(ईश्वरीय कण की खोज करने वाला यंत्र) सृष्टि की संरचना अजूबा है. हर देश काल में इसकी उत्पत्ति पर मनुष्यों की कल्पना के घोड़े दौड़ते रहे हैं...
(ईश्वरीय कण की खोज करने वाला यंत्र)
सृष्टि की संरचना अजूबा है. हर देश काल में इसकी उत्पत्ति पर मनुष्यों की कल्पना के घोड़े दौड़ते रहे हैं. अभी ही हिग्स बोसान नामक ईश्वरीय कण के खोज की घोषणा की गई. सृष्टि सर्जना पर पड़े रहस्य का पर्दा थोड़ा तो हटेगा. गरूड़ पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति के बाबत उस वक्त के उपलब्ध ज्ञान के अनुरूप कुछ दिलचस्प और मनोरंजक परिकल्पनाएं की गई थीं. कुछ अंश प्रस्तुत है -
… परमात्मा परमेश्वर का आदि और अन्त नहीं है, वे ही जगत् को धारण करने वाले अनन्त पुरुषोत्तम हैं। उन्हीं परमेश्वर से अव्यक्त की उत्पत्ति होती है और उन्हीं से आत्मा(पुरुष) भी उत्पन्न होता है। उस अव्यक्त प्रकृति से बुद्धि, बुद्धि से मन, मन से आकाश, आकाश से वायु वायु से तेज, तेज से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। हे रुद्र! इसके पश्चात् हिरण्मय अण्ड उत्पन्न हुआ। उस अण्ड में वे प्रभु स्वयं प्रविष्ट होकर जगत् की सृष्टि के लिये सर्वप्रथम शरीर धारण करते हैं। तदनन्तर चतुर्मुख ब्रह्मा के रूपमें शरीर धारण कर रजोगुण के आश्रय से उन्हीं देव ने इस चराचर विश्व की सृष्टि की।
देव, असुर एवं मनुष्यों सहित यह सम्पूर्ण जगत् उसी अण्ड में विद्यमान है। वे ही परमात्मा स्वयं स्रष्टा ( ब्रह्मा) -के रूप में जगत् की संरचना करते हैं, विष्णु रूप में जगत् की रक्षा करते हैं और अन्त में संहर्ता शिव के रूप में वे ही देवसंहार करते हैं। इस प्रकार एकमात्र वे ही परमेश्वर ब्रह्मा केरूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और कल्पान्त के समयरुद्र के रूप में संपूर्ण जगत को विनष्ट करते हैं। सृष्टि के समयवे ही वराह का रूप धारण कर अपने दाँतों से जलमग्न पृथ्वी का उद्धार करते हैं। हे शंकर! संक्षेप में ही मैं देवादि की सृष्टि का वर्णन कर रहा हूं; आप उसको सुनें।
सबसे पहले उन परमेश्वर से महातत्व की सृष्टि होती है। वह महातत्व उन्हीं ब्रह्म का विकार है। पञ्च तन्मात्राओं(रूप रस गण स्पर्श और शब्द)-की उत्पत्ति से युक्त द्वितीय सर्ग है। उसे भूत-सर्ग कहा जाता है। (इन पञ्चतन्मात्राओं से पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश-रूप में महाभूतों की सृष्टि होती है।) तीसरा वैकारिक सर्ग है,(इसमें कर्मेन्दिय एवं ज्ञानेन्दियों की सृष्टि आती है इसलिये) इसे ऐन्द्रिक भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति बुद्धिपूर्वक होती है, यह प्राकृत-सर्ग है। चौथा सर्ग मुख-सर्ग है। पर्वत और वक्षादि स्थावरों को मुख्य माना गया है। पाँचवां सर्गतिर्यक् सर्ग कहा जाता है, इसमें तिर्यक्स्रोता (पशु-पक्षी आदि) आते हैं। इसके पश्चात् ऊर्ध्वस्रोतों की सृष्टि होती है। इस छठे सर्ग को देव-सर्ग भी कहा गया है। तदनन्तर सातवाँसर्ग अर्वाक् स्रोतों का होता है। यही मानुष-सर्ग है।
आठवाँ अनुग्रह नामक सर्ग है। वह सात्विक और तामसिक गुणों से संयुक्त है। इन आठ सर्गों में पाँचवैकृत-सर्ग और तीन प्राकृत-सर्ग कहे गये हैं। कौमार नामक सर्ग नवाँ सर्ग है। इसमें प्राकृत और वैकृत दोनों सृष्टियाँ विद्यमान रहती हैं।
हे रुद्र! देवों से लेकर स्थावरपर्यन्त चार प्रकार की सृष्टि कही गयी है। सृष्टि करते समय ब्रह्मा से (सबसे पहले) मानस पुत्र उत्पन्न हुए। तदनन्तर देव, असुर, पितृ और मनुष्य-इस सर्ग चतुष्टय का प्रादुर्भाव हुआ।
इसके बाद जल-सृष्टि की इच्छा से उन्होंने अपने मन कोसृष्टि-कार्य में संलग्न किया। सृष्टि-कार्य में प्रवृत्त होने पर ..ब्रह्मा से तमोगुण का प्रादुर्भाव हुआ। अतः सृष्टि की अभिलाषा रखने वाले ब्रह्मा की जंघा से सर्वप्रथम असुर उत्पन्न हुए। हे शंकर! तदनन्तर ब्रह्मा ने उस तमोगुण से युक्त शरीर का परित्याग किया तो उस शरीर से निकली हुई तमोगुण की मात्रा ने स्वयं रात्रि का रूप धारण करे लिया। उस रात्रिरूप सृष्टि को देखकर यक्ष और राक्षस बहुत ही प्रसन्न हुए।
हे शिव! उसके बाद सत्वगुण की मात्रा के उत्पन्न होने परप्रजापति ब्रह्मा के मुख से देवता उत्पन्न हुए। तदनन्तर जब उन्होंने सत्वगुण-समन्वित अपने उस शरीर का परित्याग किया तो उससे दिन का प्रादुर्भाव हुआ, इसीलिये रात्रि में असुर और दिन में देवता अधिक शक्तिशाली होते हैं। उसके पश्चात ब्रह्मा के उस सात्विक शरीर से पितृगणों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद ब्रह्मा के द्वारा उस सात्विक शरीर का परित्याग करने पर संध्या की उत्पत्ति हुई जो दिन और रात्रि के मध्य अवस्थित रहती है। तदनन्तर ब्रह्मा के रजोमयशरीर से मनुष्यों का प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा ने उसका परित्याग किया तो उससे ज्योत्सना (प्रभात काल ) उत्पन्नहुई, जो प्राक्सन्ध्या के नाम से जानी जाती है। ज्योत्सना, रात्रि, दिन और संध्या - ये चारों उस ब्रह्मा के ही शरीर हैं।
तत्पश्चात् (ब्रह्मा के रजोगुणमय शरीर के आश्रय से सुधा और क्रोध का जन्म हुआ। उसके बाद ब्रह्मा से ही भूख-प्यास से आतुर एवं रक्त-मांस पीने खाने वाले राक्षसों तथा यक्षों की उत्पत्ति हुई। राक्षसों से रक्षण के कारण राक्षस कहा गया और भक्षण के कारण यक्षों को यक्ष नाम की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। तदनन्तर ब्रह्मा के केशों से सर्प उत्पन्न हुए। ब्रह्मा के केश उनके सिर से नीचे गिरकर पुन : उनकेसिर पर आरूढ़ हो गये- यही सर्पण है। इसी सर्पण(गतिविरोध ) के कारण उन्हें सर्प कहा गया। उसके बाद ब्रह्मा के क्रोध से भूतों का जन्य हुआ। ( इसीलिये इन प्राणियों में क्रोध की मात्रा अधिक होती है। ) तदनन्तर ब्रह्मा से गंधर्वों की उत्पत्ति हुई। गायन करते हुए इन सभी का जन्म हुआ था. इसलिये इन्हें गंधर्व और अप्सरा की ख्याति प्राप्त हुई। उसके बाद प्रजापति ब्रह्मा के वक्ष स्थल से स्वर्ग और द्युलोक उत्पन्न हुआ। उनके मुख से अज, उदर- भाग से तथा पार्श्व- भाग से गौ, पैर- भाग से हाथी सहित अश्व, महिष, ऊँट और भेड़ की उत्पत्ति हुई। उनके रोमों से फल -फूल एवं औषधियों का प्रादुर्भाव हुआ।
गौ, अज, पुरुष- ये मेध्य ( पवित्र ) हैं। घोड़े, खच्चर और गदहे प्राप्य पशु कहे जाते हैं। अब मुझ से वन्य पशुओं का सुनो - इन वन्य जन्तुओं में पहले श्वापद ( हिंसकव्याघ्रादि ) पशु दूसरे दो खुरोंवाले, तीसरे हाथी, चौथे बंदर, पाँचवें पक्षी, छठे कच्छपादि जलचर और सातवें सरीसृप जीव ( उत्पन्न हुए ) हैं।
उन ब्रह्मा के पूर्वादि चारों मुखों से ऋक्, यजुष्, सामतथा अथर्व - इन चार वेदों का प्रादुर्भाव हुआ। उन्हीं के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, ऊरु- भाग से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए। उसके बाद उन्होंने ब्राह्मणों के लिये ब्रह्म लोक, क्षत्रियों के लिये इन्द्रलोक, वैश्यों कै लिये वायुलोक और शूद्रों के लिये गन्धर्व लोक का निर्धारण किया। उन्होंने ही ब्रह्मचारियों के लिये ब्रह्मलोक, स्वधर्मनिरत गहस्थाश्रम का पालन करने वाले लोगों के लिये प्राजापत्यलोक,वानप्रस्थाश्रमियों के लिये सप्तर्षिलोक और संन्यासी तथा इच्छानुकूल सदैव विचरण करने वाले परम तपोनिधियों के लिये अक्षयलोक का निर्धारण किया।
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(साभार - कल्याण संक्षिप्त गरूड़पुराणांक जनवरी - फरवरी 2000)
वैदिक विज्ञान के अनुसार समस्त सृष्टि का रचयिता - 'परब्रह्म ' है; जिसे ईश्वर, परमात्मा, वेन, विराट, ऋत, ज्येष्ठ ब्रह्म, सृष्टा व चेतन आदि नाम से भी पुकारा जाता है।)
जवाब देंहटाएं--ऋग्वेद के नासदीय सूत्र (१०/१२९/१ व २ ) के अनुसार .. सृष्टि पूर्व---
"न सदासीन्नो,सदासीत्त दानी । न सीद्र्जो नो व्योमा परोयत ॥
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम ||
--अर्थात प्रारंभ में न सत् था न असत, न परम व्योम व व्योम से परे लोकादि, तो यह छिपा था क्या, और इसे किसने ढका था, उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था ।
एवं
"आनंदी सूत स्वधया तदेकं । तस्माद्वायान्न परःकिन्चनासि ॥ "
-------सिर्फ़ वह एक अकेला ही स्वयं की शक्ति से (स्वयाम्भाव ) गति शून्य होकर स्थित था, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं था। तथा-
"अशब्दम स्पर्शमरूपमव्ययम, तथा रसम नित्यं गन्धवच्च यत." (कठोपनिषद -१/३/१५)--अर्थात वह परब्रह्म अशब्द,अस्पर्श ,अरूप,अव्यय,नित्य व अनादि है। भार रहित व गति रहित, स्वयम्भू है, कारणों का कारण, कारण-ब्रह्म है। उसे ऋषियों ने आत्मानुभूति से जाना व वेदों में गाया।
-----यही हिग्स बोसान या गौड-पार्टीकल है ....
हम कुछ नही कहेंगे! जब नास्तिक पिटर हिग्स के सुझाये कण को ’ईश्वर कण’ कह दिया जाता है तब मै सोचता हूं कि उनके मन पर क्या गुजरती होगी!
जवाब देंहटाएंआशीष,
जवाब देंहटाएंआपको भी पता होगा - पीटर हिग्स ने पहले इस पार्टीकल के बारे में लिखते हुए एक आलेख का शीर्षक दिया था - गोडामन पार्टीकल. उसके संपादक ने इसे बदल कर गॉड पार्टीकल लिख दिया जो कि चिपक कर रह गया. पीटर के मुताबिक यह मिस-नोमर है - वैसे ही जैसे कि किसी सम्राट का नाम हो - गरीबदास!
इस युगांतरकारी वैज्ञानिक उपलब्धि को देश का, खासतौर पर हिंदी मीडिया हिंदू धर्म और दर्शन की जीत सिद्ध करने में लगा है, और एक तरह से धार्मिक एवं अंधराष्ट्वादी भावनाओं को उकसाने का काम कर रहा है।
हटाएंनरेंद्र जी,
हटाएंइस देश के मीडिया की क्या कहे...
सच मानीये, जो इस खोज को वेदो-उपनिषदो-पुराणो मे वर्णित बता रहे है, उन्होने कभी इन ग्रंथो का एक पन्ना भी खोल कर नही देखा होगा!
लेख बहुत ही उत्तम जानकारी से परिपूर्ण है..प्रस्तुत लेख पुराण का अंश है अत:..तर्क की कोई भी गुंजाइश नहीं.....क्यों कि, प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं..1-शब्द प्रमाण 2-अनुमान प्रमाण 3-प्रत्यक्ष प्रमाण...इन तीनों में सबसे शक्तिशाली प्रमाण है शब्द प्रमाण...
जवाब देंहटाएं.शब्द प्रमाण अर्थात....वो शब्द जो किसी बुजुर्ग के द्वरा बताये गये हों या किसी प्राचीन पुस्तक या ग्रंथ मे लिखे हुए हों...
शब्द प्रमाण !
जवाब देंहटाएंपृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र है, राहू और केतु से ग्रहण लगता है……
पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है, उसके हिलाने से भूकंप आता है...
तर्क की कोई गुन्जाईस ही कहाँ है !
Sreshti ke baare men sirf aur sirf shrishtikartaa hee bataa sakataa hai.baakee sabhi ke anumaan aur unaka gyaan
जवाब देंहटाएंवेद,शास्त्र,पुराणादि ग्रण्थों में बहुत कुछ लिखा हुआ है...ज्ञानी पुरुष अपने ज्ञान की क्षमतानुसार अर्थ समझा करते हैं।
जवाब देंहटाएंसही है .... ज्ञानी पुरुष अपने ज्ञान की क्षमतानुसार अर्थ समझा करते हैं।
जवाब देंहटाएंतर्क की कोई भी गुंजाइश नहीं!
तर्क की गुंजाइश हर जगह हो सकती है, किन्तु कुतर्क नही होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंतर्क/कुतर्क है ही कहाँ? हम तो पुराणों में लिखे को और आपकी टिप्पणीयों को ही दोहरा रहे हैं!
जवाब देंहटाएंGOD Particle हो या DOG Particle भईया हमें इससे क्या लेना देना, कोऊ नृप होए हमें का हानि, दुनिया माथा मारे पड़ी है, जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है वही सबसे ज्यादा माथा मार रहे हैं. वेद शास्त्रों में पहले से ही दिया था तो अभी तक क्या कर रहे थे ? दुनिया का भला पहले ही करवा देते. खामखा में अरबों रूपये फुंकवा दिए. बोलते मेरे पास तोड़ है. खाया पिया खाक नहीं ग्लास तोडा बारह आना यही हाल मीडिया और इससे जुड़े लोगों का है और अब यही हाल ब्लोगरों का हो गया है
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