-- युवा गीत कवि योगेन्द्र वर्मा ‘ व्योम ' से अवनीश सिंह चौहान की बातचीत प्रश्न- आप अपने प्रारम्भिक जीवन के बारे में बतायें। उत्त...
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युवा गीत कवि योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम' से
अवनीश सिंह चौहान की बातचीत
प्रश्न- आप अपने प्रारम्भिक जीवन के बारे में बतायें।
उत्तर- मेरा जन्म मुरादाबाद जनपद की तहसील एवं ऐतिहासिक नगरी संभल (ताज़ा घोषित नवीन जनपद भीमनगर) के छोटे से कस्बे सरायतरीन में हुआ तथा प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं हुई। स्नातक की शिक्षा एस. एम. कॉलेज चंदौसी (मुरादाबाद) में हुई। सरायतरीन (सम्भल) ऐसा स्थान है जहाँ उर्दू में तो साहित्यिक वातावरण पहले से ही रहा है लेकिन हिन्दी के क्षेत्र में लगभग सन्नाटा ही हैं, हालांकि राष्ट्रीय स्तर के अद्भुत गीतकार रामावतार त्यागी सम्भल से ही थे और वर्तमान में वरिष्ठ गीत कवि ओमप्रकाश ‘प्रार्थी' अपने श्रेष्ठ रचनाकर्म से साहित्यिक सन्नाटे को तोड़ने की कोशिश में रत हैं। ऐसे माहौल में मेरे अंदर काव्य के अंकुर फूटना एक सुखद आश्चर्य ही माना जा सकता है।
प्रश्न- आप में काव्य संस्कार कहाँ से आया?
उत्तर- जहाँ तक काव्य के संस्कार की बात है, तो मेरे सबसे पहले काव्य गुरु मेरे पिता स्व. श्री देवराज वर्मा थे जो बहुत बड़े कवि या साहित्यकार तो नहीं थे लेकिन उनमें साहित्यिक समझ गहरे तक थी। मेरी प्रारम्भिक तुकबंदी में वह ही संशोधन कर उसे दुरूस्त करते थे। चूँकि मेरे पिता अध्यापन वृति से जुड़े थे, फलतः अध्ययन बहुत अधिक था उनका। उसके बाद मैं राजकीय सेवा में नियुक्ति उपरान्त जब मुरादाबाद आया तो यहाँ के साहित्यिक परिवेश ने मेरे अंदर के काव्यांकुर को हवा, पानी, खाद दी और इस नन्हे से पौधे पर छोटी-छोटी पत्तियाँ भी निकल आईं। मेरे वरिष्ठों ने मुझे स्नेहिल छाँव दी और सहयात्रियों ने हौसला। पितृवत श्रद्धेय दादा श्री माहेश्वर तिवारी जी सहित सभी बड़ों का मार्गदर्शन मुझे हमेशा से मिलता रहता है, मैं सौभाग्यशाली हूँ और मेरी रचनाएं भी।
प्रश्न- आपने जहाँ, ग़ज़लें एवं दोहे लिखे वहीं कुंडलियाँ एवं नवगीत भी लिखे। आपकी सर्वाधिक प्रिय विधा कौन सी है और क्यों?
उत्तर- यह सही है कि माँ वाणी की अनुकम्पा से मैंने दोहे, ग़ज़लें, कुंडलियां, गीत, मुक्तक, मुक्तछंद आदि विधाओं में रचनाकर्म की कोशिश की है, विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य करना मुझे प्रिय है किन्तु माँ वाणी की विशेष कृपा के फलस्वरूप जब कोई गीत काग़ज़ पर उतरता है तो आत्मिक सुख की अनुभूति होती है।
प्रश्न- ‘धूल चढ़ी सरकारी फाइल' एवं ‘अपठनीय हस्ताक्षर' जैसे अनेक नए बिम्बों को सँजोये आधुनिक जीवन की पड़ताल करतीं आपकी रागवेशीत रचनाएँ पाठकों का मन मोह लेती हैं। यह सब कैसे कर लेते हैं आप?
उत्तर- भाई अवनीश जी, सच कहूँ तो यह सब माँ वाणी की कृपा ही है कि ऐसे अनछुए बिंब रचनाओं में आकर उन्हें और अधिक अर्थवत्ता प्रदान कर देते हैं। रचनाकर्म के समय प्रतीकों को खोजने के लिए मैंने कभी श्रम नहीं किया और ज़बरदस्ती का सृजन भी नहीं। अच्छे रचनाकर्म के लिए अध्ययन की निरंतरता परम आवश्यक है। ‘धूल चढ़ी सरकारी फाइल', ‘अपठनीय हस्ताक्षर', ‘उलझी वर्ग पहेली' जैसे बिंब स्वभाविक रूप से रचनाओं मे आए हैं, कोई धींगामस्ती नहीं हुई है, माँ वाणी की कृपा और बड़ों का आशीर्वाद ही कारण है वरना कविता के क्षेत्र में मुझ नर्सरी के छात्रा में सामर्थ्य कहाँ?
प्रश्न- आपकी पृष्ठ भूमि मुरादाबाद की है, यहाँ गीत-नवगीत की स्थिति क्या है और इसमें कितनी संभावनाएं हैं?
उत्तर- यह तो सर्वविदित है ही कि हिन्दी गीत-नवगीत के राष्ट्रीय हस्ताक्षर श्री माहेश्वर तिवारी मुरादाबाद की पहचान हैं, और वरिष्ठ गीतकार श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग' व श्री शचीन्द्र भटनागर का समग्र रचनाकर्म हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण व अमूल्य धरोहर है। यह भूमि मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी के नाम से तो जानी जाती है ही किंतु स्व. दुर्गादत्त त्रिपाठी, मदनमोहन व्यास, कैलाशचन्द्र अग्रवाल, सुरेन्द्रमोहन मिश्र, प्रो. महेन्द्र प्रताप के अद्वितीय रचनाकर्म के कारण मुरादाबाद का हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है। यहाँ गीत-नवगीत की भूमि काफी उर्वरा है, परिणामतः जहाँ एक ओर वरिष्ठ पीढ़ी के रचनाकार राजेन्द्र मोहन शर्मा ‘ �श्रृंग', रामलाल ‘अंजाना, डा. महेश दिवाकर, डा. अजय ‘अनुपम', वीरेन्द्र राजपूत, डा. ओम आचार्य, डा. प्रेमवती उपाध्याय, शिशुपाल ‘मधुकर' आदि की उम्र के इस पड़ाव पर भी रचनात्मक सक्रियता वर्तमान में अनवरत जारी है, वहीं संभावनाशील पीढ़ी के रूप में अग्रज आनंद ‘गौरव', कृष्णकुमार ‘नाज़', वीरेन्द्र सिंह ‘ब्रजवासी', ‘अम्बरीश गर्ग, मूलचंद ‘राज', मनोज ‘मनु', विवेक ‘निर्मल' आदि का रचनाकर्म गीत-नवगीत को निरंतर समृद्ध कर रहा है।
प्रश्न- वरिष्ठ नवगीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी ने आपका नाम सहज गीतकारों में शामिल किया था। सहजगीत किसे मानते हैं आप? सहजगीत-नवगीत में क्या अंतर है?
उत्तर- मेरे विचार से सहजगीत का तात्पर्थ गीत की सम्पे्रषणीयता में सहजता से है, जिस गीत की भाषा आम बोलचाल की सहजभाषा हो, सहजगीत की श्रेणी में रखा जा सकता है। नवगीत में कथ्य की नवता यदि दुरूह शब्दावली के साथ प्रस्तुत होती है तो आमश्रोता या पाठक तक उसकी सीधी पहुंच नहीं बन पाती। जबकि वही कथ्य की नवता यदि सहजभाषा की चाशनी में पगाकर गीत में प्रस्तुत की जाये तो वह सफलतापूर्वक आमजन से न केवल जुड़ती है वरन आम पाठक व श्रोता के मन मस्तिष्क पर छा जाती हैं, यही सहजगीत की उपलब्धि है। जहां तक दादा तिवारी जी द्वारा मेरा नाम सहजगीतकारों में शामिल किए जाने की बात है, तो यह उनका स्नेह है, आशीष है, बड़प्पन है।
प्रश्न- क्या युवा गीतकार एवं समीक्षक अपने समय का प्रतिनिधित्व कर पा रहे हैं? यदि हाँ, तो वे कौन-कौन से युवा गीतकार-समीक्षक हैं जिनसे अपेक्षा की जा सकती है?
उत्तर- बहुत ही महत्वपूर्ण बिन्दु उठाया है आपने इस प्रश्न के माध्यम से। गीत नवगीत के क्षेत्र में हमारी वरिष्ठ और स्थापित पीढ़ी ने जो कीर्ति स्तंभ स्थापित किए वे आज भी उतनी ही मजबूती के साथ खड़े हुए हैं। जितने कि तद्समय। चाहे निराला जी की ‘बाँधे न नाव इस ठांव बंधु...' हो या बच्चन जी की ‘इस पार प्रिय तुम हो मधु है.....' हो, इसके साथ-साथ वीरेन्द्र मिश्र, नीरज जी, भारत भूषण, दिनेश सिंह, जानकी वल्लभ शास्त्री, रमानाथ अवस्थी, देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र' शिवबहादुर सिंह भदौरिया, माहेश्वर तिवारी, मयंक श्रीवास्तव, बुद्धिनाथ मिश्र, डा. कुँअर बेचैन आदि की लम्बी सूची है जिन्होंने गीतों का सिर्फ सृजन ही नहीं किया वरन गीतों की साधना की है, फलतः इन सभी का रचनाकर्म हिन्दी साहित्य की एक ऐतिहासिक धरोहर तो बना ही साथ ही एक प्रकाश स्तम्भ की तरह आज भी अपना आलोक फैला रहा है। जहाँ तक नई पीढ़ी की रचनाधर्मिता का प्रश्न है, अधिकांश युवा रचनाकार गीत-नवगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, कुछ अपने उत्कृष्ट रचनाकार्य के माध्यम से तो कुछ किसी न किसी रूप में गीत को बढ़ावा देकर। युवा गीत-नवगीत कवियों की रचनाओं में वर्तमान काल खंड को स्पष्टतः प्रतिबिम्बित होते हुए देखा जा सकता है। डा. यशोधरा राठौर एक गीत में कहती हैं-
एक गहरा मौन,
होठों पर धरे हम
जी रहे चुपचाप, अनुभव
खुरदुरे हम
और सशक्त युवा नवगीत कवि मनोज जैन ‘मधुर' की पंक्तियाँ है-
खोखले आदर्श के
हमने मुकुट पहने
बेच करके सभ्यता के
क़ीमती गहने
साथ ही जय चक्रवर्ती, अवनीश सिंह चौहान, यश मालवीय, डा. जयशंकर शुक्ल, आनंद तिवारी, डा. विनय मिश्र, देवेन्द्र ‘सफल', डा. विनय भदौरिया, ब्रजनाथ श्रीवास्तव, जयकृष्णराय ‘तुषार' आदि नाम उस युवा पीढ़ी के हैं जो अपनी विलक्षण रचनाधर्मिता से अपने समय का प्रतिनिधित्व करते हुए गीत को और अधिक समृद्ध करने के अभियान में मज़बूती के साथ जुटे हुए है। जहाँ तक समीक्षा के क्षेत्र में नई पीढ़ी की सक्रियता की बात है, भाई समीर श्रीवास्तव, प्रेमकुमारी कटियार और जितेन्द्र ‘जौहर' की समीक्षाएं उजली संभावनाओं को जन्म देती हैं, और भी अनेक युवा समीक्षक हैं जो समीक्षा कर्म को पूरी ईमानदारी के साथ कर रहे हैं। हाँ, गीत-नवगीत और समीक्षा दोनों ही क्षेत्रों में नई पीढ़ी में महिला रचनाकारों की संख्या अत्यधिक कम होना ज़रूर चिंता का विषय है। महिला रचनाकारों को इस दिशा में सार्थक सक्रियता बढ़ानी होगी।
प्रश्न- देश के प्रमुख नवगीत समर्पित संस्थान एवं पत्रिकाएं कौन-कौन सी हैं, और उनकी क्या विचारधाराएं हैं। अन्य पत्रिकाओं में गीत-नवगीत की वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर- वर्तमान में गीत-नवगीत समर्पित पत्रिकाओं में प्रमुख रूप से नये-पुराने, संकल्प रथ, नये पाठक, उत्तरायण, समयांतर, शिवम, सार्थक के साथ-साथ साप्ताहिक प्रेसमेन ने गीत-नवगीत के क्षेत्र में कार्य किए है। इन पत्रिकाओं ने जहाँ हिंदी के मूर्धन्य गीत कवियों की रचनाधर्मिता पर केन्द्रित दस्तावेज़ी अंक दिए और गीत-नवगीत के संदर्भ में महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर आलेखों के माध्यम से सार्थक और व्यापक विमर्श आयोजित किया वहीं प्रेसमेन ने छांदस कविता के क्षेत्र में रचनाकारों को आपस में जोड़ने का उल्लेखनीय कार्य तो किया ही साथ ही साथ गीत-नवगीत की एक से बढ़कर एक रचनाएं और आलेख, समीक्षायें व परिचर्चायें आयोजित कर अपनी महत्ता साबित की।
जिन पत्रिकाओं का मैंने उल्लेख किया है वे लघु पत्रिकाओं की श्रेणी में आती हैं लेकिन काम उन्होंने बड़ा किया है। जब कि बड़ी पत्रिकायें अपना कर्तव्य भूल बैठी हैं, उन्होंने गीत-नवगीत के लिए कभी कोई बड़ा काम नहीं किया। भारतीय ज्ञानपीठ जैसे बड़े साहित्यिक संस्थान से प्रकाशित ‘नया ज्ञानोदय', साहित्य अकादमी दिल्ली की ‘समकालीन भारतीय साहित्य', उ. प्र. हिन्दी साहित्य संस्थान की ‘साहित्य भारती', हिन्दी अकादमी दिल्ली की ‘इंद्रप्रस्थ भारती', पाखी, साहित्य अमृत, हंस, वर्तमान साहित्य, तद्भव आदि अनेक पत्रिकायें हैं जो तथाकथित रूप से हिंदी की बड़ी साहित्यिक पत्रिकायें होने का दंभ पाले हुए हैं लेकिन एक भी पत्रिका ऐसी नहीं हैं जिसने गीत को प्रोत्साहित करने की दिशा में लेशमात्रा भी काम किया हो। निश्चित रूप से इस सबके पीछे पत्रिकाओं और संस्थानों के शीर्ष पदों पर काबिज लोगों की कुंठित सोच और सुनियोजित षडयन्त्र है गीत-नवगीत के खिलाफ।
दरअसल, इस समय हिन्दी साहित्य की बड़ी और प्रतिष्ठित संस्थाओें में शीर्ष पदों पर ऐसे लोग विराजमान हैं जो तथाकथित रूप से साहित्यकार माने जाते है लेकिन वास्तव में वे साहित्य के मठाधीश या यों कहें कि जुगाड़ू अधिक हैं और सुनियोजित रूप से छांदस कविता के धुर विरोधी हैं, गीत कविता वाले लोग इनकी दृष्टि में काफ़िर हैं। वरना क्या कारण है कि इन संस्थानों के शीर्ष पदों पर आज तक कोई गीत कवि नहीं पदासीन हो सका, फलतः अकादमिक पत्रिकाओं में गीत को वह सम्मानजनक स्थान नहीं मिल सका जिसकी बहुत अधिक आवश्यकता है आज हिन्दी साहित्यिक समाज को।
प्रश्न- आपकी आगामी योजनाएं क्या हैं?
उत्तर- गीत-नवगीत के क्षेत्र में नई पीढ़ी की रचनाधर्मिता के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान में गीत-नवगीत की स्थिति पर केन्द्रित एक समवेत संग्रह के साथ-साथ मुरादाबाद के गीत कवियों के सृजन पर केन्द्रित समवेत संग्रह के प्रकाशन की योजना पर इन दिनों कार्य चल रहा है।
प्रश्न- ‘गीत पहल' पत्रिका इंटरनेट पर लाने के पीछे आपका क्या उद्देश्य रहा और इसकी भावी योजना क्या है?
उत्तर- हालांकि इंटरनेट पर अनेक साहित्यिक वेवसाइट्स और ब्लॉग्स हैं, जो अपनी-अपनी कार्य क्षमताओं के अनुसार अपनी-अपनी तरह से हिन्दी साहित्य के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, किन्तु केवल और केवल गीत-नवगीत को केन्द्र में रखकर काम करने वाली वेबासाईट का अभाव महसूस करते हुए मुख्य रूप से अवनीश सिंह चौहान जो स्वयं हिन्दी गीत-नवगीत के सशक्त और चर्चित हस्ताक्षर हैं, ने ‘गीत-पहल पत्रिका के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करना आरंभ किया है, बड़े भाई सम्पन्न गीत कवि आनंद ‘गौरव' और गीत के चर्चित कवि रमाकांत जी के साथ मैं भी इस पुनीत सारस्वत कार्य में संलग्न हूं। ‘गीत पहल' का मुख्य उद्देश्य इंटरनेट पर गीत-नवगीत के संदर्भ में उत्कृष्ट रचना धर्मिता को विश्व पटल पर प्रस्तुत करने के साथ-साथ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विमर्श आयोजित करना भी है। वर्तमान में इंटरनेट की उत्तरोत्तर बढ़ती उपयोगिता और महत्व को दृष्टिगत रखते हुए यह माना जाना कि भविष्य में साहित्य इंटरनेट पर ही जीवित रहेगा, अतिशयोक्ति नहीं होगा। ऐसे में उत्कृष्ट गीति रचनाकर्म को प्रभावी तरीके से ‘गीत-पहल' के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि गीत विरोधी गिरोह की आंखें खुल सकें और उन्हें कुछ सद्बुद्धि आ सके।
प्रश्न- मुरादाबाद साहित्यिक पटल पर काफी तेज़ी से उभर रहा है, यहां कौन-कौन सी संस्थाएं सेवा में लगी हैं?
उत्तर- यों तो मुरादाबाद में हिन्दी साहित्य संगम, विप्र कला साहित्य मंच, संकेत, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, अंतरा, हिन्दी साहित्य सदन, अक्षरा, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, सरस्वती परिवार, काव्य सुध साहित्य मंच, परमार्थ, सद्भावना साहित्यिक सांस्कृतिक मंच आदि दर्जनों साहित्यिक संस्थायें अपनी-अपनी तरह से साहित्यिक गतिविधियाँ आयोजित कर सक्रिय हैं लेकिन कुछ संस्थाओं ने उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण कार्य कर अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखा है जबकि कुछ संस्थायें आरंभिक सक्रियता के पश्चात समय की अंधेरी गुफा में कहीं गुम हो गईं। निरंतर साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से सक्रिय रहने वाली संस्थाओं और अपनी कतिपय उपलब्धियों को ढोल नगाड़े के साथ प्रचारित करने वाली संस्थाओं के नाम उल्लिखित करना आवश्यक नहीं है, वास्तविकता सभी को पता है।
प्रश्न- पाठकों के लिए आपका संदेश?
उत्तर- सच्चा और अच्छा साहित्य पढ़ने की आदत डालें तथा परिवार में पठनीयता के संस्कार पैदा करें, आज इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है चकाचौंध भरे समय में।
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बहुत अच्छा साक्षात्कार ,बधाई ।
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