आ जकल लोग बात-बात में ‘कोई जरूरत पड़े तो बताना’ कहते रहते हैं। कोई अगर भविष्य की किसी सम्भावित समस्या या जरूरत की चर्चा करे तब तो लोग यह कहना...
आजकल लोग बात-बात में ‘कोई जरूरत पड़े तो बताना’ कहते रहते हैं। कोई अगर भविष्य की किसी सम्भावित समस्या या जरूरत की चर्चा करे तब तो लोग यह कहना बिल्कुल भूलते ही नहीं। ऐसा कहते तो हैं पर उनका मतलब कुछ और होता है। नादान लोग नहीं समझते और नाहक में दुखी होते हैं। कई खास लोग ऐसा तभी कहते हैं, जब उन्हें पूरा यकीन होता है कि इनको कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
कुछ लोग ईंट का जबाब ‘बम’ से देना अच्छी तरह से जानते हैं। ईंट का जवाब पत्थर से देने का जमाना ही नहीं रहा। ऐसे में लोग पत्थर से जबाब क्यों दें ? अतः डिरेक्ट बम का इस्तेमाल करते हैं। कोई अपनी जान-पहचान गिना रहा हो यानी अपनी पहुँच का बयान कर रहा हो तो कई लोग प्रधानमंत्री तक को अपना रिश्तेदार बता देते हैं। और कोई जरूरत पड़े तो बताना छिली मोंछ को ही ऐंठ कर कह देते हैं। दीगर है बाद में बगले झाकने के अलावा कुछ भी न कर सकें। लोगों को उसी समय अंदाजा लगा लेना चाहिए कि जो है नहीं अथवा जो था पर अब नहीं है। उसे ऐठने वाला कितना बनावटी हो सकता है।
कई लोग पहली ही मुलाकात में यह कह देते हैं। जबकि न वे आपके बारे में जान रहे होते हैं और न आप उनके बारे में। न आप उनका घर जान रहे होते हैं न ही वे आपका। लोग तुरंत कांटैक्ट नम्बर पूछ कर नोट कर लेते हैं। कई लोग तो पता भी। भले ही वे दूसरे का पता बता दिए हों। कांटैक्ट नम्बर के केस में गलत बताना सम्भव नहीं रह गया है क्योंकि लोग तुरंत मिसकाल करके देख लेते हैं।
कईयों की डायरी ऐसे नम्बरों व पतों से भरी होती है। कभी खोजना पड़े तो घंटो लग जाता है। फिर कॉल करने पर वे पहचान नहीं पाते। यह दूसरी मुश्किल होती है। आखिर कितनों को पहचानें। दिमांग की भी एक सीमा होती है। कई तो यह बताते-बताते पसीना-पसीना हो जाते हैं कि आप अमुक जगह पर मिले थे और उस दिन अमुक पोशाक पहन रखा था। आप हमें पहचान नहीं पा रहे हैं। याद कीजिए आपने कोई जरूरत पड़े तो बताना कहा था।
संतो ने कहा है कि आशा दुख का कारण बनती है। आदमी पहले से ही दुखी रहता है और जब आशा टूटती है यानी जब लोग जरूरत पड़ने पर काम नहीं आते तो और दुखी होता है। कोई भी काम बिना समझे किया जाय तो परिणाम में दुःख मिलना लाजिमी भी है।
लोग जब यह कहते हैं कि ‘कोई जरूरत पड़े तो बताना’ तो यह नहीं सोचना चाहिए कि मुश्किल में बंदा हमारे काम आएगा। दरअसल लोगों के कहने का मतलब होता है कि ‘कोई जरूरत पड़े तो बिताना’। यानी हम से मत कहना। हमारे भरोसे मत रहना। और यदि रहना तो रोना। आज के समय का सच तो यही है कि-
भैया ते नर मर चुके, जो मिलते जब काम।
काम में खोजे न मिलैं ऐसे मनुज तमाम।।
बचन देत जो फिरत हैं, और नहीं; भय लाज।
‘एसकेपी’ दर-दर मिलैं ये नर भरे समाज।।
उपरोक्त पंक्तियाँ हमने अभी हाल में रामबिहारी जी को सुनाया था। हुआ यूँ कि एक दिन वे कहते हुए जा रहे थे कि मेरा गला काट दिया। मैं असमंजस में पड़ गया कि बोल भी रहे हैं और कहते हैं कि गला काट दिया। फिर बिचार आया कि हो सकता है वार किया हो। पूरा न कटा हो। सो दौड़कर मैंने देखा तो न ही कोई निशान दिखा और न ही खून। आजकल किसी का गला काटना कोई कठिन काम थोड़े है। मूली-गाजर काटना फिर भी कठिन है।
मैंने उन्हें पास बुलाया। माजरा समझ में आया। जिसने-जिसने उनका गला काटा था। उन्होंने उनकी पूरी लिस्ट सुना दी। बोले बचन दिए थे और जब काम आया तो कन्नी काट गए। मैंने उन्हें समझाया आजकल लोग बचन के अलावा और दे ही क्या सकते हैं ? इसके अलावा देने को इंसान के पास कुछ बचा ही नहीं है। पहले के लोग अब तो रहे नहीं कि बचन देकर उसे पूरा करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे। बचन दे दो और कुछ न दो। कितना आसान काम है। भय और लाज अब साथ छोड़ जो चुकी है।
रामबिहारी जी ने बहुत सी बातें बतायीं। इनके पड़ोसी ने कह रखा था कि गाड़ी तो हमारे घर में है कोई जरूरत पड़े तो बताना। ये बेचारे मतलब नहीं समझे थे। एक दिन पोते की तबियत खराब होने पर गाड़ी के लिए पहुँच गए। पड़ोसी ने कहा तेल नहीं है। ये बोले बाजार तक पहुँचने भर को तेल हो तो वहाँ पहुँचकर भरा लेंगे। पड़ोसी बोला इतना भी मुश्किल है। रास्ते में दिक्कत हो सकती है। रामू को चलाने से मतलब रहता है। तेल पानी से थोड़े। ये लौट आए। समझे नहीं कि यदि इतना भी तेल नहीं है तो क्या ये सिर पर लादकर कहीं ले जाएँगे।
कुछ दिन बाद जरूरत पड़ने पर फिर पहुँच गए। पड़ोसी ने कहा ही था कि जरूरत पड़े तो बताना। पड़ोसन घर से निकलकर बोली बेटा चाभी लेकर कहीं गया है। ये फिर लौट आए। क्या करते ?
विनोद ने इनसे कहा था कि जरूरत पड़े तो बताना। मैं किसी के पीछे नहीं घूमता हूँ। लोग खुद मेरे पीछे घूमते हैं। यह सब कहकर जरूरत में इनसे कुछ रूपये ऐठ लिया। काम भी नहीं हुआ। मैंने कहा अब समझ में आया कि अब भी नहीं कि लोग उनके पीछे क्यों घूमते हैं ? जिससे ले लेते हैं। न उसका काम करते हैं। और न ही पैसा वापस देते हैं। इसलिए लोग उनके पीछे घूमते रहते हैं कि कम से कम पैसा वापस हो जाय तो भी गनीमत है।
इनके भाई की तबियत खराब हो गई थी। आराम नहीं मिल रहा था। सोचा लखनऊ ले चलें। वहाँ कई मित्र और करीबी रिश्तेदार भी थे। फोन से कुछ लोगों से बात भी हुई। लोगों ने कहा हम लोग तो यहीं हैं। आज उन लोगों को अपने वहाँ होने पर दुःख था। जब वहीं रह रहे हो तो रहोगे ही। बीबी-बच्चे हैं, अपना काम है। इतना जल्दी घर छोड़कर कहीं भाग भी तो नहीं सकते।
खैर बोले कि कोई जरूरत पड़े तो बताना। माधवजी का घर अस्पताल से कुछ ही दूर था। इन्होंने सोचा था कि इनसे काफी मदद मिल जायेगी। थोड़े ही दिन की बात है। खाना-पीना माधव के यहाँ से आ जायेगा। कोई दिक्कत नहीं होगी। आखिर में लखनऊ पहुँच ही गए। नया शहर उस पर उतना बड़ा अस्पताल। फिर भी किसी तरह भाई को एडमिट कराए। लोग आए, मिले। कुछ ने अपनी व्यस्तता बताई। बचन दिए। वही कि कोई जरूरत पड़े तो बताना और चलता बने। कुछ ने आते ही पूछा सब ठीक-ठाक है न। ये मन में बोले सब ठीक ही होता तो क्यों दर-दर की ठोकर खाते।
माधव भी आया। बोला यहाँ कोई दिक्कत नहीं है। पास में ही कैंटीन है। सब मिलता है। अच्छा चलते हैं। कोई जरूरत पड़े तो बताना। थोड़ी देर बाद रामबिहारी जी निरा अकेले। जैसे किसी अजनबी शहर में आ गए हों। सोचने लगे कि लोग किस जरूरत की बात करते हैं ?
इनके बेटी की शादी थी। लोगों ने कहा बेटी की शादी में खर्चा तो आता ही है। बेटी की शादी कहाँ रोज-रोज होती है ? कोई जरूरत पड़े तो बताना। सब कुछ इंतजाम था। लग रहा था कि कोई कमी नहीं है। बरातियों ने कई कमी निकाल दी। और दूल्हे के पिता ने पचास हजार का जैसे जुर्माना ठोक दिया। बरात वापस चली गई। क्योंकि इस पचास हजार का इंतजाम नहीं हो सका था।
खैर रामबिहारी जी की बात छोड़िये। आप अगर किसी परेशानी में हैं तो ज्यादा परेशान मत हों। क्योंकि जो आपसे रोज मिलते थे। वे भी कई रोज बाद मिलेंगे। क्योंकि उनके पास ऐसे-ऐसे काम आ जाएंगे जो कभी नहीं आए थे और न आगे आने की सम्भावना होगी। जो आपको खोज कर मिलते थे वे खोजने पर भी नहीं मिलेंगे। जो आपके न देखने पर भी आपको देख लेते थे। वे देखने पर भी नहीं देखेंगे। जो आपको आवाज देकर बुला लेते थे। वे आवाज देने पर भी नहीं बोलेंगे। जो बिना बुलाये चले आते थे। वे बुलाने पर भी नहीं आयेंगे। और तो और कोई जरूरत पड़े तो बताना कहने वालों के मोबाइल स्विच आफ मिलेंगे। यदि गलती से मिल गया तो उठेगा नहीं। और यदि किसी ने भूल बस उठा लिया तो वही नहीं मिलेगा जिसकी आपको जरूरत है।
ऐसे वक्त में लोगों के यहाँ प्रायः कलह और मार-पीट तक हो जाती है। मान लीजिए रामबिहारी जी जैसे किसी व्यक्ति का फोन आ रहा है और किसी ने रिसीव कर लिया तो घर का मुखिया उस पर बिफर सकता है। झापड़ तक भी रसीद कर सकता है।
गाँव वालों की अपेक्षा सहर वालों के पास ऐसे झंझट ज्यादा होते हैं। सो मर्ज की एक दवा इस्तेमाल नहीं कर सकते। शहरों में लाइट की उतनी समस्या तो रहती नहीं जितनी गावों में। अन्यथा कह दें कि भाई कई दिन से लाइट नहीं आ रही है। इसलिए मोबाइल स्वीच आफ पड़ा था। साधनों की कमी भी नहीं रहती। अतः इसके लिए भी कोई बहाना नहीं बन सकता। बस व्यस्तता ही इनकी जान बचाने में मददगार होती है।
मुश्किल की स्थिति में यदि आपका कोई ऐसा काम है जिसे कोई गैर भी आसानी से कर सकता है तो इसे आप किसी परिचित से भी आसानी से करा सकते हैं। बशर्ते थोड़ी सी सावधानी अपनानी होगी। यथा-स्थिति से उसे पूरी तरह से अवगत कराना होगा। जैसे मान लीजिए आपको कोई चीज कहीं भेजनी है। आप किसी के पास बार-बार फोन कर रहे हैं। और फोन लग तो रहा है पर उठ नहीं रहा है। जो कि वक्त की मांग है। ऐसे में आप एक मैसेज भेज दीजिए। और स्पष्ट लिख दीजिए कि यही काम है। हम गारंटी लेते हैं। थोड़ी देर बाद उसका काल आ जायेगा। और वह आपका काम करने को तैयार भी रहेगा।
जरूरत ऐसी चीज है जो लोगों को जोड़ती है। पास लाती है। जरूरत न हो तो लोग एक दूसरे के पास ही न आएँ। बोलें ही नहीं। लोग निरा अकेले रहने लगें। रही बात जरूरत में काम आने की तो यह कंडीसनल है। कुछ लोग जरूरत में तभी काम आते हैं जब उन्हें पूरा भरोसा होता है कि इसमें मेरा लाभ ही लाभ होगा। कुछ लोग इतने में ही काम आ जाते हैं कि लाभ हो या न हो पर मेरा एक कौड़ी का भी नुकसान नहीं होगा।
कुछ भी हो ‘कोई जरूरत पड़े तो बताना’ कहना लोगों का जन्म सिद्ध (मनुष्य होने के नाते) अधिकार है। आप किसी से भी और कभी भी बिना हिचक ऐसा कह सकते हैं। दीगर है कि यह कहने से पहले आपने इसके बिल्कुल बिपरीत रहने व करने का पूरा मन बना लिया हो। अगर ऐसा है तो क्यों न चलते-चलते हम भी आप से कहें कि-
भूल मत जाना, कोई जरूरत पड़े तो बताना।
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ.प्र.)।
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