'रचनाकार' में आमिर पर एक सुन्दर आलेख देख कर मन प्रफुल्लित हुआ । वास्तव में आमिर औरों से अलग हट कर काम करते हैं। लेकिन यह भी एक सच...
'रचनाकार' में आमिर पर एक सुन्दर आलेख देख कर मन प्रफुल्लित हुआ । वास्तव में आमिर औरों से अलग हट कर काम करते हैं। लेकिन यह भी एक सच्चाई ही है कि आमिर को मीडिया एक अवतार के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। यह भी बहुत सुखद स्थिति नहीं है। मीडिया उन समाज सेवकों को इतनी तरजीह नहीं देता जो अपना घर-परिवार भूलकर बिल्कुल कबीर की तरह 'हाथ में लुकाठा लिए अपने ही छप्पर पर सबसे पहले रख' रात-दिन एक करके समाज की सेवा में ही लगे हुए हैं। जैसा कि सुना है कि ये प्रति एपिसोड साढ़े तीन करोड़ ले रहे हैं, यह कैसी सामाजिक जिम्मेदारी है? मीडिया को यही जिम्मेदारी उनके प्रति भी इसी ईमानदारी से निभाना चाहिए था, जो शायद नहीं हुआ। यह मीडिया का आमिर का प्रचार कम ,उनके बहाने अपना उल्लू सीधा करना ज़्यादा लगता है। मीडिया को पका-पकाया माल परोसना अच्छा लगता है। उसके पीछे उनकी व्यवसाय बुद्धि का प्रताप ही प्रकट होता है। जो भी मिला उसे सबसे पहले ले उड़ने और उसका यश लूटने की मीडियाई मानसिकता की प्रवृत्ति संतोष जनक नहीं कही जा सकती है।
मीडिया की यह प्रवृत्ति आमिर की टी आर पी के चलते है। अव्वल तो किसी समाजसेवी की यह टी आर पी नहीं होती दूसरे वह इतने ताम-झाम के साथ मंचासीन नहीं होता ,यही वजहें हैं कि आमिर या अमिताभ मीडिया के द्वारा हाथोहाथ लपक लिए जाते हैं और एक सच्चे समाज सुधारक के सारे प्रयास उल्लेखहीन हो जाते हैं । क्या मीडिया ने यह सोचने की कभी कोशिश की है कि जिन दो बच्चों ने निर्मल बाबा के खिलाफ मुहिम छेड़ी उसे एक -दो झलकियों से अधिक तवज्जो चाहिए थी? जिन दो पत्रकारों ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अपनी जानें जोखिम में डाल कर अलख जगाई थी,उसके लिए उन्हें नौ साल पहले सराहना था। चलो तब सोते रहे तो अब तो उनके प्रयासों पर एक अलग से वृत्त चित्र तो दे ही सकते हैं।
चलो आमिर तो कुछ सार्थक कर भी रहे हैं लेकिन 'राधे माँ' ,'निर्मल बाबा 'या 'नित्यानंद 'देश के लिए क्या कर रहे हैं ? हमारा देश जब ऐसों को पूज सकता है तो आमिरों का फरिश्ता या भगवान बन जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं। मीडिया का अवसरवाद जग ज़ाहिर है। पेड न्यूज़ का रहस्य जब तक जनता जान पाती तब तक 'निर्मल' बाबा अरब पति बन चुके थे। मीडिया को अपने जन-दायित्त्व भी निभाते रहना चाहिए।
'सत्यमेव जयते' को रेत पर लिखे जाने का मकसद मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आया। शायद इसका रहस्य आमिर ही किसी एपीसोड में बताएँ। क्या यह इस बात द्योतक तो नहीं कि आमिर, समाज की सोच को रेत मान रहे हों और उस पर लिखा गया सब कुछ अस्थायी हो ,जो कभी भी एक लहर से मिट सकता है। यह लहर लिखने के तुरंत बाद भी आ सकती है और आमिर के लिखे को अपने साथ समेट भी ले जा सकती है। शायद ऐसा ही हो भी रहा है। क्योंकि इतने एपिसोडों के बावजूद हमारा समाज जहाँ का तहाँ ही है। क्या कोई डाक्टर या शिक्षक अपने मूल स्वभाव को बदल कर समाज सेवा में आगे आया है? जो अपने मूल स्वभाव को बदलने का दावा करे उस पर अचानक विश्वास कर लेना अवतारवाद की सोच को ही बढ़ावा देना है।
आमिर का असर भी टीवी पर बराबर दिखाया जा रहा है। लोग खुश हैं कि बड़ा असर पड़ रहा है । हम भी खुश हैं कि चलो कुछ तो हो रहा है। हमें तो बस हाथ पर हाथ धरे आरती उतारना होगा। बाक़ी सारे चमत्कार तो हमारे आमिर बाबा कर देंगे। भक्त गुप्त दान में करोड़ों के मुकुट तो अभी से चढा ही रहे हैं। ये भक्त अभी केवल प्रोड्यूसर समुदाय तक सीमित हैं आगे इनका विस्तार करने के लिए ही राधे माँ के गुप्ता परिवार की तरह हजारों टीवी चैनल अपने-अपने डैनों पर आमिर की तरह ही 'गजनी' गुदवाए अन्तरिक्ष में कुलाँचें मार रहे हैं। पता नहीं कब 'डेल्ही वेल्ली 'की ऋचाओं के साथ मुम्बई -दिल्ली होते हुए सारे देश पर छा जाएँ।
कुछ वर्षों बाद साईँ बाबा की तरह आमिर बाबा का भी एक भव्य मन्दिर बन जाएगा। नई-नई ट्रेनें चलेंगी । भक्त गण झूम-झूम कर आरती उतारेंगे। आरती आमिर बाबा की। । ।
फेरारी के भीतर ए सी में यात्रा करते-करते आमिर के साढ़े तीन करोड़ वाले आँसू निश्चय ही थोड़ा गाढ़े ज़रूर हो जाते हैं लेकिन इससे उनके आँसुओं की तरलता किसी भी रूप में कमतर नहीं आँकी जा सकती जो कि तपती धूप और कड़ाके की ठंड या मूसलाधार बारिश में जन सेवा में लगे रहते हैं। मित्रो!मेरी एक विनम्र राय है कि केवल आमिर के कहने भर से अगर आप जागे हैं तो आपने अपनीअब तक की जिन्दगी व्यर्थ में गवाँ दी । यदि आप चिकित्सक हैं या शिक्षक तो यह और भी चिंता की बात है क्योंकि आप अब तक लोगों की जिन्दगी से खेलते रहे हैं,जो किसी भी रूप में असह्य है। आप सब की भरपाई करो। तनख्वाहें वापस करो वरना आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हें माफ़ नहीं करेंगी।
यदि आप पहले से समाज की चिंता करते रहे हैं तो अचानक चढ़े आमिर के बुखार की अनावश्यक गरमी सहने की ज़रूरत ही नहीं है। केवल आमिर के सुधारने से यह समाज सुधर जाने वाला नहीं है,इसके लिए हमें और आपको भी अपने स्तर पर पूर्ववत लगे रहना होगा । यदि ऐसा ही होता तो पहले सुकरात और मीरा को जहर का प्याला नहीं पीना पड़ता और प्रभु यीशु को शूली भी नहीं चढ्ना पड़ता ।
आओ! आमिर के साथ-साथ उनको भी सराहते चलें जो नींव की ईंट बने आमिर जैसे कंगूरों को अपनी पीठ पर लादे देश और समाज की शान में चार चाँद लगा रहे हैं।
-डॉक्टर गुणशेखर
Lekh ke liye dhanyawad. sach kaha aapne media ka jo asar hai unhone apni vyabsikta se nast kar diya hai. media keval manoranjan ka madhyam ban gaya hai. phir bhi aamir ki koshish ko salam!
जवाब देंहटाएंsundar lekh ke liye apko punah dhanyavad.
लाख टके की बात
जवाब देंहटाएं