एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - युवाओं की व्यथा

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कहते हैं कि संसार में दुःख ही दुःख है। जन्मते और मरते समय भी असह्य दुःख होता है। तथा लोगों को दुःख घेरे ही रहता है। दीगर है कोई ज्यादा तो क...

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कहते हैं कि संसार में दुःख ही दुःख है। जन्मते और मरते समय भी असह्य दुःख होता है। तथा लोगों को दुःख घेरे ही रहता है। दीगर है कोई ज्यादा तो कोई कम दुखी होता है। सच कहा जाय तो लोग दुःख पाने के लिए ही जन्मते हैं। कई लोगों के दुःख का कारण दूसरे का सुख होता है। बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो दूसरे के दुःख से दुखी होते हैं। कई लोग दूसरों को दुःख देने के लिए ही जन्मते हैं। और दूसरों को दुःख देकर खुद सुख का अनुभव करते हैं। कई लोगों को केवल अपना ही दुःख दिखता है। दूसरे का नहीं। ऐसे में युवाओं का दुःख कौन देखेगा ?

कहने को भारत युवाओं का देश है। विश्व के सर्वाधिक युवा भारत में ही बसते हैं। यह सब तो ठीक है। लेकिन भारत के युवाओं की दशा ठीक नहीं है। भारत के युवा खुश नहीं हैं। ये बहुत व्यथित रहते हैं। इनकी व्यथा को समझने वाला कोई नहीं है।

युवाओं की व्यथा के अनेकों कारण हैं। जिनमें सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक और भौतिक कारण प्रमुख हैं। तथा बूढ़ों की वजह से इन्हें ज्यादा समस्या हैं। समाज में इन्हें सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं है। राजनीति में भी इनका वर्चस्व नहीं है। राजनीति में बूढ़े छाये हैं। नैतिकता का इन्हें उचित ज्ञान नहीं है और न ही ज्यादा पसंद करते हैं। और ये भौतिकवादी होते जा रहे हैं।

सच कहा जाय तो देश-समाज में सदा युवाओं की अनदेखी की गई है। बूढ़े युवाओं को किनारे कर देते हैं। खुद चाहे जितना बूढ़े हो जाएँ। लेकिन अपने को जवान समझते रहते हैं। और युवा चाहे जितना युवा क्यों न हो, उसे बच्चा समझते हैं। इसलिए भारत के युवा व्यथित हैं और जल्द से जल्द बूढ़े हो जाना चाहते हैं। क्योंकि इन्हें लगता है कि जो मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, व सुविधा आदि बूढ़े होकर पायी जा सकती है, वह युवा होकर कदापि नहीं मिल सकती।

एक दिन कुछ युवा बहुत व्यथित होकर मेरे पास आये। और बोले कि एक न्यूज चैनल से प्रसारित समाचार में कहा जा रहा था कि ‘सब कुछ अपना पार्टी-एसकेएपी’ के साठ वर्षीय युवा नेता लुट्टन जी विवादों के घेरे में फँस गए हैं। बताइए इस देश का क्या होगा ? देश के युवाओं का क्या होगा ? ये लोग लुट्टन जी के विवादों के घेरे में फँस जाने से व्यथित नहीं थे। इनकी व्यथा का कारण यह था कि यदि पचपन और साठ साल के लोगों को युवा कहा जायेगा तो पैतीस-चालीस वर्ष के लोगों को क्या कहा जाएगा ?

हमने कहा जाहिर सी बात है बच्चा कहा जाएगा। तुम्हें आगे नहीं आने दिया जायेगा। अनुभवहीन कहा जाएगा। वे बोले अनुभव लेने का मौका दिया जायेगा तब अनुभव आएगा कि आसमान से टपकेगा। हमने आगे उन्हें समझाते हुए कहा कि दरअसल राजनीति में भी सापेक्षता का सिद्धांत लागू होता है। राजनीति में लोग एक दूसरे पर आक्षेप लगाते हैं और सापेक्षिक बात करते हैं। नब्बे बर्ष के नेता के सापेक्ष साठ वर्ष के नेता को युवा कहना गलत नहीं है। एक पार्टी दूसरे पार्टी को भ्रष्टाचार में लिप्त कहती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि कहने वाली पार्टी में भ्रष्टाचार नहीं है। बस उसके सापेक्ष इसमे थोड़ा कम भ्रष्टाचार हो सकता है। जब एक नेता देखता है कि इसने हमसे ज्यादा जमा कर लिया तो सापेक्षता के आधार पर दूसरे को भ्रष्ट कह देता है।

वे बोले राजनीति में बूढ़े तो छाये ही हैं। पूरे देश-समाज में बूढ़ों का ही बर्चस्व है। बूढ़े नीति-निर्माता हैं। वे जो बना दें, युवाओं को तो उसे निभाना है। युवाओं के विरुद्ध बहुत बड़ी साजिश चल रही है। सभी लोग हाथ धोकर युवाओं के पीछे पड़े हैं। राजनीति में तो रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं है। और बूढ़े चाहते हैं कि हर जगह ऐसा ही हो जाय। सरकारी नौकरियों में रिटायरमेंट पहले अट्ठावन वर्ष थी। बाद में साठ वर्ष हो गई। फिर बासठ वर्ष हो गई। कहीं-कहीं तो पैसठ वर्ष हो गई है। कई नेता तो कह रहे हैं कि हम रिटायरमेंट की उम्र सत्तर करने का प्रावधान करने वाले हैं। और कई बूढ़े इसके समर्थक भी हैं। युवाओं के बारे में कोई नहीं सोचता।

वे आगे बोले कि बूढ़े जब रिटायर हो जाते हैं। तो इन्हें पेंशन मिलती है। लेकिन इन्हें इतने से संतुष्टि नहीं मिलती। प्रायवेट से लेकर सरकारी प्रतिष्ठानों में रिटायर्ड बूढ़े भरे परे हैं। ये यहाँ से भी कमाते हैं और ऊपर से पेंशन एंठते हैं। कम से कम इन्हें युवाओं के बारे में सोचना चाहिए। हमारे नीति निर्माताओं को युवाओं को मौका देने की बात सोचनी चाहिए। स्कूलों-कॉलेजों और विश्विद्यालयों आदि में बूढ़े ही काबिज हैं। और पढ़े-लिखे डिग्री धारी योग्य युवा खाक छानते फिरते हैं। इस देश की ऐसी नीति है कि बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर लोग आने-दाने के लिए तरस रहे हैं और छोटी डिग्री धारी नौकरी कर रहे हैं।

उनमें से एक ने बताया कि हमारे कॉलेज में युवा महोत्सव मनाया जा रहा था। बूढ़े आकर डैश पर बैठ गए। और जिसे माइक मिल जाता, वही अपनी बात खत्म करने का नाम ही नहीं लेता। मेरे समय ऐसा था। वैसा था। बताये जा रहे थे। और हमारे समय की कोई बात ही नहीं कर रहा था। हम लोगों को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला। हम लोगों में से एक ने कहा कि यह युवा महोत्सव है कि वृद्धा महोत्सव। तो लोगों ने उसे बुरा-भला कहा। कहा कि तुम्हें बात करने का तरीका नहीं मालूम। बड़ों के सामने ऐसी ही बात की जाती है।

कई युवा ऐसे हैं जो विवाह करना चाहते हैं। लेकिन इनका विवाह नहीं हो पाता। इनकी व्यथा का एक कारण यह भी है। और इसके कई कारण है। कई युवा सोचते हैं कि जब नौकरी मिल जायेगी तभी शादी करेंगे। यही सोचते-सोचते शादी कि उम्र निकल जाती हैं। क्योंकि नौकरी तो मिलती नहीं। वही दूसरी ओर कई बूढ़े एक से अधिक दो-तीन अथवा इससे से भी अधिक शादियाँ कर लेते हैं। इन्हें जरा सा भी रहम नहीं आता। आखिर बूढ़े युवाओं के दुश्मन क्यों बने बैठे हैं ? ऐसे में युवाओं से ये किस मान-सम्मान की आशा करते हैं ?

एक कॉलेज के एक विभाग में ज्यादा युवा शिक्षक ही थे। जब बाहर से बच्चों के गारजेन आते तो पूछते कि टीचर कहाँ मिलेंगे ? युवा शिक्षकों का मुँह उतर जाता। सोचते कि युवा होना भी एक अभिशाप है। हमारे पास सब डिग्रियाँ हैं। इतनी मेहनत और लगन से पढ़ाते हैं। फिर भी लोग हमें शिक्षक नहीं समझते। क्योंकि हम देखने में बूढ़े नहीं लगते। ऐसी सोच है लोगों की। यही हाल वहाँ के बूढ़े अधिकारियों का भी था। वे तरह-तरह के नसीहत देते रहते थे। जो युवाओं को बेमतलब की ही लगती थी।

एक बार इनके एक गर्ल स्टूडेंट की तबीयत खराब हो गई। कई दिन वह कॉलेज नहीं आ सकी। उसकी बीमारी बढ़ती जा रही थी। शिक्षकों ने सोचा कि अस्पताल में जाकर उसे देख आयें। लेकिन इनका युवा होना कहीं गलत संदेश न दे। इससे ये मन मसोस कर रह गए। और सोचते रहे कि बूढ़े हम युवाओं को हमेशा शंका की दृष्टि से क्यों देखते हैं ? एक युवा और एक युवती को देखकर बूढ़े ही ज्यादा नाक-भौं सिकोड़ते हैं।

कोई युवा किसी के घर रोज आये-जाए तो कई लोग इसका कई अर्थ लगाते हैं। खासकर बूढ़े। और यदि बूढ़े कहीं आये-जाएँ तो कोई कुछ नहीं कहता। समाज हम लोगों को इज्जत नहीं देता। उसमें से एक बोला कि हम जिस कम्पनी में जाते हैं। उसके रास्ते में एक गाँव पड़ता है। उसी गाँव में एक दिन मेरी स्कूटर रुक गई। संयोग बस दूसरे दिन भी वहीं रुक गई। इतने में एक आदमी बोला क्या बात है ? मैंने कहा स्कूटर खराब हो गई है। वह बोला तुम्हारी स्कूटर यहीं आकर क्यों खराब होती है ? मैं सफाई दे रहा था। और वह बोले जा रहा था। उसकी आवाज सुनकर कई लोग इकट्ठा हो गए। मैं पिटते-पिटते बचा। समझ में नहीं आता कि युवा होना गुनाह क्यों है ? कुछ भी हो इसके पीछे बूढ़ी मानसिकता ही है।

उनमें से एक बोला मैं लिखता हूँ। अच्छा लिखता हूँ। लेकिन किसी ने आज तक ऐसा नहीं कहा। यदि युवा लेखन करें तो रचना चाहे जितनी उत्कृष्ट क्यों न हो। बूढ़े अपने मुँह से उसे उत्कृष्ट कभी नहीं कहते। अच्छा प्रयास है। मात्र इतना कहते हैं। ऐसा क्यों है ?

जब किसी युवा की शादी होती है तो घर-गाँव वाले और रिश्तेदार बहुत खुश होते हैं। बराती बनकर जाते हैं। खाते-पीते हैं। रोब दिखाते हैं। शादी के बाद यही लोग बदल जाते हैं। कई लोग तो खुद अपनी बहू पर जुल्म करते हैं। कई लोग कहते हैं कि शादी क्या हुई लड़का बिगड़ गया।

युवा कुछ करें तो खराबी और न करें तो खराबी। करें तो क्या करें। करने के लिए उचित काम नहीं है। आज ऐसा समय आ गया है कि कोई पूछे कि युवा क्या हैं ? तो यही कहा जाता है कि देश के युवा बेरोजगार हैं। बेरोजगारी ही आज के युवाओं की पहचान बन गई है। ऐसे में युवा व्यथित क्यों नहीं होंगे।

कुलमिलाकार युवा इतने व्यथित हैं कि यदि सबके सब एक साथ रोयें तो आसूँ की नदी बह निकले। जिसमें नेता और नीति-निर्माता बह जाएँ। लेकिन खैर यह है कि वे एक साथ रोते नहीं हैं।

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,

समशापुर (उ.प्र.)।

URL1: http://sites.google.com/site/skpvinyavali/

ब्लॉग: श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या न मानो

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रचनाकार: एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - युवाओं की व्यथा
एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - युवाओं की व्यथा
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