आजकल ये जुमला हर किसी से सुनने को मिलता है कि ‘बोर हो रहे हैं।' तमाम मनोरंजन के साधनों के होने के बाद भी ये सुनना कुछ अजीब नहीं लगत...
आजकल ये जुमला हर किसी से सुनने को मिलता है कि ‘बोर हो रहे हैं।' तमाम मनोरंजन के साधनों के होने के बाद भी ये सुनना कुछ अजीब नहीं लगता। बोर होना भी बड़ी अजीब बीमारी है। इसका कोई कारण नजर आता नहीं है। पर मित्रों बोर तो सभी होते हैं। हो सकता है कि आप नहीं होते होंगे पर हम तो बोर होते ही रहते है। आज हम सोच रहें कि आप अगर बोर नहीं होते तो क्यों न आपको बोर किया जाए।
सच कहता हूँ सोचा तो बोर होने के कारणों का पता लगाने का था पर हकीकत यह है कि यह ज्ञात करना मेरे बूते कह बात नहीं है। हालांकि हमने कई शब्दकोशों में इसका अर्थ ढूंढा पर हमें संतुष्टि नहीं मिली। दरअसल बोर शब्द का प्रयोग अंग्रेजी में संज्ञा, क्रिया और कई रूपों में होता है। शब्दकोशों ने इसके अर्थ को हल्के में लिया है वो बोर का अर्थ हिन्दी में उबाऊ बताते हैं। पर हमें तो इसके गूढ अर्थो को ढूंढने की सनक है।
हमने इसके लिए हमारे पास थोड़ा बहुत जितना भी दिमाग था वो लगाया। पहले-पहल तो भईया हमें तो ये ही समझ आया कि जब कुछ समझ नहीं आए तब हम बोर हो जाते हैं। पर बाद में और अधिक दिमाग खपाने पर लगा कि हमारे लिए ये भी कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है। कभी-कभी समझ आने के बाद भी हम बोर हो जाते है। पर भैया हमें तो लगता है कि इसका अर्थ इससे अधिक व्यापक होता होगा। इसका अर्थ अच्छा नहीं लगने से भी मेल नहीं खाता क्यों कि जरूरी नहीं जो चीज आज अच्छी लग रही है उससे कल आप बोर हो सकते हैं। बोर भी दो रूपों में काम करता है एक तो बोर होना और एक बोर करना।
अब देखिए ने हमारे मित्र है अनोखेलाल जी बस उनका काम ही लोगों को बोर करना है। साहित्य की टांग पूंछ कुछ भी हाथ आ जाए बस शुरू हो जाते हैं। कभी कविता तो कभी कहानी, कभी गजल तो कभी व्यंग्य लेकर धमक जाते हैं हमारे पास। हमें जैसे ही वो घर के आसपास दिखाई देते हैं इच्छा तो करती है कि बाहर से मना करवा दें पर क्या करें हमने तो शादी भी सच्चाई की जीती जागती मूरत से कर ली यानि हम अनोखेलाल जी को बाहर से मना ही नहीं करवा सकते क्यों कि हमारी धर्मपत्नी को झूठ बोलना आता ही नहीं हैं। एक दो बार हमने जबरदस्ती बुलवा दिया पर अनोखे भाई ये कह कर अंदर आ गए की भाभी होली तो अभी दूर है। खैर बात तो अनोखेलाल के बोर करने की थी। तो ये महाश्य तो बोर करने में पी.जी. किए हुए हैं। वैसे हमें भी सच कहने का संक्रमण हो चुका है इसलिए साफ साफ कह दें कि ये साहित्य से जुड़े लोग वास्तव में ही बोर करने में अग्रणी हैं। अनोखेलाल यदि कुछ सुनाकर हमें बोेर करते हैं तो दूसरे साहित्यसेवियों ने भी हमारी तरह के आदमी पाले हुए हैं। अनोखेलाल तनिक किस्मत के धनी हैं जो हम जैसे फोकटिए श्रोता उपलब्ध है। जबकि कुछ होशियार लोग अपने इस तरह के लेखक मित्रों के श्रोता बनने के बकायदा फीस वसूल करते हैं। हमारे एक लेखक मित्र की कोई और तो सुनता नहीं सो उनकी पत्नी ही उनकी श्रोता है। उन्होंने हमें बताया धीरे से बताया कि उनकी पत्नी ने भी आजकल ब्लेकमेलिंग शुरू कर दी है कहती है कि पहले अपने हाथों से बनी चाय पिलाओ। अरे! भई कोई हमारे इस मित्र को समझाओं कि आखिर कोई कब तक बोर होता रहेगा। वो तो अच्छा है कि उनकी पत्नी केवल चाय ही बनवाती है। ऐसे बोर करने वाले पतियों से तो घर का चूल्हा चौका सब करवाया जाना चाहिए।
खैर जो भी हो बोर होना एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। जो अत्यन्त वैयक्तिक है। यानि जिस कारण आप बोर हो रहे हैं हो सकता दूसरा उसमें बहुत अधिक आनंद ले रहा हो। जैसे यदि आप गलती से बुद्धिजीवियों के साथ सत्संग करने का दुस्साहस कर ले तो हमारा दावा है जिस बात पर वो बहस कर रहे होंगे आप उसे बचकानी समझ कर बोर हो रहे होंगे। ऐसे ही यदि आप किसी नेता का भाषण सुन रहें हो तो जो वादे, इरादे, तकादे अपने भाषण में सुना रहे होंगे हो सकता है आप उस पर आंनद से भीग रहे हो तो आप के पास खड़ा कोई सज्जन उनकी बात से कुढ कर बोर हो रहा हो। अब हमारे एक रंगकर्मी मित्र हैं। नाटकों का निर्देशन कर के स्वयंभू बड़े भारी-भरकम कलासेवी हो गए है। उन्होंने एक बार हमें अपना नाटक देखने के लिए बुलाया। हम खुद को कला के बड़े पैरोकार समझ कर नाटक देखने गए नाटक चलता रहा हम समझने का प्रयास करते रहे हमें कुछ भी समझ नहीं आरहा था। हम बुरी तरह से बोर हो रहे थे। नाटक खत्म हो गया हमने देखा कि लोग उनको मंच पर चढ का बधाईयां दे रहे थे।
बोर होने की समस्या के पीछे एक तर्क दिया जाता है कि जिस काम को करने का मन नहीं हो उसे करवाया जाए तो आदमी बोर हो जाता है। तो फिर तो इस देश में सभी काम नहीं कर रहे बोर हो रहें हैं। भैया वो चिरकुटिया या नालायक ही कहलाएगा जो अपने काम से बोर नहीं हो रहा हो। क्योंकि भैया हम सब मन से काम करते तो यह देश ऐसा थोड़े ही होता। हमें तो लगता है कि हमारे देश के काम के घंटों में से पचास फीसदी घंटे तो यह कहने सुनने में निकल जाते है कि ‘बोर हो रहें यार!' खैर जो भी हो बोर करने में ये फिल्म वाले भी कम नहीं हैं। घटिया फिल्मों का बढिया प्रचार कर लोगों को बुला लेते हैं फिल्म देखने के लिए बस फिर क्या वहाँ जाकर जो हालत होती है वो आप जानते ही हैं यानि धाप कर बोर होते है।
कुछ लोग एक काम को बार-बार करने से बोर हो जाते हैं। एक तरह की सब्जी खाने से, रोज घर की रोटी खाने से, शिक्षार्थी पढ़ने से, शिक्षक पढ़ाने से, लेखक लिखने से, पाठक पढ़ने से, बोर हो जाते हैं। पर भइया इसमें भी अपवाद है। नेता लोग चुनाव लड़ने से, साहित्य और कला से जुड़े लोग भी खुद अपनी पीठ थपथपाने पुलिस के लोग थाने की पोस्टिगं से, डॉक्टर लोग अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस से, बाबु लोग ढंग की सीट से, प्रशासनिक अधिकारी फील्ड पोस्टिगं से, कभी बोर नहीं होते। हमें तो इतना समझ आया है कि बोर होना एक आर्थिक समस्या है। यानि खालिश फोकट के कामों से हम बोर होते हैं। अगर किसी काम में लक्ष्मी मैया की दया रहे तो हम बोर नहीं होते।
दरअसल बोर करना भी एक काम है। यदि आप इस में महारथ हासिल कर लेते हैं। तो आपकी जिंदगी में आने वाले व्यर्थ के उड़ते तीरों से आसानी से मुकाबला कर सकते हैं। मसलन आप केे घर आने वाले बिन बुलाए मेहमानों को बोर कर के आप उनसे मुक्ति पा सकते हैं। कहीं यात्रा के दौरान आप लोगों को बोर कर के खुद बोर होने से बच सकते हैं। इसके विपरीत यदि आप बोर होने के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर ले तो आप उपर वर्णित समस्याओं का डट कर मुकाबला कर सकते हैं। बहरहाल इस पर पूरा पुराण रचा जा सकता था पर क्या करें हमारे ऋषियों का ध्यान इस समस्या पर गया ही नहीं। अब हम इस कमी को पूरा करेंगें और इस गम्भीर विषय पर दो पुस्तकें ‘बोर करने के 101 तरीके' और ‘बोर होन से कैसे बचें' लिखेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि ये पुस्तकें बेस्ट सेलर रहेंगी शायद आपकी भी यही राय होगी। अब हम समझते हैं कि आप पूरी तरह से बोर हो गए होंगे। हम अपने बोर करने की इस कड़ी को यहीं विराम देते हैं। नहीं तो ऐसा न हो कि आप हमें बोर की गुठली बना दें ।
प्रमोद कुमार चमोली
राधास्वामी संत्संग भवन के सामने
गली नं.-2,अम्बेडकर कॉलोनी
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