केरियर दिलीप भाटिया परिचय दिलीप भाटिया जन्म - 26 दिसम्बर, 1947 मोबाइल सम्पर्क - 09461591498 ई-मेल - dileepkailash@gmail.com पत्र...
केरियर
दिलीप भाटिया
परिचय
दिलीप भाटिया
जन्म - 26 दिसम्बर, 1947
मोबाइल सम्पर्क - 09461591498
ई-मेल - dileepkailash@gmail.com
पत्र-सम्पर्क रावतभाटा - 323307
शिक्षा इंजीनियरिंग डिप्लोमा, इंजीनियरिंग डिग्री, एम.बी.ए.,
सृज्नात्मक लेखन डिप्लोमा
सेवाऐं 1. परमाणु ऊर्जा विभाग 38 वर्ष
2. सहजीवन, शहडोल 1 वर्ष
3. रक्तदान जीवन दान 54
4. आकाशवाणी वार्त्ताऐं > 50
5. समय, केरियर, गुणवत्ता पर वार्त्ताऐं > 100 स्कूल
- 2000 टीचर्स
- 25000 छात्र-छात्राऐं
सृजन - 4 पुस्तकें ( कड़वे सच, छलकता गिलास, अहा! सहजीवन, समय )
रचनाऐं > 2000
नन्हा भामाशाह, निर्धन छात्राओं हेतु पत्रं पुष्पं सहायता
माइल स्टोन 50 से अधिक पुरस्कार/सम्मान/प्रशस्ति पत्र
लाइट हाउस - केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा का आत्माराम पुरस्कार-2004
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से हिन्दी
दिवस 2006 को प्राप्त
आशीर्वाद - स्वर्गीय माता-पिता का
सहयोग - स्वर्गीया जीवन संगिनी का
आश्रय - इकलौती संतान बेटी मिली एवं उसके जीवन साथी आनन्द
यादव के परिवार में
लक्ष्य - नन्हा भामाशाह, विद्यादान, रक्तदान, साहित्य-सृजन, समय
का सार्थक सदुपयोग
मूलमंत्र - इतनी शक्ति मुझे देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना...
अनुक्रम
समर्पण
1 दिलीप के दिल से
2 केरियर
3 जीवन
4 शिक्षा
5 लक्ष्य
6 चुनाव
7 पाठ्य-सामग्री
8 कोचिंग
9 तैयारी
10 आवेदन
11 रिकार्ड
12 रिहर्सल
13 यात्रा
14 परीक्षा
15 परिणाम
16 खोयापाया
17 एक बार फिर
18 ग्रुप डिसकशन
19 साक्षात्कार
20 बायो-डाटा
21 प्राइवेट नौकरी
23 प्रवेश
24 सावधानी
25 परिवर्त्तन
26 सीढ़ी
27 मूल्यांकन
28 सफलता
29 सार्थकता
30 सीख
31 हारिए नहीं
32 कदम
33 छलकता
दिलीप के दिल से
सामान्य ज्ञान दर्पण एक गुणवत्तापूर्ण पत्रिका है। केरियर की यात्रा के लाखों यात्री इस पत्रिका को नियमित पढ़तेहैं। इस राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका के अक्टूबर, 2011 अंक में सर्वप्रथम मेरी कृति ‘‘समय‘‘ पाठकों के हाथों में पहुंची। पुनः अप्रैल, 2012 अंक में दूसरी कृति ‘‘जीवन-मूल्य एवं प्रबंधन‘‘ भी केरियर के यात्रियों तक पहुंची। प्रतियोगिता दर्पण ग्रुप के प्रबन्धन, सम्पादक, कम्प्यूटर टाइपिस्ट सभी का मैं, दिलीप, दिल से कृतज्ञ हूँ। उन्हीं के माध्यम से मेरी कृतियों को लाखों पाठक-पाठिकाऐं मिलीं। उत्साहवर्धन से सृजन दीपक निरन्तर प्रज्वलित रखने का प्रयास कर रहा हूँ। अब यह तीसरी कृति ‘‘केरियर‘‘ आप सब केरियर के यात्रियों के कर कमलों में है। स्वयं के, अपने व परायों के समाजके परिचितों के अनुभव, कठिनाईयों, परेशानियों आंधी तूफानों से उपजे प्रश्नों का उत्तर इस कृति में हैं। हर प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता। जीवन स्वयं एक पाठशाला है। केरियर की राह पर मिले स्वयं के छाले-ठोकरें बहुत कुछ स्वयं ही आपको सिखा देंगी। मैंने इस कृति में कोई उपदेशनहीं दिए हैं। मात्र आपकी यात्रा सुगम, सरल, निष्कंटक हो यही प्रयास किया हैं। हेल्प लाइन पर सम्पर्क कीजिए। रावतभाटा 323307 (कोटा, राजस्थान) के पते पर पत्र लिखिए। कपसममचांपसेंी/हउंपसण्बवउ पर ई-मेल कीजिए। फेस बुक पर मित्रता जोड़िए। अच्छे केरियर के लिए आप सभीको दिलीप के दिल से मंगल शुभकामनाऐं। आपका आशीर्वाद, स्नेह, प्यार मुझे चौथी कृति लिखने के लिए प्रेरणा देगा। इति.-
23 अप्रेल, 2012 विश्व पुस्तक दिवस दिलीप भाटिया ----
केरियर
वर्त्तमान युग प्रतिस्पर्धा का युग है। सफलता हर व्यक्ति का लक्ष्य है। हर युवा अच्छी नौकरी पाना चाहता है, स्थायित्व चाहता है, अच्छा पेकेज चाहता है, अतिरिक्त सुविधाऐं भी अपेक्षित होती हैं।स्कूल, कॉलेज के सर्टिफिकेट डिग्री मात्र किसी संस्थान का द्वार खटखटाने भर की हीअनुमति देते हैं। हर संस्थान अपनी तराजू पर जांचता, तोलता, परखता है, परीक्षा लेता है, फिर गु्रप डिस्कशन, व्यक्तिगत साक्षात्कार, मेडिकल परीक्षा इत्यादि कई पड़ाव होते हैं। एक लम्बी प्रक्रिया होती है। अधिकांशतः हम स्वयं के जीवन का निर्णय नहीं लेते, भीड़ का हिस्सा हैं हम। हर फार्म भरते हैं, एक दो गाइड खरीद लेते हैं। माता पिता आर्थिक रूप से सक्षम हों, तो कोचिंग संस्थान में मोटी फीस दे देते हैं, वहां भी एक छोटे से कमरे में 40-50 व्यक्ति होते हैं, पुरानेपेपर्स हल करवा देते हैं। सब्जबाग दिखलाते हैं, हर सप्ताह टेस्ट लेते हैं।इन्टरनेट से डाउनलोड कर अपने संस्थान की सील लगाकर सामग्री दे देते हैं। सीटें कम होती हैं, उम्मीदवार कई गुने, 1ः100 का अनुपात होता है औसत रूप में परिणाम निकलने पर 100 में से 1 के घर पर त्यौहार मनता है, श्ोष 99 रोते हैं बस, फिर अगली परीक्षा के लिए फार्म भरना, वही प्रक्रिया बुझे मन से करते हैं। सफल उम्मीदवार का श्रेय तीन-चार कोचिंग संस्थान लेते है। धन राशि देकर फोटो लेकर फर्जी रोल नम्बर चिपकाकर समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर विज्ञापन दिए जाते हैं, कुछ और उम्मीदवारों को लूटने के लिए। इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए, सही-गलत का निर्णय करने के लिए, इस पुस्तिका में आगे के अध्यायों में एक संतुलित सामग्री देकर एक सही राह दिखाने का प्रयास किया है। आइए इसे पढ़िए एवं सही राह पर चलने का प्रयास कीजिए।
जीवन
मनुष्य जीवन मिला है। साधारण व्यक्ति की दिनचर्या एक निर्धारित क्रम में चलती है। बचपन, पढ़ाई, नौकरी, व्यापार, शादी, बच्चे, गृहस्थी, जिम्मेदारी, बुढ़ापा, भजन एक बंधी बंधाई लीक सी। टी.वी. देख लिया, राजनीति पर चर्चा कर ली, संतान में खोट निकाल लिया, खाए, सोए बस इतना भर ही। एक अच्छा जीवन जीना हमारा दायित्व है। गुणवत्वापूर्ण जीवन जीना, अपने साथ औरों के लिए भी जीना, सेवा-दान-पुण्य, परमार्थ करना, निस्वार्थ नहीं भी तो लोक-व्यवहार हेतु करना, प्रचार-प्रसार-नाम-यश-प्रसिद्धि के लिए करना, पर करना तो सही जीवन चाहे सफल नहीं हो, पर सार्थक तो हो। अच्छे काम के प्रचार-प्रसार से कुछ व्यक्तियों को प्रेरणा मिलेगी। एक दीपक से कई दीपक जलाए जा सकते हैं। अच्छे कर्म मीठे फल देते हैं, संतोष देते हैं। औरों को तो अच्छा लगता हीहै, स्वयं को भी अच्छा लगता है। 55 बार रक्तदान कर चुका हूँ, जीवन में, रक्तदान करते समय आत्मसंतुष्टि मिलती है, मेरी अणुनगरी रावतभाटा में मुझ से प्रेरणा लेकर कई इस राह पर चल रहे हैं, मुझे खुशी होती है कि कुछ और दीपक मैंने जलाए। विद्यादान कर कई बेटे-बेटियों का भविष्य उज्वल बनाया है। कई छात्र-छात्राओं को शिक्षा के लिए फीस दीहै। समीप के गांव तमलाव के मिडिल स्कूल में मां की स्मृति में चार सीलिंगफेन दिए, तो एक अध्यापिका बहन की आंखें व गला भर आया था। स्टेशनरी तो देता ही रहता हूँ, देकर अच्छा लगता है। अपने जीवन की सार्थकता लगती है एवं समाज के कुछ व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होने से एक अलौकिक अनुभव होता है। आप भी चिन्तन, मनन, मंथन कीजिए, योजना बनाइए, अमल करिए, कुछ भी एक दो भी अच्छे काम जीवन में कर पाऐ ंतो आपको स्वयं को ही अच्छा लगेगा जीवन जीवन्त हो जाएगा, सार्थक हो जाएगा।
शिक्षा
अच्छा जीवन जीने के लिए शिक्षा आवश्यक है। एक शिक्षित व्यक्ति जीवन की समस्याओं का सही समाधान खोजने में बहुत कुछ सफल हो पाता है। शिक्षा से मन की खिड़कियां खुलतीहैं। ज्ञान, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, भाषा, गणित हर विषय का अपना महत्त्व है। विज्ञान वाणिज्य, कला जिस भी विधा में उच्च शिक्षा प्राप्त की जाए, वह जीवन में उपयोगी होती है। शिक्षा एक अनमोल गहना है, परिवार, समाज, नौकरी, व्यापार, संस्थान हरक्षेत्र में शिक्षा के कारण हमारा जीवन सफल होता है, सरल होता है, सुगम होता है। शिक्षा प्राप्त करते समय एक ईमानदारी भरे प्रयास एवं समर्पण वाली भावना की नितान्त आवश्यकता है। चाहे स्कूल हो या कॉलेज, पूरा कोर्स करना, नियमितता, लिखित नोट्स, रिहर्सल आवश्यक है। मात्र गाइड या वन वीक सीरीज के सहारे परीक्षा किसी तरह मात्र उत्तीर्ण कर भी ली, तो केरियर के बाजार में वह स्वीकार्य नहीं होगी। 60 प्रतिशत अंक अनिवार्य हैं - वाले विज्ञापन का फार्म भरने लायक भी नहीं रहेंगे। केरियर के हर विज्ञापन में न्यूनतम योग्यता के साथ न्यूनतम प्रतिशत अंक भी अधिकांशतः अनिवार्य होते हैं। इसलिए जितना भी, जो भी शिक्षा प्राप्त करें मात्र डिग्री सर्टिफिकेट, मार्कशीट लेने भर के लिए ही नहीं प्राप्त करें।पूरी एवं अच्छी तैयारी के साथ अधिकतम अंक लाने का प्रयास करें। छोटी कक्षाओं में गणित व अंग्रेजी में रही हुई कमजोरी केरियर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में कितना दुःख देती है, 50 से 60 प्रतिशत उम्मीदवार इसे भली भांति समझते हैं, पर तब तक बहुतदेर हो गई होती है, इसलिए प्रारम्भ से ही निर्धारित पूरा कोर्स कीजिए, कठिनाई हो, तो समाधान पूछिए। मात्र शिक्षा ही नहीं, एक अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लेना पहली सीढ़ी है, एक अच्छे केरियर के लिए।
लक्ष्य
शिक्षा प्राप्त करते हुए ही जीवन का लक्ष्य चुनना होगा। कक्षा 10 तक सभी के लिए समान विषय होते हैं, पर कक्षा 11 में ही विषय का चुनाव करना होता है। विज्ञान, वाणिज्य, कला, गृह विज्ञान इत्यादि वर्गों में से एक चुनना होगा। जैसे-जैसे आगे की शिक्षा के लिए बढ़ेंगे, चुनाव सूक्ष्मतम करना होगा। दांतों का डॉक्टर बनना है या जनरल, इंजीनियरिंग करनी हो, तो कौन सी ब्रांच चुननी है। विज्ञान लिया है, तो स्नातकेात्तर किस में करनी है, भौतिक शास्त्र, गणित, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, बायो टेक। इसलिए लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए, तभी उसी अनुसार शिक्षा के कोर्स या डिग्री का चुनाव करना होगा। लक्ष्य बनाते समय स्वयं की इच्छा सर्वोपरि है, पर माता, पिता के जीवन अनुभव, उनकी आर्थिक क्षमता, संसाधन, साथ ही उस क्षेत्र में अच्छे रोजगार की संभावनाऐं, सभी पहलुओं को ध्यान रखना होगा। शिक्षा प्राप्त कर घर तो बैठना है नहीं, जीवन के मैदान में उतरना है, किस क्षेत्र में रोजगार के कितने अवसर हैं। हमारी अपनी शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक क्षमता कितनी है, हम कितने घंटे पढ़ाई कर सकते हैं। परिवार समाज, देश के लिए हमारी शिक्षा कितनी उपयोगी होगी, यह सब चिन्तन, मनन, मंथन कर, बड़ों से उचित मार्गदर्शन लेकर लक्ष्य बनाना चाहिए। लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए, अर्जुन को मात्र चिड़िया की आंख नजर आ रही थी, लक्ष्य खूब सोच समझकर बनाकर ही सही मार्ग पर चल पाऐंगे। संगीत, चित्रकला, विज्ञान, कामर्स हर क्षेत्र में सफलता के लिए संभावनाऐं हैं। भेड़चाल में इंजीनियरिंग ही एक मात्र विकल्प नहीं है। लक्ष्य लिख लेना चाहिए। लक्ष्य पर ध्यान रखा जाना चाहिए। नियमित अंतराल पर समीक्षा करनी चाहिए कि हम लक्ष्य से भटक तो नहीं रहे हैं। लक्ष्य पर दृष्टि रखने से हम सही मार्ग पर चलतेरहेंगे। शिक्षा की सीढ़ियां चढ़ने के लिए एक सही स्पष्ट लक्ष्य महत्वपूर्ण है।
चुनाव
शिक्षा एवं लक्ष्य के बाद केरियर का चुनाव एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इंजीनियर बनना है, तो इंजीनियरिंग केरियर चुनना होगा। चित्रकार बनना है, तो चित्रकला या फाइन आट्र्स में डिग्री करनी होगी। प्रबंधन में जाना है, तो एम.बी.ए. करना होगा। कम्प्यूटर लक्ष्य है, तो बी.सी.ए./एम.सी.ए. चुनना होगा। बैंक मे जाना है या सिविल सेवाओं में इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, गृह विज्ञान क्या विषय लेना है? प्रशासनिक सेवाओं में जाना है या लेखा में, प्रबंधन में क्या लक्ष्य है, वित्त, विपणन, मानव संसाधन या कुछ और। चुनाव सही होना चाहिए। उम्मीदवार अधिक हैं, इसलिए सफलता की संभवना 1 या 2 प्रतिशत होती है, इसलिए विकल्प तो रखना होगा। मात्र स्टेट बैंक का लक्ष्य रखकर नहीं चला जा सकता, बैंकिंग लक्ष्य है, तो बैंक की प्रत्येक परीक्षा का फार्म भरना होगा। हॉ, बैंक व इंजीनियरिंग एक साथ लेना दो नावों पर सवारी करने जैसा होगा। समय विभाजन हो जाएगा, एक ही सेक्टर का लक्ष्य होगा तो पूरे 24 घंटे उसे दे सकते हैं। लक्ष्य के आधार पर चुनाव करना होगा, एक ही सेक्टर का लक्ष्य रखने से सफलता की सम्भावनाऐं बढ़ जाती हैं। आपात् कालीन स्थिति में कुछ भी करने के लिए भी तैयार होना एक दूर दृष्टि वाली मानसिकता निश्चय ही सराहनीय होगी, परन्तु, मुख्य लक्ष्य स्पष्ट होगा, तो पूरा समय ऊर्जा, मेहनत, समपर्ण भाव से देकर सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। चुनाव जितना सूक्ष्म होगा, मन संतुलित रहेगा, भटकेगा नहीं, विचार स्पष्ट होंगे, तो आचार भी सही होगा। लक्ष्य एवं चुनाव में सामंजस्य, तारतम्य होना चाहिए, यही सही मार्ग है। शिक्षा-लक्ष्य-चुनाव का त्रिभुज जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण भी है आवश्यक भी, सही राह पर चलने हेतु इन तीनों का संगम आवश्यक है।
पाठ्य सामग्री
चुनाव करने के पश्चात् गुणवत्त्तापूर्ण सामग्री वांछित है। शिक्षा के समय बने हुए नोट्स पाठ्य सामग्री की नींव हैं। सम्बन्धित विषयों की पुस्तकें एवं स्वयं के बनाए हुए नोट्स एक बहुमूल्य सामग्री हैं, इन्हें रद्दी में मत दीजिए, नष्ट भी मत कीजिए, कई बार आपको इनकी आवश्यकता होगी। इन्हें संभालकर व्यवस्थित रूप में रखिए। पुस्तकों पर नम्बर डाल दीजिए, एक सूची बना लीजिए, घरेलू व्यक्तिगत लाइबे्ररी में इन्हें सहेज कर रखिए एवं आवश्यकतानुसार उपयोग भी करिए। हर प्रतियोगी परीक्षा के लिए बाजार में गाइड-पासबुक उपलब्ध होती हैं। प्रतियोगी परीक्षा का लिखित पाठ्यक्रमआपके पास नहीं है, तो सम्बन्धित वेबसाइट पर जाकर डाउनलोड कर लीजिए, देखिए, परीक्षा के सेलेबस से सम्बन्धित पढ़ने की सामग्री आपके पास उपलब्ध है या नहीं, एक या दो अच्छी गुणवत्तापूर्ण गाइड खरीद लीजिए। पुरानी गाइड मत लीजिए, सहेली दोस्त से भी नहीं, लेटेस्ट गाइड में पिछले वर्ष तक के प्रश्न-पत्र मिलेंगे एवं जनरल नॉलेज भी अपटूडेट मिलेगी, पैसे बचाने के चक्कर में मुफ्त की गाइड से आपको वर्त्तमान जानकारी नहीं मिल पाएगी, इसलिए पुराने वषोंर् की गाइड से दूर ही रहिए। प्रतियोगिता दर्पण, उपकार प्रकाशन, आगरा की गाइड सर्वोत्तम हैं। सामान्य ज्ञान दर्पण, प्रतियोगिाता दर्पण एवं वार्षिक जनरल नॉलेज की पुस्तकें भी बहुमूल्य सामयिक एवं नवीनतम जानकारी देती हैं। विषयों के विश्ोषज्ञों द्वारा रचित ये पुस्तकें आप की सच्ची दोस्त-मित्र-सहेली होंगी। सम्बन्धित परीक्षा की गाइड लेने से आपको एक ही पुस्तक में सामग्री मिल जाएगी, पुराने प्रश्न-पत्र मिल जाऐंगे, मॉडल पेपर मिल जाऐंगे। केरियर में सफलता हेतु गुणवत्तापूर्ण सही पाठ्य-सामग्री होना प्रारंभिक आवश्यकता है। सफलता की राह आसान हो जाएगी।
कोचिंग
कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया जाए या नहीं , यह एक बहुत संवेदनशील प्रश्न है। हर प्रतियोगिता परीक्षा के लिए कोचिंग संस्थानों की भीड़ है, कौन सही है या कौन गलत, यह निर्णय करनाकठिन हो जाता है। अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लुभावने विज्ञापन भ्रमित करते हैं। एक ही उम्मीदवार की सफलता का श्रेय एक साथ कई संस्थानों द्वारा लिया जाना उनकी विश्वसनीयता, गुणवत्ता एवं सच्चाई पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। हजारों-लाखों रूपयों की मोटी फीस, कोचिंग संस्थान में प्रवेश के लिए भी परीक्षा इत्यादि कई ऐसे पहलू हैं, जो असमंजस की स्थिति पैदा करते हैं। सभी कोचिंग सेस्थान कटघरे में है, यह नहीं कह रहा। कई उम्मीदवार सफलता का श्रेय एक अच्छे कोचिंग को भी देते नज़र आते हैं, इसलिए इन संस्थानों को पूरी तरह नकारा भी नहींजा सकता, पर निर्णय व चुनाव करते समय बहुत सावधानी एवं सजगता की आवश्यकता है। सर्वप्रथम पहलू है स्वयं की आर्थिक क्षमता। मम्मी-पापा की आय, इतनी मोटी फीस, फिर दूसरे शहर में रहने-खाने-यात्रा इत्यादि का खर्च बहुत सूक्षमता से सभी पहलुओं पर मंथन करना चाहिए।पुराने उम्मीदवारों से सम्पर्क कर सही वस्तुस्थिति का पता कर लेना चाहिए। समाचार पत्रों के लुभावने विज्ञापन मात्र ही सचाई नहीं हैं, पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और होती है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोचिंग में भी 4-6-8 घंटे समय देना होगा एवं स्वयं की पढ़ाई के लिए इतना समय कम होगा। 24 घंटो की सीमा है। सक्षम समर्थ हों तो गुणवत्तापूर्ण पाठ्य सामग्री से घर पर ही तैयारी करना सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। पर विषय में बहुत कमजोर हों, तो सभी पहलुओं पर ध्यान देते हुए एक विश्वसनीय गुणवत्तापूर्ण संस्थान में प्रवेश लेना विकल्प है, पर पूरी सजगता, सतर्कता के साथ, संस्थान के विश्ोषज्ञों द्वारा समस्याओं का समाधान निश्चय ही वांछित परिणाम देने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
तैयारी
पाठ्य सामग्री कोचिंग के बाद अब प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी तो करनी है। मात्र पुस्तकों को अलमारी में सजाने या मात्र कोचिंग संस्थान जाकर सुन-लिख लेने से ही सफलता नहीं मिल जाएगी। मन लगाकर पूर्ण समर्पण भाव से तैयारी करनी होगी, समय निकालना होगा, समय सारणी बनाकर अमल करना होगा, लिखित नोट्स बनाने होंगे, प्रातः काल शीघ्र उठकर पढ़ना होगा, पूरा सेलेबस पढ़ना होगा, पुराने पेपर्स देखने होंगे इस बार की परीक्षा में परिवर्त्तनों को जानना समझना होगा। समय का दुरूपयोग न्यूनतम करना होगा। सकारात्मक सोच रखनी होगी। सफलता का लक्ष्य रखना होगा। आत्मविश्वास बनाए रखना होगा। व्यवसायी हों, नौकरी करने वाले हों या गृहिणी - इन तीनों के लिए प्रातःकाल की पढ़ाई सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। आवश्यक हो तो पर हेल्पलाइन से सम्पर्क किया जा सकता हैं।पूरी तैयारी किए बिना सफलता पाने की आशा मात्र स्वयं को धोखा देना भर ही है। गणित की कमजोरी को दूर करने के लिए कक्षा 6 से 8 की गणित की पुस्तकों के सरल उदाहरण करने होंगे। अंग्रेजी सुधारने के लिए एक पृष्ठ प्रतिदिन अंगे्रजी का लिखकर सक्षम च्यक्ति से चेक करवाना होगा। सामान्य ज्ञान नवीनतम एवं अपटूडेट रखने हेतु उपकार प्रकाशन की पुस्तक व पत्रिकाऐं पढ़नी होंगी। मेंटल एबिलिटि व रीज़निंग हेतु विश्ोषज्ञ से एक पखवाड़े का प्रशिक्षण लेना होगा। प्रतियोगी परीक्षा का पूरा सेलेबस करना होगा। सरल लगने वाले अध्यायों को भी गम्भीरता से लेना होगा। पाठ्य सामग्री दिशा निर्देश देगी, कोचिंग भी अधिकांश इन सब को ही दोहराएगी, पर तैयारी तो स्वयं ही करनी होगी। पूर्ण मन से, निष्ठा से, तैयारी शतप्रतिशत हो तो मंजिल मिलकर ही रहेगी। शार्ट कट नहीं, हर प्रश्न, हर चेप्टर महत्त्वपूर्ण है। मन नहीं लगता, मूड नहीं है जैसे वाक्य छोड़कर बस पढ़ना होगा, कड़ी मेहनत से तैयारी करने से भविष्य में सुखद परिणाम मिलकर ही रहेंगे।
आवेदन
प्रतियोगी परीक्षा के लिए समय पर आवेदन करना एक नितांत आवश्यक कदम है। समाचार पत्र, वेबसाइट, रोजगार समाचार, प्रतियोगिता दर्पण, सामान्य ज्ञान दर्पण इत्यादि के माध्यम से विज्ञापन की समय पर जानकारी रखना उम्मीदवार का कर्त्तव्य है। अधिकांशतः आन-लाईन रजिस्ट्रेशन होता है। अन्तिम तिथि तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं, स्वयं की पात्रता, यथा, शिक्षा, प्रतिशत, आयु इत्यादि परखना होगा। नियमों में छूट सीमा के अंतर्गत हम आते हैं या नहीं, यह भी समझना जानना होगा। इन्टरनेट एवं कम्प्यूटर की बेसिक जानकारी से स्वयं ही आवेदन किया जा सकता है। स्वयं का ई-मेल आई.डी. होना भी आज फैशन नहीं, एक आवश्यकता सी हो गई है। बैंक चालान, ड्राफ्ट बनवाने की भी जानकारी होनी चाहिए। भीड़ से बचने हेतु यथाशीघ्र सभी औपचारिकताओं को पूरा कर लेना चाहिए। डाक से भेजना हो तो, स्पीड पोस्ट या रजिस्टर्ड पोस्ट एक अच्छा विकल्प है। पोस्ट बॉक्स नं. हो तो पोस्ट अॉफिस में अनरजिस्टर्ड पार्सल से भेजना विकल्प है। कई संस्थान कोरियर स्वीकार नहीं करते। कई साधारण डाक से ही आवेदन पत्र चाहते हैं। विज्ञापन को अच्छी देख पढ़ करसमझ लेना चाहिए। निर्धारित प्राफार्मा हो तो वही भरना चाहिए। प्रमाण पत्रों की मूल प्रति कभी नहींलगानी चाहिए। जीरॉक्स प्रतिलिपि भी तभी संलग्न करनी चाहिए, जब चाही गई हो।फोटो शालीन हो, स्टेपल करना है, चिपकाना है, स्वयं हस्ताक्षर करने हैं या राजपत्रित अधिकारी से करवाने हैं। हर बात का ध्यान रखना चाहिए। बायो-डाटा भेज रहे हैं, तो उस पर भी हस्ताक्षर होने चाहिए। ई-मेल से भेज रहे हैं, तो पहले प्रिन्ट निकलावाकर फिर हस्ताक्षर करने के पश्चात स्केन करके भेजना चाहिए, हस्ताक्षर एक समान होने चाहिऐं। संक्षेप में आवेदन के विज्ञापन की हर शर्तों नियमों को ध्यान से समझ कर पालन करने से आवेदन कभी भी अस्वीकार्य नहीं होगा।
रिकार्ड
परीक्षा देने जाना है पर एडमिशन कार्ड पता नहीं कहां रख दिया था? परिचय पत्र भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसीस्थिति अक्सर आती हैं। आजकल एक नहीं अनेंको स्थानों पर आवेदन किए जाते हैं। सही प्रकार रिकार्ड रखना परम आवश्यकता है। स्टेशनरी की दुकान से एक फाइल ले आइए, मूल विज्ञापन की कटिंग, आवेदन का प्रिन्ट या जीरॉक्स कॉपी, एडमिशन कार्ड, सेन्टर का नाम पता, सम्बन्धित व्यक्तियों के फोन नम्बरसब कुछ फाइल में होने चाहिऐं। कम्प्यूटर की सॉफ्ट कॉपी एवं मोबाइल में फीड किए हुए नम्बरों पर ही मात्र भरोसा नहीं रखें। पावर कट हो सकताहै, सर्वर डाउन हो सकता है, मोबाइल की बैटरी लो हो सकती है एवं इन्टरनेट कार्ड की अवधि समाप्त हो सकती है। इसलिए हार्ड कॉपी एवं सभी मोबाइल नम्बरों की डायरी में लिखित सूची एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में रखना आवश्यक है एवं संकट के समय संजीवनी का कार्य करेगी। मूल प्रमाण-पत्र एक अलग फाइल में होने चाहिऐं। सुरक्षा हेतु इन्हें लेमिनेट करवाकर रखा जा सकता है। मूल निवास, जन्म तिथि, जाति प्रमाण-पत्र इत्यादि पूरे जन्म भर जिन्दगी भर काम आऐंगे, शिक्षा के सर्टिफिकेट डिग्री भी सहेज कर रखने चाहिऐं। पासपोर्ट साइज फोटो प्रचुर मात्रा में होने चाहिऐं। रिकार्ड सही प्रकार रखने चाहिऐं। हरमाह फाइल का निरीक्षण कर पुराने अनुपयोगी रिकार्ड हटा देने चाहिऐं, ताकि आवश्यक रिकार्ड समय पर मिल पाऐं। परमानेन्ट रिकार्ड सुरक्षित रखिए। रजिस्टे्रशन नम्बर, रोल नम्बर मोबाइल में भी फीड कर लें। परिणाम निकलने पर इन्टरनेट साइबर केफे में फाइल नहीं ले जानी होगी। व्यवस्थित रिकार्ड आपके स्वयं-अनुशासन का प्रमाण होंगे। कई परेशानियों से बचाऐंगे। समय, श्रम, शक्ति बचेगी, डुप्लीकेट बनवाने की परेशानी नहीं होगी। व्यक्तिगत फाइल में सभी उपयोगी रिकार्डरखना उतना ही आवश्यक है, जितना पूरी तैयारी करना।
रिहर्सल
पढ़ाई-कोचिंग के पश्चात् यह जांचना परखना भी आवश्यक है कि हमारे दिमाग में कितना घुसा है? स्कूल-कॉलेज केवार्षिक उत्सव के प्रोग्राम के लिए हफ्ते 15 दिनों तक रिहर्सल करते हैं,परीक्षा के लिए भी रिहर्सल आवश्यक है, भूल गए, यह तो पढ़ा ही नहीं था, आते हुए पेपर छूट गया, समय कम पड़ गया, पेपर बहुत लम्बा था, चेक तो कर ही नहीं पाए जैसे वाक्य हम सब परीक्षा भवन से आ कर बोलते हैं। इस सबका कारण है कि परीक्षा की रिहर्सल ही नहीं करी थी। गाइड में कुछ माडल पेपर दिए हुए होते हैं। कोचिंग संस्थान भी टेस्ट पेपर करवाते हैं। मोबाइल में अलार्म लगाकर निश्चित समय में पेपर हल करिए, स्वयं चेक करिए। रिहर्सल या प्रेक्टिस आप को दर्पण दिखलाएगी, क्या आता है, क्या नहीं ? स्पीड कम तो नहीं है ? 3 घंटे में 200 प्रश्न पूरे कर पा रहें हैं या नहीं ? 2 घंटे में 100 प्रश्न हल कर पा रहे हैं या नहीं ? रिहर्सल से आपको अपनी कमियां व कमजोरी पता चलेंगी। स्वयं को सुधारने का अवसर मिलेगा, गलतियों को सुधारिए, रिहर्सल को दोहराइए। परीक्षा से पूर्व जितने भी अधिक मॉडल पेपर हल करने का प्रयास करेंगे, परीक्षा में सफलता की सम्भावनाऐं बढ़ती चली जाऐ्रगी। रिहर्सल से आत्मविश्वास बढ़ेगा, सरल प्रश्न पहले हल करें, कठिन प्रश्न अंत में, नेगेटिव मार्किंग हो, तो गलत उत्तर पर टिक करने से बचें। लिखित उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान रखें। जितना पूछा गया है, टू दी प्वाइन्ट लिखें। रिहर्सल आपको ऊर्जा, शक्ति, साहस, हिम्मत देगी, प्रयास करिए कम से कम 5 प्रश्न पत्र हल करने की, स्पीड का खयाल रखिए। बहुत शीघ्रता से प्रश्न गलत होंगे, बहुत धीमे करने से प्रश्न छूट जाऐंगे। संतुलित मध्यम मार्ग ही सही रास्ता है। पढ़ाई का टेस्ट रिहर्सल से ही होगा। रिहर्सल की सीढ़ी पर चढ़ना एक अनिवार्यता है। पहली ही परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए रिहर्सल बहुत सार्थक सहयोगी सिद्ध होगी।
यात्रा
अगर परीक्षा केन्द्र अपने निवास से दूर है, दूसरे शहर में है, तो यात्रा की योजना बनानी होगी। बस या रेल में आरक्षण करवाना होगा। शहर में ही हो, दूरी हो तो, सिटी बस या अॉटो बगैरह की सुविधा का उपयोग करना होगा। परीक्षा केन्द्र पर समय से पहले पहुंचना होगा। आदर्श स्थिति में दूसरे शहर में एक दिन पहले पहुंचना अच्छा रहता है। टे्रन व बस में बैठकर जा रहे हैं, पूरी रात, फिर, पेपर देने में नींद आएगी, सिर दुखेगा, स्नान वगैरह नहीं कर पाऐंगे। आर्थिक संसाधान की सीमाऐं हैं। इसलिए एक दिन पहले पहुंचने से होटल, धर्मशाला इत्यादि का अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ेगा। इसलिए यह निर्णय स्वयं की सीमाओं एवं स्थिति पर निर्भर करता है कि एक दिन पहले पहुंचना है या उसी दिन। हजारों रूपए देकर कोचिंग की है, 500-1000 रू. देकर गाइड खरीदी हैं, इतनी मेहनत की है, फिर एक दिन के होटल के खर्च को लेकर असमंजस की स्थिति क्यों ? ठीक है, परीक्षा के दिन ही पंहुचना चाहते हैं, तो कम से कम टे्रन में स्लीपर में आरक्षण तो करवा ही लीजिए या स्लीपर कोच वाली बस में यात्रा कीजिए, ताकि परीक्षा वाली रात पूरी नींद लेकर परीक्षा के समय स्वस्थ रह सकें। यात्रा से पूर्व एडमिशन कार्ड, परिचय पत्र, पेन, पेन्सिल, रबर, शार्पनर इत्यादि परीक्षा से सम्बन्धित सभी आवश्यक सामग्री रख लीजिए। घर का बना खाना, मौसमी फल, बिस्कुट भी बैग में हों, दैनिक आवश्यकताओं का सामान तो रखना ही है, जिस प्रकार अन्य यात्राओं के समय रखते हैं। प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता हेतु यात्रा की योजना बनाना भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यात्रा में कम थकेंगे, तो परीक्षा भवन में उत्साह बना रहेगा। इसलिए किसी भी तरह, ट्रेन के पायदान या बस की छतों पर बैठकर जाना कोई साहस का काम नहीं है, परीक्षा में सफलता हेतु सुख सुविधापूर्ण यात्रा एवं उस शहर में ठहरने का स्थान अनिवार्य है।
परीक्षा
परीक्षा केन्द्र स्थल पर 15 मिनिट पहले पहुंचें, मोबाइल घर पर ही छोड़ जाऐं, परीक्षा भवन में मोबाइल प्रतिबन्धितहोता है, बाहर रखना सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है। इनविजिलेटर के मौखिक निर्देशों को ध्यान से सुनें व पालन करें। परीक्षा भवन में प्रवेश से पूर्व एक बार फ्रेश हो लें, ताकि परीक्षा के मध्य में बाहर जाने की आवश्यकता नहीं हो, उत्तर कॉपी में रोल नम्बर इत्यादि सभी चाही गई जानकारी भर दें, हस्ताक्षर कर दें। प्रश्न-पत्र मिल गया है। प्रथम पृष्ठ पर लिखे निर्देशों को पढ़ लें। गाइड-कोचिंग में जो भी बताया-लिखा गया था, प्रश्न पत्र में अन्तिम समय में परिवर्त्तन हो सकते हैं। इसलिए प्रश्न-पत्र में लिखे हुए निर्देश ही एक मात्र सत्य हैं। सरल सेक्शन को पहले करें। विज्ञान के उम्मीदवार लॉजिकल रीजनिंग को पहले हर कर सकते हैं, पर कला वर्ग केउम्मीदार को भाषा ज्ञान वाला सेक्शन पहले हल करना चाहिए। स्वयं की बुद्धि, ज्ञान, क्षमता अनुसार जो सरल लगे, उसे पहले करें। वैकल्पिक उत्तरों में से एकसही छांट लें, पर श्ोष को भी पढ़ ले, तभी सही पर निशान लगाऐं। कलाई पर बंधी घड़ी या परीक्षा भवन में दीवार पर टंगी घड़ी पर निगाह रखें, सामान्य गति बनाए रखें, अति शीघ्रता भी नुकसान करेगी, पर हर मिनिट हर पल मूल्यवान है। धीमी गति से पेपर छूट जाएगा, नेगेटिव मार्किंग हो तो रिस्क लेने से बचें। प्रश्न के उत्तर लिखने हों, तो अधिकांशतः उत्तर पुस्तिका में स्थान निश्चित होता है। कभी शब्द सीमा दी हुई होती है, जितना पूछा है, उतना ही लिखें। शब्द या स्थान सीमा का ध्यान रखें। सुलेख स्पष्ट हो, गलतियां चेक कर लें, ओ.एम.आर. शीट समय से भर लें। पढ़ाई के ज्ञान को निर्धारित 3 . घंटे में समय सीमा में प्रश्न पत्र हल कर बतलाना होगा, इसलिए सफलता हेतु तनाव रहित होकर, सकारात्मक मन से प्रश्न-पत्र के अधिकतम प्रश्न हल करने का प्रयास करें। अंतिम तीस मिनिट में कठिन प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें।
परिणाम
तनाव में क्यों हैं ? आम का पेड़ लगाने पर मीठे आम ही तो खाने को मिलेंगे। नीम का पौधा लगाया था, तो कड़वा नीम मिलेगा। परीक्षा देकर आ गए हैं, अब कुछ सोचिए मत, यह समय थकान उतारने का है, मन की बैट्री चार्ज करने का है, खुश रहिए। परिणाम आ गया है, इन्टरनेट पर रोलनम्बर देख लीजिए। नम्बर भी लोड कर दिए हैं। तो प्रिन्ट ले लीजिए, रिकार्ड के लिए, कई परीक्षा के पश्चात् परिणाम प्रकाशित होने के साथ ही स्टेन्डर्ड सही हल भी घोषित किए जाते हैं। ओ.एम.आर. शीट की कार्बन कॉपी भी कई उम्मीदवारों को दे दी जाती है। स्टेन्डर्ड की से अपने हल चेक कर लीजिए। परीक्षा परिणाम में कोई त्रुटि हुई, तो मूल्यांकन हेतु आवेदन कीजिए। पुनर्मूल्यांकन एक फैशन परम्परा सी हो गई है। प्रत्येक उम्मीदवार सोचता है कि उसने तो पेपर अच्छा ही किया था, पता नहीं नम्बर कम क्यों आए कम्प्यूटर जांच में अधिकांशतः त्रुटि की सम्भावना कम ही रहती है, फिर भी, मन इच्छा हो तो पुनर्मूल्यांकन के आवेदन में कोई आपत्ति नहीं है। परिणाम को स्वीकार करिए। सकारात्मकपरिणाम में अभिमान मत कीजिए। नकारात्मक परिणाम में टूटिए मत, परेशान मत होइए, स्वयं को दुखी मत कीजिए। परिवार के वातावरण में तनाव मत घोलिए, दोंनो ही स्थिति में अगले कदम के लिए तैयारी करनी होगी। परीक्षा परिणाम अंतिम मंजिल नहीं है, यात्रा का एक स्टेशन भर है। परिणाम ने आपको दर्पण दिखलायाहै, जितनी जिस प्रकार पढ़ाई की थी एवं उसके पश्चात् प्रश्न-पत्र में जितना करके आए थे, वही सब तो अब आपके सामने है, परीक्षक को कोसने से कुछ नहीं होगा। परीक्षा एक खेल है। हार-जीत दोनों ही सम्भव हैं, जीत भी एक स्वाभाविक संदेश है आपके लिए, हार भी एक संदेश है। जीवन की हर परीक्षा के समान प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम स्वीकार कीजिए। तनाव हो, तो स्थानीय हेल्पलाइन पर सम्पर्क कीजिए।
खोया-पाया
परीक्षा परिणाम सकारात्मक आने पर लगता है जैसे हम ने सब कुछ पा लिया है। नकारात्मक आने पर लगता है, सब कुछ खो दिया है। नकारात्मक परिणाम आने पर कई उम्मीदवार डिप्रेशन की स्थिति में चले जाते हैं, जीवन से हार मान लेते हैं, गलत कदम उठा लेते हैं,क्या मुंह दिखाऐंगे ? सोच कर भटक जाते हैं, नश्ो का सहारा लेते हैं, जान से खेल जाते हैं। करबद्ध प्रार्थना अनुरोध सभी से, प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के पश्चात अभी साक्षात्कार, गु्रप डिसकशन इत्यादि कीकई सीढ़ियां पार करनी हैं। इसलिए खुशी में भी संतुलन बनाए रखिए। नकारात्मक आने पर निराश मत होइए, एक लिखित परीक्षा में असफल होना जीवन में असफल होना नहीं है। ईश्वर मानें या प्रकृति, हर पल हर क्षण हर दिन हमारी परीक्षा होती है। हर प्रश्न अनिवार्य होता है, बाजार में कोई गाइड उपलब्ध नहीं, किसी भी कोचिंग संस्थान के पास, ईश्वर की परीक्षा का कोई पेकेज नहीं है। मत उलझिए, खोया-पाया को सोच कर, बस जो है, उसे स्वीकार कीजिए, आत्ममंथन कीजिए। क्या कमी रह गई थी ? क्या जानकारी में कमी थी ? क्या स्पीड कम थी ? क्या कठिन लम्बे प्रश्नों को पहले करने लग गए थे ? क्या सरल प्रश्नों के लिए समय कम पड़ गया था ? ईमानदारी से सोचेंगे, तो स्वयं हीअपनी कई गलतियां पता चल जाऐंगी ? किस क्षेत्र में क्या कमजोरी है ? पता चलजाएगा बस सच्चे मन से सोचना हैं स्वयं को भुलावे में नहीं रखना है। याद रखिए सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। खोया-पाया की बेलेंस शीट बनाइए।पाया है तो अगले कदम की तैयारी कीजिए। समय नष्ट मत कीजिए, खोया है, तो मन को मजबूत रखिए। गिर कर उठना ही होगा। बुझे हुए दीपक को भी पुनः जलाया जा सकता है, तेल डालना होगा, बाती ठीक करनी होगी, आंधी से बचाना होगा।
एक बार फिर
असफल होने पर एक बार पुनः प्रयास करिए। पिछली कमियों को दूर करिए। पुरानी प्रक्रिया दोहरानी होगी, पर इस बार कुछ अधिक समय पढ़ाई को देना होगा। गलत कामों में समय नष्ट कम करना होगा। अच्छी नवीनतम गाइड से पढ़ना होगा, जिन विषयों में कमजोरहैं, उनके विश्ोषज्ञ से सम्पर्क करना होगा। स्पीड बढ़ानी होगी, कुछ अधिक मॉडल पेपर हल करने होंगे। कुल मिलाकर कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करना होगा। सकारात्मक सोच रखनी होगी। आधी खाली थाली का रोना नहीं रोना होगा, आधी भरी थाली को देखना होगा, चलतेरहना होगा, हार नहीं माननी होगी। आप कहेंगे कि उपदेश से तनाव दूर नहीं होता, जिस पर बीतती है, वही जानता है, जिस को कांटा चुभता है, दर्द भी उसे ही होता है, पर कोई विकल्प भी तो नहीं है। दूध फट गया है, तो दूसरा दूध लाना होगा, फटे दूध को देख-देख कर रोते रहने से चाय नहीं बन जाएगी। बीति ताहि विसार कर आगे की सुधि लेनी होगी, बस इतना भर ध्यान रखना होगा कि हम पिछली गलतियों को दोहराऐं नहीं। असमंजस की स्थिति हो, अनिर्णय की स्थिति हो, तो स्थानीय हेल्पलाइन पर सम्पर्क कर लेंं। परिस्थितियों से लड़ना होगा, घर पर आकर आपको नौकरी का आदेश नहीं दे जाएगा। सिस्टम को कोसने से भी कुछ हल नहीं निकलेगा। सिस्टम को स्वीकार करके एक प्रयास पुनः करना होगा। एक बात और, ईमानदारी से प्रयास करेंगे तो इस बार सफलता मिलकर ही रहेगी, पर किसी कारणवश नहीं मिल पाए, तो यह इशारा है कि आप ने लक्ष्य गलत बनाया है। केरियर की गलत राह पर हैं, रास्ता बदल दें। एक बार फिर, उठ कर देखिए, सूर्य अस्त होने के पश्चात् पुनः अगले दिन उगता है। अमावस्या पूर्णिमा में बदल कर रहेगी।
ग्रुप डिस्कशन
प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के पश्चात इन्टरव्यू का नम्बर आता है। कुछ संस्थान अकेले उम्मीदवार का ही साक्षात्कार लेते है, पर आजकल कई संस्थाओं में सामूहिक साक्षात्कार मानी ग्रुप डिसकशन यानी जी.डी. की एक सीढ़ी भी पार करनी होती है। सक्षात्कार-इन्टरव्यू जैसा ही यह डिसकशन है। उम्मीदवार को शालीन डे्रस में जाना चाहिए। मोबाइल नहीं हो या स्विच अॉफ हो, प्राकृतिक हों। भारी मेक-अप नहीं हो। स्वच्छ हों, चेहरे पर सौम्यता हो, तनाव नहीं हो, मूल प्रमाण-पत्रों की फाइल साथ में हो, घबराहट नहीं हो। विषय-सामान्य ज्ञान एवं उस दिन के समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ की मुख्य खबरों की जानकारी हो, समय से पूर्व पहुंचें। बाहर रिसेप्शन पर प्रमाण-पत्र चेक कर रहे हो कोई प्रतिनिधि वह सब औपचारिकता निभा लें। एक साथ 4 या 6 या 8 उम्मीदवार बुलवाए जाऐंगे। प्रवेश करते समय अभिवादन करें। आप से जितना, जो पूछा गया है, उतना ही उत्तर दें, दूसरे साथी उम्मीदवारों से क्या पूछा जा रहा है एवं वे क्या उत्तर दे रहें हैं, यह भी सजगता से देखते रहें। जब तक आपसे नहीं पूछें, या ओपन फोरम हो, तब तक चुप रहें। गु्रप डिसकशन में यह जांचा-परखा जाएगा कि अन्य उम्मीदवारों की तुलना में आप कहां ठहरते हैं ? व्यक्तिगत साक्षात्कार की योग्यता जांचने परखने हेतु यह डिसकशन होता है। 4 या 6 उम्मीदवारों में सभी को असफल भी किया जा सकता है या 1 से अधिक को भी व्यक्तिगत साक्षात्कार हेतु योग्य पाया जा सकता है। झूठ नहीं बोलें, टू दी प्वाइन्ट बोलें, बहस नहीं करें, पर अपना पक्ष स्पष्ट रखें, सम्भता से बैठें, घबराऐं तो बिलकुल नहीं, विषय पर आपकी पकड़ मजबूत होगी, तो सफल होंगे ही। ऊर्जावान बने रहें। बार-बार पानी नहीं पियें, गु्रप डिसकशन से बहुत कुछ जानने सीखने को मिलेगा जो व्यक्तिगत साक्षात्कार में काम आएगा, बाद में धन्यवाद कहें।
साक्षात्कार
गु्रप डिसकशन में सफल उम्मीदवार या लिखित परीक्षा में सफल उम्मीवार को सीधे ही योग्यता जांचने परखने हेतु साक्षात्कार लिया जाता है। लिखित परिक्षा में जो नहीं आता है, वह हम छोड़कर आ जाते हैं। साक्षात्कार में चुप रहने की अपेक्षा ‘‘नहीं‘‘ कहना होगा, ‘‘सारी, सर इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूॅ‘‘ सौम्यता-शालीनता सभ्यता से ‘‘नहीं पता‘‘ यह स्वीकार करना होगा। गु्रप डिसकशन वाले सारे नियम यहां भी लागू होते हैं। पाउडर, लिपस्टिक, ज्वैलरी, तड़क-भड़क वाले वस्त्र, स्लोगनलिखी शर्ट से परहेज करना होगा, मोबाइल की कॉलर ट्यून रिंगटोन आपके व्यक्तित्व को प्रमाणित कर देगी, इसलिए साक्षात्कार कक्ष में मोबाइल नहीं लेजाऐं या फिर स्विच अॉफ स्थिति में हो। एक भाषा हो, हिन्दी या अंग्रेजी, पूछने वाले का प्रश्न ध्यान से सुनें, फिर उत्तर दें, कागज पर चित्र वगैरह बनाने को कहें या बोर्ड पर जाकर समझाने को कहें, तो हिचकें नहीं, प्रारम्भ में यथायोग्य अभिवादन एवं अन्त में धन्यवाद कहना सभ्यता भी है एवं संस्कृति भी। पोस्टिंग स्थान, वेतन, भत्त्ो, अन्य सुविधाऐं, ज्वाइनिंग समय इत्यादि पर प्रश्न हों तो पूर्ण विवेके से उत्तर दें, आक्रामक नहीं हो, पर स्पष्ट हों। जिस संस्थान के लिए साक्षात्कार दे रहें हैं, उसकी कुछ जानकारी होना आवश्यक है, जैसे बैंक के इन्टरव्यू देते समय ए.टी.एम., चेक, ड्राफ्ट, एफ.डी. एकाउंट, ऋण इत्यादि की जानकारी होना लाभदायक होगा। उसी संस्थान में नियुक्ति क्यों चाहते हैं? यह भी पूछा जा सकता है, स्कूल/कॉलेज वाले साक्षात्कार में एक डेमो क्लास लेकर भी बतलानी हो सकती है, एक कक्षा में वह विषय छात्र-छात्राओं को पढ़ाकर स्वयं केा योग्य सिद्ध करना होगा। इन्टरव्यू लेने वाले आपके शत्रु नहीं मित्र होते हैं, वे आपको हिंट भी देते हैं। इसलिए घबराऐं नहीं साक्षात्कार से पूर्व घर के बड़ो के सामने या दर्पण के समक्ष स्वयं ही बोलने की रिहर्सल उपयोगी सिद्ध होगी।
बायो-डाटा
प्रोफाइल सी.वी.-बायोडाटा बनाना भी एक कला है। आजकल कई बेवसाइट पर इनके फार्मेट भी दिए होते हैं।सरकारी नौकरी में तो निर्धारित फार्म पर ही आवेदन करता होता है, पर प्राइवेट संस्थानों में आवेदन करते समय अपना रिज्यूम संलग्न करना होता है। बायोडाटा गागर में सागर होना चाहिए। आदर्श स्थिति में मात्र एक पृष्ठ या अधिकतम डेढ़ दो पृष्ठ बस, जानकारी संक्षिप्त सारगर्भित होनी चाहिए। हर लिखित बात का प्रमाण स्वयं के पास होना चाहिए। मेडल, सर्टिफिकेट, एवार्ड, रिवार्ड की लम्बी सूची नहीं होनी चाहिए।उम्र, लिंग, पता, मोबाइल, ई-मेल के पश्चात योग्यता एवं अनुभव लिखिए, अतिरिक्त गतिविधियों को संक्षिप्त में व नौकरी की उपयोगिता अनुसार लिखना चाहिए। एक या दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों के पते दिए जा सकते हैं, जिनसे सम्पर्क कर नियोक्ता उम्मीदवार के बारे में अतिरिक्त जानकारी प्राप्त कर सके। बायोडाटा हस्ताक्षरित होना चाहिए, ई-मेल से भेज रहे हैं, तो पहले प्रिन्ट लेकर, हस्ताक्षर करके स्केन करवाकर ही संलग्न करना चाहिए। बायोडाटा के साथ सम्बन्धित नियोक्ता के नाम एक प्रार्थना पत्र भी होना चाहिए। कई उम्मीदवार रूचियों में गीत-संगीत, नृत्य, इन्टरनेट सर्फिंग इत्यादि लिख देते है, याद रखिए नौकरी एवं विवाह दोनो बायो-डाटा अलग-अलग होते हैं, नौकरी वाले बायोडाटा में नौकरी सेसम्बन्धित गतिविधियों की जानकारी दी जानी चाहिए। अपेक्षित वेतन इत्यादि बायोडाटा में मतलिखिए। कुछ बातें साक्षात्कार के लिए छोड़ दी जानी चाहिऐं। अधिक वेतनचाहा, तो साक्षात्कार में बुलाऐगें ही नहीं, कम वेतन चाहा तो गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगेगा, सारगर्भित संयमित बायोडाटा प्रभावशाली होता है, झूठ नही लिखें, आवश्यक हो तो हेल्प लाइन पर सम्पर्क कर अपने बायोडाटा को गुणवत्तापूर्ण बनवा लें।
सरकारी नौकरी
सरकारी नौकरी वाले साक्षात्कार में वेतन, सुविधाऐं इत्यादि पर चर्चा नही होती, ग्रेड-पे, भत्ते सुविधाऐं निश्चित होती हैं। सरकारी नौकरी में स्थायित्व होता है, अधिकांश उम्मीदवार सोचते हैं कि सरकारी नौकरी मिल गई है, वेतन मिलेगा ही, काम करें या नही, स्कूल/कार्यालय समय के पश्चात् भी चले गए या शीघ्र आ गए, तो क्या हो जाऐगा? नौकरी तो सुरक्षित है ही, छुट्टी का आवेदन भर कर रजिस्टर में रख दिया, कोई जांच दल नहीं आया तो फाड़ कर फेंक देंगे, रजिस्टर में हस्ताक्षर कर देंगे। याद रखिये, सरकारी नौकरी में भी आपका सतत् मूल्यांकन हो रहा है। स्थायित्व, पदोन्नति, पद, जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व के लिए जांचा परखा जाता है। एक शिक्षक राष्ट्र्रपति से शिक्षक दिवस पर सम्मान ले आता है, एक अच्छे व्यक्ति की सरकारी नौकरी में भी यथोचित इज्जत होती है। सीधे व्यक्ति पर कार्य का बोझ कुछ अधिक होना स्वाभाविक है, पर हर कार्य, हर जिम्मेदारी से हम कुछ सीखते हैं। वार्षिक उत्सव में जो शिक्षिका मंच संचालन कर रही है, निश्चय ही वह कुछ अतिरिक्त सीख रही है, ईमानदारी, अनुशासन, निष्ठा, समर्पण जैसे गुण सरकारी नौकरी में भी आपकी पहचान बना सकते हैं एवं एक उज्जवल केरियर बनाने गढ़ने में सहायक सिद्व हो सकते हैं। पोस्ट भी चाहिए, अधिकार-सुविधाऐंभी चाहिऐं, कम से कम समय में पदोन्नति भी चाहिए, तो फिर एक अच्छा कर्मचारी भी बनना ही होगा, चाटुकारिता की आवश्यकता नहीं है, पर, शालीन व्यवहार, शिष्टाचार निश्चय ही आपकी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाऐंगे। सफलता की सीढ़ी चढ़नी है, एक अच्छा इन्सान सरकारी नौकरी में भी सेवाभाव से काम करता है, तो चाहे साथी उसे बेवकूफ का प्रमाण-पत्र दें, पर निश्चय ही लम्बे अंतराल में वह बहुत कुछ पाएगा।
प्राइवेट नौकरी
घबराइए मत, प्राइवेट नौकरी में कोई खतरा नहीं है। आजकल अनेक प्राइवेट संस्थान मात्र अच्छा सेलेरी पेकेज ही नहीं देते हैं, पर साथमें सुविधाऐं भी भरपूर देते हैं। अच्छे काम करने वाले को स्पेशल इन्क्रीमेन्ट, प्रमोशन, अधिक सुविधाऐं, बहुत कुछ मिलता है। सम्मान, पुरस्कार, प्रशंसा, सराहना इत्यादि, अधिक उत्तरदायित्व वाला कार्य मिलता है, जहां क्षमता प्रमाणित करने का भरपूर अवसर मिलता है। लेकिन हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होता है, काम के 12-14 घंटे होते हैं, अच्छा काम नहीं कर पाने पर विदाईभी हो जाती है, नियंत्रण कठोर हैं, बहानेवाजी नहीं चलती, नियमितता आवश्यक है, अच्छा काम करना तो अनिवार्य है ही, सरकारी नौकरी जैसी सुरक्षा चाहे नहीं हो, पर असुरक्षा भी नहीं है। अच्छे व्यक्तियों को उन्हें भी संभाल कर रखना होता है। प्राइवेट संस्थान भी कुशल कर्मचारी को खोना नहीं चाहते। प्राइवेट नौकरी ज्वाइन करने से पहले संस्थान के बारे में पूरी जानकारी ले लें। वेतन नियमित मिलेगा या नहीं, कटौती क्या-क्या होंगी, मेडिकल, बीमा, शिक्षा खर्च, परिवहन, टेलिफोन, निवास इत्यादिका खर्च मिलेगा या निःशुल्क हैं, संस्थान के पुराने कर्मचारियों से सही जानकारी मिल जाएगी। साक्षात्कार के समय भी इन सब पहलुओं पर स्पष्ट जानकारी ली जा सकती है, ताकि भ्रम नहीं रहे। सरकारी नौकरी में अधिकाशतः नियम कानून स्पष्ट रहते हैं, पर प्राइवेट नौकरी में कई बार स्पष्टता नहीं रहती। इसलिए ज्वाइन करने से पूर्व पूरी जांच पड़ताल करने से बाद में कई परेशानियों से बचा जा सकता है। प्राइवेट संस्थान में नौकरी करने से पहले यह भली भांति समझ लेना होगा कि काम करना होगा, अच्छा काम करना होगा, तभी टिक पाऐंगे, वरना अधिकारी आपको बुलाकर त्याग-पत्र देने के लिए कह देंगे या चेक देकर अलविदा कह देंगे।
प्रवेश संस्थान में प्रवेश के समय कई औपचारिकताऐं करनी होती हैं, कई फार्म भरने होंगे, ज्वाइनिंग रिपोर्ट, निवास,मेडिकल, परिवार के सदस्यों की सूची, शिक्षा, बीमा, प्राविडेंट फंड, नामिनेशन इत्यादि कई फार्म भरने होंगे, परिचय पत्र बनवाना होगा। मानव संसाधन विभाग, लेखा विभाग, सुरक्षा विभाग, जन सम्पर्क विभाग इत्यादि इस बारे में आपकी सहायताकरेंगे व उचित मार्गदर्शन देंगे। वेतन प्राप्ति के लिए बैंक में सेलेरी एकाउंट खुलवाना हो सकता है। फार्मों में सही जानकारी दें। अविवाहित हों तो प्राविडेंट फंड इत्यादि में नामांकन में मां का नाम पता लिखना सर्वोत्तम होता है। विवाहित हों, तो जीवनसाथी का नाम, पारिवारिक स्थिति, जिम्मेदारी अनुसार भाई, बहन, बच्चे, पिता आदि भी भरे जा सकते हैं नामांकन में। प्रवेश की औपचारिकताऐं पूरी करनेके पश्चात कार्य को समझना होगा। कई संस्थानों में नए कर्मचारी को प्रशिक्षण दिया जाता है, जैसे परमाणु ऊर्जा विभाग में 1 वर्ष से 2 वर्ष तक का प्रशिक्षण होता है। पाठ्य सामग्री, लेक्चर, परीक्षा, इन्टरव्यू-फील्ड ट्रेनिंग बहुत कुछ होता है। प्रशिक्षण को गम्भीरता से लें, प्रशिक्षण के पश्चात् मिलने वाली गे्रड एवं अतिरिक्त इन्क्रीमेन्ट में प्रशिक्षण में आपकी नियमितता, गे्रड मूल्यांकन, परीक्षा केअंक इत्यादि का बहुत प्रभाव होता है। पुराने कर्मचारियों से सीखने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए। अति विश्वास में गलती करने से अच्छाहै पूछ लेना, सीखना एक निरन्तर प्रक्रिया है। अपनी छवि को अच्छा बनाने के लिए काम के साथ नियमितता एवं नियमों का पालन अनिवार्य है। डे्रस कोड या सेफ्टी शू वगैरह के नियम हों, तो उनका भी पालन करना होगा। प्रवेश केसमय इन सावधानियों से शनैः शनैः संस्थान में कई मित्र बन जाऐंगे। घुलें मिलें, अनुभव से सीखें, चाय-नाश्ता, खाना साथ व मिल बांट कर लें। तनाव हित रहें, संस्थान घर बन जाएगा कुछ समय में।
सावधानी
जीवन में हमेशा ही सावधान, सजग-सतर्क रहना एक अच्छी आदत है, पर किसी नए संस्थान में प्रवेश करने केपश्चात् कुछ समय तक अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है, जब तक उस माहौल में रम नहीं जाऐं। जिस प्रकार एक नई दुल्हन को ससुराल एवं पतिगृह में एडजस्ट करने में कुछ समय लगता है, इसी प्रकार शिक्षण संस्थानों से निकलकर कार्यालय में सामंजस्य-तारतम्य बिठाने में समय लगना स्वाभाविक है। नया वातावरण, बॉस, नए साथी, अधीनस्थ कार्यकर्त्ता, काम के घंटे, प्रतिबंध, नियम, कानून इन सबके साथ चलने में सावधानी आवश्यक है। काम को सीखना, जानना, समझना होगा। अतिविश्वास भी हानिकारक है, पर हर व्यक्ति को संदेह की निगाहों से भी नहीं देखा जा सकता, मित्र-सहेली बनाने में जल्दी नहीं करें, पर परिचित तो होना ही होगा। पुराने व अनुभवी कर्मचारी, वरिष्ठ सदस्य, बॉस, प्रबन्धन, सबसे सहयोग व मार्गदर्शन मिलेगा। कुछ सेमीनार, कार्याशाला में भाग लेने का अवसर मिलेगा, कई सरकारी संस्थानों में राजभाषा, सुरक्षा, पर्यावरण, उत्पादकता, ऊर्जा संरक्षण इत्यादि कई प्रकार के सप्ताह दिवस मनाए जाते हैं, इन में होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी अतिरिक्त प्रतिभा का परिचय देने का अवसर मिलेगा। अच्छे कार्य हेतु वार्षिक पुरस्कार भी दिए जातेहैं। कई संसथान अपनी गृह पत्रिका निकालते हैं, इनमें अपनी रचनाऐं प्रकाशनार्थ दे सकते हैं। सेमीनार में पेपर प्रस्तुत कर सकते हैं। संस्थान को जानिए, समझिए, एक अपनापन स्थापित कीजिए, दूसरों की सुनिए, कुछ अपनी भी कहिए, कुछ महीनों बाद संस्थान परिचित सा लगने लगेगा, लगाव हो जाएगा, काम करने में अधिक मन लगेगा, अच्छे केरियर के लिए वातावरण मिलेगा। बस कुछ समय धैर्य, हिम्मत, संयम, अनुशासन से काम लेना होगा। कर्मशील व्यक्ति हर संस्थान को भी चाहिऐं। अपनी जगह बनाने हेतु प्रयास करेंगे तो स्वयं ही स्वीकार्य हो जाऐंगे।
परिवर्त्तन
संतुष्ट नहीं हैं, संस्थान का काम समझ में नहीं आ पा रहा है, वेतन सुविधाऐं कम हैं, घर से दूर हैं, आमदनी कम है, खर्च अधिक, नौकरी बदलना चाहते हैं, परिवर्त्तन चाहते हैं, मन नहीं लग पा रहा, मूड ठीक नहीं रहता, स्वास्थय गिरता जा रहा है, बॉस तानाशाहहै, काम की कद्र नहीं है, इत्यादि। कुछ भी कारण हो सकता है, परिवर्त्तन करने की इच्छा का। सरकारी नौकरी में स्थायित्व होता है, घर के समीप पोस्टिंग मिल जाए, इतनी लालसा रहती है, प्रार्थना पत्र देते रहतेहैं, सिफारिश भी लगवाते हैं, प्रयास करते हैं, साम दाम दंड भेद सभी हथियार अपना कर। घर के पास नौकरी लग जाए, यह इच्छा अधिकांशतः रहती है, परसदैव मन का नहीं होता, पापी पेट भरने के लिए घर से दूर भी जाना होता है। प्राइवेट संस्थान में परिवर्त्तन सामान्य प्रक्रिया है। 50 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार दूसरे संस्थान में जाना चाहते हैं। अच्छे पैकेज चाहते हैं, सरकारी नौकरी चाहते हैं, मजबूरी में कोई प्राइवेट संस्थान में प्रवेश तो ले लेते हैं, पर अच्छी नौकरी हेतु प्रयास करते रहते हैं, स्वाभाविक हैं, करने भी चाहिऐं। बायो-डाटा अपडेट करते रहिए, दूसरे संस्थान में साक्षात्कार के समय यह पूछा जा सकता है कि पुराना संस्थान क्यों छोड़ना चाहते हैं ? पुराने संस्थान की बुराई मत कीजिए। पुराने संस्थान से आपके बारे में जानकारी भी गोपनीय रूप से प्राप्त की जा सकती है, इसलिए प्रयास करते रहें, पर पुराने संस्थान में असंतुष्टि के भाव प्रकट नहीं करें। जाते समय खुश हो कर जाऐं, नए परिवर्त्तन को तोल लें, लाभ हो, तभी छोड़ें। अनुभव प्रमाण-पत्र भी ले लें, जल्दी जल्दी परिवर्त्तन से परिवार, बच्चों की पढ़ाई, सामान शिफ्ट करने इत्यादि के खर्चे भी होते हैं। परिवर्त्तन का निर्णय शीतल दिमाग से, विवेक से, सोच समझकर, धैर्य से लें, भेड़ चाल में नहीं रहेंं पारिवारिक परिस्थिति को भी ध्यान में रखकर ही परिवर्त्तन का निर्णय लीजिए।
सीढ़ी
केरियर का अर्थ मात्र इतना ही नहीं है कि बस एक नौकरी मिल जाए। यह तो सीढ़ी की पहली पायदान है। सरकारीहो या प्राइवेट, सीढ़ी ऊंचाईयों पर चढ़ना आवश्यक है। जीवन रूका नाला नहीं, बहती नदी होना चाहिए, खूब मेहनत करनी होगी, ईमानदारी से काम करना होगा, काम से अधिक कुछ विश्ोष करना होगा। पदोन्नति प्रमोशन मिलते रहने के प्रयास करने होंगे। आप असहमत हो सकते हैं, राजनीति है, चमचागिरी है, भेदभाव है, चाटुकारिता है, गलत आदमी को ऊंची पोस्ट मिल जाती है, सीधा आदमी बस काम करता है, बेवकूफ बनता रहता है। यह स्थिति कुछ संस्थानों की हो सकती है, कुछ प्रतिशत भेदभाव हो सकता है, पर फिर भी कई संस्थान ऐसे हैं जहां अच्छे काम को इनाम मिलता ही है। पूर्णिमा नहीं है, सब कुछ उजला नहीं है, लेकिन, अमावस्या भी नहीं है, पूरा अंधकार भी नहीं है। कई संस्थानों में ऊंची पोस्ट के लिए साक्षात्कार होते हैं। लिखित परीक्षा भी होती है, गोपनीय रिपोर्ट की ग्रेड भी मूल्यांकन का माध्यम होती है। इसलिए पदोन्नति हेतु संस्थान के नियम कानून जान लें, चुपचाप एक कोने में बैठकर काम करते रहने मात्र से ही सब कुछ प्राप्त नहीं हो जाता। आंखें-कान खुले रहने चाहिऐं, सम्पर्क बनाए रखना होगा। दूसरे की लकीर छोटी करके आपकी लकीर बड़ी नही हो जाएगी। संगी-साथियों को बुराई करते रहने से ही आप अच्छे नहीं बन जाऐंगे। स्वयं काम करके अपने को अच्छा सिद्ध करना होगा। मात्र बॉस को उपहार देने से प्रमोशन नहीं मिलते, योग्यता, दक्षता, क्षमता होगी, तो स्वयं ही पहचान बनेगी। हीरे को धूल से ढ़का नहीं जा सकता, हीरा तो चमकेगा ही। मात्र हीरो मत बनिए, हारिए भी मत, हीरा बनिए, सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना होगा। प्रमोशन के लिए लिफ्ट नहीं होती।
मूल्यांकन
लक्ष्य बनाया था, मूल्यांकन कीजिए, कितना पाया? मात्र लक्ष्य बनाने भर से ही नहीं होता, सतत मूल्यांकन करना होगा। मंजिल से पीछे हैं? क्या कमी रही? क्या लक्ष्य संसाधनों से अधिक बना लिया था? मूल्यांकन दर्पण दिखलाएगा, कहां गलती हुई? क्या भूलें हुईं? कब कब भटके? ईमानदारी से मूल्यांकन कीजिए, स्वयं ही पता चल जाएगा कि जितनी पढ़ाई करनी आवश्यक थी, उतनी नहीं कर पाए थे? गलत कामों में रहे, बड़ों का कहना नहीं माना, अंतर्मन में झांक कर देखेगें तो बहुत कुछ स्पष्ट होता चला जाएगा। एक कागज पर अपनी अच्छाईयां एवं बुराईयां लिख लीजिए। कागज किसी को बतलाना नहीं है। स्वयं के लिए ही है, अच्छाईयां लिखने बैठेंगे, तो दो-चार से अधिक नहीं लिख पाऐंगे, बुराईयां के लिए एक कागज कम पड़ेगा, सप्लीमेन्ट्री कापी लेनी होगी। संकल्प करिए, प्रति वर्षकम से कम एक अच्छाई बढ़ाऐंगे, एक बुराई कम करेंगे, अगले वर्ष पुनः मूल्यांकन कीजिए, बुराईयां कभी भी शून्य नहीं हो पाऐंगी , नई बुराईयां जुडती चली जाऐंगी, कुछ अच्छाई भी बुराई में बदल सकती हैं। सर्वगुणसम्पन्न कोई नहीं होता, बस आवश्यकता है गुणों को बढ़ाने की एवं अवगुणों को कम करने की। सतत मूल्यांकन से पता चलेगा कि दूसरे संस्थान में प्रयास करना है क्या? दुबारा परीक्षा देनी है क्या? नई गाइड खरीदनी है क्या? कोचिंग पेकेज लेना है क्या? अगली परीक्षा हेतु नौकरी से अवकाश लेना है क्या? परिवार को पीहर-ससुराल छोड़ कर आना है क्या, ताकि पढ़ाई को अधिक समय किया जा सके। मूल्यांकन के परिणाम से योजना में परिवर्त्तन कीजिए। हर हार से हम सीखते हैं। गिरने के पश्चात् उठ कर भी खड़ा होना होता है। मेडिकल अवकाश के पश्चात् फिटनेस प्रमाण-पत्र लेकर फिर ड्यूटी ज्वाइन करनी होती है। जीवन चलते रहना चाहिए, चरैवेति, एकला चलो रे। मूल्यांकन कीजिए गलतियों से सीखिए, पुनः प्रयास कीजिए।
सफलता
केरियर में सफल हो गए, बधाई, मंगलकामना शुभ भावना है कि सफलता मिलती रहें। आपने निष्ठा समर्पण से प्रयास किया, समय का सदुपयोग किया, अच्छी पढ़ाई की, अच्छे कर्म किए, मीठे फल मिले। मैंने सिर्फ राह दिखाई थी, चले तो आप स्वयं ही, मेरा कहना माना, मम्मी-पापा का कहना माना। मिठाई खाइए, खिलाइए, हेल्प लाइन पर एक फोन तो कर दीजिए, सफलता के शुभ समाचार का। सफलता स्थायी नहीं होती। इसे बनाए रखने के लिए भी प्रयास करने होंगे, गलत राह पर भटक गए, तो सब पानी में मिल सकता है। इसलिए एक बार सफलता पाकर यह मत सोच लीजिए कि आपके दुनिया जीत ली है। केरियर-संस्थान, नौकरी के अतिरिक्त अन्य पैमानों पर भी क्या आप सफल हैं? क्या आप सुपुत्र/सुपुत्री हैं? क्या अच्छे भाई, अच्छी दीदी/भाभी हैं? क्या अच्छे जीवन साथी हैं? क्या अच्छे पापा हैं, क्या अच्छी मम्मी हैं, क्या अच्छी बहू हैं? क्या अच्छे मित्र हैं? क्या अच्छी सहेली हैं? इन पक्षों पर भी स्वयं को तोलिए, एक अच्छे इन्सान बनिए। संस्थान का उच्च अधिकारी प्रमोशन पोस्ट में इतना उलझा रहता है कि परिवार को समय ही नहीं दे पाता? पत्नी डिप्रेशन की शिकार हो जाती है, बच्चों की वार्षिक परीक्षा की गे्रड किसी को बतलाने लायक नहीं होती। एक संतुलन रखना होगा संस्थान, घर-परिवार, समाज-रिश्तेदारी , मित्र-मंडली में। छुटि्टयों में परिवार के साथ हिल स्टेशन अवश्य जाइए। लेकिन पहले गांव जाकर पिताजी का मोतियाबिन्द का आपरेशन तो करवा आइए। मम्मी-पापा को समय दीजिए, बहन की राखी आई हुई है, पत्र लिखने का समय नहीं , पर फोन पर प्राप्ति सूचना तो दीजिए। 101-501 रू.का यथाशक्ति शगुन का मनीआर्डर तो कीजिए। सफलता हर क्षेत्र, हर रिश्ते में अनिवार्य है, एक अच्छे व्यक्ति बनिए।
सार्थकता
क्या आपका जीवन सार्थक है? सफलता से अधिक महत्त्वपूर्ण है सार्थकता, सफलता नहीं भी मिले, पर सार्थकता होनी चाहिए। क्या हमारा जीवन संस्थान, परिवार, समाज के लिए उपयोगी है? हम कितनी भी बड़ी पोस्ट पर पहुंच जाऐं, घर में सुख-सुविधाऐं हों, सब कुछ सुलभ हो, बैंक बेलेंस, प्लाट, फ्लेट, श्ोयर, फंड, कार, एयरकन्डीशनर, लेपटाप, गहनेसब कुछ है पर मात्र हमारे अपने लिए ही तो। क्या पापा को गांव में 1000 रू का मनीआर्डर किया है? क्या मम्मी के हार्ट का इलाज स्पेशलिस्ट से करवाया है? क्या अपने बर्थ-डे पर समीप के गांव के सरकारी स्कूल में मिठाई लेकर गए हैं? क्या दादाजी की स्मृति में किसी सरकारी स्कूल में गर्मी में झुलस रहे बच्चों के लिए सीलिंग फेन दिए हैं? अपनी आय का 1 या 2 प्रतिशत ही समाज-सेवा में लगाइए। 98-99 प्रतिशत तो आपके अपने लिए है ही। समाज के लिए हम कितने सार्थक हैं, कितने उपयोगी हैं? बॉस के सुपुत्र के जन्म दिन की पार्टी में मंहगा गिफ्ट लेकर जाते हैं। क्या कार्यालय में घंटी की एक आवाज पर दौड़ कर आकर पानी पिलाने वाले चपरासी की बेटी की शादी में एक साड़ी लेकर गए हैं? बेटी के विवाह में वह उधार चाहता है, क्या आपने 5000-10000 रूपएका चेक काटकर सहायता की है? स्वयं सफल होना सुख देगा, सार्थक होना संतुष्टि देगा। गर्मी की छुट्टी में बहन घर आई है। विदा के समय एक साड़ी से ही उसकी पलकें भीग जाऐंगी। पत्नी को लाखों के गहनों से भी संतुष्ट नहीं कर पाऐंगे। समाज, शिक्षण, संस्थानों का ऋण है हमपर, इस देश ने हमें शिक्षित किया है। मम्मी-पापा ने अपने कई सुखों कात्याग किया है। अपने लिए सोचिए, करिए, पर अपनों, परायों, समाज, रिश्तों के लिए भी पत्रं पुष्पं कर जीवन सफल के साथ सार्थक भी बनाइए।
सीख
केरियर के लिए आपने मेहनत की, समय दिया, धन खर्च किया, सफल हुए हों या असफल, पर इस पूरी प्रक्रिया में आपने क्या सीखा? सफलता हमें सिखाती है, असफलता भी हमें सिखाती है, सफलता से मिली सीख अगले पड़ाव में सफलता हेतु मागदर्शक होती हैं। असफलतासे मिली सीख इतनी शिक्षा तो दे ही जाती है कि अगली बार सफल होना है, तो इन सब गलतियों को नही दोहराऐं। अपनी डायरी में कलमबद्ध कर लें, इन सीखों को भविष्य में काम आऐंगी। अगली पीढ़ी के लिए उपयोगी हो सकती हैं।सृजन करते हैं, तो अनुभव लिखने में काम आऐंगी। अपनी कई गलतियों से जीवन में सफलताओं से, असफलताओं से, आंधी तूफानों से, संकटों-परेशानियों, कर्त्तव्यों, जिम्मेदारियों से जो भी सीखा, उसे ‘‘सामान्य ज्ञान दर्पण‘‘ पत्रिका के साथ अक्टूबर 2011 में ‘‘समय‘‘ पुस्तक में बांटा, अप्रैल 2012 में ‘‘जीवन मूल्य एवं प्रबंधन‘‘ पुस्तक में बांटा एवं इस माह यह तीसरी पुस्तक ‘‘केरियर‘‘ आपके हाथों में है। दोनों पिछली पुस्तकों से मिली प्रतिक्रिया स्वरूप मैंने बहुत कुछ सीखा एवं इस तीसरी पुस्तक में इन्ही सब सीखों वाले अनुभवों को आपके साथ बांटा है। दूसरों से भी हम सीख सकते हैं। हमसे दूसरे सीख सकते हैं, सीखना एक निरन्तर प्रक्रिया है। सीखने के लिए अधिकतम आयु सीमा का कोई बंधन नहीं हैं। आवश्यकता है सीखने की इच्छा की, कम उम्र वाले, किसी से भी पानी पिलाने वाले से, घर में काम करने वाली बाई से, किसी भी व्यक्ति से सीखना सम्भव है। अधिकाशतः हम इस भ्रम में रहते हैं कि हमें सब पता है, हमें कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं हैं, यही अभिमान त्यागना है। केरियर की यात्रा एवं पुनर्यात्रा से सीखिए, सिखाइए, जीवन को सरल, तनाव रहित बनाइए। हेल्पलाईन से सहायता लीजिए।
हारिए नहीं
परेशान उदास क्यों हैं? रोल नम्बर इन्टरनेट पर नहीं आ पाया? साक्षात्कार में नकद रकम चाह रहे थे, रिश्वत के लिए इतने संसाधन नहीं थे? आंखें क्यों भर आई हैं? घर भर का मूड क्यों अॉफ कररहे हैं? हारिए नहीं, एक प्रयास और करने का मानस बनाइए। लाखों उम्मीदवार परीक्षा देते हैं, कुछ हजा़र सफल होते हैं, श्ोष असफल, जनसंख्या अधिक है, हर लड़का गे्रजुएट हो जाता है। लड़कियों को भी शिक्षा दी जा रही हैं, वे भी आत्मनिर्भर होना चाहती हैं। ससुराल-पति की अपेक्षा होती है कमाने वाली बहू-पत्नी की। लड़की के पिताद्वारा दहेज की एक किश्त शादी के समय से वे तृप्त नहीं होते। हर महीने मोटी तनख्वाह लाने वाली बहू पत्नी चाहिए। कम्पीटीशन बढ़ता जा रहा है। हर उम्मीदवार हर फार्म भर रहा है, चारों और हाथ पैर मार रहा है, एक फार्म के सहारे तो बैठा नहीं जा सकता। कहीं भी मिले, कुछ तो मिले, ऐसे में उम्मीदवार बढ़ते जा रहे हैं, सफलता का प्रतिशत 5 से 2 पर आ गया है। हारिए मत, रोते रहने से कुछ नहीं होगा, पुनः प्रयास करना होगा। अच्छी तैयारी के साथ जीवन को अच्छी तरह जीनाहै, केरियर बनाना है, नौकरी पानी है, अच्छी नौकरी के लिए प्रयास करने हैं।ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। ईश्वर का प्रसाद मान कर स्वीकार करिए, सब्र का फल मीठा होता है। गलत कदम मत उठाइए, जीवन से मत खेलिए, एक दीपक भी उजाला करता है। संतुलन बनाए रखिए, विश्ोषज्ञ से सलाह लीजिए, आत्म मंथन कीजिए। हेल्पलाइन पर सम्पर्क करपरेशानी बांटिए, समस्या बताइए, समाधान पाइए। एक दरवाजा बन्द होता है, दूसरा खुलता है। उठिए विश्वास आस्था श्रद्धा से जीवन का खेल खेलते रहिए, एक दिन जीत मिलकर ही रहेगी।
कदम
लक्ष्य बनाया था, मंजिल बहुत दूर है, पर कुछ कर नहीं रहे, मंजिल कैसे मिलेगी? यात्रा कितनी भी लम्बी हो, पहलाकदम तो उठाना ही होगा, इस पुस्तक का पहला अध्याय नहीं लिखता, तो यहां तक कैसे आ पाता? कदम दर कदम चलते रहिए। फार्म, पढ़ाई, कोचिंग, रिहर्सल, पे्रक्टिस, परीक्षा, गु्रप डिसकशन, साक्षात्कार, मेडिकल जांच हर कदम स्वयं ही आगे बढ़ाना होगा। केरियर के स्वप्न हैं, पर मात्र स्वप्न देखने से कुछ नहीं होता। सपनों को साकार कीजिए, मम्मी पापा की इच्छाओं को पूरा कीजिए। जीवन साथी के साथ श्ोयर कीजिए। जीवन की सड़क हाई वे नहीं है, चार लेन वाली, स्पीड बे्रकर हैं, गड्ढे़ हैं, रेड लाइट है, टे्रफिक है, ओवरटेकिंक है, जाम है, जीवन की यात्रा में सब कुछ मिलेगा, इसे स्वीकारना होगा। आप मात्र इतना भर ही कर सकते हैं कि अपने मन की सर्विसिंग करतेरहें, ध्यान, पूजा मेडिटेशन, भ्रमण, व्यायाम, योग, स्नेह आशीर्वाद से मन में ऊर्जा का तेल, पेट्रोल, डीजल डालते रहिए। तन-मन से स्वस्थ रहिए, सकारात्मक सोच रखिए। उपदेश नहीं दे रहा, आपके बुझे मन में प्राण फूंक रहा हूँ। आपके निराश मन को आशावान बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। किताबी सैद्धांतिक ज्ञान नहीं दे रहा। जीवन के अनुभव आप सब के साथ श्ोयर कर रहा हूँ। अच्छा लगे, तो स्वीकार करिए, वरना यह पुस्तक लाइब्रेरी में दे दीजिए पता नहीं, किस का बिखरा जीवन संवर जाए, पता नहीं केरियर की यात्रा पर किस भटके हुए यात्री को सही रास्ता मिल जाए। विश्वास कीजिए, मेरा लक्ष्य मात्र इतना हैकि केरियर की राह पर मुझे जो कड़वे मीठे अनुभव हुए आप सबके साथबांटूं। एक कदम मैंने उठाया है इस दिशा में, आप भी मेरे साथ चलते रहें।
छलकता
आधा खाली नहीं, आधा भरा कहिए सेआगे भी सकारात्मक सोच है, जीवन की आधी भरी हुई थाली को पूरी भरिए, अच्छा केरियर, सकारात्मक सोच, स्पष्ट लक्ष्य, दूर दृष्टि, कड़ी मेहनत, अनुशासन, चरित्र, संस्कार इन सब में सहायक होंगे। यह मत सोचिए कि आजकल जीना है तो इस रास्ते पर चलने से बेवकूफ रहेंगे, पीछे रह जाऐंगे। इन सब पुरानीलकीर को आज कौन स्वीकार करता है, चाहे दूसरे को धक्का ही देना पड़े, बस खुद आगे बढ़ना हैं। क्षमा करिए, मैं सहमत नहीं। 38 वर्ष की सरकारी सेवा मैंने भी परमाणु ऊर्जा विभाग में दी है। ईमानदारी से काम किया, संस्थान के उच्चतम अधिकारी से भी प्यार मिलता था। तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से पुरस्कार पाया। परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल काकोडकर से भी पुरस्कार, शाल, प्यार, स्नेह, आशीर्वाद पाया। कई शाल मिले, कई स्मृति चिन्ह, कई प्रशस्ति-पत्र, कई नारियल मिले, ईमानदारी से कार्य करके भी संस्थान में स्थान-पहचान बना सकते हैं, भटकता नहीं है, बस सच्ची राह पर चलते रहना है। जीवन का गिलास भरा हुआ ही नहीं, छलकता हुआ होना चाहिए। छलकते रहीए। छलकता गिलास बनिए। सामने वाले की अपेक्षा से अधिक कीजिए, तृप्त कीजिए, संतुष्ट रहिए, जीवन मनुष्य योनि में मुश्किल से मिला है, अच्छे काम कीजिए। धन-संपत्ति, प्लाट, श्ोयर, गहने पीछे वालों के लिए लड़ाई का कारण बनेगें, अच्छे कर्म करिए। सम्मान, प्यार, स्नेह, आशीर्वाद मिलेगा। आंधी तूफान ने जीवन दीपक बुझा दिया है। कर्म का तेल डालिए, आशा की बाती, पुनः प्रज्वलित कीजिए। छलकता जीवन रखिए, जीवन के पश्चात् कई अपने-परायों को आंखें छलकेंगी, कई वर्षों तक छलकती रहेंगी। यही जीवन की सफलता होगी, सार्थकता होगी।
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अरे आपने तो पूरी किताब ही छाप दी ☺
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