गोविंद शर्मा के दो व्यंग्य - फरारी की सवारी, बंदरबांट

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  फरारी की सवारी यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है फिल्मों से प्रभावित होने वालों की कहानी है। पुलिस के अफसर, जो सरकार के समकक्ष होते हैं, फ...

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फरारी की सवारी

यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है फिल्मों से प्रभावित होने वालों की कहानी है। पुलिस के अफसर, जो सरकार के समकक्ष होते हैं, फिल्मों के सिपाहियों की वर्दी से प्रभावित हो गये। उन्हें अपने सिपाहियों की खाकी वर्दी खाक लगने लगी। फैसला किया कि वर्दी का रंगढंग बदला जाना चाहिए। वह चुस्त दुरूस्त और वर्तमान से अलग भविष्य के किसी रंग की होनी चाहिए। मुजरिम पकड़ने या जुर्म की पड़ताल करने या जांच के तरीके सीखने के बहाने विदेश जाने की बजाय, इस बार वर्दी का डिजायन ढूंढने के लिये साहब लोगों ने अमरीका-इंग्लैड की यात्राएं सपरिवार की। एक डिजायन तय हो गया। एतराज आया कि यह ठंडे मुल्क की ड्रैस है। क्या अपने गर्म देश में भद्दी नहीं लगेगी? जवाब आया- आदमी गर्म-ठंडा होता है, मुल्क नहीं। वास्कोडिगामा ठंडे देश से इस मुल्क में आया था तब लंबे बूट और गर्म कपड़े का ओवर कोट पहन कर आया था, उसे तो गर्मी नहीं लगी। फिर कष्ट उठाकर जनता की सेवा करना तो हम पुलिस वालों का फर्ज है।

एक सिपाही इस अनचाहे बोझ से परेशान हो गया। अपने नजदीकी साहब के पास गया।

’’साहब, मारे बोझ और गरमी के परेशान हो गया हूं। कोई बिना वर्दी की ड्यूटी लगवा दीजिए।’’

’’बड़े साहब के यहां पौंछा लगाने को तैयार हो?’’

’’साहब, यह तो लदे हुए पर और लादना हुआ।’’

’’तो, तुम्हें आराम वाली, कुछ पाने वाली ड्यूटी चाहिए। इसके लिए कुछ करना होगा।’’

’’कितना करना होगा , साहब?’’

’’क्या समझा तूने? जबसे लोकपाल आने को हुआ है, हमारे राजनीतिक आका तक डरने लगे हैं। हमारी तो बिसात ही क्या है....।’’ इतने में बाहर कुछ खटका हुआ। साहब चौंका तो सिपाही ने कहा-डरिये मत, लोकपाल नहीं है, डाकपुरूष है। ’’

’’क्या कहा? डाकू पुरूष है? आत्मसमर्पण करने आया है?’’

’जी, डाकपुरूष यानि पोस्टमैन।’

’’सीधे सीधे पोस्टमैन क्यों नहीं बोलता। अब तो सरकार ने भी कह दिया है कि जिस शब्द की हिन्दी नहीं कर सकते, उसकी अंग्रेजी कर दो।’’

’’साहब, अपनी डिक्शनरी में हिन्दी-अंग्रेजी की बजाय ’देसी-अंग्रेजी’ होती है। खैर, साहब आपको क्या, चाहिए?’’

’’कोई इनामी फरारी पकड़वा कर दे।’’

’’साहब, यह तो मेरे बांए हाथ का काम है। क्योंकि मेरे घर के दांई तरफ एक फरारी का पच्चीस साल पुराना ठिकाना है?’’

’’पच्चीस साल से उसका ठिकाना है? वह आज तक पकड़ा क्यों नहीं गया?’’

’’पच्चीस साल पहले उस पर इनाम घोषित हुआ था, आज वह मामूली लगता है। फिर वह किसी को दिखाई नहीं दिया। क्योंकि वह कभी दुबई चला गया तो कभी बंगलादेश। कभी इस पार्टी में तो कभी उस पार्टी में। चुनाव लड़ने का भी शौकीन है। आजकल गोल्डन चांस है। उसके सिर पर कोई मजबूत वरदहस्त नहीं है।’’

’’उसका नाम और ठिकाना बता।’’

’’अभी? पहले आप उस पर घोषित इनाम का भाव तो बढवाइए।’’

’’वाह़। तूने अपना भाव अभी से बढा दिया। अच्छा जा, सात दिन के लिये स्टेशन के बाहर बिना वर्दी की ड्यूटी करले।’’

’’ नहीं साहब वहां नहीं, वहां लड़कियों को छेड़ने वाले शोहदे, उठाईगीर, सट्टे का नंबर लिखने वाले सब मुझे पहचानते हैं। मुझे ’गुरू-गुरू’ कहकर मेरी इज्जत करने लगेंगे। कोई और जगह बताए।’’

’’ अच्छा तो जा, हमारे मंत्री जी की विरोधी पार्टी के दफ्तर की निगरानी कर। कौन आता जाता है, यह नोट करते रहना। सिर्फ सात दिन के लिये। सातवें दिन उस पच्चीस साल पुराने फरारी को पकड़वाने आ जाना। एक फरारी की सवारी मिल जाये तो महकमे में कुछ नाम होगा।’

सात दिन? वह सिपाही आज तक वापस नहीं आया। क्यों आए? उसे उस राजनीतिक पार्टी के नेता ने चुनाव लड़ने का टिकट जो दे दिया। वह जीत गया तो महंगी गाड़ी फरारी पर सवार होकर ही आयेगा। वरना अपनी ’फरारी ’ की सफाई देगा कि उसे बंधक बनाकर अज्ञात जनता के सामने फेंक दिया गया था।

गोविंद शर्मा, ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया-335063

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बंदरबांट

यह नाम कहां से आया? कुछ का कहना है कि दो बिल्लियों की उस कहानी से आया है, जिसमें एक रोटी के लिये बिल्लियां आपस में लड़ पड़ी थीं और बंदर से फैसला करवाने पहुंच गर्ई थी। बंदर ने उनमें आधी आधी रोटी बांटने के बहाने सारी ही चट कर डाली थी। ऐसा था तो शब्द बंदरबांट की बजाय बिल्लीबांट होना चाहिए था। शायद इसलिए नहीं हुआ कि योग को योगा और भीम-अर्जुन को भीमा-अर्जुना बोलने वालों के देश में लोग बिल्लीबांट की बजाय बिली ब्रांट बोलते। इससे भ्रम हो जाता कि कहानी बिली-ब्रांट नामक बिल्लियों की है या कहानी लेखक बिलीब्रांट है। कुछ भी होता, कोई इंग्लैंड अमरीका का रहने वाला बिलीब्रांट मालिक बन जाता। वहां ऐसा ही होता है। बंदरबांट की तरह अमरीका बांट भी तो मशहूर है। मिस्र हो या लीबिया, इराक हो या सीरिया, वर्षों से कुर्सी हथियाने की लाइन में लगे विपक्ष की सहायता के लिए अमरीका प्रायः कूद पड़ता है। सत्ता का बंटवारा या हस्तांतरण हो जाता है। लोग उसे खुले में अमरीकी बांट नहीं कहते ताकि उसे क्रांति कहा जा सके ।

वैसे बंटदरबांट वहां कहा जाना चाहिए जहां बंदरों का बंटवारा होता है। जैसे एक कुर्सीं विहीन ने कहा है- प्रदेशों में कांग्रेस-भाजपा ने कर रखी है सत्ता की बंदरबांट। इसका मतलब हुआ कि सत्ता के बंदर कभी कांग्रेस तो तो कभी भाजपा वाले बन जाते हैं। या सत्ता के चाहवान बंदर की तरह कभी इस गठबंधन की झोली में तो कभी उस गठबंधन की झोली में कूद जाते हैं। इसलिए लगता यही है कि रोटी पर झगड़ने वाली बिल्लियों की बजाय सत्ता के लिए झगडने वाले बंदरों ने ही निर्मित किया है-बंदरबांट।

पार्टियों के अध्यक्षों ने अपने अपने बंदर बांट रखे हैं। उनके बंदर इधर उधर खौं-खौं करते रहते हैं। अध्यक्ष है कि उनकी जबान बंदी करने में ही अपना वक्त गंवाते रहते हैं। न तो उनकी जबानबंदी हो पाती है न नसबंदी। हर रोज आऊ बाऊ बोलने वाले बंदरों की नई नई नस्ल पैदा होती रहती है। लोक तंत्र में बोलने की आजादी का लुत्फ यही लोग उठाते हैं। यही बात साबित करती है कि आदमी आदमी के रूप में आने से पहले चार्ल्स डार्विन का बंदर था। बंदरों ने केवल शक्ल बदलने कर कष्ट किया ।

इनका यह रोग जनता को भी लग गया है। मतदाता भी बांटने के मामले में पूरी बंदरबांट करता है। कभी काभी ही एक तरफ अपने बंदर बैठाता है मतदाता। वरना मतदाता ऐसी बंदरबांट करता है कि कुछ यहां, कुछ वहां तो कुछ कहां। इस बंदरबांट का नतीजा होता कि बंदर डाल-बदल करते हैं। इसे गठबंधन, मोर्चा, ध्रुवीकरण, धर्मनिरपेक्ष दलों का एकीकरण, सांप्रदायिकता को रोकने का प्रयास आदि पवित्र शब्दों से पुकारा जाता है। आप चाहे उसे मतदाता की बंदरबांट पर कुर्सी की बंदरबांट कह सकते हैं।

जहां बंदरबांट ज्यादा हो जाती है, वहां बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। एक प्रदेश में तो बड़ी पार्टी ने छोटी पार्टी को उदरस्थ करके अपनी सरकार बनाई। एक में छोटी पार्टी के एक विधायक को अलग कर बाकी सबको अपनी तरफ बांट कर सरकार बनाई। इस ’बंदर विलीनीकरण’ (यह बंदरबांट का वैज्ञानिक नाम है या शास्त्रीय नाम, मेरा बेज्ञान नहीं बता सकता।) पर लड़ते झगड़ते सरकारें आधी से ज्यादा उम्र तक जी चुकी हैं अर्थात् खेल खत्म नहीं हुआ है। हमारी रोटी पर जो बिल्लियों की तरह लड़ते हैं, वे ही फैसला यानी बंदरबांट करते हैं।

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परिचय:

गत 40 वर्ष से व्यंग्य एवं बाल साहित्य का सृजन दो व्यंग्य संग्रह, ’कुछ नहीं बदला और जहाज के नये पंछीप्रकाशित। बाल साहित्य की तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशन विभाग, भारत सरकार का भारतेन्दु पुरस्कारऔर राजस्थान साहित्य अकादमी के शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कारसहित अनेक सरकारी गैर सरकारी साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य एवं बालकथाएं नियमित रूप से प्रकाशित। संपर्क सूत्र -09414482280

गोविंद शर्मा ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया 335063

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रचनाकार: गोविंद शर्मा के दो व्यंग्य - फरारी की सवारी, बंदरबांट
गोविंद शर्मा के दो व्यंग्य - फरारी की सवारी, बंदरबांट
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