दिलीप भाटिया की किताब - जीवन प्रबंधन

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जीवन प्रबंधन दिलीप भाटिया दिलीप के दिल से जीवन एक पहेली है, पर अच्‍छे प्रबन्‍धन से यह अच्‍छी सहेली है। जीवन को मात्र जीना नहीं, अच्‍छी त...

जीवन प्रबंधन

दिलीप भाटिया

दिलीप के दिल से

जीवन एक पहेली है, पर अच्‍छे प्रबन्‍धन से यह अच्‍छी सहेली है। जीवन को मात्र जीना नहीं, अच्‍छी तरह जीना है एक सार्थकता होनी चाहिए। धन-दौलत, गहने-मकान, कीमती सामान से अधिक मूल्‍यवान होगा हमाराजीवन, अगर हम ऐसे काम करें जो याद रहें। एक अच्‍छी निशानी छोडकर जाऐं। संघर्ष, तूफान-दुख, समस्‍या, परेशानी सभी के साथ है। पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम इन सबका सामना किस सोच से करते हैं ? आधा खाली का रोना रोने से अधिक अच्‍छा है , आधे भरे को पूरा भरनेे का प्रयास, जीवन पूरा भरा ही

नहीं, छलकता भी होना चाहिए।

इस लघु पुस्‍तिका में 21 अध्‍यायों के माध्‍यम से जीवन केअधिकतम पहलुओं के प्रबन्‍धन पर विचार सृजित संकलित हैं। जीवन के आकाश के सभी तारों पर लिखना संभव नहीं, हाँ, कुछ तारे टिमटिमाते हुए इस पुस्‍तिका में अवश्‍य संयोजित करने का एक लघु प्रयास किया है। इन बिन्‍दुओं, सूत्रों, नियमों, अनुभवों से सहमति आवश्‍यक नहीं, परन्‍तु इन सभी बिन्‍दुओं का लक्ष्‍य आपको चिन्‍तन, मनन, मंथन के लिए कुछ टिप्‍स देना भर है।

जीवन आपका अपना है। अपने जीवन को आप किस प्रकार जिऐं यह निर्णय आपको स्‍वंय लेना है। दूसरों के उपदेश, सलाह, सुझाव, आदेश से जीवन नहींं चलता। पृथ्‍वी के हर प्राणी को अपना जीवन अपने प्रकार से जीने का पूरा अधिकार है, एंव वही सही रास्‍ता भी है। फिर भी इस पुस्‍तक से आपके जीवन में थोड़ा सा भी सकारात्‍मक परिवर्तन होगा, तो मेरा श्रम सार्थक होगा।

मोबाईल, ई-मेल,डाक, कोरियर, व्‍यक्‍तिगत मिलकर किसी माध्‍यम से मिला

आपका आशीर्वाद आज मेरे जन्‍मदिन को सार्थक करेगा। प्रतीक्षा रहेगी सादर।

आशीर्वादाकांक्षी -

दिलीप भाटिया

मो. न. - 09461591498

ई-मेल ः dileepkailash@gmail.com

रावतभाटा - 323307

26 दिसम्‍बर, 2011

 

बच्‍चों के लिए ( Children management )

बच्‍चे, मन के सच्‍चे। बच्‍चे निर्मल, सात्‍विक, पवित्र मासूम होते हैं। बच्‍चों की प्रतिक्रिया निष्‍पक्ष होती है। आवश्‍यक है कि हम अपनी व्‍यस्‍त दिनचर्या में से कुछ समय बच्‍चों को भी दें। आज के बच्‍चे कल भविष्‍य में देश के होनहार नागरिक बनेंगे। बच्‍चे कच्‍ची मिट्‌टी होते हैं। पूरे जीवन की नींव बचपन में ही डाली जाती है। जिस प्रकार के संस्‍कार बचपन में दिएजाते है। जिस प्रकार का अनुशासन बचपन में सिखाया जाता है, उसी प्रकार हमारा जीवन बनताहै। आज जो भी हम हैं, वह अपने माता पिता के द्वारा बचपन में दिए गए संस्‍कार, अनुशासन एवं शिक्षा के ही कारण हैं, इसी प्रकार आज हम अपने बच्‍चों को जैसे संस्‍कार, अनुशासन एवं शिक्षा देंगे, भविष्‍य में वे वैसे ही इन्‍सान बनेंगे। बच्‍चों के लिए प्रबन्‍धन हेतु कुछ सूत्रों पर विचार करें।

बच्‍चे वह शायद नहीं करेंगे, जो हम कहते हैं, लेकिन बच्‍चे वह अवश्‍य कर सकते हैं, जो हम कर रहे हैं। इसलिए हमें कोई भी गलत कार्य नहीं करना चाहिए। हम आपस में परिवार के सदस्‍यों के साथ किस प्रकार का अच्‍छा या बुरा व्‍यवहार कर रहे हैं, बच्‍चे उसे निरपेक्ष भाव से देखते हैं एवं उनके बाल मन में यह बात बैठ जाती है कि शायद यही ठीक है, बडे़ होकर फिर वे भी वैसा ही करने लग जाते हैं। बच्‍चों में सृजनशीलता एवं कल्‍पनाशक्‍ति होती है। उन्‍हें जिस क्षेत्र में रूचि है, उदाहरणार्थ ड्राइंग-संगीत, कहानी लिखना, भाषण इत्‍यादि, हम उन्‍हें प्रोत्‍साहित कर उस क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु उचित संसाधन दें। हम अपने बच्‍चों के लिए रोल मॉडल बनें। पति पत्‍नी बच्‍चों के सामने लडे़ं नहीं बच्‍चों को उनके मित्रों, अपने सम्‍बन्‍धियों/मित्रों/सहेलियों के सामने डांटें नहीं। उनकी होमवर्क की कापी देखें। समय निकालकर उनके टीचर्स/प्रिंसिपल से मिलकर प्रगति/समस्‍याओं की जानकारी लें। उन्‍हें एक घंटा अवश्‍य दें। आप चाहते हें कि बच्‍चे टी.वी. कम देखें, तो पहले स्‍वयं भी इस नियम का पालन करें। अगर हम मेच/सीरियल देख रहें हैं तो हमारा यहभ्रम हे कि हमारे डांटने भर से वह दूसरे कमरे में बैठ कर पढ़ रहा होगा।

लड़के व लड़की में भेदभाव नहीं करें। कई परिवारों में आज भी लड़की की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्त्व दिया जाता है, इससे हीन भावना आती है। प्रकृति का हर आशीर्वाद समान समझ लड़की को भी लड़के के समान ही शिक्षा, प्‍यार, स्‍नेह, सुविधा दें। संभव हो एवं बच्‍चों में रूचि हो, तो उन्‍हें प्रार्थना, प्राणायाम, व्‍यायाम, ध्‍यान, भ्रमण के महत्त्व बतलाते हुए सरल क्रियाऐं समझाऐं। अवकाश के दिन बच्‍चों के साथ पिकनिक पर जाऐं, उनके साथ घर में ही लूडो, केरम इत्‍यादि खेलें। बच्‍चों को इस बात के लिए दबाव नहीं डालें कि वह आपके घर आने वाले मित्र को रटी रटाई पोयम/कविता सुनाए। आने वाले अतिथि में ऐसे गुण होंगे, तो वहस्‍वयं ही आपके बच्‍चों को मित्र बना लेगा। आपकी आज्ञा से बच्‍चे आने वाले अतिथि से चिढ़ने लगेंगे एवं उनकी नकारात्‍मक प्रतिक्रिया आपको अतिथि के समक्ष नीचा दिखलाएगी। सामान्‍य सहज रूप से बच्‍चों और अतिथि को आपस में संवाद करने दें। जन्‍मदिन पर बच्‍चों को कुछ पुस्‍तकें अवश्‍य उपहार दें, उनकी व्‍यक्‍तिगत लाइब्रेरी स्‍थापित करने में सहायता करें। आपके लिए प्रति माह 10 पत्रिकाऐं आतीहैं, तो बच्‍चों के लिए भी 2-3 पत्रिकाऐं अवश्‍य लीजिए। पढ़ने के प्रति रूचि जाग्रत कीजिए। स्‍कूल की लाइबे्ररी से पुस्‍तकें लाकर पढ़ने के लिए प्रेरित कीजिए। उनकी हर उपलब्‍धि पर कोई उपहार अवश्‍य दीजिए, चाहे वह चाकलेट या पेन या कलर बॉक्‍स ही हो। बच्‍चों को मंहगे उपहार देंकर एहसान मत जताइए। बच्‍चों को प्‍यार दीजिए। आपको स्‍वतः ही आदर मिलेगा। उनके जन्‍म दिन पर उन्‍हें पास के गांव के सरकारी स्‍कूल में ले जाकर गरीब छात्र छात्राओं को फल, मिठाई, स्‍टेशनरी, वस्‍त्र उनके अपने हाथ से बंटवाइए। इस सूची को विस्‍तृत कीजिए, अच्‍छे कामों को बढ़ाकर बुराईयों से स्‍वयं भी बचिए, बच्‍चों को भी बचाइए। आज आप बच्‍चों के लिए समय निकालिए, जीवन की शाम में बच्‍चे भी निश्‍चय ही आपके लिए भी समय निकालेंगे। इति. -

ग्राहक सेवाएं (Customer management)

किसी सी संस्‍थान, संगठन, परिवार, समाज सेवा के लिए ग्राहक एक महत्त्वपूर्ण व्‍यक्‍ति है। ग्राहक संतुष्‍टि परम लक्ष्‍य होना चाहिए। असंतुष्‍ट ग्राहक से संस्‍थान की छवि धूमिल होती है। सेवा या उत्‍पाद मूल्‍यहीन हैं, अगर ग्राहक असंतुष्‍ट है, इसलिए ग्राहक संतुष्‍टि को लक्ष्‍य रखकर ही हर गतिविधि की जानी चाहिए।

आइए, ग्राहक को अच्‍छी सेवाऐं देने हेतु कुछ मुख्‍य बिन्‍दुओं पर चर्चा करें। याद रखिए हमें हमारा वेतन ग्राहक से ही मिलता है। ग्राहक अगर हमारे संस्‍थान का उत्‍पाद नहीं खरीदेगा, तो संस्‍थान के कर्मचारियों को वेतन कहां से मिलेगा? बिजली घर की बिजली, बिजली बोर्ड को खरीदनी होगी, किराना, जनरल, कोअॉपरेटिव, स्‍टेशनरी, पुस्‍तक, कपड़ा, बर्त्तन हर स्‍टोर के अनवरत चलने हेतु ग्राहक चाहिऐं ही, वरना ताले लगाने पड जाऐंगे। ग्राहक बॉस है, उसी के कारण व्‍यवसाय, संगठन, संस्‍थान चल सकता है। संगठन व संस्‍थान के हर व्‍यक्‍ति को यह आभास एहसास दिलाना होगा कि वह अपनी पूर्ण योग्‍यता, क्षमता एवं दक्षता अपने निर्धारित कार्य में लगाए, ताकि संस्‍थान के उत्‍पाद का ग्राहक टूटे नहीं, छूटे नहीं, बना रहे, संतुष्‍ट रहे एवं अपने साथ अपने अन्‍य साथी ग्राहकों को भी संस्‍थान के उत्‍पाद सेजोड़े, ग्राहक को गुणवत्तापूर्ण सेवाऐं देने के लिए संस्‍थान के हर कर्मचारी को प्रशिक्षण एवं निश्‍चित निर्धारित अंतराल के पश्‍चात्‌ पुनः प्रशिक्षण भी देते रहें। प्रशिक्षण संस्‍थान के समक्ष अधिकारी भी दे सकते हैं, परसमय समय पर बाहर के विश्‍ोषज्ञों को बुलाकर भी प्रशिक्षणदें, जो अधिक प्रभारी होगा। ग्राहक संस्‍थान व उसकेउत्‍पाद पर भरोसा विश्‍वास रखे, ऐसा वातावरण पैदा करें, ग्राहक से झूठ नहीं बोलें, जो भी सच है वही कहें, झूठ पकड़ा जाएगा एवं झूठ बोलने से एक नहीं, अनेकों अन्‍य ग्राहक भी कम होते चले जाऐंगे। एक दीपक से सौ दीपक जलाने में समय लगता है, पर एक आंधी या तूफान पूरे सौ प्रज्‍वलित दीपकों को एक साथ बुझा सकता है। इसलिए, सच बोलें, सच के सिवाए कुछ नहीं बोलें।

ग्राहक को उत्‍पाद समय पर मिलना चाहिए। 15 अक्‍टूबर का दैनिक समाचार पत्र 16 अक्‍टूबर को प्रकाशित नहीं किया जा सकता, मासिक पत्रिका उसी माह ग्राहक को मिलनी चाहिए। ताजा दूध-ब्रेड-टोस्‍ट-मक्‍खन प्रातःकाल ही ग्राहक को मिलने चाहिऐं। होटल लंच के लिए ग्राहक को शाम को 4 बजे तक प्रतीक्षा नहीं करवा सकता। गर्मी में गजक, रेवड़ीग्राहक नहीं खरीदेगा, सर्दी में आईसक्रीम नहीं खरीदेगा। हालांकि बडे़ शहरों में आजकल यह फैशन हो गया है, पर सर्दी में आईसक्रीम के ग्राहक बहुत सीमित ही होंगे। उत्‍पाद में अपरिहार्य कारणों से देरी हो रही हो, तो ग्राहक को सूचना देना संस्‍थान का कर्त्तव्‍य है।

अगर कोई ग्राहक संस्‍थान के उत्‍पाद की शिकायत करता हैतो वह संस्‍थान का शत्रु नहीं, मित्र है। वह संस्‍थान को अपने उत्‍पाद में सुधार करने का अवसर देता है। चुप रहने वाले ग्राहक से संस्‍थान को फीडबेक नहीं मिलती, इसलिए शिकायत करने वाले ग्राहक कीबात की ध्‍यान से समीक्षा मूल्‍यांकन कर उत्‍पाद में आवश्‍यक सुधार करना चाहिए।

संस्‍थान का लक्ष्‍य ‘‘अच्‍छी ग्राहक सेवाऐं‘‘ देना होना चाहिए ग्राहक की सेवा दिल से, समर्पण भाव से करें। ग्राहक संस्‍थान के उत्‍पाद के लिए चलता फिरता विज्ञापन है। सेवाऐं सुधारने के लिए ग्राहक से सलाह लें। ग्राहक को संस्‍थान का सदस्‍य समझें, उसे उत्‍पाद की पूरी जानकारी दें। उनसे व्‍यक्‍तिगत सम्‍पर्क बनाए रखें। किसी कारणवश कुछ ग्राहक अभी उत्‍पाद नहीं ले रहे हैं, उनसे भी शिष्‍टाचार हेतु सम्‍पर्क सम्‍बन्‍ध बनाए रखें। याद रखिए, पहली पहचान बनाने के लिए दूसरा मौका नहीं मिलता। व्‍यावसायिक के साथ व्‍यक्‍तिगत सम्‍बन्‍ध सोने में सुहागे के कार्य करेंगे। संस्‍थान प्रगति करेगा। लाभ अधिक होगा, कर्मचारी अधिक वेतन बोनस पा सकेंगे। कर्मचारी संतुष्‍ट रहेंगे। संस्‍थान के स्‍थायी कर्मचारी बने रहेंगे, त्‍याग पत्रों की संख्‍या कम हो जाएगी।

आवश्‍यक महत्त्वपूर्ण है, गुणवत्तापूर्ण अच्‍छी सेवाऐं देते रहना। समय समय पर समीक्षा मूल्‍यांकन करते रहना भी आवश्‍यक है। संस्‍थान को जीवित ही नहीं, जिन्‍दा दिल रखने के लिए एक संतुष्‍ट ग्राहक की भूमिका सर्वोपरि है। ग्राहक सेवाऐं सुधार, निखार चाहती हैं। अच्‍छी ग्राहक सेवाओं से संस्‍थान उन्‍नति पथ पर अग्रसर होता रहेगा। इति. -

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स्‍वास्‍थ्‍य (Health Management)

अच्‍छा स्‍वास्‍थ्‍य एक नियामत है। स्‍वस्‍थ रहनाा हमारा धर्म है। अस्‍वस्‍थता के कारण हम स्‍वयं तो कष्‍ट भोगते ही हैं हमारे स्‍वजन परिजन भी हमारी अस्‍वस्‍थता के कारण परेशान हो जाते हैं एवं उनकी नियमित दिनचर्या में भी व्‍यवधान आता है। इसलिए हर व्‍यक्‍ति का कर्त्तव्‍य है कि वह स्‍वयं ही अपनें स्‍वास्‍थ्‍य को ठीक रखने के लिए प्रयास करे।

अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य हेतु कुछ बिन्‍दुओं पर चर्चा करें ः-

हमारा शरीर प्रकृति या ईश्‍वर का एक सर्वोत्‍तम उपहार हैै। इसे तन मन से स्‍वस्‍थ रखना हमारी नैतिक जिम्‍मेदारी है कर्त्तव्‍य है स्‍वस्‍थ रहने पर ही हम परिवार,समाज, रिश्‍तों, मित्रों, सहेली, व्‍यापार, संगठन संस्‍थान हेतु अपने उचित दायित्‍व, कर्म निभा पायेंगें। कई बार हम मात्र इसलिए खाते हैं, कि खाने का समय हो गया है। जब हमें वास्‍तव में भूख लगी हो तभी खाना चाहिए। हालांंकि नाश्‍ता, दिन, एंव रात्रि का भोजन सभी की नियमितता भी आवश्‍यक है। फिर भी संभव हो तो भूख लगे तभी खायें या परिवार के सदस्‍यों की सुविधा हेतु एक निश्‍चित समय पर भोजन करना आवश्‍यक हो तो भूख से एक रोटी कम खायें। साधारण िस्‍थ्‍ति में भी पूरे भरपेटखाने की अपेक्षा आधी-एक रोटी कम खाना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हितकर होता है। सात्‍विक शाकाहारी ताजा भोजन हीकरें। राजसी, तामसी, मांसाहारी, बासी भोजन से यथा संभव बचना चाहिए। मौसमी सब्‍जी, फल का सेवन लाभकारी है। भोजन संतुलित होना चाहिए, जैसे दूध, दही, दाल,, सब्‍जी, रोटी, चावल सलाद, मिष्‍टान, हरी सब्‍जी इत्‍यादि ताकि हमारे शरीर में आवश्‍यक विटामिन एंव कार्बोहाईड्रेट का संतुलन बना रहे। वरना कैल्‍शियम, आइरन इत्‍यादि की कमी से समस्‍याऐं आयेगी। नमक हो या चीनी अति हर चीज की बुरीहोती है एंव कमी होने से भी समस्‍याऐं आयेगी इसलिए नमक, चीनी, घी, तेल सभी कुछ एक संतुलित मात्रा में ही हमारे दैनिक खान-पान में शामिल किया जाना चाहिए। मिर्च का अधिक सेवन नुकसान करता है पानी खूब पीना चाहिए दिनभर में 12 से 14 गिलास पानी पीना चाहिए। प्रातःकाल उठते ही ब्रश करने से पहले 2 से 3 गिलास पानी पीने से पेट साफ रहता है। संतुलित आहार सतुलित सुस्‍वास्‍थ्‍य के लिए आवश्‍यक है।

प्रातःकाल भ्रमण सर्वोत्‍तम है, 30 मिनट से 1 घन्‍टे तक जितना भी संभव हो प्रातःकाल या सांयकाल पैदल घूमना सर्वोत्‍तम व्‍यायाम है। प्राणायाम, व्‍यायाम, योग, ध्‍यान, पूजा-प्रार्थना भी दिनचर्या में सम्‍मिलित हो तो स्‍वास्‍थ्‍य पर सकारात्‍मक प्रभाव होगा। 10मिनट से 1 घंटा, जितना भी हो सके मौन रहने का प्रयास करें। मौन शरीर मन को ऊर्जा, शक्‍ति देगा। सात घन्‍टे नींद लीजिए नींद के लिए सर्वोत्‍तम समय रात्रि 10 बजे से प्रातःकाल 5 बजे तक होता है। जल्‍दी सोइए, जल्‍दी उठिए। सूर्योदय से पूर्व उठना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए टॉनिक है। रात को 10 बजे इन्‍टरनेट, टी.वी., मोबाइल फोन, फेसबुक, लाइट बन्‍द करके सो जाइए। सेाने से पूर्व पानी से हाथ पैर धो लीजिए। संभव हो एवं संसाधन हों तो एक गिलास या एक कप गर्म दूध पी लीजिए।

स्‍वास्‍थ्‍य को ठीक रखने हेतु अनेकों दवाईयां है। इनसेदूर रहिए। बीमारी में डाक्‍टर के निर्देशानुसार कुछ समय के लिए विटामिन की गोली या टॉनिक की शीशी ली जा सकती है पर नियमित दिनचर्या में मल्‍टी विटामिन इत्‍यादि की गोलियों की आदत मत डालिए। नियमित स्‍वास्‍थ्‍य जांच करवाईये, ब्‍लड प्रेशर, ब्‍लड-शूगर, हीमोग्‍लोविन, कोलेस्‍ट्रोल इत्‍यादि पूरा ब्‍ल्‍ड टेस्‍ट प्रति वर्ष करवाइए। बीमारी हो तो डाक्‍टर से समय पर इलाज करवाइए। अपनी इच्‍छा से अपनी मन-मर्जी से कोई भी दवाई मत लीजिए। डाक्‍टर की सलाह से ही दवा लीजिए। नमक, चीनी, तेल, खटाई कम खाने का परहेज बतलाया है तो पालन कीजिए।

स्‍वास्‍थ्‍य ठीक रहनेे पर घर- परिवार, संस्‍थान,व्‍यापार को पूरा समय दे पायेंगें। ऊर्जा संतुलित रहने से उत्‍पादक्‍ता की क्षमता में वृद्वि होंगी। परिजन-स्‍वजन संतुष्‍ट रहेंगें। एक स्‍वस्‍थ व्‍यक्‍ति रहने से स्‍वयं का भला करता ही है, दूसरों को भी स्‍वस्‍थ रहने का संदेश देता है। शराब, नशा, तम्‍बाकू, गुटखा से दूर रहिए। कार्यालय से आने के पश्‍चात 15 मिनट विश्राम कीजिए।

स्‍वास्‍थ्‍य को सतुलित रखिए। बुराईयों से जितना दूर रहेंगें उतने ही अधिक स्‍वस्‍थ रहेंगंें। तंदुरस्‍ती हजार नियामत। स्‍वस्‍थ रहिए सफल हो जाइए। जीवन को सार्थक बनाइए।

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लोक व्‍यवहार (People Management)

हम स्‍वयं कितने ही ज्ञानी, धनी, शिक्षित, उच्‍च पद प्राप्‍त,विशिष्‍ट कुछ भी हों पर हम समाज में व्‍यक्‍तियों से जिस प्रकार का व्‍यवहार करते हैं, उससे ही समाज में हमारी अच्‍छी, सामान्‍य या बुरी पहचान व छवि बनती है। प्रतिदिन के व्‍यवहार में, कार्यालय, व्‍यापार, घर, मित्र-सहेली, रिश्‍ते, समाज, बाजार, सार्वजनिक स्‍थल इत्‍यादि प्रत्‍येक स्‍थल पर हमारा व्‍यवहार हमारे चरित्र का प्रतिबिम्‍ब होता है। दर्पण होता है। स्‍वस्‍थ तन मन का साक्षात प्रमाण भी होता है। बीमारी, परेशानी, संकट में हम कई बार कुछ असामान्‍य सा व्‍यवहार करते हैं, जो शायद उस परिस्‍थिति में स्‍वाभाविक है, पर सामने वाला हमारी मनः स्‍थिति नहीं समझता, तो इस कारण हमारी छवि धूमिल होने लगती है एवं हमारे सद्‌व्‍यवहार पर एक प्रश्‍न चिन्‍ह भी लगता है? ऐसी परिस्‍थिति में भी संतुलित व्‍यवहार रखने का प्रयास हमें संकटों से बचा सकता है।

आइए एक अच्‍छे व्‍यवहार के कुछ सूत्रों पर विचार करें।

व्‍यक्‍तियों के नाम याद रखिए। मिलते समय अभिवादन, नमस्‍कार, प्रणाम, सुप्रभात, हैलो इत्‍यादि स्‍वयं पहले करने का प्रयास करें। लोगों को पहले समझें, शीघ्र ही उनके अच्‍छे या बुरे होने के निर्णय लेने की आवश्‍यकता नहीं है। सभी के प्रति आदर, प्रेम, स्‍नेह व विनम्रता हो। विवाद में नहीं पड़े, विरोधी विचार हों तो विषय बदल दें। जो व्‍यक्‍ति उपस्‍थित नहीं है, उसके लिए नकारात्‍मक टिप्‍पणी नहीं करें। प्रशंसा समाज में करें व कुछ गलत हो तो एकांत में चर्चा करें। कोशिश करें कि बोलें कम व सुनें ज्‍यादा। दूसरे को अपनी बात कहने का अवसर दें।तुरन्‍त प्रतिक्रिया नहीं दें। शांत रहने का प्रयास करें। क्रोध को नियंत्रित रखें। कम से कम शब्‍दकहें। ध्‍यान रखिए जितने कम शब्‍द आप बोलेंगे उतने ही अधिक ध्‍यान से आपकी बात सुनी जाएगी। जिस प्रकार एस.एम.एस. में हम कम से कम शब्‍द लिखते हैं, बोलते समय भी उसी प्रकार सीमित शब्‍दों में अपनी बात कहें।

प्रतिदिन कम से कम 10 से 15 मिनिट पूर्ण मौन रहें। संभव हो तो, एक घंटा मौन रहने से ऊर्जा की बचत होगी। आप थकेंगे कम, अधिक स्‍वस्‍थ रहेंगे। मान लीजिए, आप पूरे दिन में 10000 शब्‍द बोलते हैं, इन्‍हें 50 प्रतिशत कर मात्र 5000 शब्‍द ही बोलेंगे, तो आप कई अच्‍छे कामों, जैसे स्‍वाध्‍याय, पढ़ने के लिए अधिक समय भी निकाल पाऐंगे वतन, मन से अधिक स्‍वस्‍थ व प्रसन्‍न रहेंगे। किसी से भी कोई भी वादा किया है तो उसे निभाऐं। कथनी व करनी में अन्‍तर नहीं हो, जो कर सके, वही कहें व जो कहें, वह करके बतलाऐं। नहीं कर सकते हों, तो अपनी असमर्थता प्रारम्‍भ में ही स्‍पष्‍ट कर दें, झूठे वादे नहीं करें।

एक संतुलित लोक व्‍यवहार वह होगा, अगर सामने वाला व्‍यक्‍ति आप से प्रभावित हो, आप से बार-बार मिलना, सम्‍पर्क करना चाहे, धार्मिक अनुष्‍ठान मात्रही सत्‍संग नहीं होते, एक अच्‍छे व्‍यक्‍ति से मिलना, कुछ सीखना, सुख दुःख बांटना, भी सत्‍संग ही होता है। हमारा व्‍यवहार ऐसा हो कि सामने वाला व्‍यक्‍ति यह समीक्षा करे कि हमसे मिलकर उसने ‘सत्‍संग‘किया है। मित्र बनाइए, दुश्‍मन घटाइए, फेसबुक, आरकुट, टिव्‍टर के साथ व्‍यक्‍तिगत रूप में भी लोगों से मिलिए एक अच्‍छा मित्र मिल जाए तो जीवन सरल हो जाता है। कई परेशानियों का समाधान सहज ही मिल जाता है। एक अच्‍छी पुस्‍तक 100 मित्रों के समान है, पर एक अच्‍छा मित्र पुस्‍तकालय होता है। सबसे प्रेम कीजिए, प्रेम बांटिए, खुशियां बांटिए, जन्‍मदिन याद रखिए, जन्‍मदिन पर एस.एम.एस. कार्ड ई-मेल, फोन या व्‍यक्‍तिगत रूप से मिलकर बधाई दीजिए। एक छोटा सा उपहार एक फूल या पेन ही सही, पर दीजिए अवश्‍य। लोक व्‍यवहार हेतु ये कुछ सूत्र हैं। कई सूत्र स्‍वयं भीजोड सकते हैं। अच्‍छा व्‍यक्‍ति हमेशा अच्‍छा होता है। सद्‌व्‍यवहार हमें चाहे ‘बडा‘ नहीं परन्‍तु‘अच्‍छा‘ अवश्‍य ही बनाएगा। इति.-

अच्‍छा नेतृत्‍व (Leadership Management)

लीडर अर्थात्‌ किसी संगठन, संस्‍थान, परिवार, टीम का नेतृत्‍व करने वाला। अच्‍छे नेतृत्‍व से कार्य में दक्षता आती है। कार्य शीघ्र, कम संसाधनों से गुणवत्‍तापूर्ण सफल होता है। नेतृत्‍व के भार को जिम्‍मेदारी समझना आवश्‍यक है। शिक्षा, ज्ञान, अनुभव, दक्षता, प्रवीणता के आधारभूत गुणों से नेतृत्‍व की जिम्‍मेदारी एक विश्‍ोष व्‍यक्‍ति को चुन कर या साक्षात्‍कार,ग्रुप डिसकशन इत्‍यादि माध्‍यमों से सौंपी जाती है।

अच्‍छे नेतृत्‍व हेतु कुछ बिन्‍दुओं पर विचार करें।

एक अच्‍छा लीडर, एक अच्‍छा प्रबंधक भी होता है, लेकिन हर प्रबंधक लीडर नहीं हो सकता। एक लीडर कई नए प्रबंधकों को तैयार कर सकता है। अच्‍छा लीडर निरन्‍तर सीखने जानने की इच्‍छा रखता है। कोर्स, प्रशिक्षण, सेमीनार, कार्यशाला, कान्‍फ्रेन्‍स,योग्‍यता द्वारा वह प्रमाणित करता है कि सीखना, जानना मंजिल नही है, परन्‍तु एक निरन्‍तर चलने वाली यात्रा है। सामंजस्‍य व समाधान के गुण एक अच्‍छे लीडर की पहचान हैं। एक अच्‍छा लीडर अपनी टीम के सदस्‍योंएवं अन्‍य टीमों के लिए एक आदर्श रोल मॉडल की भूमिका निभाता है। लीडर मात्र आदेश देने वाला ही नहीं, परन्‍तु टीम का एक सक्रिय महत्‍वपूर्ण सदस्‍य भी होता है। लीडर में वह गुण होता है कि वह टीम के सदस्‍यों की विश्‍ोष प्रतिभा, दक्षता, योग्‍यता, गुणों को महसूस करके उन्‍हें उचित जिम्‍मेदारी देता है। मार्गदर्शन देता है। उत्‍साहवर्धन करता है। लीडर एक गुरू का कार्य करता है एवं शनैः शनैः उसके शिष्‍य उसके अनुगामी बनकर भविष्‍य के लीडर बनते हैं।

लीडर में अधिकतम गुण होने चाहियें। उसका चरित्र, व्‍यवहार, संवाद प्रेषण शालीन, सौम्‍य, गरिमामय होना चाहिये। आकर्षक व्‍यक्‍तित्‍व एवं शालीन परिधान लीडर की पहचान है। समाज-संगठन में एक सम्‍मानीय छवि, व्‍यक्‍तिगत पहचान एक अच्‍छे लीडर की विश्‍ोषताऐं होती है। एक अच्‍छे लीडर को कुशल नेतृत्‍व के लिये आदर, प्‍यार, मान, सम्‍मान, पद, पुरस्‍कार स्‍वतः ही मिलते चले जाते हैं। इन सब के लिये किसी भी व्‍यक्‍ति को समर्पण भावना से लक्ष्‍य बनाकर लगन से मेहनत करनी होगी, अपने छोटे व्‍यक्‍ति से सीखने के लिये भी तैयाररहना होगा। सद्‌व्‍यवहार करना होगा। बड़ों का आदर, छोटों को स्‍नेह देना होगा, एक अच्‍छा इन्‍सान बनना होगा। दुर्गुणों, शराब, नशा, गुटखा, तम्‍बाकू इत्‍यादि से दूर रहना होगा। अपनी आय का एक प्रतिशत सामाजिक उत्‍थान हेतु देना होगा। किसी भी संस्‍थान में एक अच्‍छा लीडर उत्‍पादकता के साथ संरक्षा, सुरक्षा, गुणवत्‍ता, पर्यावरण संरक्षण को भी उचित महत्‍व देता है। संस्‍थान ने कोईप्रमाण-पत्र जैसे आई.एस.ओ.-9001, 14001 इत्‍यादि प्राप्‍त किये हैं, तो प्रमाण-पत्र देने एवं नवीनीकरण करने वाली एजेंसी द्वारा निरीक्षण से पूर्व आंतरिक निरीक्षण, स्‍व-मूल्‍यांकन, सेल्‍फ-चेक करवाकर एक सुरक्षा गुणवत्‍ता संस्‍कृति विकसित करनी होगी। परमाणु बिजलीघर इस सम्‍बन्‍ध में अनुकरणीय उदाहरण है। वर्ल्‍ड एसोसिएशन अॉफ न्‍यूक्‍लियर आपरेटर्स (वानो) द्वारा अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के पीयर रिव्‍यूसे पूर्व बिजलीघर एवं मुख्‍य कार्यालय आंतरिक अॉडिट करवाकर एक अच्‍छी संस्‍कृति विकसित करता है।

अच्‍छे नेतृत्‍व वाला कुशल लीडर उच्‍च प्रबंधन एवं कर्मचारियों के मध्‍य एक सशस्‍त पुल की भूमिका निभाता है, दीवारें तोड़ता है, पुल बनाता है, संवादकी निरन्‍तरता बनाए रखने में योगदान देता है, सक्रिय एवं अच्‍छे कार्य करने वाले टीम सदस्‍यों की प्रशंसा करताहै। टीम की कमियों एवं गलतियों की जिम्‍मेदारी स्‍वयं लेता है। चिन्‍तन, मनन, आत्‍म मंथन द्वारावह समस्‍याओं का समाधान खोजता है। एक अच्‍छा लीडर अपने संस्‍थान में योग, प्राणायाम, ध्‍यान, व्‍यायाम, व्‍यक्‍तित्‍व विकास के शिविर/कार्यक्रम आयोजित कर टीम के सदस्‍यों की दक्षता बढ़ाता है।

इनके अतिरिक्‍त अन्‍य कई बिन्‍दु भी इस सूची में सम्‍मिलित किये जा सकते हैं। प्रतिस्‍पर्धा के इस युग में हर संस्‍थान को एक कुशल नेतृत्‍व वाले लीडर कीतलाश रहती है। जो इन बिन्‍दुओं पर 24 कैरेट का खरा सोना सिद्ध होगा, वही संस्‍थान में टिक पाएगा एवं संस्‍थान की उत्‍पादकता व छवि बढ़ाने-बनाने के साथ स्‍वयं भी सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जाएगा।

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सम्‍पूर्ण गुणवत्ता ( Total Quality Management TQM )

गुणवत्ता की कई परिभाषाऐं हैं, शून्‍य त्रुटियां मानदडों के अनुसार, पहली बार में ही एवं हमेशा सही कार्य करना, ग्राहक संतुष्‍टि इत्‍यादि संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन से तात्‍पर्य है कि किसी भी संस्‍थान में उच्‍चतम शीर्ष पद वाले अधिकारी से लेकर संस्‍थान का न्‍यूनतम वेतन प्राप्‍त करने वाला चपरासी तक हर व्‍यक्‍ति अपना निर्धारित कार्य गुणवत्ता से करें, तभी सम्‍पूर्ण गुणवत्ता का लक्ष्‍य प्राप्‍त हो पायेगा। गुणवत्ता अनायास ही प्राप्‍तनहीं की जा सकती, इस के लिए योजना बनानी होती हैं।

आइए, सम्‍पूर्ण गुणवत्ता प्राप्‍त करने के विभिन्‍न चरणों पर कुछ विचार करें। संस्‍थान से कचरा वेस्‍टेज न्‍यूनतम हो। कच्‍चा माल उतना ही रखें, जितना आवश्‍यक हो। रिसाईकिल/रीयूज के सिंद्वात काम में लायें। उत्‍पाद भी विक्रय की आवश्‍यकतानुसार ही हों। कार्य करने के बाद सफाई यानी हाउस कीपिंग अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। इधरउधर कचरा फैला होगा, तो संस्‍थान की छवि भी धूमिल होती है, तेल वगैरह होगा तो आग लगने का खतरा होगा या किसी कर्मचारी का पैर फिसलने से फ्रेक्‍चर वगैरह हो सकता है संस्‍थान के अन्‍दर धूम्रपान व गुटखे का सेवन निषेध होना चाहिए एवं ड्‌यूटी पर कोई कर्मचारी शराब, गांजा, चरस, अफीम इत्‍यादि नशा करके नहीं आए। हर वस्‍तु के लिए निश्‍चित नियत स्‍थान निर्धारित होना चाहिए एंव हर वस्‍तु अपने निश्‍चितस्‍थान पर उपलब्‍ध होनी चाहिए। अॉफिस की फाईल हों या वर्कशाप में औजार हर वस्‍तु सुव्‍यवस्‍थित सुनियोजित तरीके से रखी होनी चाहिए। हर कर्मचारी सफाई के लिए जिम्‍मेंदार होना चाहिए। कचरा पात्र हों एवं कचरा उसी पात्र में डालें। कचरा पात्र समय पर खाली कर दिया जाये। पुरानी काम में नहीं आने वाली वस्‍तुओं को नहीं रखें । जितना एवं जो सामान आवश्‍यक है वही रखा जाना चाहिए। श्‍ोष सामान निकाल देना चाहिए। चाहे वे टूटे हुए औजार हों या फाईल में बरसों पुराने पेपर्स। घर हो या कार्यालय, स्‍टोर हो या दुकान, अनुपयोगी वस्‍तुओं को निकालना आवश्‍यक है, ताकि आवयश्‍कता वाला सामान अच्‍छी तरह से रखा जा सके एवं निर्धारित स्‍थान पर मिल सके।

हर संस्‍थान में एक स्‍वतन्‍त्र एंव निष्‍पक्ष गुणवत्ता विभागहोना चाहिए। संस्‍थान की गुणवत्ता नीति होनी चाहिए। संभव हो तो अंर्तराष्‍ट्रीय स्‍तर का प्रमाण-पत्र आई.एस.ओ.-9001 किसी प्रमाणित संस्‍था से प्राप्‍त करना चाहिए। आंतरिक अॉडिट होना चाहिए। गुणवत्ता प्राप्‍ति के लिए प्रयास लगातार करने चाहिए। हर कर्मचारी याद रखे कि गुणवत्ता मंजिल नहीं, परन्‍तु निरन्‍तर चलने वाली यात्रा है। हर विभाग में क्‍वालिटी सर्किल भी बनाए जा सकते हैं, ताकि कचरा वेस्‍टेज कम होएवं कम समय में गुणवत्तापूर्ण उत्‍पाद तैयार हों, बिजली, पानी, ऊर्जा, पैट्रोल, डीजल, गैस इत्‍यादि का अपव्‍यय एंव दुरुपयोग नहीं हो। ग्राहक एवं कर्मचारी दोनों की सुविधा-सुरक्षा को ध्‍यान में रखकर गुणवत्ता प्रबंधन किया जाना चाहिए। संस्‍थान का हर स्‍थान, चाहे अतिथि कक्ष हो या शौचालय, हर स्‍थान पर पूर्ण स्‍वच्‍छता, सफाई होनी चाहिए। कार्यालय एवं वर्कशाप का वातावरण ध्‍वनि, ताप,प्रदूषण से मुक्‍त एंव केन्‍द्रित वातानुलित प्रणाली होनी चाहिए। ताकि कर्मचारियों की दक्षता एंव उत्‍पादकता में वृद्धि होती रहे।

गुणवत्ता मात्र किसी संस्‍थान तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, घर-परिवार-समाज के हर क्षेत्र में गुणवत्ता अनिवार्य है। सर्वगुण सम्‍पन्‍न कोई नहीं होता, पर सद्‌गुणों को बढ़ाकर दुर्गुणों को कम करने का प्रयास करना चाहिए। घर का ड्रांइगरूम हो या गैरेज हो, बेड रूम हो या स्‍टोर, बाथरूम हो या किचन, पूजा स्‍थल हो या स्‍टडी रूम, हर स्‍थान पर सफाई रहनी चाहिए। घर व्‍यवस्‍थित हो। मंहगे फर्नीचर, कालीन, क्राकरी या मंहगी पेंटिंग्‍स नहीं हो, तो कोई शर्म नहीं, परन्‍तु स्‍वच्‍छता अनिवार्य है। फर्श पर कूड़ा नहीं हो, दीवारों पर जाले नहीं हों, किचन का प्‍लेटफार्म साफ हो, वाशबेसिन चमकती हुई हो, बाथरूम में फिसलन नहीं हो, स्‍टोर रूम भी व्‍यवस्‍थित हो, तात्‍पर्य यही है कि सम्‍पूर्ण गुणवत्ता हेतु हाउसकीपिंग, सफाई एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आइए, जीवन के हर पक्ष, हर पहलू को गुणवत्तामय बनाऐं। गुणवत्ता से आत्‍मसंतुष्‍टि मिलेगी, उत्‍पादकता बढ़ेगी, दुर्घटनाऐं कम होंगी, स्‍वास्‍थ्‍य ठीक रहेगा इत्‍यादि कई मीठे फल हमें निरन्‍तर मिलते रहेंगे। गुणवत्ता संस्‍कृति फैशन नहीं, परन्‍तु प्राथमिक अनिवार्यता है। इति.-

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स्‍वस्‍थ दिमाग ( Mind Management)

मनुष्‍य को प्रकृति ने अनुपम उपहार दिया है, जी हाँ, ‘‘दिमाग मानी माइन्‍ड‘‘। हमारा दिमाग जो राह हमें बतलाता है, हमारा शरीर उसी प्रकार कार्य करता है। दिमाग कभी विश्राम नहीं करतां हमारा शरीर मात्र सोता है, दिमाग एक अदृश्‍य शरीर है और शरीर एक दृश्‍य दिमाग। हमारे शरीर में 1 मिलियन मिलियन बे्रन सेल हैं। प्रतिदिन हमें 60000 विचारनए मिलते रहते हैं। जीवन में सफलता के लिए स्‍वस्‍थ तन मन के साथ स्‍वस्‍थ दिमाग की भी नितान्‍त आवश्‍यकता है। स्‍वस्‍थ दिमाग रखने हेतु कुछ सूत्रों पर विचार करें।

चिन्‍तन-मनन-मंथन आवश्‍यक है। कल्‍पनाशीलता एक गुण है। सकारात्‍मक सोच आवश्‍यक है, हम जो सोचते हैं, वहीं होते हैं, आधे भरे पानी के गिलास को देखकर एक गांव के स्‍कूल की लडकी ने मुझ से कहा था, ‘‘अंकल गिलास तो पूरा भरा है, आधा पानी से और आधा हवा से।‘‘ सकारात्‍मक सोच की यह सर्वोच्‍च सीढ़ि है। अंधकार में एकमिट्‌टी का नन्‍हा दीपक, एक मोमबत्ती, एक दियासलाई भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। दिमाग में बुरे विचार आऐंगे तो शरीर भी गलत क्रियाऐं ही करेगा। अच्‍छे विचार आऐंगे तो सत्‍संग, दान, सहायता, सेवा स्‍वतः ही होते चले जाऐंगे। कुछ अन्‍तराल के बाद रेस्‍ट-विश्राम अनिवार्य है। इससे दिमाग की बैट्‌री चार्ज होती रहेगी।

5 मिनिट का प्राणायाम दिमाग व शरीर में सकारात्‍मक ऊर्जा कासंचार करेगा। संकट, तनाव, परेशानी, असमन्‍जस, अनिर्णय की स्‍थितियों में आंखे बंद कर 5 मिनिट शांत बैठने का प्रयास करें, राहत मिलेगी। अंतरमन में झांकने का अवसर मिलेगा, प्राणायाम, मौन, खामोशी ऊर्जा का संचार करते हैं। स्‍वस्‍थ दिमाग रखने के लिए ये ऐसी अचूक रामबाण दवाईयां हैं, जिनकी नियमितता हमें सकारात्‍मक परिणाम देगी। जीवन में सफलता के साथ सार्थकता भी अनिवार्य है। उसके लिए स्‍वस्‍थ दिमाग मूलभूत प्राथमिकता है।

विद्यार्थी शिकायत करते हैं कि पढ़ते तो हैं, पर यादनहीं रहता। परीक्षा में प्रयास करते हैं, पर भूल जाते हैं। तो पढ़ रहे हें, वह याद भी रहे, दिमाग में ‘‘सेव (save)‘‘ रहे, इसके लिए पढ़ने के साथ लिखना भी होगा। लिखने से दस गुना अधिक प्रभाव होता है। याद करिए जब कुछ वर्षो पूर्व हम पेास्‍टकार्ड पर पते लिखते थे, तो हमें डायरी देखनेकी आवश्‍यकता ही नहीं होती थी। बार-बार के उपयोग से पते व फोन नम्‍बर बिना रटे ही याद आ जातेथे। पढ़ते समय लिखने की प्रेक्‍टिस करने से नोट्‌स परीक्षा के दिन भी काम आऐंगे व परीक्षा भवन में स्‍वतः ही प्रश्‍नों के उत्तर याद आते चले जाऐंगे।

बचपन में स्‍कूल में दिमाग की याद्‌दाश्‍त बढ़ाने के लिए कई खेल खिलाए जाते थे। एक मेज पर 100 से अधिक विभिन्‍न वस्‍तुऐं रखी हैं, पांच मिनिट तक सूक्ष्‍म दृष्‍टि एवं संतुलित दिमाग से देखना है, उसके पश्‍चात कागज पर लिखना है कि कितनी वस्‍तुऐं हमें याद हैं। एक पाठ पढ़ने के बाद एक पेराग्राफ में सार संक्षेप में लिखना ही स्‍वस्‍थ दिमाग की परीक्षा होती है। आजकल, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्‍न-पत्र परीक्षा भवन से बाहर नहीं ले जा सकते। ऐसे में गाइड व पासबुक प्रकाशित करने वाले विद्यार्थियों से बाद में प्रश्‍न लिखवाते हैं कि उन्‍हें कितने प्रश्‍न याद हैं, फिर इन्‍हीं याद रहे प्रश्‍नों का संकलन अगले वर्ष के संस्‍करण में प्रकाशित करते हैं। 100 प्रतिशत प्रश्‍न उन्‍हें नहीं मिल पाते, याद रखने की भी सीमा तो होती ही है ना। प्रकृति ने भी याद रखने के साथ भूलने का भी वरदान दिया है, ताकि हम पुरानी कड़वी दुःख देने वाली यादों को भुलाकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए नई किताब खोलें।

इन सूत्रों में अपनी इच्‍छा, योग्‍यता अनुसार कुछ और जोड़िए। अच्‍छा सोचिए, अच्‍छा करिए, अच्‍छा पाइए, कम्‍प्‍यूटर के ठप्‍ठव्‍ को भूलकर ळप्‍ळव्‍ सिद्धांत को अपनाइए। स्‍वस्‍थ दिमाग से जीवन में सफलता के मील के पत्‍थर प्राप्‍त होते चले जाऐंगे।

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स्‍व-प्रबंधन ( Self Management)

प्रबंधन का अर्थ है सही प्रकार से उपलब्‍ध संसाधनों द्वारा सार्थक सफल सदुपयोग सात्‍विक सम्‍पूर्ण निष्‍ठा समर्पण भाव से कर्म करन्‍यूनतम त्रुटियां एवं संतुष्‍टता देने वाला कार्य करना।

परिवार, समाज, कार्य स्‍थल, व्‍यापार, रिश्‍ते, नगर, देश,विश्‍व के प्रबन्‍धन पर हम अधिकांश समय देते है, पर स्‍वयं पर ? जी हॉ, मूलमूत आवश्‍यकता है स्‍व-प्रबंधन यानी सेल्‍फ मेनेजमेन्‍ट। जब हम अपना स्‍वयं का प्रबंधन सहीप्रकार कर सकेंगे, तभी अन्‍य पहलुओं एवं क्षेत्रों में सही प्रकार कर पाऐंगे। स्‍वयं को अनुशासित मर्यादित एवं प्रबंधित किए बिना अन्‍य क्षेत्रो में हमें वांछित परिणाम नहीं मिल पाऐंगे। तो आइए स्‍व-प्रबंधन के कुछ सूत्रों पर विचार करें।

प्रातःकाल का भ्रमण खुली हवा में सर्वोत्तम व्‍यायाम है। सम्‍भव नही हो तो घर पर ही कम से कम 15 मिनिट व्‍यायाम अवश्‍य कर लें। शांत चित्त से 5 मिनिट ध्‍यान लगाऐं। 100 से 1 तक उल्‍टी गिनती बोलें, ध्‍यान केन्‍द्रित होगा।

प्रातःकाल टेलीविजन पर समाचार नहीं देखे समाचार पत्र भी नही पढें़। ये कार्य नाश्‍ते के पश्‍चात्‌ करें। समाचार पत्रों के मुखपृष्‍ठ तक नकारात्‍मक सूचनाओं से भरे रहते हैं यथा भ्रष्‍टाचार, रिश्‍वत, बलात्‍कार, हिन्‍सा, दुर्घटना, कफ्‍र्यू, पुलिस, घेराव, बन्‍द, आरोप, प्रत्‍यारोप इत्‍यादि। प्रातःकाल इन्‍हें पढ़ने से नकारात्‍मक विचार मन में आऐंगे, इनसे बचिए। संभव हो तो सात्‍विक, धार्मिक, स्‍व विकास,प्रबंधन की सकारात्‍मक पत्र पत्रिकाऐं या पुस्‍तकें पढ़ें, इनसे मन में सकारात्‍मक ऊर्जा मिलेगी।

उपदेश देना आसान है पर अमल करना मुश्‍किल है, फिर भीप्रयास करें कि चेहरे पर मुस्‍कराहट रहे। तनाव, परेशानी, संकट, बीमारीमें यह इतना आसान नही होता, लेकिन साधारण स्‍थिति में चेहरे पर एक सौम्‍य निश्‍छल मुस्‍कराहट निश्‍चय ही स्‍व-प्रबंधन में रामबाण सिद्ध होगी।

दूसरों की प्रशंसा कर उन्‍हें प्रोत्‍साहित करें , धन्‍यवाद दें, काम करने वाली बाई को, बस से उतरते समय कन्‍डक्‍टर को, जिरोक्‍स करने वाले भईया को, सब्‍जी बेचने वाली आंटी को, इंजेक्‍शन लगाने वाली सिस्‍टर नर्स को, ब्‍लड-पे्रशर नापने वाले डॉक्‍टर को, कचरा लेने आई बहन को, रद्‌दी खरीदने वाले भैया को, पार्लर वाली आंटी को, हेयर कटिंग करने वाले नाई को, प्रेस करनेवाले धोबी को, लेख प्रकाशित करने वाले सम्‍पादक को, मन्‍दिर में जूते की रखवाली करने वाले लडके को, स्‍कूल में पानी पिलाने वाली बाई को इन को भी मुस्‍कराकर ‘‘धन्‍यवाद'' दीजिए, उन्‍हें खुशी होगी और आपको संतुष्‍टि मिलेगी, एक अच्‍छा व्‍यवहार करने की। सकारात्‍मक सोच रखिए। गिलास में 50 प्रतिशत पानी को आधा भरा कहिए। ध्‍यान रखिए दो आधे भरे गिलासों से एक गिलास पूराभरा जा सकता है। कुछ न कुछ करते रहिए, कार्य करिए, पढ़िए, लिखिए या फिर विश्राम कर लीजिए। क्‍या कर रहे थे ? ‘‘कुछ नहीं‘‘ उत्‍तर कभी मत दीजिए। चाय का गिलास एक हाथ में है, दूसरे हाथ में पुस्‍तक हो सकती है। सुस्‍ती को दूर रखने की एक ही दवा है, व्‍यस्‍त रहिए।

फैशन की आवश्‍यकता नहीं, पर वस्‍त्र स्‍वच्‍छ शालीन हो, स्‍मार्ट रहिये। अपनी गलती को स्‍वीकारिये, ऐसा कोई भी इंसान नही, जिससे गलती नही हुई हो, गलती को यथाशीघ्र स्‍वीकार लीजिये, प्रयास करिये कि वही गलतीपुनः नही हो। मित्र बनाइए, दुश्‍मन से भी वर्तालाप कर, सम्‍भव हो तो मित्रबना लीजिये, या कम से कम दुश्‍मनी को समाप्‍त करने का एक प्रयास तो कीजिए ही ,प्रयास असफल हो, तो भूल जाइए, दुश्‍मनो की संख्‍या श्‍शून्‍यश्‍नही की जा सकती, पर कम तो की ही जा सकती है।

सहायता कीजिए - स्‍कूलों में निर्धन छात्र.छात्राओं हेतु प्रति माह एक गुल्‍लक में 100 रूपये डाल दीजिए। वर्ष मे एक बार किसी स्‍कूल मे जाकर फीस, स्‍टेशनरी, वस्‍त्र, कुछ भी सहायता देने के लिए 1200 रूपये में बहुतकुछ करना सम्‍भव होगा । सुझावों पर मूल्‍याकंन कर स्‍वयं में सुधार कीजिए। अपनेकार्य को घर का कार्य समझ कर समर्पण भाव से कीजिए। अभिमान को त्‍यागिए। स्‍वाभिमान बनाए रखिए। अहं मत पालिए। 10 बजे रात्रि मे सो जाइए, प्रातःकाल 5 से 6 के बीच स्‍वस्‍थ तन मन से उठकर स्‍वर्णिम काल का अधिकतम सदुपयोग कीजिए ।

टेलीविजन, मोबाइल, इन्‍टरनेट का दुरूपयोग मत कीजिए। सार्थक सदुपयोग के लिए ये सभी अच्‍छे मित्र हैं इनका सार्थक सदुपयोग कीजिए।

स्‍व प्रबंधन के लिए ये मात्र कुछ सूत्र हैं। अपनी रूचि संस्‍कार संस्‍कृति प्रकृति स्‍वभाव के अनुसार इस सूची मे कई सूत्र जोड़ना आपके अपने स्‍वयं के लिए सम्‍भव है। इन्‍हे उपदेश मत समझिए, जिन सूत्रों से सहमत हो, अच्‍छे लगे, अच्‍छे परिणाम मिले, वहीं काम कीजिए, हर डॉक्‍टर की हर दवा से लाभ नहीं होता, फिर भी प्रयास कीजिए, जीवन में इन सूत्रों को एक बार अपनाने का। स्‍वं प्रबंधन अच्‍छी प्रकार कर लेंगे, तो हर क्षेत्र में सफलता के द्वार खुलते चले जाऐगें। प्रबंधन कोई बंधन नहीं है। यह तो सच मेंअनमोल धन है, जो आपके जीवन को सफल ही नहीं सार्थक भी बनाएगा। इति -

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अच्‍छा विक्रेता (Sales Management)

सेल्‍स मेन बहुत प्रचलित व्‍यक्‍ति हैं। उत्‍पाद या सेवाऐं बेचना सेल्‍सपर्सन का मुख्‍य कार्य है। विक्रेता होना एक गरिमामय व्‍यवसाय है। सेल्‍स पर्सन पैदा नहीं होते, बनाए जाते हैं। हर संस्‍थान, व्‍यक्‍ति अपनी सेवाऐं या उत्‍पाद दूसरों के लिए बनाता है। सेल्‍स प्रबंधन जितना अधिक अच्‍छा होगा, संस्‍थान या व्‍यक्‍ति को उतना ही अधिक लाभ होगा, एक अच्‍छी छवि बनेगी, संस्‍थान प्रगति करेगा, उन्‍नति करेगा, ऊंचाईयों की सीढ़ियां चढ़ेगा।

अच्‍छे विक्रेता की विश्‍ोषताओं पर चर्चा करें।

विके्रता को अपने उत्‍पाद की पूरी जानकारी होनी चाहिए। वह क्‍या व क्‍यों बेच रहा है ? क्रेता खरीदार उस उत्‍पाद से सम्‍बन्‍धित कई प्रश्‍न पूछ सकते हैं।अपनी जिज्ञासा, शंका, संदेह का समाधान चाह सकते हैं, के्रता का विश्‍वास भरोसा प्राप्‍त करने केलिए विक्रेता को पूर्ण सक्षम, जानकार, ईमानदार होना चाहिए। झूठ बिलकुल नहीं बोलें। बढ़ा चढ़ा कर ग्राहक को धोखे में नहीं रखें। उत्‍पाद के उपयोग में ली जाने वाली सावधानियों को भी स्‍पष्‍ट रूप से बता दें। गारंटी, वारंटी, आ फ्‍टर सेल्‍स सर्विस की पूरी जानकारी दें। लिखित सूचना भी सत्‍य हों। बिल-रसीद-गारंटी कार्ड सही हों, सील हो, हस्‍ताक्षर हो, हर कदम पर ग्राहक का विश्‍वास अर्जित करें। एक ग्राहक संतुष्‍ट होगा तो 10 नए ग्राहक मिलेंगे। एक ग्राहक असंतुष्‍ट हुआ, तो 10 पुराने ग्राहक भी छूट जाऐंगे, इसलिए ग्राहक संतुष्‍टि महत्त्वपूर्ण है।

कम्‍पीटीशन प्रतिस्‍पर्धा के युग में अपने कम्‍पीटीटर्स उत्‍पाद के बारे में भी पूरी जानकारी रखें। उनके उत्‍पाद से आपका उत्‍पाद क्‍यों अच्‍छा है ? यह स्‍पष्‍ट ज्ञान होना आवश्‍यक है। शालीनता से बोलें, लाभ कमाने की, जीत प्राप्‍त करने की नीति रखें। हार नहीं मानें। प्रयास करें अपनी कौशलता बढ़ाने का, दक्षता बढ़ाने का, तभी एक अच्‍छा विके्रता संस्‍थान को अधिकतम लाभ दे पाएगा।

अच्‍छा विक्रेता बना रहने के लिए अनवरत प्रयास करते रहनेहोंगे। ग्राहक से फीडबेक लें। इस फीडबेक को संस्‍थान के प्रबंधन तक पहुंचाऐं, ताकि आवश्‍यक हो, तो उत्‍पाद की डिजाइन में सुधार किया जा सके। ग्राहक की सकारात्‍मक प्रतिक्रिया के साथ शिकायत, सुझाव, परेशानी सभी कुछ महत्‍वपूर्ण हैं। इन सभी पर ध्‍यान से चिंतन मनन कर स्‍वयं में एवं उत्‍पाद में आवश्‍यक सुधार-संशोधन करें। समय की अनुशासनता महत्त्वपूर्ण है। किसी स्‍थान पर किसी ग्राहक को कोई समय दिया हुआ है, तो समय प्रबंधन द्वारा इसे पूरा भी करें। अनावश्‍यक समय व्‍यर्थ नहीं करें। आपके साथ ग्राहक का समय भी मूल्‍यवान है। ग्राहक के समय को नष्‍ट करने का उसे इंतजार करवाने का सेल्‍सपर्सन को कोई अधिकार नहीं है। अपनी किट में सभी आवश्‍यक सामान हों, इसका ध्‍यान रखें। डिलीवरी पीरियड को निभाऐं। एक पुस्‍तक प्रकाशक वचन देता हे कि दो महीने में ही पुस्‍तक तैयार हो जाएगी, तो उसे तीन महीने की अपेक्षा डेढ़ महीने में ही पुस्‍तक लेखक को दे कर एक भरोसा विश्‍वास अर्जित करना चाहिए।

सेल्‍स लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखें। अवलोकन समीक्षा करते रहें। 15 दिन के लक्ष्‍य को 12 दिन में पूरा करने का प्रयास करें। प्रबंधन ने जितना लक्ष्‍य दिया है, उसे नियत सीमा से पहले ही पूरा करने की कोशिश करें। रिपोर्ट समय पर तैयार करें। कम्‍प्‍यूटर में सोफ्‍ट कापी के पास हार्ड कापी भी अनिवार्य है। सभी दस्‍तावज अपडेट हों। रिकार्ड सत्‍य हों। झूठे गलत रिकार्ड प्रस्‍तुत करने से उस समय बच सकते हैं, परन्‍तु बाद में परेशानी हो सकती है। जितना किया है, उतना ही रिकार्ड में लिखें। पहल स्‍वयं करें। प्रोएक्‍टिव बनेंं। उत्‍पाद से सम्‍बन्‍धित जानकारी को नवीनतम जानकारी हेतु पत्र-पत्रिकाऐं-पुस्‍तकें पढ़ते रहें। एक अच्‍छे विक्रेता में सामंजस्‍य, समाधान, सहयोग के गुण होंगे, तो सफलता मिलेगी ही। अच्‍छे सेल्‍स पर्सन में जितने अधिक गुण होंगे, वह उतनाही सफल होगा, संस्‍थान के प्रबंधन, ग्राहक सभी का विश्‍वास पात्र बनेगा। आत्‍म संतुष्‍टि मिलेगीएवं स्‍वयं भी सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाएगा। इति.-

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अच्‍छे सम्‍बन्‍ध (Relations Management )

मधुर सम्‍बन्‍ध, अच्‍छे सम्‍बन्‍ध हर व्‍यक्‍ति, परिवार, समाज, व्‍यापार, कार्यालय, संस्‍थान, संगठन की महती आवश्‍यकता हैं। सम्‍बन्‍ध अच्‍छे हों, तो हर कार्य हर क्षेत्रमें सकारात्‍मक परिणाम प्राप्‍त होते हैं। सम्‍बन्‍धहीन होते जा रहे आज के भौतिकतावादी युग में सम्‍बन्‍धों को जीवित और जीवन्‍त रखने की आवश्‍यकता महसूस की जा रही है।

आइए, अच्‍छे सम्‍बन्‍ध हेतु कुछ बिन्‍दुओं पर चर्चा करें-

उच्‍च अधिकारी हो या साधारण कर्मचारी अपना व्‍यक्‍तिगत बिजनेस कार्ड होना चाहिए, ताकि नई पहचान होने पर कार्ड दिया जा सके। कार्ड में संक्षिप्‍त में नाम, पद, संस्‍थान, मोबाइल, ई-मेल, निवास का पता इत्‍यादि संक्षिप्‍त जानकारी होनी चाहिए ताकि भविष्‍य में वह व्‍यक्‍ति आप से आसानी से सम्‍पर्क कर सके। परिवार, रिश्‍ते, समाज, मित्र, सखी सहेली, संस्‍थान के अधिकतम अपनों के जन्‍म दिन याद रखकर समय पर शुभकामना देने से सम्‍बन्‍धों में मधुरता आती है। जन्‍म दिन पर एक फोन, एस.एम.एस., ई-मेल, कार्ड, बुके, फूल, उपहार कुछ भी किसी प्रकार से बधाई देने से सम्‍बन्‍ध लम्‍बे समय तक जीवित रहते हैं। आमंत्रण एवं निमंत्रण को सम्‍मान देते हुए सभी पार्टी, भोज, पिकनिक, उत्‍सव, त्‍यौहार इत्‍यादि में सम्‍मिलित हों। स्‍वयं आगेबढ़कर परायों से परिचय कर उन्‍हें अपना बनाने की पहचानकरें। हर फोन का उत्‍तर, हर पत्र का उत्‍तर, हर ई-मेल का उत्‍तर देना एक शिष्‍टाचार है। किसी के यहां डिनर लिया है, किसी शहर में किसी मित्र, सम्‍बन्‍धी, रिश्‍तेदार के यहां रूके थे, तो लौटकर एक ‘‘धन्‍यवाद‘‘का फोन, पत्र, ई-मेल, एस.एम.एस. किसी भी रूप में देना आप के कद को ऊंचा भी करेगा एवं सम्‍बन्‍धों कोप्रगाढ़ बनाएगा। ‘धन्‍यवाद‘ शब्‍द जादू का कार्य करता है। डाक देने आए पोस्‍टमेन को, कोरियर लेकर आए लड़के को, घर में बरतन, पोंछा का काम करने वाली बाई को, इंजेक्‍शन लगाने वाली नर्स सिस्‍टर को, जीरोक्‍स/टाइप करने वाले साइबर कैफे के संचालक को, प्रेस के कपड़े लेकर आई आंटी को, व्‍यवहार में सम्‍पर्कमें आए किसी भी व्‍यक्‍ति को एक शब्‍द ‘‘धन्‍यवाद‘‘ का देकर देखिए, खुशी मिलेगी उसे और आपको एक संतुष्‍टि मिलेगी।

अच्‍छे सम्‍बन्‍ध बनाए रखने के लिए निरन्‍तरता एक परम आवश्‍यकता है। अस्‍पताल में कोई परिचित, रिश्‍तेदार, मित्र भरती है, तो मिलने जाइए, खाना लेकर जाइए, फल बिस्‍कुट लेकर जाइए, आवश्‍यक हो तो रोगी के पास कुछ समय रूकिए, रात्रि में स्‍पेशल वार्ड मेंरूकिए एवं रोगी के परिवार वालों को कुछ राहत दीजिए, ताकि वे घर जाकर आवश्‍यक कार्य कर सकें। विश्राम कर सकें। रोगी एवं उनके अटेन्‍डेट को बिन मांगे देशी, आयुर्वेदिक, होम्‍योपेथिक, झाड़-फूंक, नज़र उतारने, टोने-टोटके, देवी-देवता इत्‍यादि की सलाहें मत दीजिए। सलाह देने की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण है तन-मन-धन से यथाशक्‍ति सहायता करना, आवश्‍यक हो तो अपना रक्‍त देना, जीवन दान देना इत्‍यादि।

संवेदना प्रकट करते समय शांत संतुलित रहिए। दुःख में डूबे परिवार को दुःख से उबरने में सहायता करिए। सांत्‍वना पत्र लिखिए। आर्थिक, नैतिक मद्‌द कीजिए।टूटा हुआ परिवार आत्‍मनिर्भर बन सके, ऐसे उपाय, सहायता मार्गदर्शन सम्‍बन्‍धों को हमेशा जीवित रखेंगे। बड़े दिल वाला बनिए। शालीन सभ्‍य रहिए। समाज सेवा हेतु कुछ कीजिए। गरीब छात्र छात्राओं की शिक्षा हेतु फीस, भूखे को रोटी, शीत से कांपते हुए वृद्ध को कम्‍बल - किसी भी प्रकार, किसी भी रूप में सहायता के लिए आगे बने रहिए। वृद्धाश्रम में जाकर प्रति रविवार एक-दो घंटे बुजुर्गों की सेवा कीजिए। उनकी दवा दिलवा दीजिए। उनके लिए फल-मिठाई ले जाइए। उनके दुःख दर्द सुनिए। उन्‍हें आदर दीजिए, आशीर्वाद एवं दुआऐं लेकर आइए।

सम्‍बन्‍धों में मधुरता हेतु आवश्‍यक है कि कड़वा मत बोलिए। आरोप मत लगाइए, कटाक्ष मत कीजिए। मौन रहिए। कड़वा बोलने की अपेक्षा अधिक अच्‍छा है चुपरह जाना। एक चुप सौ को हरावे वाली कहावत को याद रखिए। अपनी व्‍यक्‍तिगत पहचान बनाइए। व्‍यक्‍ति आपके पद से आपसे व्‍यवहार कर औपचारिकता नहीं निभाऐं। परन्‍तु आप के अच्‍छे होने के गुणों के कारण प्‍यार, स्‍नेह, सम्‍मान दें।

अच्‍छे सम्‍बन्‍ध परिवार में शांति लाऐंगे, समाज में आपकी एक अच्‍छी पहचान बनेगी, संस्‍थान में सुखद वातावरण बनेगा, उत्‍पादकता में वृद्धि होगी, हर कदम पर हम स्‍थान पर खुशियां मिलेगी, अच्‍छे सम्‍बन्‍धों से रिश्‍तों में मीठे फल लगेंगे। इति.-

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परिवार को समय ( Family Management)

हर व्‍यक्‍ति अपने परिवार का एक महत्त्वपूर्ण सदस्‍य है। हम कितने भी उच्‍च पद पर आसीन अधिकारी, उद्योगपति, व्‍यवसायी, समाज, सेवक, स्‍वयं सेवी संगठन छळव्‍ के प्रभारी, कलाकार, साहित्‍यकार, राजनीतिज्ञ इत्‍यादि कुछ भी हों, परन्‍तु हम में से प्रत्‍येक अपने परिवार का भी अंग है एवं पद-व्‍यवसाय-कार्य के साथ परिवार को समय देना भी हमारी नैतिक व आवश्‍यक जिम्‍मेदारी है, कर्त्तव्‍य है, सुख की पार्टी में संस्‍थान समाज के चाहे हजारों व्‍यक्‍ति उपस्‍थित हो जाऐं पर दुःख, परेशानी, संकट, बीमारी में हमारे परिवार के स्‍वजन ही हमें सहायता, राहत, सेवा देते हैं। परिवार के लिए समय ही नहीं मिलता, थोडा सा समय मिलता है, वह क्‍वालिटी टाइम हो, ऐसा प्रयास करते हैं। इत्‍यादि वाक्‍यों का बहाना आज हर व्‍यक्‍ति बनाता हुआ मिल जाता है, पर परिवार को उचित समय, सहयोग, मार्गदर्शन देना उतना ही आवश्‍यक है, जितना एक सफल प्रशासक या उद्योगपति बनना। आइए, परिवार को समय किस प्रकार दिया जाए, इस पर कुछ चर्चा करें।

प्रोफेशनल ओर परिवार को मिश्रित नहीं करें। केरियर, प्रोफेशन, संस्‍थान, व्‍यवसाय का बटन/स्‍विच सायंकाल बन्‍द कर दें एवं शाम का पूरा समय परिवार को दें। बच्‍चों के साथ उनके स्‍कूल की गतिविधियों और उपलब्‍धियों पर चर्चा करें।होमवर्क की कापी देखें। गणित, विज्ञान, अंगे्रजी की कठिनाईयों को अपने ज्ञान के उपयोग से दूर करें। परिवार के साथ शापिंग करें। रात्रि भोजन डिनर परिवार के साथ लें, माता पिता साथ रह रहे हों, तो आधा घंटा उन्‍हें भी अवश्‍य दें। उनकी दवा एवं अन्‍य आवश्‍यकताओं को पूरा करें। उनकी रूचि के धार्मिक ग्रंथ में से एक-दो पृष्‍ठ उन्‍हें पढ़कर सुनाऐं। महत्तवपूर्ण है कि इस समय उनकी अधिक सुनें। अपनी कम कहें। जीवन साथी को समय दें। पारिवारिक उलझनों के समाधान जीवन साथी के साथ मिलकर खोजें। बच्‍चों के केरियर व अनुशासन सम्‍बन्‍धी चर्चा करें। महत्त्वपूर्ण चर्चा के समय मोबाइल को स्‍थित अॉफ कर दें, ताकि व्‍यवधान नहीं हो। सायंकाल प्रार्थना/पूजा परिवार के सभी सदस्‍य एक साथ मिलकर करें।

परिवार को उचित रूप से दिया हुआ समय आत्‍मसंतुष्‍टि देगा। परिवार का हर सदस्‍य मह त्तपूर्ण है। पत्‍नी/पति. बच्‍चों के साथ माता-पिता/सास-ससुर, भाई/देवर, बहन/ननद - हर सदस्‍य चाहता है कि उसे परिवार में उसका उचित स्‍थान, आदर, सम्‍मान, स्‍नेह-ममता, प्‍यार मिले। परिवार के सदस्‍यों के साथ पारदर्शिता आवश्‍यक है। गरिमा बनाए रखना भी आवश्‍यक है। अपशब्‍द व हल्‍के अपमान जनक शब्‍द नहीं बोलें, टेलीविजन, इन्‍टरनेट, फेसबुक, मोबाइल पर सीमित समय दें। परिवार के हर सदस्‍य को अपनी बात कहने या विचार प्रकट करने का अवसर दें। बच्‍चे मम्‍मी की अनुपस्‍थिति में पापा से या पापा की अनुपस्‍थिति में मम्‍मी से अनुचित फरमाइश्‍ों पूरी करवा कर ब्‍लेक-मेलिंग नही करें, हसके लिए पति पत्‍नी में संवाद होना आवश्‍यक है। हर सदस्‍य को अपना जीवन लक्ष्‍य लिखने के लिए प्रेरित करें।

अवकाश व रविवार के दिन की योजना बनाइए, अवकाश का पूरा दिन परिवार के लिए रखिए। प्रोफेशनल मीटिंग उस दिन नहीं रखें। परिवार के साथअंतरंगता व सामंजस्‍य से आपको संतुष्‍टि मिलेगी व प्रोफेशनल कार्य के लिए ऊर्जा भी मिलेगी। परिवार में सबसे बुजुर्ग व्‍यक्‍ति से लेकर सबसे छोटे बच्‍चे तक हर सदस्‍य का जन्‍म दिन मनाया जाना चाहिए, लम्‍बी चौडी पार्टी की आवश्‍यकता नहीं, पर कुछ अलग हटकर। चाहे घर में पूजा हो या स्‍कूल/आश्रममें कुछ आर्थिक सहायता इत्‍यादि करनी हो, चाहे रक्‍त दान करें या अन्‍न दान, पर परिवार के हर सदस्‍य का जन्‍म दिन अवश्‍य मनाइए। इन सूत्रों में कुछ सूत्र स्‍वयं भी जोड़िए। परिवार कोगुणवत्‍ता पूर्ण तरीके से दिया समय आपको आत्‍म सुतुष्‍टि देगा, ऊर्जा देगा, कार्य में उत्‍पादकता बढ़ाएगा, शिकवा शिकायतें कम होंगी एवं परिवार में घुटन तनाव नहीं होगा, एक खुशनुमा माहौल होगा। परिवार को समय दीजिए, आवश्‍यकता पडने पर परिवार भी आप को समय देगा। इति. -

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प्रारब्‍ध (Destiny Management)

प्रारब्‍ध कर्मों से बनता है, भाग्‍य से नहीं। प्रारब्‍ध विधाता या प्रकृति की भी देन कहा जाता है। हम अधिकांशतः रोना रोते रहते हैं अपनी फूटी किस्‍मत का। लक, भाग्‍य, किस्‍मत इन शब्‍दों को हम पूरे दिन में अक्‍सर अपनी कमजोरी, मजबूरी, कमी को छुपाने या अस्‍वीकार करने के लिए कई बार बोलते रहते हैं। पर निश्‍चय ही हमारी सोच, प्रकृति, संस्‍कार, अनुशासन एवं सत्‍कर्म मिलकर ही हमारा प्रारब्‍ध बनाते हैं। एक अच्‍छे प्रारब्‍ध हेतु कुछ सूचों पर विचार करें।

अपने व्‍यक्‍तिगत लक्ष्‍य को डायरी में लिखिए जैसे - मैं अपनी शिक्षा के स्‍तर में वृद्धि करूंगा, अनावश्‍यक सामान को बेच दूंगा या दान में दे दूंगा, आय का एक प्रतिशत गरीब छात्र-छात्राओं की शिक्षा हेतु सहायता दूंगा, गुटखा/तम्‍बाकू/शराब का सेवन नहींकरूंगा, बेटी हूँतो भी अपने विधुर पिता को विवाह के पश्‍चात भी साथ रखकर सेवा करूंगी।, अच्‍छा काम नहींभी हो तो कम से कम बुरा काम नहीं करूंगी। अपनी व्‍यक्‍तिगत लाइबे्ररी में प्रतिमाह एक प्रस्‍तक जोडूंगीइत्‍यादि। लक्ष्‍य छोटा या हो बड़ा, यह अर्थ नहीं रखता। मैं स्‍कूल में एक कमरा नहीं बनवा सकता, पर 100 रू. प्रतिमाह एक गुल्‍लक में अलग से डालकर हर साल एक कमरे के लिए एक सीलिंग फेन तो गर्मी में हवा के लिए दे ही सकता हू ँ। जो भी लक्ष्‍य लिखें, समय समय पर उसे पढ़ते रहें व कोशिश करें जो लिखाहै, वह किया भी हैं।

इसी प्रकार अपने प्रोफेशन, परिवार व समाज सेवा हेतु लक्ष्‍य भी लिखें। कार्यालय में रिश्‍वत नहीं लूंगा, परिवार का कोई भी सदस्‍य नशा नहीं करेगा, गर्मी में शीतल पानी की प्‍याऊ के लिए एक मटका दान करूंगा इत्‍यादि। सकारात्‍मक सोच रखकर सद्‌राह पर चलेंगे, तो लक्ष्‍य निश्‍चय ही पूरे होते चले जाऐंगे। जब जीवन में छोटे छोटे लक्ष्‍य पूरे होकर सार्थक परिणाम सामनेआने लगते हैं, तो स्‍वतः ही बडे़ बडे़ लक्ष्‍य बनने व पूरे होने लग जाते हैं। स्‍कूलों में पांच वर्ष पूर्व पेन पेन्‍सिल कापी बांटते बांटते अब मैं सीलिंग फेन सहायताथ र् देने लग गया हूँ। जो हम सोचते हें, वही हम होते हैं।

नकारात्‍मक सोच वालों का साथ छोड़ना होगा। मोबाइल व ई-मेल के इन बाक्‍स के हर फालतू संदेश को पढ़कर अपना समय व दिमाग खराब करने की कोई आवश्‍यकता नहीं हैं। प्रारम्‍भ के लिए दो चार शब्‍द या एक दो वाक्‍य ही बतला देंगे कि इसे पूरा पढ़ना है या डिलीट कर देना है। दुश्‍मनी पालने की आवश्‍यकता नहीं, शालीनता से हम सामने वाले से क्षमा मांगते हुए गलत व्‍यक्‍ति के फोन काट सकते हैं, बातचीत को जल्‍दी समाप्‍त कर सकते हैं। अति आवश्‍यक कार्य के लिए घर भी जाना हो, तो कम से कम समय में अपना निर्धारित कार्य पूरा कर समय, शक्‍ति, ऊर्जा बचा सकते हैं।

भेड़ चाल में मत रहिए। अपनी रूचि, प्रकृति, स्‍वभाव, संसाधन, क्षमता अनुसार ही राह चुनिए। लीक पर मत चलिए। अपनी राह स्‍वयं बनाइए। घबराइए मत, सफलता चमत्‍कार नहीं होती। सफलता के लिए बटन दबाने वाली लिफ्‍ट नहीं होती, एक एक कर सीढ़िया चढ़नी होती हैं। अपनी व्‍यक्‍तिगत पहचान के लिए अच्‍छे कर्म निरन्‍तर करते रहना होगा।

आत्‍मविश्‍वास बनाए रखिए। स्‍वयं पर संदेह मत कीजिए। योग, प्राणायाम, ध्‍यान मानसिक ऊर्जा देंगे, साथ ही व्‍यायाम व भ्रमण शारिरिक शक्‍ति देंगे। दीपक से सीखिए, वह भी अंधेरा दूर करता है। आशा रखिए,निराश मत होइए। अमावस्‍या को टाला नहीं जा सक्‍ता, पर हर माह पूर्णिमा भी तो आती है ही। नेक इरादे हों, सही मार्गदर्शन हो, तो मंजिल लो मिलगी ही। भटकने से बचेगे। सबसे लम्‍बी यात्रा के लिए पहला कदम तो उठाना ही होगा। हाथों की लकीरोंको मत कोसिए। किस्‍मत उनकी भी होती है, जिनके हाथ ही नहीं होते हैं। अच्‍छा प्रारब्‍ध हमारे अपने हाथ में है। अपने जीवन का ‘रिमोट‘ अपने हाथ मेंरखिए। काई नया काम नहीं आता है, तो पूछने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिएं पर चलना तो स्‍वयं ही होगाना।

किस्‍मत शब्‍द को भूल जाइए। सकारात्‍मक सोच रखिए। आपसफल भी होंगे, सार्थक भी होंगे, अच्‍छे बनिए, बड़े नहीं। हर बड़ा व्‍यकित अच्‍छा नहीं होता पर हर अच्‍छा व्‍यकित अच्‍छा होता है। सत्‍मार्ग, सज्‍जनता, सत्‍पुरूष होना ये एक ही त्रिभुज की तीन भुजाऐं हैं, किस्‍मत भूल जाइए, प्रारब्‍ध स्‍वयं बनाइए। इति. –

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तनाव प्रबंधन (Stress Management)

तनाव यानी टेंशन आज आम शब्‍द है। हम, आप, मैं सभी इस वाक्‍य को दिन भर में अनेकों बार दोहराते हैं कि ‘‘टाइम बिल्‍कुल नहीं है और टेंशन बहुत है।‘‘ आज हर व्‍यक्‍ति स्‍ट्रेस में है, दबाव में है, प्रेशर में है, टेंशन में है, तनावग्रस्‍त है। हर तीसरा व्‍यक्‍ति कम चीनी की चाय पीता है, क्‍योंकि उसे शूगर है। हर दूसरा व्‍यक्‍ति नाश्‍ते के साथ ब्‍लड प्रेशर कम करने के लिएगोली खाता है। अधिकांश व्‍यक्‍ति नींद की गोली खाकर सोने की कोशिश करते हैं, तनाव के कारण हम तन-मन से रोगी होते चले जाते हैं और जब डॉक्‍टर की शरण में जाते हैं, तो वह हमारा धन भी चूस कर हमें अधिक रोगी, तनावग्रस्‍त बना देता है। तनाव को कम करने के कुछ बिन्‍दुओं पर विचार करें।

घर-परिवार, रिश्‍ते-मित्र, समाज-संस्‍थान में जब हमारे मन का नहीं हो पाता है, तो हम तनाव में आ जाते हैं। सामने वाले को बदला नहीं जा सकता, वह जैसाहै, उसे वैसा ही स्‍वीकार करना होगा, हम जुड़ कर रह सकते हैं या फिर अपनी राह अलग चुन सकते हैं। माता, पिता, भाई, बहन नहीं बदले जा सकते उन्‍हें स्‍वीकार करना ही होगा। जीवन साथी, मित्र, सखी, सहेली का चुनाव हम कर सकते हैं। जीवन साथी का चुनाव एक बार ही किया जा सकता है। बारबार जीवन साथी बदलना तनाव को कम करने की अपेक्षा बढ़ाएगा ही। टकराव के स्‍थान पर समझौता ही एक मात्र समाधान होता है। मित्र बदले जा सकते हैं। छोड़े जा सकते हैं। नए बनाए जा सकते हैं। रिश्‍तों में पास-दूरी का निर्णय भी लिया जा सकता है, पर कई बार पारिवारिक दायित्‍व के कारण कुछ रिश्‍तों को ढोना होता ही है। लोग क्‍या कहेंगे, बुरा मानेंगे से डर कर रिश्‍तों को निभाते चले जाना होता है। नकारात्‍मक तनाव से बचने व कम करने के लिए हमें सामने वाले को स्‍वीकारते हुए स्‍वयं को समझाना होगा। जिस प्रकार, सामने वाला व्‍यक्‍ति हमें निभा रहा है, हमें भी उसे निभाना होगा। कड़वा सच है कि हम स्‍वयं ही सर्वगुण सम्‍पन्‍न नहीं हैं। फिर सामने वाले का एक दुगुर्ण भी बुरा क्‍यों लगता है? इस सत्‍य को समझ लेंगे, तो तनाव कम हो जाएगा। जीवन अपनी शर्तों से भी नहीं जिया जा सकता। ईश्‍वर, प्रकृति, समाज, परिवार, संस्‍थान को स्‍वीकारते हुए सामंजस्‍य, समझौता करना ही होता है। कोई विकल्‍प भी तो नहीं है, इसके अतिरिक्‍त।

आप कहेंगे कि उपदेश देना सरल है, जिस पर बीतती है, वही समझता है। मैं भी तनावग्रस्‍त हो जाता हूँ । ईश्‍वर के आगे रो लेता हूँ । एक कागज पर समस्‍या लिखकर पूजा स्‍थल पर रख आता हूँया गुप्‍त समस्‍या हो तो कागज फाड़ कर रद्‌दी की टोकरी में डाल आता हूँ । खुली हवा में घूमने निकल जाता हूँ, किसी मित्र के यहां चाय पीने चला जाता हूँ । किसी बहुत अपने से बात कर लेता हूँफोन पर। पत्र लिखता हूँ, तनाव में हों तो मित्रों से बात कर लीजिए। 50 प्रतिशत तनाव वे आपका कम कर देते हैं।

भरोसा, विश्‍वास अभी भी जीवन्‍त है। प्रेम विवाह को छोड़कर सामान्‍य विवाह में एक स्‍त्री एक अनजान पुरूष के साथ पूरे जीवन भर के लिए चल देती है। भरोसे, विश्‍वास के कारण ही। प्राणायाम, योग, ध्‍यान, भ्रमण, पूजा, इबारत से तनाव कम होता है। मां/मम्‍मी सर्वश्रेष्‍ठ फ्रेंड होती है। मां/मम्‍मी नहीं है, तो जो भी आपके जीवन में वह रोल कर रहा है, वही आपका सर्वक्षेष्‍ठ मित्र है, सर्वोत्तम सहेली है, उससे मन खोल दीजिए, घुटिए मत, रो लीजिए, रोने से मन हल्‍का हो जाएगा, वह जो भी समाधान बतलाए उसे स्‍वीकारिए। विश्‍वास रखिए मां की भूमिका निभाने वाला व्‍यक्‍ति कभी भी आपका बुरा नहीं चाहेगा। इस संसार में सबके दोनों हाथ भरे नहीं रहते, पर दोनों हाथ खाली भी नहीं रहते। ईश्‍वर/प्रकृति जो भी करते हैं, वह हमारे अच्‍छे के लिएही होता है। गलत राह पर भटकने से बचाने के लिए ईश्‍वर हमें दर्द तकलीफ परेशानी भी देता है।

अपने मन का हो तो अच्‍छा नही हो, तो भी अच्‍छा, क्‍योंकि वह ईश्‍वर के मन का होता है एवं वह कभी हमारा बुरा नहीं चाहता। ईश्‍वर हर प्रार्थना का उत्तर देता है, कई बार वह उत्तर ‘‘नहीं‘‘ होता है। सकारात्‍मक सोच तनाव को कम करती है। गिलास में 50 प्रतिशत पानी को आधा भरा कहना/मानना ही तनाव को 50 प्रतिशत कम कर देगा। अमावस्‍या सत्‍य है, पर पूर्णिमा भी हर माह आती है। हर काली रात के बाद सुहानी भोर का सूरज आशा लेकर आता है।

तनाव को कम करने के प्रयास स्‍वयं ही करने होंगे। डॉक्‍टर सलाह दे सकता है, दवाई दे सकता है, पर तनाव कम करने के लिए व्‍यक्‍ति स्‍वयं ही सबसे अच्‍छा डॉक्‍टर है। प्रयास करिए तनाव स्‍वयं कम करने का, या फिर मुझे सुनाइए अपना तनाव। इति. -

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सृजन ( Creativity Management )

सृजन प्रकृति का नियम है। पृथ्‍वी पर जन्‍मा हर शिशु विधाता का सृजन है एवं एक विश्‍वास है कि ईश्‍वर अभी भी मनुष्‍य से निराश नहीं हुआ है। हर व्‍यक्‍ति में सृजनशीलता के गुण होते हैं। मात्र कहानी, कविता, उपन्‍यास लिखने वाला या पेंटिंग चित्र बनाने वालाव्‍यक्‍ति ही नहीं, हर इन्‍सान में सृजनता होती है। सृजन का अर्थ है नई नई चीजें सोचकर उन्‍हें उचितआकार देना। यथा, एक चित्रकार चित्र बनाता है, एक कवि कविता लिखता है, एक नाटककार नाटक लिखता है, एक छोटी बच्‍ची जीवन में पहली रोटी बनाती है। प्रतिभा जन्‍मजात होती है एवं प्रशिक्षण इत्‍यादि से भी प्रतिभा बनाई जा सकती है, संवारी जा सकती है।

आइए, सृजन पर कुछ मंथन करें।

परिवार, समाज, संस्‍थान के हर व्‍यक्‍ति में सृजनता होतीहै। बच्‍चों को डांट कर चुप करा दिया जाता है, कर्मचारी को लगता है कि अधिकारी ही सही है,जीवनसाथी को मूर्ख समझा जाता है, ऐसे में प्रतिभा कुंठित हो कर रह जाती है। संस्‍थान के कर्मचारी के पास कम समय में अच्‍छा काम करने के कई विचार होते हैं। नई पीढ़ी के पास नए विचार होते हैं। अनुभवी व्‍यक्‍ति के जीवन भर के अनुभव होते हैं। संस्‍थान में एक सुझाव पेटिका होनी चाहिए, जिसमें कर्मचारी लिखित में अपने विचार प्रकट कर सकें, परिवार में समस्‍या के समाधान हेतु बहू या कॉलेज में पढ़ने वाले बेटे-बेटी से भी विचार आमंचित कर मंथन कर सार्थक समाधान निकालने का प्रयास किया जाना चाहिए। परिवर्त्तनशील संसार में सृजनता के विचार हमें प्रतिस्‍पर्धा हेतु अनिवार्य हैं, जिन्‍हें नकारा नहीं जा सकता। ध्‍यान, प्राणायाम से सृजनशक्‍ति में वृद्धि की जा सकती है। प्रशिक्षण, सत्‍संग, अच्‍छी पुस्‍तकोंका अध्‍ययन। विद्धानों से वार्त्ता इत्‍यादि कई माध्‍यमों द्वारा सृजनता के गुणों का विकास किया जा सकता है। पहेली सुलझाना, आखें बन्‍द कर मौन रह कर चिन्‍तन करना, डायरी लिखना इत्‍यादि कई ऐसे नुस्‍खेंहैं, जिनसे व्‍यक्‍ति अपनी कल्‍पनाशीलता एवं सृजनशक्‍ति बढ़ा सकता है। सृजनता प्रकृति का मनुष्‍य को विलक्षण उपहार है।

सृजन हेतु विचारों को लिखते चलिए, बाद में इन विचारों पर चिन्‍तन कर सकते हैं, एक गृहिणी नई रेसिपी/डिश हेतु सामग्री एवं विधि एक कागज पर लिख सकती है, एक लेखिका नए विषयों की सूची बना सकती है, एक गृहिणी रसोई गैस, बिजली, पानी की बचत हेतु उपाय लिख सकती है, अंग्रेजी सुधारने हेतु प्रतिदिन एक नए विषय एक पृष्‍ठ लिखने हेतु सूची बनाई जा सकती है, उत्‍पादकता में वृद्धि हेतु सुझाव, दुर्घटनाऐं कम करने हेतु उपाय, रोगी को निरोग हेतु नए सुझाव, सब कुछ सृजनता की परिभाषा में आता है। लिखने के पश्‍चात्‌ स्‍वयं या मिल-जुल कर या मीटिंग में इन पर मंथन कर उपयोगी विचारों एवं सुझावों को कार्याविन्‍त करने की योजना बनाई जा सकती है।

सृजनता से वातावरण में सुख, शांति, संतोष की शीतल वायु चलती है। सृजनता को दबाने से कई समस्‍याऐं व परेशानियां पैदा हो सकती हैं। बच्‍ची की ड्राइंग में रूचि है, पर मम्‍मी पापा उसे इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं। ऐसे वातावरण में घुटन, तनाव, कलेश की गर्म हवा चलती है। सृजनता को विकसित करने के अवसर देने आवश्‍यक हैं, परिवार में हो या संस्‍थान में, अधिकांशत बड़ो को यह अहं घमंड अभिमान होता है कि वे ही सब कुछ जानते हैं एवं छोटों को मुंह बन्‍द रखने की नसीहत देते हैं। यह नकारात्‍मकता परिवार व संस्‍थान के लिए हितकारी नहीं होती, इसलिए सृजनता को उचित वातावरण संसाधन व मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए ताकि परिवार मेंखुशनुमा वातावरण रहे एवं संस्‍थान में उत्‍पादकता बढ़े।

प्रकृति को निहारिए। फूल खिलता है, सूर्योदय होता है, चन्‍द्रोदय होता है, नदी बहती है, एक दो बारिश में ही पहाड़ियां हरी हो जाती हैं। पूर्णमासीपर चन्‍द्रमा सम्‍पूर्णता में रहता है, गर्मी की रात में शीतल मन्‍द हवा, बारिश से तपन की मुक्‍ति, मिट्‌टी की सोधी, गन्‍ध सब कुछ प्रकृति कि निरन्‍तर सृजनशीलता के शाश्‍वत उदाहरण हैं। मन से, समर्पण से किया गया काम सृजन ही होता है। अनेकों पुस्‍तकें अलमारी में धूल खाती हैं। एक रचना लेखक को अमर कर देती है। स्‍वादिष्‍ट सुस्‍वादु सब्‍जी गृहिणी की सृजनता का ही परिणाम होती है।

आइए सृजन कीजिए, किसी भी क्षेत्र में, हार मत मानिए, विचारों को कार्यान्‍वित कीजिए। सृजनता से आत्‍मसंतुष्‍टि के मीठे फल मिलेंगे। इति. –

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जीवन प्रबंधन ( Life Management )

जीवन कला है, विज्ञान है, ज्ञान है, प्रबंधन है या कुछ और, यह तर्क या बहस का विषय नहीं है। हम इस संसार में ईश्‍वर या प्रकृति द्वारा एक निश्‍चित समय के लिए भेजे गए हैं। इस नश्‍वर संसार में हमारे आने का समय भी निश्‍चित था, जो हमें ज्ञात हो गया है एवं हम में से अधिकांश हर वर्ष उस दिन को धूम धाम से पार्टी कर, केक काट कर, मिठाई खिलाकर, चाकलेट पेन बांटकर, गिफ्‍ट लेकर, फोटों खींच कर मनाते रहते हैं। हमारे जाने का समय भी निश्‍चित है, जो हमें ज्ञात नहीं है। हम जितने भी वर्ष इस पृथ्‍वी पर रहें, चाहे वह 100 वर्ष का पूर्ण जीवन हो या 10-20-40-60-80 वर्ष का अपूर्ण जीवन, पर हम जीवन को सार्थक बनाऐं, सत्‍कार्य करें, एक अच्‍छी निशानी छोड़ कर जाऐं, हंसते हुए जाऐं तभी जीवन की सार्थकता है।

आइए जीवन प्रबंधन हेतु कुछ बिन्‍दुओं पर चर्चा करें।

जीवन में हमें हर अवस्‍था में कुछ कर्म करते रहने होंगे, बचपन में स्‍कूल की पढाई, फिर उच्‍च शिक्षा, नौकरी, व्‍यवसाय, आत्‍मनिर्भर बनना, स्‍वयं व परिवार पालन के लिए धन कमाना, विवाह, संतानोत्‍पत्ति, संतान का लालन-पालन-शिक्षा, उनके प्रति कर्त्तव्‍य जिम्‍मेदारी, वृद्‌ध माता पिता की सेवा, समाज में व्‍यावहारिकता, रिश्‍तेदारी निभाना, स्‍वयं की वृद्‌धावस्‍था के लिए योजना बनाना, फिर समय पूरा होने पर शांति से मृत्‍यु को स्‍वीकारते हुए चले जाना।परिवार-समाज-रिश्‍ते-मित्र-सहेली-संस्‍थान के सहकर्मियों से सहयोग मिले बिना हम अच्‍छी प्रकार से कर्त्तव्‍य पालन नहीं कर पाते। विषम परिस्‍थिति में एकला चलो रे को चरितार्थ करते हुए अकेले भी बहुत कुछ करना होता है। विधवा मां सिलाई कर बच्‍चों को शिक्षा देती है। विधुर पिता कच्‍ची, पक्‍की रोटी सेककर बच्‍चों का टिफिन तैयार करता है, बहन नहीं होने पर पड़ोस की लड़की कलाई पर पवित्र राखी का धागा बांध जाती है, भाई नहीं होने पर पिता को ही वर्ष में दो दिन राखी भाईदूज के लिए भाई बनालिया जाता है। विधवा बहू का पुनविर्वाह कर सास-ससुर कन्‍यादान कर देते हैं, अनाथ छात्रा की फीस के लिए ईश्‍वर किसी को भामाशाह की प्रेरणा देता है इत्‍यादि अनेकों आवश्‍यक कर्तव्‍य जीवन में अकेले ही निभाने पड़ जाते हैं।

चरित्र, स्‍वास्‍थ्‍य एंव शिक्षा से जीवन-प्रबन्‍धन सरल हो जाताहै। सत्‍चरित्र होना, स्‍वस्‍थ रहना एवं आत्‍मनिर्भरता हेतु शिक्षा-योग्‍यता-दक्षता प्राप्‍त करने सेही जीवन यापन भी सुगमता से होगा एंव जीवन की हर परिस्‍थिति में ये तीनों ही सहायक सिद्व होंगे। जीवन के खेल में हम जीतें या हारें यह प्रश्‍न नहीं है। आवश्‍यक है कि जीवन का खेल खेलते रहना, चलते रहना, रुकना नहीं, कर्म करते रहना। आप कहेंगें कि उपदेश देना आसान है पर विकल्‍प भी तो नहीं हैं। अच्‍छे कर्म करते रहने का संकल्‍प ही एक मात्र विकल्‍प है योजना बनाकर कार्यवाही करनीहोगी। योजना एवं कार्यवाही में अंतर की समीक्षा करते हुए पुनः योजना बनानी होगी। मैं आपको संजीवनी नहीें दे सकता। फिर भी आप अपनी समस्‍याऐं मुझ से 09461591498 पर बात करके श्‍ोयर कर सकते हैं। कहने से ही दुख कुछ कम हो जाता है, कुछ समस्‍याओं को स्‍वीकार करना ही होता है। पर समाधान का प्रयास तो एक बार करना ही चाहिए। जीवन एक चुनौती है फिर भी विश्‍वास, आस्‍था, श्रद्वा से जीवन की पहेली सुलझाई जा सकती है। अच्‍छे बने रहें। बुराई से बचें, ईश्‍वर पर भरोसारखें। अपनी पारी में हम चाहे शतक नहीं बना पायें, पर निश्‍चित ही शून्‍य पर भी आउट नहीं होंगे। चौके-छक्‍के न सही जीवन के खेल में हम कुछ रन तो बना सकते हैं ही।

भृष्‍टाचार, मिलावट, बेईमानी, बलात्‍कार, अनुशासन हीनता के इस युग में कुछ एक व्‍यक्‍ति आपको अभी भी सदाचारी, ईमानदार, अनुशासन प्रिय मिल जायेंगें। पुरस्‍कार, सम्‍मान, नारियल, शाल, स्‍मृति चिन्‍ह, गिफ्‍ट से अधिक मूल्‍यवान है प्रेम, स्‍नेह, प्‍यार, ममता, परोपकार, सदाचार ये अनमोल हैं। पुरस्‍कार मिलते समय हाल में बजती तालियां बन्‍द हो जाती हैंंं। पर किसी रचना पर किसी आत्‍मीय बहन, बेटी, भाई की पोस्‍टकार्ड पर प्रतिक्रिया-आर्शीवाद आज भी, कभी भी, जब भी वे पोस्‍टकार्ड पढता हूँ आखों में आंसू ला देता है, जीवन में विश्‍वास के भरोसे को आशाविन्‍वत कर देता है।

आइए जीवन के आधे भरे गिलास को मात्र पूरा भरने काही प्रयास नहीं करें। उसे छलकाऐं भी सही। तभी जीवन-प्रबन्‍धन सार्थक होगा इति ः-

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अध्‍यात्‍म (Spiritual Management )

जीवन की भाग दौड़, अस्‍त-व्‍यस्‍तता, तनाव, बीमारी, दुःख-परेशानी, आंधी-तूफान, समस्‍या-संकट के समय अध्‍यात्‍म शक्‍ति, साहस, ऊर्जा देता है, गलत रास्‍ते पर चलने से रोकता है, अंधेरे में रोशनी करता है, मार्गदर्शन देता है, उत्‍साह वर्धन करता है, टूटने बिखरने की स्‍थिति से बचाता है, अवसाद डिप्रेशन से उबारता है, रामबाण अचूक औषधि का कार्य करता है।

आइए, अध्‍यात्‍म-प्रबंधन हेतु कुछ बिन्‍दुओं पर विचार करें।

प्रतिदिन 10 मिनिट कोई भी अध्‍यात्‍मिक पुस्‍तक अवश्‍य पढ़िए। परिवार की परम्‍परा, संस्‍कार, धर्म के अनुसार गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल, गुरूग्रंथ साहब इत्‍यादि कुछ भी ईश्‍वर को समर्पित कर पढ़ना सबसे प्रभावशाली दवा है। अनेकों परिवारों में प्रातः स्‍नान के पश्‍चात्‌ पूजा करके ही नाश्‍ता किया जाता है, सायंकाल भी परिवार के सदस्‍य मिलकर आरती करते हैं, याद करें मां तुलसी के पौधे को जल चढ़ाती, दीपक जलाती, चुन्‍नी ओढ़ाती। याद करें, पिता को सूर्य को अर्ध्‍य देते हुए, भाभी को तुलसी की 108 परिक्रमा करते हुए, मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ, शनिवार को सुन्‍दरकान्‍ड का पाठ, सोमवार को शिवजी को दूध चढ़ाना, मन्‍दिर के द्वार खुले हों, फिर भी घंटा बजाना, व्रत, उपवास, त्‍यौहार, पूर्णिमा को सत्‍य नारायण कीकथा, पंचामृत, आरती बहुत परम्‍पराऐं छूट गई हैं। कुछ आज भी निभाई जा रही हैं। वर्त्तमान पीढ़ी इन्‍हें आडम्‍बर, ढ़ोंग, पाखण्‍ड नाम देती है, पर जो व्‍यक्‍ति इन्‍हें अभी भी निभा रहे हैं, उनके चेहरे पर आत्‍म-विश्‍वास, मुखमंडल पर तेज, संकट में संतुलन, ईश्‍वर पर भरोसा, दवा से अधिक दुआ पर विश्‍वास, स्‍थिति को स्‍वीकारने की हिम्‍मत, कर्म करते रहने का संकल्‍प इत्‍यादि इन्‍हीं परम्‍पराओं के कारण ही होता है। नकारात्‍मक सुझाव उन्‍हें प्रभावित नहीं करते, बस वे परम्‍पराऐं निभाते जा रहे हैं, शक्‍ति, उत्‍साह, धैर्य के लिए एक नियम अनुशासन के तहत, बूढ़ी दादी नानी ‘योगा‘ नहीं जानती पर उनकी परम्‍पराऐं उन्‍हें इतनी अधिक ऊर्जावान रखती हैं, जितनी हमें योग, शिविर से नहीं मिल पा रही, इसलिए परिवार की परम्‍पराओं के वैज्ञानिक पहलू पर तर्क नहीं करते हुए श्रद्‌धा, विश्‍वास, भरोसा, आशीर्वाद, स्‍नेह, प्‍यार, प्रेम को सुखद वातावरण बनाए रखने हेतु, जितना भी संभव हो इनका पालन करने का प्रयास कीजिए।

देना सीखिए, ज्ञान बांटिए, रक्‍त दान करिए, गरीब छात्र-छात्रा की फीस स्‍टेशनरी हेतु दीजिए, स्‍कूलों में सुविधाऐं हेतु पंखे, पीने के पानी की सुविधा इत्‍यादि जितना भी आर्थिक दृष्‍टि से सम्‍भव हो, करिए, स्‍कूल में, विश्‍ोषकर गांव के सरकारी स्‍कूल में, एक अल्‍प सहायता भी प्रभावशाली व सार्थक होगी। संकल्‍प करिए कि आपे जन्‍म दिन या नव वर्ष के दिन या किसी भी दिन वर्ष में एक बार एक सरकारी स्‍कूल जाकर निर्धन छात्र-छात्राओं हेतु पत्रं पुष्‍पं सहायता करेंगे।

प्रति वर्ष एक पौधा लगाइए, पर्यावरण की रक्षा कीजिए। चिड़ियों को रोटी खिलाइए, कबूतरों को अनाज खिलाइए, 10 से 15 मिनिट मौन रहिए, पास के अस्‍पताल में इनडोर वार्ड में प्रति सप्‍ताह जाकर मरीजों को फल-बिस्‍कुट देकर आइए, प्रति सप्‍ताह वृद्‌धाश्रम जाइए, बुजुगोंर् के लिए फल लेकर जाइए। घर में काम करने वाली बाई के बच्‍चे को रविवार के दिन घर पर बुलाकर अंग्रेजी या गणित पढ़ाइए। अपने जन्‍म दिन पर काम करने वाली बाई को 51-101 रू श्रद्‌धानुसार दीजिए, उसे भी शाम केा केक खाने के लिए बुलाइए। बाई अपने बच्‍चे के जन्‍म दिन पर आप को घर बुला रही है, तो सारे आवश्‍यक कार्य छोड़कर भी उसके घर जाइए। जनरल मेनेजर के बच्‍चों के बर्थ डे पर तो हम हाथ जोडे़ हुए 1000-500 रू. की मंहगी गिफ्‍ट लेकर जाते हैं। बाई के बच्‍चे केा 100 रू. भी देगें,तो आंखें भर आऐंगी उसकी भी व आपकी भी। अध्‍यात्‍म मात्र पूजा-प्रार्थना-इबादत सिजदा की सीमा तक हीनहीं है। हर एक अच्‍छा काम अध्‍यात्‍म है। आध्‍यात्‍मिक शक्‍ति एक अनमोल पूंजी है। अवसर हैं, बस मन चाहिए करने को 10000 रू. मासिक वेतन में से 100 रू. प्रतिमाह भी गरीबों की सहायता हेतु देने से हमारे पास फिर भी 9900 रू. बचे रहते है, 100 रू. गरीब पर खर्च कर हम उस पर एहसास नहीं कर रहें, परन्‍तु इसमें हमारा ही स्‍वार्थ है। इससे हमारा ही भला होगा। गीत गाइए, मीडिया को बताइए ताकि समाज केअन्‍य व्‍यक्‍ति भी इन नेक कार्यों हेतु आगे आए। गुप्‍त दान के चक्‍कर में मत रहिए। समाज को अपने अच्‍छे कर्म बतलाइए, पता नहीं किस को आप से प्रेरणा मिल जाए।

अच्‍छे अध्‍यात्‍म-प्रबंधन हेतु इनके अतिरिक्‍त भी बहुत कुछकिया जा सकता है, करिए, अच्‍छा लगेगा स्‍वयं को ही। इति. -

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टीम वर्क (Team Management)

हर परिवार एक टीम है। हर संस्‍थान एक टीम है। हर संस्‍थान में अनेक संभाग-विभाग एक टीम का रूप होते हैं। किसी विश्‍ोष कार्य हेतु टीम का गठन किया जाता है। किसी भी सेमीनार, कान्‍फ्रेन्‍स, प्रोजेक्‍ट, घर में, शादी-विवाह, कई सामाजिक कार्यों, हर जगह टीम बनाई जाती है। हर खेल में एक टीम होती है। कैप्‍टन होता है। टीम लीडर होता है। टीम मेम्‍बर होते हैं। टीम एक साथ अपने लक्ष्‍य के लिये कार्य करे-यह महत्‍वपूर्ण है। टीम का लक्ष्‍य होता हैै। निर्धारित समय अवधि होती है। लक्ष्‍य की प्राप्‍ति पर श्रेय टीम लीडर लेता है या टीम मेम्‍बर को भी बाँटता है, ऐसे कई प्रश्‍न टीम के समक्ष होते हैं।

आइये, एक अच्‍छे टीम वर्क हेतु कुछ चर्चा करें।

टीम के हर सदस्‍य को दूसरे सदस्‍य की भावनाओं, ज्ञान, अनुभव का सम्‍मान करना चाहिये। टीम का लक्ष्‍य व्‍यक्‍तिगत नहीं होना चाहिये। हमारे देश में अक्‍सर यह प्रश्‍न उठता है कि हम व्‍यक्‍तिगत उपलब्‍धियों, स्‍वार्थों, हितों में इतने अधिक उलझे रहते हैं कि टीम को उचित महत्‍व नहीं देते। इसलिये, हर टीम के हर सदस्‍य को एक दूसरे को प्रेरित करना चाहिये। उत्‍साह वर्धन करना चाहिये। सहायता के लिये स्‍वयं तत्‍पर रहना चाहिये। भूतकाल के कड़वे एवं नकारात्‍मक अनुभवों को भुलाकर नई किताबें खोलनी चाहिये। दूसरों क े अच्‍छे कामों की प्रशंसा करनी चाहिये। टीम का एक आत्‍मसम्‍मान होना चाहिये। भावनाओं पर नियंत्रण हेतु, लक्ष्‍य की सफलता हेतु प्राथमिकता देनी चाहिये। टीम के हरसदस्‍य की भावना ‘जीत' की होनी चाहिये। परन्‍तु ईमानदारी एवं निष्‍पक्षता से एक-दूसरे पर विश्‍वास करना चाहिये, भरोसा रखना चाहिये, संवाद निरन्‍तर बनाये रखना चाहिये। संवादहीनता के कारण कई समस्‍यायें आती है। इस स्‍थिति से बचना चाहिये। टीम के हर सदस्‍य को स्‍वयं ही मर्यादा, अनुशासन में रहना चाहिये। समर्पण की भावना होगी, तो टीम निर्धारित लक्ष्‍य को कम समय, ऊर्जा, शक्‍ति, धन, संसाधन से भी प्राप्‍त कर लेगी। टीम भावना महत्‍वपूर्ण है। प्रयास करना चाहिये कि हमारी टीम एक आदर्श हो एवं दूसरों के लिये अनुकरणीय उदाहरण हो।

टीम का लीडर या कैप्‍टन एक महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी है। टीम लीडर टीम के सदस्‍यों को मार्गदर्शन देता है। टीम लीडर को घमंड नहीं होना चाहिये। टीम के सदस्‍य उसे अपना समझें। वह इस प्रकार कार्य करे कि टीम के सदस्‍य के साथ मिलकर भी कार्य कर ले एवंटीम लीडर की भूमिका भी निभा सके। टीम लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने हेतु उसे प्राप्‍त ज्ञान, जानकारी, अनुभव होना चाहिये। किस सदस्‍य से क्‍या काम लेना है, यह निर्णय उसे लेना चाहिये। अच्‍छे काम की प्रशंसा सबके सामने करनी चाहिये। एवं किसी भी सदस्‍य की गलती या कमी को सुधारने के लिये एकांत में उसे सही रास्‍ते में लाने का प्रयास करना चाहिये। टीम लीडर को टीम की उपलब्‍धि का श्रेय सभी सदस्‍यों को बाँटना चाहिये। टीम लीडर में यह भावना नहीं होनी चाहिये कि वही एक मात्र सब कुछ कर रहा है। उसे एक विश्‍वास पात्र एवं अनुभवी असिस्‍टेंट लीडर भी टीम सदस्‍यों के मध्‍य से छाँटकर उसे आगे बढ़ाना चाहिये ताकि टीम लीडर के सामने व्‍यक्‍तिगत, स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बंधी एवं अन्‍य परेशानियों के समय भी टीम का कार्य निर्बाधगति से चलता रहे।

टीम को समय प्रबंधन रखते हुये अपने कार्य की नियमितसमीक्षा करते रहना चाहिये। लक्ष्‍य से पीछे हैं, तो कारण पता कर समस्‍या सुलझानी चाहिये, यथा अतिरिक्‍त सदस्‍य चाहियें, अतिरिक्‍त संसाधन, सामग्री, धन, जानकारी, प्रशिक्षण चाहिये इत्‍यादि। ऊर्जा, समय, धन, जल, बिजली की बचत हेतु प्रयास करने चाहिये एवं कार्य के पश्‍चात्‌ सफाई यानी हाउस कीपिंग पर भी ध्‍यान रखना चाहिये। टीम का कोई सदस्‍य किसी काम को कम समय में अधिक अच्‍छा करने की कोई विधि/विचार बतलाता है, तो उस पर विचार कर कार्य में उचित सकारात्‍मक संसाधन करना चाहिये।

टीम से कार्य जल्‍दी होते है। एक टीम के दस सदस्‍य व्‍यक्‍तिगत रूप से इतनी उत्‍पादकता नहीं दे पाऐंगे, जितनी दस सदस्‍य एक साथ मिलकर टीम लीडर के कुशल नेतृत्‍व में देंगे। इसलिये आज के प्रतिस्‍पर्धा के युग में टीम वर्क महत्‍वपूर्ण है। टीम भावना से काम करिये। आप घर-परिवार-संस्‍थान-समाज-व्‍यापार हर क्षेत्र में सफलता सार्थकता प्राप्‍त करते चले जायेंगे। इति.-

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: दिलीप भाटिया की किताब - जीवन प्रबंधन
दिलीप भाटिया की किताब - जीवन प्रबंधन
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