पुस्तक समीक्षा रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर विषाद को भेदती -व्यंग्य की टंकार ज्यों-ज्यों मानव ने स्वयं को परिष्कृत और विकसित किया, आ...
पुस्तक समीक्षा
रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर
विषाद को भेदती -व्यंग्य की टंकार
ज्यों-ज्यों मानव ने स्वयं को परिष्कृत और विकसित किया, आधुनिकता का चोला पहना त्यों-त्यों उसकी सम्वेदनाऐं भोथरी होती गयीं। चिन्ता,विषाद,अवसाद एवं अंर्तद्वन्द ने कीलनी की भांति जकड लिया है। उसके पास अपने लिए समय ही नहींं बचा। आज स्थिति यह है कि वह परिजनों ,शानो शौकत तथा दौलत के हेत जीवन जी रहा है। उसका अपना जीवन ,उसका सुकून, हास परिहास न जाने कहाँ विलुप्त होता जा रहा है। ऐसे बोझिल, गमगीन संक्रमण काल के मध्य आंतरिक सुरक्षा से जुडे उ0प्र0 पुलिस में सेवारत प्रतिसार निरीक्षक श्री सतीश चन्द्र शर्मा 'सुधांशु' के व्यंग्य काव्य संग्रह ने फागुन की फुहार बनकर पाठकों के बीच दस्तक दी है। श्री सतीश 'सुधांशु' का विषय क्षेत्र सियासत,शिक्षा विभाग ,पति पत्नी और वो, समाज में व्याप्त विसंगतियां,यहां तक कि जल में रहे मगर से बैर वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए पुलिस की कारगुजारियां भी व्यंग्य बाण से नहीं बच पायीं हैः-
यथा- दरोगा जी से पूछा -
आम आदमी की तलाश है।
क्या कोई आसपास है ?
वे बोले-क्या बकवास है ?
यहां मिलेंगे वादी प्रतिवादी
पुलिस दलाल अपराधी॥ (पृ0 3)
हालांकि बेल्टधारी नौकरी में सृजन के हेतु समय निकाल पाना दुष्कर कार्य है। मैं स्वयं इस पीडा का भुक्तभोगी हूँ लेकिन सृजन कार्य रात्रि दस बजे के उपरांत प्रारम्भ होकर भोर की बेला तक ही किया जा सकता है। वह भी नेपथ्य में। पता नहीं कब कोप की गाज लेखन पर गिर पडे । इस साहस के लिए कृतिकार साधुवाद के पात्र हैं। कृति व्यंग्य के हर रस की अनुभूति कराती है। व्यंग्य यात्रा बहुत शालीनता एवं मर्यादा में रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है। कविताओं में लोकोक्ति तथा मुहाविरों का प्रयोग प्रचुर मात्रा किया गया है। इनके बिना रचना पूर्णतः को प्राप्त नहीं होती है।
आशा की जानी चाहिए श्री सतीश 'सुधांशु' के तरकश से भविष्य में भी अनेकों व्यंग्य विधा के बाणों से बच पाना मुश्किल होगा।
अंततः यही.........
पति पत्नी के बीच 'वो',नेता अरु सरकार।
पुलिस कहाँ बच पायेगी,गूंजे जब टंकार॥
पुस्तक ः व्यंग्य की टंकार
मूल्य ः 150 रुपये
प्रकाशकः विकास प्रकाशन
कल्पतरु, जियाखेल,शाहजहाँपुर(उ0प्र0) शांतिदाता सदन, नेकपुर चौरासी फतेहगढ (उ0प्र0) पिन209601
---
(2)
पुस्तक समीक्षा
रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर
मानवीय सम्वेदनाओं को तलाशती तलाश
जब सामाजिक विद्रूपताऐं, सडी गली कुरितियों एवं रुढियों के प्रति आक्रोश के मध्य विवेकपूर्ण चिन्तन से हृदय उद्द्वेलित होता तभी काव्य की रसधार प्रस्फुटित होती है।आदि कवि बाल्मीकि ने जब आहत क्रौंच पक्षी की दुर्गति को निहारा तो तत्क्षण व्यथित हृदयमें ही सरस काव्य का बास होता है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नांकित पंक्तियों से होती हैः-
वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान,
वही कविता होगी अंजान॥
अनंत आलोक विरचित काव्य संग्रह तलाश उसी सांकल की एक कडी है।सर्वप्रथम कृति शीर्षक की चर्चा करना संदर्भित होगा । तलाश अर्थात खोज, खोज आदमी में मानव की ,निष्छलता का पर्याय शाश्वत बालमन की,इहलोक में रहकर पारलौकिक आनंद के अनुभूति की जो परम सत्ता अवतार भगवान बुद्ध के चिन्तन ,उपदेशों ,निर्देशों की बीथिका से पारगमन होती हैं इसी नित्य सत्य प्रभति की प्राप्ति के उपक्रम में कृति का अथ से इति तक का संर्घ अनवरत जारी हैं। अतः कृति का चयनित अथ वाक् तलाश सर्वथा सार्थक प्रतीत होता है।
इनकी कविताओं में मानवीय सम्वेदना ,संघर्ष मुखर स्वर, सामाजिक कुरीतियां एवं विद्रूपताओं नर करारी चोट ,अध्यात्म चिन्तन ,आधुनिकता पर अर्वाचीनी प्रहार के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। कवि आलोक जीवन से जुडे छोटे किन्तु अहम पहलुओं पर अपनी लेखनी चलायी है। अम्मा के घड़े का शीतल जल फ्रिज को मात देता और त्योहार पर अम्मा का घडा सिवईयां बटने के काम के काम आता है। कविता शर्षक अम्मा में अपनत्व एवं ममत्व की अनुभूति होती है। कवि का संशय ,होश और निश्चेतना की भारिता को लेकर लाजिमी है। वर्तमान भारतीय परिदृश्य शहरी संस्कृति से रुबरु कराती है काव्यकृति । ष्फूलष् जैसी अन्य रचनाओं में उत्तरार्ध में सकारात्मक पक्ष कृति की विशेषता है।
शीर्षक कविता तलाश के भाव कवि के शब्दों में यथा ः-
आदमी के भीतर दिखे
केवल एक ही इंसान।
बालक सा हो निष्छल मन
और बुद्ध सा बुद्धिमान॥
ग् ग् ग् ग् ग्
यही मेरी तलाश है,
यही मेरा संग्राम
और तलाश अभी जारी है॥(पृ0-60)
कृति के उत्तरार्ध में हायकू मुक्तक तथा दोहों का संकलन एक में अनेक प्रतिबिम्बित है। हालांकि कवि का यह प्रयास का प्रथम सोपान है। आशा है अनन्त आलोक की लेखनी से अभी कई पुष्पों की सौरभ से पाठक वृंद सुरभित होंगे। भाषा सरल,सुगम तथा ग्राहृय है।लोक की बात लोक भाषा में । रस,अलंकार पर ध्यान रहता तो काव्यकृति में माधुर्य मुग्ध करता ।
.
अंततः काव्यकृति संग्रहणीय एवं मननीय है। आशा की जानी चाहिए ,कवि का परिमार्जित स्वरुप उनकी अग्रिम कृति में परिलक्षित होगा। इसी आशा के साथ-
मानवीय सम्वेदना, मानवता की आस।
मग घर गोचर बाग वन,जारी सतत तलाश॥
--
कृतिः तलाश
मूल्यः100 रुपए
प्रकाशकः आजमी प्रकाशन,पांवटा साहिब
सिरमौर(हि0प्र0)
शांतिदाता सदन, नेकपुर चौरासी फतेहगढ(उ0प्र0) पिन209601
E Mail- Dixit4803@rediffmail.com
दुबारा समीक्षा प्रकाशित करने के लिए रवि जी का हार्दिक आभार और प्रखर जी को बधाई एवं साधुवाद |
जवाब देंहटाएं