अमर गज़ल गायक जगजीत सिंह {8/2/1941---10/10/2011} गजल गायक श्री जगजीत सिंह उर्फ जगमोहन का जन्म 8 फरवरी 1941 में श्रीगंगा नगर राजस्थान में ह...
अमर गज़ल गायक जगजीत सिंह
{8/2/1941---10/10/2011}
गजल गायक श्री जगजीत सिंह उर्फ जगमोहन का जन्म 8 फरवरी 1941 में श्रीगंगा नगर राजस्थान में हुआ था । पिता अमर सिंह पंजाब में दल्ला गांव के मूल निवासी थे और बीकानेर राजस्थान में पी.डब्ल्यू. डी. में कार्यरत थे उनकी मां बचन कौर घरेलू महिला थी । उनका बचपन तगंहाली में बीकानेर में गुजरा और उनके द्वारा संगीत की प्रारंभिक शिक्षा पंडित छन्नूलाल शर्मा से ली गई। 6 साल बाद उस्ताद जमाल खान से शास्त्रीय संगीत की तालीम प्राप्त की । कालेज के दिनों से ही भीड के सामने गाने की शुरुआत हुई और डी.ए.वी. जालंधर कालेज से स्नातक डिग्री प्राप्त की उन्हें आकाशवाणी में ‘बी‘ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी गई थी ।
जगजीत सिंह के गायन को महत्व तब मिला जब उनके द्वारा 1962 में महामहिम राष्ट्पति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्मान में गीत की रचना कर गायिकी की । सर्व प्रथम 1961 में मुंबई पहुंच कर संघर्ष प्रारंभ किया और छोटी-मोटी फिल्मों, घरेलू आयोजनों, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन, जिंगल्स आदि में गाकर अपनी जीविका की शुरुआत की । अपनी जीवनी (बियॉंड टाईम) में संघर्ष के दिनों का जिक्र है - बिना टिकिट यात्रा करना, एक कमरे में रहना, दिन में कभी खा लिया कभी खाली पेट सो गये, आदि आम बातों का उल्लेख है जो हर सफल व्यक्ति के जीवन में संघर्ष के दिनों में घटता है । उनका पहला एलबम 1975 में एचएमवी द्वारा ‘द अनफॉरगेटबल्स’ निकला गया तब उनके स्थाई निवास की व्यवस्था एक कमरे की जगह फ्लैट में हुई ।
फ़रिश्तों अब भी सोने दो की तर्ज पर बिदा होने वाले जगजीत सिंह ने फिल्मों में भी गीत गाये और फिल्म साथ-साथ, मिर्जा गालिब, और अर्थ में गाने के साथ संगीत भी दिया । गजल गायकी में परम्परागत छबि से हटकर काम किया और आशिक, इश्क, सुरा-सुन्दरी, मयखाना की सीमाओं से गजल की सीमा को तोडकर जिन्दगी की विभिन्न विषयों और पहलुओं पर गजल गायकी की । गजल जो दरबार, हवेलीयों, इज्जतदारो, शानशौकत वाले लोगों की जागीर थी उसे आम आदमियों की जिन्दगी से जोडा । यही कारण है कि एक आम आदमी भी फुरसत के क्षणों में चाय पीते समय पर्दा उठा जरा साकियां का लुत्फ उठा सकता है । उनकी गायकी के डिस्कों में जाने वाले नवयुवक भी दिवाने थे और नवयुवकों में उनके कई गीत, गजल, प्रसिद्ध थे ।
1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देश का पहला संपूर्ण डिजिटल सी.डी. एलबम था। 2003 में पदम् विभूषण से विभूषित होने वाले जगजीत सिंह ने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की रचना नई दिशा व संवेदना के लिए संगीत दिया और गायकी भी की।
उनके प्रसिद्ध एलबम ए माइलेस्टोन 1980, मैं और मेरी तनहाई 1981, द लेटैस्ट 1982, बियॉन्ड टाईम 1987, मिर्जा गालिब 1988,पेशन/ब्लेक मेजिक 1988, गजल फ्रोमस फिल्म्स 1989, मेमोरियबल चित्रा एण्ड जगजीत 1990, समवेयर 1990, होप 1990, सजदा 1990, कहकषॉ 1991-92, इनसर्च 1992, फेस टू फेस 1993, यूअर च्वाइस 1993, चिराग 1993, डिजायर्स 1994, इनसाइट 1994, मिराज 1995, यूनिक 1996, कमएलाइव 1998, लव इज ब्लाइण्ड 1998, सिलसिले 1998, कमएलाइव 1998, मरासिम 1998, आईना आदि हैं ।
वे संसद के केन्द्रीय कक्ष में प्रस्तुति दिये जाने वाले दुनिया के उन चन्द गजल गायकों में से है जिन्होनें होंठों से छू लेने दो को गाकर अपने गीतों को अमृतत्व प्रदान किया । तुम्हें देखा तो यह ख्याल आया, तेरे खुशबू भरे खत गंगा में बहा आया हूं, बहते पानी में आग लगा आया हूं, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो क्या गम है जो छुपा रही हो,जैसे अमर गीत के गायक की गायकी में जिन्दगी के सभी रंग शामिल थे।
जहां उनकी गजल कागज की कश्ती बारिश का पानी बचपन की याद दिलाती, वहीं तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जो छुपा रही हो, उससे मन की बातें को प्रकट करने वाले और चिट्ठी न कोई संदेश, तुम कहां गये, दर्द भरी गजलों से अपने अतीत को याद कराने वाले जगजीत सिंह ने हे राम और मॉ गाने वाले उनके सी.डी. और एलबम ने बिक्री के कई रिकार्ड तोडे हैं। उनके द्वारा सूफियाना अंदाज में गाये गये धार्मिक भजन ईश्वरीय अनुभूति प्रदान करते हैं और भक्त तथा भगवान से सीधा संबंध जोड़ते हैं । कबीर के भजनों को जगजीत सिंह ने अपनी दिलकश, गहरी, पुरजोश, आवाज में गाकर दोहा, शब्द साखी में चार चांद लगाये हैं ।
1990 में एक मात्र पुत्र विवेक की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद उनका गायकी में अध्यात्मिकता के दर्शन देखने को मिलते हैं । जो गुरबाणी मन जीते जगजीत है राम, मॉं आदि सी.डी. में गाये भजन सुनने और समझने में आता है ।
जगजीत सिंह न केवल धर्म, दर्शन और ज्ञान संबंधी गजलें गाई है बल्कि सामाजिक चेतना, उत्थान वाली गजलें भी गाई हैं । जैसे राशन की कतारों में नजर आता हूं, मुझे जीने दो न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम इसके साथ ही साथ देश की अखण्डता और एकता को बढ़ाने वाली गजल अपने दोस्तों गुलजार जावेद अख्तर, निदा फाजली के साथ मिलकर गाई है ।
जगजीत सिंह स्वयं रोमांटिक व्यक्ति थे उनके द्वारा कई रोमांटिक गजलें चौदहवीं रात का चांद बनकर, कभी किसी से मोहब्बत तो की होगी, झुकी-झुकी सी निगाहें, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, जैसी मशहूर गजलें गाई हैं।
1969 मे तंगहाली में जिंगल की रिकॉर्डिग के समय अपनी भावी जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मुलाकात के बाद शादी की थी । उसके बाद दोनों पति पत्नी ने मिलकर कई अमर गजलें गाई हैं । यह सिलसिला 1990 में पुत्र विवेक की मृत्यु के बाद टूटा जब चित्रा सिंह ने लड़के की मृत्यु के बाद गाने से पूरी तरह से मुंह मोड लिया उसके बाद जगजीत सिंह अकेले ने अपने दिल में छिपे गम, दर्द, उदासी, दुख को उजागर कर कई मशहूर गजलें गायी हैं तथा जीवन के अंतिम चरण तक संगीत के कार्यक्रम देते रहे ।
बहुत कम लोग जानते हैं कि चित्रा सिंह पूर्व से देवी प्रसाद दत्ता की विवाहिता थी । उनका एक रिकार्डिंग स्टूडियो था, जहां उनका परिचय जगजीत सिंह से हुआ और प्यार परवान चढ़ा । चित्रा सिंह ने बाद में तलाक लेकर जगजीत सिंह से शादी की । पूर्व में उनकी एक बेटी मोनिका थी जो अब इस दुनिया में नहीं है ।
फिल्मी दुनिया में व्यवसायिक बातों से सौदा न करते हुये उन्होंने गजल की रूह को अपनाकर रखा और उसे वास्तविक रूप प्रदान करते हुये मेहँदी हसन, गुलाम अली, बेगम अख्तर, जैसे मशहूर गजल गायकों की मौजूदगी में दुनिया को अपना एहसास कराया है ।
आज जगजीत सिंह सशरीर नहीं है लेकिन कोई कह नहीं सकता कि वे हमारे बीच मौजूद नहीं है । आज भी जब भी उनकी गजल, रेडियो, टी.व्ही., सी.डी. में बजती हैं । तब लगता है कि वे यहीं-कहीं आस-पास बैठ कर गा रहे हैं । ऐसे लोगों की आवाज संजीवनी होती है जो कभी विलुप्त नहीं हो सकती है। उनकी आवाज जहां हमारे दुख में दोस्त की तरह साथ रहकर दुख बाटती हैं वहीं गम के समय हमारे परिवार के सदस्य की तरह गम हल्का करती है । दर्द को मां के आंचल के समान सहलाकर रफू करती है। सुख के समय होली के रंग दीवाली की उमंग की तरह उल्लास, आनन्द, मस्ती का अहसास कराती है।
जगजीत सिंह की गायकी में गुलाब की सुगन्ध, शहद की मिठास, चन्दन की शीतलता, सूर्योदय का सौंदर्य, मंदिर के घंटे की पवित्रता, विरह के आंसू, वेदना के स्वर की अनुभूति होती है । वही वह जवानी के सोहलवें साल, प्यार की बसन्ती बहार, रोमान्स के सावनी झूले, का भी भ्रम कराती है ।
Umesh kumar Gupta District court Raisen (m.p.)
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