मोनिका अनुसन्धान कर्त्री वनस्थली विधापीठ जिला टोंक (राजस्थान) सामान्य रुप से देखे तो शहर के विद्यार्थियों से केवल जंगलों के बीच ...
मोनिका
अनुसन्धान कर्त्री
वनस्थली विधापीठ
जिला टोंक (राजस्थान)
सामान्य रुप से देखे तो शहर के विद्यार्थियों से केवल जंगलों के बीच में बसे हुए गॉव के विद्यार्थियों में उदंडता, उच्चखंलता और अनुशासनहीनता आज सामान्य हो गयी हैं। भावी पीढ़ी के इन कर्णधारों के चरित्र की झॉकी ले तो छुटपन से ही अश्लीलताओं, वासनाओं, दुर्व्यसनों की र्दुगन्ध उड़ती दिखाई देती है। छोटे- छोटे बच्चों को बीड़ी पीते गुटका खाते देखकर ऐसा लगता है कि सारा राष्ट्र बीड़ी पी रहा है, नशा कर रहा है युवतियों के पीछे अश्लील शब्द उछालता हैं, तो ऐसा लगता है कि सम्पूर्ण राष्ट्र काम वासना से उद्दीपत हो रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि आज के चार , पॉच, सातवें दर्जे के छोटे-छोटे बच्चे -बच्चियों जिन्हें उम्र का एहसास तक नहीं है वर्जनाओं और मर्यदाओं की सभी सीमाओं को पीछे छोड़ चुके है। बच्चों में शराब ,सिगरेट पीना, हल्की मादक दवाईयॉ लेना, गुप-चुप और सपाट से स्कूल अचानक स्कूल से गायब हो जाना, साईबर कैफे में इंटरनेट पर अश्लीलता से सरोवार होना, और बार आदि में जाने के लिए झूठ बोलना, ऐसा परिधान का चयन करना जिन्हे वे घर में भी पहनने का एहसास नहीं जुटा पाते आदि प्रचलन बन गया हैं। हकिकत यह है कि आज के अधिकतर बच्चों में न अभिभावकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव ही बचा है और न वयस्कों के साथ प्रेम और सहयोग की भावना। नैतिेकता का स्तर इतना नीचे गिरता जा रहा है कि अध्यापक और बाजार में बैठे दुकानदार उनके लिए समान है। कुछ शेष रहा है, तो फैशन, शौकीनी, सिनेमा और मटगस्ती का अन्त-हीन आलम।
मानसिक रूप से दोषपूर्ण, मानसिक रोग से ग्रसित, परिस्थितजन्य एवं सास्कृतिक वातावरण के अतिरिक्त बालकों द्वारा किये गये अधिकांश अपराधों में से लगभग 2․3 प्रतिशत ही पुलिस और न्यायालय के ध्यान में आती है। बाल अपराधों का हम यदि आंकलन करे तो स्थानीय एवं स्पेशल विधियों के तहत 1998 में सबसे अधिक आबकारी एक्ट (23․9)ं और गेम्बलिंग एक्ट (4․6) के अर्न्तगत आते हैं। सन 1998 में 5 राज्यों महाराष्ट (21․6) मध्य प्रदेश (27․2) राजस्थान (8․5) बिहार (6․8) आन्ध्र- प्रदेश (8․0) में पूरे देश में आई․ पी․ सी․ के तहत स्कूल अपराधों में से 77 प्रतिशत हुए। बाल अपराध के मुख्य कारकों में गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्तवपूर्ण आयाम हैं। बाल अपराध की दरें लड़कियों की अपेक्षा लड़को में अधिक पायी जाती है। बाल अपराध की दरें प्रारम्भ की किशोरवस्था 12-16 वर्ष में सबसे ऊँची है । बाल अपराध ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरों में अधिक है।
नेशनल क्राइम रिकॉडर्स ब्यूरो के नवीनतम आंकड़े देश के भविष्य की खौफनाक तस्वीर पेश करते हैं। उनके मुताबिक पूरे देश में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन इसके लिए ज्यादा चिंता की बात यह है कि बाल अपराधों की संख्या में भी वृद्भि हुई हैं। पिछले दस वर्षों में यानि 1998 से 2008 के बीच बच्चों द्वारा किये गये अपराधों में ढाई गुना इजाफा हुआ हैं, और कुल अपराधों की तुलना में बाल- अपराध का अनुपात दोगुने से ज्यादा हो गया है। ब्यूरों के आंकडों के अनुसार साल 1998 में बाल-अपराधों की संख्या 9352 थी, जो 2008 में बढ़कर 24,535 हो गयी हैं। देश भर में दर्ज किये गये कुल अपराधिक मामलों के प्रतिशत के लिहाज में देखे तो 1998 में बाल- अपराधों का प्रतिशत केवल 0․5 था, जो 2008 में 1․2 प्रतिशत के आंकडों को छू चुका हैं । यदि लगातार दो वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2007 में बच्चों द्वारा किये गये कुल अपराधों की संख्या 22,865 थी, जो 2008 में बढ़कर 24,535 हो गयी, यानि एक साल के अन्दर बाल अपराधों की संख्या में तकरीबन 7․3 प्रतिशत की वृद्धि हो गई, इससे पहले वर्ष 2007 में 2006 के मुकाबले बाल- अपराधों की संख्या में 8․4 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया था। ये केवल वे आंकड़े हैं जो पुलिस थानों में दर्ज किये गये हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि अपराध के लगभग आधे मामले पुलिस के पास नहीं पहुंच पाते या पहुंचते भी है तो उन्हें दर्ज नहीं किया जाता, इस तथ्य को ध्यान में रखकर यदि इन आंकडों पर गौर किया जाये तो यह बात स्पष्ट हो जाती ह कि देश का बचपन लगातार अपराध की आगोश में समाता जा रहा है।
लखनऊ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के मुताबिेक बच्चों द्वारा अंजाम दिये जा रहे है तथा अपराधों में सेक्स सम्बन्धी अपराधों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही हैं कुछ साल पहले तक अधिकांश बाल- अपराध चोरी लूटपाट छीना झपटी आदि की श्रेणी में आते हैं, और वे आम तौर पर भूख, गरीबी के शिकार कम आय वर्ग वाले परिवार के बच्चों द्वारा अंजाम दिये जाते थे, लेकिन पिछले तीन सालों में आंकड़े कुछ और ही बयान कर रहे हैं। इनके मुताबिक बच्चे बडी संख्या में बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों को अंजाम देने वाले अधिकार बच्चे समाज के उस वर्ग से सम्बन्धित है, जिन्हें समृद्ध कहा जाता है।
लखनऊ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास वर्ष 2009 में बाल अपराध के 346 मामले आए, जिनमें बलात्कार के 35 मामले थे। जबकि हत्या के 20, वर्ष 2010 में अब तक दर्ज हुए कुल 140 अपराधिक मामलों में 36 मामले बलात्कार और हत्या के हैं।
बाल- अपराधों की बढ़ती संख्या भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। बच्चे भविष्य की धरोहर है, लेकिन सामाजिक कमजोरियों और सरकार के दलमल रवैये के चलते हमारी यह धरोहर लगातार पतन के रास्ते आगे बढ़ती जा रही है। बाल अपराधों की बढ़ती संख्या हमारे समाज के माथे एक ऐसा कलंक है जिससे तत्काल निजात पाने की जरुरत है। इसके लिए आवश्यक है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 में सुधार किये जाये और उसके प्रवधानों के पूरी तरह पालन की व्यवस्था की जाये। सामाजिक स्तर पर भी इसके अलग से कदम उठाने की आवश्यकता है इसके साथ- साथ माता पिता को भी अपनी जिम्मेदारियो का एहसास दिलाने की जरुरत है अन्यथा हमारे देश का भविष्य इसी तरह अपराध की भेंट चढ़ता रहेगा ।
सुझाव-
आधुनिक जीवन शैली में भी इन मूल्यों को समायिक ढंग से समाहित करके अनेक गतिरोधियों को समाप्त किया जा सकता है। गहरे अपनेपन के आधार अभिभावकों और बच्चों के बीच की दूरी और दरार को मिटाकर वर्तमान समस्याओं से उपजते बाल अपराध से निजात पाई जा सकती है। अतः हम बच्चों को उचित संस्कार देने व उनमें मानवीय मूल्यों की स्थापना करने के लिए सजग, सचेष्ट और सक्रिय होना होगा, तभी इस बिगडते बचपन और भटकते राष्ट्र के नव पीढी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्जवल हो सकता है।
मोनिका खोखर, ग्राम- छपरौली, जिला- बागपत
Email id- monikachoudhary.choudhary11@gmail.com
COMMENTS