प्र स्तावना ः- वर्तमान समय में मीडिया की अनुवाद आवश्यकता बन गई है। मीडिया सीमा विहीन है। इसलिएमीडिया को भौगोलिक सीमा को भूलकर अपने पाठा...
प्रस्तावना ः-
वर्तमान समय में मीडिया की अनुवाद आवश्यकता बन गई है। मीडिया सीमा विहीन है। इसलिएमीडिया को भौगोलिक सीमा को भूलकर अपने पाठाकों की भाषा में समाचारों को प्रस्तुत करना होता है। विश्व और भारत में भाषाई विविधता के कारण यह प्रस्तुतिकरण मात्र अनुवाद से संभव है। सामान्यतः देश विदेश के समाचार वहां के समाचार ऐजेंसियों द्वारा उस देश की अपनी मूल भाषा में विश्व के अन्य देशों के समाचार पत्रों में प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं। विदेशी भाषा में प्राप्त इन समाचारों को अनूदित करके प्रत्येक देश के समाचार पत्र इसे अपनी भाषा या भाषाओं में प्रकाशित करते हैं।
उदाहारण के लिए रूस, चीन, जापान, फ्रांस, अमेरिका अथवा इंग्लैण्ड से समस्त समाचार न तो अंग्रेजी भाषा में प्राप्त होते हैं, और न हिंदी और भारतीय भाषाओं में। यह उस देश की अपनी-अपनी भाषाओं में लिखे होते हैं। इन सभी समाचारों को अनूदित करके देश विशेष की भाषा में वहां के समाचार पत्र प्रकाशित करते हैं। इसलिए पत्रकारिता और अनुवाद का अंतरसंबंध बहुत घनिष्ट और नजदीकी है। विश्वपटल और भारत में भाषाई विविधता होने के नाते पत्रकारिता में समाचार की सत्यता के लिए अनुवाद का सहारा लेना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। खासकर हिंदी पत्रकारिता के संदर्भ में ‘‘सभी हिंदी में प्रकाशित होनेवाले अखबारों को अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य के निरन्तर अद्य़तन और सही ढंग से अंकन के लिए अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की सहायता लेनी ही होती है।‘‘
वर्तमान समय तकनीक और प्रौद्योगिकी का समय होने के नाते संचार माध्यमों में काफी बदलाव आया है। पत्रकारिता का चेहरा पूर्ण रुप से बदल गया है। इंटरनेट के माध्यम से आम जनता प्रत्येक समाचार को बहुत ही जल्दी जान रही है। कसी एक खब़र को जानने के लिए प्रिंट मीडि़या के प्रकाशित समाचार पत्र,टेलीविजन के 7ः00 बजे या 9ः00 बजे वाले समाचार और रेडियो द्वारा प्रसारित विशिष्ट समय के समाचार पर निर्भर होने की आज आवश्यकता नहीं है। आज आप घटना के कुछ ही घन्टों में तस्वीर के साथ इंटरनेट के माध्यम से एक क्लिक पर सब कुछ देख और जान सकते हैं। ब्लॉग, सोशल नेटवर्किग और ई-पेपर के माध्यम से पत्रकारिता का विस्तार हुआ है। ये सारे विस्तार और बदलाव सकारात्मक है किन्तु सत्यता और प्रामाणिकता के लिए भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले अख़बारों को अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के अखबारों की सहायता लेनी पड़ती है। भारतीय संदर्भ में अग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के अख़बारों में प्रकाशित समाचारों को प्रामाणिक मानते हैं तब भारतीय भाषाओं में प्रकाशित अखबारों के लिए अनुवाद की सहायता महत्वपूर्ण बन जाती है।
यह कड़वी सच्चाई है कि, भारतीय भाषाओं में किए गए शोधों की गुणवत्ता अन्य विदेशी भाषाओं में किए गए शोधों की गुणवत्ता से तुलनात्मक रुप से निम्न स्तर की है। भारत के शोधार्थियों में अपने विषय के तह तक जाने की प्रवृत्ती नहीं दिखाई देती। इसलिए समाचार पत्रों के लेखों और सं पादीत लेखों के लिए संपादक महोदय को ही नहीं, तो किसी भी विषय के अध्ययन कर्ताओं को अधिकतर अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के अध्ययन सामग्री पर निर्भर होना पड़ता है। भारतीय भाषाओं में प्रमाणिक संदर्भ पुस्तकें कम होने के कारण अन्य भाषाओं के संदर्भ पुस्तकों का अनुवाद करना आवश्यकता बन जाती है। अनुवाद के कारण ही भारतीय पत्रकारिता में विचारों का परस्पर आदान प्रदान संभव हुआ है। इसी माध्यम से अलग-अलग संस्कृतियों की जानकारी एवं राज्यों-राज्यों में आपसी तालमेल स्थापित होगा। ऐसे कई संदर्भो में अनुवाद का महत्व बढ़ जाता है।
हर देश में, समय और कालानुरूप अनुवाद होते गए है, खासकर धर्मं प्रसार के साहित्य के संदर्भ में अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। दूसरी और अनुवाद के संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि, ‘‘अनुवाद एक ऐसा माध्यम है जो परस्पर अपरिचित भाषाओं के संसार को एक-दूसरे के समीप लाता है और एक नई पहचान की सृष्टि करता है। इससे अपरिचित ज्ञान के विविध द्वार खुलते हैं। मनुष्य नई सम्भावनाओं, नई अभिव्यक्तियों और नई दक्षताओं से सम्पन्न होता है।‘‘
उपरोक्त कथन पत्रकारिता में अनुवाद की अनिवार्य भूमिका को स्पष्ट करता है। तो दूसरी और यह कहना उचित होगा कि, पत्रकारिता में अनुवाद के कारण ज्ञान का विस्तार होता है। लोगों को नई-नई सूचनाओं से अवगत करना, अनुवाद के कारण सम्भव हुआ है। इसलिए ‘‘हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा अनुवाद पर आधारित रहा है।‘‘
यह बात सच है कि वर्तमान समय में हिंदी में मौलिक सोच और लेखन करने वाले पत्रकार, सम्पादकों की संख्या बढ़ी है किन्तु अन्तर्रा ष्ट्रीय समाचारों, पुस्तक समीक्षा, तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे विषय के लिए आज भी अनुवाद ही सहायक बना हुआ है। क्योंकि ज्यादातर विज्ञान का साहित्य अंग्रेजी भाषा में लिखा जाता है, यह सच्चाई है। तो दूसरी और वर्तमान समय और आग़े भी भाषाई विविधता जब-तक होगी तब-तक भारतीय भाषायी अखबारों में अंग्रेजी समाचार एजेंसियों से खबरों को हिन्दी या अन्य भारतीय प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद करना अनिवार्यं होगा और भविष्य में इसका महत्त्व कम होने की बजाए बढ़ता जाएगा।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आज यह आवश्यक है कि, भारतीय भाषायी पत्रकारों की अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ होनी चाहिए। उन्हें अंग्रेजी से अपनी भाषाओं में खबर या लेख का अनुवाद करना आना चाहिए।इससे यह सिद्ध होता है कि, पत्रकार को अनुवाद के ज्ञान की अनि वार्यता है। तभी वह भाषायी विविधता वाले देश में अपने पाठकों को न्याय दे सकता है।
किसी एक भाषा के ज्ञान की अपनी मर्यादांए होती है। सोच का एक दायरा होता है। पत्रकारों को इस दायरे से बाहर निकालकर सोचना आवश्यक है। किसी व्यक्ति विशेष के विचारों को अपनी भाषा के समाचार पत्र के माध्यम से प्रेषित करने के लिए अंग्रेजी भाषा पढ़ना तथा उससे अनुवाद करना पत्रकार के लिए आवश्यक है। तभी वह अपने पाठकों कुछ नया विचार, दर्शन दे सकता है। जो सुधी पाठकों की अपेक्षाएं होती हैं।
वर्तमान समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया का काफी बोलबाला है। कुछ चैनल चोबीसो घण्टे समाचारतथा उसका विश्लेषण देते हैं। ‘‘इन न्यूज चैनलों के विस्फोट से अनुवाद की भूमिका में एक नया आयाम जुड़ा है।'‘
जैसे- प्रत्येक चैनल हिंदी और अंग्रेजी में समाचार देता है तब उसे अनुवाद की जरुरत होती है। तो कुछ अंग्रेजी के चैनल अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए हिंदी भाषा में भी अपने अंग्रेजी समाचारों का संक्षेप में हिंदी लिखित रुप प्रसारित करते हैं । तो दूसरी और हिंदी चैनल भी विशिष्ट समय अंग्रेजी में समाचार प्रसारित करते हैं। यह दोनों प्रसारण अनुवाद के मध्यम से ही संभव होते हैं।उपर्युक्त विश्लेषण से यह बात स्पष्ट होती है कि, इलेक्ट्रानिक मीडिया का भी काम अनुवाद के बगैर नहीं चलता। बल्कि उसे तो प्रसारण की समय सीमा ज्यादा होने के नाते ज्यादा अनुवाद करना पड़ता है। जाहिर है ज्यादा कार्यक्रम का प्रसारण याने ज्यादा अनुवाद का कार्य।
सामाचार चैनलों को विदेश से प्राप्त खबरें अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में होती हैं। इसका हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में तत्काल अनुवाद कर समाचार प्रेषित करना होता है। इसलिए पत्रकार महोदय दुभाषी तथा अंगे ्रजी से भारतीय भाषा में अनुवाद करने के लिए सक्षम होना आवश्यक है।जनसंचार का क्षेत्र विस्तार बहुत बड़ा है। इसमें सिनेमा, वृत्तचित्र टेलीविजन धारावाहिक, और विभिन्न मनोरंजन कार्यक्रम आते हैं। इन सभी में अनुवाद की अपनी विशिष्ट भूमिका होती है। भाषाई विविधता के कारण मनोरंजनात्मक, शौक्षिक और अन्य कार्यक्रमों को भारत के संदर्भ में भारतीय भाषाओं तथा अन्य देशों तथा राज्यों के संदर्भ में वहां की मातृभाषा में प्रेषित किया जाता है।मनोरंजनात्मक कार्यक्रम प्रसारण के कारण मीडिया एक उदयोग बन चुका है। विश्व प्रसिद्ध चैनल और उत्पाद भारत और अन्य देशों में अपना व्यापार करने हेतु अनुवाद के सहारे उस देश की भाषा में कार्यक्रमों तथा उत्पादों की जानकारी अनूदित करके ही अपने उद्देश्य में सफल होते हैं। उदाहारण के लिए विश्व का प्रसिद्ध डिस्कवरी चैनल आज भी अपने सभी कार्यक्रमों को भारत में हिदी भाषा में प्रसारित करता है। इसी तरह कई अंग्रेजी फिल्मों को ‘हिन्दी सब टाइटलिंग' तथा प्रोदशिक फिल्मों को ‘अंग्रेजी सबटाइटलिंग' के साथ प्रदर्शत किया जाता है। उपर्युक्त सभी कार्य अनुवाद के माध्यम से ही किए जाते हैं ।
पत्रकार एक भाषा के माध्यम से अपनी बात जनता के बीच रखता है। जनता भी उसे एक भाषा के माध्यम से ग्रहण करती है। इसलिए यहा यह कहना उचित होगा की भाषा का अनुवाद से गहरा सम्बन्ध है। तो दूसरी और प्रत्येक भाषा की अपनी व्यवस्था होती हैं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ होते हैं।जिनको अन्य भाषाओं में व्यक्त करने के लिए समानार्थी शब्द नहीं होते या दोनों भाषाओं की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि समान नहीं होती । इसलिए अनुवाद कार्य कठिन हो जाता है। और पत्रकारों को भावानुवाद या अन्य अनुवाद प्रकार का सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि पत्रकार महोदय को समाचार को बहुत जल्द प्रकाशन हेतु देना होता है। कई सारे समाचारों के अनुवाद की लम्बीं सूची उसके पास होती हैं। कम समय के चलते वह भावानुवाद और सारानुवाद ही कर पाता है। किन्तु यह अनुवाद कार्य कभी-कभी समाचार पत्र में उपलब्ध जगह पर निर्भर करता है।
प्रत्येक विधा की अपनी एक अलग भाषा होती है। जनसंचार माध्यम भी इससे अछूता नहीं है। उसकी भी अपनी एक विशिष्ट भाषा है। यह भाषा सूचना परक और सरल है क्योंकि इसे सामान्य जनों के बीच व्यावहार करना होता है। इसलिए इसके अनुवाद में भी सरलता, सहजता और पठनीयता चाहिए । न की साहित्य की तरह शैली का विशिष्ट आग्रह। किन्तु हर पत्रकार की अपनी एक अनुवाद करने की शैली जरूर होती है। इसके बावजूद अनूदित समाचार में भी आपको एक लय दिखाई देती है। विशिष्ट भाषा और पदों का सुघड़ संयोजन दिखाई देता है। जो अनुवाद होकर भी अनुवाद नहीं लगता। यह पत्रकार के अनुवाद कार्य के लम्बे अनुभव से सम्भव होता है।
पत्रकारिता और अनुवाद ः परस्पर सम्बन्ध
पत्रकारिता और अनुवाद का परस्पर सम्बन्ध घनिष्ट है, क्योंकि देश दुनिया की खबरों के लिए पत्रकार को अनुवाद का सहारा लेना ही पड़ता है। इसका कारण देश दुनिया कि भाषाएं अलग-अलग है।हम सब यह जानते है कि, ‘ ‘पत्रकारिता का पहला उद्देश्य है पाठकों को उनके चारों और घट रही घटनाओं, पनप रही प्रवृत्तियों, हो रहे शोधकार्यों, वैज्ञानिक प्रगति और आसन्न खतरों से अवगत कराना है। इसी के साथ घटनाओं, प्रवृत्तियों और मानव को प्रभावित करनेवाले मुद्दों का अर्थ बताना भी उसका कर्तव्य है। संक्षेप में, जो जानने योग्य है उसे प्रस्तुत करना उसका लक्ष्य है।''
उपर्युक्त सभी चीजों से अवगत कराने के लिए पत्रकार को अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि वैज्ञानिक प्रगति तथा शोधकार्य जैसे विषयों की जानकारी अंग्रेजी या अन्य-अन्य भाषाओं में उपलब्ध होती रहती हैं।
समाचार पत्र को मुख्य उद्देश्य जनता कों देश विदेश में घटित घटनाओं से अवगत कराना है। जनता को अवगत करने के लिए पत्रकार की भाषा सरल, सुलभ, सूचनापरक, प्रवाही होनी चाहिए। इसलिए पत्रकार को अनुवाद करते समय ‘‘सटीक और सहज अनुवाद करने के लिए अर्थ विज्ञान और दोनों भाषाओं की विषमताओं की जानकारी होनी चाहिए।''इसके न होने से अनायास ही अनुवाद अटपटा लगता है।
निम्नलिखित उदाहरणों से हम इसे समझ सकते हैं।
राजधानी से एक दैनिक पत्र के प्रथम पृष्ठ में छपे कुछ वाक्य इस प्रकार है। जैसे- यह वाक्य (1) गोर्बाचोव ‘ स्वास्थ्य कारणों' से अपना कार्य संचालन करने में असमर्थ है। इस वाक्य में ‘स्वास्थ्य कारणों से' ‘रिजंस आफ हेल्थ' का शाब्दिक अनुवाद है। इसका उचित अनुवाद है ‘अस्वस्थता के कारण' । दूसरा वाक्य है- (2) प्रवक्ता ने कहा गोर्बाचोव अपने सरकारी निवास पर ‘ गिरफ्तारी की अवस्था' में हैं। इस वाक्य में ‘गिरफ्तारी की अवस्था' का कहीं पर भी अर्थ नहीं लग रहा है। ‘गिरफ्तारी की अवस्था' यह वाक्य संरचना ही अपने आप में इस वाक्य में ठीक नहीं बैठती। इसका अनुवाद होना चाहिए ‘नरजबन्द' है। इस तरह पत्रकारिता के अनुवाद की गड़बडिया पत्रकार को अर्थ विज्ञान और व्यतिरेकी भाषाविज्ञान के ज्ञान के अभाव के कारण होती है। अनुवाद के लिए इन दोनों का ज्ञान होना पत्रकार के लिए आवश्यक है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद करने वाले सभी पत्रकार तथा अनुवादकों को स्थान भेद की जानकारी होना भी आवश्यक होता है। क्योंकि एक ही तरह के काम करने वाले व्यक्तियों को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नाम हैं। जैसे - (1) भारत में ‘वित्तमन्त्री' जो काम करते हैं वह काम ब्रिटेन में ‘चांसलर और एक्सचेकर' करता है। (2) अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत मंत्रियों को ‘ सेक्रेटरी' कहा जाता है उसे भारत में हम मंत्री ही कहेंगे, ‘सचिव' नहीं।
पत्रकारिता के अनुवाद का व्याकरण ः-
पत्रकारिता के अनुवाद में व्याकरणिक कोटियों का बड़ा महत्व है। जैसे- वचन का ज्ञान होनाआवश्यक है। हिन्दी और अंग्रेजी में दो वचन है। एकवचन और बहुवचन किन्तु प्रयोग और वर्तनी के कारण कई असंगतियाँ दिखाई देती है। जैसे - सम्मान देने के लिए क्रिया का बहुवचन रुप प्रयोग किया जाता है।उदा․- (1) पिता आए हैं। (2) कल गोर्बाचोव भारत से रवाना हो रहे हैं आदि। दूसरी और कभी-कभी बहुवचन की जगह एकवचन अच्छा लगता है। उदा․ - (1)भारतीय विदेश में भी अपने देश को नहीं भूलता । इस वाक्य में ‘ भारतीय ' समस्त देशवासियों के लिए है। इसी के समान कारक चिन्ह और उपपद को भी अनुवाद करते समय ध्यान में रखना आवश्यक है। दूसरी और कभी-कभी अनुवाद करते समय कुछ छोड़ना पड़ता है तो कुछ अपनी और से जोड़ना पड़ता है। जैसे- अंग्रेजी का यह वाक्य ‘राइट नाउ, आई कान्टप्रामिज एनी थिंग'- का हिन्दी अनुवाद - ‘अभी मैं कुछ नहीं कह सकता' है। इसमें अनुवादक को कुछ छोड़ना पड़ा है। तो दूसरा अंग्रेजी का वाक्य- ‘ ही लेट-आउट हिज हाऊस' का हिन्दी अनुवाद हैं। ‘उसने अपना मकान किराए पर दिया'। इसमें अपनी और से अनुवादक ने कुछ जोड़ा है।
अनुवाद में विशेषण का भी विशेष ध्यान देना होता है। जैसे - अमेरिका का विशेषण अमेरिकी होगा। इसी तरह इटली का इलातवी और यूनान का यूनानी। और उदाहरणों में गुलाब का गुलाबी, मामा का ममेरा, साल का सालाना और रंग का रंगीन आदि।
मुहावरे और लोकोक्तियां ः-
मुहावरे और लोकोक्तियों कें संदर्भ में अनुवादक को विशेष सावधानी बरतनी होती है। क्योंकि स्थान और सांस्कृतिक विविधता के कारण एक भाषा के मुहावरों और लोकोक्तियों का वैसे ही अर्थ देनेवाले मुहावरें और लोकोक्तियाँ दूसरी भाषा में हो यह जरूरी नहीं है। खासकर अंग्रेजी से अनुवाद करते समय इसके मुहावरों के भाषिक इकाईयों की पहचान सही ढँग से होना आवश्यक है। वरना गलत अनुवाद की पूर्ण सम्भावना होती है। अंग्रेजी मुहावरों के अर्थ के समान भारतीय भाषाओं में समान मुहावरें न मिले यह सम्भव है। ऐसी स्थिति में अनुवादक सरल भावानुवाद करके काम चला सकता है। जैसे- ‘ऑल इज वेल दैट एंड़स वेल' - का अनुवादक ‘अन्त भला तो सब भला' या ‘नेसेसिटी इज द मदर ऑफ इनवेशन' का सरल अनुवाद ‘आवश्यकता अविष्कार की जननी है'। इस तरह से करना उचित है। तो ‘ए ड्राप इन द ओशन' का ‘उँट के मुँह में जीरा' सही अनुवाद है।
वाक्य रचना ः-
अनुवाद में वाक्य रचना या पठनीयता का अनुवादक को ज्यादा ध्यान रखना होता है। किसी भी एक भाषा के शब्दों और पदों की समानार्थी और निकटार्थी अभिव्यक्तियों की सरंचना मिलने पर कभी-कभीस्त्रोत भाषा के वाक्य की बनावट अनुवादक को संकट में डालती है। तो दूसरी और स्त्रोत भाषा की वाक्य रचना अनुवादक पर इतनी हावी हो जाती है कि उस वाक्य में निहित अर्थभेद के व्यतिरेक की और उसका ध्यान ही नहीं जाता। जैसे- अंग्रेजी का यह वाक्य लीजिए- ‘‘प्रेजिडेंट जिया कैननॉट फील सिक्योर इन इस्लामाबाद इफ ए सेकुलर रेजीम रूल्स इन काबूल।''इसका सही अनुवाद है ‘यदि काबुल में धर्मनिरपेक्ष सरकार बनती है तो इस्लामाबाद में राष्ट्रपति जनरल जिया सुरक्षित अनुभव नहीं करेंगे।' यह नहीं की प्रेजिडेंट जिया ‘अस्वस्थ होगें'। दूसरा वाक्य अंग्रेजी वाक्यरचना के अनुसार अनूदित है। जैसे ‘‘ आज यहाँ बीस आदमी मारे गए जबकि रेलगाड़ी पटरी से उतर गई।'' सही अनुवाद है- ‘रेलगाड़ी के पटरी से उतर जाने पर आज यहाँ बीस आदमी मारे गए।'
इससे यह स्पष्ट होता है कि, अनुवादक को स्त्रोत भाषा के वाक्य रचना को बहुत सूक्ष्मता से समझकर लक्ष्य भाषा में वाक्य रचना हो सकती है या नहीं इसपर ध्यान देना आवश्यक होता है। अन्यथा अर्थ का अनर्थ होता है तथा अनुवाद अटपटा लगता है।
पत्रकारिता के अनुवाद में यह ध्यान रखना अतिआवश्यक है कि, लक्ष्य भाषा की प्रकृति क्या है ?लक्ष्य भाषा के अनुवाद में भी सहज प्रवाह और लोच आना चाहिए। इस लोच और प्रवाह के लिए अनुवादक को विशिष्ट जगहों पर शब्दों और पदों के चयन पर ध्यान देने की जरूरत होती है। तो कहीं लक्ष्य भाषा के व्याकरण और उसकी प्रकृति पर। किंतु पत्रकार अनुवादक समय और व्यस्तता के कारण ध्यान नहीं दे पाते।कुछ जगहों पर स्त्रोत भाषा के कुछ शब्द लक्ष्य भाषा में ज्यों के त्यों रख सकते हैं, खास कर अंग्रेजी, हिंदी, मराठी अनुवाद के संदर्भ में। जैसे - अंग्रेजी के ये शब्द रेल, स्कूल, पुलिस, सीमेंट, बस साईकिल, मोटार, पेट्रोल, डीज़ल आदि। इनका अनुवाद हिंदी, मराठी में वैसा ही होगा क्योंकि जनमानस मेंयहीं शब्द दोनों भाषा में वैसे के वैसे रूढ़ हो गए हैं।
वर्तनी ः-
पत्रकारों के सामने अनुवाद करते समय ज्यादातर समस्या व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के वर्तनी की अ ातीहै। खासकर अंग्रेजी से अनुवाद करते समय। क्योंकि अंग्रेजी के नामों के अनुवाद के समय गलती की गुंजाइश बनती है। ये गड़बड़ अंग्रेजी वर्तनी के कारण हिंदी और मराठी अनुवाद में होती है। जैसे - अंग्रेजी Kamal Hasan का हिंदी, मराठी में कमाल हासन बनता है, तो Mithun Chakravarti का मिठुन चक्रवर्ती । किन्तु सही अनुवाद कमल हसन और मिथुन चक्रवर्ती है।
पत्रकारिता के अनुवाद ने अपनी समस्या को कम करने के लिए अंग्रेजी के ढेरों शब्दों को हिन्दी में वैसे-के-वैसे लाया और ये सभी शब्द जनमानस ने स्वीकार किए है। जैसे- टेलीफोन, कूलर, अपार्टमेंट, पेन, टेबल, रोड आदि। ये शब्द हिंदी भाषा के आम प्रचलन में आने से हिंदी के लगने लगे है। तो दूसरी और अंग्रेजी में भी हिंदी के शब्द चल रहे हैं। और इनको शब्दकोश में प्रवेश भी मिला है। जैसे- लाठीचार्ज, आचार, चटणी, घेराव आदि। यह सब पत्रकारिता के अनुवाद के कारण ही हुआ है। अब अंग्रेजी अंग्रेजी न रहकर हिंगलिश या हिंग्रेजी बन गई है।
हम अखबारी भाषा पर नज़र डालने से यह समझते हैं, कि इसकी भाषा सरल होती है। इसलिए जब इसका अनुवाद होगा तो वह भी सरल होना चाहिए। इसलिए ‘‘अखबारी अनुवाद में तो सरलता एक अपरिहार्य तत्व है।''
इस तत्व के पालन में अखबारी अनुवाद सरल है। क्योंकि अखबारों में सीमित संख्या में शब्दों का प्रयोग होता है। ज्यादातर पत्रकार अनुवाद करते समय इन्हीं सीमित शब्दों के साथ अनुवाद में नए-नए प्रयोग करते हैं। जो अपने पाठकों की पढ़ने की रूची को बढ़ाते हैं। क्योंकि आज के समय में अनुवाद शाब्दिक अनुवाद न रहकर उससे काफी आगे जा चुका है। इतना की उसमें सम्पादन-विवेक आ गया है। ज्यादा तर अखबार अनुवाद से निकल रहे हैं - किन्तु लग रहे हैं जैसे मूल लेखन है। यह सब संभव होने के पीछे अनुवादक को आज उपलब्ध सुविधाओं में अच्छे शब्दकोश सहज सुलभ हो गए हैं। तो दूसरी और इंटरनेट पर उपलब्ध परिभाषा कोश, थिसारस आदि से सहायता मिल रही है। ये सभी उपकरण अनुवाद को मददगार सिद्ध हो रहे हैं।
निष्कर्ष ः-
समाचारों के अनुवाद के समय कथ्य के अलावा भाषा की सरलता और शैली की रोचकता परविशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। पत्रकार स्त्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के मर्म से अच्छी तरह से परिचित हो, तथा उसे दोनों भाषाओं के मुहावरों, लोकोक्तियों को समझने की शक्ति हो। तथा उ से दोनों भाषाओं की व्याकरणिक, सांस्कृतिक और अर्थगत भिन्नताओं का ज्ञान अवश्य हो तभी वह सरल, स्वाभाविक और मूल केकरीब याने सूचनापरक अनुवाद कर सकता है। जो पत्रकारिता के अनुवाद की अनिवार्य आवश्यकता है।
संदर्भ
1) डॉ․ वर्मा, सुजाता, पत्रकारिता ः प्रशिक्षण एवं प्रेस विधि, आशिश प्रकाशन, कानपूर, 2005, पृष्ठ- 172
2) गुप्त, जिन्तेन्द्र, पियदर्शन और प्रकाश अरूण, सं․ रामशरण जोशी, पत्रकारिता में अनुवाद, राधा कृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 2006, सम्पादकीय
3) वही․ सम्पादकीय पृ․ ग्प्ट4) वही․ सम्पादकीय पृ․ ग्प्ट
5) वही․ पृ․ 29-30
6) वही․ पृ․ 42
7) वही․ पृ․ 48
8) वही․ पृ․ 91
सहायक ग्रंथ
1) अनुवाद पत्रिका, अप्रैल-जून 2011, अंक ः 147, भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली
2) अनुवाद पत्रिका, जुलाई-सितम्बर 2011, अंक ः 148, भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली
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शैलेश मरजी कदम
सहायक प्रोफेसर,
म. गा. दूरस्थ शिक्षा केन्द्र,
म.गां.अ.हि.वि., वर्धा
मो. 9423643576
kadamshailesh05@gmail.com
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