रेडियो ध्वनि प्रहसन :- ‘‘ मकान की थकान ‘‘ - वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा ( पात्र परिचय - पति, पत्नी, मजदूर, कुम्हार, किराने वाला सेठ और नजूल क...
रेडियो ध्वनि प्रहसन :-
‘‘ मकान की थकान ‘‘
- वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा
( पात्र परिचय - पति, पत्नी, मजदूर, कुम्हार, किराने वाला सेठ और नजूल के अधिकारी, पड़ोसी एवं कर्मचारी 1,कर्मचारी 2)
पति :- बेगम......अरी.......बेगम....! सुनती हों।
पत्नी :-हाँ, हाँ, सुनती हूँ, अभी तो खूब सुनती हूँ आ रही हूँ (पास आती आवाज) लो आ गयी क्या है कहो।
पति :- देखती हो । कितना अच्छा कमरा बना है। और तुम हो कि दूर ही दूर रहती हो। आ,हा,(पंखे की आवाज) कैसी ठंडी हवा आ रही है।
पत्नी :-तुम्हें ठंडी हवा आ रही है । यहाँ पूछो क्या गुजर रही है? लपटें निकल रही हैं लपटें। कमरा क्या तुमने तो मेरी कवर ही बना रख दी है।
पति :- अरे भाग्यवान! ऐसे बुरे बुरे शब्द काहे को मुँह से बाहर निकालती हो। कवर खुदे तुम्हारे दुश्मनों की।
पत्नी :-दुश्मन तो मैं ही थी। जो मेरे सारे के सारे जेवर गिरवी रख दिये मकान बनवाने में। खुद को ठंडी हवा जो चाहिये थी।
पति :- तुमसे तो बात करना ही गुनाह है। बात करने में ही तुम्हें तो काँटे लगते हैं। अच्छा भला कमरा बनवा लिया। ये तो नहीं बैठ के हवा खाओ। लगीं सुबह ही सुबह टें टें करने।
पत्नी :-मेरा तो इस घर में बोलना ही मना है। ऐसा ही है तो मुँह बन्द कर दो। उठा कर क्यों नहीं ला देते मेरे गिरवी रखे जेवर। अच्छी भली बैठी पान खा रही थी, कि आ बैल मुझे मार।
पति :- हाँ, हाँ तुमको तो मैं बैल ही नजर आऊँगा। इधर पड़ोस वाले ठाकुर साहब ने नाक में दम कर रखी है। दीवार से दीवार लगा कर क्या खड़ी कर ली, ठकुराईन से सटकर खड़ा हो गया। कि आसमान ही सिर पर उठा लिया।
पत्नी :-आसमान तो तुम्हीं ने सिर पर उठाया था। घर में नहीं है दाने, अम्मां चलीं भुनाने।
पति :- अरे छोड़ो बेगम इन बातों को। कुछ प्यार मुहब्बत की बातें भी करोगी या लड़ती रहोगी। मेरा दिमाग तो पहले से ही थक गया है । कहीं ठाकुर से लड़ाई,कहीं किसी को देनदारी,किसी की मजदूरी किसी के किराने के पैसे, और तुम्हारे गिरवी रखे जेवर। सोच सोच कर दिमाग की नसें भन्ना गयी। मेरा माथा तो छूकर देखो कितना गरम है।
पत्नी :-(घबराकर) हाय राम कैसा तप रहा है ? तुम्हारा माथा, लगता है बुखार है।
पति :-अरे बुखार मुखार कुछ नहीं है। बस मरने वाला ही समझो वो आने वाले है।
पत्नी :-कौन आने वाले हैं ? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो ? साफ साफ कहो। (बाहर से पुकारने की आवाज)
मजदूर :- बाबूजी! ........ ओ .......बाबूजी, अरे बाबूजी हैं क्या अन्दर।
पति :-(फुसफुसाते हुये) आ गया कम्बख्त, सवेरे सवेरे, अब कहाँ जाऊँ ? तुम्हीं कुछ करो न,जा कर कह दो, बाहर गये हैं दौरे पर, घर में नहीं है।
मजदूर :- अरे कोई सुनता है कि नहीं (दरवाजा थपथपाने की आवाज)
पत्नी :- मैं नहीं जाती सवेरे सवेरे झूँठ बोलने, कौन अपना धर्म भ्रष्ट करे, तुम्हारा तो ये रोज रोज का चक्कर है, निवटा क्यों नहीं देते।
(दरवाजा और जोर से पीटने की आवाज)
मजदूर :- अरे बाबूजी! जरा बाहर तो निकलिये। सवेरा हो गया।
पति :- क्यों मेरी जान लेने पर तुली हो। मेरी इज्जत का नहीं तो कम से कम इन किवाड़ों का ख्याल तो करो बिल्कुल नये हैं। अभी इनके पैसे भी नहीं पहुँचे हैं। जाओ, जाओ जल्दी करो मेरी अच्छी बेगम।
पत्नी :-अच्छा देखती हूँ। तुम उस अलमारी के पीछे छुप जाओ, जाओ जल्दी करो।
(दरवाजा थपथपाने की आवाज)
मजदूर :- हद्द हो गयी शराफत की। इतनी देर से दरवाजा पीट रहा हूँ। कोई सुनता ही नही हैं।
पत्नी :-(चटखनी खोलने की आवाज के साथ) कौन है ? क्या बात है, क्यों चिल्ला रहे हो ? (किवाड़ खुलने की आवाज के साथ) अरे तुम हो, आओ, आओ, कैसे आये ? कहाँ काम कर रहे हो ? तुम्हारा हिसाब मिल गया कि कुछ और रह गया ?
मजदूर :- हिसाब मिल जाता तो क्यों अपना समय बर्बाद करता ? बहिन जी हद हो गयी आप ही बताओ हम गरीब कब तक चक्कर काटते रहेंगें। थोड़े से पैसों के लिये आप तो मकान में आराम कर रहे हो। और हमारी मजदूरी अभी तक नहीं मिल पायी, आज तो लेकर ही जायेंगें।
पत्नी :- हाँ, हाँ, जरूर लेकर ही जाना। क्यों नहीं, तुमने मजदूरी की है तो पैसे भी मिलेंगें। लेकिन...........
मजदूर :- लेकिन, वेकिन कुछ नहीं। आज कोई बहानेबाजी हम नहीं सहेंगें। आज तो हमारा हिसाब साफ होना ही चाहिये।
पत्नी :-हाँ, हाँ, हिसाब तो साफ हो ही जाऐगा। लेकिन हिसाब किताब का मुझे कुछ पता है नहीं। जैसे ही ये आयेंगें तुम्हारा हिसाब हो जायेगा, समझे।
मजदूर :- ठीक है, अभी तो मैं जा रहा हूँ, लेकिन अगली बार पैसे लेकर ही जाऊँगा।
पत्नी :-हाँ, हाँ, पैसे लेकर ही जाना।
(किवाड़ बन्द करने एवं चटखानी चढा़ने की आवाज)
पत्नी :-अब कब तक छिपे रहोगे, अलमारी के पीछे, बला टल गयी। अब बाहर निकल आओ, बड़े तीस मार खाँ बनते थे।
पति :- आह हा हा, पिद्दी से मजदूर को क्या टरका दिया, बड़ा किला जीत लिया।
पत्नी :- हुँह, आ गये न अपनी पर, अभी घुस गये थे अलमारी के पीछे।
पति :- देखो जी! जरा सोच समझ कर बोला करो, आखिर...... आखिर...... आखिर मैं तुम्हारा... तुम्हारा पति हूँ (बाहर से किसी के बुलाने की आवाज)
कुम्हार :- भाई साहब! .....अरे। भाई साहब है क्या ? कितना दिन चढ़ आया। अभी तक किवाड़ ही नहीं खुले।
पत्नी :- कहिये तो खोल दूँ किवाड़। मिल लीजिये......आखिर.....आखिर आप.....मेरे पति
हैं न। जाइये।
पति :- (फुसफुसाते हुये) धीरे बोल जरा भाग्यवान। ऐसे गम्भीर मौंकौं पर मजाक मत किया करो।
कुम्हार :- भाई साहब ।....अरे, भाई साहब। अभी तक सो रहे हो क्या ? बाहर तो निकलो।
पति :- अरे नखरे छोड़ो, चुपचाप टरका दो। जैसे मजदूर को टरकाया था। जाओ । जल्दी करो वरना वह किवाड़ तोड़कर ही दम लेगा।
पत्नी :-जा रहीं हूँ, लेकिन जाऊँ तो तब जब कि आप अपनी पूर्व स्थिति में आ जाये।
पति :-(फुसलाते हुये) पूर्व स्थिति, मतलब।
(दरवाजा खटखटाने की आवाज)
कुम्हार :-अरे भाई साहब ! दरवाजा खोलिये न। आप तो सुन ही नहीं रहे।
पत्नी :-पूर्व स्थिति यानि कि अलमारी के पीछे.........(चटखनी खुलने की आवाज)
पत्नी :-न सोते चैन, न जागते चैन, पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते हैं, सवेरे सवेरे, (किवाड़ ख्ुालने की आवाज) अरे भैया तुम हो, कैसे चले आये ?
कुम्हार :-अरे बहिन जी! कोई बिना काम के किसी के यहाँ जाता है भला। वही हमारा ईटों का पुराना हिसाब।
पत्नी :- ऐं! तुम्हारा हिसाब अभी तक नहीं निबटा। खैर, इतने दिन सब्र किया थोड़ा और करो। जैसे ही वे टूर से वापिस आयेंगें, तुम्हारा हिसाब........
कुम्हार :-टूर। फिर टूर पर चले गये। आखिर कौन से दिन रहते हैं वे ? जब देखो टूर पर। मकान बनाने से पहले तो कभी टूर पर जाते नहीं देखा न ही सुना। अब तो जब देखो तभी टूर पर। हमें टूर वूर से क्या लेना देना। हमें तो अपने हिसाब से काम है।
पत्नी :-हाँ भैया। वह तो हम भी चाहते हैं। लेकिन हिसाब करने वाला हो तभी या ऐसे ही।
कुम्हार :-अच्छा धन्धा किया। चार पैसे मिलना नहीं है और चालीस नकद पैसों का नुकसान।
पत्नी :-ठीक है, जैसे इतना सब्र किया थोड़ा और करो उनके लौटते ही हिसाब हो जायेगा।
कुम्हार :-ठीक है। अभी तो मैं जा रहा हूँ। लेकिन अगली बार मेरा हिसाब मिल जाये। वरना मैं भी अपने घर से टूर पर चलूँगा, और डेरा आपके दरवाजे पर डाल दूँगा। अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं हो सकता। खूब टरका लिया।
(किवाड़ बन्द करने एवं चटखनी चढ़ाने की आवाज)
पत्नी :- (बौखलाते हुये) सब मुसीबतें मेरी जान को हैं। इस घर की मान मर्यादा तो रह ही नहीं गयी। दो पैसे के आदमी उल्टा सीधी कह जाते हैं। सब सुनना पड़ता है।
पति :- (लम्बी साँस खींचते हुये) चला गया। चलो अच्छा टला।
पत्नी :- टला नहीं। जल्दी से कोई इन्तजाम करो। ले दे के पीछा छुड़ाओ। बार बार के तकाजे मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। हमारे मैके में कोई ऐसा आता तो.........
पति :- हाँ। तुम्हारे यहाँ तो गोली से उड़वा दिया जाता। न रहता बांस न बजती बंशी।
पत्नी :- अच्छा। फिर लगे बहकने। मैं कहे देती हूँ ये सब मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। उधार रूपया लेकर मकान बनबाने की कौन सी तुक थी। शर्म हया तो रह ही नही गयी आप में।
पति :- आ...हा। तुम हो बड़ी लाजबंती हो।
(पुकारने की आवाज)
सेठ :- अरे, बड़े बाबू....... बड़े बाबूजी........
पति :- ओफ..ओ! ये सेठ बुरा आ गया। समझता है यही एक साहूकार है।
पत्नी :- (चिढ़ाकर) नहीं साहूकार तो तुम हो। मैं कहे देती हूँ, उसके सामने मैं हरगिज नहीं जाऊँगी। बड़ी बुरी नजरों से घूरता है।
पति :- अरे घूरता ही तो है। उसमें तुम्हारा क्या...... ?
सेठ :- (दरवाजे पर थपथपाहट) (ऊँची आवाज में) अरे बाबूजी! क्या कर रहे हो भाई ?
पति :- (फुसफसाते हुये) जाओ। जाओ। कम्बख्त को फुटा दो किसी तरह। प्लीज, मेरी अच्छी बेगम।
पत्नी :- हे भगवान! किस मुसीबत में डाला है इस मकान ने। इससे तो बिना मकान के ही अच्छे थे। मकान की थकान तुम्हारे सिर से उतरकर मुझ पर भी चढ़ने लगी।
(चटखनी खोलने की आवाज एवं किवाड़ खोलने की आवाज)
पत्नी :- अरे सेठ जी आप ! आपने क्यों कष्ट किया ?
सेठ :- अरे नहीं। इसमें कष्ट की क्या बात है। इस बहाने आप लोगों के दर्शन करने का सौभाग्य मिल जाता है।
पत्नी :- वो तो हैं नहीं यहाँ। कहिये क्या काम था ?
सेठ :- अजी काम बाम क्या ? बस चले ही आये। आप बताइये मेरे लायक कोई सेवा हो तो।
पत्नी :- (थोड़ी तेज आवाज में) देखिये वो जब आयें तब आप आइये। अभी तो वे बाहर गये हैं।
सेठ :- देखिये। वो ऐसा था कि सामान के पैसे तो.......ठीक है आते रहेंगें। मगर वे जो नगदी हजार रूपये ले आये थे......हाँ वो इसी मकान को बनवाने के लिये थे न.... उसका ब्याज भी नहीं पहुँचा अभी तक।
पत्नी :- वो आ जायेंगे तो मैं कह दूँगी। आपके पैसे पहुँच जायेंगें।
सेठ :- ठीक है मैं जा रहा हूँ। लेकिन आप ध्यान से उनको जता देना।
(किवाड़ बन्द करने एवं चटखनी चढ़ाने की आवाज)
पत्नी :- कैसा भूखों की तरह देख रहा था। जैसे खा ही जायेगा। ये आदमी की जात भी बस औरत को देखकर ऐसे लार गिराती है........
पति :- क्या हो गया ? खा तो नहीं गया, तुम औरतें भी बस।
पत्नी :- देखो जी मैं कहे देती हूँ। अब की से कोई भी आये। मैं जाने से रही। तुम्हें जाना हो तो जाना, न जाना हो तो चिल्लाने देना।
पति :- हां हां । मत जाना । मैने चूड़ियाँ नहीं पहिन रखी हैं ।
पत्नी :- देखो जी मुझे गुस्सा मत दिलाओ । मैं कहे देती हूं - मैं हर्गिज किसी कीमत पर नहीं जाऊंगी ।
पति :- हां हां । तुम समझती हो तुम्हारे बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकता हूं । मैं अभी बाहर के दरवाजे का ताला डाले देता हूं । सारी झँझटें खतम ।
पत्नी :- फिर नेक काम में देरी कैसी ? ये लीजिये ताला । ये रही चाबी । और वो रहा पीछे का दरवाजा ।
( पति के जाने की आवाज, दूर के दरवाजे के खुलने की आवाज, बाहर का ताला लगाने की आवाज । पिछवाड़े का दरवाजा खुलने की आवाज । )
पति :- ये लो चाबी । अब मैं नहाता हूं । तुम खाना बनाओ ।
( भीड़ जैसी आवाजें )
कर्मचारी 1 :- साहब ! यहां तो ताला लगा हुआ है । क्यों भई तुम इनके पड़ोसी हो ? कहां गये ये लोग ?
पड़ौसी :- पता नहीं भैया । अभी तो ताला नहीं लगा था । यहीं थे । तीन चार लोग मिलने भी आये थे ।
कर्मचारी 2 :- ये जो नया कमरा बना है । इन्हीं लोगों ने बनवाया है ?
पड़ौसी :- हां साहब ! इन्हीं ने - मेरी कई हाथ जमीन दाव ली ।
पत्नी :- (स्वतः) जरा देखूँ तो ये बाहर भीड़ कैसी है ? शोर किस बात का है ? दरवाजे पर तो ताला पड़ा है । खिड़की से झाँक कर देखती हूँ।
कर्मचारी 2 :- ठीक है । जब कोई है ही नहीं तो किससे कहें ? देखो, ये नोटिस इनके दरवाजे पर चिपका दो ।
कर्मचारी 1 :- जी साहब ! ये लो चिपका दिया ।
( भीड़ के दूर जाने की आवाज़ें )
पत्नी :- ( तेज कदमों की आवाज, घबराया स्वर, नल के पानी के गिरने की आवाज )
अजी सुनते हो ! नहाते ही रहोगे कि बाहर भी निकलोगे ।
पति :- चैन से नहाने भी नहीं दोगी । क्या मुसीबत आ गयी ?
पत्नी :- अब अंदर से ही पूछते रहोगे या बाहर भी आओगे ,
पति :- भागवान ! जरा कपड़े तो पहिन लेने दो ।
पत्नी :- हां हां पहिन लो । आराम से आओ ।
पति :- ( दरवाजा खुलने की आवाज ) हां अब कहो क्या बात है ?
पत्नी :- वाह! मान गयी मैं तुम्हारी अक्ल का लोहा । तीन चार लोग आये थे । ताला लगा देखकर थोड़ा बडबड़ाये । और चलते बने । लेकिन जाते जाते एक कागज चस्पा कर गये दरवाजे पर ।
पति :- क्या कहा ? कागज ! कैसा कागज ? क्या है उसमें? कौन लोग थे ?
पत्नी :- अब मुझे क्या पता । पिछले दरवाजे से जाओ और पढ़ आओ। वहीं चिपका है किवाड़ों पर।
(पति के भागने की आवाज)
पति :- (स्वतः पढ़ते हुये) बजरिये नोटिस आपको इत्तला दी जाती है । आपने मकान बिना सरकारी मंजूरी के बनाया है । अतः आपको सूचित किया जाता है कि चौबीस घन्टे के अंदर मकान स्वयं गिरा दें अन्यथा शासन की तरफ से आपका मकान गिरा दिया जायेगा । जिसके खर्चे की जिम्मेदारी आपकी होगी।
पत्नी :- हे भगवान। ये क्या लिखा है ? अब क्या होगा।
पति :- तुम जो करवाओ वो थोड़ा है। मैं नहीं जाऊँगी अब। और मत जाओ । देख लिया, पढ़ लिया नोटिस।
पत्नी :- हाय अब क्या होगा। अभी तो पुराना ही चुकता नहीं हुआ।
पति :- अभी इस मकान की थकान तो मिटी नहीं। अब लगाओ कचहरी के चक्कर।
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वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा
रिछरा फाटक दतिया म�प्र�
पिन- 475-661
bahut badiya
जवाब देंहटाएंwah bahut achha likh diya aur phir kab milo g
जवाब देंहटाएंवाह बहुत अच्छा लिख दिया और फिर कब मिलो जी रवि जी
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