यह आश्चर्य में डालने वाली बात है कि प्रलय के भय को अंगूठा दिखाते हुए सैलानी प्रलय के मुहाने पर नये साल का जश्न मनाने पहुंच गए। जी हां, यह...
यह आश्चर्य में डालने वाली बात है कि प्रलय के भय को अंगूठा दिखाते हुए सैलानी प्रलय के मुहाने पर नये साल का जश्न मनाने पहुंच गए। जी हां, यह सत्य है कि मैक्सिको में माया सभ्यता के जिन मंदिरों पर दर्ज तारीख को प्रलय का दिन बताया जा रहा है, उन मंदिरों को देखने के लिए दुनियाभर के पर्यटक उमड़ पडे़ माया सभ्यता के अनुसार दुनिया 21 दिसम्बर 2012 को समाप्त हो जाएगी। करीब 2000 साल पहले तक मय सभ्यता का विस्तार केंद्रीय अमेरिका और उसके आसपास के भू-खण्डों में फैला हुआ था। किंतु धीरे-धीरे ये मंदिर वर्षा वनों की चपेट में आकर अपना अस्तित्व खोते चले गए। लेकिन प्रलय की जिस मंदिर पर तारीख खुदी है, वह मंदिर आज भी मौजूद है। भ्रमवश इसी तारीख को कुछ भविष्यवक्ता प्रलय की तारीख बता रहे हैं। जबकि वास्तव में प्रलय का यह भय बाजार वाद का हिस्सा है, जिसे बाजारू मीडिया भुनाने में लगा है।
प्रलय का भय भी बाजार का हिस्सा बन गया। टीवी समाचार मीडिया इस भय को इस हद तक भुना रहा हैं कि बस प्रलय अभी आएगा और अपनी सुनामी लहरों में दुनिया निगल जाएगा। लेकिन याद रखें प्रलय चाहे जितना प्रबल और प्रलयंकारी आए, समूची दुनिया एकाएक खत्म होने वाली नहीं है। इस बात की सच्चाई उस प्रलय से उजागर होती हैं जिसके आने के बाद न केवल दुनिया कायम रही, बल्कि मनु ने राज भी किया। जब प्रलय के कारण दुनिया समुद्र्र में समा चुकी थी तो फिर मनु ने राज किस प्रजा पर किया ? जब प्रजा बची ही नहीं थी तो मनु की प्रशासनिक व्यवस्था किस राज पर लागू हुई ? ‘शतपथ ब्राह्मण' और जयशंकर प्रसाद की ‘कामायानी' में जलप्लावन के विशद विवरण के साथ प्राकृतिक आपदा से उजड़े जीवन को संवारने का भी पूरा दर्शन हैं। इसलिए प्रलय का जो भय दिखाया जा रहा है, वह बाजारवाद की देन है। समाचार चैनल जहां इस भय से टीआरपी बढ़ाने का धंधा कर रहे हैं, वहीं वैश्विक बाजार बहुराष्ट्रीय कंपनियों का माल बेचने के लिए नकारात्मक संदेश दे रहे हैं, कि धनसंचय मत करो और जो संचित धन है, उसे प्रलय कि तारीख आने से पहले मौज-मस्ती में उड़ा दो। यहां गौरतलब यह भी हैं कि प्रलय की अब तक जितनी भी भविष्यवाणियां हुई हैं, वे गलत साबित हुई हैं। हालांकि यह सही हैं कि जलप्रलय महाविनाश के कारण बने हैं।
हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्म ग्रंथों में प्रलय का उल्लेख हैं। धर्म गं्र्रथों में होने के कारण हम इन्हें मिथक कह कर या तो नकारते रहे हैं अथवा प्रलय का भय दिखाकर धर्मवीरू मानव समाज का भयादोहन करते रहे हैं। श्रीमद् भागवत कथा के चौबीसवें अध्याय के मत्स्यावतार में वर्णित महाप्रलय के प्रसंगानुसार, भगवान विष्णु कहते है, सत्यव्रत आज से सातवें दिन तीनों लोक समुद्र्र में डूब जाएंगे। तब तुम एक बड़ी नौका में समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों, वनस्पातियों और धान्य (अनाज) के बीजों को लेकर उसमें बैठ जाना। नाव को एक बड़ी मत्स्य (मछली) खींच कर हिमालय के किनारे लगाएगी। जहां तुम नए जीवन की शुरूआत करना। यही सत्यव्रत बाद में वैवस्त मनु कहलाए। हिमालय क्षेत्र में आने पर मनु को कमगोत्र की कन्या शतरूपा मिली। मनु ने इससे प्रेम किया और गर्भावस्था में छोड़कर सारस्वत प्रदेश चले गए। इस प्रदेश की रानी इड़ा थी। जो ठीक से अपने राज की शासन व्यवस्था नहीं चला पा रही थी। मनु ने इड़ा से प्रेम विवाह किया और सारवस्त प्रदेश की प्रजा को एक सुचारू शासन व्यवस्था दी। यहां सोचने वाली बात यह है कि जब प्रलय ने समस्त प्रजा, लील ही ली थी तो मनु और इड़ा ने राज किस प्रजा पर किया ?
प्रलय का भय अब पूरब की बजाए पश्चिम से ज्यादा उठ रहा है, वह भी अमेरिका जैसे आधुनिक देश में। 21 मई 2011 को जिस प्रलय के शाम 6 बजे आने की भविष्यवाणी की गई थी, वह अमेरिका के प्रवचनकर्ता की हरकत थी। इस भविष्यवाणी का पश्चिम में इतना जबरदस्त प्रभाव देखने में आया था कि लाखों की संख्या में लोग सुरक्षा की तलाश में लग गए। पूजा, प्रार्थनाएं कीं। पुण्य के फेर में अपनी जमा पूंजी भी गवां दी। लेकिन जब प्रलय की तारीख निकल गई तो जनता के भय से प्रवचनकर्ता भाग खड़े हुए। बाद में परलोक सुधारने के बहाने पूंजी नष्ट कर चुके लोग अपने घरों की दिवारों से माथा पीटते नजर आए।
प्रलय की 2 साल से प्रचारित की जा रही भविष्यवााण्ी की तीरीख 21 दिसंबर 2012 है। इस तारीख को प्रलय की संभावना मय सभ्यता के पंचांग (कैलेण्डर) के आधार पर जताई जा रही है। इस पंचांग में इस तारीख को प्रलय आने का कोई उल्लेख नहीं है। दरअसल यह पंचांग इसी तिथि तक है। मंदिर पर भी यही तिथि अंकित है। इस कारण पांखण्डी प्रवचनकर्ताओं और भविष्यवक्ताओ ने मान लिया कि 21 दिसंबर 2012 के बाद दुनिया रह ही नहीं जाएगी। इस कारण पंचांग में आगे की तिथियां, मास और वर्ष नदारद हैं। यह अर्थ मनगढ़ंत है। इन लोगों से पूछना चाहिए कि क्या कोई ऐसा कैलेण्डर अब तक बना है, जिसमें ब्रह्माण्ड की उम्र मापी गई हो ? आज हम तकनीक के आधुनिकतम युग में हैं। क्या इसके बावजूद हम आगामी एक हजार अथवा एक लाख वर्ष तक का कैलेण्डर बना पाए ? जब हम आज आगामी हजारों सालों का कैलेण्डर नही बना नहीं पा रहे हैं तो आज की तुलना में तकनीकी रूप से कमोवेश अक्षम रहे मय सभ्यता के लोग कैसे बना पाते ? वैसे मय दानव जाति के लोग वास्तुकला में इतने दक्ष थे कि इन्हें स्थापत्य का जादूगर कहा जाता था। प्राचीन अमेरिका और रामायण कालीन लंका इन्हीं मय दानवों ने बसाई थी। रावण की पटरानी मंदोदरी इन्हीं मय दानवों के वंश की थी।
मय पंचांग की भविष्यवाणी सामने आने से पहले फ्रांस के नॉस्त्रादम ने 16 वीं शताब्दी में भविष्यवाणी की थी कि जुलाई 1999 में पृथ्वी पर प्रलय आएगी और संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। ‘सेंचुरीज' नाम से 1955 में प्रकाशित इस पुस्तक में नॉस्त्रादम ने रेखचित्रों के माध्यम से इस भविष्यवाण्ी की घोषणा की थी, लेकिन 1999 निकल चुका हैं और प्रलय ने इस साल दुनिया के किसी भी देश में ऐसी ताबाही नहीं मचाई कि उस देश का वजूद खत्म हो गया हो ? वैसे भी आज तक इस किताब की एक भी भविष्यवाणी सटीक नही बैठी है।
प्रलय को वैज्ञानिक भी सच मान रहे हैं। वे इस खतरे को अंतरिक्ष से उतरता देख रहे हैं। अंतरिक्ष अनेक ऐसे क्षुद्रग्रहों और मलबों से भरा है, जो यदि पृथ्वी से टकरा जाएं तो महाविनाश अवश्यसंभावी है। इस नजरिये से वैज्ञानिक दावा है कि जुलाई, अगस्त 1926 में स्विफ्ट टटल नामक धूमकेतु पृथ्वी से टकाराकर महाप्रलय का तांडव रचेगा। दुनिया के विनाश की आशंकाएं नाभिकीये उष्मा से भी की जा रही हैं। यदि यह परमाणु ऊर्जा आतंकवादियों के हाथ लग जाए अथवा भूलवश विस्फोट का बटन दब जाए तो चंद पलों में विनाश हो जाएगा। इस ऊर्जा की विभीषिका का सामना जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी तो पहले ही कर चुके हैं। प्राकृतिक आपदा के चलते फुकुशिमा भी परमाणु विकिरण के खतरे से दो-चार हो चुका है। रूस के चेरनोबिल में भी परमाणु ऊर्जा विनाश का सबब बन चुकी है।
सब कुल मिलाकर प्रलय के भय की तारीखें बाजारवाद को बढ़ावा देने के नियोजित कारनामे हैं। इनसे भयभीत होने की बजाय इन्हें प्रलय की बीत चुकी भष्यिवाणियों से खंडित व खारिज करने की जरूरत है। प्रलय की चिंता और उससे भयभीत होने के बनिस्वत हमें जरूरत है हम प्रकृति को संतुलित बनाए रखने की कोशिशें तेज करें। प्राकृतिक संपदा से भोग विलास का सामान जुटाने के लिए दोहन करने की बजाए उसे इंसान के आहार विहार तक सीमित रखें। उत्त्ार आधुनिक समाज में जिज्ञासाएं और रोमांच उत्त्ारोतर घट रहे हैं। पश्चिमी समाज में धन की बेशुमारी मानवाजन्य आकांक्षाओं की आपूर्ति जल्द कर रहा है। इसलिए वहां हिंसा और विध्वंस की कल्पनाएं ही इंसान को थोड़ा बहुत रोमांचित कर पा रही हैं। लेकिन पूरब में ऐसा नहीं है। धनाभाव में भी जीवन के प्रति हमारा भरोसा मजबूत है। जिजीविषा की यह जीवटता हमारे पूर्वजों में और भी ज्यादा सघन थी। इसी कारण वह विदेशी आक्रांताओं से सामना करते हुए न केवल अपने सास्ंकृतिक मूल्यों को अक्षुण्ण रख पाए, बल्कि जीवन के प्रति सकारात्मकता भी रहे। यह अच्छी खबर है कि प्रलय के मुहाने पर खड़े होकर लोग नये साल का जश्न मना रहे हैं। हालांकि प्रलय का आना प्राकृतिक सत्य हो, धार्मिक सत्य हो अथवा वैज्ञानिक सत्य हो, हकीकत यह भी है कि प्रलय के बाद भी जीवन बचा रहा हैं और बचा रहेगा।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म․प्र․
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।
....आबादी ले डूबेगी दुनिया को
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