रचनात्मकता जीवन का पर्याय है... [केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं हिंदी...
रचनात्मकता जीवन का पर्याय है...
[केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं हिंदी विभाग, मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में 18 अप्रैल से 25 अप्रैल 2012 तक आयोजित हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखक शिविर की रिपोर्ट।]
- रवीन्द्र कात्यायन
“रचनात्मकता हर व्यक्ति में होती है, ज़रूरत है उसको पहचानने की। जीवन से जुड़ने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ रचनाकार बन सकता है”- सुप्रसिद्ध कथाकार एवं व्यंग्यकार सूर्यबाला ने अपने वक्तव्य में कहा। सूर्यबाला ने केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं हिंदी विभाग, मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हिंदीतर भाषी नवलेखक शिविर के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि- “लेखन एक साधना है जिसके लिए बड़े धैर्य की आवश्यकता होती है।”
18 से 25 अप्रैल 2012 तक चलने वाले इस नवलेखक शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी (एस.एन.डी.टी.) महिला विश्वविद्यालय, मुंबई, की कुलगुरू एवं शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर वसुधा कामत ने इस अवसर पर भारत के कोने-कोने से आए हुए 25 प्रतिभागियों को बधाई देते हुए कहा कि रचनात्मक लेखन की कार्यशाला का उद्देश्य तभी सफल माना जाएगा जब आप लोग अपने जीवन में अच्छी से अच्छी रचनाएँ लिखें और अच्छे लेखक बनें। प्रोफ़ेसर कामत ने कहा कि साहित्य लोगों को जोड़ने का कार्य करता है और यहाँ आए हुए प्रतिभागियों ने अपनी रचनात्मकता का परिचय दिया है। उन्होंने प्रतिभागियों से कहा कि यह शिविर जीवन की सुनहरी याद बनकर आपके मन में सुरक्षित रहेगा। इस शिविर में प्रतिभागियों को साहित्य की विभिन्न विधाओं पर रचनात्मक लेखन की बारीकियों से अवगत कराया गया और उन्हें लेखन का अभ्यास भी कराया गया।
मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय के सभागार में लगातार आठ दिनों तक साहित्य का समागम होता रहा। इसमें दिल्ली से आए हिंदी के जाने-माने कथाकार श्री हरिसुमन बिष्ट और रायपुर से आए प्रसिद्ध समीक्षक एवं पत्रकार श्री सुधीर शर्मा ने विषय विशेषज्ञ के रूप में लगातार आठ दिनों तक प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया और उनकी रचनाधर्मिता को जाँचा परखा और उसे सँवारा। शिविर के आयोजन के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली से आए अनुसंधान अधिकारी श्री शैलेश बिडालिया ने प्रतिभागियों को निदेशालय की गतिविधियों से अवगत कराया। उन्होंने इस शिविर का आयोजन बड़ी कुशलता से किया।
इस शिविर के उद् घाटन के अवसर पर हरिसुमन बिष्ट ने कहा कि साहित्य लिखना बड़े दायित्व का कार्य है और हर लेखक को यह दायित्व निभाना ही पड़ता है। समाज के लिए आवश्यक है कि उसमें अच्छे लेखक पैदा होते रहें और ज़िम्मेदारी से लिखते रहें। सुधीर शर्मा ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन के सिद्धांतों पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब हम किसी विधा की तकनीक से परिचित होंगे, तभी उस विधा में अच्छा लेखन कैर सकेंगे। इस शिविर में असम, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि राज्यों के 25 हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखकों ने भाग लिया। इस दौरान प्रति दिन प्रतिभागियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया और विशेषज्ञों तथा अन्य प्रतिभागियों ने उन पर चर्चा की।
प्रसिद्ध उपन्यासकार श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने नवलेखकों को उपन्यास लेखन की तकनीक से परिचित कराया और उन्हें अपनी रचनाधर्मिता के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि कथा का सूत्र बहुत महीन होता है और कहीं से भी मिल सकता है। इसके लिए लेखक को पैनी नज़र रखनी पड़ती है। संतोषजी ने अपनी रचनाओं का सस्वर पाठ भी किया। शिविर में जानी मानी ग़ज़लकार सुमीता केशवा ने अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं का मन मोह लिया। सुमीता जी की ग़ज़लों को सुनकर पंजाब से प्रतिभागी कवि मनोज कुमार शर्मा ने भी अपनी ग़ज़लें सुनाईं।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि, कथाकार श्री विनोद दास ने शिविरार्थियों को काव्य-रचना की तकनीक बताई। उन्होंने कहा कि काव्य रचना के लिए मनुष्य को अपनी अनुभूतियों पर नियंत्रण करना चाहिए। अनुभूति जितनी गहन होगी, उसकी प्रस्तुति भी उतनी ही गहन होगी। परंतु अनुभूति में व्यक्ति को भुलाकर समष्टि की चिंता होगी तभी रचना श्रेष्ठ होगी। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री अनूप सेठी ने प्रतिभागियों को इंटरनेट पर हिंदी की संभावनाओं के विषय में विस्तार से बताया और उन्हें आधुनिक मीडिया से जुड़ने को प्रेरित किया।
हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका, अनुवादक और हिंदुस्तानी ज़बान की संपादक प्रोफ़ेसर माधुरी छेड़ा ने शिविर के प्रतिभागियों को कहानी लेखन की प्रविधि से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि एक अच्छी कहानी में गहन संवेदना होती है। आधुनिक कहानी के मूल्यांकन के लिए हमें आधुनिक औज़ार भी तलाशने होंगे। इस शिविर में डॉ. जीतेन्द्र तिवारी ने नाटक के बारे में अपने विचार रखे और प्रतिभागियों को नाटक विधा की विस्तृत जानकारी दी। डॉ. वत्सला शुक्ला ने तुलनात्मक अध्ययन और अनुवाद पर सार्थक विमर्श प्रस्तुत किया और प्रतिभागियों को उसके महत्व के बारे में बताया। श्रीमती इंदिरा तिवारी ने मीडिया लेखन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और प्रतिभागियों को मीडिया लेखन के सिद्धांतों के बारे में बताया। टी.सी.एल.वी. जूनियर कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कविता सोंदे ने कहा कि यहाँ पर एक मिनी भारत उपस्थित हो गया है।
आठ दिन के इस साहित्यिक उत्सव के संयोजक रवीन्द्र कात्यायन ने शुरू से अंत तक प्रतिभागियों के मार्गदर्शन, आवास, भ्रमण और अध्ययन-मनन का पूरा ध्यान रखा। मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. हर्षदा राठोड़ ने अपने कुशल नेतृत्व से इस शिविर को सफल बनाया। डॉ. राठोड़ ने इसके लिए एन.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की कुलगुरू प्रोफ़ेसर वसुधा कामत को हार्दिक धन्यवाद दिया और नानावटी महाविद्यालय की प्रबंध समिति के सदस्यों श्रीमती हिमाद्री नानावटी और डॉ. योगिनी शेठ का आभार माना।
धन्यवाद! सर... प्रकाशन हेतु आभार...
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