उर्दू व्यंग्य अनुवाद - अखतर अली मूल रचना - दिलकश मौत लेखक - अखलाक अहमद खां बीमारी तेरे रूप हज़ार डाक्टर और मरीज़ का प्रेम ही इस दुनि...
उर्दू व्यंग्य
अनुवाद - अखतर अली
मूल रचना - दिलकश मौत
लेखक - अखलाक अहमद खां
बीमारी तेरे रूप हज़ार
डाक्टर और मरीज़ का प्रेम ही इस दुनियां में सही मायने में प्रेम है। जितना विश्वास एक मरीज़ अपने डाक्टर पर करता है उतना विश्वास इस दुनियां में और कोई किसी पर नहीं करता। डाक्टर अपनी पूरी ताकत लगा देता है कि मरीज़ मरे न और मरीज़ एक दिन डाक्टर पर अपनी जान कुर्बान कर देता है। इस संसार में तरह तरह की बीमारी है और तरह तरह की मौत है , उसी प्रकार तरह तरह की दवा है और तरह तरह के इलाज है। विगत दिनों सुनने में आया कि आखिर कर डाक्टर वह दवा बनाने में सफल हो गये हैं जिन्हें खाकर मरीज़ हमेशा जीवित रह सकता है। वह स्वस्थ भले न हो पर मरेगा नहीं। ड़़ाक्टरी पेशे के लिये यह दवा अत्यंत आवश्यक है , अगर रोगी मर जाये तो धंधा कैसे जीवित रहेगा ? तो श्रीमान अंततः ड़ाक्टरों ने वह दवा बना कर ही दम लिया जिससे किसी का दम नहीं निकलेगा। इस गोली से मौत की हत्या कर दी जायेगी।
हमने अक्सर देखा है कि मृत्यु से भागने की कोशिश में आदमी जि़न्दगी से भागता जाता है। यहां ऐसी ऐसी बीमारियां है जो डाक्टर से ज़रा भी नहीं ड़रती है और मरने तक मरीज़ का पीछा करती है। जहां तक इलाज का सवाल है कोई डाक्टर यह तय नहीं करता कि वह अमुक अमुक मरीज़ का इलाज करेगा , लेकिन मरीज़ यह निर्णय अवश्य लेते है कि उनका इलाज कौन सा डाक्टर करेगा। कोई मरीज़ कितने भी डाक्टर से कितना भी इलाज करा ले अंत में उसे मरना ही होता है , क्योंकि डाक्टर बीमार का इलाज करता है बीमारी का नहीं। इसकी एक वजह फीस भी हो सकती है। डाक्टर को फीस बीमार देता है बीमारी नहीं। इसे यू भी कहा जा सकता है कि बीमार नश्वर है और बीमारी अमर।
शरीर के पास हर किस्म की बीमारी है तो डाक्टर के पास हर बीमारी की दवा। कुछ स्वस्थ और तंदरूस्त लोगों को चेकअप कराने की बीमारी होती है। जब तक डाक्टर उन्हें हजार रूपये की दवा नहीं थमा देता उन्हें आराम नहीं मिलता है। एक डाक्टर अपनी महिला पेशेंट से कह रहा था - ये गोली दिन में तीन बार जि़ंदगी भर खाना आप हमेशा फिट रहेगी।
मैंने पूछा - दवा का नाम क्या है ?
डाक्टर - यकीन।
मैंने पूछा - और इनकी बीमारी का नाम ?
डाक्टर - शक।
हर डाक्टर इतना बेरहम नहीं होता। कुछ तो बहुत बड़े दिल वाले होते है , वो ऑपरेशन थियेटर में दिल निकाल कर रख देते है। कुछ अपने सामने मरीज़ का दिल निकाल कर रख देते है तो कुछ नर्स के सामने अपना दिल। अनुभवी लोग हमेशा युवाओं को यह उपदेश देते नज़र आते है कि अगर हमेशा स्वस्थ रहना है तो समाचार पत्रों से दूर रहो। अखबार के समाचारों से मानसिक रोग और विज्ञापन से शारीरिक रोग हो जाते है।
खाने पीने का सम्बंध स्वास्थ्य से होता है। कुछ लोग तो माले मुफ्त दिले बेरहम वाले होते है। ये लोग जीने के लिये नहीं बल्कि खाने के लिये जीते है। इनके जीवन का यही उद्देश्य होता है कि खाना और खुजाना। इनको जब भी देखो तो ये या तो खाते हुए दिखाई देते है या खुजाते हुए। मज़ेदार बात ये है कि ये लोग खाते समय भी भूख की बात करते है। भुखमरी की बात भी करते है तो तोंद पर हाथ फेरते हुए। इनका तकिया कलाम होता है - मेरे साथ भी पेट लगा है भाई ,जबकि वास्तविकता ये है कि पेट इनके साथ नहीं बल्कि ये पेट के साथ है। अगर इनके पास खाने को कुछ न हो तो ये कान खाना शुरू कर देते है और फिर दिमाग खाने लगते है।
आज कल हर दसवां आदमी टेंशन नामक बीमारी से ग्रस्त है। टेंशन का सीधा संबंध दिमाग से होता है। यह ज़रा भी जरूरी नहीं है कि हर इंसान की खोपड़ी में मांस का वह लोथड़ा हो जिसे दिमाग कहा जाता है। खोपड़ी के उपर बाल न हो तो लगाये जा सकते है पर अगर अंदर दिमाग न हो तो आदमी कुछ नहीं कर सकता , क्योंकि कुछ भी करने के लिये दिमाग चाहिये।
कुछ लोगों को भूलने की बीमारी होती है। जिनको भूलने की बीमारी होती है वे लोग यह बात हमेशा याद रखते है कि वो हर बात भूल जाते है। यहां मरने के दस बहाने और दस तरीके है , लेकिन असली मरना तो वह मरना है जिसे आकर्षक मौत कहा जा सके। आत्महत्या करने वाला मौत का इच्छुक होता है , आत्महत्या की सफलता के परिणाम स्वरूप जो मौत प्राप्त होती है उसे आकर्षक मौत कह सकते है। आत्महत्या की सफलता मृतक की समस्त असफलताओं को छुपा देती है। जैसे जैसे मौत सस्ती होती जाती है इंश्योरेंस के रेट बढ़ते जाते हैं। बीमा कम्पनी समाचार पत्रों में अपना विज्ञापन इस प्रकार देती है -
” इससे पहले की जीवन का हो जाये कीमा
करवा ले श्रीमान अपने जीवन का बीमा ”
जिसके जीवन का बीमा होता है उसकी मौत अवश्य आकर्षक होती है पर उसके लिये नहीं बल्कि उसके वारिसों के लिये। एक प्रेमी के लिये आर्कषक मौत वह होगी कि वह बीच समंदर में डूब रहा हो और उसकी प्रेमिका किनारे खड़ी यह दृश्य देख रही हो , बकौल शायर -
बहा कर ले चली है ग़म की मौजे दिल की कश्ती को
हमारे डूब जाने का नज़ारा देखते जाओ ॥
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( ई पत्रिका ”कायनात से साभार )
उर्दू व्यंग्य अनुवाद - अखतर अली
मूल रचना - दिलकश मौत पता - आमानाका कुकुरबेड़ा
लेखक - अखलाक अहमद खां रायपुर (छ़ग़)
पता 2055 इस्ट मोबाईल - 9826126781
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