परिवार - सामंजस्य और टकराव मोनिका अनुसन्धान कत्री बनस्थली विघापीठ (राजस्थान) प्रस्तावना विवाह के द्वारा नया परिवार अस्तित्...
परिवार - सामंजस्य और टकराव
मोनिका
अनुसन्धान कत्री
बनस्थली विघापीठ (राजस्थान)
प्रस्तावना
विवाह के द्वारा नया परिवार अस्तित्व में आता हैं। साथ ही साथ इसके द्वारा वर्तमान परिवारों के सम्बन्धों में भी थोडा परिवर्तन आता हैं। अगर हम विष्व भर में परिवारों का निरीक्षण करें तो उनके स्वरुप और संरचना में कई प्रकार की विभिन्नताओं दिखाई देगी। इसी कारण परिवार को परिभाषित करने में कठिनाई आती हैं। परिवार की परिभाषा के अन्तर्गत इन विभिन्नताओं का समावेश होना चाहिए।
परिवार के कार्य
सभी प्रकार के परिवारों को उनके द्वारा सम्पादित कार्यों के आधार पर समझा जा सकता हैं। निश्चित रुप से उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में भिन्नताऐं होती है। यथा- कार्यों की संख्या और उन्हें सम्पन्न करने के तरीके में भिन्नता दिखाई पडेंगी। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि बहुत सारे कार्य (जैसे षिक्षा) कुछ विशिष्ट संस्थाओं (जैसे विद्यालय) द्वारा सम्पादित होते हैं। इन विशिष्ट संस्थाओं को उन्ही कार्यो को करने के लिए ही बनाया गया है। लेकिन कुछ कार्य ऐसे है जो सर्व़त्र परिवारों द्वारा किये जाते हैं और यही बात परिवार को विशिष्ट उद्देष्यों के लिए स्थापित सामाजिक संस्थाओं से अलग करती हैं। परिवार की विशिष्टता इसमें निहित हैं। कि वह अपने कार्यों को करता हैं तथा एक ही छत के नीचे वह कार्य सम्पादित होते है।
प्रभु (1979) के अनुसार किसी परिवार के प्रमुख रुप से तीन सामान्य कार्य हैं- 1. पुरुष और स्त्री की लैंगिक आवश्यकताओं का समाधान, 2. संतानोत्पत्ति एवं उनकी परवरिश तथा 3. घर में भागीदारी- इसके अन्तर्गत वे सभी बातें सम्मिलित हैं जो भागीदारी के अन्तर्गत आती हैं।
संयुक्त तथा एकल परिवार
गोरे ने संगठन में भिन्नता के आधार पर संयुक्त परिवार का वर्णन किया हैं।
1- वंषागत संयुक्त परिवार जिसमें परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी, उनके विवाहित और अविवाहित पु़त्र, पुत्रों की पत्नियाँ तथा बच्चे और अविवाहित पुत्रियाँ सम्मिलित है।
2- पैतृक संयुक्त परिवार- इसके अन्तर्गत मुखिया तथा उसकी पत्नी तथा बच्चे एवं मुखिया के भाई तथा उनकी पत्नियाँ तथा बच्चे आते हैं।
अधिकार का केन्द्र
अधिकार के केन्द्र की वर्गीकरण किया जा सकता हैं। परम्परागत, पितृसत्तात्मक परिवारों में, चाहे वो संयुक्त हो या एकल, अधिकार वयस्क पुरुष के हाथ मे होते हैं। अधिकार के सम्बन्ध में जो दूसरा पक्ष सामने आता हैं , वह है उम्र या वरीयता का। परिवार में अधिकांश निर्णय सबसे वरीय सदस्य द्वारा ही लिखे जाते हैं। कुछ विशिष्ट निर्णय जो चूल्हे-चौंके से सम्बन्धित होते हैं परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला द्वारा लिये जाते हैं।
पारिवारिेक स्थिरता की सुरक्षा
सामाजिक और आर्थिक ढॉचे में परिवर्तन के कारण स़्त्री और पुरुष से बाहरी दुनिया की अपेक्षायें भी बदल रही हैं। इसके कारण पुरुष और स्त्री को स्वयं की तथा परिवार की आवश्यकताओं में परिवर्तन करना पड़ रहा है।
परिवार में अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध
परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक साथ ही कई प्रकार की भूमिकाओं को निश्चित करना पडता है उदाहरण के लिए- एक 12 वर्ष का लडकी पोती हो सकती हैं, भतीजी हो सकती हैं, बडी और छोटी बहन हो सकती हैं। जबकि उसे मॉ की मॉ होने के साथ-साथ पत्नी, पुत्र-वधू, भाभी आदि की भूमिकायें भी निभानी पड़ती हैं।
सम्बन्धित बातें
सुखी और सदभावपूर्ण परिवार की आवश्यकताओं को नकारा नहीं जा सकता। सभी अपना अधिकांश समय परिवार के लोगों के साथ अन्तःक्रिया करते हुए तथा समान गतिविधियों में भाग लेते हुए बिताता है। जन्म से ही वह पारिवारिक वातावरण में पलता हैं। इसलिए प्रारम्भ से ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र -व्यक्तिगत , सामाजिक, व्यावसायिक, अध्यात्मिकता में लगातार उससे प्रभावित होता है। जब हम मधुर सम्बन्ध की बातें याद करते हैं तो हमारा तात्पर्य उस वातावरण के निर्माण से हैं जिसमें परिवार के सभी सदस्य की उन्नति में ऐसा वातावरण जिसमें व्यक्तिगत सदस्य तथा परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति साथ-साथ हो।
इस सन्दर्भ में बहुत सारी विवेचनायें हैं
1- सास और बहु का सामाजीकरण
2- परिवर्तित होती भूमिकायें
3- महिलाओं में आर्थिक स्वावलम्बन का उदय
4- व्यक्तिगत क्षमता को विकसित करने में परिवार का सहयोग
टकराव का समाधान-परिवार में समायोजन
टकराव के कुछ कारणों यथा- मानसिकता में विरोध, बच्चों और वयस्कों की भूमिका में अनिरन्तरता, अवास्तविक अपेक्षा, आदि की विवेचना की गयी है। अब तक आपको स्पष्ट हो गया होगा कि प्रत्येक परिवार में कुछ हद तक टकराव अपरिहार्य हो जाता है। इसके कुछ समाधान निम्न है-
1- शक्ति और अधिकारों का उपयोग
2- ऐच्छिक आत्म समर्पण
3- आंतरिक समझौता
4- समस्या -समाधान
निष्कर्ष-
अच्छा विवाह और मधुर सम्बन्ध वाला परिवार निर्धारित करने का कोई मापदण्ड नहीं हैं, न तो हम पारंपरिक, अपुदान परिवार, जहां मुखिया निर्णय लेता है और अन्य सभी उसका पालन करते है, का समर्थन करते हैं तथा उन्मुक्त परिवारों को जहां अन्य सदस्यों के तनाव की चिन्ता किये बगैर प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करता है।
monika tumhara lakh bahut acha hai.............
जवाब देंहटाएं