साहित्यिक रिपोर्ट सरिता लोक सेवा संस्थान का दशम् सारस्वत सम्मान समारोह एवं राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न । अवध क्षेत्रांर्तगत जन...
साहित्यिक रिपोर्ट
सरिता लोक सेवा संस्थान का दशम् सारस्वत सम्मान समारोह एवं राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न ।
अवध क्षेत्रांर्तगत जनपद सुल्तानपुर(उ.प्र.)की साहित्यिक,सामाजिक संस्था सरिता लोक सेवा संस्थान ,सहिनवाँ का दशम् सारस्वत सम्मान समारोह एवं राष्ट्रीय कवि सम्मेलन संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण मणि चतुर्वेदी मैत्रेय के संयोजकत्व में आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि डॉ. मोहन तिवारी(भोपाल),विशिष्ट अतिथि डॉ.देवेन्द्र साह (बिहार) एवं प्रमुख समाजसुवी रामार्य पाठक (दिल्ली)के द्वारा मां शारदे के चित्र समक्ष दीप प्रज्वलन तथा माल्यार्पण किया गया ,तत्पश्चात स्व. रामकृपाल पाण्डेय ,पं. बृज बहादुर पाण्डेय और श्री बाबूराम शर्मा जी के चित्रों पर माल्यार्पण उनकी संतति के साथ ही कार्यक्रम का आगाज हुआ।
सारस्वत सम्मान के क्रम में सर्वोच्च सम्मान कीर्ति भारती (रु.21.. सहित)डॉ. देवेन्द्र साह(भागलपुर बिहार),पं. बृज बहादुर पाण्डेय सम्मान(रु.11..सहित),डॉ. सन्त शरण त्रिपाठी सन्त (गोण्डा)को ,ज्ञान चन्द्र मर्मज्ञ सम्मान(रु.11..सहित)डॉ. मोहन तिवारी आनंद (भोपाल)को, दर्द(झांसी)एवं गोपाल कृष्ण भट्ट(कोटा)को साहित्य मार्तण्ड,अनन्त आलोक (हि.प्र.),उमेश पटेल श्रीश (महाराजगंज)को साहित्य गौरव कृपा शंकर शर्मा अचूक (जयपुर),रामचरण यादव यादाश्त (बैतूल) को भाषा भूषण तथा सैन्य कवि रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर( फर्रुखाबाद)को काव्य कुमुद तथा प्रदीप प्रचंड को भाषा भूषण से सम्मानित किया गया।
सम्मान अलंकार उपरांत राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आहूत किया गया। जिसमें डॉ. मोहन तिवारी आनंद (भोपाल), गोपाल कृष्ण भट्ट(कोटा), रघुनंदन प्रसाद दीक्षित प्रखर( फर्रुखाबाद), अनन्त आलोक (हि.प्र.),सतीश चन्द्र शर्मा(मैनपुरी),डॉ. अशोक गुलशन,संगम लाल भंवर (प्रतापगढ)सहित स्थानीय कवियों में इन्दु,जलज, मनोज,धुरंधरआदि दर्जन भर कवियों ने काव्य पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । देर रात तक चला कवि सम्मेलन उत्कर्ष के सोपान छूता रहा। समारोह का निखालिश ग्रम्यांचल में आयोजन एवं खडी बोली के अतिरिक्त अवधी,कन्नौजी तथा भेाजपुरी की त्रिवेणी में रससिक्तता समारोह की विश्ोष उपलब्धि रही।काव्यपाठ में 8. वर्षीय सुखपाल सिंह की उपस्थिति थी तो वहीं तरुणाई की दहलीज पर पांव रखे 18 वर्षीय शिवकांत त्रिपाठी ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. देवेन्द्र साह ने तथा सम्मान सत्र का डॉ. सन्त शरण त्रिपाठी सन्त ने एवं कवि सम्मेलन का अल्हड ने कुशल किया।
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पुस्तक समीक्षा
मानवीय सम्वेदनाओं को तलाशती तलाश
जब सामाजिक विद्रूपताऐं, सडी गली कुरितियों एवं रुढियों के प्रति आक्रोश के मध्य विवेकपूर्ण चिन्तन से हृदय उद्द्वेलित होता तभी काव्य की रसधार प्रस्फुटित होती है। आदि कवि बाल्मीकि ने जब आहत क्रौंच पक्षी की दुर्गति को निहारा तो तत्क्षण व्यथित हृदय में ही सरस काव्य का बास होता है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नांकित पंक्तियों से होती हैः-
वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान,
वही कविता होगी अंजान॥
अनंत आलोक विरचित काव्य संग्रह तलाश उसी सांकल की एक कडी है। सर्वप्रथम कृति शीर्षक की चर्चा करना संदर्भित होगा । तलाश अर्थात खोज, खोज आदमी में मानव की ,निष्छलता का पर्याय शाश्वत बालमन की,इहलोक में रहकर पारलौकिक आनंद के अनुभूति की जो परम सत्ता अवतार भगवान बुद्ध के चिन्तन ,उपदेशों ,निर्देशों की बीथिका से पारगमन होती हैं इसी नित्य सत्य प्रभति की प्राप्ति के उपक्रम में कृति का अथ से इति तक का संर्घ अनवरत जारी हैं। अतः कृति का चयनित अथ वाक् तलाश सर्वथा सार्थक प्रतीत होता है।
इनकी कविताओं में मानवीय सम्वेदना ,संघर्ष मुखर स्वर, सामाजिक कुरीतियां एवं विद्रूपताओं नर करारी चोट ,अध्यात्म चिन्तन ,आधुनिकता पर अर्वाचीनी प्रहार के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। कवि आलोक जीवन से जुडे छोटे किन्तु अहम पहलुओं पर अपनी लेखनी चलायी है। अम्मा का घड़े का शीतल जल फ्रिज को मात देता और त्यौहार पर अम्मा का घडा सिवईयां बटने के काम के काम आता है। कविता शीर्षक अम्मा में अपनत्व एवं ममत्व की अनुभूति होती है। कवि का संशय ,होश और निश्चेतना की भारिता को लेकर लाजिमी है। वर्तमान भारतीय परिदृश्य शहरी संस्कृति से रुबरु कराती है काव्यकृति । ष्फूलष् जैसी अन्य रचनाओं में उत्तरार्ध में सकारात्मक पक्ष कृति की विशेषता है।
शीर्षक कविता तलाश के भाव कवि के शब्दों में यथा ः-
आदमी के भीतर दिखे
केवल एक ही इंसान।
बालक सा हो निष्छल मन
और बुद्ध सा बुद्धिमान॥
.....
यही मेरी तलाश है,
यही मेरा संग्राम
और तलाश अभी जारी है॥(पृ.-6.)
कृति के उत्तरार्ध में हायकू मुक्तक तथा दोहों का संकलन एक में अनेक प्रतिबिम्बित है। हालाकिं कवि का यह प्रयास का प्रथम सोपान है। आशा है अनन्त आलोक की लेखनी से अभी कई पुष्पों की सौरभ से पाठकवृंद सुरभित होंगं। भाषा सरल,सुगम तथा ग्राहृय है।लोक की बात लोक भाषा में । रस,अलंकार पर ध्यान रहता तो काव्यकृति में माधुर्य मुग्ध करता ।
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अंततः काव्यकृति संग्रहणीय एवं मननीय है। आशा की जानी चाहिए ,कवि का परिमार्जित स्वरुप उनकी अग्रिम कृति में परिलक्षित होगा। इसी आशा के साथ-
मानवीय सम्वेदना, मानवता की आस।
मग घर गोचर बाग वन,जारी सतत तलाश॥
कृतिः तलाश
मूल्यः1.. रुपए
प्रकाशकः आजमी प्रकाशन,पांवटा साहिब
सिरमौर(हि.प्र.)
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विषाद को भेदती -व्यंग्य की टंकार
ज्यों-ज्यों मानव ने स्वयं को परिष्कृत और विकसित किया, आधुनिकता का चोला पहना त्यों-त्यों उसकी सम्वेदनाऐं भोथरी होती गयीं। चिन्ता,विषाद,अवसाद एवं अंर्तद्वन्द ने कीलनी की भांति जकड लिया है। उसके पास अपने लिए समय ही नहीं बचा। आज स्थिति यह है कि वह परिजनों ,शानो शौकत तथा दौलत के हेत जीवन जी रहा है। उसका अपना जीवन ,उसका सुकून, हास परिहास न जाने कहाँ विलुप्त होता जा रहा है। ऐसे बोझिल, गमगीन संक्रमण काल के मध्य आंतरिक सुरक्षा से जुडे उ.प्र. पुलिस में सेवारत प्रतिसार निरीक्षक श्री सतीश चन्द्र शर्मा 'सुधांशुु' के व्यंग्य काव्य संग्रह ने फागुन की फुहार बनकर पाठकों के बीच दस्तक दी है। श्री सतीश 'सुधांशु' का विषय क्षेत्र सियासत,शिक्षा विभाग ,पति पत्नी और वो, समाज में व्याप्त विसंगतियां,यहां तक कि जल में रहे मगर से बैर वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए पुलिस की कारगुजारियां भी व्यंग्य बाण से नहीं बच पायीं हैः-
यथा- दरोगा जी से पूछा -
आम आदमी की तलाश है।
क्या कोई आसपास है ?
वे बोले-क्या बकवास है ?
यहां मिलेंगे वादी प्रतिवादी
पुलिस दलाल अपराधी॥ (पृ. 3)
हालांकि बेल्टधारी नौकरी में सृजन के हेतु समय निकाल पाना दुष्कर कार्य है। मैं स्वयं इस पीडा का भुक्तभोगी हूँ लेकिन सृजन कार्य रात्रि दस बजे के उपरांत प्रारम्भ होकर भोर की बेला तक ही किया जा सकता है। वह भी नेपथ्य में। पता नहीं कब कोप की गाज लेखन पर गिर पडे । इस साहस के लिए कृतिकार साधुवाद के पात्र हैं। कृति व्यंग्य के हर रस की अनुभूति कराती है। व्यंग्य यात्रा बहुत शालीनता एवं मर्यादा में रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है। कविताओं में लोकोक्ति तथा मुहाविरों का प्रयोग प्रचुर मात्रा किया गया है। इनके बिना रचना पूर्णतः को प्राप्त नहीं होती है।
आशा की जानी चाहिए श्री सतीश 'सुधांशु' के तरकश से भविष्य में भी अनेकों व्यंग्य विधा के बाणों से बच पाना मुश्किल होगा।
अंततः यही.........
पति पत्नी के बीच 'वो',नेता अरु सरकार।
पुलिस कहाँ बच पायेगी, गूंजे जब टंकार॥
पुस्तक ः व्यंग्य की टंकार
मूल्य ः 15. रुपये
प्रकाशकः विकास प्रकाशन
कल्पतरु, जियाखेल, शाहजहाँपुर(उ.प्र.)
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अनंत आलोक
अजर अमर अद्वैत वही,कण कण रमता राम।
जब तक रब का बास हिय,तब तक तन का दाम॥1॥
नभ क्षिति पावक जल हवा,करते तन में बास।
पंच तत्व का पिंजडा ,आत्मदेव से श्वांस॥2॥
न्यामत उसकी है अगर,गगन चूमती शान।
जिसके बिन न तृण हिले, उसे कहें भगवान॥3॥
तक्त कसैला कटु मधुर,जीवन के रस चार।
रहे कफन श्मशान तक, नर जाता हाथ पसार॥4॥
आगत का आदर करें,रखें पलक की छांव।
अतिथि देव का रुप सच,हृदय प्रेम का भाव॥5॥
लोक और परलोक सब, कर्मों के आधीन।
सांप वहीं पर झूमता,जहां गूंजती बीन॥6॥
करम प्रधान पूजा यही व्यर्थ बजाते गाल।
जो बोया सो काटिए,जहां आप तंह काल॥7॥
प्रथम वर्ण को जोडिए, दोहे पढिए सात।
दिव्य अनंत आलोक से,रोशन रहे प्रभात॥8॥
उन्नति सुख समृद्धि अरु, नहिं ब्यापै जग शोक।
यही कामना 'प्रखर' हिय, दमकें प्रिय आलोक॥9॥
॥ शारदे यज्ञ॥
यज्ञ शारदा का हुआ, पहुंचे बठुक सुजान।
साहित्य मनीषी कलाधर, गहे लेखनी बान।
गहे लेखनी बान ,थी-'इन्दु' की छटा निराली।
'मैत्रेय' 'आनंद' 'प्रखर' था 'अल्हड' की हरयाली॥
दर्दे दिल सुनाऐं 'गुलशन',विनयी नम्र सुविज्ञ।
रहे प्रवाहित सरिता धारा, और शारदे यज्ञ॥
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शांतिदाता सदन, नेकपुर चौरासी फतेहगढ (उ.प्र.) पिन2.96.1
dixit4803@rediffmail.com
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