चीन भारत के प्रति कटुता प्रदर्शन के मामले में कोई अवसर नहीं चूकता। जरा सी गुंजाइश मिलने पर वह अपनी हीनता का बोध को सार्वजनिक कर देता है। भ...
चीन भारत के प्रति कटुता प्रदर्शन के मामले में कोई अवसर नहीं चूकता। जरा सी गुंजाइश मिलने पर वह अपनी हीनता का बोध को सार्वजनिक कर देता है। भारत की दक्षिण सागर में वियतनाम के साथ गैस और तेल खोजने की जो परियोजना चल रही है उसे लेकर चीन परेशानी की हद से गुजर रहा है। वह चाहता है कि भारत इस परियोजना से दूर हो जाए इसलिए उसने धमकी भरे लहजे में कहा कि दक्षिण सागर से तेल निकाला तो भारत को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस धमकी का उसी की भाषा में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि दक्षिण सागर किसी की जागीर नहीं है। इससे लगता है कि भारत ने अब ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख लिया है। इसके साथ ही कूटनीतिक चतुराई बरतते हुए कृष्णा ने कहा कि दक्षिण चीन सागर को मुक्त व्यापार क्षेत्र घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि वहां की प्राकृतिक संपदा किसी एक देश की संपत्ति न होकर दुनिया की संपत्ति है। यह बयान देकर विदेश मंत्री ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय फलक पर उछालने का जो काम किया है, वह प्रशंसनीय तो है ही, इस बावत यह पहल करने की भी जरूरत है कि इसे एशियाई देशों का समर्थन तो हासिल हो ही यूरोपीय देश भी इस मुद्दे के समर्थन में आएं। इस मकसद की पूर्ति के लिए हमें स्पष्ट चीन नीति भी बनाने की जरूरत है क्योंकि अभी तक हमारी चीन नीति जटिलता का ऐसा पर्याय है, जिसे समझना मुश्किल है।
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की स्थापना के 25 साल पूरे होने पर गरिमा के साथ रजत जयंती मनाई गई थी। इस उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से रक्षा मंत्री एके एंटनी शामिल हुए थे। चीन की आंखों को रक्षा मंत्री की यह यात्रा खटक गई थी। लिहाजा चीन ने बतौर आपत्ति भारत को धमकी देते हुए कहा, था कि भारत को ऐसे किसी भी स्थान पर जीवंत मौजूदगी नहीं दिखानी चाहिए, जो सीमा विवाद को और पेचीदा बनाने का काम करें। इस सवाल का एंटनी ने भी करारा उत्तर देते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर की तरह ही अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और देश के रक्षा मंत्री होने के नाते सभी सीमांत प्रदेशों पर निगाह रखना उनका अधिकार व कर्तव्य है। दरअसल,देश की संप्रभुता पर सवाल खड़े करने वाले देशों को इसी लहजे में प्रतिउत्तर देने की जरुरत है।
चीन के इरादे भारत के प्रति नेक नहीं है। इसलिए वह पिछले एक डेढ़ साल से ऐसा कोई मौका नहीं चूकता, जिसके बहाने भारत को आंख दिखाई जा सके। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि जापान के पराभव के बाद एशिया में चीन और भारत दो ही ऐसे देश हैं, जिनमें आर्थिक विकास को लेकर जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है। इस कारण चीन द्वारा भारत को उकसाने की कवायद लगातार जारी है। इस बौखलाहट का भारत और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ रहे आर्थिक और सामरिक सरोकार भी हैं। लिहाजा चीन का अरुणाचल प्रदेश को भारत के नक्शे से बाहर बताना, सिक्किम पर विवाद खड़ा करना, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हस्तक्षेप करना, कश्मीरियों को नत्थी वीजा जारी करना और भारतीय सीमा के नजदीक युद्धाभ्यास व अत्याधुनिक प्रक्षेपास्त्र स्थापित करने जैसी हरकतें करना उसके आचरण का हिस्सा बन गए हैं।
पांच माह पहले से दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में वियतनाम के साथ भारत के तेल खोजने के अभियान में लगा है। इसे चीन अपनी संप्रभुता पर सीधा हमला जता रहा है। जबकि जिस क्षेत्र में इस परियोजना पर अमल हो रहा है, वह समुद्री क्षेत्र वियतनाम की सीमा में आता है और तेल खोजने की इस परियोजना को संयुक्त रुप से भारत-वियतनाम ही क्रियान्वयन करने में लगे हैं। ऐसे में चीन की आपत्ति निराधार है। बावजूद चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जियांग यू ने एक बयान में कहा था कि मैं इस बात को पूरी ताकत और भरोसे के साथ कहना चाहती हूं कि दक्षिणी चीन सागर पर चीन की पूरी संप्रभुता है। चीन का पक्ष ऐतिहासिक तथ्यों और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर केंद्रित है। जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि चीन का आधार इसलिए बेवुनियाद है क्योंकि हाल ही में 7 अप्रैल 12 को कंबोडिया में आसियान देशों की जो बैठक समाप्त हुई है, उसमें चीन इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाना चाहता था, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ, क्योंकि आसीयान देशों का सदस्य वियतनाम भी है। यही नहीं चीन को यदि छोड़ भी दें तो आसीयान से जुड़े अन्य देश भी भारतीय पक्ष से सहमत थे। लिहाजा चीन को मजबूरीवश प्रस्ताव टालना पड़ा। दरअसल चीन की मंशा पूरे दक्षिणी चीन सागर को अपने कब्जे में लेने की है। इस समुद्री क्षेत्र में खनिज संपदाओं का अटूट भण्डार तो है ही समृक दृष्टि से भी यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। इसलिए विदेश और रक्षा मंत्री इस परिप्रेक्ष्य में जो कूटनीतिक सक्रियता दिखा रहे हैं, उसकी एशिया के फलक पर जरूरत भी अनुभव की जा रही हैं। क्योंकि दक्षिण सागर केवल चीनियों का ही नहीं है, उस पर वियतनामी, थाई, जापान, फिलीपींस, मलय, इनडोनेशिया और पुर्तगाल भी अपनी कब्जा जताते हैं।
हालांकि भारत के अन्य देशों के साथ ऊर्जा के स्त्रोतों को मजबूत करने के जो भी कार्यक्रम समुद्र की तलहटी में चल रहे हैं, वे सब अंतरराष्ट्रीय कानूनों की मर्यादा का शत-प्रतिशत् पालन कर रहे हैं। चीन संपूर्ण दक्षिण चीन सागर में अपने अधिकार का दावा करता है, इसलिए चीन के भारत ही नहीं वियतनाम, जापान और फिलिपींस समेत कई देशों के साथ संबंध खराब हैं। अमेरिका ने भी चीन के इस दावे को गलत बताते हुए अन्य देशों का समर्थन किया है। हालांकि भारत ने भी इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए तेल व गैस तलाशने के अनुसंधानों में लगे रहने की दृढ़ता दिखाई है। इसकी प्रतिक्रिया में चीन की तरफ से ऐसी कोशिशों की खबरें जरुर आ रही हैं कि वह हिंद महासागर में सक्रियता बढ़ाकर दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में दस हजार किलोमीटर तक अपनी खनन योजनाओं का विस्तार करेगा।
चीन ने भारत के सीमावर्ती इलाकों में दखल देकर उन्हें कब्जाने के लिहाज से ही पाकिस्तान से दोस्ती गांठी है। इस बेजा़ दखल के चलते ही भारत की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक चौथाई सीमावर्ती सड़कों का निर्माण अधूरा पड़ा है। भारत के खिलाफ नाजायज हरकतों को अंजाम दे सके इस नजरिए से चीन ने पाकिस्तान की सहमति से पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किलोमीटर भूभाग हासिल कर लिया है। संसद को दी एक जानकारी में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने बताया है कि 1948 से जम्मू-कश्मीर का लगभग 78000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। इसके अलावा 38000 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र 1962 से चीन के कब्जे में है। पाक से चीन ने जो भूखण्ड लिया है, उस पर वह लगातार अत्याधुनिक प्रक्षेपास्त्र तैनात कर रहा है। अमेरिका रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भविष्य की रणनीति के तहत चीन अपनी सवा दो लाख सैनिकों वाली पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। चीन ने पहले भारतीय वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तरल ईंधन वाली सीएसएस-2 आईआरबीएम मिसाइलें तैनात कर रखी थीं और अब उनकी जगह एमआरबीएम मिसाइलें तैनात कर दी गई हैं।
चीन ने भारतीय सीमा के पास बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है। भारतीय सीमा से सटे इलाकों में चीन ने सड़कों और रेल मार्गों का हैरतअंगेज विकास किया है। इसे पश्चिमी चीन के विकास और चीन की सेना को मजबूती देने की रणनीति के रुप में देखा जा रहा है। इधर चीन ने अपनी घुसपैठ नेपाल में भी बढ़ा दी है। चीन ने नेपाल को पांच करोड़ डॉलर का ऋण अनुदान भी दिया है। जाहिर है चीन ऐसे किसी अवसर को नहीं चूक रहा जिससे भारत पर दबाव बनाया जा सके।
चीन की शाह पर पाकिस्तान भी गाहे-बगाहे भारत को आंख दिखाने लग जाता है। भारतीय नौ सेना में परमाणु पनडुब्बी को शामिल करने पर पाक के नौसेना प्रमुख एडमिरल आसिफ संदिलाहाद ने ऐतराज जताते हुए कहा है कि जब पाकिस्तान सामरिक संतुलन के लिए कदम उठा रहा है, तब भारतीय नौसेना में परमाणु पनडुब्बी शामिल करना चिंता का विषय है। यहां पाकिस्तान चीन की भाषा बोल रहा है। क्योंकि इधर चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में मौजूदगी बढ़ा दी है। चीन की उपस्थिति की भनक किसी प्रतिद्वंद्वी देश को लगे, ऐसा चीन कभी नहीं चाहेगा। इधर इस क्षेत्र में समुद्री जल दस्युओं की भी घुसपैठ एवं लूटपाट की घटनाएं भी बढ़ी हैं। कुछ ताकतवर देश इन दस्युओं को न केवल प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि पकड़े जाने पर उनका समर्थन में भी खड़े हो जाते हैं। इस लिहाज से यह पूरा क्षेत्र उलझनों का सबब बनने के साथ वैश्विक चिंताओं का पोषक भी बन रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में इस क्षेत्र पर निगरानी रखने की दृष्टि से भारत ने परमाणु पनडुब्बी समुद्र में उतारी है, न कि पाक अथवा चीन की सामरिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ? इसलिए जरुरी है कि अंतरराष्ट्रीय कानून के नियामक सिद्धांतों का सख्ती से पालन हो ? जिससे सामरिक हालात कुशंकाओं से परे रहें और जल दस्युओं से भी सख्ती से निपटा जा सके ?
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।
यहां के नेताओं में इच्छा शक्ति है ही नहीं. चीन कब्जा भी कर लेगा तब भी ये नहीं मानेंगे कि कुछ हुआ है.
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