कैस जौनपुरी का धारावाहिक - 20 वीं कड़ी - आओ कहें... दिल की बात : मुसलमान कब से जश्न मनाने लगे...?

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पिछली कड़ियाँ    - एक , दो , तीन , चार , पांच , छः , सात , आठ , नौ , दस , ग्यारह , बारह , तेरह , चौदह , पंद्रह , 16 , 17 , 18,  . 19 ...

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आओ कहें...दिल की बात
कैस जौनपुरी

मुसलमान कब से जश्न मनाने लगे...?
आज ईद-ए-मिलाद-उल-नबी का दिन था. खुशी का दिन था. पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब का जनम-दिन था. खुशी का दिन था. मुम्बई की सड़कों पर निकल रहे जुलूस देखने लायक थे. तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. नौजवान मुसलमान मस्ती में झूम रहे थे. मेरे जेहन में एक सवाल आया, “ये मुसलमान कब से जश्न मनाने लगे...?”
बड़े-बड़े ट्रकों पे नौजवान मुसलमान लदे हुए थे. उनके हाथों में हरे और सफ़ेद रंग के झण्डे लहरा रहे थे. कुछ नौजवान बज रहे बड़े-बड़े म्युजिक सिस्टम को सम्भाले हुए थे. कुछ किनारों पे लटके हुए थे. आज इन्हें कोई कुछ कहने वाला नहीं था. आज ये कुछ भी कर सकते थे. और इनको ऐसा करने देने के लिये प्रशासन ने पूरे इन्तजाम किये हुए हुए थे. पुलिस वाले पहरा दे रहे थे. कई जगहों पर तो मिलिट्री के जवान भी तैनात थे. ऐसा लग रहा था जैसे जंग की तैयारी हो और सारे जवान सिर्फ़ एक इशारे का इन्तजार कर रहे हों.

मैं ये सोच रहा था, ऐसा क्यूँ हो रहा है...? मुसलमान का धर्म तो सादगी का धर्म है. फ़िर ये शोर-शराबा किसलिये...? किसने इजाजत दी ऐसा करने की...? कहाँ गये वो लोग जो आये दिन फ़तवे जारी करते रहते हैं...? कौन सी शरीयत में लिखा है ऐसा करने के लिये...? ऐसा कुरान में तो नहीं लिखा है...! कुरान में जितनी बातें लिखी हैं, मुसलमान उन्हें तो आज तक पूरा कर नहीं पाया, फ़िर ये शोर-शराबा करने की फ़ुर्सत कहाँ से मिल गयी...?

एक दिन पहले से ही ये तमाशा चल रहा है. कल तो ढ़ोल-ताशे भी बजाये जा रहे थे. और लोग नाच भी रहे थे. जैसे गणेश विसर्जन या किसी और हिन्दू त्योहार में होता है. लोग आज भी झूम रहे थे. मैं ये सोच रहा था, ये सब किसको दिखाया जा रहा है...? गाड़ियों पर बड़े-बड़े बैनर लगे हुए थे. “स्टार डेवेलपर”, “मून इलेक्ट्रॉनिक” और इसी तरह के बड़े-बड़े स्पॉन्सर अपना प्रचार कर रहे थे.

इनका तो मतलब समझ में आता है कि इन्होंने पैसे खर्च किये हैं. मगर ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि ये प्रचार वाले बैनर मदीने की मस्जिद के पोस्टर के साथ क्या कर रहे थे...? एक तरफ़ इस्लामी निशानियाँ दूसरी तरफ़ दुनियावी मतलबी लोगों की निशानियाँ...खैर ये तो इन्तजाम करने वाले जानें कि वो किसको ज्यादा अहमियत दे रहे थे...?

जहाँ तक मैं समझता हूँ इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो कुरान के एक लफ़्ज के आगे खड़ा भी रह सके. मगर यहाँ तो बात कुछ और ही हो रही थी. मदीने की मस्जिद का बैनर, कुरान की आयतों का बैनर और मुम्बई के बिजनेसमैनों का बैनर एक साथ चल रहे थे. बड़े अफ़सोस की बात है. आज मुसलमान भी दिखावे पे उतर आया है. इससे बुरा क्या होगा...?

इस्लाम दुनिया में अकेला ऐसा धर्म है जिसकी किताब “कुरान” में जीने के सही-सही और पूरे तरीके बताये गये हैं. खुद खुदा ने हिदायतें दी हैं. इससे बेहतर और क्या होगा...? लेकिन आज जो मुम्बई की सड़कों पे देखा...इससे बदतर और क्या होगा...?

कुछ नौजवान मुसलमान अपने चेहरे इस्लामी झण्डे के रंग मे रंग के आये हुए थे. जैसे क्रिकेट के खेल में क्रिकेट देखने वाले कुछ शौकीन लोगों के चेहरों पे देखने को मिलता है. यहाँ तक तो ठीक था, मगर इस्लामी झण्डे के रंग में रंगे इन चेहरों के मुंह से धुआँ निकल रहा था. और ये धुआँ था सिगरेट का...

ये सब खुलेआम हो रहा था. थिरकने वाला म्युजिक नौजवान मुसलमानों को झूमने पर मजबूर कर दे रहा था. चमकीले कुर्ते, हाथ में रुमाल और मुँह मे सिगरेट...

ये कैसा धर्म था...? ये कौन सा धर्म था...? ये इस्लाम तो नहीं था...

मैंने तो सुना है नमाज में सज्दे में जाकर रोने पे खुदा खुश हो जाता है. हर आँसू के बदले खुदा अपनी रहमत का खजाना खोल देता है. आज ये नौजवान किसे खुश करने में लगे हुए थे...? क्या सड़क पे किनारे खड़ी लड़कियों और औरतों को...? या ये सिर्फ़ एक हुजूम था जो आकर चला जायेगा...?
दो दिन से चल रहा है ये तमाशा. इतना तो मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ कि इन नौजवानों में से किसी ने भी इन दो दिनों में एक वक्त की भी नमाज नहीं पढ़ी होगी. कितने शरम की बात है...!

इस तमाशे से साफ़ जाहिर है कि बाकी धर्मों की तरह इस्लाम के लोग भी अब भटक रहे हैं. और वो काम करने लगे हैं जिसके लिये कभी कहा ही नहीं गया. जैसे बुद्ध ने कहा था कि “मेरी कभी कोई तस्वीर न बनाना” मगर आज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाले भगवान, बुद्ध ही हैं. राम और श्रीकृष्ण ने कभी नहीं कहा कि मेरी पूजा करना. लेकिन लोग करते हैं. उनकी श्रद्धा है. ईसा मसीह ने कहा था “मैं कुछ नहीं हूँ. सब कुछ वही है जिसने मुझे भेजा है. उसको मानो” और आज हम हर जगह ईसा मसीह को क्रूस पे लटके हुए देख सकते हैं. आज लोग उन्हीं को ईश्वर मान बैठे हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि “पेड़ों को मत सजाना” मगर आज हर साल “क्रिसमस ट्री” सजाया जाता है. एक इस्लाम ही है जिसमें कहा गया है कि “नमाज पढ़ना” और मुसलमान लोग आज भी नमाज पढ़ते हैं. फ़िर अचानक इस मुसलमान को क्या हो गया...? क्या वो मस्जिदों मे जाते-जाते बोर होने लगा है...? क्यूँकि वहाँ गाना नहीं बजता...? क्या इसीलिये आज कसर निकाली जा रही थी...?

इस्लाम गरीब का धर्म है. सब्र करने का धर्म है. भाईचारे का धर्म है. यही सब तो सिखाया है हजरत मुहम्मद साहब ने. फ़िर ये सड़क पे रास्ता जाम करके, लोगों के आने-जाने में मुसीबत खड़ी करके कौन सा धर्म निभा रहे हैं ये मुसलमान लोग...? इस्लाम में बताये हुए पाँच रास्तों ईमान, रोजा, नमाज, जकात और हज में से ये कौन सा रास्ता है...?

आज जितना ज्यादा शोर है, कल उतना ही गहरा सन्नाटा होगा. कोई किसी को नहीं पूछेगा. आज भीड़ जुटी है तो मस्ती हो रही है. क्यूँकि कोई कुछ कहने वाला नहीं है आज. भीड़ में कौन किसको पहचानता है...? भीड़ की कोई शकल थोड़े होती है.

तेज आवाज में थिरकने वाले म्युजिक में “लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह” बज रहा था. “नारे तकबीर, अल्लाहु अकबर” के नारे लग रहे थे. सच कहूँ तो ये सब एक हुड़दंग जैसा लग रहा था. इस्लामी तरीके में ये हुड़दंग आया कहाँ से...? क्या ये बाकियों की नकल करने की बेहूदा कोशिश नहीं है...?

हजरत मुहम्मद साहब तो जब नमाज पढ़ते थे तब खूब रोते थे. शायद उन्हें आज से चौदह सौ साल पहले ही पता चल गया था कि “एक दिन ऐसा भी आयेगा जब मुसलमान इस तरह नाच-गा के मेरा जनम-दिन मनायेंगे.” शायद वो खुदा से इस बात की भी माफ़ी माँगते थे कि “मुझे माफ़ करना खुदा. मेरी कौम एक दिन इस हालत में भी जायेगी. ऐसा मुझे डर है.” तब शायद खुदा ने कहा होगा, “फ़िकर न करो ऐ मेरे प्यारे नबी. तुमने अपना काम पूरा किया. अब तुम्हारी कौम जैसा करेगी उसे वैसा ही बदला दिया जायेगा. हम ये वादा कई बार पहले भी कर चुके हैं.” और शायद ये हजरत मुहम्मद साहब की अपनी कौम के लिये मुहब्बत ही थी कि वो अपनी कौम के लिये खुदा से दुआ करते थे और नमाज में घण्टों रोते थे.

आज ये सड़क पर नाचने वाले मुसलमान, तेज आवाज में म्युजिक बजाकर थिरकने वाले मुसलमान भूल रहे हैं कि आज अल्लाह के सबसे प्यारे नबी का जनम-दिन है, तो वहाँ अल्लाह भी जन्नत में अपने नबी का जनम-दिन मना रहा होगा. और इस शोर-शराबे की आवाज उसके प्यारे नबी तक भी पहुँच रही होगी. और आज अपने जनम-दिन के दिन भी प्यारे नबी की आँखों में आँसू आ रहे होंगे. और अल्लाह सब कुछ देख कर मुस्कुरा रहा होगा और कह रहा होगा “ऐ मेरे प्यारे नबी, तुम खुश रहो. ये तुम्हारी कौम नहीं. तुम क्यूँ इनके लिये आँसू बहाते हो...? इनका हिसाब-किताब है मेरे पास. आज तुम खुश रहो. इनके लिये हमने सजा मुकर्रर कर रखी है. और मेरे प्यारे नबी, तुम तो जानते हो मुझे नाफ़रमानी कितनी नापसन्द है. जब मैं अपने ही फ़रिश्ते को इस इन्सान के आगे सज्दा न करने पर शैतान बना सकता हूँ तो तुम सोचो मेरे सबसे प्यारे नबी की नाफ़रमानी करने वाले इन इन्सानों का क्या हश्र होगा...?”

आज जन्नत में खुदा अपने सबसे प्यारे नबी हजरत मुहम्मद साहब को अपने हाथों से जन्नत में मिलने वाला सबसे बढ़िया केक खिला रहा होगा. और हजरत मुहम्मद साहब अपने खुदा की मुहब्बत और अपनी कौम के होने वाले हश्र दोनों को सोचकर फ़ूट-फ़ूट कर रो रहे होंगे. और मन में कह रहे होंगे “ऐ मेरी कौम, अब भी वक्त है. सम्भल जाओ. मैं तुम्हारे लिये खुदा से माफ़ी माँग लूँगा. मगर तुमलोग ये तमाशा बन्द करो. खुदा के सामने अपने गुनाहों की माफ़ी माँगो. गिड़गिड़ाओ. आँसू बहाओ.”

और खुदा तो सबके दिलों की बात जानता है. वो अपने नबी के दिल की बात भी सुन रहा होगा. और आज खुदा भी रो रहा होगा...

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कैस जौनपुरी
qaisjaunpuri@gmail.com
www.qaisjaunpuri.com

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रचनाकार: कैस जौनपुरी का धारावाहिक - 20 वीं कड़ी - आओ कहें... दिल की बात : मुसलमान कब से जश्न मनाने लगे...?
कैस जौनपुरी का धारावाहिक - 20 वीं कड़ी - आओ कहें... दिल की बात : मुसलमान कब से जश्न मनाने लगे...?
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