व्यंग्य एकांकी - जिन्दा ! मुर्दा !! - वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा पात्र परिचय नर्स- बार्डबॉय- जमादार लेखक - संचालक - नेता - ( पर्द...
व्यंग्य एकांकी -
जिन्दा ! मुर्दा !!
-वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा
पात्र परिचय
नर्स-
बार्डबॉय-
जमादार
लेखक -
संचालक -
नेता -
( पर्दा उठते ही मंच पर प्रकाश आने लगता है। मंच पर अस्पताल का बार्ड नजर आता है। पलंग पर एक मरीज लेटा हुआ है। उसके सिरहाने दीवान पर एक चार्ट टंगा हुआ है। एवं उसका झोला टंगा हुआ है। मरीज करवट बदलता है। इसी के साथ नर्स का प्रवेश तथा उसके साथ बार्ड बॉय भी मंच पर दिखाई देता है )
नर्स (बार्डबॉय से) - इस पलंग को जल्दी खाली करो। जमादार को बुलाओ। इस लाश को उठाकर इसके घरवालों को दे दो। पलंग पर दूसरे बिस्तर लगा दो आपरेशन थियेटर से मरीज आने वाला ही समझो। जल्दी करो।
बार्ड बॉय - - अभी लो सिस्टर। जरा जमादार को बुला लाऊँ। ( मंव से पर्दै की ओर जाते हुये) जमादार! ओ जमादार भैया....अरे...ओ.....जमादार.....
( दूर मंच के पीछे से जमादार की आवाज आती है )
”आ रहा हूँ भैया! आ रहा हूं। जरा गम तो खाया करो।“
( जमादार मंच पर बार्ड बॉय के सामने आ जाता है )
बार्ड बॉय - तू लाश का नाम सुनते ही ऐसे खिसक जाता है जैसे आदमी के शरीर से उसका जीव। कम से कम बता-जता कर तो जाया कर। चल, जल्दी, एक पलंग को खाली करना है।
( बार्ड बॉय तथा जमादार पलंग के पास आकर ठहर जाते हैं। बार्ड बॉय सिरहाने तथा जमादार मरीज के पैताने खड़े होते हैं। तथा उसे उठाने के लिए झुकते हैं उसी समय मरीज करवट बदल लेता है दोनों घबड़ाकर सीधे खड़े हो जाते हैं। और फिर दबे पांव वहां से हटकर नर्स की ओर जाते हैं। )
बार्ड बॉय :- (हांफते हुये) सिस्टर! ...सिस्टर !! वह तो जिन्दा आदमी है। अभी अभी उसने करवट बदली है। लाश नहीं है।
जमादार :- हां ! सिस्टर... अब क्या होगा ? वह आदमी तो बहुत बड़ा लेखक है। आपने यह क्या करवा डाला ? (पलंग की ओर इशारा करते हुये) वह जरूर हमारे खिलाफ लिखेगा। हमारे विभाग पर भ्रष्टाचार का आरोप लगायेगा। (नर्स की ओर देखते हुये ) आपने बिना देखे कैसे हुकुम दे दिया ?
नर्स :- बन्द करो यह बकवास।
बार्डबॉय :- बकवास नहीं सिस्टर। सच है। चलो खुद ही चलकर देख लो।
जमादार :- (नर्स की ओर देखते हुये) हम कोई उसके रिश्तेदार नहीं हैं जो उसे उठाकर बैठायें या उसकी सेवा करें। हमारा काम तो केवल लाश को उठाकर रखने का है, जिन्दा मरीज से अपना कोई सरोकार नहीं। ऐसे तो हमारी नौकरी ही खतरे में पड़ जायेगी एक दिन।
नर्स :- (चिल्लाकर) अगर इसे उठाकर लाशगाड़ी में नहीं रखा तो तुम्हारी नौकरी जरूर खतरे में पड़ जायेगी, समझे ! जो कहा है, वही करो,इन बातों से कुछ नहीं होगा।
(समझाते हुये) देखो। मेरे पास विभाग का लिखित प्रमाण पत्र है। चलो मैं चलती हूं। (तीनों पलंग के पास आते हैं ) उठाओ इसे। (दोनों एक दूसरे का मुंह देखते हैं) (चीखकर) अरे! उठाओ न। कितनी बार कहना पड़ेगा ?
( इसी के साथ मरीज स्वयं उठकर बैठ जाता है। )
लेखक :- (नर्स की ओर देेखते हुए कमजोर आबाज में) लीजिये मैं खुद ही उठकर बैठ गया।
कहिए क्या बात है ?
नर्स :- कहना क्या है ! आप बिस्तर छोड़ दीजिए। यह पलंग दूसरे मरीज के नाम एलाट हो गया है।
लेखक :- (आश्चर्य से) यह कैसे हो सकता है ? अभी तो मैं पूरी तरह ठीक भी नहीं हुआ हूँ। मैं कहां जाऊँ ? अभी तो मेरा इलाज चल रहा है। आप शायद भूल से यह पलंग खाली करवा रही हैं। पहिले कन्फर्म कर लीजिए। क्यों बिना बजह परेशान कर रहीं हैं।
नर्स :- देखिये साहब ! हम विवश हैं। हमें आपसे पूरी सहानुभूति है। लेकिन यदि हमने आप पर दया की तो हम खुद भी दया के पात्र बन जायेंगे, जो कि हम बनना नहीं चाहते। इसलिए आप पलंग खाली कर दीजिये। क्योंकि आप......(हकलाकर) मर चुके हैं।
लेखक :- (चौंकता है तथा आश्चर्य से देखते हुये) क्या? क्या कहा आपने ? मैं मर चुका हूं।
आप देखिये मैं खड़ा हो सकता हूं , चल फिर सकता हूं। हां! (नाम पर हथेली लगा कर देखता है ) अभी तो सांस भी चल रही है। और आप कहती हैं कि मैं मर चुका हूँ।
नर्स :- हां, आप मर चुके हैं। (विनम्र स्वर में) बस आप फिर से मत लेटिये। आपको श्मशान पहुंचाने के लिए सरकारी गाड़ी तैयार खड़ी है। हां...और आप स्टोर से अपना कफन का कपड़ा भी इश्यू करा लीजिए। (बार्ड बॉय की ओर देखकर) तुम खड़े खड़े मुंह क्या देख रहे हो। जल्दी से पलंग के बिस्तर बदलो। (लेखक नर्स की ओर आश्चर्य से देखते हुये जमीन पर खड़ा हो जाता है।)
बार्ड बॉय :- (बिस्तर उठाते हुए ) अभी दूसरे बिछाता हूं। कैसे-कैसे लोग हैं ? मर जाने के बाद भी बिस्तर नहीं छोड़ते। (बार्ड बॉय बिस्तर सिर पर रखकर मंच से बाहर निकल जाता है। )
लेखक :- ( नर्स की ओर याचना भरी दृष्टि से देखता है ) आप कुछ नहीं कर सकतीं तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कहिए। मैं जिन्दा हूँ। मरा नहीं। आप इतना तो कर ही सकती हैं। आप चाहें तो मुझे फिर से चेक कर लें। मेरा टेम्प्रेचर, ब्लेडप्रेशर सब कुछ नॉर्मल मिलेगा। मरने जैसा आप कुछ भी नहीं पायेंगीं। चाहें तो वे भी आकर मुझे चैक कर लें।
नर्स :- देखिए अमर साहब ! आप बहुत बड़े लेखक हैं। समझने की कोशिश कीजिए। आपके निधन की घोषणा राष्ट्रीय स्तर पर की गयी है। मंत्रालय द्वारा जारी की गयी घोषणा कहीं झूठ होती है।
लेखक :- (आश्चर्य से) लेकिन यह कैसे हो सकता है ? जबकि मै जिन्दा हूं।
नर्स :- आपके निधन पर राष्ट्रीय शोक मनाया जा रहा है। देश के कोने-कोने से शोक संदेश प्राप्त हो रहे हैं जिनका प्रसारण हो रहा है। मैं खुद बहुत बोर हो रही हूं। किसी भी स्टेशन से फिल्मी गाने नहीं आ रहे हैं।
लेखक :- (झुंझलाते हुये) आपकी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं। मेरे जीवित रहते हुए यह सब कैसे हो सकता है ?
नर्स :- (खाकी रंग का एक कागज उसे दिखाते हुये) यह देखिये आपका डैथ सर्टीफिकेट हमारे लिए तो यही प्रमाण काफी है। जिसके आधार पर हम आपको ..... अब आप कृपया चले जाईये।
लेखक :- (सोचते हुए) ठीक है। अब मैं ही देखता हूं। आपके हाथ की बात नहीं है।
नर्स :- आपके ही जाने से समस्या निबटेगी। (हाथ में लिया प्रमाण पत्र उसकी ओर बढ़ाती है। )इसे साथ ले जाइये और स्टोर से कफन का कपड़ा इश्यू करा लीजिए। बिना सर्टीफिकेट दिखाए कफ़न नहीं मिलेगा।
(लेखक कागज अपने हाथ में ले लेता है तथा उसे आश्चर्यजनक मुद्रा में बार बार देखता है। साथ ही उसे मोड़ लेता है अलमारी से अपना झोला उठा कर कंधे पर टांगता है तथा चश्मा उठाकर आखों पर चढ़ा लेता है तथा चलने को होता है। )
( पर्दा गिर जाता है। )
(पर्दा उठते ही मंच पर प्रकाश फैलता है। सामने एक सभ्य देखने भालने ओैर आकर्षक पक्की उम्र का आदमी बैठा नजर आता है। जिसके सामने एक टेबिल है, टेबिल के दूसरी ओर तीन कुर्सियां रखी हैं तथा टेबिल पर कुछ फायलें। मंच पर इसकी कुर्सी के पीछे मोटे मोटे अक्षरों में ”संचालक“ लिखा है। आदमी चश्मा लगाये है तथा कोट पेंट एवं टाई तथा अफसरी मुद्रा में बैठा है। तभी लेखक प्रवेश करता है। संचालक उसे आश्चर्य से देखता है। )
संचालक :- आइए, आइए इधर ऐसे बैठिये।
(लेखक उसके सामने कुर्सी पर बैठ जाता है। तथा हाथ में लिया कागज उसकी ओर बढ़ा देता है। संचालक वह कागज देखकर फाइल के ऊपर रख देता है।)
लेखक :- (प्रश्नवाचक मुद्रा में ) यह प्रमाण पत्र आपके यहाँ जारी किया गया है?
संचालक :- जी हाँ प्रमाण पत्र तो हमारे ही विभाग का है। लेकिन ”ऊपर वालों“ के निर्देश पर ही जारी किया गया है।
लेखक :- मेरे जीेवित रहते मेरे मरने की घोषणा किस आधार पर की गयी। आप जैसे वरिष्ठ अधिकारी ऐसी ही गलतियाँ करते हैं। कितनी चिन्ताजनक बात है ?
संचालक :- निश्चित ही विचारणीय स्थिति है। मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ।
लेखक :- आप मेरी परेशानी क्या समझेंगे ? अभी आपके स्टोरकीपर ने जरा से कफन के लिये कितना परेशान कर दिया। कफन देने की जबरदस्ती भी कर रहा था और कह रहा था। आपके हस्ताक्षरों से आपको कफन नहीं मिल सकता। क्योंकि आप मर चुके हैं। मुझसे किसी और के हस्ताक्षर करवा लिये यह सरासर बेइमानी है या नहीं बताइये आप।
संचालक :- यह कोई बेइमानी नहीं है। यह तो सरकारी कागज की खानापूरी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आडिट में सिर्फ यह देखा जाता है कि कहीं मुर्दे ने स्वयं के हस्ताक्षरों से तो अपना कफन इश्यू नहीं करा लिया। कफन उसके वारिस या अभिभावक को दिया जाता है।
लेखक :- मेरा तो कोई भी नहीं है न वारिस और न अभिभावक ही। मैं तो नितान्त अकेला आदमी हूँ।
संचालक :- खानापूरी के लिये यह सब आवश्यक होता है। उस से आपको नुकसान नहीं है। आप इन बातों को छोड़िये।
लेखक :- उसने मुझे मरा समझ लिया। केवल सर्टीफिकेट के आधार पर, और आप कहते हैं छोड़िये इन बातों को।
संचालक :- (सोचने की मुद्रा में) देखिय अमर साहब ”आप लेखक होने के नाते जानते होंगे कि आज का आम आदमी अपनी जिंदगी बोझ की तरह जी रहा है। अपने को चलती फिरती लाश महसूस करता है। लेकिन वे सब बिना सर्टीफिकेट के जी रहे हैं और जीते रहेंगे। (प्रश्नवाचक मुद्रा में) क्या प्रमाण पत्र रखते हुये आम आदमी की तरह जीने में और कोई भी परेशानी है ?
लेखक :- देखिये, आप आम और खास आदमी की बात चलाकर मुद्दे की बात टालने की कोशिश न कीजिये। सीधी सी बात बताइये।
संचालकः- हाँ, हाँ जरूर पूछिये। शौक से पूछिये।
लेखक :- आपके विभाग की घोषणाएँ किस आधार पर की जाती हैं। इसके कोई नियम या नीतियाँ हैं अथवा नहीं। या बिना सोचे समझे ही कर दी जाती हैं जैसे मेरे बारे में?
संचालक :- हमारा विभाग प्रत्येक घोषणा को जारी करने से पूर्व उससे सम्बन्धित पूरी जाँच पड़ताल कर लेता है। इसी के बाद घोषणा जारी करता है। (रूककर) लेकिन जहाँ तक आपके बारे में हुयी घोषणा का प्रश्न है। (थोड़ा रूककर) हाँ एक बात और है जो बताना जरूरी समझता हूँ। वह यह है कि कभी-कभी सरकार विभाग की नीतियों से संतुष्ट नहीं होती या कुछ और भी कारण होते है, जिससे शासन उसमें हस्तक्षेप करके प्रकरण अपने नियंत्रण में कर लेती है। बाद में जो उचित समझती है निर्णय कर घोषणा कर देती है। (समझाने की मुद्रा में) लगता है आपके प्रकरण में भी शायद यही हुआ है। आपके बारे में शासन ने ही घोषणा की है। विभाग ने नहीं। हमारे पास तो ऊपर से आदेश आये थे। इसमें हमारा क्या दोष।
लेखक :- (खीझते हुये) लेकिन क्या यह आपका दायित्व नहीं है कि सरकार को उसकी गलत घोषणा के बारे में बतलावें। घोषणा को वापिस लिया जावे यह आप नहीं लिख सकते। आखिर नैतिकता का भी कोई तकाजा होता है।
संचालक :- नैतिकता का प्रश्न अपनी जगह है। लेकिन! सरकार की बात को कौन चैलेन्ज कर सकता है? आप लेखक हैं, राष्ट्रीय स्तर पर आपकी ख्याति है। आप सरकार के खिलाफ लिख सकते हैं। बोल सकते हैं। आप सरकारी नौकरी में होते तो पता चलता। सी.आर.प्रमोशन, ट्रांसफर इंक्वायरी की कितनी तलवार हमेशा गर्दन पर तनी रहती है। अफसर की निगाह बदली और गए काम से। हम सरकारी नौकर हैं। सरकारी सूचनाओं को ज्यों की त्यों आप तक पहुँचा देते हैं। यह आपके और सरकार के बीच की बात है। इसमें बीच के विभाग कहीं आड़े नहीं आते। (खड़े होते हुये) अच्छा अब चलूँ कुछ और तो नहीं पूछना?
लेखक :- (चौंककर, आश्चर्य से देखते हुये) आप क्यों? मैं ही चला जाता हूँ।
संचालक :- नहीं ऐसी बात नहीं है। दरअसल बात यह है कि मुझे एक शोकसभा में शामिल होना है। मेरा पहुँचना बहुत जरूरी है।
लेखक :- (चौंकते हुये) शोकसभा ? किसकी शोकसभा है ?
संचालक :- देखिये! अब और शर्मिन्दा मत कीजिये। पूरी स्थिति आपके सामने स्पष्ट है। अच्छा नमस्कार (कहते हुये चला जाता है। )
लेखक :- (स्वतः) अब मुझे भी चलना चाहिये। (खड़ा हो जाता है) अब सरकार से ही बात करनी होगी। आखिर यह सब है क्या ? मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आता।
(पर्दा गिरता है)
(पर्दा उठते ही मंच पर प्रकाश आता है। मंच पर एक नेता बैठा हुआ है जिसके सामने कुछ फाइलें आदि रखी हुयी है। उसकी कुर्सी के पीछे एक कागज पर मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है। ”मंत्रालय“ उसके सामने दो कुर्सियाँ और रखी हुयी हैं। तभी लेखक मंच पर प्रवेश करता है।
नेता :- (लेखक की ओर देखते हुये) आइये....आइये.....अमर साहब (कुर्सी की ओर इशारा करते हुये) ऐसे बैठिये। कहिये कैसे आना हुआ ? मैं अभी आपके ही बारे में सोच रहा था।
लेखक :- (बैठते हुये) देखिये मंन्त्री जी, मैं बेहद परेशान हूँ आपकी सरकार ने मेरे जीवित होते हुये भी मेरे मरने की घोषणा कर दी और आराम से शोक सभाएँ आयोजित कर रहीं है। बताइये यह सब कैसे हुआ ?
नेता :- (गम्भीर मुद्रा में ) इस सम्बन्ध में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। अभी शोक सभा से वापिस आने पर पता लगा कि आप जिन्दा हैं। तभी से आपके बारे में सोच रहा हूँ। इस दुर्घटना का हमें बहुत दुख है। लेकिन अब किया ही क्या जा सकता है ?
लेखक :- आप कुछ भी कीजिये। इससे मेरा बड़ा नुकसान हो रहा है। मेरे मकान मालिक ने मेरा सारा सामान अपने कब्जे में कर लिया है। देने से इंकार करता है। वह मुझे मरा हुआ मानता है। जिन्दा मानने से इंकार करता है। यही हाल मेरे प्रकाशक का है। उसने तो उल्टे मुझे ही धमकी दे डाली। ”यदि स्वयं को इस नाम का लेखक बताने की कोशिश की तो पुलिस को सौंप दूँगा“ आप ही बताइये मैं किस तरह दिन गुजारूंगा। आप कुछ नहीं कर सकते है। तो इस घोषणा को निरस्त तो कर सकते हैं। इससे मैं अपनी पूर्व स्थिति में आ जाऊँगा।
नेता :- (भाषण की मुद्रा में) कहने में यह बात जितनी आसान है, व्यवहारिक रूप में उतनी ही कठिन है। सरकार को हर कार्य बड़ी सावधानी एवं जिम्मेदारी से करना होता है। घोषणा किस आधार पर वापिस ली जाऐ ? इसके लिये हमें प्रथक से आयोग बैठाना पड़ेगा। आयोग जब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा,तब कहीं सरकार उस पर अपना विचार कर निर्णय कर पायेगी।
लेखक :- आप मेरी परेशानी समझिये। मुझे रास्ता बताइये।
नेता :- क्या रास्ता हो सकता है ? यदि सरकार आयोग बैठाने पर विचार भी करे, तो जानते हो सरकार पर कितना खर्च आयोग बिठाने का पड़ेगा। फिर इस राशि की पूर्ति कहाँ से होगी ? (कुछ रूककर) देखिये आप बहुत अच्छे लेखक हैं। जनता की हालत आपसे छिपी नही है। नागरिक किस तरह अपनी जिन्दगी गुजार रहा है ? इसलिये आप आयोग बिठाने को मत कहिये। क्योंकि हमने पहले से ही सैंकड़ों आयोग बिठा रखे हैं।
लेखकः- तो फिर मेरी समस्या के लिये आप ही कोई समाधान निर्धारित कीजिये।
नेता :- देखिये आप इस देश के नागरिक हैं, तथा शासन के निर्णयों का आपको स्वागत करना चाहिये। यदि सरकार ने कोई गलत सूचना जारी कर भी दी तो आपका क्या यह दायित्व नहीं कि सरकार का सहयोग करें ?
लेखक :- आपकी बातें मेरी समझ में नहीं आ रहीं, और कुछ नहीं कर सकते तो मेरी पेंशन ही मंजूर करा दीजिये। कम से कम गुजारा तो चलेगा, देखिये मैं अभी पूरी तरह से स्वस्थ भी नहीं हूँ, मुझे इलाज कराना है।
नेता :- (आश्चर्य से) पेंशन! असंभव! पेंशन लेने के लिये ट्रेझरी में जीवित होने का प्रमाण पत्र देना पड़ता है। जबकि आपके पास डेथ सर्टीफिकेट है, इसलिये आप भुगतान किस आधार पर ले पायेंगें। रहा आपके अस्वस्थ होने का सवाल उसके लिये मैं पत्र लिखे देता हूँ। आप अपना इलाज करवा लीजिये, (पत्र लिखता है तथा लिखकर उसकी ओर बढ़ा देता है) यह डाँक्टर मेरी जान पहचान का है, आपका अच्छा इलाज हो जाएगा। अब कृपा करके जाइये।
लेखक :- (हाथ बढ़ाकर पत्र लेते हुये उसे गौर से देखता है) अरे, (चौंककर) यह तो वही अस्पताल है जहाँ से अभी-अभी मेरी छुट्टी हुयी है। यह कैसा मजाक है ?
नेता :- यह मजाक नहीं हकीकत है। आप इसे लेकर जाइये और देखिये कितना अच्छा इलाज होता है।
लेखक :- (कुर्सी से उठते हुये) अच्छा जाता हूँ (पत्र थैले में डाल लेता है)
नेता :- (लेखक को जाते हुये देखता है तथा उसके मंच के पीछे चले जाने पर) कैसे-कैसे लोग हैं ? मरने के बाद भी सरकार का पीछा नहीं छोड़ते।
(पर्दा गिरता है)
(पर्दा उठते ही मंच पर प्रकाश दिखाई देता है। कोने में एक पलंग पर सफेद चादर पर कोई आदमी सोया हुआ है, मुँह ढांक कर , तथा उसी के पास एक बुढ़िया घुटनों में सिर दिये धीमे-धीमे सिसकियाँ भर रही है, मंच पर लेखक प्रवेश करता है, जिसे देखते ही वह बुढ़िया जोर-जोर से रोने लगती है।)
लेखक :- अरे (बुढ़िया की ओर बढ़ते हुये) क्यों रो रही हो माँ, क्या बात है ?
बुढ़िया :- (रोते हुये) क्या बताऊँ बेटा ? (पलंग की ओर इशारा करते हुये) मेरा बेटा कल शाम को दम तोड़ गया है। लेकिन इसकी लाश मुझे नहीं दे रहे, कहते हैं अभी मरा नहीं।
लेखक :- (पलंग पर लेटे आदमी को छूकर) अरे यह तो बिल्कुल ठंडा पड़ गया है। वाकई मर चुका है। चलो मेरे साथ आओ (बुढ़िया को हाथ पकड़कर उठाता है) मैं इनसे बात करूँगा।
(बुढ़िया खड़ी हो जाती है, दोनों साथ साथ चलते हैं)तभी एक डाँक्टर मंच पर प्रवेश करता है)
लेखक :- (डॉक्टर को रोकते हुये) इसका बेटा कल शाम दम तोड़ गया है। आपकी उसकी लाश इसे क्यों नहीं सौंपते। (बुढ़िया जोर से रोती है) जब तक लाश इसके सामने रहेगी तब तक यह रोती रहेगी। अब इसे और न रूलाइये इस पर महरबानी कीजिये।
डाँक्टर :- देखिये साहब, यह अस्पताल है। यहाँ हर काम सरकारी नियमों के अन्तर्गत होता है। आप सरकार के काम में अपनी टांग मत अड़ाइये।
लेखक :- मरना , जीना भी कोई सरकारी काम है ? इसका भी कोई नियम है ?
डाँक्टर :- जी हाँ, यहाँ हर काम नियम से होता है, हम जल्दबाजी करके नियम नहीं तोड़ना चाहते। पिछले दिनों इसी चक्कर में एक गड़बड़ी हो गयी। अब ऐसी गलती दुबारा नहीं करना चाहते।
लेखक :- (लाश की तरफ इशारा करते हुए) इसका निबटारा आज हो पायेगा, या नहीं।
डाँक्टर :- कुछ नहीं कहा जा सकता (बुढ़िया जोर से पुनः रोती है)
लेखक :- आप एक बार मेरे कहने से इसे चैक कर लीजिये। यह बिल्कुल ठंडा हो चुका है। जीवित होने की गुंजाइश है ही नहीं आप इसे लाश दे दीजिये।
डाँक्टर :- (बौखलाकर) आप अपनी बकबास बन्द कीजिये, हमको अपनी नौकरी से हाथ नहीं धोना, समझे। जब तक हम अपनी जांच से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाते, इसे मरा घोषित नहीं कर सकते। आप जब तक बैठिये।
(बुढ़िया और जोर-जोर से रोने लगती है। लेखक मंच के सामने दर्शकों की ओर बढ़ता है)
लेखक :- (स्वतः) (अपना दायां हाथ सीने पर रखता है) यह कैसा अन्धेर है ? जिन्दा, मुर्दा है, (बाये हाथ से पीछे रखी लाश की तरफ इशारा करते हुये) मुर्दा जिन्दा है।
(पर्दा गिरता है)
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वीरेन्द्र कुमार कुढ़रा
रिछरा फाटक, दतिया (म0प्र0)
पिन - 475-661
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जवाब देंहटाएंहिन्दी के विभिन्न आयामों से पाठको का परिचय करवाने के लिए रचनाकार को धन्यवाद्
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