ग़ज़ल-12 मुझको वो बच्ची लगती है II सचमुच ही अच्छी लगती है II खूब पकी है खूब मधुर है, दिखने में कच्ची लगती II यों अंदाज़े बयाँ है उसका, झू...
ग़ज़ल-12
मुझको वो बच्ची लगती है II
सचमुच ही अच्छी लगती है II
खूब पकी है खूब मधुर है,
दिखने में कच्ची लगती II
यों अंदाज़े बयाँ है उसका,
झूठी भी सच्ची लगती है II
चलती है तो हिरनी भासे,
तैरे तो मच्छी लगती है II
एक शेरनी है वह लेकिन,
गैया की बच्छी लगती है II
हिंद महासागर सी ठहरी,
गंगा सी बहती लगती है II
वाशिंगटन लन्दन दिमाग से,
दिल से नई- दिल्ली लगती है II
ग़ज़ल-13
जूलियट सी हीर सी लैला के जैसी प्रेमिका II
इस ज़माने में कहाँ पाओगे ऎसी प्रेमिका II
कसमें वादों पर यकीं यूँ ही नहीं करती कभी,
है चतुर, चालाक, ज्ञानी आजकल कि प्रेमिका II
बच नहीं सकता है अब आशिक़ बहाने से किसी,
जिससे करती प्यार करती उससे शादी प्रेमिका II
बेवफ़ा आशिक़ को अब माफ़ी न देती दोस्तों ,
अब सबक सिखला के बदला खूब लेती प्रेमिका II
एक आशिक़ छोड़ दे तो ख़ुदकुशी करती नहीं ,
दूसरे से इश्क़ को तैयार रहती प्रेमिका II
पहले अशिक़ कि नज़र से देखती थी ये जहाँ,
अब तो चीलो-गिद्ध जैसी आँख रखती प्रेमिका II
इश्क़ में जिस्मों के रिश्तों को भी देती अहमियत,
अब न दकियानूस शर्मीली न छुई-मुई प्रेमिका II
अब तो मुंह बोले बहन भाई पे शक़ लाजिम हुआ,
कितने ही तफ्तीश में निकले हैं प्रेमी प्रेमिका II
ग़ज़ल-14
पूनम का चाँद है तेरा चेहरा तो हू-ब-हू II
फैलाए रौशनी तू जहाँ जाए सू-ब-सू II
होश अपना खो रह जाए फ़क़त देखता अपलक,
ऐ खूबरू जिसके भी तू हो जाए रू-ब-रू II
दिखने में तो मासूम हो प्यारे हो हसीं हो,
चेहरे से मगर दिल की खबर लग सके कभू II
हरवक्त तलबगार रहे तुझसे बात का,
जिससे भी तू इक बार हँसके कर ले गुफ्तगू II
जो खुदकुशी के वास्ते फंदे लिए खड़े,
जीने की उनमें आरज़ू- हसरत जगदे तू II
गुजरे तू ग़ुल-अन्दाम जिधर से उधर-उधर,
बिखरे हवा में संदलो गुलाब की खुशबू II
लेके चराग़ ढूंढ ज़माने में सब तेरे ,
आशिक ही मिलेंगे न मिलेगा कोई अदू II
कालीने दिल बिछे तेरी रह में क़दम-क़दम,
पाया न भीख में भी हमने एक दिल कभू II
ग़ज़ल-15
जो न कह पाया ज़ुबां से ख़त में सब लिखना पड़ा II
अपना इजहारे तमन्ना आख़िरश करना पड़ा II
इश्क़ के तो हमेशा ही था मैं बरखिलाफ़ अब क्या कहूँ ,
उनपे मुझ जैसों को भी देखा तो बस मरना पड़ा II
सच की सीढ़ी मुझको कुछ टेढ़ी तो कुछ नीची लगी,
इतना ऊँचा चढ़ने को नीचे बहुत गिरना पड़ा II
दुश्मनों से तो लड़ा बेख़ौफ़ मैं सारी उमर ,
आस्तीं के साँपों से पल-पल मुझे डरना पड़ा II
इसलिए क्योंकि वो मेरा अपना था व अज़ीज़ था,
उस क़मीने उस लफंगे को वली कहना पड़ा II
अपने ही बच्चों के मुस्तक़बिल की ख़ातिर क्या हुआ ,
दोस्ताना दुश्मनों से भी अगर रखना पड़ा II
जिससे नफ़रत थी मोहब्बत का उसी से उम्र भर,
कोई मज्बूरी थी रिश्ता जोड़कर रखना पड़ा II
दूसरा कोई न मिल पाया तो वो ही काम फिर,
जिसको ठोकर पर रखा झक मारकर करना पड़ा II
ग़ज़ल-16
आग यहाँ पर लगी हुई है जाकर दमकल ले आओ II
पानी वानी कुछ मत पूछो पूरी बोतल ला आओ II
तेज़ रौशनी सहन नहीं है ये सूरज चंदा फेंको ,
रात अँधेरी लाओ मुझको तारे झलमल ले आओ II
न सूती न खादी न रेशम के ढेर लगाओ तुम ,
बस चाहे इक टुकड़ा ही ढाका कि मलमल ले आओ II
ये नीला आकाश ये सूरज चाँद सितारे ढँक डालो ,
सूखा चारोँ ओर पड़ा है काले बदल ले आओ II
चीख़-चीख़ ख़ामोशी इस गुलशन की बोले जा इसमें ,
चिड़िया;तोता;मैना;बुलबुल;कोयल ;गलगल ले आओ II
एक जगह पर ठहरे पानी जैसा जीवन मत रोको ,
निकलो कूप ताल से नदियों जैसी हलचल ले आओ II
एक शर्त पर तुमको दिल से मैं कर दूँगा माफ़ मगर ,
मुझसे छीने हुए सुहाने इक या दो पल ले आओ II
लूट लिया जब सब मरीज़ का डाक्टरों ने अर्ज़ किया ,
जो पहले ही कह देना था 'बस गंगा जल ले आओ' II
ग़ज़ल-17
है अब तो घी में आलुओं के मिश्र का चलन II
होगा कभी विशुद्ध का पवित्र का चलन II
था बुद्ध मत 'मत सुगन्धियाँ प्रयुक्त हों ,
अब उनके ही चेलों में चरम इत्र का चलन II
सावित्रियाँ कहानियों से लुप्त हो चलीं ,
वारांगनाओं जैसे अब चरित्र का चलन II
होती थीं बस सहेलियाँ महिलाओं की पहले,
अब तो अगल बगल में पुरुष मित्र का चलन II
अब भाई भाई ,भाई के जैसे कहाँ रहे,
न राम का चलन है न सौमित्र का चलन II
लिम्का गिनीज़ बुक में नाम को मनुष्य में ,
कुछ ऊट कुछ पटांग कुछ विचित्र का चलन II
परदे से ही हो जाता अगर हुस्न नुमायाँ ,
होता न कभी बेलिबास चित्र का चलन II
सौतेले बहन-भाई की बातें हैं पुरानी ,
शक़ है न चल पड़े कहीं वैपित्र का चलन II
[ वारांगना=वेश्या, वैपित्र=जिसके दो पिता हों ]
ग़ज़ल-18
गमीं में एक दिन खुशियाँ मनाने का चलन होगा II
उजालों के लिए शम्मा बुझाने का चलन होगा II
किया करते हैं हम जिस तरह से बर्बाद पानी को ,
कि इक दिन इक महीने में नहाने का चलन होगा II
यूँ ही मरती रहीं गर पेट में ही लडकियाँ इक दिन
कई लड़कों से इक लड़की बिहाने का चलन होगा II
इसी तादाद में कटते रहे ग़र मुर्ग़ ओ बकरे ,
किसी दिन आदमी के ग़ोश्त खाने का चलन होगा II
अगर अपने ही अपनों की सरासर पोल खोलेंगे ,
तो हर इक राज़ अपनों से छिपाने का चलन होगा II
यूँ रातों रात दौलतमंद अगर सब बनना चाहेंगे ,
तो नंबर दो से ही पैसा कमाने का चलन होगा II
तरक्क़ी में अगर आड़े ज़मीर आता रहा यूँ ही ,
तो इस बेदार रोड़े को सुलाने का चलन होगा II
[ बेदार=जाग्रत ,ज़मीर=आत्मा ]
ग़ज़ल-19
बहुत पुरानी बात लगे अब ख़त ओ किताबत की II
अब मोबाइल पर बातें हों प्यार मोहब्बत की II
छिप छिप कर डर डर कर आशिक़ अब न इश्क़ करें,
खुल्ला नैन मटक्का बात अब फ़क्र ओ इज्ज़त की II
वो परिवार नियोजन की धज्जियाँ उड़ा देगा ,
कहता है पैदाइश बात है मर्द की ताक़त की II
देख देख कंडोम नेपकिन एड्स के विज्ञापन ,
क्या है ? क्या है ? पूछ पूछ बच्चों ने आफ़त की II
कामयाबियों के पीछे कुछ बातें चलती हैं ,
कुछ रसूख़ कुछ क़ाबिलियत ओ' बाकी क़िस्मत की II
कुछ इतना गिर चुका है रूपया के ज़मीन पर से ,
सिक्का पड़ा उठाना लगता बात है ज़हमत की II
[ ख़त ओ किताबत=पत्र व्यवहार ,रसूख़=धाक ,ज़हमत=कष्ट ]
ग़ज़ल-20
जब वो बदरू फूल गोभी को भी कहता है कमल II
क्या हुआ जो काफ़ियाबंदी को ही जाने ग़ज़ल II
तय नहीं कर पा रहा सौग़ात में क्या दूँ उसे,
झोपड़ी का बस नहीं जी चाहता है दूँ महल II
प्यार करते हैं जो बेखटके उन्हें मिलने भी दो,
जात मज़हब हैसियत के नाम पर मत दो खलल II
हाल दुश्मन पूछ बैठे तो यकीं से बोलना,
मर रहे होगे भी तो जीते हैं खुश हैं आजकल II
ढूँढने पर भी नहीं मिलते कहीं लेकर चराग़ ,
कुछ सवालों के जवाब और कुछ परेशानी के हल II
कुछ ज़माने से मिटाना चाहते हैं दर्दो ग़म ,
कुछ रखा करते हैं दुनिया को मिटाने का शगल II
क्या बुरा क्या ठीक है क्या फ़ायदा ये जानकर ,
ग़र नहीं इस आगही का हो कहीं तर्ज़े अमल II
मै तो कहना चाहता हूँ सिर्फ पाकीज़ा ग़ज़ल ,
भीड़ की फ़रमाइशों पर बकना पड़ती है हज़ल II
[ बदरू=कुरूप , काफियाबंदी=तुक मिलान, आगही=ज्ञान ]
--
डॉ. हीरालाल प्रजापति
संपर्क drhiralalprajapati@gmail.com
बहुत खूब....................
जवाब देंहटाएंबढ़िया गज़लें....आधुनिकता का रंग लिए....
अनु