहीं

कटता। यहाँ रहती हूँ तो घर की याद आती है, घर जाती हूँ तो इसकी चिन्ता सताती है। कल रात को ही यहाँ दो मुँह वाला साँप निकला था। मैं बेहद डर गई। बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला। ''

बेचारी माँ! उसके मन के दो टुकड़े हो गए हैं। एक हिस्सा यहाँ है,दूसरा घर रह गया है।

बाहर खुले में सोए। आकाश साफ था और रात सुहानी थी। तारे इतने पास लग रहे थे कि हाथ बढाओ और छू लो।

सुबह चल दिए। दोपहर तक नावडाटोडी पहुँच गए। सामने तट पर है महेश्वर- रानी अहिल्याबाई का नगर। अहिल्याबाई अत्यंत कुशल प्रशासकथीं और नर्मदा की परम भक्त थी। महेश्वर में उनके बनवाए घाट इस तट से बड़े ही सुंदर लग रहे थे।

यहाँ एक सज्जन रहते हैं। पहले सरकारी अफसर थे। अच्छी पेन्शन मिलती है। अपनी सारी पेन्शन कुत्तों पर खर्च करते हैं। इस गाँव के तो क्या,आसपास के लोग भी इन्हें खूब चाहते हैं। मिलने पर बोले, '' चाय की इस दुकान की यह बैंच ही मेरा घर है और इस झोले में मेरी सारी गृहस्थी है। गाँव के कुत्ते मेरे स्वजन हैं। '' फिर धीर-से बोले, '' आदमी से कुत्ते अच्छे। ''जीवन के किन कटु अनुभवों ने उनके मन में मनुष्य के प्रति ऐसी कटुता उत्पन्न की होगी।

' 'देवी-देवता में मेरा कोई विश्वास नहीं। साधु-संतों पर भी नहीं। बाहर से धर्मात्मा होने का ढोंग रचते लोगों को ऊपर से नीचे तक गंदगी में डूबा हुआ देख चुका हूँ। बस, एक नर्मदा को मानता हूँ। मुझे वह हर घड़ी दिखनी चाहिए। बरसात में बाढ़ का पानी जब तक इस बैंच को छूता नहीं,तब तक यहाँ से नहीं जाता। नर्मदा के बिना मैं नहीं रह सकता। ''

फिर हँसकर बोले, ' 'यहाँ के लोगों ने मुझे खूब प्यार दिया। जब मरूँगा, तब मेरी ऐसी शव-यात्रा निकलेगी कि किसी नेता की क्या निकलेगी। दुख यही है कि उसे देखने मैं जिन्दा नहीं रहूँगा। ''

सुबह मन में सहस्रधारा देखने की उत्कंठा लेकर चले। मंडला की सहस्रधारा कई बार देख चुका हूँ, महेश्वर के पास की इस बड़ी सहस्रधारा को पहली बार देखूँगा।

थोड़ी देर में शोर सुनाई पड़ने लगा तो चाल तेज हो गई। देखते-देखते सहस्रधारा आ गए। नर्मदा यहाँ खूब फैल गई है, हजारों धाराओं में बंट गईहै। इन धाराओं में छोटे-छोटे अनगिनत प्रपात फड़फड़ा रहे हैं। चारों ओर धाराओं का जाल-सा फैला है। इन आड़ी-टेढ़ी, आंकी-बांकी जलधाराओं से नर्मदा ने यहाँ मानो झीनी-झीनी बीनी रे चदरिया!

पानी की चादर, जलधाराओं के ताने-बाने, चट्टानों का करघा! ऐसी चादर तो बस नर्मदा ही चुन सकती है और ऐसी चादर तो बस धरती ही ओढ़ सकती है!

और यह धारा शब्द नर्मदा के साथ खूब जुड़ा हुआ है। अमरकंटक से. निकलते ही कपिलधारा और दूधधारा। मंडला की सहस्रधारा. बरमानघाटकी सतधारा, ओंकारेश्वर के पास धाराक्षेरु और महेश्वर के पास पुन : सहस्रधारा! कैसी धाराप्रवाह नदी है यह!

जहाँ-जहाँ धारा शब्द आया है. वहाँ प्रपात जरूर है। चाहे कपिलधारा जैसा ऊँचा प्रपात हो। चाहे सहस्रधारा के इन तितलियों जैसे छोटे-छोटे प्रपात हों। जबलपुर के धुआँधार में धारा शब्द आते आते रह गया। वैसे धार, धारा का ही तो अनुज है!

पर अब चलना चाहिए। धूप तेज हो रही है। आगे का मार्ग कठिन है। थोड़ी देर के लिए किनारा छोड़ना होगा। चलते चलते एक टीले पर आ गए। इस ऊँचे झरोखे से सहस्रधारा के नन्हे ..मुन्ने प्रपात एक साथ दिखाई दे रहे थे। नन्हे-मुन्ने क्या, एकदम दुधमुंहे। इनके मुँह से दूध अभी छूटा ही कहाँ। ढालखेड़ा में राघवानंद जी के आश्रम में रहे। यहां किसी ने बताया कि नर्मदा में वह जो टापू दिखाई दे रहा है. एक फ्रैंच मुगल उसमें छह महीने तक रहा। बरसात में उस तट पर चला गया। कुछ समय पहले फ्रांस लौट गया।

ऐसी कौन-सी डोर होगी, जो सात समंदर पार के फ्रैंच नौजवान पति-पत्नी को नर्मदा के इस सुनसान टापू में खींच लाई होगी- सौंदर्यपिपासु मन, एकांत साधना की चाह, या पश्चिम को आपाधापी से विलग होकर पूर्व की शांति में डुबकी लगाने की प्रबल इच्छा?

रात को बाहर खुले में सोए। इस बार की यात्रा में नर्मदा में इतने टापू देखे हैं कि रात को आकाश-गंगा में भी मुझे अनेक टापू दिखाई दिए। सुबह चल दिए। आज दीवाली है। दोपहर तक साटक-संगम पहुँच जाएंगे। वहाँ नर्मदा का प्रसिद्ध खलघाट पुल है। वहीं इस बार की यात्रा समाप्त करेंगे।

थोड़ी देर में साटक-संगम पहुँच गए। साटक एक छोटा-सा झरना है,लेकिन इसे पार करने में एक नाटक हुआ। साटक में एक नन्हा प्रपात था। उसे देखते हुए मैं पानी में उतरा। उतरते ही काई लगे पत्थर पर से फिसलकर गिरा। किसी तरह उठा कि दुबारा गिरा। साटक ने अपने अंक में मुझे दो बारलिया, इसलिए यह नाटक एकांकी न रहकर द्विअंकी हो गया!

पास ही एक मंदिर है। मंदिर की देखभाल एक महाराष्ट्रियन महिला करती है। माता के स्नेह से हमें मंदिर में ठहराया। मैंने कहा, '' हमारी इस बार की यात्रा यहाँ समाप्त हो रही है। कल सुबह घर लौट जाएँगे। अगले साल फिर यहाँ आएंगे और दशहरे से आगे बढेंगे। ''

'' आगे शूलपाण की झाड़ी पड़ेगी। उसके बारे में तो आपने सुना ही होगा। ''

सुना क्यों नहीं! कितने ही परकम्मावासियों से कितनी ही बातें सुनी हैं। झाड़ी में तीर- धनुष लेकर भील आते हैं और सब कुछ लूट लेते हैं। अंत में परकम्मावासी के पास बच रहती है केवल लँगोटी और तूँबी। लेकिन इन्हीं बातों ने हमारे अंदर झाड़ी के प्रति विशेष आकर्षण जगा दिया है। राजघाट ( बड़वानी) से झाड़ी शुरू होगी। आपके पास यह वो सामान है न, इसमें से कुछ न बचेगा। कपड़े और चश्मा तक उतार लेंगे। ''

लँगोटी लगाकर रह लूंगा, लेकिन मेरी स्केच-बुक ले ली, चश्मा ले लिया, तो समझिए मेरे कवच-कुंडल ही उतार लिए। नंगे बदन ठंड कैसे बर्दाश्त होगी।

मुझे कुछ सोच में देखकर उसने कहा. '' एक काम करो। झाडी में से मत जाओ, बाहर-बाहर से निकल जाओ। ''

' नहीं, हरगिज नहीं! झाड़ी में से ही जाएँगे, चाहे जो हो। हाँ, एक काम कर सकते हैं। दीवाली की छुट्टी के बजाय गरमी की छुट्टी में चलें। गरमी में नंग- धडंग रह लेंगे, ठंड बर्दाश्त न होगी।

रात का अंधेरा जल में उतर आया था और काजल-सा काला हो चला था। बिस्तर में पड़ा-पड़ा तारों को निहारता मैं गुनगुना रहा था-

 

जटाजूट बढाएँगे

भिक्षा मागँकर खाएंगेँ

निर्धन-निर्वस्त्र हो जाएँगे

पर झाड़ी में से जाएँगे!

--

(चित्र - अमृतलाल वेगड़ का कोलाज)

(मप्र हिन्दी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित पुस्तक सौन्दर्य की नदी नर्मदा से साभार)

COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. नर्मदा की तरह ही सस्मरण भी शब्दों रूपी लहरों के सहारे बहता चला गया ............कल- कल छल-छल !!अति सुन्दर !!

    जवाब देंहटाएं
  2. पुस्तक प्राप्ति हेतु कृपया सुझाव दें

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल
      gmail
      mphga1970@gmail.com

      हटाएं
  3. नर्मदा मुझे बचपन से अपनी और खिंचती चली आयी हे
    और जबसे सौन्दर्य की नदी नर्मदा अमृत लाल जी वेगड़ की रचना पड़ी हे नर्मदा यात्रा को जी चाहता हे

    हर हर नर्मदे

    जवाब देंहटाएं
  4. Adbhut kitab...ek baar hath men liye baad chhuutti nahin...kamaal ka lekhan...

    जवाब देंहटाएं
  5. I heard few episodes on Akashwani /Gyanwani at Nagpur. Whether those are available as Audiobook?

    जवाब देंहटाएं
  6. I heard few episodes on Akashwani /Gyanwani at Nagpur. Whether those are available as Audiobook?

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अमृतलाल वेगड़ का यात्रा संस्मरण - सौंदर्य की नदी नर्मदा
अमृतलाल वेगड़ का यात्रा संस्मरण - सौंदर्य की नदी नर्मदा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitgnYl6i3i2WdhpNwvtdXHlIUoA7pZnfMRZIGX7zxI4WmPtm8E_-hEscLZVZYF0piZp12zyCiCr3HjaOc0lzv9b1vyB9eCBtku4Oz3B0I4q1p6_R7IWi-RTxshBr_QpsNitVDt/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitgnYl6i3i2WdhpNwvtdXHlIUoA7pZnfMRZIGX7zxI4WmPtm8E_-hEscLZVZYF0piZp12zyCiCr3HjaOc0lzv9b1vyB9eCBtku4Oz3B0I4q1p6_R7IWi-RTxshBr_QpsNitVDt/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_05.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_05.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content