1... आये थे इक पल को आँसू / चक्षुओं की कैद से बाहर । मगर आये न तुम /आहट की त्राण से बाहर । कहूँ किससे , कि तुम क्या हो ? मेरा सपना ...
1...
आये थे इक पल को आँसू / चक्षुओं की कैद से बाहर ।
मगर आये न तुम /आहट की त्राण से बाहर ।
कहूँ किससे , कि तुम क्या हो ?
मेरा सपना /मेरा जीवन / क्या हो मेरे तुम?
मीत हो या गैर का स्पंदन ।
दिशाएँ मौन हैं /क्यूँ मौन हो तुम भी ।
इक बार आकर जो कहो तुम /
हाँ ,मैं हूँ ज्योत्स्ना तुम्हारी ।
चिर प्रतीक्षित ये पल /गर आ जाएँ अभी /
ढहा दूंगी मैं /मृषा के ये लाक्षागृह सभी ।
लाक्षागृह सभी ।
2...
मैं महसूस करती हूँ जो /मुझे अपनी सी लगती है ।
वो है /बस मेरी माँ ।
गोद में उसकी रखकर सिर/ जब सो जाती हूँ।
वह सहलाती है बालों को धीरे -धीरे /लौटा देती है मेरा आत्मविश्वास/
जो खो जाता है बार -बार /आगे निकलने की दौड़ में ।
जब छूटने लगती हूँ /साथियों से पीछे/
क्रिकेट ,टेनिस और किताबों की रेस में /
छाया बन मेरे साथ चल देती है मेरी माँ ।
हर पग पर उत्साह बढ़ाती है माँ /
चलते -चलते गिरती हूँ /तब भी हाथ बढ़ा उठाती है माँ ।
जीत के जश्न में तो सभी /होते हैं शामिल।
बस ,मुझे खुश देख /चुपके -चुपके से आँसू बहाती /
ईश्वर को धन्यवाद करती है /तो बस मेरी माँ ।
कभी जो छलक जाएँ /मेरी आँखों से आँसू /
हथेलियों में दबा /उन्हें मोती बना /
मेरे चेहरे पर मुस्कान सजा देती है /तो बस मेरी माँ ।
सच तो ये है/ कि तुम जो भी चाहो /जैसा भी चाहो /जो भी करो /
जीवन के सबसे कठिन क्षणों में भी /प्यार करती है तुम्हें /
तो सिर्फ माँ ।सिर्फ.................................................. माँ ।
3...
आँखों में दर्द छुपा /होंठों से मुस्काते हैं लोग ।
प्रहेलिका सा जीते जीवन /अन्जानी राहों पर चलते हैं लोग ।
ज़मीनी सच्चाई से लड़ते /लहूलुहान हो जाते हैं लोग ।
फिर जीवन आदर्शों को ताक पर रख / इंसानियत का गला/ दबा देते हैं लोग ।
छल कपट को व्यापार बना/ आस्तीन के साँप बन जाते हैं लोग ।
दिशाहीन ,मृतप्रायः से /उद्देश्यहीन भटकते /
जाने कैसे जीवनपीयूष को खोज रहे हैं लोग ।
4....
आशा की किरणें करती हैं ।
पुरजोर सिफारिश हमसे |
जीवन उजला होगा इक दिन ।
नारी का अपने ही तप से ।
शिक्षा की नवजोत जली है ।
प्रांगण रोशन होगा अब से ।
बीज पड़ा है संघर्षों का ।
फूल खिलेगा हक़ से ।
5...
मैंने आशा की किरणों से /हथेलियों पर सूरज बनाया /
धज्जी -धज्जी होकर /उसने भी अन्धकार फैलाया /
सांसों के पंखों पर होकर सवार /जो छूने गयी मैं चाँद को /
टूट -टूट कर पंखों ने भी /ग़मों का बादल छितराया/
सोचा था बदलेगा मौसम /बूंद -बूंद कर प्यास बुझेगी /
लेकिन ये कैसी हवा चली ?
होंठों पर मुस्कान खिली /आँसू जब तुमने पोंछ लिए /
हाथ बढ़ाया /साथ निभाने को कदम उठाया /
हर जख्म पर मरहम लगाकर /दुःख मेरा बाँट लिया सारा /
तपते सहारा के आँगन में /अब छोड़ कहाँ तुम जाते हो ?
प्यार दिया /वादे किये/कुछ क्षण सम्मोहित कर बहलाया /
पत्तों पर शबनम के मोती /चाँद से चेहरे पर सजते /
वो जाने कैसा पल था ?शबनम ने था जब सहलाया /
जाने कौन-सा रास्ता है /जाने मैं किस ओर चली /
सागर है आगे या पर्वत /
इस घोर अन्धेरे में मुझको /कुछ भी नजर नहीं आता /
है कौन जो रास्ता दिखलाये /है कौन जो मेरा गम झेले /
तकदीर ने ऐसा झुलसाया /
मुड़ - मुड़कर जो देखा /साया भी अपना साथ नहीं पाया ।
6...
.कल का सोचना फिजूल है /कौन जाने इस पल का क्या उसूल है ?
यूँ रोओ ना ,अश्क बहाओ ना ।जाने वक्त को क्या मंजूर है ?
रात की सियाही में /डूबते हुए सितारे के /रहमोकरम पर /
हथेली पर ,आशा का सूरज उगाओ ना |
निराशा की बदली का तिमिर /हर पाए ना पाए /
ख्वाबों का दिया तो बुझाओ ना ।
हर इक अफ़साने को अपना बना लो /जाने क्या इन पलों का जुनून है ?
हर क्षण आशा का दीप जलाते रहो /जो बीत गया उसे बिसराते चलो ।
आज के दिन ,आज की कहो -सुनो /कल की सोच -सोच कर /
खूबसूरत लम्हों को गँवाओ ना ।
आज ,अभी ,अब की सोचो /यही तो जीवन का समूल है ।
कल का सोचना फिजूल है /कल का सोचना फिजूल है |
7...
माँ ,तुम जानती नहीं /बेटी के मन की पीड़ा/
तुम सोचती थीं /मेरा जन्म न हो /
तुम चाहती थीं /तुम पुत्रवती हो ।
बेटे का उपहार मिले /उस बेटे को, पिता का प्यार मिले ।
उच्च शिक्षा ,सम्पूर्ण पोषण /सामाजिक रुतबे का अधिकार मिले ।
वंश बढे इहलोक से परलोक का द्वार खुले ।
पर बेटी का क्या है ?
परायी अमानत है वो /दुलराया तो सिर चढ़ जायेगी ।
उच्च शिक्षित हुई /तो अच्छा वर न पायेगी /
पर माँ,भावुकता ही उसकी दौलत है /तेरा आँचल ही उसकी जन्नत है ।
अहसास की नर्मी तेरी बाहों की गर्मी /
आँखों में ,आँसुओं की नमी /पढ़ सकती है ।
तेरी ही भाँति,तेरी परछाई होना /अस्तित्व का श्रापित होना /
पिता का कठोर अनुशासन /छोटे भाई का तिरस्कार /
माँ ,तेरी कोख में पलना ,बढ़ना /मेरी नियति सही ।
पर तेरी नियति को बदलना चाहती हूँ मैं ।
संसार की अंजोर राहों पर चलना चाहती हूँ मैं ।
तेरा..... सूरज ,तेरा..... चंदा न सही /
तेरे जीवन में -जुगनू बन ,चमकना चाहती हूँ मैं ।
8...
कंपकपाते जाड़े की /भोर की अलसाई सुबह में /
एक प्याला चाय का /हाथों में थाम /
चुस्कियों में /जीवन के रस को निचोड़ /
आत्मसात् कर /मन के बंधनों को /
समाज की बेड़ियों से ढिलियाते हुए /सृजन की पतवार थाम /
सरगम को दे कर आलाप /भैरवी के सुरों को छेड़ /
मैं ब्रह्म के नाद में लीन/आत्मा को परमात्मा के संसर्ग में प्रस्तुत कर /
कहीं विराट शून्य में क्षितिज के पार से आती अरुणिम आभा से /तृप्त होती /
विचारों के मंथन से /जीवन को परिभाषित करती /सोचने लगी
चलते -फिरते स्थूल स्तंभों में /श्वासों की रागिनी ।
अहा....................................................यही है जीवन ।
हाँ ,यही है जीवन ।
छन्न.......................................................।
यकसां ,ये क्या हुआ ?
विचार बिंदु का शीशा / छन से टूट पड़ा /
ध्वनि का ये कौन-सा रूप /मेरे कानों में आन पड़ा /
सहायक नादों की निर्बलता का सा आभास हुआ /
उफ्... ...............................................।
दो नन्हीं कलियाँ /चीथड़ों से आवृत /करूणा से पुकारतीं /
उनकी खाली हथेलियाँ /लगें ज्यों काठ की वंशी /
कान्हा के अधरों के प्रकम्पन की बाट निहारतीं ।
ओह .........................................................क्या ये भी जीवन है ?
स्वप्नीला अग्घी ,रोहतक ।
बहुत अच्छी कविताएं....
जवाब देंहटाएंवाह आनंद आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्र है पोस्ट के प्रारम्भ में