(पंडित किशन महाराज) गणेश स्तुति परन - तीनताल गणाऽना ऽमगण पतिगणे ऽशलम्ऽ बोऽदर सोऽहेऽ भुजाऽचा ऽरएक ग 2 दऽन्तचं ऽद्रमाऽ ललाऽट राऽजेऽ ब्...
(पंडित किशन महाराज)
गणेश स्तुति परन - तीनताल
गणाऽना ऽमगण पतिगणे ऽशलम्ऽ बोऽदर सोऽहेऽ भुजाऽचा ऽरएक
ग 2
दऽन्तचं ऽद्रमाऽ ललाऽट राऽजेऽ ब्रऽह्मा विष्णुम हेऽशता ऽलदेऽ
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ध्रुवपद गाऽवेंऽ अतिविचि ऽत्रगण नाऽथआ ऽजमिर दंऽगब जाऽवेंऽ
ग 2
धटधरा ऽनधिर धिरक्रधा ऽनदिन दिनदिन नागेनागे नागेधिन धिनतिन
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तिनताके नानातदि गनध्रिग ध्रिगदिन दिनदिना गेदिनागे ताऽक्रधा ऽनकिटतक
ग 2
धराऽन तराऽन धाऽकिटतक धराऽन तराऽन धाऽकिटतक धराऽन तराऽन धा
0 3 ग
भगवान गणेशजी के परम भक्त तथा प्रस्तुत गणेश स्तुति परन का सिद्धहस्त वादन कर चमत्कृत वातावरण उत्पन्न करने में निपुण, बनारस के प्रसिद्ध तबला वादक पं. किशन महाराज का जन्म काशी के प्रसिद्ध संगीत घराने में 3 सितम्बर सन् 1923 ई. को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ था। इसीलिए इनका नाम कृष्ण प्रसाद रखा गया था जो बाद में किशन महाराज के नाम से संगीत क्षेत्र में सुविख्यात हुआ। इनके पिता पं. हरि प्रसादजी, जो एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, इनकी बाल्यावस्था में ही स्वर्गवासी हो गये थे। अतः इनका पालन-पोषण इनके चाचा पं. कण्ठे महाराजजी ने किया। जब ये सात वर्ष के थे, तभी से ताल गुरू वाद्य शिरोमणि पं. कंठे महाराज ने इनको तबला की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था।
महान तबला वादक व गुरू पं. कण्ठे महाराज से बनारसी तबले की शिक्षा इन्होंने पूरी लगन तथा आस्था के साथ ग्रहण की। शुरूआत से ही इनका रूझान अत्यधिक तैयारी पर न होकर लयकारी और कठिन तालों के वादन पर था। इसीलिए विषम मात्रा की तालों (जैसे 9, 11, 13, 15, 17, 19, 21 आदि) को सहजता से बजाने में इन्हें महारत हासिल थी। इनको प्रचलित तालों के साथ-साथ अप्रचलित तालों जैसे - दोबहर, आड़ापंज, लीला-विलास, गणेश, लक्ष्मी, ब्रह्म, रुद्र, पंचमसवारी, क़ैद फरोदस्त, शक्ति, सप्तर्षि, खमसा, चन्द्रशेखर आदि को भी बजाने में विशेषाधिकार प्राप्त था। इनके वादन में बनारस बाज की विशुद्ध मौलिकता, कर्णप्रिय, संगति की अद्भुत प्रतिभा, प्रत्युत्पन्नमतित्व का गुण, गणितीय पक्ष पर महारत, कलात्मक उपज अंग तथा तात्कालिक सूझबूझ की विलक्षण योग्यता ही इनको विशिष्टता एवं गरिमामय स्थान प्रदान करती थी।
उन्होंने परम पावनी माँ गंगा नदी के तट पर तबले की शिक्षा का श्रीगणेश किया। यही नहीं वे गंगाजी के तट, गंगाजी की रेती तथा गंगाजी की अविरल धारा के मध्य नैया या नाव पर भी बैठकर तबले का निरन्तर व निर्बाध अभ्यास किया करते थे। इन्होंने गंगाजी के तुलसी घाट पर एक कमरा लिया था तथा वहाँ पर वे पखावज वादक पं. अमरनाथ मिश्र और सरोद वादक पं. ज्योतिन भट्टाचार्य के साथ घण्टों अभ्यास किया करते थे। विश्वप्रसिद्ध सितार वादक भारतरत्न पं. रविशंकर के साथ वे कई वर्षों तक रहे और घण्टों साथ में रियाज़ किया। एक समय पं. रविशंकर के साथ पं. किशन महाराज की जोड़ी देश-विदेश में बींतउपदह चंपत के नाम से खूब मशहूर हुई। वे उस्ताद अली अकबर खाँ के साथ भी खूब बजाया करते थे।
इनके वादन भण्डार में बनारस घराने की परम्परागत तिहाईयों, टुकड़ों तथा परनों का अनुपम संग्रह था। स्वतंत्र तबला वादन में सर्वप्रथम ये 'पराल' या 'पड़ार' या 'पड़ाल' बजाया करते थे। बनारस के प्रसिद्ध तबला वादक तथा मेरे तालगुरू पं. छोटेलाल मिश्रजी बताते हैं - ''पं. किशन महाराज जैसा पराल तो कोई बजा ही नहीं सकता। आज जो भी कलाकार या पंडितजी के शिष्य पराल बजाते हैं वो तो सीखा हुआ बजा रहे हैं। परन्तु पं. किशन महाराज तो उपज बजाते थे। उनका पराल तो तत्काल बनता जाता था और वे बजाते जाते थे। पराल तो वे किसी भी ताल में वैसा ही बजाते थे जैसा कि तीनताल में। उनका सबसे स्पेशल ताल 'धमार ताल' था। उनका तिहाई पर तो विशेष अधिकार था। जिस मात्रा से कहा जाता था उसी मात्रा से तिहाई बजा देते थे। कई बार तो संगीत के विद्वानों को अपने घर पर आमंत्रित करते थे और कहते - किसी भी ताल में किसी भी मात्रा कहिये तो तिहाई बजाकर दिखाऊँ।' ऐसे विलक्षण तबला वादक थे पं. किशन महाराज।'' 'ठेके के प्रकार' या 'ठेके की बाँट' को पं. किशन महाराज 'ठेके का आलाप' कहते थे तथा अलग-अलग मात्राओं से तिहाई बजाकर चमत्कृत कर देते थे। कथक नृत्य के साथ तो वे अद्भुत संगति किया करते थे। पं. छोटेलाल मिश्रजी बताते हैं - ''संगति में आप बेजोड़ थे। नृत्य के साथ संगति करने में तो वे सिद्ध थे।'' तंत्री वाद्य के साथ तो उनकी संगति हमेशा प्रभावशाली तथा जुगलबंदी की तरह हुआ करती थी।
पं. किशन महाराज के पास तो बंदिशों का भण्डार था। प्रस्तुत बाँट का वे विभिन्न लयों में अद्भुत ढंग से वादन किया करते थे। यह उनका पसंदीदा बाँट था।
बाँट - तीनताल
धाड़ धाधे तेटे धाड़ धाड़ धातिं नतिं नाड़
ग 2
ताड़ ताते तेटे ताड़ धाड़ धाधिं नधिं नाड़
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पंडितजी ने देश के मूर्धन्य कलाकारों के साथ प्रभावकारी संगति की थी। गायन के कलाकारों में - उस्ताद फैयाज़ खाँ, पं. ओंकारनाथ ठाकुर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ, उस्ताद अमीर खाँ, डागर बन्धु, पं. विनायक राव पटवर्धन, पं. भीमसेन जोशी, उस्ताद नज़ाकत अली-सलामत अली, सिद्धेश्वरी देवी, श्रीमती गिरिजा देवी, पं. छन्नू लाल मिश्र इत्यादि; तंत्री वादकों में - उस्ताद अलाउद्दीन खाँ, उस्ताद हाफिज़ अली खाँ, उस्ताद मुश्ताक अली खाँ, उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, पं. रविशंकर, उस्ताद विलायत खाँ, उस्ताद अली अकबर खाँ, पं. वी. जी. जोग, पं. ज्योतिन भट्टाचार्य, उस्ताद बहादुर खाँ, उस्ताद अमज़द अली खाँ इत्यादि; तथा नृत्यकारों में - पं. अच्छन महाराज, पं. शम्भू महाराज, मोहनलाल जैपुरिया, सितारा देवी, रौशन कुमारी, नटराज गोपीकृष्ण, पं. बिरजू महाराज इत्यादि।
देश में प्राप्त अपार ख्याति के साथ-साथ नेपाल, अफ़गानिस्तान, मारीशस, इंग्लैण्ड, रूस, पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, ऑस्ट्रिया, अमेरिका आदि अनेक देशों में भी इन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की थी। इन्होंने एडिनबर्ग समारोह और लंदन में आयोजित कॉमनवेल्थ आर्ट फेस्टिवल, सन् 1965 में भी तबला वादन किया था। पंडितजी आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विशिष्ट श्रेणी के कलाकार थे।
इनकी लोकप्रियता कलासाधना, वैविध्यपूर्ण व्यक्तिगत प्रतिभा, प्रतिष्ठा एवं विद्वता की द्योतक थी। इनको मिली उपाधियाँ एवं सम्मान - प्रयाग संगीत समिति द्वारा सन् 1969 ई. में 'संगति सम्राट', बम्बई की एक संस्था द्वारा 'ताल विलास', उस्ताद इनायत खाँ मेमोरियल अवार्ड, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार - 1984, कालिदास सम्मान - 1996, उस्ताद हाफिज़ अली खाँ अवार्ड - 1986, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा सन् 1970 ई. में 'रत्न सदस्यता' प्रदान की गई। भारत सरकार ने इनको पद्मश्री - 1973, पद्मभूषण एवं पद्मविभूषण - 2002 से अलंकृत किया था।
इनके प्रमुख शिष्यों में पुत्र पूरण महाराज एवं नाती शुभशंकर महाराज तथा नन्दन मेहता, अनिल पालित, कुमार बोस, कपिलदेव सिंह, महेन्द्र सिंह, विपिन चन्द्र मालवीय, संदीप दास, सुखविन्दर सिंह नामधारी, हरिनारायण शाह, अरविन्द आजाद आदि हैं।
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लेखक परिचय
डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी का जन्म वाराणसी में हुआ। तबले की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता स्व. राजेन्द्र तिवारी से प्राप्त करने के पश्चात् डॉ. शिवेन्द्र गुरू-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत बनारस घराने के तबला विद्वान पं. छोटेलाल मिश्रजी से विधिवत् एवं दीर्घकालीन तबला वादन की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। संगीत एवं मंच कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (वाराणसी) से स्नातकोत्तर परीक्षा में स्वर्ण पदक तथा पं. ओंकारनाथ ठाकुर स्मृति सम्मान प्राप्त कर चुके शिवेन्द्र को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जूनियर रिसर्च फैलोशिप भी मिला है। इन्होंने यू.जी.सी. की प्रवक्ता पात्रता परीक्षा भी उत्तीर्ण की है। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (खैरागढ़) से प्रो. (डॉ.) प्रकाश महाडिक तथा पं. छोटेलाल मिश्र के मार्गदर्शन में तबले के बनारस बाज पर शोध कार्य कर चुके शिवेन्द्र की कई रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। एक अन्य शोध कार्य हेतु संस्कृति मत्रालय से जूनियर फैलोशिप प्राप्त डॉ. शिवेन्द्र का बनारस बाज पर एक शोधपूर्ण लेख भी 'भारतीय संगीत के नये आयाम' पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त 'भारतीय संगीतज्ञ' पुस्तक में भी इनके लेख प्रकाशित हुए हैं। इनकी एक पुस्तक भी कनिष्क पब्लिशर्स, नईदिल्ली से प्रकाशित हुई है - तबला विशारद। डॉ. शिवेन्द्र आई.सी.सी.आर. के आर्टिस्ट पैनल से भी तबला वादक के रूप में जुड़े हैं। गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट, नईदिल्ली द्वारा संचालित नवोदित कलाकार समिति की ओर से 'संगीत साधक' की उपाधि से सम्मानित डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी देश के विभिन्न मंचों पर तबला वादन कर चुके हैं। सम्प्रति संगीत एवं नृत्य विभाग, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र में सहायक प्राध्यापक-तबला पद पर कार्यरत हैं।
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डॉ. शिवेन्द्र प्रताप त्रिपाठी
सहायक प्राध्यापक-तबला,
संगीत एवं नृत्य विभाग,
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय,
कुरूक्षेत्र-136119
मोबाइल - 07206674092
ई-मेलः shivendra.tripathi@hotmail.com
apne shahar ke manishiyo ke bare me padhkar bahut achchha laga....kuchh anmol motiyo ki tarah shrishti ko jagmaga rahe hai.....sundar post ke liye hardik badhai
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद.....
जवाब देंहटाएंsir bhut accha post hain .....
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