आसमां है तड़प जीने की तो इस घुटन में सांस लेके देखो है प्यास जीने की तो इस विष की बूंद पी के देखो , परों के साथ उड़ना आसन है.... इन हाथ...
आसमां
है तड़प जीने की तो इस घुटन में सांस लेके देखो
है प्यास जीने की तो इस विष की बूंद पी के देखो,
परों के साथ उड़ना आसन है....
इन हाथों के बल आसमां छू के देखो.
युद्ध ये खुद की पहचान से है
युद्ध पर विराम लगना नहीं
संघर्ष जो जारी रहा खुद से,
इस रूह का अंत होना नहीं.
मौत केवल सांस रुकना नहीं,
सर झुकाना हालत पर भी अंत ही है बे समझ...
पुष्प का ताज भी तैयार होगा
सर पर सजने को तुम्हारे बेताब होगा...
एक बार इस शूल की राह पर चल के देखो...
सीना तान एक बार हालत को ललकार के देखो.
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मदहोशी
रंग जमा है, सुरूर बना है, इस शोर में भी बसी है ख़ामोशी,
बहा है नीला पानी, बने है जाम और छाई है मदहोशी...
थम गया है लम्हा और धड़कनें तेज़ है
मुस्कुराते चेहरे और झूम रही है नज़रें
खोया सा सब कुछ और सब कुछ पाया इस शाम में
जानी पहचानी सी महफ़िल है और अंजना है हर कोई
डगमगाता सा ये जहां, हम ही बचे होश में,
धुंधला सा आसमां और सितारे आ बसे इस शाम में...
रंग जमा है, सुरूर बना है, इस शोर में भी बसी है ख़ामोशी,
बहा है नीला पानी, बने है जाम और छाई है मदहोशी..
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आशिकी
आशिकी की नहीं जाती इस दिल से
पल दो पल की मोहब्बत ही गवारा है.
ना जाने क्या रोग है ये, पाला नहीं जाता....
सौंप दो ये सब किसी गैर को जो हमारा है.
दर्द ही दर्द है बस कुछ पल ख़ुशी के बदले...
ये क्या दस्तूर हे उजाड़ देने का हसरतों को
जिसे इतनी मिन्नतों से संवारा है...
ठंड पाने की तमन्ना से आशिकी अपनाई एक बार...
हम बेसमझ अंजान उस एहसास से...
थाम लिया उसे सोचे बिना की ये अंगारा है...
आशिकी की नहीं जाती इस दिल से
पल दो पल की मोहब्बत ही गंवारा है.
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जुस्तजू
जीने की जुस्तजू में सांस लेना भूल गया
चमक पाने की ख्वाहिश सवार सर पे...
अपना रंग ही घुल गया....
पाना था जो, उस से आज भी अनजान हूँ...
धड़कनें तो वही है, फिर भी बेजान हूँ...
खुद की पहचान बनाने चला बे-समझ,
ख्वाब जीने का, इस असलियत में ही घुल गया...
जीने की जुस्तजू में सांस लेना ही भूल गया...
क्या श्याम, क्या श्वेत सब एक समझा,
हर कदम मंजिल की ओर नेक समझा...
तथ्य और मिथ्या के इस जाल में ही झूल गया,
जीने की जुस्तजू में सांस लेना ही भूल गया....
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अजनबी
तिमिर सा था सब कुछ वो एक झलक से पहले
अज्ञात खयालों में खोजता था उस अजनबी को
जान कर भी ख्वाब ही एक द्वार है मिलने का उसे
राह तक ना ही ध्येय था वो एक झलक से पहले
स्वर्ण थी किस्मत मेरी या वरदान था किसी देव का
साक्षात् था वो ख्वाब जो, बेचैन देख भी शांत था
सर उठाये बंद होठों से बयाँ था ये सिलसिला
जलन उसमें भी उतनी उन आँखों में ये शोर था
अपनाने को ख़ुशी खुशी सिर्फ आत्मा भी तैयार था मैं
पर सौन्दर्य था वो किसी और युग का
चक्षु थे जकड़े मुझे, लहराते वो केश थे
सोच थम गयी वहीँ, जिस ओर थी वो मेरा मन उस ओर था
प्रेम बाँध जिए जीवन ये इंतज़ार वो व्यर्थ नहीं
अब जो खोया ये मोती तो इस जीवन का अर्थ नहीं
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सफ़र
रस्ते चल रहे है, लेकिन कदम रुक चुके हैं,
वक्त बह रहा है, लेकिन फासले थम चुके हैं,
ख्वाबों का पीछा करते हुए...
बस इस सफ़र पर यू ही खो चुके हैं...
मंजिल भी गुमशुदा है और ये राहें भी,
इस भीड़ में भी तनहा खड़े
अनजान बन चुका है अपना साया भी...
सुकून ढूंढ़ रही है पलकें,
नज़रें भी कुछ नम सी है...
यही रुकने की तमन्ना है, लेकिन हम राही बढ़ चुके हैं,
अपनी ही तस्वीर से बेखबर, खुद से बेगाने बन चुके हैं.
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इल्तजा
उनके रुक जाने की कई बार इल्तजा की है हमने
माना की हमसे कुछ खफा से रहते हैं...
हाथ छोड़ देने की फितरत अपनी भी नहीं,
दर्द देने दो उन्हें, हम भी हंस कर सहते हैं..
ये यकीं है हमें खुदपर, उनपर...
चोट इस दिल पर लगेगी...
आह कहीं और से निकलेगी...
ज़ख़्म लेना भी मंज़ूर जो अगर उनकी खुशबू में महकते हैं...
दीवाने हो गए ज़माने के लिए, हम इसे शिद्दत कहते हैं...
हद्द तय नहीं की इस मोहब्बत की अभी
सिर्फ दीदार ही उनके काफी है...
हाज़िर है कदमों में उनके तोड़कर दीवारें सभी...
वादा है, सजा ए मौत भी मंजूर जो कदम बहकते हैं...
बेताबी भूल साथ जीने की, साथ मरने के इत्मिनान में रहते हैं...
उनके रुक जाने की कई बार इल्तजा की है हमने,
माना की हमसे कुछ खफा से रहते हैं...
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हंसी हमसफ़र
शाम का कारवां और हंसी हमसफ़र साथ है...
शाम का कारवां और हंसी हमसफ़र साथ है,
दूरियां कम कर रही है फलक हमारे दर्मियां...
ख्वाब ही है जो उनके हाथों में हाथ है.
ख्वाहिश हर पल इस पल को थाम लेने की थी मगर...
शिद्धत तो इन ख्वाबों में ही थी छू पाने की उन्हें...
माना हकीकत नहीं लम्हा फिर भी इसे जीने में कुछ बात है...
शाम का कारवां और हंसी हमसफ़र साथ है
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कर्म ही महान
ये कर्म ही महान है
यश का वही केवल द्वार है
किस्मत छपी हथेलियों में
हाथों की रेखा तो शृंगार है
धूप छाँव सर्द पसीना बाधाएँ नहीं
ये आभास है फासला आसन नहीं
हर कदम जो लंघता है
इस घडी को फंदता हे
एहसास है मंजिल ये दूर नहीं
शूल जो गुलाब में है
श्राप नहीं वरदान है
सख्त है रास्ता वो
सौन्दर्य नापता जो
ताकत इन बाजुओं की
पर्वत हिला सकी कई बार
कर्म ही जौहर दिखाता अंत में तो
देव वाणी भी नत मस्तक हुई
कर्म के आगे हर बार.
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अविश्वसनीय
अविश्वसनीय है जो वो ही सत्य है,
भ्रम है ये सब, जीवन तो कहीं और है....
जनम मरण खेल भर है...
न कोई साथ हे ना घर है...
डोर हे ये सब जिसका ये पहला छोर है...
तेज़ है सूर्य सा उस छोर पे,
अंत मानो असीम है...
रोशन दुनिया वही, यहाँ अँधेरा घोर है...
चीख आंसू क्रोध घृणा,
चलन इस संसार का है...
प्रेम ही भाषा वहां, न इसके सिवा कोई शोर है...
समाना ही अंत उसमें निश्चित हे
अधीर सा मनन ज्योति वो पाने को...
ये सब एक रात भर है, मनो वो जीवन भोर है...
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कोशिश
कोशिश तो की है आसमां छूने की कई बार,
इस ऊंचाई से कभी शिकवा न रही....
मंजिल तो मुमकिन सी थी,
हौसले भी बुलंद थे....
सितारों को छूने भर की दुरी ही थी,
पर ना जाने क्यों फितरत ही रुसवा रही...
कोशिश तो की पर खोल के उड़ने की कई बार...
इन तेज़ हवाओं से कभी शिकवा न रही...
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सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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