भारत सरकार निरंतर महिला एवं पुरूषों को साक्षर करने के अभियान में जुटी है, लेकिन बात है कि शत प्रतिशत बनती नहीं। अब केवल ग्रामीण महिलाओं को...
भारत सरकार निरंतर महिला एवं पुरूषों को साक्षर करने के अभियान में जुटी है, लेकिन बात है कि शत प्रतिशत बनती नहीं। अब केवल ग्रामीण महिलाओं को केंद्र में रखकर कंप्यूटर कर्यात्मक साक्षरता की शुरूआत हुई है। इसकी औपचारिक शुरूआत राष्ट्रपति प्रतिभादेवी पाटिल ने की है। कार्यात्मक साक्षरता के मायने हैं कि काम करते हुए साक्षर होना। मसलन आम के आम गुठलियों के दाम। यह रही न मजेदार बात। महात्मा गांधी ने तो आजादी के वक्त ही रोजगार मूलक शिक्षा पर जोर दिया था। जिससे लोगों को डिग्री हासिल करने के बाद केवल सरकारी नौकरी पर निर्भर न रहना पड़े। आर्थिक स्वावलंबन का यही सर्वोत्तम रास्ता था। किंतु गुलाम मानसिकता के शिकार बने रहने के कारण हम इस रास्ते से भटक गए।
अब राज्य संसाधन केंद्र प्रौढ़ शिक्षा के मार्फत कई दूरांचलों में भारत की सभी महिलाओं को साक्षर करने के नजरिए से कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता कार्यक्रम जारी है। लगातार 40 दिन चलने वाले ऐसे ही एक शिविर में इस लेखक का भी जाना हुआ। यह शिविर देवी पीतांबरा पीठ मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध दतिया जिले के इंदरगढ़ में चल रहा था। यहां महिला साक्षरता 50 प्रतिशत से भी कम है। ये शिविर खासतौर से उन विकासखण्डों में लगाए जा रहे है, जो अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति बहुल हैं। इंदरगढ़ हरिजन बहुल इलाका है। इसी तरह से मण्डला में बैगा और मंदसौर में बांछड़ा बहुल क्षेत्रों में कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता शिविर चलाए जा रहे हैं।
20 साल की पूजा यहां सिलाई के काम के साथ कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रगट व लुप्त होते क,ख,ग, घ अक्षरों के माध्यम से साक्षर भी हो रही है और सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का काम भी सीख रही है। स्वयंसेविका ज्योति उसे जहां कंप्यूटर पर बाल भारती पुस्तक के पाठ पढ़ा रही है, वहीं भारती कपड़ों की कटाई कराती हुई सिलाई का काम सिखा रही है। इसके बावजूद पता नहीं पूजा कितना पढ़ पाएगी। पूछने पर वह कहती है, मम्मी जब तक पढ़ाएंगी, तभी तक पढ़ेंगे। फिर बंद कर देंगे। ग्रामीण स्त्रियों के साथ यह बड़ी विडंबना है कि वे पढ़ाई की प्रबल इच्छा रखने बावजूद पढ़ाई के लिए माता पिता की इच्छा पर निर्भर हैं। लेकिन विवाहित किरण झा पूजा की तरह लाचार नहीं है। वह बेबाकी से कहती है, दिन में खेती किसानी और घर गृहस्थी का काम देखने के साथ, रात को टीवी की बजाए किताब ही पढ़ेंगे। हमारी जिंदगी तो बरबाद हो गई बच्चों की तो संभाल लें। मसलन शिक्षा व साक्षरता के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। अच्छे व सफल जीवन के लिए शिक्षा की अनिवार्यता की जरूरत ग्रामीण महिलाएं अनुभव करने लगी हैं।
भारत में महिला साक्षरता के आंकड़े अभी भी लज्जाजनक है। यह आंकड़ा 48 फीसदी पर अटका है। ग्रामीण महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत तो अभी 33 प्रतिशत के करीब है। हिन्दी भाषी क्षेत्र के सभी प्रदेशों की कमोवेश यही स्थिति है। अभी भी श्रम और घरेलू कार्यों में दिन भर की भागीदारी के कारण महिलाएं पढ़ नही पा रही हैं। यही करण है कि 45 फीसदी महिलाएं कक्षा 5 तक पहुंचने से पहले ही पाठशाला छोड़ देती हैं। पंचायती राज में महिलाओं की 50 फीसदी भागीदारी तय हो जाने के बाद उम्मीद बंधी थी कि शिक्षा व साक्षरता में गुणात्मक सुधार आएगा और अशिक्षा का अंधकार दूर होगा। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में ग्राम स्तर पर चलने वाली प्राथमिक व माघ्यमिक शिक्षा का ढर्रा जिस तरह से बैठा है, उससे भी ग्राम स्तरीय शिक्षा जबरदस्त ढंग से प्रभावित हुई है। इसे सुधारने के प्रयोग तो कई चल रहे हैं, लेकिन शिक्षकों द्वारा रूचि न लेने के कारण अध्ययन अध्यापन का पूरा ढांचा ही चटकता जा रहा है। हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पुरोधाओं ने तो यह बात 1968 में ही जान ली थी कि महिला शिक्षा का महत्व न केवल समानता के लिए बल्कि सामाजिक विकास की प्रक्रिया को तेज करने की दृष्टि से भी जरूरी हैं। यही कारण है कि पंचायती राज में महिलाएं कम पढ़ी लिखी अथवा निरक्षर होने के बावजूद अच्छा नेतृत्व कौशल दिखा रही हैं। कई ग्रामों में शराबबंदी के सिलसिले में सफल आंदोलन चलाकार उन्होंने यह जता दिया कि वह भी किसी से कम नहीं हैं। ये महिलाएं जब छात्रा थीं, तब शिक्षकों ने दायित्वहीनता का परिचय न दिया होता तो शायद इनके नेतृत्व में और प्रशासनिक कसावट तो होती ही, ग्रामीण विकास को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से भी इनकी दक्षता और लाभकारी साबित होती। इसलिए सर्वेक्षणों से सामने आया है महिला को शिक्षा देने से जहां जन्म और मृत्यु दर में कमी आती है, वहीं जानलेवा बीमारियों के नियंत्रण और पर्यावरण सुधार व संरक्षण की दिशा में इनका अमूल्य योगदान भी सामने आता है। महिला शिक्षा के इन लाभों से न केवल परिवार बल्कि पूरा समाज समृद्धशाली बनाता है। लिहाजा शिविर का संचालन कर रहे कुमार सिद्धार्थ का कहना है कि कंप्यूटर कार्यात्मक साक्षरता की मुहिम रोजगार परक होने के कारण शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए हित साधक है। लिहाजा इसके बड़े पैमाने पर विस्तार की जरूरत है।
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प्रमोद भार्गव
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।
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