कहानी-इनामी कूपन ��� शाम लगभग सवा पाँच बजे कालेज से निकलने के बाद जी. प्रसाद पुस्तक मेला देखने मोती महल लॉन पहुँच गया. गेट से अंदर घुसते...
कहानी-इनामी कूपन
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शाम लगभग सवा पाँच बजे कालेज से निकलने के बाद जी. प्रसाद पुस्तक मेला देखने मोती महल लॉन पहुँच गया. गेट से अंदर घुसते ही बायीं तरह दोपहिया गाड़ियों के लिए पार्किंग की व्यवस्था थी. जी. प्रसाद ने अपनी बाइक को जैसे ही वहाँ पर खड़ा किया, एक खुर्राट किस्म के लड़के ने उसे टिकट पकड़ाते हुए कहा-‘‘ दस रूपये!...''
‘‘ लेकिन हर जगह तो पाँच रूपये ही लगते हैं. टिकट पर भी पाँच रूपया ही लिखा है!...'' जी. प्रसाद ने अटकते हुए कहा.
‘‘ लगते होंगे! यहाँ पर दस रूपये लगते हैं! '' लड़के ने बेपरवाही से कहा.
‘‘ जब पाँच रूपये होते हैं तो दस रूपये क्यों दूँ! '' जी. प्रसाद ने लड़के को घूरतेे हुए कहा.
‘‘ दस रूपये दीजिए!...नहीं तो अपनी खटारा कहीं और खड़ी कर दीजिए! जादे बहस मत करिए! '' लड़के ने धमकी भरे लहजे में कहा.
जी. प्रसाद को बहुत बुरा लगा. फिर भी उसने चुपचाप दस रूपये का नोट लड़के की तरफ बढ़ा दिया.
‘‘ ये स्साले ठेकेदार नहीं, ठग हैं, गुंडे हैं गुंडे! '' जी. प्रसाद ने मन ही मन कहा.
लॉन में देश के कोने-कोने से आकर स्टॉल लगाने वाले प्रकाशक अपनी नवीनतम पुस्तकों की अच्छी बिक्री के प्रति काफी उत्साहित थे. पुस्तक प्रेमी लोग पुस्तकों को उलट-पलट कर देख रहे थे, खरीदारी कर रहे थे. जी. प्रसाद भी कई स्टालों पर घूमता रहा, कुछ साहित्यिक पुस्तकों को उलटता-पलटता रहा. उसे किताबों के दाम बहुत अधिक लगे. उसने एक भी किताब नहीं खरीदा. जी. प्रसाद मानता है कि किताबें खरीद कर पढ़ी जाएं, यह ज़रूरी नहीं है. किताबें किसी मित्र अथवा परिचित से मांग कर अथवा किसी पुस्तकालय में बैठ कर भी पढ़ी जा सकती हैं. पुस्तकों को खरीदने में धन व्यय करना एक तरह की फिजूलखर्ची और बेवकूफी है. पैतालीस वर्षीय जी. प्रसाद परले दरजे का हिसाबी-किताबी आदमी है. जल्दी किसी के झांसे में नहीं आता है. रोज़ रात में एक छोटी-सी डायरी में दिन भर के खर्चों का विवरण दर्ज करता है.
मेले में दूसरी तरफ एक पंडाल था. पंडाल के नीचे एक मंच बना हुआ हुआ था. मंच के पीछे लगे एक बैनर पर लिखा हुआ था-‘‘ लेखक से मिलिए कार्यक्रम में आपका स्वागत है! ''
डायस पर खड़ी एक महिला माइक से कुछ बोल रही थी. माइक की आवाज पंडाल में गूंज रही थी. मंच के सामने लाल रंग की कई कुर्सियाँ पड़ी थीं, जिन पर कुछ नर-नारी और बच्चे विराजमान थे.
जी. प्रसाद भी एक खाली कुर्सी पर बैठ गया. तभी एक आदमी ने उसे पीले रंग का एक पर्चा पकड़ाते हुए कहा-‘‘ सर! यह इनामी कूपन है, इसे भर कर मुझे वापस कर दीजिए!...ड्रा के बाद अगर आप का नाम आया तो आपको इनाम मिलेगा!...'' जी. प्रसाद ने इनामी कूपन भर कर उस आदमी को वापस कर दिया. कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहने के बाद जी. प्रसाद अपने घर चला गया.
लगभग एक महीने बाद!
जी. प्रसाद कालेज के स्टाफ रूम में चुपचाप बैठा हुआ था. एकाएक उसका मोबाइल बजने लगा.
‘‘ हलो! '' जी. प्रसाद ने धीरे से कहा.
‘‘ क्या मेरी बात जी. प्रसाद जी से हो रही है ? '' किसी महिला की मधुर आवाज जी.प्रसाद के कानों से टकराई. जी. प्रसाद कुछ गंभीर हो गया.
‘‘ जी! बोल रहा हूँ...'' जी. प्रसाद ने बेहद शालीनता से कहा.
‘‘ कांग्रेचुलेशन सर! मैं पूजा बोल रही हूँ, वर्ल्ड टूर आर्गनाइजर से... आपका इनाम निकला है!...''
जी. प्रसाद तत्काल कुछ समझ नहीं पाया.
‘‘ सर! आप क्या काम करते हैं ? '' शहद जैसी मीठी वाणी से जी. प्रसाद का मन प्रभावित होने लगा.
‘‘ मैं लेक्चरर हूँ. गवर्नमेंट कालेज में हिन्दी पढ़ाता हूँ. '' .
‘‘ सर! मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया ? क्या मैं आपसे पाँच मिनट बात कर सकती हूँ ? ''
‘‘ अरे! बिलकुल नहीं, आप जितनी देर चाहें बात कर सकती हैं. '' जी. प्रसाद ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.
‘‘ थैंक यू सर! आपने इनामी कूपन भरा था न! ड्रा में आपका नाम निकला है. अपना इनाम लेने के लिए आपको कल शाम छः से आठ बजे के बीच गंगोत्री होटल के कामन हॉल में फेमिली के साथ आना होगा. वहीं पर आपको इनाम दिया जाएगा. फिर कुछ खाने-पीने का प्रोग्राम है...'' पूजा बताने लगी, जी प्रसाद सुनने लगा.
‘‘ क्या इनाम है ?...'' जी. प्रसाद ने धीरे से पूछा.
‘‘ यह तो आपको आने के बाद ही पता चलेगा सर! सरप्राइज गिफ्ट है!...''
‘‘ लेकिन ये गंगोत्री होटल है कहाँ पर ? ''
‘‘ आलमबाग में, जस्ट बस स्टेशन के बगल में ही है. ''
‘‘ लेकिन मैं तो चिनहट में रहता हूँ. आलमबाग तो चिनहट से काफी दूर है. क्या परिवार के साथ आना जरूरी है ? मैं अकेले आकर इनाम नहीं ले सकता ? '' जी. प्रसाद ने उत्सुकता से भर कर पूछा.
‘‘ नो सर! आपको अपनी वाइफ को ज़रूर साथ लाना होगा. यही रूल है. क्या कोई प्राब्लम है ? ''
‘‘ अरे नहीं, कोई प्राब्लम नहीं है! क्या हम कल न आकर किसी और दिन नहीं आ सकते हैं ?... ''
‘‘ आप एक हफ़्ते के अंदर कभी भी आ सकते हैं. लेकिन शाम छः से आठ के बीच...''
‘‘ ठीक है, मैं अगले रविवार को आने की कोशिश करूँगा. '' जी. प्रसाद ने गंभीर लहजे में कहा.
‘‘ थैंक यू सर!...''
मालती से शादी के बाद जी. प्रसाद के तीन बच्चे हुए. पहले बेटी, फिर दो बेटे! बड़ी बेटी कल्पना गाजियाबाद में एक प्रायवेट कालेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है. हॉस्टल में रहती है. जी. प्रसाद ने उसकी पढ़ाई के लिए पाँच लाख रूपये एजूकेशन लोन बैंक से स्वीकृत करा लिया था. बड़ा बेटा शलभ उर्फ बड़कू बारहवीं में साइंस साइड से पढ़ता है. साथ ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग कर रहा है. छोटा बेटा शशांक उर्फ छोटू दसवीं में पढ़ता है. उसे क्रिकेट खेलने में पढ़ाई-लिखाई से अधिक मजा आता है.
जी. प्रसाद ने मालती और दोनों बेटों को इनाम के बारे में बताया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
अगले रविवार को जी. प्रसाद ने गंगोत्री होटल जा कर अपना इनाम लेने के बारे में बीवी-बच्चों से चर्चा किया. छोटू होटल जाने के लिए झट से तैयार हो गया. बड़कू ने असमर्थता व्यक्त किया. उसे शाम छः बजे कोचिंग करने जाना था. इसलिए वह उनके साथ जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.
‘‘ क्या वहाँ पर खाना भी मिलेगा ? '' मालती ने पूछा.
‘‘ शायद! कहा तो कुछ ऐसा ही है...'' जी. प्रसाद ने अटकते हुए कहा.
‘‘ चलिए, अच्छा है! लौट कर मुझे खाना तो नहीं बनाना पड़ेगा...'' मालती ने जम्हाई लेते हुए कहा.
‘‘ क्यों ? बड़कू क्या खाएगा ? वह तो नहीं चल रहा है न!...''
‘‘ दिन में काफी खाना बच गया था, फ्रीज में रख दिया है. वही गरम कर के दे दूँगी. '' मालती ने जी. प्रसाद को बताया.
शाम साढ़े पाँच बजे जी. प्रसाद ने मालती और छोटू को किसी तरह बाइक पर अपने पीछे बिठा कर गंगोत्री होटल के लिए प्रस्थान किया.
ठीक छः बजे जी. प्रसाद गंगोत्री होटल पहुँच गया.
‘‘ कामन हॉल किधर है ? '' जी. प्रसाद ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा.
‘‘ जी! सर! फस्ट फ्लोर पर दायीं तरफ...'' रिसेप्शनिस्ट ने अदब के साथ बताया.
कॉमन हॉल के बाहर एक लड़का और एक लड़की स्वागत के लिए खड़े थे. दोनों ने लगभग एक साथ हाथ बढ़ाते हुए और मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘ वेलकम सर! ''
जी. प्रसाद धन्य हो गया. उसके मन में बड़प्पन का बोध जागने लगा.
बड़े अदब के साथ जी. प्रसाद, मालती और छोटकू को गद्दीदार कुर्सियों पर बिठाया गया. कुर्सियों के सामने एक बड़ा-सा मेज था.
लगभग बीस-इक्कीस साल का एक लड़का ठीक जी. प्रसाद के सामने आ कर बैठ गया. कंधों पर लहराते घने, काले और मुलायम बाल उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहे थे. पूरी तरह से सफाचट चेहरे पर सौम्यता पसरी हुई थी और उसकी आँखों में गजब की गहराई थी. उसके हाथ में कुछ कागजात थे. जी. प्रसाद उसके रूप-रंग से बहुत प्रभावित हुआ.
‘‘ ये शायद इनाम देने आया है! '' जी. प्रसाद ने मन ही मन सोचा.
‘‘ गुड इवनिंग सर! मैं हूँ सौरभ! आपको अपनी कंपनी के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ, आप हमारी कंपनी के लकी विनर हैं सर! '' लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा.
जी. प्रसाद उसे गौर से देखने लगा.
‘‘ हमारी कंपनी का नाम है-वर्ल्ड टूर आर्गनाइजर!...दुनिया के सत्तर देशों में हमारी कंपनी काम करती है. वहाँ पर मेरी कंपनी ने कई फाइव स्टार होटल बनाए हैं. कंपनी उन देशों में घूमने-फिरने के लिए टूर आर्गनाइज करती है. इसके लिए हमारी कंपनी के कई पैकेज हैं...'' लड़का फटाफट बताने लगा.
‘‘ प्यास लगी है, पानी मंगवा दीजिए!...'' मालती ने जी. प्रसाद के कान में धीरे से कहा.
‘‘ पानी मंगवा दीजिए!...'' जी. प्रसाद ने सौरभ से कहा.
सौरभ ने ठंडा पानी मंगवा दिया. सबने ठंडा पानी पिया.
फिर सौरभ बताने लगा-‘‘ सबसे आकर्षक पैकेज जो इस समय चल रहा है, गोल्डेन नाइट पैकेज है. इसमें साल में एक बार आप पत्नी और दो बच्चों के साथ वन वीक का टूर बना सकते हैं. इसके लिए आपको एक लाख पचास हजार देना होगा. पेमेंट आप तीन साल के भीतर छत्तीस मासिक किस्तों में भी कर सकते है. फिर कंपनी एक कार्ड जारी करती है. उस कार्ड से आप इंग्लैंड, अमेरिका, अस्ट्रेलिया अथवा किसी भी देश में स्थित कंपनी के फाइव स्टार होटल में ठहर सकते हैं, इसके लिए आपको कोई पेमेंट नहीं करना होगा. केवल खाने के लिए और यात्रा-खर्च आपको बीयर करना पड़ेगा...''
‘‘ घूमने-फिरने में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है, बहुत घूम चुका हूँ.'' जी. प्रसाद ने गहरा निःस्वास छोड़ते हुए कहा.
‘‘ क्या कभी फॉरेन गए हैं ? '' सौरभ ने तपाक से पूछा.
जी. प्रसाद चौंक गया. उसने धीरे से कहा-‘‘ नहीं, फॉरेन तो कभी नहीं गया. ''
‘‘ फिर क्या घूमे सर! जन्नत है जन्नत! एक बार फॉरेन जाकर तो देखिए! फाइव स्टार होटल का लुत्फ उठाइए! आप सिर्फ अपने बारे में क्यों सोच रहे हैं ? फेमिली के बारे में भी सोचिए! '' सौरभ ने मालती की तरफ देखते हुए कहा.
‘‘ लेकिन, हमारे तो तीन बच्चे हैं, इसमें तो केवल दो बच्चे ही जा सकते है. '' मालती ने जिज्ञासा प्रकट किया.
‘‘ इसमें आप हर साल एक हफ़्ते का प्रोग्राम बना सकती हैं, हर साल किसी एक बच्चे को छोड़ दीजिए! वैसे एक दूसरा पैकेज भी है...''
‘‘ देखिए! आप बस इनाम के बारे में बताइए! जिसके लिए बुलाए है. '' जी. प्रसाद ने बेरूखी से कहा.
‘‘ मैं अभी आया सर!...'' कह कर सौरभ चला गया.
‘‘ सौरभ शायद इनाम लेने गया है...'' जी. प्रसाद ने मन में सोचा.
‘‘ लगता है ये लोग कुछ खिलाएंगे-पिलाएंगे नहीं...'' छोटू ने बुरा-सा मुँह बनाते हुए कहा.
‘‘ तुम्हें हमेशा खाने की ही पड़ी रहती है. पढ़ाई-लिखाई में तो मन लगता नहीं है...'' जी प्रसाद ने दांत पीसते हुए कहा.
सौरभ एक अधेड़ आदमी के साथ वापस आया. वह आदमी लगातार मुस्कुराए जा रहा था और देखने में बहुत ही शरीफ लग रहा था.
‘‘ सर! हमारी कंपनी के एरिया मैंनेजर साहब आपसे कुछ बात करना चाहते हैं. '' सौरभ ने जी. प्रसाद से कहा.
‘‘ गुड इवनिंग सर! मैं हूँ जे.पी. चंदोला...'' अधेड़ आदमी ने जी. प्रसाद की तरफ अपना दाहिना हाथ बढ़ाते हुए कहा.
जी. प्रसाद ने शालीनता के साथ उससे हाथ मिला लिया.
‘‘ नाइस टू मीट यू सर! मैं आपको अपनी कंपनी की टूर पालिसी के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ.'' जी. प्रसाद के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए चंदोला ने कहा.
जी. प्रसाद ने कोई उत्साह प्रदर्शित नहीं किया.
‘‘ हमारी कंपनी एक तरह से सोशल वर्क करती है. इसका एम है, बहुत ही मामूली खर्च में आम आदमी को वर्ल्ड का टूर कराना. वरना आजकल आम आदमी फॉरेन का टूर कहाँ कर पाता है ? तत्काल मेंबर बनने पर कंपनी आपको दस हजार की छूट देती है. आपको केवल एक लाख चालीस हजार देना होता है. दस हजार रजिस्ट्रेशन फीस देने के बाद रेस्ट एक लाख तीस हजार तीन साल के भीतर मासिक किश्तों में पेमेंट कर सकते हैं. पर मंथ फोर थाउजेंड से भी कम पड़ेगा. जरा सोचिए!...''
लेकिन जी. प्रसाद कुछ सोचने की स्थिति में नहीं था. उसका सिर चकराने लगा था. चंदोला बताता रहा. जी. प्रसाद चुपचाप सुनता रहा.
‘‘ देखिए! हम तो आज यहाँ इस मूड में आए नहीं हैं. '' जी. प्रसाद ने अटकते हुए कहा.
‘‘ मूड का क्या है सर! मूड तो बन जाएगा. क्यों मैडम आप भी कुछ कहिए न!...'' चंदोला ने मालती की तरफ देखते हुए विनम्रतापूर्वक कहा.
‘‘ अब मैं क्या कहूँ ?...'' मालती ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘ अच्छा चलिए! आप केवल रजिस्ट्रेशन भर करा लीजिए! आप हमारे लकी विनर हैं, इसलिए आपको कंपनी की तरफ से एक स्पेशल ऑफर दिया जा रहा है. केवल दस हजार रूपये देकर रजिस्ट्रेशन कराने के बाद आप तीन महीने के भीतर कंपनी के खर्चे पर एक हफ़्ते का फॉरेन टूर बना सकते हैं. इसमें एक साथ पाँच लोग जा सकते हैं...''
जी. प्रसाद बार-बार जम्हाई लेने लगा.
‘‘ एक फैसिलिटी और भी है जो कंपनी स्पेशल पैकेज के तौर पर दे रही है. यदि इस समय आप रजिस्ट्रेशन कराते हैं तो आप कभी भी पूरी फेमिली के साथ इस होटल में आकर डिनर कर सकते हैं. एक साथ पाँच लोग!...''
‘‘ कभी भी!... क्या रोज़ आ के खा सकते हैं ?...'' छोटू ने मचलते हुए पूछा.
‘‘ जी सर! अगर आप रोज़ आ सकें!...'' चंदोला ने रहस्यमय ढंग से मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ अच्छा! केवल फेमिली के लोग ही आ सकते हैं या और लोग भी...'' छोटू ने उत्साह से भर कर पूछा.
‘‘ कोई भी पाँच लोग आ सकते हैं. फ्रेंड हों या रिलेटिव, कोई भी...बस आपको दो घंटा पहले फोन करके हमें बताना होगा. फिर आपकी बुकिंग हो जाएगी. ''
‘‘ फिर तो अच्छा है...'' छोटू ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा. जी. प्रसाद ने उसे घूर कर देखा.
यह ऑफर मालती को कुछ जंच-सा गया. उसने चंदोला से पूछा-‘‘ क्या हमें ही जाना होगा या हमारी जगह हमारा कोई रिश्तेदार भी फॉरन टूर पर जा सकता है ? ''
‘‘ स्योर!...स्योर मैडम! ये ट्रांसफरेबल है, कोई भी जा सकता है, लेकिन एक साथ केवल पाँच लोग!...'' चंदोला बताने लगा.
‘‘ देखिए भाई! रोज़ तो नहीं, हाँ, हफ़्ते में कम से कम तीन दिन हम जरूर यहाँ खाना खाने के लिए आएंगे! कोई दिक्कत हो तो पहले ही बता दीजिए!...'' मालती ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ मैं तो कहता हूँ आप रोज़ आइए मैडम!...कोई प्राब्लम नहीं है...''
मालती ने स्नेहपूर्ण दृष्टि से जी. प्रसाद को घूरते हुए धीरे से कहा-‘‘ ले लीजिए जी!...हमें नहीं जाना होगा फॉरन तो किसी रिश्तेदार को दे देंगे. इसी बहाने कुछ एहसान हो जाएगा. कम से कम हफ़्ते में तीन-चार दिन मुझे रात में खाना तो नहीं बनाना पड़ेगा...''
छोटू ने आशा भरी दृष्टि से अपने पिता को देखा.
जी. प्रसाद ने कलाई घड़ी में समय देखा. शाम के साढ़े सात बज चुके थे. रोज सात बजे तक वह चाय पी लेता था. उसे चाय की तलब लगी. उसने असमंजस से भर कर चंदोला को देखा.
‘‘ क्या सर! कम से कम बाल-बच्चों की खुशी के लिए ही ले लीजिए!...दस हज़ार रूपये क्या हैं आप के लिए!...'' चंदोला के चेहरे पर विचित्र ढंग की बेचारगी पसर गई.
‘‘ क्या चाय मिल सकती है ? ...'' जी. प्रसाद ने धीरे से पूछा.
‘‘ सारी सर! चाय तो बहुत पहले आ जानी चहिए थी, मुझे ही ध्यान नहीं रहा. चाय लेंगे या ठंडा!...''
‘‘ चाय ही मंगवा दीजिए!...''
‘‘ मेरे लिए ठंडा!...'' छोटू ने मचलते हुए कहा.
‘‘ तुम देख लो सौरभ! '' चंदोला ने बगल में बैठे सौरभ की तरफ देखते हुए कहा. सौरभ वहाँ से उठ कर चला गया.
कुछ देर बाद वेटर किस्म के एक आदमी ने छोटू को कोल्ड ड्रिंक की एक छोटी-सी बोतल पकड़ा दिया, एक प्लेट, जिसमें कुल सात नमकीन बिस्कुट थे, जी. प्रसाद के सामने रख दिया. फिर कप में चाय भर कर देने लगा. सभी लोग चाय पीने लगे.
‘‘ अब फार्म भर दीजिए सर!...'' चाय पीने के बाद चंदोला ने जी. प्रसाद से कहा.
‘‘ देखिए! मैं इतने रूपये तो लेकर आया नहीं हूँ. मुझे क्या पता था कि...''
‘‘ कोई बात नहीं सर!...आप ए.टी.एम. कार्ड तो रखे होंगे! उससे भी काम चल जाएगा...''
‘‘ नहीं, ए.टी.एम. कार्ड भी नहीं रखा हूँ. कोई खरीदारी करने तो निकला नहीं था. रजिस्ट्रेशन के बारे में बाद में सोचूँगा! आप मेरा इनाम दे दीजिए! बहुत देर हो चुकी है...'' जी. प्रसाद ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.
‘‘ अच्छा मैडम! आप बताइए! आप क्या चाहती हैं ?...'' चंदोला ने मालती से पूछा.
‘‘ मैं तो चाहती हूँ, लेकिन ये चाहें तब न! रूपये तो यही देंगे न! '' मालती ने अजीब ढंग से मुंह बनाते हुए कहा.
‘‘ और आप! छोटे सरकार!...'' चंदोला ने छोटू से पूछा. छोटू ने कोई जवाब नहीं दिया. कातर दृष्टि से अपनी माँ को देखने लगा.
‘‘ क्या सर! आप भी!...आखिर आदमी किसके लिए कमाता है ? बाल-बच्चों के लिए ही न! आप चाहें तो घर जाकर रूपये दे सकते हैं. मेरा आदमी आप के साथ जाकर लाएगा!...''
‘‘ आजकल घर में कौन इतना कैश रखता है. छोड़िए! फिर कभी देखते हैं...'' जी. प्रसाद ने सधे लहजे में कहा.
‘‘ आप ऐसा कीजिए! बड़कू को फोन कर दीजिए कि वह ए.टी.एम. कार्ड लेकर चौराहे पर आ जाए. वहीं पर पैसे निकाल कर दे दीजिएगा! '' मालती ने जी. प्रसाद के कान में फुसफुसाते हुए कहा. लेकिन चंदोला ने सुन लिया. उसने तपाक से कहा-‘‘ मैडम! ठीक कह रही हैं. आप ऐसा भी कर सकते हैं. ''
जी. प्रसाद तिलमिला कर रह गया.
सौरभ ने एक फार्म उसके सामने रखते हुए कहा-‘‘ टर्म्स एण्ड कंडिशंस से संबंधित है. इसमें वही लिखा है जो सर ने आपको बताया है. मैंने इसमें आपका नाम, पता आदि भर दिया है. आपको बस साइन करना है.''
फार्म अंग्रेजी में था. जी. प्रसाद ने उसे पढ़ने का जहमत नहीं उठाया. उसने बिना पढ़े ही बेमन से निर्धारित स्थान पर हस्ताक्षर कर दिया.
सौरभ ने दस हजार रूपये की रसीद काट कर जी. प्रसाद को देते हुए कहा-‘‘ कंट्रैक्ट पेपर आपको डाक से एक सप्ताह के अंदर भेज दिया जाएगा. ''
जी. प्रसाद ने उसे निरीह दृष्टि से देखा.
‘‘ सौरभ तुम पैसे लेने के लिए सर के साथ चले जाओ!...'' चंदोला ने उठते हुए कहा.
‘‘ और, इनाम!...'' जी. प्रसाद ने धीरे से कहा.
‘‘ अरे, हाँ! वह तो रही गया. नेहा! तुम सर का इनाम दे दो!...'' चंदोला ने पास खड़ी एक लड़की से जोर से कहा. लड़की ने इनाम जी. प्रसाद को दे दिया. उसने इनाम को छोटू को पकड़ा दिया. इनाम चमकीले कागज में लिपटा हुआ था. जी प्रसाद के मन में इनाम को देखने की लालसा जागने लगी.
घर पहुँच कर जी. प्रसाद इनाम को एक टेबल पर रख कर उस पर लिपटे चमकीले कागज नोंच कर फेंकने लगा. उसके अंदर कागज का एक बड़ा आयताकार पैकेट था. उसने पैकेट खोल कर देखा. सस्ते किस्म के कांच की छः प्यालियाँ थीं. जी. प्रसाद ने सिर पीट लिया.
‘‘ सब स्साले ठग हैं, बेवकूफ बनाते हैं. इन प्यालियों की कीमत सौ रूपय से अधिक नहीं होगी. इससे ज्यादे तो पेट्रोल जल गया होगा!...'' जी. प्रसाद बड़बड़ाने लगा.
‘‘ अब छोड़िए भी! ज्यादे परेशान मत होइए! '' मालती ने धीरे से कहा.
‘‘ तुम चुप रहो! '' जी. प्रसाद ने मालती को डपट दिया. ‘‘ सब तुम्हारे चलते हुआ है. सिर्फ तुम्हारे चलते आज दस हजार का चूना लग गया. मैं तो बेवकूफ हूँ न!...मैंने टालने के लिए कितना प्रयास किया, लेकिन तुम्हारे चलते फंस गया. क्या जरूरत थी ये कहने की कि...मैं तो चाहती हूँ, ये चाहें तब न!...बस उसने पकड़ लिया. लोग ठीक ही कहते हैं कि औरत के पास नाक न हो तो मैला खाए!... ''
रात में सोते वक़्त जी. प्रसाद ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा-‘‘ गए दस हजार रूपये पानी में!...''
‘‘ आप जादे चिंता मत करिए! उसने कहा है न कि हम लोग कभी भी गंगोत्री होटल में मुफ़्त में खाना खा सकते हैं. हम लोग खा-पी कर सब बराबर कर लेंगे...'' मालती जी. प्रसाद को तसल्ली देने लगी.
एक हफ़्ते बाद जी. प्रसाद के घर के पते पर एक लिफाफा आया. उसके अंदर से दो पन्ने का अनुबंध-पत्र निकला. अनुबंध पत्र भी अंगे्रजी में था, लेकिन जी. प्रसाद उसे पढ़ने लगा. अनुबंध-पत्र के अनुसार उसने दस हजार रूपये देकर रजिस्ट्रेशन करवाया है, जो वापसी योग्य नहीं है. तीन माह के भीतर उसे किसी देश का भ्रमण कर लेना चाहिए, नहीं तो योजना स्वतः समाप्त हो जाएगी. जी. प्रसाद का मन मसोस कर रह गया.
‘‘ चलिए! आज रात में गंगोत्री होटल में खाना खाने चलते हैं. साथ में राजू को भी ले लेते है. '' रविवार को दोपहर में मालती ने जी. प्रसाद से ने कहा.
राजू छोटू का सहपाठी और मित्र था. पड़ोस में ही रहता था.
जी. प्रासाद मालती को एकटक देखने लगा.
‘‘ आप फोन करके चंदोला को बता दीजिए कि हम पाँच लोग आज खाना खाने आ रहे है. चल कर देखते हैं...''
जी प्रसाद ने चंदोला को फोन लगाया.
‘‘ मैं जी. प्रसाद बोल रहा हूँ. '' जी. प्रसाद ने मुस्कुराते हुए कहा. जैसे, चंदोला उसे देख रहा हो.
‘‘ गुड आफ्टर नून सर! कहिए! क्या सेवा कर सकता हूँ. ''
‘‘ आज हम लोग खाना खाने के लिए आना चाहते हैं...''
‘‘ वेलकम सर! कितने लोग होंगे ? ''
‘‘ पाँच लोग! ''
‘‘ कितने बजे तक आ जाएंगे ? ''
‘‘ यही, कोई साढ़े आठ-नौ बजे तक...''
‘‘ ठीक है, मैं टेबल बुक करवा दूँगा. आने के बाद आप मुझे फोन कर लीजिएगा! '' चंदोला ने कहा.
अब पाँच लोग गंगोत्री होटल तक पहुँचेंगे कैसे ? बाइक से तो जा नहीं सकते थे. तय हुआ कि ऑटो रिजर्व कर लिया जाएगा.
एक सौ पचास रूपये में एक ऑटोरिक्शा रिजर्व कर जी प्रसाद अन्य भोजनार्थियों के साथ रात में पौने नौ बजे गंगोत्री होटल पहुंच गया. उसने चंदोला को फोन किया.
‘‘ सर! मैं अभी पाँच मिनट में पहुंच रहा हूँ. नीचे ही दायीं तरह रेस्टोरेंट है. आप वहीं पर मिलिए! '' चदोला ने उसे बताया. जी प्रसाद रेस्टोरेंट के गेट के सामने खड़ा हो गया. वह बेसब्री के साथ चंदोला का इंतजार करने लगा.
लगभग पंद्रह मिनट बाद चंदोला आया.
‘‘ सारी सर! कुछ लेट हो गया. अंदर चलिए!...'' चंदोला ने मुस्कुराते हुए कहा.
जी. प्रसाद अपने साथ आए लोगों के साथ रेस्टोरेंट के अंदर एक हॉल में चला गया. चंदोला ने एक बड़े से टेबल के पास ठिठकते हुए कहा-‘‘ बैठिए सर! ''
सभी लोग टेबल के दोनों तरफ पड़ी कुर्सियों पर बैठ गये.
‘‘ यहाँ पर आपको शुद्ध शाकाहारी खाना मिलेगा. '' चंदोल ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ लेकिन हम लोग तो मटन खाने के मूड में आए थे. '' मालती ने जम्हाई लेते हुए कहा.
‘‘ सारी मैडम! नानवेज यहाँ नहीं मिलता. '' चंदोला ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ क्या, कड़ाही पनीर मिलेगा ?...'' छोटू ने धीरे से पूछा.
‘‘ नहीं, कड़ाही पनीर मेनू में नहीं है. यहाँ पर थाली सिस्टम चलता है. एक थाली में दो तरह की सब्जी, दाल फ्राई, चावल, चार रोटी और सलाद मिलता है...''
छोटू का चेहरा उतर गया. मालती कुनमुनाने लगी. जी. प्रसाद का तो जैसे मोहभंग हो गया हो.
तब तक वेटर आ चुका था.
‘‘ यहाँ पर पाँच थाली लगा दो!...'' चंदोल ने वेटर से कहा.
जी प्रसाद चुपचाप खाना खाने लगा.
‘‘ कितना रद्दी खाना है!...इससे अच्छा तो चिनहट चौराहे पर मिलता है, तीस रूपये थाली!...'' छोटू ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा.
‘‘ जो मिल गया है, चुपचाप खा लो! नहीं तो लगा दूँगी दो-चार हाथ!...'' मालती ने दांत किटकिटाते हुए कहा. उसके चेहरे पर विचित्र किस्म की क्रूरता पसर गई.
खाना खाने के बाद सभी लोग ऑटोरिक्शा से वापस आ गए.
मालती और जी प्रसाद ने फॉरेन टूर स्कीम का लाभ देने के लिए अपने कई रिश्तेदारों से संपर्क किया, लेकिन कोई न कोई विवशता बता कर सबने मना कर दिया.
कोढ़ में खाज की तरह वर्ल्ड टूर ऑर्गनाइजर कंपनी से कोई लड़की टूर के प्रोग्राम के बारे में जी. प्रसाद को बार-बार फोन करने लगी.
‘‘ कहाँ का प्रोग्राम बना रहे हैं सर! कब तक जाना है ? ''
‘‘ अभी कुछ तय नहीं कर पाया हूँ...''
‘‘ जल्दी से तय कर लीजिए सर! बहुत कम टाइम बचा है. मैं तो कहती हूँ कि आप पेरिस का प्रोग्राम बना लीजिए! बहुत अच्छी जगह है. ''
‘‘ क्या तुम कभी वहाँ गई हो ? ''
‘‘ नहीं सर! मैं तो नहीं गई हूँ. ''
‘‘ फिर तुम्हें कैसे पता कि अच्छी जगह है... फालतू बकवास करने की जरूरत नहीं. जब हमें जाना होगा, हम खुद आकर बता देंगे. '' जी प्रसाद ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.
‘‘ क्यों न हमीं लोग टूर का परोगराम बना लें!...'' एक दिन दबी ज़बान से मालती ने जी. प्रसाद से कहा.
‘‘ तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है. फॉरेन में किसी भी जगह जाने में कम से कम एक लाख का खर्च आएगा. मैंने सब पता कर लिया है. केवल होटल में ठहरने का ही तो नहीं लगेगा. आने-जाने, घूमने-फिरने और खाना खाने के लिए तो खुद ही खर्च करना पड़ेगा... '' जी. प्रसाद भुनभुनाने लगा.
तीन महीने गुजर गए. योजना स्वतः समाप्त हो गई. जी प्रसाद के मन में रह-रह कर यह बात टीसने लगी कि वह ठगा गया है. वह बात-बात पर चिड़चिड़ाने लगता, बड़बड़ाने लगता.
एक दिन जब जी. प्रसाद बी.ए. के छात्रों को छायावाद पढ़ा रहा था, उसके मोबाइल पर एक अननोन कॉल आया.
‘‘ हलो!...'' जी प्रसाद ने धीरे से कहा.
‘‘ सर! आप जी. प्रसाद जी बोल रहे हैं न! क्या मैं आप से दो मिनट बात कर सकती हूँ...'' किसी महिला ने आग्रह किया.
‘‘ नहीं, अभी नहीं! '' जी. प्रसाद ने तपाक से कहा.
‘‘ मेरा आप से बात करना बहुत जरूरी है सर! बस दो मिनट!...आपको बधाई हो सर! आप ने इनामी कूपन भरा था न!...''
‘‘ नहीं, मैंने तो नहीं भरा था. '' जी. प्रसाद ने चौंकते हुए कहा.
‘‘ हो सकता है आपके किसी फेमिली मेंबर ने भरा हो, सर! आपका इनाम निकला है. इसके लिए...''
‘‘ मुझे अपने परिवार के साथ किसी होटल में आना होगा.'' जी. प्रसाद ने बीच में ही टोक दिया. ‘‘ ऐसा करो! मेरी तरफ से तुम मेरा इनाम ले लो! मुझे नहीं चाहिए इनाम! ''
‘‘ प्लीज आ जाइए सर!...''
‘‘ तुम तो बड़ी बेहया लग रही हो यार! एक बार में तुम्हें बात समझ में नहीं आती है क्या ? तुम लोगों की चाल मैं समझ गया हूँ. अब तुम लोगों की दाल नहीं गलने वाली, दूसरा ग्राहक खोजो! तुम्हें तो कंपनी ने इसीलिए रखा ही है कि तुम उसके लिए ग्राहक खोजो. इसके लिए चाहे तुम्हें कुछ भी करना पड़े. स्साले ठग! '' जी. प्रसाद ने शब्दों को चबाते हुए कहा. उसका चेहरा विकृत होने लगा.
कक्षा के सभी छात्र जी. प्रसाद को अचम्भे से देखने लगे.
एकाएक जी. प्रसाद के मन में आया कि उसने तो कोई कूपन भरा नहीं था. फिर!...
शाम को घर लौटने के बाद जी. प्रसाद ने अपने पूरे परिवार को संबोधित करते हुए पूछा-‘‘ तुममें से किसने इनामी कूपन भरा था ? ''
मालती जी. प्रसाद को एकटक देखने लगी.
‘‘ जिसने भी भरा हो मुझे साफ-साफ बता दे, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. '' जी. प्रसाद दहाड़ने लगा.
‘‘ मैंने तो नहीं भरा...'' मालती ने धीरे से कहा.
‘‘ मैंने भी नहीं भरा...'' बड़कू ने सहमते हुए कहा.
‘‘ तुमने भरा था ? '' जी. प्रसाद ने छोटू को घूरते हुए पूछा.
छोटू बगले झांकने लगा. जी. प्रसाद एकाएक उसके एकदम पास जा कर खड़ा हो गया. छोटू का गर्दन पीछे से दबाते हुए गुर्राय़ा-‘‘ तुमसे ही पूछ रहा हूँ. क्या तुमने भरा था ? ''
छोटू की घिग्धी बंध गई.
‘‘ जी!...एक दिन राजू के साथ सुपर मार्केट गया था. वहाँ पर एक आदमी कूपन भरवा रहा था. राजू के कहने पर मैंने भी कूपन भर दिया था. उसमें आपका मोबाइल नंबर दे दिया था. ''
‘‘ मेरा कहना तो मानते नहीं हो! राजू का कहना जरूर मानोगे! '' जी. प्रसाद ने छोटू के गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ लगाते हुए कहा. फिर उसे जोर से पीछे ढकेल दिया. छोटू फर्श पर भहरा गया.
'' अब कभी किसी के कहने पर इनामी कूपन भरा तो हाथ-पैर तोड़ दूँगा. '' कह कर जी. प्रसाद हाँफने लगा. (समाप्त)
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लक्ष्मीकांत त्रिपाठी
पता-14/26., इंदिरा नगर, लखनऊ.
its my experince bt in camputer way...i know that kind of cheating is in every field.....
जवाब देंहटाएंI also have the same experience.....but in insurance sector..
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