मो बाइल के बढ़ते इस्तेमाल को भारत में आधुनिक हो जाने के पर्याय के रूप में देखा जा रहा है। इस कारण मोबाइल के नवीनतम मॉडलों का उपयोग दिखावे...
मोबाइल के बढ़ते इस्तेमाल को भारत में आधुनिक हो जाने के पर्याय के रूप में देखा जा रहा है। इस कारण मोबाइल के नवीनतम मॉडलों का उपयोग दिखावे के रूप में भी हो रहा है। लेकिन मोबाइल पर मनुष्य की निर्भरता और इससे फैलने वाला विकिरण कितना खतरनाक है, यह ताजा शोधों से पता चला है। इस बाबत अंतर मंत्रालयीन समिति ने इससे निकलने वाली विद्युत चुंबकीय विकिरण के असर को मानव शरीर के लिए घातक बताया है। इसीलिए अब भारत सरकार ने भी मोबाइल कंपनियों के लिए यह जरूरी कर दिया है कि वे हैंडसेट में विकिरण का स्तर देखने की सुविधा उपभोक्ता को दें। हालांकि इसके साथ कंपनियों को यह बाध्यकारी शर्त लगाना जरूरी था कि वे ऐसे पुख्ता इंतजाम करें जिससे ज्यादा विकिरण पैदा ही न हो। क्योंकि कंपनियां अब बाजार में ऐसे हैंडसेट ले आएंगी जो विकिरण की गलत जानकारी देगें। इसलिए यह प्रावधान विकिरण घटाने की अनिवार्यता पूरी करने के बजाय दिखाने की शर्त पूरी करेगी। मोबाइल और मोबाइल टॉवर न केवल इंसानों के लिए बल्कि पक्षी जगत और कीट पतंगों के लिए भी हानिकारक साबित हो रहे हैं। एक अलग अध्ययन से पता चला है कि इन टॉवरों से केरल में मधुमक्खियों से उत्पादित की जाने वाली शहद में उम्मीद से ज्यादा कमी आई है। विकिरण ने गौरैया और तितलियों के तो वजूद को ही खतरे में डाल दिया है। लेकिन छलावे की आधुनिकता हम पर इतनी हावी है कि न तो हम इंसानों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर चिंतित हैं और न ही लुप्त हो रही जैव विविधता के प्रति गंभीर।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में चेताया है कि चलायमान दूरभाष स्तंभों और उनके बुनियादी आधार से जो विकिरण (रेडिएशन) उत्सर्जित होता है, उससे थकान, अनिद्रा, ध्यान भंग होना, चक्कर आना, समृति लोप होना, सिरदर्द, कुपच और दिल की धड़कनों के बढ़ने जैसी समस्याएं आमफहम हो गई हैं। टॉवरों से निकलने वाले विद्युत-चुंबकीय विकिरण से मधुमक्खियों और पक्षियों की दिनचर्या पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जबकि जीव-जंतुओं और कीट-पतंगों का सर्वव्यापी विचरण व उपलब्धता स्वस्थ व अनुकूल परिस्थितिकी तंत्र का संकेत है।
इसके पूर्व केरल में एक अध्ययन से खुलासा हुआ था कि मोबाइल टॉवर और सेल फोन से निकलने वाले वैद्युत चुंबकीय विकिरण में श्रमिक मधुमक्खी की जीवन लीला समाप्त करने की क्षमता होती है। श्रमिक मधुमक्खी ही फूलों से मकरंद इकट्ठी करती है। पर्यावरणविद और प्राणी विज्ञान विभाग में रीडर डॉ. सैनुद्दीन पत्ताजे ने अपने अध्ययन में कहा है कि केरल के विभिन्न भागों में मधुमक्खियों के छत्तों की संख्या में कमी देखी जा रही है। पत्ताजे ने चेताया है कि यदि मोबाइल टावरों की संख्या को रोका नहीं गया तो एक दशक के भीतर केरल से मधुमक्खियों का सफाया हो सकता है।
पत्ताजे ने अपने अध्ययन में पाया कि जब एक मोबाइल फोन को छत्ते के करीब रखा गया तो 5 से 10 दिनों के भीतर उसकी बस्ती उजड़ गई। क्योंकि श्रमिक मधुमक्खियां अपने छत्ते में नहीं लौटीं। वहां केवल रानी, अंडे और छत्ते में रहने वाली अवयस्क मधुमक्खियां बची रह गई। टॉवरों से पैदा होने वाली शक्तिशाली तरंगे श्रमिक मधुमक्खियों के खोजी और उद्यमी कौशल को नुकसान पहंचाने के लिए पर्याप्त होती हैं।
कोल्लम जिले में पुनालूर के एसएन कालेज में अध्यापन करने वाले पत्ताजे ने कहा कि श्रमिक मधुमक्खियों की बस्तियों में जीवन निर्वाह में मधुमक्खियां महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। कुछ महीने पहले पत्ताजे के नेतृत्व में पर्यावरणविदों के दल ने केरल के कोल्लम जिले के विभिन्न भागों में अध्ययन किया था। उन्होंने पाया कि मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले विकिरण से गौरैया के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। ये शहरी इलाकों सहित मनुष्यों के रिहायशी क्षेत्रों के पास समूह में रहती हैं।
वायनाड के एक मधुमक्खी पालक पैरक्कल चाको ने कहा है कि यह सही है कि क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर मधुमक्खियों के छत्तों का विनाश हो रहा है। अभी तक ऐसा माना जाता था कि जलवायु परिवर्तन और आक्रांता कीटों के हमलों के कारण ऐसा हो रहा है। यह भी आशंका जताई जा रही है कि मोबाइल टॉवर भी खतरे का स्रोत हो सकते हैं इस बिन्दु से जांच की जानी चाहिए। हालांकि इस संबंध में विस्तार से अध्ययन की जरूरत है लेकिन यह तर्कसंगत बात लगती है कि कीट और इसी प्रकार के छोटे जंतु मोबाइल टॉवरों और सूक्ष्म तरंगों से सबसे आसानी से प्रभावित होते हैं। जो छत्ते मोबाइल टॉवरों के पास होते हैं उनमें मधुमक्खियों के व्यवहारगत पैटर्न में अंतर देखा जा रहा है। कृषकों को मधुमक्खियां परागण वाले पुष्पों तथा पादपों की मदद कर वनस्पति को फलने फूलने में मदद करती है।
मधुमक्खी की एक कॉलोनी (छत्ता) में रानी और कुछ ड्रोन सहित 20 से 30 हजार के करीब मधुमक्खियां होती है। मधुमक्खियों की आबादी का 90 फीसदी हिस्सा श्रमिक मधुमक्खियों से बना होता है। हाल में केरल में व्यावसायिक मधुमक्खियों की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है। इसका कारण उनमें होने वाली बीमारियों और ततैए, चीटियों एवं मोम कीट के हमले को बताया जा रहा है। उसे रोकने के लिए मधुमक्खी पालकों को लगातार निगरानी रखनी पड़ती है।
किसानों ने शिकायत की है कि मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट किस्मों का उपयोग किए जाने से भी नुकसान हुआ है, क्योंकि ये नई किस्म की मधुमक्खियां जलवायु के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं पाती हैं। मधुमक्खियां और अन्य कीट अब भी जीवित बचे हुए हैं और लाखों सालों की अवधि में उनमें एक जटिल प्रतिरक्षा प्रणाली पैदा हुई है। इस बात को ध्यान में रखते हुए विचार करना महत्वपूर्ण हो गया है कि वे अचानक क्यों मर रही हैं। स्वाभाविक है कि मानव निर्मित कारकों के बिन्दु का मुददा उठेगा। जो मधुमक्खियां गायब हो जाती हैं उनका कभी पता नहीं लग पाता। मधुमक्खी पालकों ने कहा है कि कई छत्तों को वे अचानक ही छोड़ देती है।
मोबाइल टॉवरों की गैर तार्किक रूप से बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने की जरूरत तो है ही व्यावहारिक समाधान तलाशने की भी जरूरत है। केरल में करीब छह लाख मधुमक्खी के छत्ते हैं। एक से सवा लाख लोग मधुमक्खी पालन में शामिल हैं। अधिकतर लोगों के लिए यह अतिरिक्त आय अर्जित करने का जरिया है। एक छत्ते से चार से पांच किलोग्राम शहद का उत्पादन होता है। इसके बावजूद कंपनियां न तो मोबाइल टावर लगाने की कोई बाध्यकारी शर्त मानने को तैयार हैं और न ही मोबाइल हैंडसैट में विकिरण घटाने के पुख्ता इंतजाम करने को तैयार हैं। सरकार भी कंपनियों को मनमानी करने की छूट देनें के नजरिये से यह बहाना कर रही हैं कि लोग मोबाइल पर बात-चीत करने के बजाए संदेश (एसएमएस) के माध्यम से संवाद बनाने को ज्यादा महत्व दें।
pramodsvp997@rediffmail
pramod.bhargava15@gmail
पारूल भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
जानकारी अच्छी है....
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